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UP Board Class 11th Hindi literature Model Paper 2023 || कक्षा 11वीं साहित्यिक हिंदी मॉडल पेपर यूपी बोर्ड परीक्षा 2023

UP Board Class 11th Hindi literature Model Paper 2023 || कक्षा 11वीं साहित्यिक हिंदी मॉडल पेपर यूपी बोर्ड परीक्षा 2023

UP Board Class 11th Hindi literature Model Paper full solution 2023 || कक्षा 11वीं साहित्यिक हिंदी मॉडल पेपर संपूर्ण हल यूपी बोर्ड परीक्षा 2023

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यूपी बोर्ड वार्षिक परीक्षा 2023

कक्षा - 11वी 


विषय – साहित्यिक हिन्दी



समय : 3.00 घण्टे                        पूर्णांक : 100


निर्देश सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।


1. (क) 'हंस' पत्रिका के संपादक हैं-1


(i) जयशंकर प्रसाद


(ii) महादेवी वर्मा


 (iii) प्रेमचन्द


(iv) सुमित्रानन्दन पंत 

उत्तर –(iii) प्रेमचन्द


(ख)प्रेम सागर के लेखक हैं 1


(i) सदासुखलाल 'नियाज'


 (ii) सदल मिश्र


(iii) इंशा अल्ला खाँ


 (iv) लल्लूलाल 

उत्तर –(iv) लल्लूलाल 


(ग) खड़ी बोली हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है 1


(i) प्रियप्रवास 


(ii) कामायनी 


(iii) पद्मावत


 (iv) पृथ्वीराज रासो 

उत्तर –(i) प्रियप्रवास 


(घ) हिन्दी का प्रथम रिपोर्ताज है 1


(i) लक्ष्मीपुरा


(ii) तूफानों के बीच


(iii) युद्धयात्रा


(iv) बंगाल का अकाल

उत्तर –(i) लक्ष्मीपुरा


(ङ) भारतेन्दु युग का कवि नहीं है -1


(i) बद्रीनारायण चौयरी 'प्रेमधन' 


(ii) राधाकृष्ण दास


(iii) जगमोहन सिंह


(iv) रामचरित उपाध्याय

उत्तर –(iv) रामचरित उपाध्याय


2. (क) द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि हैं 1


(i) आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी


(ii) मैथिलीशरण गुप्त


 (iii) लोचन प्रसाद पाण्डेय 


(iv) जगन्नाथ दास रत्नाकर

उत्तर–(ii) मैथिलीशरण गुप्त


(ख) जंजीर और दीवारें किस विधा की रचना है?1


(i) रेखाचित्र 


(ii) यात्रा वृत्तान्त 


(iii) संस्मरण 


(iv) आत्मकथा 

उत्तर–(iii) संस्मरण 


(ग)'प्रयोगवाद' की समय-सीमा क्या है?

उत्तर – प्रयोगवादी युग की अवधि 1943 ई. से 1953 ई. तक मानी जाती है।


(घ)'प्रगतिवाद' के प्रवर्तक कवि हैं।


(i) नागार्जुन


(ii) त्रिलोचन सिंह


(iii) केदारनाथ अग्रवाल 


(iv) शिवमंगल सिंह 'सुमन'

उत्तर –(ii) त्रिलोचन सिंह


(ङ)'आधुनिक युग की मीरा' के नाम से प्रसिद्ध कवयित्री हैं- 1

(i) मीराबाई


(ii) सुभद्रा कुमारी चौहान


(iii) महादेवी वर्मा


(iv) सुमनराजे

उत्तर –(iii) महादेवी वर्मा


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3.निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 5x2=10


महामहिम भगवान मधुसूदन जिस समय कल्पांत में समस्त लोकों का प्रलय, बात की बात में कर देते हैं, उस समय अपनी समधिक अनुरागवती श्री (लक्ष्मी) को धारण करके उन्हें साथ लेकर क्षीर-सागर में अकेले ही जा विराजते हैं। दिन चढ़ आने पर महिमामय भगवान भास्कर भी, उसी तरह एक क्षण में, सारे तारा-लोक का संहार करके, अपनी अतिशायिनी श्री (शोभा) के सहित, क्षीर-सागर के समान में, देखिए, अब यह अकेले ही मौज कर रहे हैं।


(क)  प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए। 

उत्तर –प्रस्तुत गद्यावतरण हिन्दी के युग-प्रवर्तक साहित्यकार आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित ‘महाकवि माघ का प्रभात-वर्णन’ नामक निबन्ध से लिया गया है।

(ख)रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या: प्रभातकाल में सूर्योदय के होने पर सारा दृश्य ही बदल जाता है। उस समय लेखक के सम्मुख प्रलयकाल का सो दृश्य उपस्थित हो जाता है। वह कल्पना करता है कि कल्पान्त में भगवान विष्णु भी जब तीनों लोकों को नष्ट कर अपनी प्रेममयी पत्नी लक्ष्मी के साथ क्षीरसागर में अकेले ही शोभित होते हैं।


(ग) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने सूर्य, उसकी आभा एवं आकाश को किससे समान चित्रित किया है?"

