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प्रेमचंद्र द्वारा रचित 'बलिदान' कहानी का सारांश || Balidan Kahani Ka Saransh

प्रेमचंद्र द्वारा रचित बलिदान कहानी का सारांश || Balidan Kahani Ka Saransh 

प्रेमचंद्र द्वारा रचित"बलिदान" कहानी का सारांश (कथानक)

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बलिदान कहानी का सारांश

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट www.Bandana classes.com पर । आज की पोस्ट में हम आपको " प्रेमचंद्र द्वारा रचित बलिदान कहानी का सारांश || Balidan Kahani Ka Saransh " के बारे में बताएंगे तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए।

"बलिदान" कहानी


प्रेमचंद्र हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कथाकार हैं। 'बलिदान' इन्हीं के द्वारा रचित मुख्य कहानी है। इस कहानी की कथावस्तु ग्राम परिवेश से ली गई है। इसमें ग्रामीण श्रमिक तथा किसान वर्ग की अपने खेतों और खेती के प्रति एकनिष्ठता , लग्न समर्पण और स्नेह की भावना को दर्शाया गया है। इस की कथावस्तु में बताया गया है कि जिस जमीन पर किसान खेती करता है, चाहे उसका स्वामी कोई अन्य व्यक्ति ही क्यों न हो, वह उसके लिए केवल आजीविका का स्रोत ही नहीं होती ,वरन् उसका सर्वस्व होती है। वह जमीन उसकी मान प्रतिष्ठा होती है, जिसकी रक्षा के लिए वह अपना सबकुछ गवाने के लिए तत्पर रहता है। वह स्वयं अपने लिए रोटी कपड़ा और मकान का अभाव झेलता है। बीमार होने पर स्वयं उपेक्षा करके अपने इलाज पर वह भले ही एक फूटी कौड़ी खर्च ना करता हो, किंतु अपनी खेती के लिए वह अपनी सारी हस्ती मिटा देता है। यही इस कहानी की कथावस्तु है, जिस के विस्तार के लिए लेखक ने किसान हरखू और उसके बेटे गिरधारी को लेकर बलिदान कथा का ताना-बाना बुना है।


'बलिदान' कहानी का सारांश (कथानक)


आज का हरखू कई साल पहले हरखचन्द्र कुर्मी हुआ करता था। उस समय उसके यहां शक्कर बनती थी कारोबार खूब फैला था; कई हल की खेती होती थी। देश में विदेशी शक्कर के आने से उसका कारोबार मटिया मेट हो गया और वह हरखचन्द्र से हरखू हो गया। आज उसके पास केवल 5 बीघा जमीन है और केवल एक हल की खेती है। मगर उसका स्वाभिमान आज भी 20 साल पुराना ही है। इसीलिए गांव की पंचायतों में आज भी उसकी सम्मती सम्मान की दृष्टि से देखी जाती है। वह जो बात कहता है, बेलाम कहता है और गांव के अनपढ़ उसके सामने मुंह नहीं खोलते। हरखू ने अपने जीवन में कभी दवा न खाई थी। ऐसा नहीं था कि वह कभी बीमार ही न होता था। वह हर साल कुवांर के महीने में मलेरिया से पीड़ित होता था, किंतु बिना दवा खाए ही 5-10  दिन में चंगा हो जाता था। इस बार वह कार्तिक में बीमार पड़ा तो ठीक ही न हुआ और अंततः उसने खटिया पकड़ ली। उसे लगने लगा कि अब चलने के दिन आ गए।


1 दिन मंगल सिंह उसे देखने गए और बोले -'बाबा' बिना दवा खाए अच्छे न होगे; कुनैन क्यों नहीं खाते?

हरखू ने उदासीन भाव से उत्तर दिया- "तो लेते आना" अगले दिन कालिकादीन ने आकर कहा- 'बाबा '2-4 दिन कोई दवा खा लो। अब तुम्हारी जवानी की देह थोड़े हैं कि बिना दवा दर्पन के अच्छे हो जाओगे? हरखू ने फिर उसी मंद भाव से कहा- "तो लेते आना" मगर यह सब बातें केवल शिष्टाचार और संवेदना का हिस्सा थी। बिना पैसे लिए किसी ने हरखू को दवा न लाकर दी और न हरखू ने दवा के दाम देने की बात किसी से कही। अंततः 5 महीने कष्ट भोगने के बाद ठीक होली के दिन हरखू ने शरीर त्याग दिया। उसके पुत्र गिरधारी ने खूब धूमधाम से उसका क्रिया कर्म किया।


