UP Board Class 11th Hindi Model Paper 2023 || कक्षा 11वीं हिंदी मॉडल पेपर यूपी बोर्ड परीक्षा 2023
UP Board Class 11th Hindi Model Paper 2023 || कक्षा 11वीं हिंदी मॉडल पेपर यूपी बोर्ड परीक्षा 2023
up board class 11th hindi model paper 2023 || यूपी बोर्ड कक्षा 11वीं हिंदी मॉडल पेपर 2023
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यूपी बोर्ड वार्षिक परीक्षा 2023
कक्षा - 11वी
विषय - सामान्य हिन्दी
समय - 3:15 Hr. [पूर्णांक - 100]
निर्देश: (i) प्रारंभ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित है।
(ii) सभी प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
(iii) सभी प्रश्नों हेतु निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।
खण्ड 'क'
(क) हिन्दी का प्रथम उपन्यास है -1
(i) गोदान
(ii) गवन
(iii) नहुष
उत्तर –(iii) नहुष
(ख) भाषा योग वाशिष्ट के रचनाकार हैं।1
(i) सदल मिश्र
(ii) रामप्रसाद निरंजनी
(iii) राजा लक्ष्मण सिंह
उत्तर –(ii) रामप्रसाद निरंजनी
(ग) रानी केतकी की कहानी के रचनाकार हैं -1
(i) सदासुख लाल
(ii) इंशा अल्ला खां
(iii) प्रेमचन्द्र
उत्तर –(ii) इंशा अल्ला खां
(घ) द्वितीय तार सप्तक का प्रकाशन वर्ष है
(i) 1943
(ii) 1950
(iii) 1951
उत्तर –(iii) 1951
(ङ) मेरी असफलताएं के रचनाकार हैं।
(i) गुलाब राय
(ii) यशपाल
(iii) महादेवी वर्मा
उत्तर –(i) गुलाब राय
2.(क) हिन्दी के प्रथम कवि का नाम लिखिए।1
उत्तर – सरहपा
(ख) आदिकाल की भाषा का नाम लिखिए।1
उत्तर –डिंगल
(ग) छायावाद का समय लिखिए।1
उत्तर –लगभग ई. स. 1918 से 1936 तक
(घ) राष्ट्र कवि किसे कहते हैं?1
(ङ) साकेत महाकाव्य किस युग की रचना है? 1
उत्तर –द्विवेदी युग
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3.गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।5x2-10
आत्म साक्षात्कार का मुख्य साधन योगाभ्यास है। योगाभ्यास सिखाने का प्रबन्ध राज्य नहीं कर सकता, न पाठशाला का अध्यापक ही उस का दायित्व ने सकता है। जो इस विद्या का खोजी होगा, वह अपने लिए गुरू ढूंढ लेगा। परन्तु इतना किरण जा सकता है और यही समाज और अध्यापक का कर्तव्य है कि व्यक्ति के अधिकारी बनने में सहायता दी जाय अनुकूल वातावरण उत्पन्न किया जाए।
(क) पाठ के लेखक और पाठ का शीर्षक लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ग) इन पंक्तियों में शिक्षक और समाज को भूमिका का उल्लेख कीजिए।
(घ) लेखक के अनुसार व्यक्ति का प्रमुख पुरुषार्थ क्या है?
(ङ) योगाभ्यास सिखाने के लिए कौन सहायक सिद्ध नहीं होता ?
अथवा
संसार में यदि अनादि सनातन धर्म है तो वह घुमक्कड़ धर्म है। लेकिन यह संकुचित सम्प्रदाय नहीं है, वह आकाश की तरह महान है, तो समुद्र की तरह विशाल है। जिन धर्मी ने अधिक पक्ष और महिमा प्राप्त की है, केवल घुमक्कड़ी धर्म के कारण प्रभु ईशा घुमक्कड़ थे, तो उनके अनुयायी भी ऐसे घुमक्कड़ थे, जिन्होंने ईशा के सन्देश को दुनिया के कोन कोने में पहुंचाया।
(क) गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ग) संस्पर का आदि घुमक्कड़ी धर्म कौन सा है?
