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UP board class 10th social science chapter 12 NCERT notes || सामाजिक विज्ञान नोट्स हिन्दी में

UP board class 10th social science chapter 12 NCERT notes || सामाजिक विज्ञान नोट्स हिन्दी में


UP board class 10th social science chapter 12 NCERT notes || सामाजिक विज्ञान नोट्स हिन्दी में


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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट   www.Bandana classes.com  पर । आज की पोस्ट में हम आपको यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 12 लोकतंत्र और विविधता के बारे में बताएंगे तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है।


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यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 12 लोकतंत्र और विविधता


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3.    लोकतंत्र और विविधता




याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1.एफ्रो अमेरिकन अश्वेत अमेरिकी या अश्वेत शब्द उन अफ्रीकी लोगों के वंशजों के लिए प्रयुक्त होता है जिन्हें 17वीं सदी से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक अमेरिका में गुलाम बनाकर लाया गया था।


2.अश्वेत शक्ति आंदोलन 1966 में शुरू हुआ और 1975 तक चलता रहा। नस्लवाद को लेकर इस आंदोलन का रवैया ज्यादा उग्र था। इसका मानना था कि अमेरिका से नस्लवाद मिटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने में भी हर्ज नहीं है।


3.नीदरलैंड में वर्ग और धर्म के बीच मेल दिखाई नहीं देता। वहाँ कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों में अमीर और गरीब हैं। परिणाम यह है कि उत्तरी आयरलैंड में कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटों के बीच भारी मारकाट चलती रही है पर नीदरलैंड में ऐसा नहीं होता।


4.उत्तरी आयरलैंड में 53 फीसदी आबादी प्रोटेस्टेंट हैं जबकि 44 फीसदी रोमन कैथोलिक हैं। कैथोलिकों का प्रतिनिधित्व नेशनलिस्ट पार्टियाँ करती हैं। प्रोटेस्टेंट लोगों का प्रतिनिधित्व यूनियनिस्ट पार्टियाँ करती हैं।


5.जर्मनी और स्वीडन जैसे देशों में समरूप समाज है। भारत काफी बड़ा देश है और इसमें अनेक समुदायों के लोग रहते हैं।


6.अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं तथा भेदभाव के शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है।


7.सामाजिक विभाजन अधिकांशतः जन्म पर आधारित होता है। किसी देश में सामाजिक विभिन्नताओं पर जोर देने की बात को हमेशा खतरा मानकर नहीं चलना चाहिए। लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और एक स्वस्थ राजनीति का लक्षण भी हो सकता है।




महत्त्वपूर्ण शब्दावली


नस्लभेद –किसी देश या समाज में नस्ल के आधार पर कुछ लोगों को नीचा या हीन समझना नस्लभेद कहलाता है।


रंगभेद - रंग के आधार पर भेदभाव करना अर्थात् जहाँ श्वेत और अश्वेत लोग रहते थे वहाँ अश्वेतों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था; जैसे अफ्रीका में रंगभेद की नीति अपनाई गई और अश्वेतों को सभी अधिकारों से वंचित रखा गया। दक्षिण


समरूप समाज – एक ऐसा समाज जिसमें सामुदायिक, सांस्कृतिक या जातीय विभिन्नताएँ ज्यादा गहरी नहीं होतीं।


 विभाजित समाज–एक ऐसा समाज जिसमें सामुदायिक, सांस्कृतिक या जातीय विभिन्नताएँ बहुत गहरी होती हैं।





बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक




प्रश्न 1.काले दस्ताने और बँधी मुट्ठियाँ किसकी प्रतीक थीं?


(क) क्रोध की


(ख) शान्ति की


(ग) अश्वेत शक्ति की


(घ) खुशी की



उत्तर


(ग) अश्वेत शक्ति की



प्रश्न 2.अमेरिका सामाजिक विभाजन के कारण कौन थे? 


(क) अमीर और गरीब


(ख) आधुनिक तथा रूढ़िवादी 


(ग) श्वेत और अश्वेत


(घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर-


(ग) श्वेत और अश्वेत





प्रश्न 3.सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम कितनी चीजों पर निर्भर करता है?


(क) चार


(ख) सात


(ग) तीन


(घ) दो


उत्तर


(ग) तीन


प्रश्न 4.लोकतंत्र का सबसे अच्छा तरीका क्या है? 


(क) विविधता को समाहित करना


(ख) विभिन्नता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखना


(ग) समरूप समाज बनाने का प्रयास करना


(घ) उपर्युक्त सभी


उत्तर


(घ) उपर्युक्त सभी


प्रश्न 5.सामाजिक विभाजनों को सँभालने के संदर्भ में इनमें से कौन-सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?