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने सूर्य को भगवान विष्णु, सूर्य की आभा को लक्ष्मी एवं आकाश को क्षीरसागर के समान चित्रित किया है।


(घ) भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को लेकर कहाँ विराजते है?

उत्तर –भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को लेकर क्षीरसागर में विराजते हैं।


(ड.)गद्यांश में किस समय के सीन्दर्य का आलंकारिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है?

उत्तर– गद्यांश में सूर्योदय होने पर चन्द्रमा एवं तारों के अदृश्य होने पर आकाश में अकेले सूर्य एवं उसकी प्रभा के सौन्दर्य का आलंकारिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है।


अथवा


आत्म साक्षात्कार का मुख्य साधन योगाभ्यास है। योगाभ्यास सिखाने का प्रबन्ध राज्य नहीं कर सकता, न पाठशाला का अध्यापक ही उसका दायित्व ले सकता है। जो इस विद्या का खोजी होगा वह अपने लिए गुरु ढंढ लेगा। परन्तु इतना किया जा सकता है और यही समाज और अध्यापक का कर्तव्य है कि व्यक्ति के अधिकारी बनने में सहायता दी जाय, अनुकूल

वातावरण उत्पन्न किया जाय। 


(क)उपर्युक्त पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।


(ख)रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए। 


(ग)आत्म साक्षात्कार का मुख्य साधन किसे बताया गया है?


(घ)समाज और अध्यापक का क्या कर्तव्य है? 


(ड)योगाभ्यास का खोजी किसे ढूँढ लेगा?


4.निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए 5x2=10 


मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै ।।

जैसे उडि जहाज को पच्छी, फिर जहाज पर आवै 

कमल नेन की छाड़ महत्तम, और देव की ध्यावै ।

परम गंग की छोड़ि पियासी, दुरमति कूप खनावै

 जिहिं मधुकर अंबुज- रस चाख्यौ, क्यों करील-फल भावे । सूरदास प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुढावे ।।


(क) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।

उत्तर –सूरदास के पद,सूरदास


(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर –महाकवि सूरदास श्री कृष्ण के अनन्य भक्त हैं। वे कहते हैं, मेरा मन श्री कृष्ण के अतिरिक्त कहीं और सुखी नहीं रह सकता। कभी  मन भटका भी तो फिर से थक हार कर श्री कृष्ण के पास ही लौट आता है। जैसे बीच समुद्र में जहाज़ का पंछी  यदि उड़कर किनारे जाना चाहता है, लेकिन किनारे नहीं मिलने पर पुनः लौट कर उसी जहाज पर शरण पाता है। वहीं हाल मेरा है। कमल नैन भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर किसी और का ध्यान मैं क्यों करूं। पवित्र गंगा को छोड़ कर कुआं का पानी पीने वाले मूर्ख होता है। जो मधुकर कमल रस का पान कर लिया है वह करील जैसे करवा फल नहीं खाएगा। सूरदास जी कहते हैं कि कामधेनु को छोड़कर बकरी का दूध कौन लेगा। इसलिए मैं मेरा मन श्री कृष्ण के अलावा कहीं और देवताओं के पास नहीं जाता।


(ग) सूरदास किसकी भक्ति में परम सुख का अनुभव करते हैं? 

उत्तर – श्री कृष्ण की


(घ)जहाज का पक्षी किसे कहा गया है?

उत्तर – मन को 


(ड़)सूरदास ने भगवान कृष्ण की भक्ति को त्यागकर अन्य देवताओं की भक्ति करने को क्या बताया है?


5.(क) निम्नलिखित लेखकों में से किसी एक का जीवन परिचय दीजिए एवं भाषा शैली पर प्रकाश डालिए -2+2=4


(i) आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी


 (ii) डॉ० सम्पूर्णानन्द 


(iii) सरदार पूर्ण सिंह


(iv) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र


उत्तर –आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन-परिचय- हिन्दी साहित्य के अमर कलाकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई० (सं० 1921 वि०) में जिला रायबरेली में दौलतपुर नामक गाँव में हुआ था।


इनके पिता पं०रामसहाय द्विवेदी सेना में नौकरी करते थे । आर्थिक दशा अत्यन्त दयनीय थी। इस कारण पढ़ने-लिखने की उचित व्यवस्था नहीं हो सकी। पहले घर पर ही संस्कृत पढ़ते रहे, बाद में रायबरेली, फतेहपुर तथा उन्नाव के स्कूलों में पढ़े, परन्तु निर्धनता ने पढ़ाई छोड़ने के लिए विवश कर दिया।


द्विवेदी जी पढ़ाई छोड़कर बम्बई चले गये। वहाँ तार का काम सीखा। तत्पश्चात् जी०आई०पी० रेलवे में 22 रु० मासिक की नौकरी कर ली। अपने कठोर परिश्रम तथा ईमानदारी के कारण इनकी निरन्तर पदोन्नति होती गयी। धीरे-धीरे ये 150 रु० मासिक पाने वाले हैड क्लर्क बन गये। नौकरी करते हुए भी आपने अध्ययन जारी रखा। संस्कृत, अंग्रेजी तथा मराठी का-भी इन्होंने गहरा ज्ञान प्राप्त कर लिया। उर्दू और गुजराती में भी अच्छी गति हो गयी । बम्बई से इनका तबादला झाँसी हो गया । द्विवेदी जी स्वाभिमानी व्यक्ति थे। अचानक एक अधिकारी से झगड़ा हो जाने पर नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। इसके पश्चात् आजीवन हिन्दी साहित्य की सेवा में लगे रहे।


