सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय// Sumitra Nandan pant ka jivan Parichay
सुमित्रानन्दन पन्त जी का जीवन परिचय
जन्म- 21 मई , सन
1900 ईस्वी में
मृत्यु – सन 1977 ईस्वी
जन्मस्थान - अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में
नमस्कार दोस्तों ! आज कि इस पोस्ट में हम आपको आज एक ऐसे कवि के बारे में बताएँगे जिन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता है. जी हाँ, उस महान कवि का नाम है- सुमित्रानन्दन पन्त जी. आज हम पन्त जी के जीवन से जुड़ी इन्ही रचनाओं और उनके जीवन के बारे में जानेंगे.
जीवन- परिचय - प्रकृति के अनन्य प्रेमी श्री सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 21 मई , सन 1900 ईस्वी में अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में हुआ था. इनके पिता पं० गंगादत्त पन्त धार्मिक ब्राह्मण थे. वे कौसानी राज्य के कोषाध्यक्ष तथा अच्छे जमींदार थे. जन्म के छ: घण्टे बाद ही इनकी माता सरस्वती देवी का देहान्त हो गया था, इस कारण इनका लालन- पालन इनकी बुआ ने किया. पन्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई. इसके उपरान्त काशी जयनारायण स्कूल से इन्होने मैट्रिक की परीक्षा पास की और इण्टर में अध्ययन के समय ही कॉलेज छोड़कर असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए.
पन्त जी को कविता में बचपन से ही विशेष रूचि थी. सन 1956 ईस्वी में उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें एक लाख रूपए के ' भारतीय ज्ञानपीठ पुरूस्कार ' से सम्मानित किया. पन्त जी जीवन भर अविवाहित रहे. इनका व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली था. विशाल ललाट, चमकीली आँखें, घुँघराले बाल , शान्त मुद्रा और भावुक प्रकृति के मेल से इनका व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावी हो उठा था. पन्त जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की लम्बे समय तक सेवा की. कुछ दिन आकाशवाणी में भी काम किया. भारत सरकार ने इन्हें ' पदमभूषण ' से अलंकृत किया था. सन 1977 ईस्वी में सरस्वती के इस अनन्य पुजारी का स्वर्गवास हो गया.
साहित्यिक परिचय- आधुनिक युग के क्रान्तिकारी कवियों में पन्त जी का स्थान बहुत ऊँचा है. ' निराला' की भाँति ही पन्त जी ने कविता के लिए भाषा, व्याकरण और छन्दों के बन्धन को मानने से इन्कार कर दिया. इनकी कविता में क्रमिक विकास दिखाई पड़ता है. सामान्यतः पन्त जी के काव्य को (1)' छायावादी' और (2) 'प्रगतिवादी' - दो भागों में बाँटा जाता है परन्तु समय - समय पर इनके काव्य में अनेक परिवर्तन साफ़ दिखाई पड़ते हैं. खड़ीबोली का जो मधुर कोमलकान्त रूप पन्त जी की कृतियों में मिलता हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है.
रचनाएँ- पन्त जी की मुख्य रचनाएँ निम्नलिखित है-
वाणी, ग्रन्थि, उछ्वास, पल्लव, गुंजन , युगान्त, युगवाणी, पल्ल्विनी, स्वर्ण - किरण, उत्तरा, परिक्रीड़ा, ज्योत्सना , रानी, हार , पाँच कहानियाँ, उमर खय्याम की रुबाइयों का हिन्दी - अनुवाद आदि.
काव्यगत विशेषताएँ
कविवर सुमित्रानन्दन पंत आधुनिक काल के श्रेष्ठ हिन्दी कवियों में से एक थे.इनकी कविताओं में अग्रलिखित विशेषताएँ प्रकट होती हैं -
भावपक्ष की विशेषताएँ
भावपक्ष पर आधारित सुमित्रानन्दन पंत के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. प्रकृति पर आधारित रहस्यवाद - पन्त जी में भावुकता के साथ- साथ दार्शनिकता भी पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है, परन्तु वे जीव और ब्रह्म के पचड़ों में काम ही पड़ते हैं. प्रकृति सम्बन्धी रहस्यवाद ही इनकी रचनाओं में अधिकतर पाया जाता हैं. प्रकृति में ये स्वभाव से ही एक अतीन्द्रिय सत्ता की कल्पना कर लेते हैं.
