कवि बिहारी लाल का जीवन परिचय ।। biharilal ka jivan Parichay
बिहारीलाल का जीवन परिचय, बिहारीलाल, जीवन परिचय बिहारीलाल, Biharilal ka jivan parichay, Jeevan parichay biharilal, Biharilal ji ka jeevan parichay, Jeevan parichay, Jeevan parichay 2021 board exam, Class 10 hindi important jeevan parichay 2021 board exam, Bihari ka jeevan parichay, बिहारी का जीवन परिचय, सबसे महत्वपूर्ण जीवन परिचय
Bihari Lal ki jivani
बिहारी लाल की रचनाएं
बिहारी के दोहे
कवि बिहारीलाल का जीवन परिचय -
नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandana Classes.com पर . दोस्तों आज की पोस्ट में हम चर्चा करने जा रहे हैं, हिंदी साहित्य जगत में बिहारी सतसई, एवं बिहारी के दोहे की रचना करने वाले प्रमुख साहित्यकार , कवि माने जाने वाले बिहारी लाल की। दोस्तों यह किसने सोचा था कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के गोविंदपुर गांव से निकला एक साधारण युवक बिहारी लाल के नाम से प्रसिद्ध होगा और श्री अपनी रचनाओं का ऐसा रस आम जनमानस में घोलेगा की जन-जन उसकी रचनाओं का दीवाना हो जाएगा जी हां आज हम अपने पोस्ट में हिंदी साहित्य के ऐसे ही महान कवि एवं बृज भाषा के महान साहित्यकार, महान कृष्ण भक्त बिहारी लाल जी के जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय के बारे में आप लोगों को बताने जा रहे हैं।दोस्तों बिहारी लाल एक ऐसा नाम जिसे गागर में सागर भरने का पर्याय माना जाता है। दोस्तों जब जब बिहारी सतसई का नाम लिया जाएगा तब तब बिहारी लाल जी का नाम भी सदैव समाज याद करेगा। दोस्तों यह किसने सोचा था कि मध्य प्रदेश में जन्मा एक नन्हा सा बालक बिहारी सतसई एवं बिहारी के दोहे जैसे महत्वपूर्ण कृतियों की रचना करेगा? ना ही यह किसी ने सोचा होगा कि मध्य प्रदेश की माटी से निकला एक लाल जिसने श्रंगार , नीतिपरक दोहे को जन-जन तक पहुंचाया, एक दिन हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा बनेगा। श्रंगार, नीतिपरक दोहे, भक्ति से ओतप्रोत महान कवि बिहारी लाल का नाम साहित्य जगत में बहुत ही आदर और सम्मान से लिया जाता है। बिहारी लाल हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा, जिन्हें हिंदी के श्रेष्ठतम लेखकों में गिना जाता है। बिहारी लाल एक ऐसा नाम जिसने अपनी कलम से हिंदी साहित्य जगत में क्रांति ला दी। बिहारी लाल एक ऐसा नाम - जिसे हिंदी साहित्य में बिहारी सतसई एवं बिहारी के दोहे जैसी श्रेष्ठ रचना के लिए जाना जाता है. महान श्रंगार, नीतिपरक दोहे, भक्त श्रेष्ठ साहित्यकार , श्रेष्ठतम कवि बिहारी लाल जी को यदि हिंदी साहित्य का महान साहित्यकार भी कहा जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. बिहारी लाल - एक ऐसा नाम जिसने हिंदी साहित्य की दिशा और दशा को बदलने का कार्य किया. यदि बिहारी लाल जी को हिंदी साहित्य का कोहिनूर हीरा भी कहा जाये तो इसमें कोई विवाद नहीं होगा क्योंकि उन्होनें हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नया कीर्तिमान स्थापित किया जिसे युगों - युगों तक हिंदी साहित्य में याद रखा जायेगा. बिहारी लाल जी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कुछ ऐसे नए मानदंड और आयाम स्थापित कर दिए हैं जिन्हें हिंदी साहित्य जगत में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा. दोस्तों यद्यपि बिहारी लाल जी आज हम लोगों के बीच में नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं, काव्य- कृतियां विश्व भर के साहित्य प्रेमियों के हृदय में हमेशा जीवंत रहेंगी।तो दोस्तों ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व के बारे में हम लोग आज जानेगे तो दोस्तों यदि आपको ये पोस्ट पसंद आये तो इसे अधिक से अधिक अपने दोस्तों में जरूर शेयर करिएगा.
