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UP Board Class 10th Hindi Real Paper 2023 || कक्षा 10वीं हिंदी रियल पेपर यूपी बोर्ड परीक्षा 2023

UP Board Class 10th Hindi Real Paper 2023 || कक्षा 10वीं हिंदी रियल पेपर यूपी बोर्ड परीक्षा 2023

UP Board Class 10th Hindi Model Paper 2023 || कक्षा 10वीं हिंदी मॉडल पेपर संपूर्ण हल यूपी बोर्ड परीक्षा 2023


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             यूपी बोर्ड परीक्षा 2023


                    कक्षा - 10


                  विषय -हिन्दी


समय-3 घण्टा.                                 पूर्णांक - 70


निर्देश:- (1) यह प्रश्न-पत्र दो खण्डों में विभाजित है। खण्ड 'अ' और खण्ड 'ब' ।


(2) सभी प्रश्नों को निर्देशानुसार हल कीजिए


 (3) प्रत्येक प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख निर्दिष्ट है।


                     (खण्ड-अ)    20 अंक


(बहुविकल्पीय प्रश्न)


नोट- निम्न प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर अपनी ओ.एम.आर. शीट पर अंकित कीजिए।1x20 = 20


प्रश्न 1. उपन्यास 'भूले-बिसरे चित्र' के लेखक है-


(अ) प्रेमचन्द्र


(ब) भगवती चरण वर्मा


(स) यशपाल


(द) वृन्दावनलाल वर्मा

उत्तर –(ब) भगवती चरण वर्मा


प्रश्न 2. शुक्लोत्तर युग के प्रमुख कहानीकार है-


(अ) इलाचन्द्र जोशी


(ब) मोहन राकेश


(स) विकल्प क व ख दोनों 


(द) इनमें से कोई नहीं

उत्तर –(स) विकल्प क व ख दोनों 


प्रश्न 3. 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' हिन्दी साहित्य की कौन-सी विधा है-


(अ) निबन्ध


(ब) उपन्यास 


(स) डायरी


(द) कविता

उत्तर –(ब) उपन्यास


प्रश्न 4. आधुनिक काल की समय अवधि है-


(अ) 1850 ई0 से 1900 तक


 (ब) 1900 ई0 से 1920 तक


 (द) 1843 ई0 से वर्तमान तक


(स) 1919 ई0 से 1938 तक

उत्तर –(द) 1843 ई0 से वर्तमान तक


प्रश्न 5.'त्यागपत्र' किस विधा की रचना है-


(अ) जीवनी


(ब) उपन्यास


(स) नाटक


(द) निबन्ध

उत्तर –(ब) उपन्यास


प्रश्न 6. रसखान किस काल की किस शाखा के कवि है-


(अ) रीतिकाल की कृष्णभक्ति शाखा


(ब) भक्तिकाल की निर्गुण-भक्ति शाखा


 (स) भक्तिकाल की सगुण-भक्ति शाखा


(द) इनमें से कोई नहीं

उत्तर –(स) भक्तिकाल की सगुण-भक्ति शाखा


प्रश्न 7. छायावादी युग के प्रमुख लेखक है-


(अ) यशपाल


(ब) वृन्दावनलाल वर्मा


(स) रामकुमार वर्मा


(द) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

उत्तर –(स) रामकुमार वर्मा


प्रश्न 8.द्विवेदी युग की कालावधि है--


(अ) 1850 ई0 से 1900 ई0 तक 


(ब) 1900 ई0 से 1918 ई० तक


(स) 1971 ई0 से आज तक


(द) 1918 ई0 से 1936 ई0 तक

उत्तर –(ब) 1900 ई0 से 1918 ई० तक


प्रश्न 9.'अद्भुत आलाप' के कवि है-


(अ) महावीर प्रसाद द्विवेदी


(ब) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र 


 (स) मैथिलीशरण गुप्त


(द) हरिऔध

उत्तर –(अ) महावीर प्रसाद द्विवेदी


प्रश्न 10.'यामा' के रचायिता का नाम लिखिए


(अ) सुभद्राकुमारी चौहान 


(ब) महादेवी वर्मा


(स) मीराबाई


(द) अशोक बाजपेयी

उत्तर –(ब) महादेवी वर्मा


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प्रश्न 11. विपति बटावन बन्धु बाहु बिनु करो भरोसों का को में रस की पहचान कीजिए-


