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खसरा और खतौनी में अंतर / Khasra aur Khatauni mein kya antar hai

खसरा और खतौनी में अंतर / Khasra aur Khatauni mein kya antar hai



खसरा और खतौनी में अंतर / Khasra aur Khatauni mein antar




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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट   www.Bandana classes.com  पर । आज की पोस्ट में हम आपको खसरा और खतौनी में अंतर  के बारे में बताएंगे तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है।


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खतौनी नंबर अक्सर जमीन के मालिक को आवंटित किया जाता है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। खतौनी संख्या ग्रामीण भूमि के स्वामित्व से संबंधित विवरण प्राप्त करने में सहायक है। यदि कोई व्यक्ति भारत के ग्रामीण इलाके में जमीन में निवेश करने की योजना बना रहा है तो खसरा खतौनी नंबर खरीदारों के लिए जरूरी है। आज की पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि खसरा और खतौनी में अंतर |


ज्यादातर मामलों में जमीन की खरीद में निवेश करने की सलाह दी जाती है भूमि निवेश रणनीति के पीछे मुख्य कारणों में से यह एक है कि समय के साथ भूमि का मूल्य बढ़ जाता है। इसके अलावा भूमि लेनदेन के दौरान उपयोग की जाने वाली महत्वपूर्ण शब्दावली से अवगत होना चाहिए खतौनी ऐसी ही एक शब्दावली है खतौनी नंबर भारत के ग्रामीण क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाला एक सामान्य शब्द है ‌‌।


निम्नलिखित लेख खतौनी क्या है? खसरा किसे कहते हैं, खसरा और खतौनी में अंतर के बारे में जानेंगे।



खसरा किसे कहते हैं? Khasra kise kahate Hain ?


खसरा किसे कहते हैं? Khasra kise kahate Hain ?


खसरा भारत में कृषि से संबंधित जमीन का एक कानूनी रिकॉर्ड या डॉक्यूमेंट होता है। इस दस्तावेज में किसी खास जमीन के बारे में कई जानकारियां जैसे भूस्वामी का नाम, क्षेत्रफल, उस पर लगाई जाने वाली फसल का ब्यौरा आदि दी गई रहती है। खसरा वास्तव में मूल भू अभिलेख होता है जिस पर जमीन के मालिक के जमीन का खसरा नंबर और उस जमीन के क्षेत्रफल के साथ-साथ कई अन्य विवरण होते हैं। खसरा से जमीन के स्वामी के साथ-साथ जमीन का क्षेत्रफल, जमीन की  चौहद्दी, उगाई जाने वाली फसल, मिट्टी, कौन खेती करता है। सभी की जानकारी मिलती है खसरा का प्रयोग शजरा नाम के एक अन्य दस्तावेज के साथ होता है। हर खसरे का नंबर होता है जिससे इसकी पहचान होती है।



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खतौनी किसे कहते हैं ? Khatauni kise kahate hai ?


खतौनी आकार पत्र प-क -11 पर लेखपाल द्वारा भू अभिलेख नियमावली के परिच्छेद क-121 से क-160 तक में दिए गए नियमों के अनुसार गांव षटवर्षी तैयार की जाती है।


खतौनी को अधिकार अभिलेख भी कहते हैं। इसमें 13 कॉलम होते हैं राजस्व संहिता 2006 की धारा 31 (1) के अनुसार RC प्रपत्र-7 मैं 14 कॉलम होते हैं। इसमें अंश निर्धारण का एक कॉलम और बढ़ जाता है क्योंकि उत्तर प्रदेश में खतौनी अंश निर्धारित का कार्य अभी चल रहा है इसलिए अभी प-क-11 वाली खतौनी ही प्रचलन में है।



उत्तर प्रदेश राजस्व हिस्सा की 206 की धारा 31(1) अनुसार RC प्रपत्र 7 मैं तैयार की जाती है। खातेदारों की जो द्वार तैयार किया जाने वाला रिकॉर्ड होता है। इसमें ग्राम के सभी खातेदारों की जीतों का विवरण रहता है। खतौनी विवरण के आधार पर ही भूमि के स्वामित्व का पता चलता है। उत्तर प्रदेश में खतौनी प्रत्येक 6 वर्ष बाद तैयार की जाती है वर्तमान समय में खतौनी ऑनलाइन तैयार की जाती है। प्रत्येक राजस्व ग्राम की एक खतौनी होती है इसमें खातेदारों के नाम की भी सभी भूमियों को हिंदी वर्णमाला के क्रम में खाते के रूप में लिखा जाता है। इस प्रकार किसी किसान के खतौनी खाते में कई गाटा संख्या हो सकती है। खतौनी देखकर किसान या खातेदार की भूमि के स्वामित्व मालिकाना का पता लगा सकते हैं।



खतौनी आकार पत्र  प-क 11 पर लेखपाल द्वारा भू अभिलेख नियमावली के परिच्छेद का -121 से क-160 तक में दिए गए नियमों के अनुसार गांव बार षटवर्षीय तैयार की जाती है। जमीदारी विनाश क्षेत्र में पिछले षटवर्षीय से खतौनी से तैयार की जाती है। इसमें 13 कॉलम होते हैं। खतौनी के स्तंभ 1 से 6 तक में लिखे गए विवरण तथा स्तंभ 7 से 12 तक में लिखे सक्षम अधिकारियों के आदेशों को समाविष्ट करते हुए नए खतौनी में लिख दिए जाते हैं। किसी खातेदार की मृत्यु हो गई हो और उसके वारिसान का नाम दर्ज किए जाने का आदेश पिछली खतौनी के स्तंभ 7 से 12:00 तक में लिखा हो तो नहीं खतौनी बनाते समय उसमें मृतक खातेदार का नाम हटा दिया जाता है। तथा उसके स्थान पर उसके वारिसों के नाम नए खतौनी में वरासत अनुसार लिख दिया जाता है।


खतौनी को क्यों बनाया गया ? Khatauni ko kyon banaya Gaya ?




