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शिक्षण कौशल (Teaching skills) / shikshan kaushal

शिक्षण कौशल (Teaching skills) || shikshan kaushal


शिक्षण कौशल (Teaching skills) || shikshan kaushal




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>पाठ्य योजना निर्माण की प्रमुख विधियां

शिक्षण एक अन्य: क्रियात्मक प्रक्रिया है जिसमें दो व्यक्ति अध्यापक व छात्र दोनों मिलकर अपने विचारों का आदान - प्रदान करते हैं।


अर्थात सीखने और सिखाने की कला शिक्षण कहलाती है। इस कला को आगे बढ़ाने के लिए एक अध्यापक जिन व्यवहारिक तौर तरीको या माध्यमों का प्रयोग करता है। उन्हें शिक्षण कौशल कहा जाता है।


शिक्षण कौशल के जनक ऐलेन तथा रॉयन थे ।


इन्होने 14 प्रकार के शिक्षण कौशलों की व्याख्या की है।


जबकि प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक  V. K. पासी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Becoming better teacher में  13 शिक्षण कौशल मानें हैं।


जबकि NCERT  ने शिक्षण कौशलो  की संख्या 7 मानी है। 


1- अनुदेशनात्मक उद्देश्य लेखन कौशल (instructional aims writing skill )-


2-पाठ प्रस्तावना कौशल (skill of introducing )-


3- प्रश्न कौशल ( skill of questioning)-


4-विवरण अथवा कथन कौशल (skill of narration)-


5-स्पष्टीकरण कौशल (skill of explaining)-


6- दृष्टांत कौशल( skill of illustration)-


7- उद्दीपन या उद्दीपक परिवर्तन कौशल (stimulus variation skill)-


8- श्यामपट्ट लेखन कौशल (blackboard writing skill)-


9- पुनर्बलन कौशल( reinforcement skills)-


10- छात्र सहभागिता कौशल (student participation skills)-


11- प्रदर्शन कौशल (demonstration skills)-


12- पाठ समापन कौशल (


13- कक्षा कक्ष प्रबंधन कौशल (classroom management skill)-


>सूक्ष्म शिक्षण किसे कहते।

1-अनुदेशनात्मक उद्देश्य लेखन कौशल (instructional aims writing skills)-


 अनुदेशनात्मक उद्देश्य वे उद्देश्य होते हैं जिनको शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के द्वारा व्यवहारिक रूप से प्राप्त किया जा सकता सकता है।


>कोठारी कमीशन


अनुदेशनात्मक उद्देश्यों में शिक्षा तथा शिक्षण के उद्देश्यों को शामिल किया जाता है अर्थात जिन उद्देश्यों को आधार मानकर एक शिक्षक अपने प्रकरण को अपने छात्रों को पढ़ाता है। तथा उन उद्देश्यों का हमारे व्यवहारिक जीवन में क्या प्रयोग होता है। उन्हें ही अनुदेशनात्मक उद्देश्य कहा जाता है। ( सामान्य उद्देश्य, विशिष्ठ उद्देश्य) शामिल होते है । इन उद्देश्यों का सम्बन्ध ज्ञानात्मक ,भावात्मक तथा क्रियात्मक इन तीनों से  होता है।


2- पाठ प्रस्तावना कौशल (skill of introducing)-


प्रस्तावना प्रश्नों का प्रयोग किसी भी पाठ को प्रारम्भ करने से पहले किया जाता है । इससे विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान का पता चलता है, साथ ही साथ पढाए जाने वाले प्रकरण वाले प्रकारण के प्रति सामान्य जानकारी का भी पता चलता है।


>क्रियात्मक अनुसंधान किसे कहते हैं परिभाषा और भेद

प्रस्तावना में न्यूनतम 3 प्रश्न तथा अधिकतम 5 प्रश्न बनाए जाते हैं । इन प्रश्नों के द्वारा छात्रों के पूर्व से नवीन अधिगम प्रक्रिया को जोड़ते हुए शिक्षण कार्य किया जाता है। साथ ही साथ अन्तिम प्रश्न जोकि समस्यात्मक होता है। उसके द्वारा छात्रों में एकाग्रता, रुचि, तथा तत्परता का विकास किया जाता है।