(अ) रौद्र रस 


(ब) शान्त रस 


(स) करूण रस


 (द) हास्य रस 

उत्तर –(स) करूण रस


प्रश्न 12.'हृदय सिन्धु में उठता स्वगिक ज्वार देख चन्द्रानन'। पंक्ति में अलंकार


(स) उत्प्रेक्षा


(अ) रूपक


(ब) श्लेष


(द) उपमा


प्रश्न 13. सुनत सुमंगल बैन मन प्रमोद तन पुलक भर-


(अ) 13-13 मात्राएँ


(ब) 20-20 मात्राएँ


(स) 11-11 मात्राएँ


(द) 9-9 मात्राएँ


प्रश्न 14.अध्यक्ष शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग है- 


(अ) अभि


(ब) अ 


(स) आ


(द) अधि

उत्तर –(द) अधि


प्रश्न 15.हँसाई शब्द में कौन-सा प्रत्यय लगा है-


(अ) ई


(ब) आई


(स) इ


(द) साई

उत्तर –(अ) ई


प्रश्न 16.'पंचानन' का समास विग्रह है-


 (अ) पाँच सिरों का समाहार


 (ब) पाँच पात्रों का समाहार


(स) पाँच प्रल्लवों का समाहार 


(द) पाँच तत्वों का समाहार

उत्तर – (अ) पाँच सिरों का समाहार


प्रश्न 17.'सुहाग' शब्द का तत्सम रूप होगा- 


(अ) स्वामी


(ब) सुहागा


(स) सौभाग्य


(द) दुर्भाग्य

उत्तर –(स) सौभाग्य


प्रश्न 18. 'कर्ताज्ञा' का सन्धि-विच्छेद है-


(अ) कृर्तृ+आज्ञा


(ब) कर्त्र + आज्ञा


(स) कर्ता+आज्ञा


(द) कर्त्रा +आज्ञा


प्रश्न 19 मते रूप है 'मति' शब्द का-


(अ) षष्ठी विभक्ति एकवचन 


(ब) पंचमी विभक्ति एकवचन


(स) चतुर्थी विभक्ति, द्विवचन


 (द) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन


प्रश्न 20.'हसिष्यथ' रूप है 'हस' धातु का-


(अ) लूट लकार. मध्यम पुरुष, द्विवचन


(ब) लृट लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन .


 (स) लृट लकार, उत्तम पुरूष, बहुवचन


 (द) लोट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन


खण्ड-ब (वर्णनात्मक प्रश्न)50 अंक


प्रश्न 21. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक के नीचे दिये गये प्रश्नो के उत्तर दीजिए।3x2=6


(क) अश्वारोही पास आया। ममता ने रूक-रूक कहा मैं नहीं जानती कि वहशंहशाह था या साधारण मुगल पर एक दिन इसी झोपड़ी के नीचे वह रहा। मैने सुना था कि वह मेरा घर बनवाने की आज्ञा दे चुका था। मैं आजीवन अपनी झोपडी के खोदे जाने के डर से भयभीत रही। भगवान ने सुन लिया, मैं आज इसे छोड़े जाती है। तुम इसका मकान बनाओं या महल में अपने चिर-विश्राम ग्रह में जाती हूँ !


