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UP Board Class 12th Hindi Paper solution 2023 || यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी पेपर संपूर्ण हल 2023

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Class 12th Hindi Paper Solution 2023 UP Board 


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यूपी बोर्ड परीक्षा 2023

कक्षा -12वीं

विषय- हिंदी


अनुक्रमांक                         मुद्रित पृष्ठों की संख्या 8

 नाम.                                       301 (ZE)


101                                           2023


                     कक्षा – 12वी


                     विषय – हिन्दी


समय तीन घण्टे 15 मिनट ।             पूर्णांक: 100




निर्देश:


(i)प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।

(ii) इस प्रश्न पत्र में दो खण्ड हैं। दोनों खण्डों के सभी प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।




                            खण्ड क


(क) डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी निबन्धकार हैं :1


(i) शुक्ल-युग के


(ii) भारतेन्दु युग के


(iii) शुक्लोत्तर-युग के


(iv) द्विवेदी युग के

उत्तर –(iii) शुक्लोत्तर-युग के


(ख)'कला और संस्कृति' इनमें से किस विधा की रचना है ?1


(i) आलोचना


(ii) निबन्ध


(iii) नाटक


(iv) कहानी

उत्तर –(ii) निबन्ध


(ग) राष्ट्र जीवन की दिशा' कृति के रचनाकार हैं :1


(i)पं. दीनदयाल उपाध्याय


(ii) वासुदेवशरण अग्रवाल


(iii) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'


(iv) प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी

उत्तर –(i)पं. दीनदयाल उपाध्याय


(घ) माघ का कथन 'क्षणे क्षणे यन्त्रवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयताया:' इनमें से किस निबन्ध में उद्भुत है 1


(i) 'राष्ट्र का स्वरूप'


(ii)'अशोक के फूल'


(iii)'भाषा और पुरुषार्थ


(iv)'भाषा और आधुनिकता'


(ङ) तपती पगडंडियों पर पद यात्रा' आत्मकथा है 1


(i) डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की 


(ii) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' की


(iii) पं. दीनदयाल उपाध्याय की


(iv) जैनेन्द्र कुमार की

उत्तर –(ii) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' की


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2.(क) 'सुमन राजें' की कविताएँ किस 'सप्तक' में संकलित हैं ?


(i) 'दूसरा सप्तक' में


(ii) 'तीसरा सप्तक' में


(iii) 'चौथा सप्तक' में


(iv) 'तारसप्तक' में


उत्तर –(iii) 'चौथा सप्तक' में


(ख) इनमें से जगन्नाथदास 'रत्नाकर' की कृति नहीं है :


(i) 'समालोचनादर्श'


(ii) 'श्रृंगारलहरी'


(iii) 'वीराष्टक'


(iv) 'अधखिला फूल' 

उत्तर –(iv) 'अधखिला फूल'


(ग) सुमित्रानन्दन पन्त को 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार मिला था :1


(i) 'लोकायतन' पर


(ii) 'कला और बूढ़ा चाँद' पर


(iii) 'चिदम्बरा' पर


(iv) 'ग्राम्या' पर

उत्तर –(ii) 'कला और बूढ़ा चाँद' पर


(घ) इनमें से कौन-सी काव्यकृति रामधारी सिंह 'दिनकर' की है ?


(i) 'चक्रवाल'


(iii) 'रश्मिबंध'


(ii) 'अनामिका'


(iv) 'गन्धवीथी'

उत्तर –(i) 'चक्रवाल'


(ङ) 'धर्म तथा ईश्वर के प्रति अनास्था' आधुनिक काल के किस युग की प्रवृत्ति है 1


(i) छायावाद-युग की


(ii) प्रगतिवाद-युग की


(iii) प्रयोगवाद-युग की


(iv) नयी कविता- काल की

उत्तर –(ii) प्रगतिवाद-युग की


3.निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:? 5x2 = 10


मैंने भावना से अभिभूत हो सोचा – जो बिना प्रसव किए ही माँ बन सकती है, वही तीस रुपये मासिक के योगक्षेम पर बीस वर्ष के दिन और रात सेवा में लगा सकती है और वहीं पीड़ितों के तड़प जीवन में हँसी बिखेर सकती है। तीसरे पहर का समय, थर्मामीटर हाथ में लिए यह आय मदर टेरेसा और उनके साथ एक नवयुवती, उसी विशिष्ट धवल वेष में, गौर और आकर्षक । हाँ, गौर और आकर्षक, पर उसके स्वरूप का चित्रण करने में ये दोनों ही शब्द असफल । यो कहकर उसके आस-पास आ पाऊँगा कि शायद चाँदनी को दूध में घोलकर ब्रह्मा ने उसका निर्माण किया हो । रूप और स्वरूप का एक दैवी साँचा-सी वह लड़की । नाम उसका क्रिस्ट हेल्ड और जन्मभूमि जर्मनी । फ्रांस की पुत्री मदर टेरेसा और जर्मनी की दुहिता क्रिस्ट हेल्ड, एक रूप, एक ध्येय, एक रस ।


(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।


(ख) नवयुवती का क्या नाम था ? उसकी जन्मभूमि कहाँ थी ?