दोस्तों यह तो सभी जानते हैं कि जब जब श्रंगार नीतिपरक दोहे, की भक्ति की रचनाओं की बात होगी उस समय सबसे पहले जो नाम सबसे अगर पंक्ति में होगा वह नाम होगा महाकवि बिहारी लाल जी। बिहारी लाल जी एक ऐसा नाम जिसने अपनी रचनाओं एवं कविताओं से नीतिपरक दोहे की भक्ति का ऐसा रस आम जनमानस में घोला कि आज नैतिक शिक्षा, नैतिकता की रसमयी काव्य धारा केवल हिंदुस्तान में ही नहीं अपितु समस्त विश्व में बह रही है। दोस्तों यदि यह पोस्ट आप लोगों को पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में अधिक से अधिक शेयर करिएगा।
कवि बिहारी लाल हिंदी साहित्य के रीति काल के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। यह मूलतः श्रृंगार रस के कवि रहे हैं। इन्होंने सौंदर्य ,प्रेम ,श्रृंगार एवं भक्ति से परिपूर्ण काव्य रचना की है। मुगल कालीन युग के कवि होने के कारण इनकी काव्य भाषा ब्रजभाषा रही है। कवि बिहारी लाल ने जयपुर नरेश सवाई राजा जयसिंह के दरबार के कवि के रूप में अनेक कब रचनाएं की। ऐसा कहा जाता है कि राजा जयसिंह अपनी रानी के प्रेम के कारण महल से बाहर नहीं निकलते थे और राज्य कार्य पर कोई ध्यान नहीं देते थे। तब कवि बिहारी ने एक दुआ लिखकर उसके माध्यम से उन्हें पुनः राज कार्य के लिए प्रेरित किया वह दोहा इस प्रकार है -
" नहिं पराग मधुर मधु , नहिं विकास यहि काल .
अली कली ही सौ बंध्यो, आगे कौन हवाल ॥ "
जीवन परिचय
बिहारी लाल
जीवन परिचय :एक दृष्टि में
जीवन परिचय- कवि बिहारी जी का जन्म 1603 ई० में ग्वालियर के पास बसुआ (गोविंदपुर गांव) में माना जाता है। उनके पिता का नाम पंडित केशव राय चौबे था। बचपन में ही ये अपने पिता के साथ ग्वालियर से ओरछा नगर आ गए थे। यहीं पर आचार्य केशवदास से इन्होंने काव्यशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की और काव्यशास्त्र में पारंगत हो गए।
ये माथुर चौबे कहे जाते हैं। इनका बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ। युवावस्था में ये अपनी ससुराल मथुरा में जाकर रहने लगे-
"जन्म ग्वालियर जानिए, खंड बुंदेले बाल।
तरुनाई आई सुधर, मथुरा बसि ससुराल।।"
बिहारी जी को अपने जीवन में अन्य कवियों की अपेक्षा बहुत ही कटु अनुभवों से गुजरना पड़ा, फिर भी हिंदी साहित्य को इन्होंने काव्य-रूपी अमूल्य रत्न प्रदान किया है। बिहारी, जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के आश्रित कवि माने जाते हैं। कहा जाता है कि जयसिंह नई रानी के प्रेमवश में होकर राज-काज के प्रति अपने दायित्व भूल गए थे, तब बिहारी ने उन्हें एक दोहा लिखकर भेजा,
नहि परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।
अली कली ही सौं विंध्यौ, आगे कौन हवाल।।
जिससे प्रभावित होकर उन्होंने राज-काज में फिर से रुचि लेना शुरू कर दिया और राज दरबार में आने के पश्चात उन्होंने बिहारी को सम्मानित भी किया। आगरा आने पर बिहारी जी की भेंट रहीम से हुई। 1662 ईस्वी में बिहारी जी ने 'बिहारी सतसई' की रचना की। इसके पश्चात बिहारी जी का मन काव्य रचना से भर गया और ये भगवान की भक्ति में लग गए। 1663 ई० में ये रससिद्ध कवि पंचतत्व में विलीन हो गए।
साहित्यिक परिचय- बिहारी जी ने 700 से अधिक दोहों की रचना की, जोकि विभिन्न विषयों एवं भावों पर आधारित हैं। इन्होंने अपने एक-एक दोहे में गहन भावों को भरकर उत्कृष्ट कोटि की अभिव्यक्ति की है। बिहारी जी ने श्रंगार, भक्ति, नीति, ज्योतिष, गणित, इतिहास तथा आयुर्वेद आदि विषयों पर दोहों की रचना की है। इनके श्रंगार संबंधी दोहे अपनी सफल एवं सशक्त भावाभिव्यक्ति के लिए विशिष्ट समझे जाते हैं। इन दोहों में संयोग एवं वियोग के मर्मस्पर्शी चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। बिहारी जी के दोहों में नायिका, भेद, भाव, विभाव, अनुभाव, रस, अलंकार आदि सभी दृष्टियों से विश्वमयजनक अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। कविताओं में श्रंगार रस का अधिकाधिक प्रयोग देखने को मिलता है।
