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बाल विकास के सिद्धांत || principles of child development

बाल विकास के सिद्धांत || principles of child development

बाल विकास के सिद्धांत || principles of child development CTET

बाल विकास के सिद्धांत, उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व || Principles, objectives, need and importance of child development

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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट 
www.Bandana classes.com  पर । आज की पोस्ट में हम आपको "बाल विकास के सिद्धांत || principles of child development " के बारे में बताएंगे तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए।


सामान्य बालक अभिवृद्धि तथा विकास की दिशा में अग्रसर होता हुआ एक प्राणी है। समय के साथ उसने बहुत से गुणात्मक तथा परिमाणात्मक परिवर्तन आते हैं जिनका सम्मिलित नाम विकास कहलाता है। धीरे-धीरे उसकी लंबाई ,भार, क्रियात्मक क्रियाओं, प्रत्यक्षीकरण, संवेगात्मक नियंत्रण ,सामाजिक समायोजन, भाषा योग्यता इत्यादि का एक नियमित प्रतिरूप के अनुसार अभिवृद्धि तथा विकास होता रहता है। इस विकास का ज्ञान शिक्षक को अपने शिक्षण कार्य को अधिक प्रभावशाली बनाने में काफी सहायक हो सकता है।


किसी निश्चित आयु के बालकों के पाठ्यक्रम संबंधी क्रियाओं को नियोजित करते समय शिक्षक को यह जानना आवश्यक होता है कि उस आयु के बालकों में सामान्यता किस प्रकार की शारीरिक व मानसिक क्षमता है, उन्हें किस प्रकार की सामाजिक क्रियाओं, में लगाया जा सकता है तथा वे अपने संवेगों पर कितना नियंत्रण रख सकते हैं। शिक्षक को आयु के सामान्य बालकों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक परिपक्वता के स्तर का ज्ञान होना आवश्यक है, जिससे वह उनकी क्रियाओं को नियंत्रित करके उन्हें अपेक्षित दिशा प्रदान कर सकें।


बाल विकास के सिद्धांत


विकास की प्रक्रिया निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है यह जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत चलती है। कि एक निश्चित दिशा होती है। यह सामान्य से विशेष की ओर बढ़ता है। यह विकास नियमित रूप से व आकस्मिक ढंग से नहीं होता है बल्कि क्रमबद्ध, धीरे-धीरे व निश्चित समय पर होता है। यद्यपि विकास की गति व्यक्तिगत भिन्नता पर भी निर्भर करती है लेकिन कुछ ऐसे सर्वमान्य सिद्धांत हैं जो विकास के हर क्षेत्र पर लागू होते हैं। विकास के कुछ मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं-


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निरंतरता का सिद्धांत-


इस सिद्धांत के अनुसार विकास एक न रुकने वाली प्रक्रिया है। मां के गर्भ से ही यह प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और मृत्यु पर्यंत चलती रहती है। एक छोटे से नगण्य आकार से अपना जीवन प्रारंभ करके हम सबके व्यक्तित्व के सभी पक्षों -शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि का संपूर्ण विकास इसी निरंतरता के गुण के कारण भली-भांति संपन्न होता रहता है।


वयक्तिक भिन्नता का सिद्धांत- 


इस सिद्धांत के अनुसार बालकों का विकास और वृद्धि उनकी अपनी वयक्तिकता के अनुरूप होती है। वे अपनी स्वाभाविक गति से ही वृद्धि और विकास के विभिन्न क्षेत्रों मैं आगे बढ़ते रहते हैं और इसी कारण उनमें पर्याप्त विभिन्नताएं देखने को मिलती हैं। कोई भी एक बालक वृद्धि और विकास की दृष्टि से किसी अन्य बालक के समरूप नहीं होता। विकास के इसी सिद्धांत के कारण कोई बालक अत्यंत मेधावी ,कोई बालक सामान्य तथा कोई बालक पिछड़ा या मंद होता है।


