श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन परिचय || Shyama Prasad Mukherjee Biography
1. जीवन परिचय - डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी - एक ऐसे भारतीय क्रांतिकारी, राजनीतिज्ञ तथा महान हस्ती जिन्होंने अपने आदर्शों एवं सिद्धांतों के लिए सत्ता सुख का भी बलिदान कर दिया. जिन्हें सत्ता की न भूख थी और न ही सत्ता के लिए किसी राजनैतिक दल की चाटुकारिता करना पसंद था. कहते हैं कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी में वे सारे गुण थे जो एक आदर्श महापुरुष में होने चाहिए. ऐसे ही भारत देश के महान क्रांतिकारी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, सन 1901 को एक बहुत ही कुलीन परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम आशुतोष बाबू था. जो अपने समय के एक प्रसिद्द शिक्षाविद थे.
2.शिक्षा - कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी बचपन से ही बहुत मेधावी थे. उन्होनें केवल 22 वर्ष की आयु में मास्टर ऑफ़ आर्ट (एम. ए.) की डिग्री हासिल की. आपका विवाह सुधा देवी से हुआ था. विवाह के पश्चात डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के 4 संतान हुई जिनमें दो पुत्र तथा दो पुत्रियां थी. विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ. मुखर्जी को मात्र 24 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय में सीनेट का सदस्य नियुक्त किया गया. कोलकाता विश्वविद्यालय में इन्होंने विद्द्यार्थियों के हित में अनेक कदम उठायें. डॉ. मुखर्जी का बचपन से ही गणित विषय के प्रति विशेष लगाव था. गणित विषय में उच्च शिक्षा के लिए वे विदेश गए और वहां पर अपने अध्ययन को जारी रखा. गणित विषय में उनके योगदान को देखते हुए लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी ने डॉ. मुखर्जी को अपने यहाँ सदस्य पद पर नियुक्त किया.
3.व्यवसाय - लंदन से गणित विषय में उल्लेखनीय कार्य करने के पश्चात आप अपने भारत देश लौट आये और आप विश्वविद्यालय एवं वकालत के कार्यों में संलग्न हो गए. बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी समाज के लिए कुछ अलग करना चाहते थे. यहीं कारण है कि समाज सेवा तथा गरीबों के उत्थान के लिए आप सन 1939 में राजनीति में शामिल हो गए और आजीवन देशहित तथा गरीब जनता की आवाज को उठाते रहें. डॉ. मुखर्जी बहुत ही स्पष्टवादी राजनेता थे और उन्होंने हमेशा देश हित में ही कार्य किया. कुछ मुद्दों पर आपने महात्मा गाँधी एवं कांग्रेस पार्टी की नीतियों का विरोध भी किया जो देश हित में नहीं थी. इसीलिए कहते हैं कि डॉ. मुखर्जी को सत्ता का सुख मिले या न मिले पर उन्होंने हमेशा देश हित में ही फैसले लिए.
4. राजनीतिक विवाद -डॉ. मुखर्जी महात्मा गाँधी की अहिंसावादी नीति के खिलाफ थे. यहीं कारण है कि एक बार इन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि " वह दिन दूर नहीं जब महात्मा गाँधी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समस्त बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जायेगा ". डॉ. मुखर्जी ने महात्मा गाँधी एवं पंडित जवाहर लाल नेहरू की तुष्टिकरण की नीति का हमेशा हर मंच से विरोध किया और कांग्रेस पार्टी की ऐसी नीतियां जो देश हित में नहीं थी उनका खुले मन से विरोध भी किया. यहीं कारण हैं कि मुस्लिम वर्ग डॉ. मुखर्जी को संकुचित विचारधारा वाला नेता समझने लगे.
5.वित्त मंत्री के पद पर कार्य - 15 अगस्त सन 1947 को जब भारत देश अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ाद हुआ तब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अगस्त 1947 में स्वतंत्र भारत देश के प्रथम मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री का कार्य- भार सौंपा गया जो एक गैर कांग्रेसी नेता थे. यह इनकी सभी दलों में लोकप्रियता को दर्शाता हैं. वित्तमंत्री के रूप में आपने देश की प्रगति से सम्बंधित अनेक कार्य किये. उदाहरणस्वरूप -बिहार जैसे पिछड़े राज्य में आपने खाद का कारखाना स्थापित करवाया. वहीँ इन्होने चितरंजन में देश में रेल नेटवर्क के विकास के लिए रेल कारखाना भी स्थापित करवाया. इसके अतिरिक्त विशाखापत्तनम में जहाज बनाने का कारखाना स्थापित करवाना इनकी दूरगामी सोच का ही नतीजा था. डॉ. मुखर्जी के अथक प्रयास से ही हैदराबाद निजाम को भारत देश में अपनी रियासत को विलय करने के लिए विवश होना पड़ा.
6.कश्मीर के भारत में विलय को लेकर संघर्ष - आजादी के पश्चात सन 1950 में भारत देश की आर्थिक स्थिति सोचनीय थी. यह सब डॉ. मुखर्जी से देखा नहीं गया. परिणामस्वरूप आपने भारत सरकार की अहिंसावादी नीतियों से रुष्ट होकर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इसीलिए कहते हैं कि डॉ. मुखर्जी को सत्ता का लेश मात्र भी लालच नहीं था. केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के पश्चात अब आप एक सक्रिय विपक्ष की भूमिका में थे जिन्होंने सरकार के हर गलत फैसले की कटु आलोचना की. डॉ. मुखर्जी सदैव यहीं चाहते थे कि सम्पूर्ण देश में एक झंडा, एक निशान होना चाहिए. यहीं कारण है कश्मीर को लेकर वे बहुत चिंतित थे क्योंकि एक ही देश में दो झंडे एवं दो निशान उनको मंजूर नहीं थे. इसीलिए इन्होनेँ कश्मीर के भारत देश में सम्पूर्ण विलय के लिए अपनी कोशिशें आरम्भ कर दी और कश्मीर के भारत में विलय को लेकर एक जन आंदोलन आपने छेड़ दिया. इस कार्य में आपने जम्मू की प्रजा परिषद् पार्टी का भी सहयोग लिया.
कश्मीर के भारत में विलय को लेकर आपने अटल बिहारी वाजपेयी (जो उस समय देश के विदेश मंत्री थे), डॉ. बर्मन और वैद्य गुरुदत्त आदि नेताओं के साथ मिलकर 8 मई सन 1953 को जम्मू के लिए कूच (रवाना) कर दिया. जम्मू में घुसते ही सीमा पर आपको जम्मू - सरकार के द्वारा हिरासत में ले लिया गया. और जम्मू की जेल में उन्हें बंद कर दिया गया.
7. मृत्यु - आप 40 दिनों तक जेल में बंद रहें और कश्मीर के भारत में विलय को लेकर जेल के अंदर से ही आंदोलन को धार देते रहें. डॉ. मुखर्जी की 23 जून सन 1953 को जेल में ही संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी.
अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक, महान क्रांतिकारी एवं कुशल राजनेता के असामयिक निधन से मानों सम्पूर्ण भारत देश शोक में डूब गया. जब 23 जून सन 1953 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु की घोषणा हुई. बंगाल की धरती में जन्मा यह लाल आज (23 जून सन 1953 को) सदा के लिए चिर निद्रा में विलीन हो गया. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसा चमकता सितारा आज भले ही हमारे बीच न हो किन्तु उनके सिद्धांत, आदर्श एवं विचार सदैव हम भारतवंशियों के दिल में बने रहेंगे.
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