(क) लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया राजनीति पर भी पड़ती है।


(ख) लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें ज़ाहिर करना संभव है।


(ग) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल करने का सबसेअच्छा तरीका है। 


(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।


उत्तर


(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1.एफ्रो अमेरिकी से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- एफ्रो अमेरिकी, अश्वेत शब्द उन अफ्रीकी लोगों के वंशजों के लिए प्रयुक्त होता है जिन्हें 17वीं सदी से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक अमेरिका में गुलाम बनाकर लाया गया था। 


प्रश्न 2. अश्वेत शक्ति आंदोलन से क्या तात्पर्य है?


उत्तर- अश्वेत शक्ति आंदोलन 1966 में उभरा और 1975 तक चलता रहा। नस्लवाद को लेकर इस आंदोलन का रवैया उग्र था। इसका मानना था कि अमेरिका से नस्लवाद मिटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने में भी हर्ज नहीं है।


प्रश्न 3. नस्लभेद से क्या तात्पर्य है?


उत्तर किसी देश या समाज में नस्ल के आधार पर कुछ लोगों को नीचा या हीन समझना नस्लभेद कहलाता है। 



 प्रश्न 4. रंगभेद से क्या तात्पर्य है?


उत्तर रंग के आधार पर भेदभाव करना अर्थात् जहाँ श्वेत और अश्वेत लोग रहते थे वहाँ अश्वेतों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था; जैसे—दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति अपनाई गई और अश्वेतों को सभी अधिकारों से वंचित रखा गया।


प्रश्न 5. यूगोस्लाविया का विभाजन क्यों हुआ?


उत्तर- धार्मिक और जातीय विभाजन के आधार पर शुरू हुई राजनीतिक होड़ में यूगोस्लाविया कई टुकड़ों में बँट गया।


प्रश्न 6. अमेरिका में नागरिक सुधार आंदोलन क्या था?


उत्तर- मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व में 1954 से नागरिक अधिकार आंदोलन को चलाया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य एफ्रो-अमेरिकी लोगों के विरुद्ध होने वाले नस्ल आधारित भेदभाव को मिटाना था। यह आंदोलन अहिंसक था।


प्रश्न 7. मैक्सिको ओलंपिक खेल 1968 में किन दो खिलाड़ियों ने अमेरिका में चल रहे नस्लवाद का विरोध किया था?


उत्तर- टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस ने।


प्रश्न 8. भारत में सामाजिक विभाजन का आधार बताइए। 


उत्तर- धार्मिक आधार तथा सांस्कृतिक विभिन्नताएँ भारत में सामाजिक विभाजन का आधार हैं।


प्रश्न 9. नागरिक अधिकार आन्दोलन किस देश से शुरू किया जाता था?


उत्तर- संयुक्त राज्य अमेरिका से।


प्रश्न 10. मार्टिन लूथर किंग की हत्या कब की गई?


उत्तर- 4 अप्रैल, 1968 को।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. लोकतंत्रीय देशों में सामाजिक विभाजन का क्या प्रभाव पड़ता है?


उत्तर- लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच प्रतिद्वन्द्विता का माहौल होता है। इस प्रतिद्वन्द्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है। अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगें तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखंडन की तरफ जा सकता है। ऐसा कई देशों में हो चुका है। किंतु सच्चाई यह है कि राजनीति में सामाजिक विभाजन की हर अभिव्यक्ति फूट पैदा नहीं करती। कई देशों में ऐसी पार्टियाँ हैं जो सिर्फ एक ही समुदाय पर ध्यान देती हैं और उसी के हित में राजनीति करती हैं पर इन सबकी परिणति देश के विखंडन में नहीं होती।


प्रश्न 2. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?


उत्तर- हर सामाजिक भिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती। सामाजिक अंतर लोगों के बीच बँटवारे का एक बड़ा कारण ज़रूर होता है किंतु यही अंतर कई बार अलग-अलग तरह के लोगों के बीच पुल का काम भी करती है। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं, भेदभाव के शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है। जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे एक सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है।



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1.सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारकों की चर्चा करें।



उत्तर- सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम तीन कारकों पर निर्भर करता है


