MP Board Class-12th अर्थशास्त्र (Economics) त्रैमासिक पेपर Solution 2021-22
नमस्कार दोस्तों ! आज की पोस्ट में हम आपको मध्य प्रदेश बोर्ड द्वारा आयोजित होने वाले त्रैमासिक परीक्षा के अंतरगत कक्षा -12 के अर्थशास्त्र विषय से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर बताने जा रहे हैं जिन्हें पढ़कर आप भी अपनी तैयारी को और अच्छा व बेहतर बना सकते हैं तो जुड़े रहिये हमारे इस पेज से bandanaclasses.com ऐसे ही हम अन्य विषयों के भी महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर आपको उपलब्ध कराते रहेंगे.
आज की इस पोस्ट में हमने केवल उतने ही सिलेबस को लिया है, जितना की आपके सितम्बर माह में होने वाले त्रैमासिक परीक्षा में आना है. ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, जिन्हें पढ़कर आप अपनी तैयारी को और भी उत्कृष्ट बना सकते हैं.
MP Board 2021-22
Classs- 12th
अर्थशास्त्र (Economics) त्रैमासिक पेपर
Important Questions
अर्थशास्त्र
(खण्ड- क)
अध्याय -1
परिचय (Introduction)
प्रश्न 1- 'व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र एक -दूसरे के पूरक हैं', इस कथन की व्याख्या कीजिये.
या
सूक्ष्म एवं व्यापक अर्थशास्त्र की अन्तः निर्भरता को बताइये.
उत्तर - वैसे तो व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र के अध्ययन की दो अलग - अलग शाखाएँ हैं. उनका क्षेत्र भी अलग - अलग है. व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतरगत जहाँ कीमतें अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, वहीं समष्टि अर्थशास्त्र में आय की धारणा महत्वपूर्ण समझी जाती हैं. फिर भी ये दोनों एक - दूसरे के प्रतियोगी न होकर परस्पर पूरक एवं सहयोगी हैं. दोनों में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हैं. दोनों एक - दूसरे की सीमाओं व विश्लेषण सम्बन्धी कठिनाइयों का समाधान करती हैं. दोनों का विकास एक - दूसरे पर निर्भर हैं.
प्रो. गार्डनर ऐकले के अनुसार -
" यद्द्पि समष्टि अर्थशास्त्र तथा व्यष्टि अर्थशास्त्र के बीच कोई सुनिश्चित रेखा नहीं खींची जा सकती तथापि ठोस निष्कर्षों पर पहुँचने के बाद व्यष्टिगत समस्याओं का हल समष्टिगत उपकरणों की सहायता से तथा समष्टिगत समस्याओं का हल व्यष्टिगत उपकरणों की सहायता से निकाला जाना चाहिए. "
प्रो. सैम्युलसन के शब्दों में -
'वास्तव में सूक्ष्म और व्यापक अर्थशास्त्र में कोई विरोध नहीं है, दोनों अत्यन्त आवश्यक हैं, यदि आप एक को समझते हैं और दूसरे से अनभिज्ञ रहते हैं, तो आप केवल अर्द्ध- शिक्षित हैं'.
प्रश्न 2- आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से आप क्या समझते है?
उत्तर - आदर्शक आर्थिक विश्लेषण : आदर्शक आर्थिक विश्लेषण में हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि ये विधियाँ हमारे अनुकूल हैं भी या नहीं. यह अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन में सुधार करने के लिए नीतियों को समाहित करती है. इसका सम्बन्ध मुख्य रूप से आदर्शों से होता है. उदहारण के लिए, जब हम कहते हैं कि सिगरेट और शराब की माँग कम करने के लिए उनके ऊपर कर की दरें बढ़ा देनी चाहिए तो यह आदर्शक आर्थिक विश्लेषण हैं.
