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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय / mahadevi verma ka jivan parichay

Mahadevi Verma ka jivan Paricha// महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

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Mahadevi Verma ka sahityik Parichay


Mahadevi Verma ka jivan Parichay Hindi mein


Mahadevi Verma ka jivan Parichay PDF


नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandana Classes.com पर . दोस्तों आज की पोस्ट में हम चर्चा करने जा रहे हैं, हिंदी साहित्य जगत में निहार, रश्मि एवं दीपशिखा की रचना करने वाली प्रमुख साहित्यकार , कवयित्री माने जाने वाले महादेवी वर्मा की। दोस्तों यह किसने सोचा था कि उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले से निकली एक युवती महादेवी वर्मा के नाम से प्रसिद्ध होंगी और  अपनी रचनाओं का ऐसा रस आम जनमानस में घोला कि जन-जन उसकी रचनाओं का दीवाना हो जाएगा जी हां, आज हम अपने पोस्ट में हिंदी साहित्य की ऐसी ही महान कवयित्री एवं नीरजा , रश्मि, निहार एवं दीपशिखा तथा हिंदी के महान कवयित्री, साहित्यकार,महादेवी वर्मा जी के जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय के बारे में आप लोगों को बताने जा रहे हैं।दोस्तों महादेवी वर्मा एक ऐसा नाम जिसे हिंदी साहित्य का पर्याय माना जाता है। दोस्तों जब जब नीरजा , रश्मि एवं यामा का नाम लिया जाएगा तब तब महादेवी वर्मा जी का नाम भी सदैव समाज याद करेगा। दोस्तों यह किसने सोचा था कि उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में जन्मी  एक बालिका नीरजा, रश्मि एवं दीपशिखा जैसे महत्वपूर्ण कृतियों की रचना करेगी ? ना ही यह किसी ने  सोचा होगा कि फर्रुखाबाद जिले  की माटी से निकली एक नन्ही बालिका  जिसने नीरजा , यामा , दीपशिखा, निहार एवं रश्मि जैसी महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध कृतियों की रचना की, एक दिन हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा बनेगी।  साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, एवं मंगला प्रसाद पुरस्कार से सम्मानित महान कवयित्री महादेवी वर्मा का नाम साहित्य जगत में बहुत ही आदर और सम्मान से लिया जाता है। महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा, जिन्हें हिंदी के श्रेष्ठतम लेखकों में गिना जाता है। महादेवी वर्मा एक ऐसा नाम जिसने अपनी कलम से हिंदी साहित्य जगत में क्रांति  ला दी। महादेवी वर्मा एक ऐसा नाम - जिसे हिंदी साहित्य में नीरजा एवं यामा जैसी श्रेष्ठ रचना के लिए जाना जाता है. महान अंग्रेजी एवं हिंदी भाषा के श्रेष्ठ साहित्यकार , श्रेष्ठतम कवयित्री महादेवी वर्मा जी को यदि हिंदी साहित्य का महान साहित्यकार भी कहा जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. महादेवी वर्मा - एक ऐसा नाम जिसने हिंदी साहित्य की दिशा और दशा को बदलने का कार्य किया. यदि महादेवी वर्मा जी को हिंदी साहित्य का कोहिनूर हीरा भी कहा जाये तो इसमें कोई विवाद नहीं होगा क्योंकि उन्होनें हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नया कीर्तिमान स्थापित किया जिसे युगों - युगों तक हिंदी साहित्य में याद रखा जायेगा. महादेवी वर्मा जी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कुछ ऐसे नए मानदंड और आयाम स्थापित कर दिए हैं  जिन्हें हिंदी साहित्य जगत में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा. दोस्तों यद्यपि महादेवी वर्मा जी आज हम लोगों के बीच में नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं, काव्य- कृतियां विश्व भर के साहित्य प्रेमियों के हृदय में हमेशा जीवंत रहेंगी।तो दोस्तों ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व के बारे में हम लोग आज जानेगे तो दोस्तों यदि आपको ये पोस्ट पसंद आये तो इसे अधिक से अधिक अपने दोस्तों में जरूर शेयर करिएगा. 