(घ) लेखक ने घुमक्कड़ धर्म को किस के तरह महान और विशाल बताया ?
(ङ) कुछ धर्मो ने यश और महिम किस के कारण प्राप्त की है?
4. निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 2x5-10
अब लौ नसानी अब न नसेहौं।
राम कृपा भवनि सा सिरानी जागे फिर न डसैहौं।।
पायो नाम चारू चिन्तामनि, डर कर वे न खसैहीं।
श्याम रूप सुचि रूचिर कसौटी चित कंचनाहि कसैहौं।। परवस जानि हँस्यों इन इन्द्रिन, निज बस न हसैहौं ।
मन-मधु कर पन करि तुलसी रघुपति पद कमल बसैहीं।।
(क) प्रस्तुत पद के पाठ और कवि का नाम लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ग) करि किस पर अपने मन रूपी स्वर्ण को घिस कर देखना चाहता है?
(घ) कवि को कौन सी चिन्तामणि प्राप्त हो गई है?
(ङ) तुलसीदास अब किस प्रकार समाज में उपहास के पात्र नहीं बनेगें ?
अथवा
बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,
नाहीं ठहराने रावराने देस देख के ।
बाजन निशाने सिवराजजू नरेश के।
हाथिन के हौदा उकसाने कुम्भं कुंजर के,
दब के दरारन ते कमठ करारे फूटे, केरा के से पात बिहराने फन सेस के।।
(क) प्रस्तुत पद के पाठ और कवि का नाम लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) विभिन्न देशों के शासक क्यों भयभीत हो गये ?
(घ) उठते हुए भौरे किस प्रकार के लग रहे थे ?
(ङ) शिवाजी की सेना के चलने से कछुए और शेषनाग की क्या दशा हुई ?
5. (क)निम्नलिखित लेखकों में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए - 5
(i) आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
(ii) सरदार पूर्ण सिंह
(iii) राहुल सांकृत्यायन
जीवन-परिचय jivan Parichay- राहुल सांकृत्यायन का जन्म अपने नाना के गाँव पन्दहा जिला आजमगढ़ में, अप्रैल सन् 1893 ई० में हुआ। इनके पिता पं० गोवर्धन पाण्डेय एक कर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। राहुल जी के बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। बौद्ध धर्म में आस्था होने के कारण इन्होंने अपना नाम बदलकर राहुल रख लिया। राहुल के आगे सांकृत्यायन इसलिए लगा; क्योंकि इनका गोत्र सांकृत्य था ।
राहुल जी की प्रारम्भिक शिक्षा रानी की सराय तथा उसके पश्चात् निजामाबाद में हुई, जहाँ इन्होंने सन् 1907 ई० में उर्दू मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् इन्होंने वाराणसी में संस्कृत की उच्च शिक्षा प्राप्त की।
घुमक्कड़ी को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर राहुल जी ने श्रीलंका,नेपाल, तिब्बत, यूरोप, जापान, कोरिया, मंचूरिया, रूस, ईरान तथा चीन आदि देशों की अनेक बार यात्रा की तथा भारत के नगर - नगर को देखा। अपनी इन यात्राओं में इन्होंने अनेक दुर्लभ ग्रन्थों की खोज की। घुमक्कड़ी ही राहुल जी की पाठशाला थी और यही इनका विश्वविद्यालय। अपनी आत्मकथा में इन्होंने स्वीकार किया है कि व्हेन मैट्रिक पास करने के भी पक्ष में नहीं थे और स्नातक तो क्या, नौनी विश्वविद्यालय के भीतर कदम भी नहीं रखा।
14 अप्रैल सन 1963 ई. को राहुल जी का निधन हो गया।
साहित्य में स्थान
आधुनिक हिंदी साहित्य में इनकी गणना हिंदी के प्रमुख समर्थ रचनाकारों में की जाती है।