(क) प्रस्तुत अवतरण का सन्दर्भ लिखिए।

सन्दर्भ -प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘ममता’ शीर्षक कहानी से उदघृत है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। ममता सत्तर वर्ष की वृद्धा थी। वह बीमार और मरणासन्न थी। उसी समय उसकी झोपड़ी के द्वार पर एक घुड़सवार आया। वह उस स्थान को तलाश रहा था जहाँ कभी हुमायूँ ने रात बिताई थी।


(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

व्याख्या–ममता ने घुड़सवार की बात सुन ली थी। उसने उसको अपने पास बुलाया। घुड़सवार उसके पास आया तो ममता ने अटक-अटक कर उसको बताया कि वह जिस स्थान को तलाश रहा है, वह यही स्थान है। इसी झोपड़ी में कभी एक मुगल सैनिक ने रात में विश्राम किया था। उसको यह नहीं पता कि वह साधारण मुगल था या कोई बादशाह था। उसने सुना था कि उसने ममता का घर बनवाने की आज्ञा दी थी। आज ईश्वर ने उसकी बात सुन ली है। उसका बुलावा आ गया है। वह इस झोपड़ी को छोड़कर जा रही है। अब वे लोग इसका मकान बनाएँ या महल, यह उनकी मर्जी है। वह तो अपने स्थायी निवास स्थान अर्थात् परलोक जा रही है। यह कहते-कहते ममता ने प्राण त्याग दिए। उस स्थान पर एक अत्यन्त ऊँचा आकाश को छूने वाला भव्य आठ कोने वाला भवन बनाया गया। उस पर एक पत्थर लगा था, जिसमें यह लिखा था-यहाँ बादशाह हुमायूँ ने एक रात विश्राम किया था। उस घटना को यादगार बनाने के लिए उसके पुत्र अकबर ने इस आकाश को चूमने वाले ऊँचे भवन को बनवाया है। इस शिलालेख में ममता का नाम कहीं नहीं था। 


(ग) 'चिर' विश्राम-ग्रह से क्या आशय है?

उत्तर – परलोक 

                         (अथवा)


(ख) कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सदवृत्ति का ही नाश नहीं करता बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी, तो वह उसके पैरो में बंधी चक्की के समान होगी जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जायेगी. और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली वाहु के समान होगी, जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।


(क) प्रस्तुत अवतरण के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।


 (ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(ग) युवा पुरुष की संगति के बारे में क्या कहा गया है?


प्रश्न 22. निम्नलिखित पद्यांशों में से किसी एक के नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए।3x2=6


(क) पुर ते निकसी रघुवीर-बन्धु, धीरे-धीर दर मग में डग है। झलकी भारि भाल कनी, जल की पुट सुखि गये मधुराधर है ।। फिरि बूझति है चलनों अब केतिक पर्णकुटी करि हौ कित है। तिम की लखि आतुरता पिय की आँखिया अति चारू चली जल ।।


अ) श्री राम के नेत्रों से आँसू क्यों बहने लगे?

उत्तर – वनवास में सीता की स्थिति देख कर श्री राम के नेत्रों से आसू बहने लगे थे


ब) प्रस्तुत पद्यांश की सन्दर्भ हिन्दी में व्याख्या कीजिए तथा काव्य सौन्दर्भ भी स्पष्ट कीजिए।

सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’  से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित ‘वन-पथ पर’ शीर्षक कविता से अवतरित है। 


व्याख्या-राम, लक्ष्मण और सीता बड़े धीरज के साथ श्रृंगवेरपुर से आगे दो कदम ही चले थे कि सीताजी के माथे पर पसीने की बूंदें झलकने लगीं और उनके सुन्दर होंठ थकान के कारण सूख गये। तब सीताजी ने अपने प्रियतम राम से पूछा–अभी  हमें कितनी दूर और चलना पड़ेगा? कितनी दूरी पर पत्तों की कुटिया बनाकर रहेंगे? अन्तर्यामी श्रीराम, सीताजी की व्याकुलता का कारण तुरन्त समझ गये कि वे बहुत थक चुकी हैं और विश्राम करना चाहती हैं। राजमहल का सुख भोगने वाली अपनी पत्नी की ऐसी दशा देखकर श्रीराम के सुन्दर नेत्रों से आँसू टपकने लगे ।