 (ग) नवयुवती की वेशभूषा और रूपरंग के सम्बन्ध में लेखक का क्या विचार है ?


(घ) 'अभिभूत' और 'दुहिता' शब्दों का अर्थ लिखिए ।


(ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।



                      अथवा


प्रकृत यह है कि बहुत पुराने जमाने में आर्य लोगों को अनेक जातियों से निपटना पड़ा था। जो गर्वीली थीं, हार मानने को प्रस्तुत नहीं थीं, परवर्ती साहित्य में उनका स्मरण घृणा साथ किया गया और जो सहज ही मित्र बन गयीं, उनके प्रति अवज्ञा और उपेक्षा का भाव नहीं रहा । असुर, राक्षस, दानव और दैत्य पहली श्रेणी में तथा यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, सिद्ध, विद्याधर, वानर, भालू आदि दूसरी श्रेणी में आते हैं । परवर्ती हिन्दू-समाज इन सबको बड़ी अद्भुत शक्तियों का आश्रय मानता है, सबमें देवता - बुद्धि का पोषण करता है । अशोक वृक्ष की पूजा इन्हीं गन्धवों और यक्षों की देन है। प्राचीन साहित्य में इस वृक्ष की पूजा के उत्सवों का बड़ा सरस वर्णन मिलता है । असल पूजा अशोक की नहीं, बल्कि उसके अधिष्ठाता कंदर्प-देवता की होती थी। इसे 'मदनोत्सव' कहते थे। महाराज भोज के 'सरस्वती-कंठाभरण' से जान पड़ता है कि यह उत्सव त्रयोदशी के दिन होता था ।


(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए । 

उत्तर – पाठ का नाम – अशोक के फूल

लेखक – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी


(ख) परवर्ती साहित्य में किसका स्मरण घृणा के साथ किया गया है ?

उत्तर –बहुत पुराने जमाने में आर्य लोगों को अनेक जातियों से निपटना पड़ा था। जो गर्वीली थीं, हार मानने को प्रस्तुत नहीं थीं, परवर्ती साहित्य में उनका स्मरण घृणा साथ किया गया


(ग) अशोक वृक्ष की पूजा किसकी देन है ?

उत्तर –अशोक वृक्ष की पूजा इन्हीं गन्धवों और यक्षों की देन है। 


(घ) 'प्रकृत' तथा 'कंदर्प' शब्दों का अर्थ लिखिए ।

उत्तर – स्वाभाविक और कामदेव 


(ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर – असल पूजा अशोक की नहीं, बल्कि उसके अधिष्ठाता कंदर्प देवता की होती थी। इसे 'मदनोत्सव' कहते थे। महाराज भोज के 'सरस्वती-कंठाभरण' से जान पड़ता है कि यह उत्सव त्रयोदशी के दिन होता था। 'मालविकाग्निमित्र' और 'रत्नावली' में इस उत्सव का बड़ा सरस, मनोहर वर्णन मिलता है


4.निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :5x2=10


इहि विधि धावति धँसति ढरति ढरकति सुख देनी । मनहुँ सँवारति शुभ सुरपुर की सुगम निसेनी ।। बिपुल बेग बल बिक्रम के ओजनि उमगाई ।

हरहराति हरषाति संभु-सनमुख जब आई ।।

भई थकित छवि चकित हेरि हर रूप मनोहर ।

है आनहिं के प्रान रहे तन धरे धरोहर ।।

भयो कोप कौ लोप चोप और उमगाई । चित चिकनाई चढ़ी कढ़ी सब रोष रुखाई ।।


(क) उपर्युक्त पद्यांश के पाठ और उसके रचयिता का नाम लिखिए ।


(ख) 'संभु' के मनोहर रूप को देखकर कौन चकित हो गया ?


(ग) 'मनहुँ सँवारति शुभ सुर-पुर की सुगम निसेनी' - इस पंक्ति में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए ।


(घ) 'विपुल' और 'निसेनी' शब्दों का अर्थ लिखिए ।


 (ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।


                         अथवा


यह मनुज, ब्रह्माण्ड का सबसे सुरम्य प्रकाश, कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश ।

यह मनुज जिसकी शिखा उद्दाम,

कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम ।

यह मनुज, जो सृष्टि का शृंगार,

ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार ।

"व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है क्षेय'

पर न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय । श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उस की जीत;

श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत ।


(क) उपर्युक्त पद्यांश के पाठ और उसके रचयिता का नाम लिखिए ।

उत्तर –(i) प्रस्तुत पद्यांश कविवर रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित 'कुरुक्षेत्र' काव्य के छठे सर्ग से हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'पद्य-भाग' में संकलित 'अभिनव मनुष्य' शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।


(ख) मनुष्य की क्या विशेषता है ?