विकास क्रम की एकरूपता का सिद्धांत -


यह सिद्धांत बताता है कि विकास की गति एक जैसी ना होने तथा पर्याप्त वयक्तिक अंतर पाए जाने पर भी विकास क्रम में कुछ एकरूपता के दर्शन होते हैं। इस क्रम में एक ही जाति विशेष के सभी सदस्यों में कुछ एक जैसी विशेषताएं देखने को मिलती हैं। उदाहरण के लिए मनुष्य जाति के सभी बालकों की वृद्धि सिर की ओर से प्रारंभ होती है। इसी तरह बालकों के गत्यात्मक और भाषाई विकास में भी एक निश्चित प्रतिमान और क्रम के दर्शन किए जा सकते हैं।




वृद्धि एवं विकास की गति की दर एक सी नहीं रहती-  विकास की प्रक्रिया जीवन पर्यंत चलती तो है, किंतु इस प्रक्रिया में विकास की गति हमेशा एक जैसी नहीं होती। शैशवावस्था के शुरू के वर्षों में यह गति कुछ तीव्र होती है, परंतु बाद के वर्षों में यह मंद पड़ जाती है। पुनः किशोरावस्था के प्रारंभ में इस गति में तेजी से वृद्धि होती है, परंतु यह अधिक समय तक नहीं बनी रहती। इस प्रकार वृद्धि और विकास की गति में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। किसी भी अवस्था में यह एक जैसे नहीं रह पाती।


विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है- विकास और वृद्धि की सभी दिशाओं में विशिष्ट क्रियाओं से पहले उनके सामान्य रूप के दर्शन होते हैं। उदाहरण के लिए अपने हाथों से कुछ चीज पकड़ने से पहले बालक इधर से उधर यूं ही हाथ मारने या फैलाने की चेष्टा करता है। इसी तरह शुरू में एक नवजात शिशु के रोने और चिल्लाने में उसके सभी अंग -प्रत्यंग भाग लेते हैं, परंतु बाद में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया के फल स्वरुप यह क्रियाएं उसकी आंखों और वाक्तंत्र तक सीमित हो जाती हैं। भाषा विकास में बालक विशेष शब्दों से पहले सामान्य शब्द ही सीखता है। पहले वह सभी व्यक्तियों को 'पापा' कहकर ही संबोधित करता है, इसके पश्चात ही वह केवल अपने पिता को 'पापा' कह कर संबोधित करना सीखता है।


परस्पर संबंध का सिद्धांत-


विकास के सभी आयाम, जैसे- शारीरिक ,मानसिक ,सामाजिक ,संवेगात्मक आदि एक- दूसरे से परस्पर संबंधित हैं। इनमें से किसी भी एक आयाम में होने वाला विकास अन्य सभी आयामों में होने वाले विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है। उदाहरण के लिए जिन, बच्चों में और सबसे अधिक वृद्धि होती है, वे शारीरिक और सामाजिक विकास की दृष्टि से भी काफी आगे बढ़े हुए पाए जाते हैं। दूसरी ओर, एक क्षेत्र में पाई जाने वाली न्यूनता दूसरे क्षेत्र में हो रही प्रगति में बाधक सिद्ध होती है। यही कारण है कि शारीरिक विकास की दृष्टि से पिछड़े बालक संवेगात्मक, सामाजिक एवं बौद्धिक विकास में भी उतने ही पीछे रह जाते हैं।


👉मुदालियर आयोग (1952-1953) / माध्यमिक शिक्षा आयोग



एकीकरण का सिद्धांत-


सिद्धांत की प्रक्रिया एकीकरण के सिद्धांत का पालन करती है। इसके अनुसार, बालक पहले संपूर्ण अंग को और फिर अंग के भागों को चलाना सीखता है। इसके बाद वह उन भागों में एकीकरण करना सीखता है। सामान्य से विशेष की ओर बढ़ते हुए विशेष प्रतिक्रियाओं तथा चेष्टाओं को इकट्ठे रूप में प्रयोग में लाना सीखता है। उदाहरण के लिए, एक बालक पहले पूरे हाथ को, फिर उंगलियों को और फिर हाथ एवं उंगलियों को एक साथ चलना सीखता है।


विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है - किसी बालक में उसकी वृद्धि और विकास की गति को ध्यान में रखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा और स्वरूप के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है। उदाहरण के लिए, एक बालक की कलाई की हड्डियों का एक्स करो से लिया जाने वाला चित्र यह बता सकता है कि उसका आकार- प्रकार आगे जाकर किस प्रकार का होगा। किसी तरह बालक की इस समय की मानसिक योग्यताओं के ज्ञान के सहारे उसके आगे के मानसिक विकास के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।


विकास की दिशा का सिद्धांत- 


इस सिद्धांत के अनुसार, विकास की प्रक्रिया पूर्व निश्चित दिशा में आगे बढ़ती है। विकास की प्रक्रिया की यह दिशा व्यक्ति के वंशानुगत एवं वातावरण जन्य कारकों से प्रभावित होती है। इसके अनुसार बालक सबसे पहले अपने सिर और भुजाओं की गति पर नियंत्रण करना सीखता है और इसके बाद फिर टांगों को। इसके बाद ही वह है अच्छी तरह बिना सहारे के खड़ा होना और चलना सीखता है।


विकास लंबवत सीधा ना होकर वर्तुलाकार होता है-बालक का विकास लंबवत सीधा ना होकर वर्तुलाकार होता है। वह एक -सी गति से सीधा चलकर विकास को प्राप्त नहीं होता, बल्कि बढ़ते हुए पीछे हट कर अपने विकास को परिपक्व और स्थाई बनाते हुए वर्तुलाकार आकृति की तरह आगे बढ़ता है। किसी एक अवस्था में वह तेजी से आगे बढ़ते हुए उसी गति से आगे नहीं जाता, बल्कि अपनी विकास की गति को धीमा करते हुए वर्षों में विश्राम लेता हुआ प्रतीत होता है ताकि प्राप्त वृद्धि और विकास को स्थाई रूप दिया जा सके। यह सब करने के पश्चात ही वह आगामी वर्षों में फिर कुछ आगे बढ़ने की चेष्टा कर सकता है।




वृद्धि और विकास की क्रिया वंशानुक्रम और वातावरण का संयुक्त परिणाम है बालक की वृद्धि और विकास को किसी स्तर पर वंशानुक्रम और वातावरण की संयुक्त देन माना जाता है। दूसरे शब्दों में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में वंशानुक्रम जहां आधार का कार्य करता है वहां वातावरण इस आधार पर बनाए जाने वाले व्यक्तित्व संबंधी भवन के लिए आवश्यक सामग्री एवं वातावरण जुटाने में सहयोग देता है। अतः वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में इन दोनों को समान महत्व दिया जाना आवश्यक होता है।


बाल विकास से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत-


पुनर्बलन का सिद्धांत-


इस सिद्धांत के प्रतिपादक डोलार्ड और मिलर (Dollard and Neel Miller) हैं। इनके अनुसार बच्चे का जैसे-जैसे विकास होता है, अधिगम करता जाता है। इन्होंने बाल्यावस्था के अनुभवों को वयस्क व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण कारकों के रूप में स्वीकार किया है। इन्होंने अचेतन कारकों के अतिरिक्त चिंता और आधिगमित हाय को व्यक्तित्व गतिशीलता में बहुत अधिक महत्व दिया है। इनके अनुसार भोजन, पानी ,ऑक्सीजन और ताप कुछ अर्जित आवश्यकताएं हैं परंतु यह आवश्यकता की पूर्ति के लिए अर्जित व्यवहार पूर्णता पर्याप्त नहीं होता है अतः बालक को अधिक जटिल व्यवहार का अधिगम इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करना होता है; उदाहरण के लिए नवजात शिशु का स्तनपान से संबंधित अर्जित व्यवहार उसकी भोजन की आवश्यकता के लिए अधिक समय तक पर्याप्त नहीं होता है, उसे भूख की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए कुछ अधिक स्तनपान के जटिल व्यवहारों को सीखना होता है। इनके अनुसार अधिगम के चार महत्वपूर्ण अवयव हैं- अन्तर्नोद (अभिप्रेरणा), संकेत (उद्दीपक), प्रत्युत्तर (स्वयं का व्यवहार) तथा पुनर्बलन (पुरस्कार)।