द्विवेदी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व, दोनों ही इतने प्रभावपूर्ण थे कि उस युग के सभी साहित्यकारों पर उनका प्रभाव था। वे युग-प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित हुए । हिन्दी साहित्य में वह युग (द्विवेदी युग) नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन् 1938 ई० (पौष कृष्णा 30 सं० 1995 वि०) में यह महान् साहित्यकार जगत् को शोकमग्न छोड़कर परलोक सिधार गया।


महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाएं

रचनाएँ - द्विवेदी जी की मुख्य रचनाएँ निम्नलिखित हैं (क) मौलिक रचनाएँ - अद्भुत - आलाप, रसज्ञ रंजन - साहित्य सीकर, विचित्र-चित्रण, कालिदास की निरंकुशता, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, साहित्य सन्दर्भ आदि ।

(ख) अनूदित रचनाएँ- रघुवंश, हिन्दी महाभारत, कुमारसम्भव, बेकन विचारमाला, किरातार्जुनीय शिक्षा एवं स्वाधीनता, वेणी संहार तथा गंगा लहरी आदि आपकी प्रसिद्ध अनूदित रचनायें हैं।


(ख) निम्नलिखित कवियों में से किसी एक का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए -2+2=4


(i) कविवर बिहारी


 (ii) सन्त कबीर


 (iii) सूरदास


 (iv) केशवदास 


उत्तर –(iii)सूरदास का जीवन परिचय- भक्तिकालीन महाकवि सूरदास का जन्म 'रुनकता' नामक ग्राम में 1478 ई० में पंडित राम दास जी के घर हुआ था। पंडित रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान् 'सीही' नामक स्थान को सूरदास का जन्म स्थल मानते हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे या नहीं, इस संबंध में भी विद्वानों में मतभेद है।


विद्वानों का कहना है कि बाल-मनोवृत्तियों एवं चेष्टाओं का जैसा सूक्ष्म वर्णन सूरदास जी ने किया है, वैसा वर्णन कोई जन्मांध व्यक्ति कर ही नहीं सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे संभवत बाद में अंधे हुए होंगे। वे हिंदी भक्त कवियों में शिरोमणि माने जाते हैं।


सूरदास जी एक बार बल्लभाचार्य जी के दर्शन के लिए मथुरा के गऊघाट आए और उन्हें स्वरचित एक पद गाकर सुनाया, बल्लभाचार्य ने तभी उन्हें अपना शिष्य बना लिया। सूरदास की सच्ची भक्ति और पद रचना की निपुणता देखकर बल्लभाचार्य ने उन्हें श्रीनाथ मंदिर का कीर्तन भार सौंप दिया, तभी से वह मंदिर उनका निवास स्थान बन गया। सूरदास जी विवाहित थे तथा विरक्त होने से पहले वे अपने परिवार के साथ ही रहते थे।


वल्लभाचार्य जी के संपर्क में आने से पहले सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे तथा बाद में अपने गुरु के कहने पर कृष्णलीला का गान करने लगे। सूरदास जी की मृत्यु 1583 ई० में गोवर्धन के पास 'पारसौली' नामक ग्राम में हुई थी।


साहित्यिक परिचय- सूरदास जी महान काव्यात्मक प्रतिभा से संपन्न कवि थे। कृष्ण भक्ति को ही इन्होंने काव्य का मुख्य विषय बनाया। इन्होंने श्री कृष्ण के सगुण रूप के प्रति शाखा भाव की भक्ति का निरूपण किया है। इन्होंने मानव हृदय की कोमल भावनाओं का प्रभावपूर्ण चित्रण किया है। अपने काव्य में भावात्मक पक्ष और कलात्मक पक्ष दोनों पर इन्होंने अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है।


कृतियां या रचनाएं - भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी, जिनमें से केवल आठ से दस हजार पद ही प्राप्त हो पाए हैं। 'काशी नागरी प्रचारिणी' सभा के पुस्तकालय में ये रचनाएं सुरक्षित हैं। पुस्तकालय में सुरक्षित रचनाओं के आधार पर सूरदास जी के ग्रंथों की संख्या 25 मानी जाती है, किंतु इनके तीन ग्रन्थ ही उपलब्ध हुए हैं, जो अग्रलिखित हैं-


1. सूरसागर- यह सूरदास जी की एकमात्र प्रमाणिक कृति है। यह एक गीतिकाव्य है, जो 'श्रीमद् भागवत' ग्रंथ से प्रभावित है। इसमें कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धव- गोपी संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है।


"साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर कि सारावली ।

श्री कृष्ण जी की बाल छवि पर लेखनी अनुपम चली"


2. सूरसारावली- यह ग्रंथ सूरसागर का सारभाग है, जो अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किंतु यह भी सूरदास जी की एक प्रमाणिक कृति है। इसमें 1107 पद हैं।