काव्यगत सौन्दर्य- ⦁    प्रस्तुत पद में सीताजी की सुकुमारता का मार्मिक वर्णन किया गया है।


 ⦁    सीता के प्रति राम के प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है। 


⦁    भाषा–सरस एवं मधुर ब्रज। ‘दये मग में डग द्वै’ मुहावरे का उत्कृष्ट प्रयोग है। इसी के कारण अत्युक्ति अलंकार भी है। 


⦁    शैली-चित्रात्मक और मुक्त


 ⦁    छन्द-सवैया। 


⦁    लंकार-माथे पर पसीने की बूंदों के आने, होंठों  के सूख जाने में स्वभावोक्ति तथा ‘केतिक पर्णकुटी करिहौ कित’ में अनुप्रास 


 ⦁    शब्दशक्ति–लक्षण एवं व्यंजना। 


रस-शृंगार।


 ⦁    गुण–प्रसाद एवं माधुर्य।


स) किस कारण सीता जी के माथे पर पसीना आ रहा था और होंठ सूख गये थे?

उत्तर – जंगलों में पैदल चलने के कारण उनकी ऐसी स्थिति हो रही थी 

                         (अथवा)

(ख) मेरे जीवन का आज मूक तेरी छाया से हो मिलायः


तन तेरी साधकता छू लें।

मन ले करूणा की धाक नाप ।

उर में पावस द्ग में विहान ।


अ) प्रस्तुत पद्यांश की ससंदर्भ हिन्दी में व्याख्या कीजिए तथा काव्य-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए।


ब) कवियित्री अपनी जीवन को हिमालय के समान जीना चाहती है। इस कथन से क्या तात्पर्य है।


स) कवियित्री ने क्या कामना व्यक्त की है ?


प्रश्न 23. (क) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का जीवन-परिचय तथा उनकी किसी एक रचना का नाम लिखिए। 5


(अ) जयशंकर प्रसाद 


(ब) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद 


(द) रामचन्द्र शुक्ल 


उत्तर (अ) जयशंकर प्रसाद

जीवन परिचय –जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उनका जन्म 1890 ई. में काशी के  'सुँघनी साहू' नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके यहाँ तम्बाकू का व्यापार होता था। उनके पिता देवीप्रसाद और पितामह शिवरत्न साहू थे। इनके पितामह परम शिवभक्त और दयालु थे। उनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य प्रेमी थे। प्रसाद जी का बचपन सुखमय था। बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थों की यात्राएँ कीं। यात्रा से लौटने के बाद पहले उनके पिता का और फिर चार वर्ष पश्चात् ही उनकी माता का निधन हो गया।


प्रसाद जी की शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण का प्रबन्ध उनके बड़े भाई शम्भूरत्न ने किया और क्वीन्स कॉलेज में उनका नाम लिखवाया, किन्तु उनका मन वहाँ न लगा। उन्होंने अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन स्वाध्याय से घर पर ही प्राप्त किया। उनमें बचपन से ही साहित्यानुराग था। वे साहित्यिक पुस्तकें पढ़ते और काव्य रचना करते रहे। पहले तो उनके भाई उनकी काव्य-रचना में बाधा डालते रहे, परन्तु जब उन्होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्य-रचना में अधिक लगता है, तब उन्होंने इसकी पूरी स्वतन्त्रता उन्हें दे दी। प्रसाद जी स्वतन्त्र रूप से काव्य-रचना के मार्ग पर बढ़ने लगे। इसी बीच उनके बड़े भाई शम्भूरन जी का निधन हो जाने से घर की स्थिति खराब हो गई। व्यापार भी नष्ट हो गया। पैतृक सम्पत्ति बेचने से कर्ज से मुक्ति तो मिली,पर वे क्षय रोग का शिकार होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में 15 नवम्बर, 1937 को इस संसार से विदा हो गए।