 सामाजिक अधिगम सिद्धांत- 


इस सिद्धांत के प्रतिपादक बंडूरा और वाल्टर्स ने सामाजिक अधिगम के महत्व की पुष्टि अनेक प्रयोगात्मक अध्ययनों के आधार पर की है, बंडू रानी एक प्रयोग में बच्चों को एक फिल्म दिखाएं जिसमें एक वयस्क व्यक्ति के व्यवहार को प्रदर्शित किया गया था, फिल्म के तीन भाग थे; प्रत्येक बच्चे को केवल एक प्रकार की फिल्म दिखाई गई। पहेली फिल्म में फिल्म का हीरो आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करता था और इस व्यवहार के लिए उसे दंड दिया जाता था। दूसरी फिल्म में हीरो आक्रामक व्यवहार करता था और अपने इस आक्रामक व्यवहार के लिए पुरस्कृत होता था। तीसरा फिल्म में आक्रामक व्यवहार के लिए ही रोको ना ही पुरस्कृत किया जाता था और ना ही दंडित किया जाता था फिल्म को प्रत्येक बच्चे को दिखाने के बाद प्रत्येक बच्चे को उन्हीं परिस्थितियों में रखा गया जिन परिस्थितियों से संबंधित उन्हें फिल्म दिखाई गई थी। इन परिस्थितियों में रखकर बच्चों के व्यवहार निरीक्षण कर यह देखा गया है कि बच्चों ने उस व्यवहार का अनुकरण अपेक्षाकृत कम किया जो हीरो के आक्रामक व्यवहार और दंड से संबंधित था। सामाजिक अधिगम सिद्धांत में व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों में केवल वातावरण संबंधी कारकों को ही महत्व दिया है, वंशानुक्रम कारकों को कोई महत्व नहीं दिया गया है।




बाल विकास के सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न


1.निम्नलिखित कथनों में से मानव विकास के संबंध में कौन सा कथन सत्य है?


(a)सामान्य से सामान्य की ओर


(b)सामान्य से विशिष्ट की ओर


(c)विशिष्ट से सामान्य की ओर


(d)विशिष्ट से विशिष्ट की ओर


Ans- b


2. कोई बच्चा किस अवस्था में पर्यावरण से प्रभावित होने लगता है?


(a)बाल्यावस्था


(b)किशोरावस्था


(c)शैशवावस्था


(d)प्रौढ़ावस्था


Ans-a


3. आप अपनी कक्षा के छात्रों को पूरी कक्षा में कहीं पर भी बैठने की अनुमति दे देते हैं। उनमें से कुछ छात्र समूह बनाकर पढ़ते हैं तथा कुछ छात्र चुपचाप बैठ कर अपने आप पढ़ते हैं। परंतु अपनी कक्षा के कुछ छात्रों के अभिभावकों को यह सब पसंद नहीं आता है। इस स्थिति में क्या तरीका बेहतर होगा?


(a)अभिभावकों को प्रधानाचार्य से शिक्षक की शिकायत करनी चाहिए


(b)अभिभावकों को शिक्षक पर विश्वास व्यक्त कर, समस्या पर  चर्चा करनी चाहिए


(c)अभिभावकों को उच्च विद्यालय से अपने छात्रों को निकाल लेना चाहिए


(d)बालकों को स्वयं कक्षा में जाकर पढ़ाना चाहिए


Ans-b


4. निम्न में से किसने 'सामाजिक अधिगम सिद्धांत' का प्रतिपादन किया था?


(a)डोलार्ड 


(b)मिलर


(c)पियाजे


(d)बंडूरा और वॉल्टर्स


Ans-d


5. मानव विकास के संबंध में "पुनर्बलन सिद्धांत" निम्न में से किसने प्रतिपादित किया था?


(a)डोलार्ड और मिलर


(b)बंडूरा और वाल्टर्स


(c)पियाजे और मिलर


(d)इनमें से कोई नहीं


Ans-a




6. निम्न में से कौन सा सिद्धांत बाल विकास में वातावरण संबंधी कारकों को ही महत्व देता है?