प्रो. जे. एम. कीन्स के शब्दों में- "एक आदर्शक आर्थिक विश्लेषण या एक नियमकारी विज्ञान, क्रमबद्ध ज्ञान का वह रूप हैं जिसका, 'क्या होना चाहिए' के सिद्धांत से सम्बन्ध हैं. वह विज्ञान वास्तविकता के स्थान आर्थिक विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य लक्ष्यों का निर्धारण करना हैं. उदाहरण के लिए एक आदर्शक आर्थिक पर आदर्श से सम्बंधित है. आदर्शक आर्थिक विश्लेषण का उद्देश्य आदर्शों को निर्धारित करना है." आदर्शक विश्लेषण के रूप में अर्थशास्त्र कई प्रकार के सुझाव देगा, उदाहरण के लिए - देश का आर्थिक विकास होना चाहिए, कीमतों में स्थिरता पायी जानी चाहिए, पूर्ण रोजगार होना चाहिए, आय का समान वितरण होना चाहिए. अर्थशास्त्र का सम्बन्ध केवल तथ्यों के अध्ययन करने से नहीं है बल्कि आर्थिक लक्ष्यों को निर्धारित करने से भी है
व्यष्टि अर्थशास्त्र
(i) व्यष्टि अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था के एक छोटे अंश का अध्ययन करता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र सम्पूर्ण आर्थिक प्रणाली का अध्ययन करता है.
(ii) व्यष्टि अर्थशास्त्र में वस्तुओं की कीमत, उत्पादन के साधनों की कीमत आदि का अध्ययन किया जाता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र में कुल रोजगार, कुल निवेश, राष्ट्रीय आय और कुल उत्पादन आदि का अध्ययन किया जाता है.
(iii) व्यष्टि अर्थशास्त्र में योग को टुकड़ों में विभाजित करने की क्रिया संपन्न होती है जबकि समष्टिगत अर्थशास्त्र का आधार योग करने की क्रिया है.
bandanaclasses.com
प्रश्न 3- केन्द्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था तथा बाजार अर्थव्यवस्था में अंतर स्पष्ट कीजिये?
उत्तर -केन्द्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था - केन्द्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत सरकार उस अर्थव्यवस्था के सभी महत्वपूर्ण क्रियाकलापों की योजना बनाती है. वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन, विनिमय तथा उपभोग से सम्बद्ध सभी महत्वपूर्ण निर्णय सरकार द्वारा किये जाते हैं. वह केंद्रीय सत्ता संसाधनों का विशेष रूप से विनिधान करके वस्तुओं एवं सेवाओं का अंतिम संयोग प्राप्त करने का प्रयास कर सकती है जो की सम्पूर्ण समाज के लिए उपयुक्त हो. उदाहरण के लिए, यदि यह पाया जाता है कि कोई ऐसी वस्तु अथवा सेवा जो पूरी अर्थव्यवस्था की सुख- संमृद्धि के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है, जैसे - शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा, जिसका व्यक्तियों द्वारा स्वयं पर्याप्त मात्रा में उत्पादित नहीं किया जा रहा हो, तो सरकार उन्हें ऐसी वस्तुओं तथा सेवाओं का उपयुक्त मात्रा में उत्पादन करने के लिए प्रेरित कर सकती है या फिर सरकार स्वयं ऐसी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करने का निर्णय कर सकती है.
बाजार अर्थव्यवस्था - केन्द्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था के विपरीत बाजार अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाकलापों का निर्धारण बाजार की स्थितियों के अनुसार होता है. अर्थशास्त्र के अनुसार, बाजार एक ऐसी संस्था है जो अपने आर्थिक क्रियाकलापों का अनुसरण करने वाले व्यक्तियों को निर्बाध अन्तः क्रिया प्रदान करती है. बाजार का स्पष्ट लक्षण वह व्यवस्था है जिसमें लोग निर्बाध रूप से वस्तुओं को क्रय और विक्रय करने का कार्य कर सकते हैं.
प्रश्न 4- व्यापक अर्थशास्त्र के महत्व पर प्रकाश डालिये.