रचनाएँ –  जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के स्वनाम धन्य रत्न हैं। उन्होंने काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है।


'कामायनी' जैसे विश्वस्तरीय महाकाव्य की रचना करके प्रसादजी ने हिन्दी साहित्य को अमर कर दिया। कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई अद्वितीय रचनाओं का सृजन किया। नाटक के क्षेत्र में उनके अभिनव योगदान के फलस्वरूप नाटक विधा में 'प्रसाद युग' का सूत्रपात हुआ। विषय वस्तु एवं शिल्प की दृष्टि से उन्होंने नाटकों को नवीन दिशा दी। भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय भावना, भारत के अतीतकालीन गौरव आदि पर आधारित 'चन्द्रगुप्त', 'स्कन्दगुप्त' और 'ध्रुवस्वामिनी' जैसे प्रसाद-रचित नाटक विश्व स्तर के साहित्य में अपना बेजोड़ स्थान रखते हैं। काव्य के क्षेत्र में वे छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक कवि थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं


काव्य –  आँसू, कामायनी, चित्राधार, लहर और झरना।


कहानी – आँधी, इन्द्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि।


उपन्यास – तितली, कंकाल और इरावती।


नाटक –  सज्जन, कल्याणी - परिणय, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, प्रायश्चित, जनमेजय का नागयज्ञ, विशाखा, ध्रुवस्वामिनी आदि।


निबन्ध काव्य-कला एवं अन्य निबन्ध।


भाषा-शैली –  प्रसाद जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है। भावमयता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग न के बराबर हुआ है। प्रसाद जी ने विचारात्मक, चित्रात्मक, भावात्मक, अनुसन्धानात्मक तथा इतिवृत्तात्मक शैली का प्रयोग किया है।


हिन्दी साहित्य में स्थान

युग प्रवर्तक साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने गद्य और काव्य दोनों ही विधाओं में रचना करके हिन्दी साहित्य को अत्यन्त समृद्ध किया है। 'कामायनी' महाकाव्य उनकी कालजयी कृति है, जो आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ रचना कही जा सकती है।


अपनी अनुभूति और गहन चिन्तन को उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। हिन्दी साहित्य में जयशंकर प्रसाद का स्थान सर्वोपरि है।


(ख) निम्नलिखित कवियों में से किसी एक कवि का जीवन-परिचय लिखिए तथा उनकी किसी एक रचना का नाम लिखिए।


(अ) सूरदास


(ब) सुमित्रानन्दन पंत


 (स) बिहारी लाल


उत्तर –(अ) सूरदास

जीवन परिचय- भक्तिकालीन महाकवि सूरदास का जन्म 'रुनकता' नामक ग्राम में 1478 ई० में पंडित राम दास जी के घर हुआ था। पंडित रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान् 'सीही' नामक स्थान को सूरदास का जन्म स्थल मानते हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे या नहीं, इस संबंध में भी विद्वानों में मतभेद है।


विद्वानों का कहना है कि बाल-मनोवृत्तियों एवं चेष्टाओं का जैसा सूक्ष्म वर्णन सूरदास जी ने किया है, वैसा वर्णन कोई जन्मांध व्यक्ति कर ही नहीं सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे संभवत बाद में अंधे हुए होंगे। वे हिंदी भक्त कवियों में शिरोमणि माने जाते हैं।


सूरदास जी एक बार बल्लभाचार्य जी के दर्शन के लिए मथुरा के गऊघाट आए और उन्हें स्वरचित एक पद गाकर सुनाया, बल्लभाचार्य ने तभी उन्हें अपना शिष्य बना लिया। सूरदास की सच्ची भक्ति और पद रचना की निपुणता देखकर बल्लभाचार्य ने उन्हें श्रीनाथ मंदिर का कीर्तन भार सौंप दिया, तभी से वह मंदिर उनका निवास स्थान बन गया। सूरदास जी विवाहित थे तथा विरक्त होने से पहले वे अपने परिवार के साथ ही रहते थे।