साहित्यिक परिचय sahityik Parichay- राहुल जी उच्चकोटि के विद्वान् और अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इन्होंने धर्म, भाषा, यात्रा, दर्शन, इतिहास, पुराण, राजनीति आदि विषयों पर अधिकार के साथ लिखा है। इन्होंने संस्कृत ग्रन्थों को हिन्दी टीकाएँ कीं, कोशग्रन्थ तैयार किए तथा तिब्बती भाषा और 'तालपोथी' आदि पर दक्षतापूर्वक लिखा। वस्तुतः यह सब उनकी बहुमुखी प्रतिभा का परिचायक है।
राहुल जी के अधिकांश निबन्ध भाषा-विज्ञान और प्रगतिशील साहित्य से सम्बन्धित हैं। इनमें राजनीति, धर्म, इतिहास और पुरातत्त्व पर आधारित निबन्धों का विशेष महत्त्व है। इन विषयों पर लिखते हुए राहुल जी ने अपनी प्रगतिशील दृष्टि का परिचय दिया है।
राहुल जी ने चार ऐतिहासिक उपन्यास लिखे हैं— 'सिंह सेनापति', 'जय यौधेय', 'मधुर स्वप्न' तथा 'विस्मृत यात्री'। इन उपन्यासों में इन्होंने प्राचीन इतिहास के गौरवशाली पृष्ठों को पलटने का प्रयास किया है।
राहुल जी ने बहुत-सी कहानियाँ लिखी हैं, किन्तु उनकी कहानियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए 'वोल्गा से गंगा' 'और 'सतमी के बच्चे' नामक कहानियाँ ही पर्याप्त हैं।
राहुल जी ने गद्य की कुछ अन्य विधाओं को भी अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है। इनमें जीवनी, संस्मरण और यात्रा - साहित्य प्रमुख हैं। राहुल जी को सबसे अधिक सफलता यात्रा- साहित्य लिखने में मिली है।
कृतियाँ kritiyan
कहानी — सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी, कनैल की कथा ।
उपन्यास - जीने के लिए, जय यौधेय, सिंह सेनापति, मधुर स्वप्न, विस्मृत यात्री, सप्त सिन्धु ।
कोशग्रन्थ- शासन शब्दकोश, राष्ट्रभाषा कोश, तिब्बती-हिन्दी कोश ।
जीवनी - साहित्य — मेरी जीवन-यात्रा, सरदार पृथ्वीसिंह, नए भारत के नए नेता, असहयोग के मेरे साथी, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली आदि ।
दर्शन-दर्शन-दिग्दर्शन, बौद्ध दर्शन आदि । "
देश-दर्शन –सोवियत भूमि, किन्नर देश, हिमालय प्रदेश, जौनसार-देहरादून आदि।
यात्रा - साहित्य — मेरी लद्दाख यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, यात्रा के पन्ने, रूस में पच्चीस मास, घुमक्कड़शास्त्र आदि।
विज्ञान — विश्व की रूपरेखाएँ ।
(ख) निम्नलिखित कवियों में से किसी एक कवि का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।5
(i) तुलसीदास
(ii) महाकवि भूषण
(iii) सूरदास
जीवन परिचय- भक्तिकालीन महाकवि सूरदास का जन्म 'रुनकता' नामक ग्राम में 1478 ई० में पंडित राम दास जी के घर हुआ था। पंडित रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान् 'सीही' नामक स्थान को सूरदास का जन्म स्थल मानते हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे या नहीं, इस संबंध में भी विद्वानों में मतभेद है।
विद्वानों का कहना है कि बाल-मनोवृत्तियों एवं चेष्टाओं का जैसा सूक्ष्म वर्णन सूरदास जी ने किया है, वैसा वर्णन कोई जन्मांध व्यक्ति कर ही नहीं सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे संभवत बाद में अंधे हुए होंगे। वे हिंदी भक्त कवियों में शिरोमणि माने जाते हैं।
सूरदास जी एक बार बल्लभाचार्य जी के दर्शन के लिए मथुरा के गऊघाट आए और उन्हें स्वरचित एक पद गाकर सुनाया, बल्लभाचार्य ने तभी उन्हें अपना शिष्य बना लिया। सूरदास की सच्ची भक्ति और पद रचना की निपुणता देखकर बल्लभाचार्य ने उन्हें श्रीनाथ मंदिर का कीर्तन भार सौंप दिया, तभी से वह मंदिर उनका निवास स्थान बन गया। सूरदास जी विवाहित थे तथा विरक्त होने से पहले वे अपने परिवार के साथ ही रहते थे।