उत्तर- सन 1929 की विश्वव्यापी मंदी के बाद से समष्टि आर्थिक विश्लेषण का महत्व सैद्धांतिक व व्यावहारिक दृष्टि से अत्यधिक बढ़ गया है. इसके महत्व व उपयोग को प्रतिपादित करते हुए प्रो. बोल्डिंग ने स्पष्ट किया है कि अर्थशास्त्र की नीतियाँ और सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष एवं वस्तु विशेष से न होकर समूहों से होता है. इसके महत्व को नीचे दिए गए शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है-
(i) अर्थशास्त्र की कार्यप्रणाली को समझने में सहायक - अर्थव्यवस्था की क्रियाशीलता को समझने के लिए समष्टिगत आर्थिक चरों का अध्ययन आवश्यक होता है, क्योंकि व्यष्टिगत आर्थिक चर आर्थिक प्रणाली के छोटे - छोटे अंगों का व्यवहार चित्रित करते हैं, लेकिन अधिकांश देशों की समस्याएँ कुल उत्पादन, कुल रोजगार, सामान्य मूल्य स्तर तथा भुगतान संतुलन से सम्बंधित होती है जिनकी कार्य प्रणाली को समष्टि आर्थिक विश्लेषण के अभाव में समझना मुश्किल है.
(ii) सूक्ष्म अर्थशास्त्र के विकास में सहायक - अधिकांशतः बहुत कम सूक्ष्मभावी समस्याएँ ऐसी होती हैं जिनका समष्टिगत पहलू नहीं होता. अतः व्यक्तिगत समस्याओं के विश्लेषण हेतु वृहत अर्थशास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य है. जैसे - किसी विशेष उद्द्योग में मजदूरी का निर्धारण अर्थव्यवस्था में प्रचलित सामान्य मजदूरी स्तर से ही प्रभावित होता है. इस प्रकार वृहत आर्थिक विश्लेषण की सहायता से ही सूक्ष्म अर्थशास्त्र का विकास संभव है.
(iii) आर्थिक नीति के निर्धारण में सहायक - आजकल सरकार सभी प्रकार की अर्थव्यवस्था में उपयुक्त नीतियाँ निर्धारित करने के लिए उपाय अपनाती है. सरकार द्वारा अपनायी गयी नीतियों का सम्बन्ध व्यक्तिगत इकाइयों से न होकर समूहगत इकाइयों से होता है.
(iv) मौद्रिक समस्याओं का विश्लेषण - समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता द्वारा मौद्रिक समस्याओं का विश्लेषण एवं उनका समाधान किया जा सकता है. अर्थव्यवस्था में मुद्रा के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों से समाज के विभिन्न वर्गों को बचाने के लिए उपयुक्त मौद्रिक एवं प्रशुल्क अपनाना अति आवश्यक होता है. सरकार मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता भी समष्टि विश्लेषण द्वारा ज्ञात कर सकती है.
प्रश्न 5 - व्यष्टि अर्थशास्त्र की कोई एक परिभाषा लिखिए.
या
व्यष्टि अर्थशास्त्र को व्यक्तिगत अर्थशास्त्र क्यों कहते हैं?
उत्तर - प्रो. बोल्डिंग के अनुसार - 'व्यष्टि अर्थशास्त्र विशेष फर्मों, विशेष परिवारों, वैयक्तिक कीमतों, मजदूरियों,आयों, वैयक्तिक उद्द्योगों तथा विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन करता है'. अर्थात व्यष्टिगत अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था के 'भागों' से सम्बंधित है. यह अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन करता है. इसलिए व्यष्टि अर्थशास्त्र को व्यक्तिगत अर्थशास्त्र कहते हैं.
प्रश्न 6 - "व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुख्य यन्त्र कीमत सिद्धांत है". इस कथन को समझाइये.
उत्तर - व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुख्य विषय यह है कि किसी वस्तु विशेष की कीमत या उत्पादन के किसी साधन की कीमत कैसे निर्धारित होती है. यहीं कारण है कि व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत सिद्धांत भी कहते हैं. प्रो. शुल्ज़ के अनुसार, 'व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुख्य यन्त्र कीमत सिद्धांत है'.
प्रश्न 7 - अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर - अर्थव्यवस्था वह प्रणाली है जिसके अंतर्गत आर्थिक क्रियाओं का संचालन होता है. अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधनों के सही शोषण एवं व्यवहार की व्यवस्था करता है. प्रो. ए. जे. ब्राउन के अनुसार, 'अर्थव्यवस्था से आशय एक ऐसी प्रणाली से है,जिसके द्वारा लोग जीविका प्राप्त करते हैं'.