उत्तर –आज मनुष्य वैज्ञानिक प्रगति के बल पर इस संसार के विषय में सब कुछ जान लिया है। पृथ्वी के गर्भ से लेकर सुदूर अन्तरिक्ष तक के सभी रहस्यों का उद्घाटन कर दिया है। 


(ग) मनुष्य का श्रेय क्या है ?

उत्तर –प्रत्येक मनुष्य प्राणिमात्र से स्नेह करे, उसे अपने समान ही समझे, यही मनुष्यता की अथवा मनुष्य होने की पहचान भी है,


(घ) 'सुरम्य' और 'आगार शब्दों का अर्थ लिखिए ।

उत्तर –अत्यंत मनोरम और मकान


(ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या-कवि कहता है कि आज मनुष्य वैज्ञानिक प्रगति के बल पर इस संसार के विषय में सब कुछ जान लिया है। पृथ्वी के गर्भ से लेकर सुदूर अन्तरिक्ष तक के सभी रहस्यों का उद्घाटन कर दिया है। चाँद-तारे, सूरज आदि की स्थिति को स्पष्ट कर दिया है कि आसमान में कहाँ और कैसे टिके हैं? पृथ्वी के गर्भ में जहाँ शीतल जल का अथाह भण्डार है, वहीं दहकता लावा भी विद्यमान है; उसके द्वारा यह भी ज्ञात किया जा चुका है। किन्तु यह ज्ञान-विज्ञान तो मनुष्यता की पहचान नहीं है और न ही इससे मानवता का कल्याण हो सकता है। संसार का कल्याण तो केवल इस बात में निहित है कि प्रत्येक मनुष्य प्राणिमात्र से स्नेह करे, उसे अपने समान ही समझे, यही मनुष्यता की अथवा मनुष्य होने की पहचान भी है, अन्यथा ज्ञान-विज्ञान की जानकारी तो एक कम्प्यूटर भी रखता है, मगर उसमें मानवीय संवेदनाएँ नहीं होतीं; अतः उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता।


5.(क) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए: (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)।3+2=5


(i) वासुदेवशरण अग्रवाल


(ii) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी


(iii) डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम


उत्तर –(ii) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

जीवन-परिचय- हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई० में बलिया जिले के दूबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता श्री अनमोल द्विवेदी ज्योतिष और संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे; अत: इन्हें ज्योतिष और संस्कृत की शिक्षा उत्तराधिकार में प्राप्त हुई। काशी जाकर इन्होंने संस्कृत-साहित्य और ज्योतिष का उच्च स्तरीय ज्ञान प्राप्त किया। इनकी प्रतिभा का विशेष विकास विश्वविख्यात संस्था शान्ति निकेतन में हुआ। वहाँ ये 11 वर्ष तक हिन्दी भवन के निदेशक के रूप में कार्य करते रहे। वहीं इनके विस्तृत अध्ययन और लेखन का कार्य प्रारम्भ हुआ। सन् 1949 ई० में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी०लिट्० की उपाधि से तथा सन् 1957 ई० में भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित किया। इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया तथा उत्तर प्रदेश सरकार की हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष रहे। तत्पश्चात् ये हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के सभापति भी रहे। 19 मई, 1979 ई० को यह वयोवृद्ध साहित्यकार रुग्णता के कारण स्वर्ग सिधार गया।


साहित्यिक योगदान- हजारीप्रसाद द्विवेदी साहित्य के प्रख्यात निबन्धकार, इतिहास-लेखक, अन्वेषक, आलोचक, सम्पादक तथा उपन्यासकार के अतिरिक्त कुशल वक्ता और सफल अध्यापक भी थे। वे मौलिक चिन्तक, भारतीय संस्कृति और इतिहास के मर्मज्ञ, बंगला तथा संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनकी रचनाओं में नवीनता और प्राचीनता का अपूर्व समन्वय था। इनके साहित्य पर संस्कृत भाषा, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और रवीन्द्रनाथ ठाकुर का स्पष्ट प्रभाव है। इन्होंने 'विश्वभारती' और 'अभिनव भारतीय' ग्रन्थमाला का सम्पादन किया। इन्होंने अपभ्रंश और लुप्तप्राय जैन-साहित्य को प्रकाश में लाकर अपनी गहन शोध दृष्टि का परिचय दिया। निबन्धकार के रूप में विचारात्मक निबन्ध लिखकर भारतीय संस्कृति और साहित्य की रक्षा की। इन्होंने नित्यप्रति के जीवन की गतिविधियों और अनुभूतियों का मार्मिकता के साथ चित्रण किया है। ये हिन्दी ललित निबन्ध लेखकों में अग्रगण्य हैं। द्विवेदी जी की साहित्य-सेवा को डी०लिट्०, पद्मभूषण और मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया है।


