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सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय / sumitranandan pant ka jivan Parichay

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय / sumitranandan pant ka jivan Parichay

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सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय


सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय - साहित्यिक परिचय, रचनाएं एवं भाषा शैली।


Sumitranandan pant ka jivan Parichay in Hindi



नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandana Classes.com पर . दोस्तों आज की पोस्ट में हम चर्चा करने जा रहे हैं, हिंदी साहित्य जगत में पल्लव, पीताम्बरा  एवं सत्यकाम की रचना करने वाले प्रमुख साहित्यकार , कवि माने जाने वाले सुमित्रानंदन पंत की। दोस्तों यह किसने सोचा था कि कौसानी गांव से निकला एक साधारण युवक सुमित्रानंदन पंत के नाम से प्रसिद्ध होगा और  अपनी रचनाओं का ऐसा रस आम जनमानस में घोलेगा की जन-जन उसकी रचनाओं का दीवाना हो जाएगा जी हां आज हम अपने पोस्ट में हिंदी साहित्य के ऐसे ही महान कवि एवं संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला तथा हिंदी के महान साहित्यकार, सुमित्रानंदन पंत जी के जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय के बारे में आप लोगों को बताने जा रहे हैं।दोस्तों सुमित्रानंदन पंत एक ऐसा नाम जिसे हिंदी साहित्य का पर्याय माना जाता है। दोस्तों जब जब पल्लव एवं पीतांबरा का नाम लिया जाएगा तब तब सुमित्रानंदन पंत जी का नाम भी सदैव समाज याद करेगा। दोस्तों यह किसने सोचा था कि कौसानी में जन्मा एक नन्हा सा बालक पीतांबरा एवं सत्य काम जैसे महत्वपूर्ण कृतियों की रचना करेगा? ना ही यह किसी ने  सोचा होगा कि कौसानी ग्राम की माटी से निकला एक लाल जिसने संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला एवं हिंदी भाषा को जन-जन तक पहुंचाया, एक दिन हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा बनेगा।  साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महान कवि सुमित्रानंदन पंत का नाम साहित्य जगत में बहुत ही आदर और सम्मान से लिया जाता है। सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा, जिन्हें हिंदी के श्रेष्ठतम लेखकों में गिना जाता है। सुमित्रानंदन पंत एक ऐसा नाम जिसने अपनी कलम से हिंदी साहित्य जगत में क्रांति  ला दी। सुमित्रानंदन पंत एक ऐसा नाम - जिसे हिंदी साहित्य में पीतांबरा एवं पल्लव जैसी श्रेष्ठ रचना के लिए जाना जाता है. महान संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला एवं हिंदी भाषा के श्रेष्ठ साहित्यकार , श्रेष्ठतम कवि सुमित्रानंदन पंत जी को यदि हिंदी साहित्य का महान साहित्यकार भी कहा जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. सुमित्रानंदन पंत - एक ऐसा नाम जिसने हिंदी साहित्य की दिशा और दशा को बदलने का कार्य किया. यदि सुमित्रानंदन पंत जी को हिंदी साहित्य का कोहिनूर हीरा भी कहा जाये तो इसमें कोई विवाद नहीं होगा क्योंकि उन्होनें हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नया कीर्तिमान स्थापित किया जिसे युगों - युगों तक हिंदी साहित्य में याद रखा जायेगा. सुमित्रानंदन पंत जी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कुछ ऐसे नए मानदंड और आयाम स्थापित कर दिए हैं  जिन्हें हिंदी साहित्य जगत में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा. दोस्तों यद्यपि सुमित्रानंदन पंत जी आज हम लोगों के बीच में नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं, काव्य- कृतियां विश्व भर के साहित्य प्रेमियों के हृदय में हमेशा जीवंत रहेंगीतो दोस्तों ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व के बारे में हम लोग आज जानेगे तो दोस्तों यदि आपको ये पोस्ट पसंद आये तो इसे अधिक से अधिक अपने दोस्तों में जरूर शेयर करिएगा

दोस्तों यह तो सभी जानते हैं कि जब जब हिंदी साहित्य एवं अंग्रेजी साहित्य के रचनाओं की बात होगी उस समय सबसे पहले जो नाम सबसे अगर पंक्ति में होगा वह नाम होगा महाकवि  सुमित्रानंदन पंत जी। सुमित्रानंदन पंत जी एक ऐसा नाम जिसने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का ऐसा रस आम जनमानस में घोला कि आज नैतिक शिक्षा, नैतिकता  की रसमयी काव्य धारा केवल हिंदुस्तान में ही नहीं अपितु समस्त विश्व में बह रही है। दोस्तों यदि यह पोस्ट आप लोगों को पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में अधिक से अधिक शेयर करिएगा।