किसी ग्राम में निजी भूमि मालिकों को भूमिया खसरे में खसरा क्रमांकनुसार दर्ज होती है। जिस कारण किसी एक व्यक्ति द्वारा धारित समस्त भूमियाया खसरे में अलग-अलग स्थान पर अंकित हो जाती है। इससे सभी भूमियों की जानकारी एक स्थान पर उपलब्ध ना होने से होने वाली असुविधा के निदान हेतु खतौनी या बी -1 की रचना की गई। खतौनी की मदद से ग्राम स्तर पर राजस्व की वसूली में न्यूनतम त्रुटि के साथ सहायता प्राप्त होती है।



खसरा और खतौनी में क्या अंतर है | khasra aur khatauni mein antar 



भारत में जमीन की खरीद बिक्री के समय एक शब्द का सबसे ज्यादा जिक्र होता है। और वह खसरा और खतौनी। खसरा और खतौनी द्वारा ही राजस्व विभाग सभी जमीनों की पूरी जानकारी रखते हैं और खरीद बिक्री के समय इसके वास्तविक मालिक का पता लगाते हैं। खसरा और खतौनी जमीन के स्वामित्व के साथ-साथ कई अन्य जानकारियों का विवरण देते हैं। आज के इस पोस्ट में हम इन्हीं खसरा और खतौनी के बारे में विस्तार से पड़ेंगे और दोनों के बीच अंदर क्या है देखेंगे।




• खसरा जमीन विशेष को कहते हैं जबकि खतौनी किसी व्यक्ति के सभी खतरो के विवरण रजिस्टर को कहते हैं।




• खसरा मूल भूलेख होता है जिसमें जमीन का खसरा नंबर तथा कई अन्य जानकारियां दी गई होती है वही खतौनी सहायक भूअभिलेख होता है जिसमें भूस्वामी के सभी खतरों की जानकारी होती है।




• खसरा P - II फॉर्म में बनता है और इसमें 12 कॉलम होते हैं वही खतौनी B- I फॉर्म में बनता है और इसमें 23 कॉलम होते हैं।




• खसरा जमीन रिकॉर्ड की एक इकाई होती है जो खसरा नंबर से जानी जाती है वही खतौनी एक रजिस्टर है जिसमें प्रत्येक खसरा नंबर के स्वामी का नाम लिखा रहता है।




खसरा और खतौनी में अंतर तुलनात्मक चार्ट द्वारा -



खसरा

खतौनी

खसरा भूमि अभिलेख संबंधी दस्तावेज है।

खतौनी राजस्व वसूली संबंधी दस्तावेज है।

खसरा भूमि क्रमांक भूमि स्वामी की जानकारी क्षेत्रफल फसल का विवरण आदि जानकारी प्रदान करता है।

खतौनी भूमि के देय राजस्व बकाया तथा वसूली की जानकारी प्रदान करता है।

खसरा में भूमियों का क्रम खसरा क्रमांक अनुसार होता है।

खतौनी में क्रम हिंदी वर्णमाला के अनुसार होता है।

खसरा भूमि का एक मूलभूत दस्तावेज है।

खतौनी खसरे का एक विस्तारित या अनुपूरक दस्तावेज है।

खसरा भूमि अधिकार प्रमाण पत्र के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।

खतौनी का प्रयोग भूमि अधिकार प्रमाण पत्र के रूप में नहीं किया जा सकता है।



खसरा और खतौनी संख्या में क्या अंतर है?




1.ज्यादातर मामलों में लोग खसरा नंबर को खतौनी नंबर से भ्रमित करते हैं। भले ही कभी-कभी उन्हें खसरा खतौनी के रूप में एक साथ उपयोग किया जाता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि खसरा और खतौनी का परस्पर उपयोग नहीं किया जा सकता है खसरा भूमि इकाई को आवंटित संख्या जबकि खतौनी कृषि भूमि के मालिकों को आवंटित संख्या है ‌।




2.खसरा और खतौनी के बीच एक अंतर यह भी है की खसरा भूमि में से एक एकल इकाई का रिकॉर्ड है हालांकि खतौनी में कई इकाइयों के रिकॉर्ड शामिल हो सकते हैं।




3.खसरा और खतौनी के बीच तीसरा अंतर यह है कि खतौनी का रिकॉर्ड फॉर्म बी आई के माध्यम से बनाया गया है और इसमें 23 कॉलम है खसरा नंबर रिकॉर्ड फॉर्म पी द्वितीय के माध्यम से बनाया गया है और फॉर्म में लगभग 12 कॉलम है।




4.इसके अलावा खतौनी उन कष्ट कारों को आवंटित की जाती है जो विभिन्न खसरा संख्या की गई भूमि पर खेती कर सकते हैं।

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