आलोचक के रूप में द्विवेदी जी ने हिन्दी-साहित्य के इतिहास पर नवीन दृष्टि से विचार किया। इन्होंने हिन्दी-साहित्य का आदिकाल में नवीन सामग्री के आधार न पर शोधपरक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। सूर-साहित्य पर इन्होंने भावपूर्ण आलोचना प्रस्तुत की है। इनके समीक्षात्मक निबन्ध विभिन्न संग्रहों में संगृहीत हैं। उपन्यासकार के रूप में द्विवेदी जी ने चार उपन्यासों की रचना की। इनके उपन्यास सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित हैं। इनमें इतिहास और कल्पना के समन्वय द्वारा नयी शैली और उनकी मौलिक प्रतिभा का परिचय मिलता है। 


रचनाएँ— आचार्य द्विवेदी का साहित्य बहुत विस्तृत है। इन्होंने अनेक विधाओं में उत्तम साहित्य की रचना की। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं- निबन्ध-संग्रह- 'अशोक के फूल', 'कुटज', 'विचार-प्रवाह', 'विचार और

वितर्क', 'आलोक पर्व', 'कल्पलता'। 


आलोचना- साहित्य- 'सूरदास', 'कालिदास की लालित्य योजना', 'कबीर', 'साहित्य- सहचर', 'साहित्य का मर्म' ।


इतिहास — 'हिन्दी-साहित्य की भूमिका', 'हिन्दी-साहित्य का आदिकाल','हिन्दी-साहित्य' ।


उपन्यास- 'बाणभट्ट की आत्मकथा', 'चारुचन्द्रलेख',

'अनामदास का पोथा'।


'पुनर्नवा' और सम्पादन- 'नाथ सिद्धों की बानियाँ', 'संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो', 'सन्देश , रासक' । अनूदित रचनाएँ- 'प्रबन्ध चिन्तामणि', 'पुरातन प्रबन्ध-संग्रह', 'प्रबन्धकोश',

 'विश्वपरिचय', 'लाल कनेर', 'मेरा बचपन' आदि।


साहित्य में स्थान- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हिन्दी गद्य के प्रतिभाशाली रचनाकार थे। इन्होंने साहित्य के इतिहास-लेखन को नवीन दिशा प्रदान की। वे ; प्रकाण्ड विद्वान, उच्चकोटि के विचारक और समर्थ आलोचक थे। गम्भीर आलोचना, विचारप्रधान निबन्धों और उत्कृष्ट उपन्यासों की रचना कर द्विवेदी जी 7 ने निश्चय ही हिन्दी-साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान पा लिया है।


(ख) निम्नलिखित में से किसी एक कवि का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए : (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)3+2=5


(i) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र


(ii) जयशंकर प्रसाद


(iii) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'


उत्तर –(ii) जयशंकर प्रसाद

जीवन-परिचय- जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में माघ शुक्ल दशमी संवत् 1945 वि० (सन् 1889 ई० ) में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। ये तम्बाकू के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने से इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। वर पर ही इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, फारसी का गहन अध्ययन किया। ये बड़े मिलनसार, हँसमुख तथा सरल स्वभाव के थे। इनका बचपन बहुत सुख से बीता, किन्तु उदार प्रकृति तथा दानशीलता के कारण ये ऋणी हो गये। अपनी पैतृक सम्पत्ति का कुछ भाग बेचकर इन्होंने ऋण से छुटकारा पाया। अपने जीवन में इन्होंने कभी अपने व्यवसाय की ओर ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप इनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती गयी और चिन्ताओं ने इन्हें घेर लिया।


बाल्यावस्था से ही इन्हें काव्य के प्रति अनुराग था, जो उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। ये बड़े स्वाभिमानी थे, अपनी कहानी अथवा कविता के लिए पुरस्कारस्वरूप एक पैसा भी नहीं लेते थे। यद्यपि इनका जीवन बड़ा नपा-तुला और संयमशील था, किन्तु दुःखों के निरन्तर आघातों से ये न बच सके और संवत् 1994 वि० (सन् 1937 ई०) में अल्पावस्था में ही क्षय रोग से ग्रस्त होकर स्वर्ग सिधार गये।


साहित्यिक सेवाएँ—श्री जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने के साथ-साथ युग प्रवर्तक नाटककार, कथाकार तथा उपन्यासकार भी थे। विशुद्ध मानवतावादी दृष्टिकोण वाले प्रसाद जी ने अपने काव्य में आध्यात्मिक आनन्दवाद की प्रतिष्ठा की है। प्रेम और सौन्दर्य इनके काव्य के प्रमुख विषय रहे हैं, किन्तु मानवीय संवेदना उनकी कविता का प्राण है। रचनाएँ प्रसाद जी अनेक विषयों एवं भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित और प्रतिभासम्पन्न कवि थे। इन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध आदि सभी साहित्यिक विधाओं पर अपनी लेखनी चलायी और अपने कृतित्व से इन्हें अलंकृत किया। इनका काव्य हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि है। इनके प्रमुख काव्यग्रन्थों का विवरण निम्नवत् है-