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दोस्तों यह तो सभी जानते हैं कि जब जब हिंदी साहित्य एवं अंग्रेजी साहित्य के रचनाओं की बात होगी उस समय सबसे पहले जो नाम सबसे अगर पंक्ति में होगा वह नाम होगा महा कवयित्री महादेवी वर्मा जी। महादेवी वर्मा जी एक ऐसा नाम जिसने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का ऐसा रस आम जनमानस में घोला कि आज नैतिक शिक्षा, नैतिकता  की रसमयी काव्य धारा केवल हिंदुस्तान में ही नहीं अपितु समस्त विश्व में बह रही है। दोस्तों यदि यह पोस्ट आप लोगों को पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में अधिक से अधिक शेयर करें।


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जीवन परिचय

महादेवी वर्मा

जीवन परिचय : एक दृष्टि में



नाम

महादेवी वर्मा

जन्म

सन 1907 ईस्वी में।

जन्म स्थान

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में।

मृत्यु

11 सितंबर , सन 1987 ईस्वी में।

माता जी का नाम

श्रीमती हेम रानी देवी

पिताजी का नाम

श्री गोविंद सहाय वर्मा

आरंभिक शिक्षा

मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर जिले में।

उच्च शिक्षा

प्रयाग

उपलब्धियां

महिला विद्यापीठ की प्राचार्य, पदम भूषण पुरस्कार, सेकसरिया तथा मंगला प्रसाद पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार, तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि।

रचनाएं

निहार, रश्मि, नीरजा, सान्ध्यगीत, दीपशिखा

भाषा

खड़ी बोली।

साहित्य में योगदान

विधान छायावादी कवयित्री के रूप में गीतात्मक भावपरक शैली का प्रयोग महादेवी जी की देन है।

पति का नाम

डॉक्टर स्वरूप नारायण मिश्रा


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जीवन परिचय- हिंदी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध कवियित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म वर्ष 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद शहर में हुआ था। इनके पिता गोविंदसहाय वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। माता हेमरानी साधारण कवयित्री थीं एवं श्री कृष्ण में अटूट श्रद्धा रखती थीं। इनके नाना जी को भी ब्रज भाषा में कविता करने की रुचि थी। नाना एवं माता के गुणों का महादेवी पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई थी। नौ वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ, किंतु इन्हीं दिनों इनकी माता का स्वर्गवास हो गया, ऐसी विकट स्थिति में भी इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा।



अत्यधिक परिश्रम के फल स्वरुप इन्होंने मैट्रिक से लेकर एम.ए. तक की परीक्षाएं  प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्ष 1933 में इन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या पद को सुशोभित किया। इन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया साथ ही नारी की स्वतंत्रता के लिए ये सदैव संघर्ष करती रही। इनके जीवन पर महात्मा गांधी का तथा कला साहित्य साधना पर रविंद्र नाथ टैगोर का प्रभाव पड़ा।

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साहित्यिक परिचय- महादेवी जी साहित्य और संगीत के अतिरिक्त चित्रकला में भी रुचि रखती थीं। सर्वप्रथम इनकी रचनाएं चांद नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। ये 'चांद' पत्रिका की संपादिका भी रहीं। इनकी साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने इन्हें पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें  'सेकसरिया' तथा 'मंगला प्रसाद' पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा इन्हें एक लाख रुपए का भारत-भारती पुरस्कार दिया गया तथा इसी वर्ष काव्य ग्रंथ यामा पर इन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ' पुरस्कार प्राप्त हुआ। ये जीवन पर्यंत प्रयाग में ही रहकर साहित्य साधना करती रहीं। आधुनिक काव्य के साथ साज-श्रंगार में इनका अविस्मरणीय योगदान है। इनके काव्य में उपस्थित विरह-वेदना अपनी भावनात्मक गहनता के लिए अमूल्य मानी जाती है। इसी कारण इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है। करुणा और भावुकता इनके काव्य की पहचान है। 11 सितंबर, 1987 को यह महान कवयित्री पंचतत्व में विलीन हो गई।


रचनाएं- महादेवी जी ने पद्य एवं गद्य दोनों ही विधाओं पर समान अधिकार से अपनी लेखनी चलाई। इनकी कृतियां निम्नलिखित हैं-