  • पाठ प्रस्तावना कौशल के घटक (Component of introducing skill)


(i) पूर्वज्ञान से सम्बन्धित प्रश्नों का प्रयोग


 (ii) प्रश्नों का प्रकरण से सम्बन्धित होना 


(iii) सभी प्रश्नों में क्रमबद्धता होना 


(iv)उत्तर प्राप्त करने के लिए छात्रों को प्रश्न के स्तर के आधार पर समय देना 


(v) उचित दृश्य-श्रव्य सामाग्री का प्रयोग


(vi) प्रश्नों का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो प्रकरण को या पाठ के मूल स्वरूप को प्रकट करे


3- प्रश्न कौशल  (skill of Questioning)-


शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रश्नों का विशेष महत्व होता प्रश्नों के आधार पर ही अध्यापक अपने प्रकरण को आगे बढ़ाते है। तथा उस पूरे प्रकरण से छात्रो जोड़े रखते है ।


प्रकरण के बीच- बीच में प्रश्न कौशल का प्रयोग करने से छात्रों में उस पाठ के प्रति रुचि या तत्परता बनी रहती है। साथ ही साथ छात्रों की सीखने या ग्रहण करने की क्षमता का विकास होता है। 


प्रश्न कौशल का प्रयोग करते समय प्रश्नों का स्वरूप तथा प्रश्न पूछने के तरीके पर विशेष ध्यान देना चाहिए ।


   •प्रश्न कौशल के घटक (component of questioning)-


(i) प्रश्नों का स्वरूप छोटा होना चाहिए अर्थात लम्बे-लम्बे प्रश्नों का प्रयोग नही करना चाहिए।


(ii) प्रश्न सदैव छात्रों की आयु तथा उनके स्तर के अनुकूल होने चाहिए | सभी प्रश्नों मे तारतम्यता ,क्रमबद्धता होनी चाहिए।


(iii)  प्रश्न सदैव विषय वस्तु से सम्बन्धित होने चाहिए


(iv) प्रश्नों का वितरण कक्षा में समान मात्रा में होना चाहिए। अर्थात प्रत्येक बालक से व्यक्तिगत रूप से प्रश्न पूछना  चाहिए । कक्षा में कभी भी सामूहिक प्रश्नों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।


(v) जहां तक सम्भव हो हाँ, नहीं वाले तथा सत्य, असत्य वाले प्रश्नों का प्रयोग नही करना चाहिए या बहुत ही कम मात्रा में करना चाहिए।


(vi) कौशल में ऐसे प्रश्नों को पूछना चाहिए जो बच्चों में तार्किक क्षमता तथा चिन्तन कौशल का विकास सके। 


(vii) प्रश्नों की बार-बार पुनरावृत्ति नहीं करनी चाहिण 


4 - विवरण अथवा कथन कौशल (Skill of Narration]:


शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में किसी विषय वस्तु को या सूचनाओं को क्रम से समझाने के लिए विवरण कौशल का प्रयोग किया जाता है ।


प्रायः यात्रा का वर्णन तथा कहानी कहने में विवरण या कथन कौशल का प्रयोग ही किया जाता है। इस कौशल के द्वारा किसी विचार तथ्य या प्रकरण की क्रमबध्द घटनाओं को व्यक्त करने में सहायता मिलती है।


इस कौशल के द्वारा विद्यार्थियों के मस्तिष्क में किसी के विचार घटना या कहानी का स्पष्ट चित्र अंकित हो जाता है । और वे उस ज्ञान को आसानी से समझ लेते हैं।


> सामाजिक विषयों के अध्यापन में भी मुख्यतः विवरण कौशल का ही प्रयोग किया जाता है। 


  •विवरण कौशल के घटक (component of narration skill)