हरखू के उपजाऊ खेत 3-3 फसलें देते थे; अतः सभी गांव वालों की नजर उन पर लगी थी। सभी जमीदार लाला ओमकारनाथ उकसाने लगे दुगना लगान और बड़ी रकम नजराना पेशगी लेकर गिरधारी से खेत छुड़वाने के लिए। एक दिन जमीदार ने गिरधारी को बुलाकर कहा- तुम ₹8 बीघे पर जोतते थे, मुझे ₹10 मिल रहे हैं और नजराने के रुपए सो अलग। तुम्हारे साथ रियायत करके लगान वही रखता हूं; पर नजराने के रुपए तुम्हें देने पड़ेंगे। गिरधारी ने नजराने की रकम देने में असमर्थता व्यक्त की तो जमीदार ने उसे चेतावनी दे दी की अगर 1 हफ्ते के अंदर नजराने की रकम दाखिल करोगे तो खेत जोतने पाओगे , नहीं तो नहीं; मैं दूसरा प्रबंध कर दूंगा।


गिरधारी और उसकी पत्नी सुभागी दोनों खेतों के हाथ से निकलने की चिंता में घुलने लगे। नजराने के सौ रुपए का प्रबंध करना उनके काबू से बाहर था; क्योंकि वह पहले से ही कर्जदार था। जेवर के नाम पर एकमात्र हसली साल भर से गिरवी पड़ी थी। सप्ताह बीत जाने पर भी गिरधारी रुपयों का बंदोबस्त न कर सका। आठवें दिन उसे मालूम हुआ कि कालिकादीन ने ₹100 नजराना देकर ₹10 बीघा लगान पर खेत ले लिए। यह सुनकर गिरधारी बिलख- बिलख कर रोने लगा। उस दिन उसके घर में चूल्हा न जला।


सुभागी ने लड़-झगड़कर कालिकादीन से खेत लेने चाहे, किन्तु असफल हुई। गिरधारी अपने पुराने दिनों की याद उस दिन कर-करके दुःखी होकर रोता रहता। लोग उसे समझाते कि तुमने पिता के क्रिया-कर्म में व्यर्थ इतने रुपये उड़ा दिए। यह सुनकर उसे बहुत दुःख होता। उसे अपने किए पर तनिक भी पछतावा न था। वह कहता "मेरे भाग्य में जो लिखा है। वह होगा; पर दादा के ऋण से उऋण हो गया। उन्होंने जिन्दगी में चार बार खिलाकर खाया। क्या मरने के पीछे इन्हें पिण्डे-पानी को तरसाता?” इस प्रकार आषाढ़ आ पहुँचा। वर्षा हुई तो सभी किसान अपनी खेतीबाड़ी में व्यस्त हो। यह सब बातें देख-सुनकर गिरधारी जलहीन मछली की तरह तड़पता। 


गिरधारी ने अभी तक अपने बैल न बेचे थे। तुलसी बनिये ने अपने रुपये के लिए धमकाना आरम्भ कर दिया। मंगलसिंह ने नालिश की बात कहकर उसे और डरा दिया। अन्त में मंगलसिंह ने उसकी 80 रुपये की जोड़ी का 60 रुपये में सौदाकर बैल खरीद लिये। बैलों के जाने पर पूरा परिवार फूट-फूटकर रोया। उस रात को गिरधारी ने कुछ न खाया। प्रातःकाल उसकी पत्नी सुभागी ने उसे चारपाई पर न पाया, उसने सोचा कहीं गए होंगे। दिन ढले तक भी घर न लौटने पर चारों ओर उसकी खोज हुई, किन्तु गिरधारी का पता न चला। सन्ध्या-समय अँधेरा छा जाने पर सुभागी ने गिरधारी के सिरहाने दीया जलाकर रख दिया। अचानक सुभागी को आहट मालूम हुई। उसने देखा गिरधारी बैलों की नाँद के पास सिर झुकाए खड़ा है। सुभागी यह कहती हुई उसकी ओर बढ़ी कि वहाँ खड़े क्या कर रहे हो, आज सारे दिन कहाँ रहे? गिरधारी ने कोई उत्तर न दिया । वह पीछे हटने लगा और थोड़ी दूर जाकर गायब हो गया। सुभागी चिल्लाई और मूच्छित होकर गिर पड़ी। अगले दिन कालिकादीन जब अँधेरे-अँधेरे खेतों पर हल जोतने पहुँचा तो उसने वहाँ गिरधारी को खड़े पाया। वह गिरधारी की ओर बढ़ा तो वह पीछे हटकर कुएँ में कूद गया। कालिकादीन डरकर बैलों को वहीं छोड़कर गाँव आ गया। सारे गाँव में शोर मच गया। कालिकादीन की हिम्मत फिर गिरधारी के खेतों की ओर जाने की न हुई। उसने गिरधारी के खेतों से इस्तीफा दे दिया। ओंकारनाथ के चाहने पर भी उसके खेत न उठ सके। अब गाँव के लोग उन खेतों का नाम लेने से भी डरते हैं।