कामायनी —यह प्रसाद जी की कालजयी रचना है। इसमें मानव को श्रद्धा और मनु के माध्यम से हृदय और बुद्धि के समन्वय का सन्देश दिया गया है। इस रचना पर कवि को मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिल चुका है। आँसू-यह प्रसाद जी का वियोग का काव्य है। इसमें वियोगजनित पीड़ा और दुःख मुखर हो उठा है।

लहर यह प्रसाद जी का भावात्मक काव्य-संग्रह है।


झरना इसमें प्रसाद जी की छायावादी कविताएँ संकलित हैं, जिसमें सौन्दर्य और प्रेम की अनुभूति साकार हो उठी है।


कहानी-आकाशदीप, इन्द्रजाल, प्रतिध्वनि, आँधी ।


उपन्यास-कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।


निबन्ध-काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध ।


चम्पू- प्रेम राज्य |


इनके अन्य काव्य-ग्रन्थ चित्राधार, कानन कुसुम, करुणालय, महाराणा का महत्त्व, प्रेम-पथिक आदि हैं।


साहित्य में स्थान–प्रसाद जी असाधारण प्रतिभाशाली कवि थे। उनके काव्य में एक ऐसा नैसर्गिक आकर्षण एवं चमत्कार है कि सहृदय पाठक उसमें रसमग्न होकर अपनी सुध-बुध खो बैठता है। निस्सन्देह वे आधुनिक हिन्दी-काव्य-गगन के अप्रतिम तेजोमय मार्तण्ड हैं।


6. 'पंचलाइट' कहानी के कथानक पर प्रकाश डालिए। (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द) 5


उत्तर'पंचलाइट' रेणु जी की आंचलिक कहानी है। कहानी में बिहार के एक पिछड़े गाँव के परिवेश का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया गया है।


महतो टोली में अशिक्षित लोग हैं। उन्होंने रामनवमी के मेले से पेट्रोमैक्स खरीदा, जिसे वे 'पंचलैट' कहते हैं। 'पंचलाइट' को ये सीधे-सादे लोग सम्मान की चीज समझते हैं। पंचलाइट को देखने के लिए टोली के सभी बालक, औरतें और मर्द इकट्ठे हो जाते हैं। सरदार अपनी पत्नी को आदेश देता है कि शुभ कार्य को करने से पहले वह पूजा-पाठ का प्रबन्ध कर ले। सभी उत्साहित हैं, परन्तु समस्या उठती है कि 'पंचलैट' जलाएगा कौन ? सीधे-सादे लोग पेट्रोमैक्स को जलाना भी नहीं जानते।

इस टोली में गोधन नाम का एक युवक है। वह गाँव की मुनरी नामक एक युवती से प्रेम करता है। मुनरी की माँ ने पंचों से गोधन की शिकायत की थी कि वह उसके घर के सामने से सिनेमा का गाना गाकर निकलता है। इस कारण पंचों ने उसे जाति से निकाल रखा है। मुनरी को पता है कि गोधन पंचलाइट जला सकता है। वह चतुराई से यह बात पंचों तक पहुँचा देती है। पंच गोधन को पुनः जाति में ले लेते हैं। वह 'पंचलाइट' को जला देता है। मुनरी की माँ गुलरी काकी प्रसन्न होकर गोधन को शाम के भोजन का निमन्त्रण देती है। पंच भी अति उत्साहित होकर गोधन को कह देते हैं-"तुम्हारा सात खून माफ। खूब गाओ सलीमा का गाना।" पंचलाइट की रोशनी में लोग भजन-कीर्तन करते हैं तथा उत्सव मनाते हैं।


कहानी का कथानक सजीव है। सीधे-सादे अनपढ़ लोगों की संवेदनाओं को वाणी देने में रेणु जी समर्थ रहे हैं। इस कहानी में आंचलिक जीवन की सजीव झाँकी प्रस्तुत की गयी है।


               अथवा


चरित्र-चित्रण की दृष्टि से 'बहादुर' अथवा 'कर्मनाशा की हार' कहानी की समीक्षा कीजिए ।5

(अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)


7. स्वपठित खण्डकाव्य के आधार पर किसी एक खण्डकाव्य के एक प्रश्न का उत्तर लिखिए:

(अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द) 


(क) 'रश्मिरथी' खण्डकाव्य के आधार पर 'अर्जुन' का चरित्र-चित्रण कीजिए ।


अथवा


'रश्मिरथी' खण्डकाव्य के 'पंचम सर्ग' की घटना का उल्लेख कीजिए ।


(ख) 'त्यागपथी' खण्डकाव्य के नायक का चरित्रांकन कीजिए ।


अथवा


'त्यागपथी' खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए ।


(ग) 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ के चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डालिए 