(i) विवरण कौशल से सम्पूर्ण प्रकरण स्पष्ठ हो जाता है। तथा छात्र बहुत ही कम समय में उस पूरे प्रकरण को आसानी से समझ लेते है ।


(ii) विवरण को छात्र पूरे ध्यान से सुनते हैं जिससे उनमें जिज्ञासा का विकास होता है।


5. स्पष्टीकरण कौशल (Skill of Explaniny )


 शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जब शिक्षक अपने छात्रों को किसी प्रकरण या तथ्य को समझाने के लिए सरल से सरल भाव विचार या अपनी भाषा के द्वारा क्रमिक व तार्किक रूप से विषय वस्तु को प्रस्तुत करते है तो उसे स्पष्टीकरण कौशल कहते हैं । स्पष्टीकरण से तात्पर्य भाव तथा अर्थ को स्पष्ट करना है ।


   •स्पष्टीकरण कौशल के घटक (component of explaining skill)



(i) स्पष्टीकरण के लिए व्यवहारिक भाषा का प्रयोग करना चाहिए।


(ii) उदाहरण के रूप में व्यवहारिक उदाहरणों का या परिवेश से जुड़े हुए उदाहरणों का प्रयोग करना चाहिए ।


(iii) स्पष्ठ निष्कर्ष वाले कथनों का प्रयोग करना चाहिए।


(iv) स्पष्टीकरण में छात्रों की सहभागिता भी होनी चाहिए।



6- दृष्टांत कौशल (Skill of illardration): 


किसी जटिल, कठिन प्रकरण को समझाने के लिए जब एक अध्यापक सरल से सरल भाव विविध उदाहरण चित्र मुहावरे का प्रयोग करके उस प्रकरण की सरलतम व्याख्या करते है। तो इसे दृष्टांत कौशल कहते हैं । इससे छात्र रुचिपूर्ण ढंग से उस प्रकरण को ग्रहण करते या सीखते है।


*उदाहरणों में न केवल प्रकरण को स्पष्ट करने की क्षमता होती हैं बल्कि यह ज्ञान को स्थाई भी बनाते है । 


दृष्टांत कौशल दो प्रकार के होते है - 


• शाब्दिक/ मौखिक दृष्टांत कौशल (verbal illustration)


•अशाब्दिक/ दृश्य दृष्टांत (Non verbal / visual illustration)


शाब्दिक/ मौखिक दृष्टांत कौशल (verbal illustration)-


शाब्दिक दृष्टान्त में कहानी कहना ,चुटकुले सुनाना, मुहावरे कहना तथा कविता पाठ करना।


अशाब्दिक कौशल/non verbal illustration :- 


अशाब्दिक दृष्टान्त में मॉडल, चित्र, मानचित्र तथा रेखाचित्र का प्रयोग किया जाता है।


   •दृष्टांत कौशल के घटक  component of illustration:


(i) सरल एंव व्यवहारिक दृष्टान्तो का प्रयोग


(ii) रोचक दृष्यन्तो का प्रयोग 


(iii) पाठ के विकास में सहायक दृष्टांतों  का प्रयोग 



7- उद्यीपन परिवर्तन कौशल (Slimulous - Variation Skill)-


शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान एक शिक्षक के द्वारा अपनाई जाने वाली वैचारिक प्रस्तुति, हावभाव, शरीर के अंगो का संचालन, स्वर तथा वाणी में उतार- चढ़ाव तथा मौन भाव अभिव्यक्ति के तौर तरीके उद्दीपन परिवर्तन कौशल के अन्तर्गत आते हैं।


प्रायः शिक्षक अपने प्रकरण को आकर्षक तथा रूचिकर बनाने के लिए विविध उद्दीपनों का प्रयोग जैसे - पढ़ाते समय छात्रों के समीप जाना, आँख, मुख, हाथ इत्यादि का प्रयोग करना तथा स्वर में उतार चढ़ाव करना आदि का प्रयोग करते है।