वल्लभाचार्य जी के संपर्क में आने से पहले सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे तथा बाद में अपने गुरु के कहने पर कृष्णलीला का गान करने लगे। सूरदास जी की मृत्यु 1583 ई० में गोवर्धन के पास 'पारसौली' नामक ग्राम में हुई थी।


साहित्यिक परिचय- सूरदास जी महान काव्यात्मक प्रतिभा से संपन्न कवि थे। कृष्ण भक्ति को ही इन्होंने काव्य का मुख्य विषय बनाया। इन्होंने श्री कृष्ण के सगुण रूप के प्रति शाखा भाव की भक्ति का निरूपण किया है। इन्होंने मानव हृदय की कोमल भावनाओं का प्रभावपूर्ण चित्रण किया है। अपने काव्य में भावात्मक पक्ष और कलात्मक पक्ष दोनों पर इन्होंने अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है।


कृतियां या रचनाएं - भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी, जिनमें से केवल आठ से दस हजार पद ही प्राप्त हो पाए हैं। 'काशी नागरी प्रचारिणी' सभा के पुस्तकालय में ये रचनाएं सुरक्षित हैं। पुस्तकालय में सुरक्षित रचनाओं के आधार पर सूरदास जी के ग्रंथों की संख्या 25 मानी जाती है, किंतु इनके तीन ग्रन्थ ही उपलब्ध हुए हैं, जो अग्रलिखित हैं-


1. सूरसागर- यह सूरदास जी की एकमात्र प्रमाणिक कृति है। यह एक गीतिकाव्य है, जो 'श्रीमद् भागवत' ग्रंथ से प्रभावित है। इसमें कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धव- गोपी संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है।


"साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर कि सारावली ।

श्री कृष्ण जी की बाल छवि पर लेखनी अनुपम चली"


2. सूरसारावली- यह ग्रंथ सूरसागर का सारभाग है, जो अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किंतु यह भी सूरदास जी की एक प्रमाणिक कृति है। इसमें 1107 पद हैं।


3. साहित्यलहरी- इस ग्रंथ में 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है तथा इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है। कहीं-कहीं श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर 'महाभारत' की कथा के अंशों की झलक भी दिखाई देती है।


भाषा शैली:- सूरदास जी ने अपने पदों में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है तथा इनके सभी पद गीतात्मक हैं, जिस कारण इनमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। इन्होंने सरल एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। उनका काव्य मुक्तक शैली पर आधारित है। व्यंग वक्रता और वाग्विदग्धता सूर की भाषा की प्रमुख विशेषताएं हैं। कथा वर्णन में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। दृष्टकूट पदों में कुछ किलष्टता अवश्य आ गई है।


हिंदी साहित्य में स्थान- सूरदास जी हिंदी साहित्य के महान् काव्यात्मक प्रतिभासंपन्न कवि थे। इन्होंने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं और प्रेम-लीलाओं का जो मनोरम चित्रण किया है, वह साहित्य में अद्वितीय है। हिंदी साहित्य में वात्सल्य वर्णन का एकमात्र कवि सूरदास जी को ही माना जाता है, साथ ही इन्होंने विरह-वर्णन का भी अपनी रचनाओं में बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है।


सूरदास का विवाह - कहा जाता है कि सूरदास जी ने विवाह किया था। हालांकि इनकी विवाह को लेकर कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं लेकिन फिर भी उनकी पत्नी का नाम रत्नावली माना गया है। कहा जाता है कि संसार से विरक्त होने से पहले सूरदास जी अपने परिवार के साथ ही जीवन व्यतीत किया करते थे।