वल्लभाचार्य जी के संपर्क में आने से पहले सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे तथा बाद में अपने गुरु के कहने पर कृष्णलीला का गान करने लगे। सूरदास जी की मृत्यु 1583 ई० में गोवर्धन के पास 'पारसौली' नामक ग्राम में हुई थी।
साहित्यिक परिचय- सूरदास जी महान काव्यात्मक प्रतिभा से संपन्न कवि थे। कृष्ण भक्ति को ही इन्होंने काव्य का मुख्य विषय बनाया। इन्होंने श्री कृष्ण के सगुण रूप के प्रति शाखा भाव की भक्ति का निरूपण किया है। इन्होंने मानव हृदय की कोमल भावनाओं का प्रभावपूर्ण चित्रण किया है। अपने काव्य में भावात्मक पक्ष और कलात्मक पक्ष दोनों पर इन्होंने अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है।
कृतियां या रचनाएं - भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी, जिनमें से केवल आठ से दस हजार पद ही प्राप्त हो पाए हैं। 'काशी नागरी प्रचारिणी' सभा के पुस्तकालय में ये रचनाएं सुरक्षित हैं। पुस्तकालय में सुरक्षित रचनाओं के आधार पर सूरदास जी के ग्रंथों की संख्या 25 मानी जाती है, किंतु इनके तीन ग्रन्थ ही उपलब्ध हुए हैं, जो अग्रलिखित हैं
1. सूरसागर- यह सूरदास जी की एकमात्र प्रमाणिक कृति है। यह एक गीतिकाव्य है, जो 'श्रीमद् भागवत' ग्रंथ से प्रभावित है। इसमें कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धव- गोपी संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है।
"साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर कि सारावली ।
श्री कृष्ण जी की बाल छवि पर लेखनी अनुपम चली"
2. सूरसारावली- यह ग्रंथ सूरसागर का सारभाग है, जो अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किंतु यह भी सूरदास जी की एक प्रमाणिक कृति है। इसमें 1107 पद हैं।
3. साहित्यलहरी- इस ग्रंथ में 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है तथा इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है। कहीं-कहीं श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर 'महाभारत' की कथा के अंशों की झलक भी दिखाई देती है।
भाषा शैली:- सूरदास जी ने अपने पदों में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है तथा इनके सभी पद गीतात्मक हैं, जिस कारण इनमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। इन्होंने सरल एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। उनका काव्य मुक्तक शैली पर आधारित है। व्यंग वक्रता और वाग्विदग्धता सूर की भाषा की प्रमुख विशेषताएं हैं। कथा वर्णन में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। दृष्टकूट पदों में कुछ किलष्टता अवश्य आ गई है।
हिंदी साहित्य में स्थान- सूरदास जी हिंदी साहित्य के महान् काव्यात्मक प्रतिभासंपन्न कवि थे। इन्होंने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं और प्रेम-लीलाओं का जो मनोरम चित्रण किया है, वह साहित्य में अद्वितीय है। हिंदी साहित्य में वात्सल्य वर्णन का एकमात्र कवि सूरदास जी को ही माना जाता है, साथ ही इन्होंने विरह-वर्णन का भी अपनी रचनाओं में बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है।