3. साहित्यलहरी- इस ग्रंथ में 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है तथा इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है। कहीं-कहीं श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर 'महाभारत' की कथा के अंशों की झलक भी दिखाई देती है।


भाषा शैली:- सूरदास जी ने अपने पदों में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है तथा इनके सभी पद गीतात्मक हैं, जिस कारण इनमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। इन्होंने सरल एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। उनका काव्य मुक्तक शैली पर आधारित है। व्यंग वक्रता और वाग्विदग्धता सूर की भाषा की प्रमुख विशेषताएं हैं। कथा वर्णन में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। दृष्टकूट पदों में कुछ किलष्टता अवश्य आ गई है।


हिंदी साहित्य में स्थान- सूरदास जी हिंदी साहित्य के महान् काव्यात्मक प्रतिभासंपन्न कवि थे। इन्होंने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं और प्रेम-लीलाओं का जो मनोरम चित्रण किया है, वह साहित्य में अद्वितीय है। हिंदी साहित्य में वात्सल्य वर्णन का एकमात्र कवि सूरदास जी को ही माना जाता है, साथ ही इन्होंने विरह-वर्णन का भी अपनी रचनाओं में बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है।


सूरदास का विवाह - कहा जाता है कि सूरदास जी ने विवाह किया था। हालांकि इनकी विवाह को लेकर कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं लेकिन फिर भी उनकी पत्नी का नाम रत्नावली माना गया है। कहा जाता है कि संसार से विरक्त होने से पहले सूरदास जी अपने परिवार के साथ ही जीवन व्यतीत किया करते थे।


सूरदास के गुरु - अपने परिवार से विरक्त होने के पश्चात सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे। कवि सूरदास के मुख से भक्ति का एक पद सुनकर श्री वल्लभाचार्य ने अपना शिष्य बना लिया। जिसके बाद वह कृष्ण भगवान का स्मरण और उनकी लीलाओं का वर्णन करने लगे। साथ ही वह आचार्य वल्लभाचार्य के साथ मथुरा के गऊघाट पर स्थित श्री नाथ के मंदिर में भजन-कीर्तन किया करते थे। महान कवि सूरदास आचार्य वल्लभाचार्य के प्रमुख शिष्य में से एक थे। 


6.'ध्रुवयात्रा' अथवा 'बलिदान' कहानी की कथावस्तु लिखिए। (80 शब्द) 4

उत्तर –बलिदान' कहानी का सारांश (कथानक)

आज का हरखू कोई बीस साल पहले हरखचंद्र कुरमी हुआ करता था। उस समय उसके यहां शक्कर बनती थी, कारोबार खूब फैला था; कई हल की खेती होती थी। देश में विदेशी शक्कर के आने से उसका कारोबार मटियामेट हो गया और वह हरखचंद्र से हरखू हो गया। आज उसके पास केवल 5 बीघा जमीन है और केवल एक हल की खेती है। मगर उसका स्वाभिमान आज भी 20 साल पुराना ही है। इसीलिए गांव की पंचायतों में आज भी उसकी संपत्ति सम्मान की दृष्टि से देखी जाती है। वह जो बात कहता है, बेलाग कहता है और गांव के अनपढ़ उसके सामने मुंह नहीं खोलते। हरखू ने अपने जीवन में कभी दवा ना खाई थी। ऐसा नहीं था कि वह कभी बीमार ही न होता था। वह हर साल कुंवार के महीने में मलेरिया से पीड़ित होता था, किंतु बिना दवा खाए ही 10-5 दिन में चंगा हो जाता था। इस बार वह कार्तिक में बीमार पड़ा तो ठीक ही ना हुआ और अंतत: उसने खटिया पकड़ ली। उसे लगने लगा कि अब चलने के दिन आ गए।


1 दिन मंगल सिंह से देखने गए और बोले - "बाबा, बिना दवा खाए अच्छे ना होंगे; कुनैन क्यों नहीं खाते?" हरखू ने उदासीन भाव से उत्तर दिया - "तो लेते आना।" अगले दिन कालिकादीन ने आकर कहा - "बाबा, दो-चार दिन कोई दवा खा लो। अब तुम्हारी जवानी की देह थोड़े है कि बिना दवा-दर्पन के अच्छे हो जाओगे?" हरखू ने फिर उसी मंद भाव से कहा - "तो लेते आना।" मगर ये सब बातें केवल शिष्टाचार और संवेदना का हिस्सा थीं। बिना पैसे लिए किसी ने हरखू को दवा न लाकर दी और न हरखू ने दवा के दाम देने की बात किसी से कही। अंततः 5 महीने कष्ट भोगने के बाद ठीक होली के दिन हरखू ने शरीर त्याग दिया। उसके पुत्र गिरधारी ने खूब धूमधाम से उसका क्रिया कर्म किया।