                         अथवा

'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए ।


(घ) 'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए । 


अथवा 'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए ।


(ङ) 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए ।


अथवा


'सत्य की जीत' खण्डकाव्य की नायिका का चरित्र-चित्रण कीजिए ।


(च) 'आलोकवृत्त' खण्डकाव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए ।


 अथवा 'आलोकवृत्त' खण्डकाव्य के नायक का चरित्रांकन कीजिए ।


                     खण्ड ख


8.(क) निम्नलिखित संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए 2+5=7 


धन्योऽयं भारतदेशः यत्र समुल्लसति जनमानसपावनी भव्यभावोद्भाविनी शब्द-सन्दोह प्रसविनी सुरभारती । विद्यमानेषु निखिलेष्वपि वाङ्मयेषु अस्याः वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्नं च वर्तते । इयमेव भाषा संस्कृतनाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति । अस्माकं रामायण-महाभारताद्यैतिहासिकग्रन्थाः, चत्वारो वेदाः, सर्वाः उपनिषदाः, अष्टादशपुराणानि, अन्यानि च महाकाव्यनाट्यादीनि अस्यामेव भाषायां लिखितानि सन्ति । इयमेव भाषा सर्वासामार्थभाषाणां जननीति मन्यते भाषातत्त्वविद्भिः । संस्कृतस्य गौरवं बहुविधज्ञानाश्रयत्वं व्यापकत्वं च न कस्यापि दृष्टेरविषयः ।

उत्तर –सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'संस्कृत-भाग' में संकलित 'संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्' नामक पाठ से उद्धृत है।


अनुवाद - यह भारत देश धन्य है, जहाँ मनुष्यों के पवित्र मनों को प्रसन्न करने वाली, उच्च भावों को उत्पन्न करने वाली, शब्दराशि को जन्म देने वाली देववाणी (संस्कृत) सुशोभित है। (वर्तमानकाल में) विद्यमान समस्त साहित्यों में इसका साहित्य सर्वश्रेष्ठ एवं सुसमृद्ध है। यही भाषा संसार में संस्कृत के नाम से भी प्रसिद्ध है। हमारे रामायण, महाभारत आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ, चारों वेद, सारे उपनिषद्, अट्ठारह पुराण तथा अन्य महाकाव्य, नाटक आदि इसी भाषा में लिखे गये हैं। भाषाविज्ञानियों ने इसी भाषा को सारी आर्यभाषाओं की जननी माना है। संस्कृत का गौरव, उसमें अनेक प्रकार के ज्ञान का होना तथा उसकी व्यापकता किसी की दृष्टि से छिपी नहीं (किसी को अज्ञात नहीं है। संस्कृत के गौरव को ध्यान में रखकर ही आचार्यश्रेष्ठ दण्डी ने ठीक ही कहा है। संस्कृत को महर्षियों ने दिव्य वाणी (देवताओं की भाषा) कहा है।


                       अथवा


अतीते प्रथमकल्पे चतुष्पदाः सिंहं राजानमकुर्वन् । मत्स्या आनन्दमत्स्यं शकुनयः सुवर्णहंसम् । तस्य पुनः सुवर्णराजहंसस्य दुहिता हंसपोतिका अतीव रूपवती आसीत् । स तस्यै वरमदात् यत् सा आत्मनश्चित्तरुचितं स्वामिनं वृणुयात् इति । हंसराजः तस्यै वरं दत्त्वा हिमवति शकुनिसङ्घे संन्यपतत् । नानाप्रकाराः हंसमयूरादयः शकुनिगणाः समागत्य एकस्मिन् महति पाषाणतले संन्यपतन् । हंसराजः आत्मनः चित्तरुचित स्वामिकम् आगत्य वृणुयात् इति दुहितरमादिदेश । सा शकुनिसङ्घे अवलोकयन्ति मणिवर्णग्रीवं चित्रप्रेक्षणं मयूरं दृष्ट्वा 'अयं मे स्वामिको भवतु ' इत्यभाषत ।


(ख) निम्नलिखित संस्कृत पद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए 2+5=7


अनाकृष्टस्य विषयैर्विद्यानां पारदृश्वनः तस्य धर्मरतेरासीद् वृद्धत्वं जरसा विना ।


अथवा


कामान् दुग्धे विप्रकर्षत्यलक्ष्म कीर्तिं सूते दुष्कृतं या हिनस्ति ।


शुद्धां शान्तां मातरं मङ्गलानां

धेनुं धीराः सूनृतां वाचमाहुः ।।


उत्तर –सन्दर्भ-यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'संस्कृत-भाग' में संकलित 'सुभाषितरत्नानि' नामक पाठ से अवतरित है।


अनुवाद-जो (सुभाषित वाणी) इच्छाओं को दुहती है, दरिद्रता को दूर करती है, कीर्ति को जन्म देती है (और जो) पाप को नष्ट करती है, (जो) शुद्ध, शान्त (और) मंगलों की माता है, (उस) गाय को धैर्यवान् लोगों ने सुभाषित वाणी कहा है।


9.निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए:2+2-4


(क) कविकुलगुरुः कः कथ्यते ?