1. लोगों में अपनी पहचान के प्रति आग्रह की भावना- यदि लोग स्वयं को सबसे विशिष्ट और अलग मानने लगते हैं तो उनके लिए दूसरों के साथ तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल हो जाता है। यदि लोग अपनी बहुस्तरीय पहचान के प्रति सचेत हैं और उन्हें राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा या सहयोगी मानते हैं तब कोई समस्या नहीं होती; जैसे-बेल्जियम के लोगों में भाषायी विभिन्नता के बावजूद वे अपने को बेल्जियाई ही मानते हैं। इससे उन्हें देश में साथ-साथ रहने में मदद मिलती है। भारत में भी लोग स्वयं को पहले भारतीय मानते हैं फिर किसी प्रदेश, क्षेत्र या धार्मिक, सामाजिक समूह का सदस्य।


2. राजनीतिक दलों की भूमिका- दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है कि किसी समुदाय की माँगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं। संविधान की सीमाओं में आने वाली और दूसरे समुदाय को नुकसान न पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना आसान है। श्रीलंका में केवल सिंहलियों के लिए ही काम करने की नीति तमिल समुदाय की पहचान और हितों के खिलाफ थी।


3. सरकार का रुख- सरकार इन माँगों पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, यह महत्त्वपूर्ण है। यदि शासन सत्ता में साझेदारी करने को तैयार हो और अल्पसंख्यक समुदाय की उचित माँगों को पूरा करने का प्रयास ईमानदारी से किया जाए तो सामाजिक विभाजन मुल्क के लिए खतरा नहीं बनते। यदि शासन राष्ट्रीय एकता के नाम पर किसी ऐसी माँग को दबाना शुरू कर देता है तो अक्सर उल्टे और नुकसानदेह परिणाम ही निकलते हैं। ताकत के दम पर एकता बनाने की कोशिश विभाजन की ओर ले जाती है।


इस प्रकार लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और यह एक स्वस्थ राजनीति का लक्षण भी हो सकता है। राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजनों की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों के बीच संतुलन पैदा करने का काम भी करती है। इस स्थिति में लोकतंत्र मज़बूत ही होता है।




प्रश्न 2. सामाजिक विभाजन किस तरह से राजनीति को प्रभावित करते हैं? दो उदाहरण भी दीजिए।



उत्तर- सामाजिक विभाजन और राजनीति का मेल काफी खतरनाक और विस्फोटक हो सकता है। लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक दलों में प्रतिद्वन्द्विता का माहौल होता है। इस प्रतिद्वन्द्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है। यदि राजनीतिक दल इन विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगें तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल जाएगा। ऐसा कई देशों में हो चुका है, जैसे- आयरलैंड इसका एक उदाहरण है। यह ग्रेट ब्रिटेन का एक हिस्सा है। इसमें काफी समय तक हिंसा, जातीय कटुता रही है। यहाँ की मुख्य आबादी ईसाई है किंतु उनमें से 53 फीसदी आबादी प्रोटेस्टेंट है जबकि 44 फीसदी रोमन कैथोलिक। कैथोलिकों का प्रतिनिधित्व नेशनलिस्ट पार्टियाँ करती हैं। उनकी माँग है कि उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड गणराज्य के साथ मिलाया जाए। प्रोटेस्टेंट लोगों का प्रतिनिधित्व यूनियनिस्ट पार्टियाँ करती हैं जो ग्रेट ब्रिटेन के साथ ही रहने के पक्ष में हैं। 1998 में ब्रिटेन की सरकार और नेशनलिस्टों के बीच शांति समझौता हुआ, जिसमें दोनों पक्षों ने हिंसक आंदोलन बंद करने की बात की।



यूगोस्लाविया भी इसका एक उदाहरण है। वहाँ धार्मिक और जातीय विभाजन के आधार पर शुरू हुई राजनीतिक होड़ में यूगोस्लाविया कई टुकड़ों में बँट गया। इन उदाहरणों से लगता है कि किसी देश में यदि सामाजिक विभाजन है तो उसे राजनीति में अभिव्यक्त नहीं होने देना चाहिए। किंतु राजनीति में सामाजिक विभाजन की हर अभिव्यक्ति फूट पैदा नहीं करती। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के लिए सामाजिक विभाजनों की बात करना तथा विभिन्न समुदायों की उचित माँगों और जरूरतों को पूरा करने वाली नीतियाँ बनाना भी इसी कड़ी का हिस्सा है। अधिकतर देशों में मतदान के स्वरूप और सामाजिक विभाजनों के बीच एक प्रत्यक्ष संबंध दिखाई देता है। इसके तहत एक समुदाय के लोग आमतौर पर किसी एक दल को दूसरों के मुकाबले ज्यादा पसंद करते हैं और उसी को वोट देते हैं। कई देशों में ऐसी पार्टियाँ हैं जो सिर्फ एक ही समुदाय पर ध्यान देती हैं और उसी के हित में राजनीति करती हैं पर इन सबकी परिणति देश के विखंडन में नहीं होती।