हरखू के उपजाऊ खेत 3-3 फसलें देते थे; अतः सभी गांव वालों की नजर उन पर लगी थी। सभी जमींदार लाला ओंकारनाथ को उकसाने लगे दोगुना लगान और बड़ी रकम नजराना पेशगी लेकर गिरधारी से खेत छुड़ाने के लिए। 1 दिन जमीदार ने गिरधारी को बुलाकर कहा - "तुम ₹8 बीघे पर जोतते थे, मुझे ₹10 मिल रहे हैं और नजराने के रुपए सो अलग। तुम्हारे साथ रियासत करके लगान वही रहता हूं; पर नजराने के रुपए तुम्हें देने पड़ेंगे। गिरधारी ने नजराने की रकम देने में असमर्थता व्यक्त की तो जमीदार ने उसे चेतावनी दे दी कि अगर 1 हफ्ते के अंदर नजराने की रकम दाखिल करोगे तो खेत जोतने जाओगे, नहीं तो नहीं; मैं दूसरा प्रबंध कर दूंगा।


अब गिरधारी और उसकी पत्नी सुभागी दोनों खेतों के हाथ से निकलने की चिंता में गुजरने लगे। नजराने के ₹100 का प्रबंध करना उनके काबू से बाहर था; क्योंकि वह पहले से ही कर्जदार था। जेवर के नाम पर एकमात्र हंसली सालभर गिरवी पड़ी थी। सप्ताह बीत जाने पर भी गिरधारी रुपयों का बंदोबस्त न कर सका। आठवें दिन उसे मालूम हुआ कि कालिकादीन ने ₹100 नजराना देकर‌ ₹10 बीघा लगान पर खेत ले लिए। यह सुनकर गिरधारी बिलख-बिलख कर रोने लगा। उस दिन उसके घर में चूल्हा ना जला।


सुभागी ने लड़-झगड़कर कालिकादीन से खेत लेने चाहे, किंतु असफल हुई। गिरधारी अपने पुराने दिनों को याद कर-करके दुखी होकर रोता रहता। लोग उसे समझाते कि तुमने पिता के क्रिया कर्म में व्यर्थ इतने रुपए उड़ा दिए। यह सुनकर उसे बहुत दुख होता। उसे अपने किए पर तनिक भी पछतावा ना था। वह कहता - "मेरे भाग्य में जो लिखा है वह होगा; पर दादा के ऋण से उऋण हो गया। उन्होंने जिंदगी में चार बार खिलाकर खाया। क्या मरने के पीछे इन्हें पिंडे-पानी को तरसाता?" इस प्रकार आषाण आ पहुंचा। वर्षा हुई तो सभी किसान अपनी खेती-बाड़ी में व्यस्त हो गए। यह सब बातें देख- सुनकर गिरधारी जल-हीन मछली की तरह तड़पता।


गिरधारी ने अभी तक अपने बैल न बेचे थे। तुलसी बनिए ने अपने रुपए के लिए धमकाना आरंभ कर दिया। मंगल सिंह ने नालिश की बात कहकर उसे और डरा दिया। अंत में मंगल सिंह ने उसकी ₹80 की जोड़ी का ₹60 में सौदा कर बैल खरीद लिए। बैलों के जाने पर पूरा परिवार फूट-फूटकर रोया। उस रात को गिरधारी ने कुछ खाया। प्रातः काल उसकी पत्नी सुभागी ने उसे चारपाई पर न पाया, उसने सोचा कहीं गए होंगे। दिन ढले तक भी घर न लौटने पर चारों ओर उसकी खोज हुई, किंतु गिरधारी का पता ना चला। संध्या समय अंधेरा छा जाने पर सुभागी ने गिरधारी के सिरहाने दीया जलाकर रख दिया। अचानक सुभागी को आहट मालूम हुई। उसने देखा गिरधारी बैलों की नांद के पास सिर झुकाए खड़ा है। सुभागी यह कहती हुई उसकी ओर बढी कि वहां खड़े क्या कर रहे हो, आज सारे दिन कहां रहे? गिरधारी ने कोई उत्तर ना दिया। वह पीछे हटने लगा और थोड़ी दूर जाकर गायब हो गया। सुभागी चिल्लाई और मूर्छित होकर गिर पड़ी। अगले दिन कालिका दीन जब अंधेरे-अंधेरे खेतों पर हल जोतने पहुंचा तो उसने वहां गिरधारी को खड़े पाया। वह गिरधारी की ओर बढ़ा तो वह पीछे हटकर कुएं में कूद गया। कालिकादीन डरकर बैलों को वहीं छोड़कर गांव आ गया। सारे गांव में शोर मच गया। कालिकादीन की हिम्मत फिर गिरधारी के खेतों की ओर जाने की ना हुई। उसने गिरधारी के खेतों से इस्तीफा दे दिया। ओंकार नाथ के चाहने पर भी उसके खेत ना उठ सके। अब गांव के लोग उन खेतों का नाम लेने से भी डरते हैं।


अथवा


"आकाशदीप' अथवा 'प्रायश्चित' कहानी के तथ्यों पर प्रकाश डालिए।


7. 'रश्मिरथी' के द्वितीय सर्ग का सारांश लिखो।

उत्तर –द्वितीय सर्ग

रंग-ढ़ंग से कर्ण को  यह ज्ञात हो चुका था कि द्रोणाचार्य निश्छ्ल होकर उसे धनुर्विद्या नहीं सिखाएँगे। इसलिए शस्त्रास्त्र सीखने को वह उस समय के महा-प्रतापी वीर परशुराम जी की सेवा में पहुँचा। परशुराम संसार से अलग होकर उन दिनों महेंद्रगिरि पर रहते थे।