सूरदास का विवाह - कहा जाता है कि सूरदास जी ने विवाह किया था। हालांकि इनकी विवाह को लेकर कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं लेकिन फिर भी उनकी पत्नी का नाम रत्नावली माना गया है। कहा जाता है कि संसार से विरक्त होने से पहले सूरदास जी अपने परिवार के साथ ही जीवन व्यतीत किया करते थे।
सूरदास के गुरु - अपने परिवार से विरक्त होने के पश्चात सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे। कवि सूरदास के मुख से भक्ति का एक पद सुनकर श्री वल्लभाचार्य ने अपना शिष्य बना लिया। जिसके बाद वह कृष्ण भगवान का स्मरण और उनकी लीलाओं का वर्णन करने लगे। साथ ही वह आचार्य वल्लभाचार्य के साथ मथुरा के गऊघाट पर स्थित श्री नाथ के मंदिर में भजन-कीर्तन किया करते थे। महान कवि सूरदास आचार्य वल्लभाचार्य के प्रमुख शिष्य में से एक थे। और यह अष्टछाप कवियों में भी सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते हैं।
श्री कृष्ण गीतावली - कहा जाता है कि कवि सूरदास ने प्रभावित होकर ही तुलसीदास जी ने महान ग्रंथ श्री कृष्ण गीतावली की रचना की थी। और इन दोनों के बीच तब से ही प्रेम और मित्रता का भाव बढ़ने लगा था।
सूरदास का राजघराने से संबंध - महाकवि सूरदास
सूरदास का राजघराने से संबंध - महाकवि सूरदास के भक्ति में गीतों की गूंज चारों तरफ फैल गई थी। जिसे सुनकर स्वयं महान शासक अकबर भी सूरदास की रचनाओं पर मुग्ध हो गए थे। जिसने उनके काम से प्रभावित होकर अपने यहां रख लिया था। आपको बता दें कि सूरदास के काव्य की ख्याति बनने के बाद हर कोई सूरदास को पहचानने लगा। ऐसे में अपने जीवन के अंतिम दिनों को सूरदास ने ब्रज में व्यतीत किया, जहां रचनाओं के बदले उन्हें जो भी प्राप्त होता। उसी से सूरदास अपना जीवन बसर किया करते थे।
सूरदास की काव्यगत विशेषताएं - सूरदास जी को हिंदी का श्रेष्ठ कवि माना जाता है। उनकी काव्य रचनाओं की प्रशंसा करते हुए डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि सूरदास जी अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे पीछे दौड़ा करता है। और उपमाओ की बाढ़ आ जाती है। और रूपकों की बारिश होने लगती है। साथ ही सूरदास ने भगवान कृष्ण के बाल रूप का अत्यंत सरल और सजीव चित्रण किया है। सूरदास जी ने भक्ति को श्रृंगार रस से जोड़कर काव्य को एक अद्भुत दिशा की ओर मोड़ दिया था। साथ ही सूरदास जी के काव्य में प्राकृतिक सौंदर्य का भी जीवंत उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं सूरदास जी ने काव्य और कृष्ण भक्ति का जो मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया, वह अन्य किसी कवि की रचनाओं में नहीं मिलता।
सूरदास की मृत्यु कब हुई
मां भारती का यह पुत्र 1583 ईस्वी में गोवर्धन के पास स्थित पारसौली गांव में सदैव के लिए दुनिया से विदा हो गए। सूरदास जी ने कब की धारा को एक अलग ही गति प्रदान की। इसके माध्यम से उन्होंने हिंदी गद्य और पद्य के क्षेत्र में भक्ति और श्रृंगार रस का बेजोड़ मेल प्रस्तुत किया है। और हिंदी कब के क्षेत्र में उनकी रचना एक अलग स्थान रखती हैं। साथ ही ब्रजभाषा को साहित्य दृष्टि से उपयोगी बनाने का श्रेय महाकवि सूरदास को ही जाता है।
क्या सूरदास जन्म से अंधे थे?