(ख) दिलीपः कस्य प्रदेशस्य राजा आसीत् ?


(ग) मूलशङ्करः गृहं कदा अत्यजत् ?


(घ) विद्यार्थिनः किं त्यजेत् ?


10.(क) 'रौद्र' रस अथवा 'करुण रस की परिभाषा लिखकर उसका एक उदाहरण दीजिए ।1+1=2

उत्तर –करुण रस

अर्थ-बन्धु-विनाश, बन्धु-वियोग, द्रव्य-नाश और प्रेमी के सदैव के लिए बिछड़ जाने से करुण रस उत्पन्न होता है। शोक नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से करुण रस दशा को प्राप्त होता है। उदाहरण-

क्यों छलक रहा दुःख मेरा ऊषा की मृदु पलकों में, हाँ ! उलझ रहा सुख मेरा सन्ध्या की घन अलकों में । - 'आँसू' से


(ख) 'अनुप्रास' अथवा 'उत्प्रेक्षा' अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए ।1+1=2

उत्तर- "अनुप्रास अलंकार एक ही वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने पर अनुप्रास अलंकार होता है।

 उदाहरण- कानन कठिन भयंकर भारी। घोर घाम हिम वारि-बयारी 


(ग) 'चौपाई' अथवा 'रोला' छन्द को परिभाषित करते हुए उसका एक उदाहरण लिखिए ।1+1=2

उत्तर –चौपाई

चौपाई सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में 'जगण' (। ऽ ।) अथवा 'तगण' ( ऽ ऽ ।) का प्रयोग नहीं होना चाहिए। अर्थात् अन्तिम दो वर्ण गुरु-लघु नहीं होने चाहिए। उदाहरण-


बंदउ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ॥

अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू ॥


11. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए: 9


(क) बेरोज़गारी की समस्या और समाधान के उपाय


(ख) गोस्वामी तुलसीदास


(ग) वन-संरक्षण का महत्त्व


(घ) भारतीय लोकतंत्र का भविष्य


(ङ) देशप्रेम


उत्तर – 

(क) बेरोज़गारी की समस्या और समाधान के उपाय

संकेत बिन्दु प्रस्तावना, बेरोज़गारी का अर्थ, बेरोज़गारी के कारण,बेरोज़गारी कम करने के उपाय, बेरोज़गारी के दुष्प्रभाव, उपसंहार


 प्रस्तावना आज अनेक समस्याएँ भारत के विकास में बाधा उत्पन्न कर रही हैं। बेरोज़गारी की समस्या इनमें से एक है। हर वर्ग का युवक इस समस्या से जूझ रहा है।


बेरोज़गारी का अर्थ बेकारी का अर्थ है-जब कोई योग्य तथा काम करने का | इच्छुक व्यक्ति काम माँगे और उसे काम न मिल सके अथवा जो अनपढ़ और अप्रशिक्षित हैं, वे भी काम के अभाव में बेकार हैं।


कुछ बेरोज़गार काम पर तो लगे हैं, लेकिन वे अपनी योग्यता से बहुत कम धन कमा पाते हैं, इसलिए वे स्वयं को बेरोज़गार ही मानते हैं। बेरोज़गारी के कारण देश का आर्थिक विकास रुक जाता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, यह संख्या वर्ष 1985 में 13 करोड़ से अधिक थी, जबकि एक अन्य अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष यह संख्या लगभग 70 लाख की गति से बढ़ रही है।


बेरोज़गारी के कारण


बेरोज़गारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।


1. जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होना।


2. शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक शिक्षा के स्थान पर सैद्धान्तिक शिक्षा को अधिक महत्त्व दिया जाना।


3. कुटीर उद्योगों की उपेक्षा करना ।


4. देश के प्राकृतिक संसाधनों का पूरी तरह से उपयोग नहीं करना । 


5. भारतीय कृषि की दशा अत्यन्त पिछड़ी होने के कारण कृषि क्षेत्र में भी बेरोज़गारी का बढ़ना ।


6. कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी के कारण उद्योगों को संचालित करने के लिए विदेशी कर्मचारियों को बाहर से लाना।


बेरोज़गारी कम करने के उपाय


बेरोज़गारी कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए 


1. जनता को शिक्षित कर जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना।


2. शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन तथा सुधार करना।


3. कुटीर उद्योगों की दशा सुधारने पर ज़ोर देना।


4. देश में विशाल उद्योगों की अपेक्षा लघु उद्योगों पर अधिक ध्यान देना। मुख्य उद्योगों के साथ-साथ सहायक उद्योगों का भी विकास करना।