अध्याय - 2उपभोक्ता के व्यवहार
का सिद्धांत
प्रश्न 1 - सीमान्त उपयोगिता विश्लेषण के बारे में समझाइये.
उत्तर - सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम का महत्व
(i) उपभोक्ता की बचत में महत्व - उपभोक्ता के बचत की धारणा भी सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम पर आधारित है. इस नियम के अनुसार, वस्तुओं के कई इकाइयाँ खरीदने पर सीमान्त इकाई की उपयोगिता कीमत के बराबर हो जाती है. इस सीमान्त इकाई पर उपभोक्ता को कोई बचत प्राप्त नहीं होती, जबकि सीमान्त इकाई से पहले की सभी इकाइयों पर उपभोक्ता को बचत प्राप्त होती है.
(ii) मूल्य सिद्धांत में महत्व - यह नियम मूल्य सिद्धांत के लिए दृढ़ स्तम्भ का कार्य करता है, क्योंकि यह नियम स्पष्ट करता है कि वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होने पर मूल्य में कमी क्यों होती है, अतः यह नियम मूल्य निर्धारण में सहायक होता है.
(iii) माँग के नियम का आधार - माँग का नियम भी इसी नियम पर आधारित है. जैसे -जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु का उपभोग करता है, वैसे- वैसे उस वस्तु से मिलने वाली अतिरिक्त उपयोगिता घटते हुए क्रम में प्राप्त होती है. अतः प्रत्येक उपभोक्ता प्रथम वस्तु की अपेक्षा दूसरी वस्तु के लिए कम मूल्य देता है. यह बात भी माँग के नियम से स्पष्ट होती है.
(iv) नए उत्पादन को प्रोत्साहन - इस नियम का महत्व उत्पादन के क्षेत्र में भी है. किसी वस्तु की अधिक पूर्ति होने पर उपभोक्ता को उससे कम उपयोगिता मिलती है, अतः उसे ऐसी नयी वस्तुओं की आवश्यकता होती है जिनसे उसे अधिक उपयोगिता प्राप्त हो. इसलिए अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए उत्पादक को उत्पादन का स्वरुप बदलना पड़ता है जिससे नए उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है.
(v) कर प्रणाली का आधार - सरकार को करारोपण करते समय इस नियम का सहारा लेना पड़ता है. यह नियम बताता है कि वस्तु की मात्रा में वृद्धि के साथ -साथ उसकी उपयोगिता में कमी आ जाती है. यही बात मुद्रा के सम्बन्ध में सही है. मुद्रा की उपयोगिता एक धनी की अपेक्षा निर्धन के लिए कम है. इसी आधार पर सरकार बनी लोगों पर प्रगतिशील करारोपण करती है.
प्रश्न 2 - माँग से आप क्या समझते हैं? माँग को प्रभावित करने वाले पाँच घटकों का वर्णन कीजिये.
उत्तर - माँग शब्द को विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अलग -अलग अर्थों में परिभाषित किया है. माँग की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं -
प्रो. मिल के अनुसार -
"माँग से हमारा आशय किसी वस्तु की उस मात्रा से है जो एक निश्चित मूल्य पर खरीदी जाती है. इस अर्थ में माँग सदा मूल्य से सम्बंधित होती है.
प्रो. पेन्सन के अनुसार -
" माँग में निम्नलिखित तीन बातें सम्मिलित होती हैं;
(i) किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा
(ii) उसे क्रय करने के साधन
(iii) इन साधनों से वस्तु प्राप्त करने की तत्परता
प्रो. बेनहम के अनुसार -
"किसी दिए हुए मूल्य पर वस्तु की माँग उस मात्रा को कहते हैं जो उस मूल्य पर एक निश्चित समय में क्रय की जाती है."
माँग को प्रभावित करने वाले तत्व
एक वस्तु की माँग को अनेक तत्व प्रभावित या निर्धारित करते हैं. इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-
(i) वस्तु की कीमत - किसी वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख तत्व उसकी कीमत होती है. वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी माँग में भी परिवर्तन हो जाता है. प्रायः वस्तु की कीमत के घटने पर माँग बढ़ती है तथा कीमत के बढ़ने पर माँग घटती है.