1.नीहार- यह महादेवी जी का प्रथम काव्य संग्रह है। उनके इस काव्य में 47 भावात्मक गीत संकलित हैं और वेदना का स्वर मुखर हुआ है।


2. रश्मि- इस काव्य संग्रह में आत्मा-परमात्मा के मधुर संबंधों पर आधारित 35 कविताएं संकलित हैं।


3.नीरजा- इस संकलन में 58 गीत संकलित है, जिनमें से अधिकांश विरह-वेदना से परिपूर्ण है। कुछ गीतों में प्रकृति का मनोरम चित्र अंकित किया गया है।


4.सान्ध्य गीत- 58 गीतों के इस संग्रह में परमात्मा से मिलन का चित्रण किया गया है।


5. दीपशिखा- इसमें रहस्य-भावना प्रधान 51 गीतों को संग्रहित किया गया है।


6. अन्य रचनाएं- अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, श्रृंखला की कड़ियां, पथ के साथी, क्षणदा, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध, संकल्पिता, मेरा-परिवार, चिंतन के क्षण आदि प्रसिद्ध गद्य रचनाएं हैं, इनके अतिरिक्त-सप्तवर्णा, सन्धिनी, आधुनिक कवि नामक गीतों के समूह प्रकाशित हो चुके हैं।




भाषा शैली- महादेवी जी ने अपने गीतों में स्निग्ध और सरल, तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण आदि अलंकारों की छटा देखने को मिलती है। इन्होंने भावात्मक शैली का प्रयोग किया, जो सांकेतिक एवं लाक्षणिक है। इनकी शैली में लाक्षणिक प्रयोग एवं व्यंजना के प्रयोग के कारण अस्पष्टता व दुरुहता दिखाई देती है।


हिंदी साहित्य में स्थान- महादेवी जी की कविताओं में नारी ह्रदय की कोमलता और सरलता का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है। इनकी कविताएं संगीत की मधुरता से परिपूर्ण हैं। इनकी कविताओं में एकाकीपन की भी झलक देखने को मिलती है। हिंदी साहित्य में पद्य लेखन के साथ-साथ अपने गद्य लेखन द्वारा हिंदी भाषा को सजाने-संवारने तथा अर्थ- गाम्भीर्य प्रदान करने का जो प्रयत्न इन्होंने किया है, वह प्रशंसा के योग्य है। हिंदी के रहस्यवादी कवियों में इनका स्थान सर्वोपरि है।


शिक्षा - छठी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत ही 9 वर्ष बाल्यावस्था में ही महादेवी वर्मा का विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा के साथ कर दिया गया। इससे उनकी शिक्षा का क्रम टूट गया क्योंकि महादेवी के ससुर लड़कियों से शिक्षा प्राप्त करने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन जब महादेवी के ससुर का स्वर्गवास हो गया तो महादेवी जी ने पुनः शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। वर्ष 19-20 में महादेवी जी ने प्रयाग से प्रथम श्रेणी में मिडिल पास किया। (वर्तमान उत्तर प्रदेश का हिस्सा प्रयागराज) संयुक्त प्रांत के विद्यार्थियों में उनका स्थान सर्वप्रथम रहा। इसके फलस्वरूप उन्हें छात्रवृत्ति मिली। 1924 में महादेवी जी ने हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और पुनः प्रांत बार में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस बार भी उन्हें छात्रवृत्ति मिली। वर्ष 1926 में उन्होंने इंटरमीडिएट और वर्ष 1928 में बीए की परीक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में प्राप्त की। व्हाट्सएप 1933 में महादेवी जी ने संस्कृत में मास्टर ऑफ आर्ट m.a. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार उनका विद्यार्थी जीवन बहुत सफल रहा। b.a. में उनका एक विषय दर्शन भी था पूर्णविराम इसलिए उन्होंने भारतीय दर्शन का गंभीर अध्ययन किया इस अध्ययन की छाप उन पर अंत तक बनी रही।

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महादेवी जी ने अपनी रचनाएं चांद में प्रकाशित होने के लिए भेजी। हिंदी संसार में उनकी उन प्रारंभिक रचनाओं का अच्छा स्वागत हुआ। इससे महादेवी जी को अधिक प्रोत्साहन मिला और फिर से वे नियमित रूप से काव्य साधना की ओर अग्रसर हो गई।