इस कौशल का मुख्य उदेश्य छात्रों की रूचि को बढ़ाने के साथ साथ उनके ध्यान को आकर्षित व केन्द्रित करना है।


    उद्दीपन परिवर्तन कौशल के घटक (component of stimulus variation skill)



(i) यथोचित शरीर का संचालन करना


(ii) स्वर में उतार -चढ़ाव करना


(iii) मौन तथा विराम का प्रयोग करना


(iv) मौलिक एवं दृश्य व्यवस्था में परिवर्तन 


(v) शिक्षक, शिक्षार्थी वार्तालाप में परिवर्तन


8- श्यामपट्ट लेखन कौशल ( Black-boarol writing skill):


शिक्षण अधिगम में श्यामपट्ट का प्रयोग बहुत ही प्राचीन समय से किया जा रहा है ।


•श्यामपट का मानक रंग हरा होता है है ।


•श्यामपट्ट पढ़ाए जाने वाले विषयवस्तु के स्पष्टीकरण व्याख्या एवं चित्रमय प्रस्तुतिकरण के लिए अत्यन्त प्रभावी दृश्य साधन है ।


•श्यामपट्ट का प्रयोग करना एक कला है प्रत्येक अध्यापक को इस कला में निपुण होना चाहिए।


•श्यामपट्ट पर सदैव श्यामपट्ट के बायीं ओर खड़े होकर 45° का कोण बनाते हुए लिखना चाहिए ताकि लिखित अंश सभी छात्रों को दिखाई दे ।


•श्यामपट्ट पर लेख सुन्दर, आकर्षक, स्पन्न, तथा पठनीय होना चाहिए ।


• श्यामपट्ट का लेख एक सीधी पक्ति में होना चाहिए ।


• अक्षरो का आकार समान, सुडौल, तथा एक अक्षर से दूसरे अक्षर के मध्य पर्याप्त दूरी होनी चाहिए ।


•विशिष्ठ तथ्यों को दर्शाने के लिए रंगीन चॉक का प्रयोग करना चाहिए | लिखते समय चॉक की आवाज नही आनी चाहिए ।


•श्यामपाट पर लिखते समय बीच में बीच में छात्रों पर ध्यान (दृष्टि )डालनी चाहिए । 


•कक्षा समाप्ति के बाद लिखित अंश मिटा देना चाहिए।


 9. पुनर्बलन कौशल  (Reinforcement skill) - 


पुनर्बलन कौशल के प्रवर्तक - स्किनर थे ।


पुनर्बलन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके प्राप्त होने पर छात्रों में अभिप्रेरणा का विकास हो जाता है । और बालक के सीखने की गति अपने आप बढ़ जाती है । 


पुनर्बलन दो प्रकार का होता है-


1. सकारात्मक / धनात्मक पुनर्बलन-


इसमें प्रसंशा , प्रोत्साहन,पुरस्कार ,साबासी इत्यादि का प्रयोग करने के साथ- साथ साकारत्मक शब्दों जैसे- तुमने बहुत अच्छा किया है तुम और बेहतर कर सकते हो।


2- नकारात्मक /ऋणात्मक पुनर्बलन :


इसमें दण्ड, निंदा, आलोचना इत्यादि के साथ - साथ न ,नहीं, तुम नहीं कर सकते, अब तुमसे नही होगा अब तुम रहने दो, इस प्रकार के कथनो का प्रयोग किया जाता है।


     •पुनर्बलन कौशल के घटक( component of reinforcement skill)


(i)छात्रों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं को स्वीकार करना।


(ii) छात्रो द्वारा दिए जाने वाले सही उत्तरो को ब्लैक बोर्ड में लिखना


छात्रों के प्रयासो को मौन स्वीकृति से स्वीकार करना धीरे- धीरे छात्रों के समीप जाना तथा उनके प्रयासों की सराहना करना करना।