(ii) उपभोक्ता की आय - उपभोक्ता की आय भी किसी वस्तु की माँग को निर्धारित करने वाला महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व है.किसी व्यक्ति की आय बढ़ जाने पर वह किसी वस्तु की अधिक मात्रा ऊँचे मूल्य पर क्रय कर लेगा, किन्तु आय कम होने पर वस्तु का मूल्य कम होने पर भी कम मात्रा में क्रय करेगा अर्थात आय के बढ़ने पर माँग बढ़ जाती है और आय घटने पर माँग कम हो जाती है.
(iii) धन का वितरण - यदि समाज में धन का वितरण असमान है तो ऐसी वस्तुओं की माँग अधिक होगी जो पूँजीपतियों द्वारा क्रय की जाती हैं. यदि धन का वितरण समान हैं , धनी और निर्धनों की आय में कम अंतर हैं, तो माँग बढ़ेगी.
(iv) जनसंख्या में परिवर्तन - जनसँख्या बढ़ने पर मूल्य में वृद्धि होने पर भी माँग अधिक हो जाती है अर्थात अधिक जनसँख्या होने पर देश में वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग अधिक होगी और कम जनसँख्या होने पर इनकी माँग कम होगी.
(v) भविष्य में मूल्य वृद्धि की सम्भावना - मूल्य अपरिवर्तित होने पर भी यदि भविष्य में मूल्य वृद्धि की सम्भावना होती है, तो वर्तमान में ही वस्तु की माँग बढ़ने लगती है. इसी प्रकार, जब भविष्य में मूल्य घटने की सम्भावना होती है तो वर्तमान में मूल्यों के अपरिवर्तित रहने पर भी उनकी माँग में कमी होने लगती है.
प्रश्न 3 - व्यक्तिगत मांग तथा बाजार मांग में अंतर बताइये.
उत्तर -व्यक्तिगत मांग तथा बाजार मांग में अंतर-
(i)व्यक्तिगत माँग वह माँग है जो अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की कीमत तथा व्यक्ति द्वारा खरीदी गयी मात्रा के सम्बन्ध को व्यक्त करती है. बाजार माँग वह माँग है जो किसी वस्तु की कीमत तथा विभिन्न भिन्नता को व्यक्त करती है.
(ii) व्यक्तिगत माँग एक व्यक्ति की माँग होती है जबकि बाजार माँग बाजार में उपस्थित बहुत सारे व्यक्तियों की माँग होती है.
(iii) व्यक्तिगत माँग मूल्य तथा एक व्यक्ति द्वारा मांगी गयी मात्रा में फलनात्मक सम्बन्ध को दर्शाती है जबकि बाजार में मांग मूल्य तथा विभिन्न व्यक्तियों द्वारा माँग की गयी मात्रा में फलनात्मक संबंधों को दर्शाती है.
(iv) विभिन्न कीमतों पर एक व्यक्ति द्वारा मांगी जाने वाली मात्रा व्यक्तिगत मांग है. विभिन्न कीमतों पर अनेक व्यक्तियों द्वारा एक वस्तु की विभिन्न मात्राओं की मांग का जोड़ बाजार मांग है.
(v) एक व्यक्ति व्यक्तिगत माँग को प्रभावित कर सकता है. जबकि एक व्यक्ति कभी भी बाजार मांग को प्रभावित नहीं कर सकता है.
प्रश्न 4 - माँग की लोच का महत्व समझाइये.
उत्तर - माँग की लोच का महत्व
माँग की लोच का महत्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट है -
(i) मूल्य निर्धारण के सिद्धांत में महत्व - ' माँग की लोच' का विचार विभिन्न प्रकार की बाजार स्थितियों,जैसे -पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकार, एकाधिकृत प्रतियोगिता आदि वस्तु के मूल्य निर्धारण में सहायक होता है. माँग की लोच अधिक होने पर मूल्य नीचे रखा जाता है, क्योंकि मूल्य के ऊँचा होते ही वस्तु की माँग काम होने लगती है. इसके विपरीत बेलोचदार वस्तुओं का मूल्य ऊँचा रखा जाता है.