प्रश्न 3. मार्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा मानवीय अधिकारों के सन्दर्भ में किए गए योगदान का वर्णन कीजिए।


उत्तर- मार्टिन लूथर किंग का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक रहे थे। उनके विचारों पर गांधी जी के विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा। अतः उन्होंने जीवन का उद्देश्य समाज में अन्याय, उत्पीड़न, शोषण तथा भेदभाव को समाप्त करना बना लिया। उन्होंने अमेरिकन समाज में जाति तथा रंग के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाई। उन्होंने सभी व्यक्तियों को बिना किसी जाति, धर्म, रंग तथा लिंग के भेदभाव के समान नागरिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक अधिकारों के लिए सत्याग्रह पर आधारित अहिंसात्मक आन्दोलन प्रारम्भ किया। मार्टिन लूथर किंग नागरिक अधिकारों के एक प्रमुख तथा शक्तिशाली नेता थे। उनके द्वारा पृथकतावाद तथा नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध चलाए गए अहिंसात्मक आन्दोलन का सामान्य जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा। रंगभेद तथा जातिभेद के विरुद्ध होटलों, बसों तथा सार्वजनिक स्थलों पर घरने तथा प्रदर्शन किए गए। इसमें विद्यार्थियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। अश्वेत लोगों के नामों को मतदाता सूची में सम्मिलित करने के लिए भी आन्दोलन प्रारम्भ किया गया। 1963 ई. में लूथर किंग के नेतृत्व में विज्ञान रैली का आयोजन किया गया। लूथर किंग के प्रयासों से नागरिक अधिकारों को कानूनी अधिकारों का स्तर प्राप्त हुआ। इसके पश्चात् अन्य नेताओं ने युद्ध विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ कर दिए। अश्वेत लोगों के आन्दोलन ने धीरे-धीरे उग्र रूप धारण कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि 1968 ई. में मार्टिन लूथर किंग की हत्या कर दी गई। तत्पश्चात् नवयुवकों तथा बुद्धिजीवियों के गुट ने वियतनाम के युद्ध के विरुद्ध एक शक्तिशाली युद्ध-विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। बाद में इस आन्दोलन ने विश्व-शान्ति, निःशस्त्रीयकरण तथा पर्यावरण संरक्षण आदि विषयों पर भी बल दिया।


मार्टिन लूथर किंग विश्व में मानवाधिकारों के मसीहा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। उनके द्वारा किए गए प्रयास सार्थक सिद्ध हुए। वे अमेरिका के इतिहास में एक चमकता हुआ सितारा हैं। उन्होंने सामाजिक न्याय पर आधारित समतावादी समाज की नींव रखी।


प्रश्न 4. सामाजिक भेदभाव का आशय क्या है? इसके मुख्य दो कारण बताइए। इसे समाप्त करने के दो उपाय भी बताइए। 


उत्तर- सामाजिक भेदभाव का आशय- सामाजिक भेदभाव से आशय समाज में जन्मजात या जैविक एवं सामाजिक रूप से उत्पन्न असमानताओं से है। यह मुख्यत: नस्ल, जाति, वर्ग, धर्म, भाषा, संस्कृति आदि पर आधारित होता है।


सामाजिक भेदभाव के दो कारण


1. जन्म पर आधारित- सामान्य तौर पर अपना समुदाय चुनना हमारे वश में नहीं होता। हम सिर्फ़ इस आधार पर किसी खास समुदाय के सदस्य हो सकते हैं कि हमारा जन्म उस समुदाय के एक परिवार में हुआ होता है। जन्म पर आधारित सामाजिक विभाजन का अनुभव हम अपने दैनिक जीवन में लगभग रोज़ करते हैं।


2. पसंद या चुनाव पर आधारित- सभी सामाजिक विभाजन जन्म के आधार पर नहीं होते। कुछ चीज़ें हमारी पसंद या चुनाव के आधार पर भी तय होती हैं। कई लोग अपने माँ-बाप और परिवार से अलग अपनी पसंद का भी धर्म चुन लेते हैं। हम सभी लोग पढ़ाई के विषय, पेशे, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियों का चुनाव अपनी पसंद से करते हैं। इन सबके आधार पर भी सामाजिक भेदभाव उत्पन्न होता है।


सामाजिक भेदभाव समाप्त करने के दो उपाय


(i) अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देना।


(ii) विभिन्न जातियों व सामाजिक समूहों द्वारा आपस में सामूहिक भोजन को बढ़ावा देना।



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