(a)विकास क्रम की एकरूपता का सिद्धांत


(b)सामाजिक अधिगम सिद्धांत


(c)निरंतरता का सिद्धांत


(d)परस्पर संबंध का सिद्धांत


Ans-b


7. "एक बालक पहले पूरे हाथ को, फिर उंगलियों को, और फिर हाथ और उंगलियों को एक साथ चलाना सीखता है।" बाल विकास के सिद्धांत में यह सिद्धांत कहलाता है।


(a)परस्पर संबंध का सिद्धांत 


(b)सामाजिक अधिगम सिद्धांत 


(c)एकीकरण का सिद्धांत


(d)उपरोक्त में से कोई नहीं


Ans- c


8. किसी बच्चे के विकास की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है


(a)2 वर्ष की आयु के बाद 


(b)5 वर्ष की आयु के बाद


(c) 7 वर्ष की आयु के बाद

 

(d)मां के गर्भ से ही


Ans-  d


9."विकास कभी ना रुकने वाली एक प्रक्रिया है" तथ्य संबंधित है।


(a)निरंतरता के सिद्धांत से 


(b)वयक्तिक भिन्नता के सिद्धांत से


(c)विकास क्रम की एकरूपता के सिद्धांत से 


(d)एकीकरण के सिद्धांत से


Ans- a


10. आप अपनी कक्षा में से 10 छात्रों को चुनकर 3 माह तक उन में होने वाले विकास का अध्ययन करते हैं ,तो आपके द्वारा किए गए अध्ययन में निम्नलिखित में से क्या सच हो सकता है?


(a)सभी छात्रों में विकास एक ही दिशा में हुआ


(b)आधे छात्रों में विकास एक ही दिशा में परंतु आधे छात्रों में विकास भिन्न भिन्न दिशा में हुआ


(c)सभी छात्रों में विकास अलग-अलग दिशा में हुआ


(d)इस संबंध में कुछ कहा नहीं जा सकता


Ans- c


11. बाल विकास के शैक्षिक निहितार्थ से संबंधित नहीं है


(a)विद्यालय तथा समुदाय को जोड़ना


(b)प्रातः कालीन विद्यालय सभाओं को संबोधित करना


(c)विद्यालय के बाग की देखभाल करना


(d)पिछड़े और गंदे क्षेत्रों में लोगों की सेवा के लिए ना जाना


Ans-d


12. आपकी कक्षा का एक छात्र कक्षा में काफी बात करता है। आप उनके विषय में पता करते हैं तथा पाते हैं कि वहीं छात्र अपने घर पर बहुत ही कम बात करता है, तो आप उस छात्र के विषय पर निम्न में से क्या विचार देंगे?


(a)विद्यालय प्रत्येक समय छात्र बच्चों को खूब बातें करने का अवसर देता है


(b)शिक्षकों की यह मांग है कि बच्चे विद्यालय में खूब बात करें


(c)उस बच्चे को उसका घर पसंद नहीं है


(d)उस बच्चे के विचारों को विद्यालय में मान्यता मिलती है


Ans- d


13. डोलार्ड और मिलर के अनुसार अधिगम को कितने प्रमुख अवयवों में बांटा जा सकता है।


(a)1


(b)2


(c)3


(d)4


Ans-d


14. विकास की दिशा होती है।


(a)निश्चित


(b) अनिश्चित 


(c)निश्चित व अनिश्चित दोनों प्रकार की

 

(d)उपरोक्त में से कोई नहीं


Ans- a


15. आपकी कक्षा की 1 छात्रा रजनी की लंबाई पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 6 इंच बढ़ गई है उसके इस परिवर्तन को आप क्या कहेंगे?


(a)रजनी का शारीरिक विकास तेजी से हो रहा है


(b)रजनी में वृद्धि तेजी से हो रही है


(c)रजनी ज्यादा काम करने लगी है


(d)रजनी पढ़ाई में कमजोर होती जा रही है


Ans-b


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