सूरदास के जन्मांध होने के विषय में अभी मतभेद हैं। सुधारने तो अपने आप को जन्मांध बताया है। लेकिन जिस तरह से उन्होंने श्री कृष्ण की बाल लीला और श्रंगार रूपी राधा और गोपियों का सजीव चित्रण किया है। आंखों से साक्षात देखे बगैर नहीं हो सकता। विद्वानों का मानना है कि वह जन्म से अंधे नहीं थे, क्योंकि उन्होंने कृष्ण जी के अलौकिक रूप का बहुत ही मनोनीत रूप से वर्णन किया है। उन्होंने आत्मग्लानिवश, क्या चने रूप से अथवा किसी और कारण अपने आप को जन्मांध बताया हो।
अंधे होने की कहानी -
उनके अंधे होने की कहानी भी प्रचलित है। कहानी कुछ इस तरह है कि सूरदास ( मदन मोहन ) एक बहुत ही सुन्दर और तेज बुद्धि के नवयुवक थे वह हर दिन नदी किनारे जाकर बैठ जाता और गीत लिखता एक दिन एक ऐसा वाक्य हुआ जिससे उसका मन को मोह लिया। हुआ यूं कि एक सुंदर नवयुग की नदी किनारे कपड़े धो रही थी, मदन मोहन का ध्यान उसकी तरफ चला गया। उस युवती ने मदन मोहन को ऐसा आकर्षित किया कि वह कविता लिखना भूल गए और पूरा ध्यान लगाकर उस वीडियो को देखने लगे। उनको ऐसा लगा मानो जमुना किनारे राधिका स्नान कर बैठी हो। उसने युवती ने भी मदन मोहन की तरफ देखा और उनके पास आकर बोली आप मदन मोहन जी हो ना? तो वे बोले हां मैं मदन मोहन हूं। कविताएं लिखता हूं तथा गाता हूं आपको देखा तो रुक गया। युवती ने पूछा क्यों? तो वह बोले आप हो ही इतनी सुंदर। यह सिलसिला कई दिनों तक चला। और सुंदर युवती का चेहरा और उनके सामने से नहीं जा रहा था, और एक दिन वह मंदिर में बैठे थे तभी वह एक शादीशुदा स्त्री आई। मदनमोहन इसके पीछे पीछे चल दिए। जब है उसके घर पहुंचे तो उसके पति ने दरवाजा खोल तथा पूरे आदर सम्मान के साथ उन्हें अंदर बिठाया। श्री मदन मोहन ने दो जलती हुई सलाये तथा उसे अपनी आंख में डाल दी। इस तरह मदन मोहन बने महान कवि सूरदास।
6.'आकाश दीप' अथवा 'बलिदान' कहानी का सारांश लिखिए।5
7. स्वपठित नाटक के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर दीजिए।5
'आन का मान' नाटक के द्वितीय अंक का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
'आन का मान' नाटक के आधार पर दुर्गादास का चरित्र-चित्रण कीजिए।
खण्ड ख
8.(क) दिये गये संस्कृत गद्यांश का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए। 2+5=7
भरतस्य स्वतन्त्रतान्दोलनस्य इदं नगरं प्रधानकेन्द्रम् आसीत् । श्री मोतीलाल नेहरू, महामना मदन मोहन मालवीय, आजादोपनाम् कश्चन्द्र शेखरः, अन्ये च स्वतन्त्रता- संग्राम सैनिका: अस्पाभेव पावन भूमौ उषित्वा आन्दोलनस्य सञ्चालनम् अकुर्वन् । राष्ट्रनायकस्य पण्डित जवाहरलालस्य इयं क्रीडास्थली कर्मभूमिश्च । अस्योपत्यकासु सुदीर्घाः वनराजयो विराजन्ते यत्र विविधाः ओषधयो वनस्पतयस्तर वश्च तिष्ठन्ति । इमाः ओषधमः जनान् आमयेभ्यो रक्षन्ति, तरवश्च आसन्धादि गृहोपकरण निर्माणार्थं प्रयुज्यन्ते । हिमालयः वर्षतौ दक्षिण समुद्देभ्यः समुत्थिता मेघमाला अवरूध्य वर्षणाय ताः प्रवर्तमति ।
अथवा
(ख) दिये गये संस्कृत पद्यांश का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए। 2+5-7
"सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते। मृजया रक्ष्यते रूपं कुत्रं वृत्तेन रक्ष्यते।।