सूरदास के गुरु - अपने परिवार से विरक्त होने के पश्चात सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे। कवि सूरदास के मुख से भक्ति का एक पद सुनकर श्री वल्लभाचार्य ने अपना शिष्य बना लिया। जिसके बाद वह कृष्ण भगवान का स्मरण और उनकी लीलाओं का वर्णन करने लगे। साथ ही वह आचार्य वल्लभाचार्य के साथ मथुरा के गऊघाट पर स्थित श्री नाथ के मंदिर में भजन-कीर्तन किया करते थे। महान कवि सूरदास आचार्य वल्लभाचार्य के प्रमुख शिष्य में से एक थे। और यह अष्टछाप कवियों में भी सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते हैं।


श्री कृष्ण गीतावली - कहा जाता है कि कवि सूरदास ने प्रभावित होकर ही तुलसीदास जी ने महान ग्रंथ श्री कृष्ण गीतावली की रचना की थी। और इन दोनों के बीच तब से ही प्रेम और मित्रता का भाव बढ़ने लगा था।


सूरदास का राजघराने से संबंध - महाकवि सूरदास के भक्ति में गीतों की गूंज चारों तरफ फैल गई थी। जिसे सुनकर स्वयं महान शासक अकबर भी सूरदास की रचनाओं पर मुग्ध हो गए थे। जिसने उनके काम से प्रभावित होकर अपने यहां रख लिया था। आपको बता दें कि सूरदास के काव्य की ख्याति बनने के बाद हर कोई सूरदास को पहचानने लगा। ऐसे में अपने जीवन के अंतिम दिनों को सूरदास ने ब्रज में व्यतीत किया, जहां रचनाओं के बदले उन्हें जो भी प्राप्त होता। उसी से सूरदास अपना जीवन बसर किया करते थे।



प्रश्न 24. (क) निम्नलिखित में से किसी एक का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए 3+2=5


(अ) एषा नगरी भारतीसंस्कृतेः संस्कृतभाषायाश्च केन्द्रस्थली अस्ति। इत एव संस्कृतवाड्यमयस्य संस्कृतेश्च आलोकः सर्वत्र प्रसृतः । मुगलयुवराजः दाराशिकोह : आत्रागत्य भारतीय-दर्शन-शास्त्राणाम् अव्ययनम् अकरोत् । स तेषां ज्ञानेन तथा प्रभावितः अभवत् यत तेन उपनिषदाम् अनुवादः पारसी भाषायां कारितः ।


उत्तर –

हिन्दी में अनुवाद –यह शहर भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा का केंद्र है। यहीं से संस्कृत भाषा और संस्कृति का आलोक सर्वत्र फैला। मुगल राजकुमार दाराशिकोह: यहां आए और भारतीय दर्शन का अध्ययन किया। वह उनके ज्ञान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया।


              (अथवा)


(ब) मानव जीवनस्य संस्करण संस्कृतिः । अस्माकं पूर्वजाः मानव जीवन संस्कृर्त महान्त प्रयत्नम अकुर्वन। ते अस्माकं जीवनस्य संस्करणाय यान आचारान् विचारान् च अदर्शयन् तत् सर्वम अस्माक संस्कृतिः ।


हिन्दी में अनुवाद –संस्कृति, मानव जीवन का एक संस्करण। हमारा मानव जीवन को संस्कारित करने के लिए पूर्वजों ने बहुत प्रयास किए। उन्होंने हमें उन रीति-रिवाजों और विचारों को दिखाया जिन्होंने हमारे जीवन को आकार दिया और यही हमारी संस्कृति है।


(ख) निम्नलिखित संस्कृत पद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए। 3+2=5


अ) अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः । अमुखः स्फुटवक्ता च यो जानाति स पण्डितः ।। 


उत्तर –वह जो खतरे को जानता है और दूरगामी और साक्षर है और एक बुद्धिमान व्यक्ति नहीं है और स्पष्ट बोलने वाला व्यक्ति एक बुद्धिमान व्यक्ति है। 