बलिदान कहानी के प्रमुख पात्र गिरधारी का चरित्र- चित्रण-


प्रेमचंद द्वारा लिखित बलिदान कहानी का प्रमुख पात्र गिरधारी है। उसके पिता हरखू शक्कर के व्यापारी से परिस्थितिवश किसान बन जाते हैं। हरखू दीर्घकाल तक अस्वस्थ रह कर परलोक सिधार जाता है। गिरधारी जमा पूंजी से उसकी अंत्येष्टि करता है। उसकी चारित्रिक विशेषताएं निम्न प्रकार है-


1. सेवा भावना से युक्त-गिरधारी में सेवा भावना विद्यमान है। अपने पिता के बीमार होने पर वह उनकी हर प्रकार से तीमारदारी करता है ।कभी नीम के सीकें पिलाता, कभी गुर्च का संत , कभी गदापूरना की जड़ इससे स्पष्ट होता है कि गिरधारी में सेवा भावना का गुण विद्यमान था।


2. सरल हृदय- गिरधारी सरल हृदय वाला व्यक्ति हैं। जब मंगल सिंह तुलसी के बारे में उससे कहता है कि यह बड़ा बदमाश है, कहीं नालिश ना कर दे तो सरल हृदय गिरधारी मंगल सिंह के बहकावे में आ जाता है। और मंगल को भी अच्छा सौदा बहुत सस्ते में मिल जाता है।


3. आर्थिक अभाव से ग्रस्त- गिरधारी ने समस्त जमा पूंजी से अपने पिता की विधिवत अंत्येष्टि की थी, इस कारण से उसके सामने पर्याप्त आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था। वह कई लोगों का कर्जदार हो गया और गांव के लोग उससे कटने लगे थे।


4. भाग्यवादी- गिरधारी अपने पिता की अंत्येष्टि में अपनी सारी जमा पूंजी व्यय कर देता है। इससे उसके सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। वह दो समय की रोटी के लिए भी परेशान हो जाता है। जब उसके पड़ोसी उससे कहते हैं कि तुमने अंत्येष्टि में व्यर्थ पैसा खर्च किया है इतना पैसा खर्च नहीं करना चाहिए था तो वह कहता है मेरे भाग्य में जो लिखा है वह होगा।


5- अंतर्द्वंद का शिकार- गिरधारी खेत को अपनी मां समझता है। से उसका अमिट लगाव है । उसके जाने का सबसे बड़ा दुख होता है। जब उसके हाथ से उसकी जमीन खिसक जाती है तो, वह अंतर्द्वंद का शिकार होकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। वह यह नहीं सोच पाता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं? इसी मानसिक स्थिति में वह अपने बैल भी बेच देता है।


6. परिश्रमी और सत्यवादी- बलिदान कहानी का प्रमुख पात्र गिरधारी परिश्रमी और सत्यवादी है। उसके परिश्रमी होने का गुण लेखक के इस कथन से स्पष्ट होता है, खेत गिरधारी के जीवन के अंश हो गए थे। उनकी एक एक अंगुल भूमि उसके रक्त से रंगी हुई थी। उनका एक एक परमाणु उसके पसीने से तर हो गया था। सत्यवादिता का गुण इसकी इस बात से स्पष्ट झलकता है की जब वह ओंकारनाथ के पास जाता है तो कहता है "सरकार मेरे घर में तो इस समय रोटियों का भी ठिकाना नहीं है कितने रुपए कहां से लाऊंगा।"


Frequently Asked Questions


Q.बलिदान कहानी का उद्देश्य क्या है?


उत्तर-बलिदान कहानी का मूल उद्देश्य जमींदारों, कृषक और श्रमिक तीनों के बीच के दारुण संबंधों को जनसामान्य के सम्मुख स्पष्ट करना है।


Q.बलिदान कहानी के लेखक कौन है?


उत्तर- बलिदान कहानी के लेखक मुंशी प्रेमचंद है।


Q.बलिदान कहानी के आधार पर हरखू का चरित्र चित्रण कीजिए।


उत्तर- प्रेमचंद्र द्वारा लिखित बलिदान कहानी एक ऐसे कृषक हरखू की कहानी है जो पूर्णरूपेण गांव के जमींदार पर आश्रित है और बहुत समय से जमीदार की जमीन जोतता आया है उसकी मृत्यु हो जाती है और उसका पुत्र गिरधारी उसकी अंत्येष्टि करता है आर्थिक अभाव के कारण जमीदार की 20 वर्षों से ज्योति गई जमीन को नजराना देकर नहीं ले पाता है।


Q. बलिदान कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?


उत्तर- इस कहानी की कथावस्तु ग्रामीण परिवेश से ली गई है इसमें ग्रामीण श्रमिकों तथा किसान वर्ग की अपने खेतों और खेती के प्रति एक निष्ठता, लगन,  समर्पण और स्नेह की भावना को दर्शाता है।


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