अथवा
जातस्य हि ध्रुवों मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।
9.'निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक का अर्थ लिखते हुए वाक्य प्रयोग कीजिए।2+2=4
(i) उल्टी गां बहाना। (ii) आधा तीतर आधा बटेर ! (iii) अधजल गगरी छलकत जाए।
10. (क) निम्नलिखित शब्दों के सन्धि-विच्छेद के सही विकल्प चुनकर लिखिए- 1
(i) 'नदीश' का सन्धि-विच्छेद होगा -
(a) नदी + ईश:
(b) नद + ईश:
(c) नदि + ईश:
(ii) 'राजर्षि' का सन्धि-विच्छेद होगा -
(a) राजा + ऋषि
(b) राज ऋषि
(c) राज रिधि
(iii) 'नयनम्' का सन्धि-विच्छेद होगा
(a) ने + अनम् (b) न +अनम् (c) नय + नम्
(ख) निम्नलिखित शब्दों की विभक्ति और वचन के अनुसार सही चयन कर लिखिए-
(i) 'आत्मसु' रूप है 'आत्मन्' शब्द का
(a) द्वितीया, एकवचन
(b) सप्तमी, बहुवचन
(c) षष्ठी, एकवचन
(ii) 'नायसु' रूप है 'नामन्' शब्द का -1
(a) सप्तमी, बहुवचन
(b) द्वितीया, बहुवचन
(c) तृतीया एकवचन
11. (क) निम्नलिखित शब्द-युग्मों का सही अर्थ चुनकर लिखो - (i) कच-कुच-
(a) कच्छ और कुछ
(b) केश और स्तन
(c) कच्चा और थोड़ा
(ii) पुरुष परूष -
(a) पूर्व-पश्चिम
(b) मनुष्य और पक्षी
(c) मनुष्य और कठोर
(ख) निम्नलिखित में से किन्हीं दो के दो-दो अर्थ लिखिए-
(i) हलधर (ii) अर्क (iii) तात (iv) गुरु
(ग) निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यांशों के लिए एक शब्द का चयन करके लिखिए।1+1-2
(i) जिस की गणना न की जा सके।
(ii) जो बूढ़ा न हो।
(iii) कम बोलने वाला।
(iv) जिस का जन्म न हुआ
(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध कीजिए।1+1-2
(i) चार आदमी ने नगर की यात्रा की।
(ii) प्रेमचन्द्र ने अनेकों उपन्यास लिखो।
(iii) मैं कलम के माध्यम से लिखता है।
12. (क) 'वीर रस' अथवा 'करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए। 2
उत्तर – करुण रस परिभाषा-करुण रस का स्थायी भाव शोक है। शोक नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है।
उदाहरण
मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन सा पटक रही थी शीश। अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश ॥ श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता के विलाप का यह उदाहरण करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।
(ख) श्लेष अथवा उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।2
उत्तर –उत्प्रेक्षा अलंकार
परिभाषा – जब उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपनेय में उपमान सम्भावना व्यक्त की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें प्रायः मनु, मानो, मनो, मनहुँ, जनु, जानो, निश्चय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण
(1) सोहत आईपी-पट स्याम सलोने गात।
मनहुँ नीलमणि सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।।
(ग) सोरठा अथवा कुण्डलियां छन्द की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए। 2