(ii) वितरण के सिद्धांत में महत्व - माँग की लोच का विचार उत्पादन के विभिन्न साधनों का पुरुस्कार निर्धारित करने में सहायक होता है. उत्पादन उन साधनों को अधिक पुरुस्कार देता है जिनकी माँग उनके लिए लोचदार होती है.
(iii) सरकार के लिए महत्व - कर -निर्धारण में माँग की लोच की धारणा सरकार के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है. जिन वस्तुओं की माँग की लोच बेलोचदार होती है उन वस्तुओं पर कर की दर ऊंची रखी जाती है, क्योंकि ऊँची दर से कर लगाने से वस्तु की कीमत बढ़ जाने पर भी उन वस्तुओं की माँग पूर्ववत रहती है. इसके विपरीत जिन वस्तुओं की माँग की लोच अधिक लोचदार होती है उन वस्तुओं पर कर की दर कम रखी जाती है, क्योंकि ऐसी वस्तुओं की माँग पर कर की दर कम रखी जाती है, क्योंकि ऐसी वस्तुओं की मांग पर कीमत में परिवर्तन का प्रभाव भी अधिक होता है, अतः सरकार कर लगाते समय माँग की लोच का ध्यान रखती है.
(iv) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्व - अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अंतर्गत एक देश में व्यापार का लाभ उस देश की व्यापार की शर्तों से निर्धारित होता है और व्यापार की शर्त दोनों देशों के आयातों एवं निर्यातों की माँग एवं पूर्ति की लोच पर निर्भर करती है. यदि किसी देश के निर्यातों की माँग बेलोचदार है, तो उन्हें वह ऊँची कीमतों पर बेच सकेगा. इसी प्रकार, आयातों के लिए यदि उसकी माँग बेलोचदार है तो उसे ऊँची कीमतें देनी पड़ेगी.
प्रश्न 5 - उपयोगिता की परिभाषा लिखिए.
उत्तर - किसी वस्तु का वह गुण, शक्ति या क्षमता जिसके द्वारा किसी व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, उपयोगिता कहलाती है.
प्रश्न 6- उपयोगिता ह्रास नियम की परिभाषा बताइये.
उत्तर - प्रो. मार्शल के अनुसार - "किसी व्यक्ति को उसके पास किसी वस्तु की मात्रा में वृद्धि होने से जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह उस वस्तु की माँग में होने वाली प्रत्येक वृद्धि के साथ घटता जाता है".
प्रश्न 7 - ह्रासमान सीमान्त तुष्टिगुण नियम के कथन को समझाइये.
उत्तर - यदि अन्य बातें स्थिर रहें तो जैसे - जैसे उपभोग की जाने वाली वस्तु की अगली इकाइयों का उपभोग किया जाता है, अगली इकाइयों की उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है.
प्रश्न 8 - उपभोक्ता संतुलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर - उपभोक्ता, संतुलन की स्थिति में तब माना जाता है जब उसको अपनी आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो रही हो. उपभोक्ता सन्तुलन से आशय इस बात की जानकारी करना है की उपभोक्ता अपनी आय से अधिकतम संतुष्टि कैसे प्राप्त करता है .
प्रश्न 9 - उपभोक्ता बजट को समझाइये.
उत्तर - बजट सेट का आशय - बजट सेट उन वस्तुओं के सभी बंडलों का संग्रह है, जिन्हें उपभोक्ता प्रचलित बाजार कीमत पर अपनी आय से खरीद सकता है.
प्रश्न 10 - तटस्थता वक्र अथवा अनधिमान वक्र की परिभाषा दीजिये.
उत्तर - तटस्थता वक्र वह रेखा है जिस पर स्थित प्रत्येक बिंदु दो वस्तुओं के ऐसे संयोगों को प्रदर्शित करता है जिनसे एक उपभोक्ता को समान संतुष्टि की प्राप्ति होती है अर्थात वह इनमें से किसी एक संयोग का चुनाव अपने उपभोग के लिए कर सकता है, किन्तु वह ऐसे संयोग का चुनाव करेगा जो उसके लिए मितव्ययी हो.