महादेवी जी का संपूर्ण जीवन शिक्षा विभाग से ही जुड़ा रहा। मास्टर ऑफ आर्ट m.a. की परीक्षा पास करने के पश्चात ही वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य नियुक्त हो गई। उनकी कर्तव्यनिष्ठा में शिक्षा के प्रति लगाव और कार्यकुशलता के कारण ही प्रयाग महिला विद्यापीठ में निरंतर उन्नति की। महादेवी जी ने वर्ष 1932 में महिलाओं की प्रमुख पत्रिका चांद की संपादक बनी।


पुरस्कार - महादेवी वर्मा ने वर्ष 1934 में निरजा पर ₹500 का पुरस्कार और सेकसरिया पुरस्कार जीता। वर्ष 1944 में आधुनिक कवि और निहार पर 1200 का मंगला प्रसाद पारितोषिक भी जीता । भाषा साहित्य संगीत और चित्रकला के अतिरिक्त उनकी रूचि दर्शनशास्त्र में भी थी। महादेवी वर्मा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1956 में पद्म भूषण से तथा वर्ष 1988 में पदम विभूषण से सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा उन्हें भारतेंदु पुरस्कार प्रदान किया गया। वर्ष 1982 में काव्य संकलन यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।


काव्य साधना - महादेवी वर्मा छायावादी युग की प्रसिद्ध कवित्री हैं। छायावाद आधुनिक काल की एक सहेली होती है जिसके अंतर्गत विविध सौंदर्य पूर्ण अंगों पर चेतन सत्ता का आरोप कर उनका मानवीय करण किया जाता है। इस प्रकार इस में अनुभूति और सौंदर्य चेतना की अभिव्यक्ति को प्रमुख स्थान दिया जाता है। महादेवी जी के काव्य में यह दोनों विशेषताएं हैं। अंतर मात्र इतना है कि जहां छायावाद के अन्य कवियों ने प्रकृति में उल्लास का अनुभव किया है वहीं इसके उलट महादेवी जी ने वेदना का अनुभव किया है। महादेवी वर्मा ने अपने काव्य में कल्पना के आधार पर प्रकृति का मानवीकरण कर उसे एक विशेष भाव स्मृति और गीत काव्य से विभूषित किया है इसलिए महादेवी जी की रचनाओं में छायावाद की विभिन्न भागवत और कलाकात विशेषताएं मिलती हैं।



काव्य भाव - महादेवी जी के काव्य की मूल भावना वेदना-भाव लेकिन जीवन में वेदना-भाव की उपज दो कारणों से होती है। 


जीवन में किसी अभाव के कारण


दूसरों के कष्टों से प्रभावित होने के कारण


मृत्यु - महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को प्रयाग (वर्तमान प्रयागराज) मैं हुआ । महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की एक विख्यात कवित्री थी स्वतंत्रता सेनानी और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महान महिला थी।


महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन - जब महादेवी वर्मा मात्र 11 वर्ष की थी तभी उनका विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया गया था। किंतु विधि को कुछ और ही मंजूर था। महादेवी जी का वैवाहिक जीवन सुख में नहीं रहा। इनका जीवन असीमित आकांक्षाओं और महान आशाओं को प्रति फलित करने वाला था। इसलिए उन्होंने साहित्य सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया।


महादेवी वर्मा को मिले पुरस्कार एवं सम्मान - महादेवी वर्मा को अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। इनको हर क्षेत्र में पुरस्कार मिले।


1.साहित्य अकादमी फेलोशिप (1979)

2.ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)

3.पद्मभूषण पुरस्कार (1956)

4.पदम विभूषण (1988)


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महादेवी वर्मा के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर


प्रश्न -महादेवी वर्मा के दो काव्य संग्रहों के नाम लिखिए?


महादेवी वर्मा के दो काव्य संग्रहों के नाम - नीरजा, निहार


प्रश्न -महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध रचना पर कौन सा पुरस्कार दिया गया?


महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। उनको मॉडर्न मीरा भी कहा जाता है। महादेवी वर्मा को 27 अप्रैल 1982 में काव्य संकलन यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप। 1988 में पद्म विभूषण और 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।


प्रश्न -महादेवी वर्मा की मृत्यु कब हुई?


महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को प्रयाग (वर्तमान प्रयागराज) मैं हुआ । महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की एक विख्यात कवित्री थी स्वतंत्रता सेनानी और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महान महिला थी।

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प्रश्न -महादेवी वर्मा की भाषा शैली लिखिए।


महादेवी जी ने अपने गीतों में स्निग्ध और सरल, तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण आदि अलंकारों की छटा देखने को मिलती है। इन्होंने भावात्मक शैली का प्रयोग किया, जो सांकेतिक एवं लाक्षणिक है। इनकी शैली में लाक्षणिक प्रयोग एवं व्यंजना के प्रयोग के कारण अस्पष्टता व दुरुहता दिखाई देती है।


प्रश्न -महादेवी वर्मा का जन्म कहां हुआ था?


हिंदी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध कवियित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म वर्ष 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद शहर में हुआ था


प्रश्न -भारत सरकार ने महादेवी वर्मा को कौन सी उपाधि से सम्मानित किया?


1971 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली पहली महिला थी। 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया था।


प्रश्न -महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय दीजिए?


महादेवी जी साहित्य और संगीत के अतिरिक्त चित्रकला में भी रुचि रखती थीं। सर्वप्रथम इनकी रचनाएं चांद नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। ये 'चांद' पत्रिका की संपादिका भी रहीं। इनकी साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने इन्हें पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें  'सेकसरिया' तथा 'मंगला प्रसाद' पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा इन्हें एक लाख रुपए का भारत-भारती पुरस्कार दिया गया तथा इसी वर्ष काव्य ग्रंथ यामा पर इन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ' पुरस्कार प्राप्त हुआ। ये जीवन पर्यंत प्रयाग में ही रहकर साहित्य साधना करती रहीं। आधुनिक काव्य के साथ साज-श्रंगार में इनका अविस्मरणीय योगदान है। इनके काव्य में उपस्थित विरह-वेदना अपनी भावनात्मक गहनता के लिए अमूल्य मानी जाती है। इसी कारण इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है। करुणा और भावुकता इनके काव्य की पहचान है। 11 सितंबर, 1987 को यह महान कवयित्री पंचतत्व में विलीन हो गई।



संक्षिप्त जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

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महादेवी वर्मा जी का जीवन परिचय

जीवन परिचय :-  महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में सन 1907 ईस्वी में एक संपन्न कायस्थ परिवार में हुआ था. इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राचार्य थे.  माता विदुषी और धार्मिक स्वभाव की महिला थी. इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग के क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में हुई थी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. . उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्य हो गयी. इनका विवाह 9 वर्ष की छोटी आयु में ही हो गया था. इनके पति श्री स्वरूपनारायण वर्मा एक डॉक्टर थे लेकिन इनका दाम्पत्य जीवन सफल नहीं था. ये उनसे अलग रहने लगी थी. कुछ समय तक इन्होने चाँद पत्रिका का संपादन किया. कुछ वर्षो तक ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की मनोनीत सदस्या रही।

  ये प्रयाग में ही रहकर जीवन पर्यन्त साहित्य साधना करती रही और 11 सितम्बर 1987 ईस्वी को इस संसार से विदा हो गयी.

कृतियाँ :- निबंध - संग्रह , संस्मरण और रेखाचित्र , संपादन , आलोचना , काव्य रचनाएँ निम्न है

निबन्ध : - श्रृंखला की कड़ियाँ , साहित्यकार की आस्था ,क्षणदा , अबला , सबला

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संस्मरण और रेखाचित्र :- अतीत के चलचित्र , स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी

आलोचना :- यामा और दीपशिखा

काव्य रचनाएँ :- नीहार , रश्मि , नीरजा , सांध्यगीत

 

Mahadevi Verma Ji ka jivan Parichay

साहित्यिक परिचय :- महादेवी जी भावुक कवयित्री , समर्थ लेखिका और कुशल सम्पादिका थी उनकी गद्द्य शैली के विषय में साहित्यकार गुलाबराय ने कहा है -

           " मैं गद्द्य में महादेवी को लोहा मानता हूँ "

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