10- छात्र सहभागिता कौशल (Student participation skills)-


 शिक्षण वास्तव में एक अन्तः क्रियात्मक प्रक्रियात्मक है जिसमें छात्र और अध्यापक और अध्यापक दोनों आगे बढ़ाते हैं। शिक्षण प्रक्रिया में जब अध्यापक अपने सभी छात्रों को सक्रिय रूप से कक्षा की गतिविधियों में सहभागी बनाते है। तो इसी छात्र सहभागिता कौशल कहा है। जाता


यह कौशल गतिविधि या क्रिया केन्द्रित होता है। इसमें बालक शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही रुप में सक्रियता के साथ सीखने का प्रयास करता है।


जैसे -एक अध्यापक जीव विज्ञान पढ़ाने के लिए स्वयं सभी बच्चों को एक बोटल में पेड़ लगाकर | उसमें होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त कर करने के लिए कहता है। इसके पश्चात् स्वयं उन पाठ को पढ़ाता है।


11. प्रदर्शन कौशल (Demonstration skills)-


प्रदर्शन का अर्थ है दिखाना सब अध्यापक किसी प्रकरण को पढ़ाने के लिए उससे सम्बन्धित मॉडल ,नमूना ,प्रतिरूप को छात्रों के समक्ष प्रदर्शित करता है  तो इसे प्रदर्शन कौशल कहते है । मुख्य रूप से विज्ञान विषय के शिक्षण में प्रदर्शन कौशल का प्रयोग किया जाता है ।


इसीलिए विज्ञान की पुस्तक में आओ करके सीखें लिखा होता है।


    •प्रदर्शन कौशला के घटक (component of demonstration skill)


(i) प्रदर्शन की शैली स्पष्ठ होनी चाहिए।


(ii) प्रदर्शन की समाग्री या यन्त्रों की उपलब्धता 


(iii) प्रदर्शित समाग्री का प्रकरण से सम्बन्ध


(iv).   उचित दृश्य - श्रव्य समाग्रियो का प्रयोग । 


 12. : पाठ- समापन कौशल -


जिस प्रकार शिक्षण प्रक्रिया का प्रारम्भ प्रभावी होना चाहिए ठीक उसी प्रकार उसका समापन भी उतना ही आकर्षक व रोचक होना चाहिए ताकि बालक सीखें हुए सभी बिन्दुओ को अपने मस्तिष्क में धारण कर सके तथा उसका प्रयोग भी कर सके।


पाठ समापन कौशल के घटक-


•छात्रों की सहायता से पाठ के मुख्य बिंदुओं को श्यामपट्ट पर लिखना।


•पुनरावृति वाले प्रश्नों का प्रयोग करना।


•छात्रों से प्रकरण के निष्कर्ष को प्राप्त करना।


•उस संपूर्ण प्रकरण को छात्रों को अपने शब्दों में अभिव्यक्त करने के लिए कहना।


13- कक्षा कक्ष प्रबंध कौशल (classroom management skill)-


कक्षा कक्ष प्रबंध से तात्पर्य कक्षा के आंतरिक तथा वाह्य दोनों ही गुणों से लिया जाता है कक्षा कक्ष का प्रबंध जितना बेहतर होता है छात्र उतनी ही सहजता से सीखने का प्रयास करते हैं।


1- कक्षा का वातावरण आकर्षक होना चाहिए-

रंगाई पुताई T.L.M. तथा बैठने की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि अध्यापक सभी छात्रों को समान रूप से देख सके।


2-सीखने की परिस्थितियां - सकारात्मक होनी चाहिए अर्थात अध्यापक के द्वारा शिक्षण कार्य इस प्रकार किया जाना चाहिए कि सभी छात्र उसमें शामिल हो सकें।


शिक्षण कौशलों का एकीकरण-


इस कौशल में ऐसा माना जाता है कि सभी शिक्षण कौशल किसी ना किसी प्रकार से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं अतः एक कुशल अध्यापक को सभी शिक्षा कौशलों के मुख्य बिंदुओं को एक दूसरे से जोड़ते हुए शिक्षण कार्य करना चाहिए।



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