प्रश्न 11 - माँग का क्या अर्थ है?
उत्तर - माँग का
आशय एक दी
हुई वस्तु की
उन विभिन्न मात्राओं से होता है जिन्हें उपभोक्ता एक बाजार में किसी
दिए हुए समय में विभिन्न मूल्यों पर क्रय करते हैं. वस्तु के लिए केवल इच्छा होना ही
वस्तु की माँग नहीं कहलाती अपितु उस इच्छा की पूर्ति के लिए व्यक्तियों के पास साधन
भी होने चाहिए.
प्रश्न 12- माँग और
आवश्यकता में कोई तीन अंतर लिखिए.
उत्तर - सामान्य रूप
से माँग और आवश्यकता में अंतर नहीं मालूम पड़ता है लेकिन आर्थिक दृषिकोण से उनमें थोड़ा
अंतर है.
आवश्यकता प्रभावपूर्ण
इच्छा को कहते हैं. इसमें तीन बातें मुख्य होनी चाहिए.
(i) वस्तु की इच्छा (ii) इच्छा को पूरा करने के लिए साधन (iii) साधन को व्यय करने की तत्परता
परन्तु माँग को प्रभावपूर्ण
इच्छा कहना त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि माँग के लिए दो अन्य बातें भी होनी चाहिए -
(i) निश्चित कीमत
(ii) निश्चित समयावधि. अतः माँग में पाँचों बातों का होना आवश्यक है.
प्रश्न 13 - सामान्य
वस्तु से आप क्या समझते हैं?
उत्तर - जब उपभोक्ता
की आय में वृद्धि होती है तो जिन वस्तुओं की मात्रा में वृद्धि होती है तथा जब उपभोक्ता
की आय में कमी आती है तो जिन वस्तुओं के माँग में कमी आती है. ऐसी वस्तुएँ सामान्य
वस्तुएँ कहलाती हैं.
प्रश्न 14 - निम्नस्तरीय
वस्तु को परिभाषित कीजिये. कुछ उदाहरण भी लिखिए.
उत्तर - कुछ वस्तुएँ
ऐसी होती हैं जिनके लिए माँग उपभोक्ता की आय के विपरीत दिशा में जाती है. ऐसी वस्तुओं
को निम्नस्तरीय वस्तुएँ कहा जाता है. इनके
उदाहरण हैं - निम्नस्तरीय खाद्द्य पदार्थ, मोटे अनाज
प्रश्न 15 - स्थानापन्न
को परिभाषित कीजिये. दो वस्तुओं के उदाहरण भी लिखिए.
उत्तर - जब किसी वस्तु
का प्रयोग किसी वस्तु के अभाव में किया जाता है तो उसे स्थानापन्न वस्तुएँ कहते हैं.
जैसे - चाय, कॉफ़ी, गुड़ ,चीनी आदि.
प्रश्न 16 - गिफ़िन
विरोधाभास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर - माँग के नियम
का सबसे महत्वपूर्ण अपवाद गिफ़िन का विरोधाभास माना जाता है. निम्न कोटि की वस्तुओं
को गिफ़िन वस्तुएँ कहा जाता है, जैसे - देशी घी की तुलना में डालडा, गेहूँ की तुलना
में बाजरा आदि इन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू नहीं होता है अर्थात इन वस्तुओं की
कीमत कम होने पर भी इनकी माँग में वृद्धि नहीं होती है.
प्रश्न 17- माँग में
विस्तार और संकुचन का अर्थ बताइये.
उत्तर - जब कीमत में
परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में परिवर्तन होता है तो यह माँग का विस्तार और माँग का
संकुचन कहलाता है. कीमत घटने पर माँग अधिक हो जाना माँग का विस्तार है और कीमत बढ़ने
पर माँग का गिर जाना माँग का संकुचन है. माँग के विस्तार और संकुचन की अवस्था में व्यक्ति
की वस्तु विशेष का माँग वक्र बदलता नहीं है.
इसे भी पढ़ें 👇👇👇
MP Board सभी प्रमुख विषयों के त्रैमासिक पेपर Solution
Class 12 th biology important questions
Written By : Bandana Study Classes
Written By : Bandana Study Classes
Post a Comment