सुमित्रानंदन पंत


   जीवन परिचय


जीवन परिचय : एक दृष्टि में



नाम

सुमित्रानंदन पंत (मूल नाम गुसाईं दत्त)

जन्म

20 मई, 1900 ईस्वी में।

जन्म स्थान

कौसानी ग्राम

मृत्यु

28 दिसंबर ,1977 ईस्वी में।

पिताजी का नाम

पंडित गंगादत्त

माता जी का नाम

सरस्वती देवी

आरंभिक शिक्षा

कौसानी गांव

उच्च शिक्षा

बनारस और इलाहाबाद (अब प्रयागराज)

भाषा

संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला तथा हिंदी

उपलब्धियां

सन 1950 ईस्वी में ऑल इंडिया रेडियो के परामर्शदाता, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सेवियत भूमि पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार पद्मभूषण उपाधि।

काव्य धारा

छायावादी

शैली

गीतात्मक

साहित्य में योगदान

काव्य में प्राकृतिक के कोमल भाव तथा मानवीय भागों का अत्यंत सूक्ष्म में वर्णन करने में यह अद्वितीय हैं।

पुरस्कार

पद्म विभूषण (1961), ज्ञानपीठ (1968), साहित्य अकादमी

रचनाएं

पल्लव, पीतांबरा एवं सत्यकाम



जीवन परिचय- कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को अल्मोड़ा के निकट कौसानी ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित गंगा दत्त था। जन्म के 6 घंटे पश्चात ही इनकी माता स्वर्ग सिधार गई। अतः इनका लालन-पालन पिता तथा दादी ने किया।


इनकी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव में तथा उच्च शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में और बाद में बनारस के 'क्वींस' कॉलेज से हुआ। इनका काव्यगत सृजन यहीं से प्रारंभ हुआ। इन्होंने स्वयं ही अपना नाम 'गुसाईं दत्त' से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। काशी में पंत जी का परिचय सरोजिनी नायडू तथा रविंद्र नाथ टैगोर के काव्य के साथ-साथ अंग्रेजी की रोमांटिक कविता से हुआ और यहीं पर इन्होंने कविता प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रशंसा प्राप्त की। 'सरस्वती पत्रिका' में प्रकाशित होने पर इनकी रचनाओं ने काव्य-मर्मज्ञों के हृदय में अपनी धाक जमा ली। वर्ष 1950 में ये 'ऑल इंडिया रेडियो' के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और वर्ष 1957 तक ये प्रत्यक्ष रुप से रेडियो से संबद्ध रहे। ये छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। इन्होंने वर्ष 1916-1977 तक साहित्य सेवा की। 28 दिसंबर, 1977 को प्रकृति का यह सुकुमार कवि पंचतत्व में विलीन हो गया।

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सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गुसाई दत्त रखा गया था। लेकिन इनको अपना नाम पसंद नहीं था इसलिए इन्होंने बाद में अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया।



साहित्यिक परिचय- सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के महान कवियों में से एक माने जाते हैं। 7 वर्ष की अल्पायु से ही इन्होंने कविताएं लिखना प्रारंभ कर दिया था।


वर्ष 1916 में इन्होंने 'गिरजे का घंटा' नामक सर्वप्रथम रचना लिखी। इलाहाबाद के 'म्योर कॉलेज' में प्रवेश लेने के उपरांत इनकी साहित्यिक रुचि और भी अधिक विकसित हो गई। वर्ष 1920 में इनकी रचनाएं 'उच्छवास' और 'ग्रंथि' में प्रकाशित हुई। इनके उपरांत वर्ष 1927 में इनके 'वीणा' और 'पल्लव' नामक दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। इन्होंने 'रूपाभ' नामक एक प्रगतिशील विचारों वाले पत्र का संपादन भी किया। वर्ष 1942 में इनका संपर्क महर्षि अरविंद घोष से हुआ।


इन्हें 'कला और बूढ़ा चांद' पर 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'लोकायतन' पर 'सोवियत भूमि पुरस्कार' और 'चिदंबरा' पर भारतीय 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने पंत जी को 'पदम भूषण' की उपाधि से अलंकृत किया।



 रचनाएं- पंत जी की कृतियां निम्नलिखित हैं-



काव्य- वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, स्वर्ण किरण, युगांत, युगवाणी, लोकायतन, चिदंबरा।