अजिन, दर्भ, पालाश, कमंडलु-एक ओर तप के साधन,

एक ओर हैं टँगे धनुष, तूणीर, तीर, बरझे भीषण।

चमक रहा तृण-कुटी-द्वार पर एक परशु आभाशाली,

लौह-दण्ड पर जड़ित पड़ा हो, मानो, अर्ध अंशुमाली।


उनका प्रण था कि 'ब्राह्मणेतर जाति के युवकों को शस्त्रास्त्र की शिक्षा नहीं दूँगा।' किंतु, जब उन्होंने कर्ण का तेजोद्दीप्त शरीर और उसके कवच-कुण्डल देखे, तब उन्हें स्वंय भासित हुआ कि यह ब्राह्मण का बेटा होगा। कर्ण ने गुरु की इस भ्रांति का खण्डन नहीं किया। वह माँ के  पेट ही से सुवर्ण के कवच और कुण्डल पहने जनमा था।

मुख में वेद, पीठ पर तरकस, कर में कठिन कुठार विमल,

शाप और शर, दोनों ही थे, जिस महान् ऋषि के सम्बल।

यह कुटीर है उसी महामुनि परशुराम बलशाली का,

भृगु के परम पुनीत वंशधर, व्रती, वीर, प्रणपाली का। 


हाँ-हाँ, वही, कर्ण की जाँघों पर अपना मस्तक धरकर,

सोये हैं तरुवर के नीचे, आश्रम से किञ्चित् हटकर।

पत्तों से छन-छन कर मीठी धूप माघ की आती है,

पड़ती मुनि की थकी देह पर और थकान मिटाती है।


शस्त्रास्त्र की शिक्षा तो परशुराम जी ने उसे खूब दी, लेकिन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने भण्डाफोड़ कर दिया। बात यह हुई कि एक दिन परशुरान कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सोये हुए थे; इतने में एक कीड़ा उड़ता हुआ आया और कर्ण  की जंघा के नीचे घुसकर घाव करने लगा।

परशुराम गंभीर हो गये सोच न जाने क्या मन में,

फिर सहसा क्रोधाग्नि भयानक भभक उठी उनके तन में।

दाँत पीस, आँखें तरेरकर बोले- 'कौन छली है तू?

ब्राह्मण है या और किसी अभिजन का पुत्र बली है तू?


कर्ण  इस भाव से निश्चल बैठा रहा कि हिलने डुलने से गुरु की नींद उचट जाएगी। किंतु, कीड़े ने उसकी जाँघ में  ऐसा गहरा घाव कर दिया कि उससे लहू बह चला। पीठ में  गर्म लहू का स्पर्श पाते ही परशुराम जाग पड़े और सारी स्थिति समझते ही विस्मित हो रहे। उन्हें लगा, इतना धैर्य ब्राह्मण में कहाँ से आ सकता है? अवश्य ही,  कर्ण क्षत्रिय अथवा किसी अन्य जाति  का युवक है। कर्ण  सत्य को और छिपा नहीं सका तथा उसने गुरु के समक्ष सारी बातें स्वीकार  कर लीं। -

'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ?

कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ?

धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान?

जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान?

इस पर भी परशुराम शांत नहीं हुए और उन्होंने यह शाप दे डाला कि ब्रह्मास्त्र चलाने की जो शिक्षा मैंने दी है, उसे तू अंतकाल में भूल जाएगा - 

'मान लिया था पुत्र, इसी से, प्राण-दान तो देता हूँ,

पर, अपनी विद्या का अन्तिम चरम तेज हर लेता हूँ।

सिखलाया ब्रह्मास्त्र तुझे जो, काम नहीं वह आयेगा,

है यह मेरा शाप, समय पर उसे भूल तू जायेगा।

                      अथवा 

स्वपठित खण्डकाव्य 'रश्मिरथी' के आधार पर कर्ण अथवा कुन्ती के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।।


8. 'गरुड़ध्वज' नाटक के किसी एक अंक का कथानक लिखिए।।

उत्तर –प्रथम अंक – नाटक के प्रथम अंक में पहली घटना विदिशा में घटित होती है। विक्रममित्र स्वयं को सेनापति सम्बोधित कराते हैं, महाराज नहीं। विक्रममित्र के सफल शासन में प्रजा सुखी है। बौद्धों के पाखण्ड को समाप्त करके ब्राह्मण धर्म की स्थापना की गयी है। सेनापति विक्रममित्र ने वासन्ती नामक एक युवती का उद्धार किया है। उसके पिता वासन्ती को किसी यवन को सौंपना चाहते थे। वासन्ती; एकमोर नामक युवक से प्रेम करती है। इसी समय कवि और योद्धा कालिदास प्रवेश करते हैं। कालिदास; विक्रममित्र को आजन्म ब्रह्मचारी रहने के कारण भीष्म पितामह’ कहते हैं। विक्रममित्र इस समय सतासी वर्ष के हैं। इसी समय साकेत के एक यवन-श्रेष्ठी की कन्या कौमुदी का सेनापति देवभूति द्वारा अपहरण करने की सूचना विक्रममित्र को मिलती है। देवभूति कन्या को अपहरण कर उसे काशी ले जाते हैं। विक्रममित्र कालिदास को काशी पर आक्रमण करने की आज्ञा देते हैं।