रचनाएं- 'बिहारी सतसई' मुक्तक शैली में रचित बिहारी जी की एकमात्र कृति है, जिसमें 723 दोहे हैं। बिहारी सतसई को 'गागर में सागर' की संज्ञा दी जाती है। वैसे तो बिहारी जी ने रचनाएं बहुत कम लिखी हैं, फिर भी विलक्षण प्रतिभा के कारण इन्हें महाकवि के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है।
भाषा-शैली- बिहारी जी ने साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा साहित्यिक होने के साथ-साथ मुहावरेदार भी है। इन्होंने अपनी रचनाओं में मुक्तक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली के अंतर्गत ही इन्होंने 'समास शैली' का विलक्षण प्रयोग भी किया है। इस शैली के माध्यम से ही इन्होंने दोहे जैसे छंद को भी सशक्त भावों से भर दिया है।
हिंदी साहित्य में स्थान- बिहारी जी रीतिकाल के अद्वितीय कवि हैं। परिस्थितियों से प्रेरित होकर इन्होंने जिस साहित्य का सृजन किया, वह साहित्य की अमूल्य निधि है। बिहारी के दोहे रस के सागर हैं, कल्पना के इंद्रधनुष है व भाषा के मेघ हैं। ये हिंदी साहित्य की महान विभूति हैं, जिन्होंने अपनी एकमात्र रचना के आधार पर हिंदी साहित्य जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
कई कवियों ने इनके दोहों पर आधारित अन्य छंदों की रचना की है। इनके दोहे सीधे हृदय पर प्रहार करते हैं। इनके दोहों के विषय में निम्नलिखित उक्ति प्रसिद्ध है-
"सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगै, घाव करैं गंभीर।।"
पुस्तकें बिहारी द्वारा रचित-
1.बिहारी सतसई
2.बिहारी के दोहे
3.बिहारीलाल के पच्चीस दोहे
काव्य बिहारीलाल द्वारा रचित
1.माहि सरोवर सौरभ लै
2.है यह आजु बसंत समौ
3.बौरसरी मधुपान छक्यो
4.नील पर कटि तट
5.जानत नहिं लागि मैं
6.गहि सरोवर सौरभ लै
7.केसरि से बरन सुबर
8.उडि गुलाल घूँघर भई
9.पावस रितु वृन्दावन की
10.रतनारी हो भारी ऑखड़ियाँ
11.हो झालो दे छे रसिया नागर पना
12.मैं अपनौ मनभावन लीनों
13.सौह किये ढरकौहे से नैन
14.बिरहानल दाह दहै पन ताप
बिहारीलाल के काव्य की भाषा शैली
बिहारी की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। इसमें सूरदास की चलती ब्रज भाषा का विकसित रूप मिला है। इसके साथ ही पूर्वी हिंदी, बुंदेलखंडी, उर्दू ,फारसी आदि के शब्द भी उस में आए हैं। कवि बिहारी का शब्द चयन बड़ा सुंदर और सार्थक है। शब्दों का प्रयोग भावो के अनुकूल ही हुआ है। उन्होंने अपनी भाषा में कहीं-कहीं मुहावरों का भी सुंदर प्रयोग किया है।
कवि बिहारी लाल की मृत्यु
महाकवि बिहारी लाल ने अपनी काव्य रचनाओं से हिंदी साहित्य में अमूल्य योगदान दिया है। उनके द्वारा रचित सतसई काव्य ग्रंथ ने उन्हें साहित्य में अमर कर दिया। महाकवि बिहारी लाल की मृत्यु 1663 ईसवी के लगभग मानी जाती है।
माता पिता -
कविवर बिहारी जी के पिता का नाम केशवदास था। इनके पिता निम्बार्क -संप्रदाय के संत नरहरी दास के शिष्य थे |तथा इनकी माता के नाम के संबंध में कोई साक्ष्य - प्रमाण प्राप्त नहीं है |
शिक्षा -
कहा जाता है कि केशवराय इनके जन्म के सात - आठ वर्ष बाद ग्वालियर छोड़कर ओरछा चले गए | वही बिहारी ने हिंदी के सुप्रसिद्ध कविआचार्य केशवदास एक आप ग्रंथों के साथ ही संस्कृत और प्राकृत आदि का अध्ययन किया ।आगरा जा कर इन्होंने उर्दू फारसी अध्ययन किया और अब्दुल रहीम खानखाना के संपर्क में आए ।बिहारी जी को अनेक विषयों का ज्ञान था |