2. प्रगतिवाद के प्रवर्तक कवि- छायावाद और रहस्यवाद के बाद पन्त जी ने प्रगतिवादी काव्यधारा में पदार्पण किया. इन्हें हिन्दी में प्रगतिवाद का प्रवर्तक कवि माना जाता हैं. इनके विचार से किसान और मजदूर ही लोक - क्रांति के अग्रदूत हैं परन्तु उनकी वर्तमान दुर्दशा को देखकर इनका ह्रदय पीड़ित हो उठता हैं.
3. प्रकृति चित्रण- पन्त जी प्रकृति के सुकुमार कवि थे. प्रकृति की क्रीड़ास्थली कुर्मांचल प्रदेश में आपका जन्म हुआ था. बाल्यकाल से ही प्रकृति के साहचर्य में रहने के कारण प्रकृति के अति मनोरम चित्र आपने अपने काव्य में अंकित किये हैं. प्रकृति को उन्होंने सहचरी के रूप में देखा हैं. प्रकृति - निरीक्षण से पन्त जी को अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति में पर्याप्त सहायता मिली हैं.
4. छायावादी प्रवृत्ति - पन्त जी प्रेम और सौंदर्य के कवि थे. छायावादी प्रवृत्ति के कारण ये प्रकृति में लीन हो जाते हैं और उसमें मानवीय व्यापारों का आभास पाने लगते हैं.
कलापक्ष की विशेषताएँ
कलापक्ष की दृष्टि से भी पन्त जी के काव्य में निम्नलिखित विशेषताएँ प्रकट होती हैं.-
1.भाषा - पन्त जी ने शुद्ध खड़ीबोली में काव्य- रचना की है. भाषा के ये शिल्पी हैं. इनकी भाषा सरल, कोमल तथा परिमार्जित हैं. शब्द की शक्ति को परखने की पन्त जी में अदभुत क्षमता थी. पन्त जी ने खड़ीबोली में कोमलकान्त पदावली का समावेश कर भाषा को मधुर, कोमल तथा सरस रूप दिया है. पन्त जी का शब्द चयन ऐसा अनूठा हैं कि वे जिस विषय का वर्णन करते हैं , उसका सजीव चित्र - सा उपस्थित हो जाता हैं. कुछ नये- नये प्रतीकों का भी आपने प्रयोग किया है. प्रवाह और लालित्य इनकी भाषा में सर्वत्र बना रहता हैं. कहीं - कहीं सामासिक पदावली के कारण भाषा में कठिनाई अवश्य आ गयी है, किन्तु ओज़ और माधुर्य गुण उसमें इतना है कि वह खलती नहीं है. चित्रोपमता, लाक्षणिकता तथा संगीतमयता इनकी भाषा कि निजी विशेषताएँ हैं .
2. अलंकार - योजना - पन्त जी के काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है. उपमानों का प्रयोग इन्होंने आकार- साम्य के आधार पर न करके भाव - साम्य के आधार पर किया है.
साहित्य में स्थान - सुमित्रानन्दन पन्त विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. वे काव्यगत विशेषताओं कि दृष्टि से भावपक्ष एवं कलापक्ष ; दोनों ही दृष्टियों से एक प्रतिभाशाली कवि सिद्ध हुए. उन्होंने छायावाद, प्रगतिवाद एवं प्रकृतिवाद ; प्रायः सभी मुख्य काव्यधाराओं पर अपनी लेखनी चलाई और इन सभी काव्यधाराओं पर उनके द्वारा रचित कृतियाँ; हिन्दी काव्य कि अमर निधियाँ सिद्ध हुई. उन्हें हिन्दी - साहित्य में प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में स्थान प्राप्त हुआ. अपनी रचनाओं के कारण वे हिन्दी - साहित्य में सदैव एक सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में स्मृत किये जाते रहेंगे.
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Written By: Bandana Study Classes
सर क्या मैं इस आर्टिकल को अपनी परीक्षा में यूज कर सकता हूं
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