5. सड़कों का निर्माण, रेल परिवहन का विकास, पुलों व बांधों का निर्माण तथा वृक्षारोपण आदि करना, जिससे अधिक से अधिक संख्या में बेरोजगारों को रोज़गार मिल सके।


6. सरकार द्वारा कृषि को विशेष प्रोत्साहन एवं सुविधाएं देना, जिससे युवा गाँवों को छोड़कर शहरों की ओर न जाएँ।


बेरोज़गारी के दुष्प्रभाव बेरोज़गारी अपने आप में एक समस्या होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक समस्याओं को भी जन्म देती है। उन्हें यदि हम बेरोजगारी के अथवा दुष्प्रभाव कहें, तो अनुचित नहीं होगा। बेरोज़गारी के कारण निर्धनता में वृद्धि होती है तथा भुखमरी की समस्या उत्पन्न होती है। बेरोजगारी के कारण मानसिक अशान्ति की स्थिति में लोगों के चोरी, डकैती, हिंसा, अपराध, हत्या आदि की ओर प्रवृत्त होने की पूरी सम्भावना बनी रहती है। अपराध एवं हिंसा में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण बेरोज़गारी ही है। कई बार तो बेरोज़गारी की भयावह स्थिति से तंग आकर लोग आत्महत्या भी कर बैठते हैं।


उपसंहार बेरोज़गारी किसी भी देश के लिए एक अभिशाप से कम नहीं है। इसके कारण नागरिकों का जीवन स्तर बुरी तरह से प्रभावित होता है तथा देश की आर्थिक वृद्धि भी बाधित होती है, इसलिए सरकार तथा सक्षम निजी संस्थाओं द्वारा इस समस्या को हल करने लिए ठोस कदम उठाए जाने की तत्काल आवश्यकता है।


12. (क) (i)'उपोषति' का सन्धि-विच्छेद है :


(अ) उप + औषति


(ब) उप ओषति


(स)उ + पोषति 


(द) उपो + ओषति

उत्तर –(ब) उप ओषति


(ii)'लब्ध:' का सन्धि-विच्छेद है :


(अ) लभ् + ध:


(ब)लब + धः


(स) लभ + धः


(द) लभ् + अधः

उत्तर –(अ) लभ् + ध:


(iii) 'नमस्ते' का सन्धि-विच्छेद है :1


(अ) नम् + अस्ते


(ब)नम + अस्ते


 (स) नमः + ते 


(द) नमः + अस्ते

उत्तर –(स) नमः + ते 


(ख) (i) 'प्रत्येकः' में समास है :


(अ) तत्पुरुष


(ब) कर्मधारय


(स) द्वन्द्व


(द) अव्ययीभाव

उत्तर –(द) अव्ययीभाव


(ii)'सज्जन' में समास है :


(अ)अव्ययीभाव


(ब) कर्मधारय 


(स) बहुव्रीहि


(द)द्विगु

उत्तर –(ब) कर्मधारय 


18. (क) (i)'आत्मनि' रूप है 'आत्मन्' शब्द का


(अ) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन


(ब) चतुर्थी विभक्ति, द्विवचन


(स)सप्तमी विभक्ति, बहुवचन 


(द)सप्तमी विभक्ति एकवचन

उत्तर –(द)सप्तमी विभक्ति एकवचन


(ii) 'नाम्ने' रूप है 'नामन्' शब्द का


(अ) चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन


(ब) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन


(स)पंचमी विभक्ति, बहुवचन


(द) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन

उत्तर –(द) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन


(ख) 'तिष्ठेत' अथवा 'नयतम्' शब्द किस धातु, लकार, पुरुष एवं वचन का रूप है ? 2

उत्तर'नयतम्' – नी धातु लोट लकार , मध्य पुरुष , द्वतीय वचन 


(ग) (i)'नीत्वा' शब्द में प्रत्यय है :


(अ) क्त्वा


(ब) क्ता


(स)त्व


(द) तव्यत्


(ii)'लघुत्वम्' शब्द में प्रत्यय है :


(अ)त्व


(ब) तल


(स) क्त्वा


(द) क्त


(घ) रेखांकित पदों में से किसी एक पद में विभक्ति तथा सम्बन्धित नियम का उल्लेख कीजिए: 1+1=2


(i) पुत्री मात्रा सह आपणं गच्छति ।


(ii) भिक्षुकः पादेन खञ्जः अस्ति ।


(iii) नमः व्यासाय ।


14.निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए: 2+2=4


(क) वे श्याम को पुस्तक देते हैं।


(ख) वह मोक्ष के लिए भगवान को भजता है ।


(ग) हम दोनों विद्यालय जा रहे हैं।


(घ) राम श्याम के साथ घर जा रहा है ।


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