अथवा


'गरुड़ध्वज' के आधार पर 'वासन्ती' अथवा आचार्य विक्रम मित्र का चरित्र चित्रण कीजिए।


                       (खण्ड ख )


9.निम्नलिखित संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का संदर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए।2+5=7


(क) राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचारे संलग्नं हिन्दी साहित्यसम्मेलनम् अवस्थितम् अत्रैव च अनेकसहस्रसंख्यैः देशविदेश विद्यार्थिभिः परिवृत्तः विविध विद्यापारङ्गत्तेः विद्वदुवरेण्यैः उपशोभितः च प्रयागविश्वविद्यालयः प्राचीन गुरुकुलस्य नवीनं रूपमिव शोभते। स्वतन्त्रेऽस्मिन् भारते प्रत्येक नागरिकाणां न्यायप्राप्तेरधिकारघोषणामिव कुर्वन् उच्चन्यायालयः अस्य नगरस्य प्रतिष्ठां वर्द्धयति 


हिन्दी में व्याख्या – राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार में लगा हिंदी साहित्य सम्मेलन यहां स्थित है। उच्च न्यायालय इस स्वतंत्र भारत में न्याय के लिए प्रत्येक नागरिक के अधिकार की घोषणा करके शहर की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है।


अथवा


भारत देशस्य सुविस्तृतायाम् उत्तरस्यां दिशि स्थिती गिरिः पर्वतराजी हिमालय इति नाम्नाभिधीयते जनैः । अस्य महोच्यानि शिखराणि जगतः सर्वानपि पर्वतानु जयन्ति। अतएव लोका एनं पर्वतराज कथयन्ति । अस्योषतानि शिराणि सदेव हिमः आच्चादितानि तिष्ठन्ति । अत एवास्य हिमालय इति हिमगिरिरित्यपि च नाम सुप्रसिद्धम् ।


उत्तर –भारत के उत्तरी भाग में पर्वत श्रृंखला को लोकप्रिय रूप से हिमालय के रूप में जाना जाता है। इसकी राजसी चोटियाँ दुनिया के सभी पहाड़ों को जीत लेती हैं। इसलिए लोग उन्हें पहाड़ों का राजा कहते हैं। इन महिलाओं के सिर हमेशा बर्फ से ढके रहते हैं। इसीलिए इसे हिमालय और हिमगिरि के नाम से भी जाना जाता है।


(ख) निम्नलिखित संस्कृत पद्यांशों में से किसी एक का संदर्भ सहित अनुवाद कीजिए 2+5=7


हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा मोक्ष्यते महीम् ।

तस्यादुत्तिष्ठ कौन्तेय ! युद्धाय कृत निश्चयः ।।


उत्तर – हे कुन्ती पुत्र! यदि तुम युद्ध करते हो फिर या तो तुम मारे जाओगे और स्वर्ग लोक प्राप्त करोगे या विजयी होने पर पृथ्वी के साम्राज्य का सुख भोगोगे। इसलिए हे कुन्ती पुत्र! उठो और दृढ़ संकल्प के साथ युद्ध करो।

अथवा


ब्रामे मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थी चानुचिन्तयेत् उत्थायचम्ये तिष्ठेत पूर्वा सन्ध्या कृताञ्जलिः ।।


10.निम्नलिखित प्रश्नों में दो को उत्तर संस्कृत में दीजिए- 2+2= 4 


(i) विद्या केन रक्ष्यते ?


(ii) गङ्गा-यमुनयोः संगमः कुत्र अस्ति?


 (iii) कस्य शोभा पर्यटकानां हृदयं मोहयति?


(iv) पिता कस्य तुल्यः भवति?


11. (क) करुण अथवा रौद्र रस की परिभाषा देते हुए उदाहरण दीजिए 2


(ख) दोहा अथवा हरिगीतिका छंद का लक्षण और परिभाषा दीजिए। 2 


(ग) उत्प्रेक्षा अथवा भ्रान्तिमान अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिए।2


12.निम्नलिखित दिये गये विषयों में से किसी एक विषय पर अपनी भाषा-शैली में निबन्ध लिखिए - 2+7=9


(i) जनसंख्या वृद्धि : एक समस्या 


(ii) परहित सरिस धर्म नहिं भाई अथवा


(iii) पर्यावरण संरक्षण


(iv) मेरी प्रिय पुस्तक


(v) राष्ट्र निर्माण में युवाशक्ति का योगदान

उत्तर(iii) पर्यावरण संरक्षण –स्वस्थ पर्यावरण हमारे स्वस्थ जीवन का आधार है।  उदाहरण के लिए स्वच्छ, रोगाणुहीन जल और वायु हमें स्वस्थ जीवन प्रदान करते हैं।  वर्तमान वैज्ञानिक युग में, उद्योगों के तीन विकासों ने बड़ी पर्यावरणीय समस्याएं पैदा की हैं।  औद्योगिक संयंत्रों से निकलने वाला दूषित पानी वहां के वातावरण को प्रदूषित करता है, जिससे कई बीमारियां होती हैं।  यही प्रदूषित पानी नदी में पहुंचकर वहां के पानी को प्रदूषित कर देता है।  इसी कारण सबसे पवित्र नदी गंगा का जल कई प्रकार से प्रदूषित हो गया है  गंगा जल को प्रदूषित करने के लिए एक राष्ट्रीय योजना तैयार की गई है और इसके अनुरूप प्रयास किए जा रहे हैं।