गुरु -
बिहारी जी के गुरु स्वामी वल्लभाचार्य जी थे।
काव्य - गुरु
रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी जी के काव्य गुरु आचार्य केशवदास जी थे।
विवाह -
कविवर बिहारी का विवाह मथुरा के किसी ब्राह्मण की कन्या से हुआ था ।इनके कोई संतान न होने कारण इन्होंने अपने भतीजे निरंजन को गोद ले लिया था |
महान कवि बिहारी लाल के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर
कबीर बिहारी का जीवन परिचय लिखिए।
कवि बिहारी जी का जन्म 1603 ई० में ग्वालियर के पास बसुआ (गोविंदपुर गांव) में माना जाता है। उनके पिता का नाम पंडित केशव राय चौबे था। बचपन में ही ये अपने पिता के साथ ग्वालियर से ओरछा नगर आ गए थे। यहीं पर आचार्य केशवदास से इन्होंने काव्यशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की और काव्यशास्त्र में पारंगत हो गए।
ये माथुर चौबे कहे जाते हैं। इनका बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ। युवावस्था में ये अपनी ससुराल मथुरा में जाकर रहने लगे
बिहारी लाल की मृत्यु कब हुई थी ?
बिहारी लाल की मृत्यु 1663 ईस्वी में हुई थी।
बिहारी लाल की भाषा क्या है?
बिहारी लाल की भाषा हिंदी ,भाषा और फारसी है।
बिहारीलाल का जन्म कब हुआ था?
बिहारीलाल का जन्म 1603 ईस्वी में हुआ था।
बिहारी के काव्य की भाषा लिखिए?
बिहारी की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। इसमें सूरदास की चलती ब्रज भाषा का विकसित रूप मिला है। इसके साथ ही पूर्वी हिंदी, बुंदेलखंडी, उर्दू ,फारसी आदि के शब्द भी उस में आए हैं। कवि बिहारी का शब्द चयन बड़ा सुंदर और सार्थक है। शब्दों का प्रयोग भावो के अनुकूल ही हुआ है। उन्होंने अपनी भाषा में कहीं-कहीं मुहावरों का भी सुंदर प्रयोग किया है।
बिहारी लाल का कवि परिचय लिखें?
कवि बिहारी जी का जन्म 1603 ई० में ग्वालियर के पास बसुआ (गोविंदपुर गांव) में माना जाता है। उनके पिता का नाम पंडित केशव राय चौबे था। बचपन में ही ये अपने पिता के साथ ग्वालियर से ओरछा नगर आ गए थे। यहीं पर आचार्य केशवदास से इन्होंने काव्यशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की और काव्यशास्त्र में पारंगत हो गए।
ये माथुर चौबे कहे जाते हैं। इनका बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ। युवावस्था में ये अपनी ससुराल मथुरा में जाकर रहने लगे।
बिहारी के आश्रय दाता कहां के राजा थे?
कविवर बिहारी जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। बिहारी हिंदी रीति काल के प्रसिद्ध कवि थे। जयपुर नरेश सवाई जय सिंह अपनी नई रानी के प्रेम में इतने डूबे रहते थे कि वह महल से बाहर भी नहीं निकलते थे और राजकाज की ओर कोई भी ध्यान नहीं देते थे।
👉छायावादी युग तथा इसकी प्रमुख विशेषताएं
👉मुहावरे तथा लोकोक्ति में अंतर
👉खंडकाव्य तथा महाकाव्य में अंतर
👉राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा में अंतर
👉निबंध क्या है ? निबंध कितने प्रकार के होते हैं ?
👉उपन्यास किसे कहते हैं ? उपन्यास के प्रकार
👉रिपोर्ताज किसे कहते हैं? रिपोतार्ज का अर्थ एवं परिभाषा
👉रेखाचित्र किसे कहते हैं ?एवं रेखाचित्र की प्रमुख विशेषताएं
👉आलोचना किसे कहते हैं? प्रमुख आलोचना लेखक
👉भारतेंदु युग की प्रमुख विशेषताएं
👉विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं अधिकार
👉रस किसे कहते हैं ? इसकी परिभाषा
👉महात्मा गांधी पर अंग्रेजी में 10 लाइनें
👉10 lines on Mahatma Gandhi in English
Post a Comment