उत्तर –सोरठा (परिभाषा )–परिभाषा दोहे का उल्टा रूप सोरठा' कहलाता है। यह एक अर्द्धसम मात्रिक छन्द है अर्थात् इसके पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों में मात्राओं की संख्या समान रहती है। इसके विषम (पहले और तीसरे चरणों में 11-11 और सम (दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में ही होता है तथा सम चरणों के अन्त में जगण (ISI) का निषेध होता है।
उदाहरण
"मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़े गिरिवर गहन ।
जासु कृपा सु दयाल, द्रवौ सकल कलिमल दहन।।
13. किसी विद्यालय के प्रबन्धक के नाम लिपिक पद हेतु अपनी नियुक्ति के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।
अथवा
अपने गाँव की समस्या को दूर करने के लिए जिलाधिकारी को प्रार्थना पत्र लिखिए।
14. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा में निबन्ध लिखिए।
(i) भारत स्वच्छ अभियान
(ii) पर्यावरण प्रदूषण
(iii) भ्रष्टाचार एक समस्या है
(iv) बेरोजगारी एक समस्या है।
उत्तर (ii) पर्यावरण प्रदूषण
स्वस्थ पर्यावरण हमारे स्वस्थ जीवन का आधार है। उदाहरण के लिए स्वच्छ, रोगाणुहीन जल और वायु हमें स्वस्थ जीवन प्रदान करते हैं। वर्तमान वैज्ञानिक युग में, उद्योगों के तीन विकासों ने बड़ी पर्यावरणीय समस्याएं पैदा की हैं। औद्योगिक संयंत्रों से निकलने वाला दूषित पानी वहां के वातावरण को प्रदूषित करता है, जिससे कई बीमारियां होती हैं। यही प्रदूषित पानी नदी में पहुंचकर वहां के पानी को प्रदूषित कर देता है। इसी कारण सबसे पवित्र नदी गंगा का जल कई प्रकार से प्रदूषित हो गया है गंगा जल को प्रदूषित करने के लिए एक राष्ट्रीय योजना तैयार की गई है और इसके अनुरूप प्रयास किए जा रहे हैं।
इसी तरह औद्योगिक संयंत्रों से निकलने वाली प्रदूषित हवा ने वातावरण को प्रदूषित किया। यह अपने आसपास के लोगों को भी तरह-तरह की बीमारियाँ देकर बुरी तरह प्रभावित करता है। तीव्र जनसंख्या वृद्धि ने महानगरीय क्षेत्रों में वायु और वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या पैदा कर दी है। इस उद्देश्य के लिए, सरकार प्रभावी प्रवासन निर्धारित करती है। हमें भी जितना हो सके अपने पर्यावरण को साफ करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि इसी तरह हम स्वच्छ वातावरण में खुशी से रह सकते हैं।
हम हवा, पानी और मिट्टी से ढके वातावरण में रहते हैं। यह वह वातावरण है जो हम पर्यावरण के माध्यम से जीवन के लिए उपयोग की जाने वाली चीजों में पाते हैं। जीवन में जल और वायु का बहुत महत्व है। वर्तमान में पीने के साफ पानी की समस्या है। अब हवा भी साफ नहीं है। इसी तरह प्रदूषित वातावरण कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है। पर्यावरण को बचाने की बहुत जरूरत है। प्रदूषण के कई कारण हैं। औद्योगिक अपशिष्ट - सामग्री - उच्च - शोर - वाहन का धुआं प्रमुख कारण हैं। हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ लगाना चाहिए। हमें प्रदूषित पानी को नदियों और तालाबों में नहीं गिरने देना चाहिए। हमें तेल मुक्त वाहनों का उपयोग करना चाहिए। लोगों को पौधे लगाना चाहिए और युवाओं को बनाए रखना चाहिए
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