इसी तरह औद्योगिक संयंत्रों से निकलने वाली प्रदूषित हवा ने वातावरण को प्रदूषित किया।  यह अपने आसपास के लोगों को भी तरह-तरह की बीमारियाँ देकर बुरी तरह प्रभावित करता है।  तीव्र जनसंख्या वृद्धि ने महानगरीय क्षेत्रों में वायु और वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या पैदा कर दी है।  इस उद्देश्य के लिए, सरकार प्रभावी प्रवासन निर्धारित करती है।  हमें भी जितना हो सके अपने पर्यावरण को साफ करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि इसी तरह हम स्वच्छ वातावरण में खुशी से रह सकते हैं।


हम हवा, पानी और मिट्टी से ढके वातावरण में रहते हैं।  यह वह वातावरण है जो हम पर्यावरण के माध्यम से जीवन के लिए उपयोग की जाने वाली चीजों में पाते हैं।  जीवन में जल और वायु का बहुत महत्व है।  वर्तमान में पीने के साफ पानी की समस्या है।  अब हवा भी साफ नहीं है।  इसी तरह प्रदूषित वातावरण कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है।  पर्यावरण को बचाने की बहुत जरूरत है।  प्रदूषण के कई कारण हैं।  औद्योगिक अपशिष्ट - सामग्री - उच्च - शोर - वाहन का धुआं प्रमुख कारण हैं।  हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ लगाना चाहिए। हमें प्रदूषित पानी को नदियों और तालाबों में नहीं गिरने देना चाहिए। हमें तेल मुक्त वाहनों का उपयोग करना चाहिए।  लोगों को पौधे लगाना चाहिए और युवाओं को बनाए रखना चाहिए

 यह कहा जाता है।


13.(क) (i)'प्रत्याशा' का सन्धि-विच्छेद है - 1


(अ) प्रती + आशा


 (ब) प्रती + आसा


(स) प्रति + आसा


(द) प्रति + आशा


(ii)'रजनीश' का सन्धि-विच्छेद है -1


(अ) रजनि + ईश


(ब) रजनी + ईश 


(स) रजनी + इश


 (द) रजनि + इश


(iii) 'जलोर्मि' का सन्धि-विच्छेद है1


(अ) जल + ऊर्मि


(ब) जला + ऊर्मि


(स) जल + ऊर्मि 


(द) जला + उर्मि


(ख) (i) 'प्रत्यक्ष' में समास है -


(अ) कर्मधारय समास


(ब) अव्ययी भाव समास


(स) बहुव्रीहि समास


 (द) तत्पुरुष समास


(ii)'विद्याधनम्' में कौन-सा समास है?


(अ) अव्ययो भाव समास 


(ब) बहुब्रीहि समास


(स) कर्मधारय समास


 (द) द्वन्द्व समास


14. (क) 'पास्यवः' अथवा 'ददति' किस धातु, लकार, पुरुष तथा वचन का रूप है? 


(ख)(i)'राज्ञः' यूप है राजन् शब्द का (पुल्लिंग) 


(अ) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन


 (ब) चतुर्थी विभक्ति, द्विवचन


(स) सप्तमी विभक्ति एकवचन


(द) तृतीया विभक्ति, बहुवचन


(ii)'सरिति' रूप है सरित् शब्द का (स्त्रीलिंग) 1


(अ) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन


(ब) सप्तमी विभक्ति एकवचन 


(स) सप्तमी विभक्ति, द्विवचन


(द) तृतीया विभक्ति, बहुवचन


(ग) (i) 'पठनीय' शब्द में प्रत्यय है -1

 (अ) क्त्वा 


(ब) मतुप्


 (स) तल 


(द) अनीयर्


(ii) 'गन्तव्य' शब्द में प्रत्यय है -


(अ) अनीयर्


 (ब) क्त्वा


 (स) त्व 


(द) तव्यत् 


(घ) रेखांकित पदों में से किसी एक पद में प्रयुक्त विभक्ति तथा उससे सम्बन्धित नियम का उल्लेख कीजिए 1+1=2


(i) विद्यालयं निकषा जलाशयः अस्ति।


 (ii) भिक्षुकः पादेन खन्नः अस्ति ।


(iii) सूर्याय स्वाहा।


15. निम्नलिखित वाक्यों में किन्हीं दो का संस्कृत में अनुवाद कीजिए 4


(i) राम और कृष्ण पढ़ते हैं।


 (ii) छात्र चला गया। 


(iii) वृक्षों से फल गिरा।


 (iv) अशोक पेड़ से उतरता है।






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