                      (अथवा)


ब) उत्तरं यत् समुदस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।

वर्ष सोम्यैकेन नरवानिकृन्तनेन यत्र सन्ततिः ।।

उत्तर –उत्तर जो समुद्र और हिमालय के दक्षिण में है। जिस वर्ष एक चन्द्रमा द्वारा मानव वन को काटकर संतान उत्पन्न की जाती है


(ग) अपनी पाठ्य पुस्तक 'संस्कृत' खण्ड से कण्ठस्थ किया हुआ कोई एक श्लोक लिखिए जो इस प्रश्न पत्र पर न आया हो।


(ख) किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए।

2+2=4


(अ) पुरूराजः कः आसीत् ?


(ब) ग्रामीणान् कः उपाहसत् ?


(स) वाराणसी नगरी केषां सड्गमस्थली अस्ति ?


 (द) अस्माकं संस्कृते कः नियम?


प्रश्न 25. निम्न में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए।


(अ) प्रदूषण


(ब) स्वदेश प्रेम


(स) नारी शिक्षा का महत्व


(द) भारतीय किसान


उत्तर –एक भारतीय किसान


संकेत 1. परिचय, 2. घर, 3. शिक्षा, 4. दैनिक जीवन, 5. आनंद का स्रोत, 6. सुधार का प्रयास।



1. परिचय- भारत एक कृषि प्रधान देश है।  इसके अधिकांश लोग गांवों में रहते हैं।  इसके लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है।  भारतीय किसान आम तौर पर एक साधारण आदमी है।  वह खद्दर की धोती और कुर्ता पहनते हैं।  उसे उदास होने का समय नहीं मिलता क्योंकि वह हमेशा अपने काम में व्यस्त रहता है।


 2. घर- वह मेहनती है फिर भी वह गरीब है।  कई किसान झोपड़ियों में रहते हैं।  कुछ मिट्टी के बने साधारण घरों में रहते हैं।  उन पर छप्पर लगे हैं।  वे बहुत छोटे हैं।  वे हवादार नहीं हैं।  कुछ धनी किसानों ने पक्के मकान बना लिए हैं।


3. शिक्षा- किसान प्राय: अशिक्षित और अनपढ़ होता है। उनका ज्ञान पुराने विचारों पर आधारित है।  वह अंधविश्वासी है।  अब कई किसान खेती के नए तरीके जानने की कोशिश करते हैं।  वे उर्वरकों और कीटनाशकों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं।


 4. दैनिक जीवन- एक किसान प्राय: सुबह जल्दी उठ जाता है।  वह अपने बैलों और हल के साथ अपने खेत में जाता है।  वह काम करना शुरू कर देता है और तब तक काम करता है जब तक कि दोपहर में उसकी पत्नी उसके लिए खाना नहीं लाती।  वह अपना भोजन करता है और फिर कुछ देर आराम करता है।  फिर वह अपना काम शुरू करता है।  वह शाम तक काम करता रहता है और शाम को वह घर लौट आता है।  भारतीय किसान का जीवन ऐसा ही है।


 5. भोग भोगने का स्त्रोत- रात के समय वह चौपाल जाता है।  वह गाने और नाटकों का आनंद लेता है।  कभी वह हुक्का पीता है।  उन्हें आल्हा-ऊदल की कहानियाँ अच्छी लगती हैं।  कभी-कभी वह मेलों में भी जाता है।


 6. सुधार के प्रयास- किसान हमारे समाज की रीढ़ है।  उसकी दशा के सुधार पर ही देश की उन्नति होती है।  इसलिए सरकार को उनकी हालत में सुधार करना चाहिए।


प्रश्न 26. स्वपठित खण्डकाव्य के आधार पर प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण लिखिए।


(अथवा)


स्वपठित खण्ड काव्य का सारांश लिखिए।






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