नाटक- रजतरश्मि, शिल्पी, ज्योत्सना।



उपन्यास- हार



पंत जी की अन्य रचनाएं हैं- पल्लविनी, अतिमा, युगपथ, ऋता, स्वर्ण किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चांद, शिल्पी, स्वर्णधूलि आदि।



भाषा शैली- पंत जी की शैली अत्यंत सरस एवं मधुर है। बांग्ला तथा अंग्रेजी भाषा से प्रभावित होने के कारण इन्होंने गीतात्मक शैली अपनाई। सरलता, मधुरता, चित्रात्मकता, कोमलता और संगीतात्मकता इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं।



हिंदी साहित्य में स्थान - पंत जी सौंदर्य के उपासक थे। प्रकृति, नारी और कलात्मक सौंदर्य इनकी सौंदर्य अनुभूति के तीन मुख्य केंद्र रहे। इनके काव्य जीवन का आरंभ प्रकृति चित्रण से हुआ। इनके प्रकृति एवं मानवीय भावों के चित्र में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं।


इसी कारण इन्हें प्रकृति का सुकुमार एवं कोमल भावनाओं से युक्त कवि कहा जाता है। पंत जी का संपूर्ण काव्य साहित्य चेतना का प्रतीक है, जिसमें धर्म-दर्शन, नैतिकता ,सामाजिकता, भौतिकता आध्यात्मिकता सभी का समावेश है।



आरंभिक शिक्षा - इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई थी। 1918 में वे अपने भाई के साथ काशी आ गई और वहां क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगी। मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद यह इलाहाबाद आ गई। वहां वहां पर इन्होंने कक्षा बारहवीं ( इंटरमीडिएट) तक की पढ़ाई की। 1919 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह से प्रभावित होकर अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गई। हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और बंगला का स्वाध्याय किया। इनका प्रकृति से असीम लगाव था। बचपन से ही सुंदर रचनाएं लिखा करती थी।



आर्थिक संकट और मार्क्सवाद से परिचय - 


कुछ वर्षों के बाद सुमित्रानंदन पंत को गौर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। कर्ज से जूते हुए पिताजी का निधन हो गया। कर्ज चुकाने के लिए जमीन और घर भी बेचना पड़ा। इन परिस्थितियों में वह मार्क्सवाद की ओर उन्मुख हुए।



उत्तरोत्तर जीवन - सुमित्रानंदन पंत जी 1931 में कुंवर सुरेश सिंह के साथ कालाकांकर प्रतापगढ़ चले गए और अनेक वर्षों तक वही रहे। 1938 में इन्होंने प्रगतिशील मानसिक पत्रिका रूपाभ का संपादन किया। श्री अरविंद आश्रम की यात्रा से इनमें अध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ और उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया।



1950 से 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता रहे।


1958 में युगवाणी से वाणी काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन चितांबरा प्रकाशित हुआ, जिस पर 1958 में उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।


1960 में कला और बूढ़ा चांद काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।


1961 में पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित हुए।


1964 में विशाल महाकाव्य लोकायतन का प्रकाशन हुआ। कालांतर में इनके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। यह जीवन पर्यंत रचनारत रहे।


अविवाहित पंत जी के अंतर स्थल में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौंदर्य परख भावना रही। इनकी मृत्यु 28 दिसंबर 1957 को हुई।



विचारधारा - उनका संपूर्ण साहित्य सत्यम शिवम सुंदरम के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा। जहां प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सुंदर के रमणीय चित्र मिलते हैं वही दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सोच में कल्पनाओं कोमल भावनाओं के और अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशील । उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं से प्रेरित है। पंत परंपरावादी आलोचकों और प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी आलोचकों के सामने कभी नहीं झुके। उन्होंने अपनी कविताओं में पूर्ण मान्यताओं को नकारा नहीं। उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को नम्र अवज्ञा कविता के माध्यम से खारिज किया।



सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएं



कविता संग्रह / खंडकाव्य



1.उच्छवास


2.पल्लव


3.वीणा


4.ग्रंथि


5.गुंजन


6.ग्राम्या


7.युगांत


8.युगांतर


9.स्वर्णकिरण


10.स्वर्णधूलि


11.कला और बूढ़ा चांद


12.लोकायतन


13.सत्यकाम


14.मुक्ति यज्ञ


15.तारा पथ


16.मानसी


17.युगवाणी


18.उत्तरा


19.रजतशिखर


20.शिल्पी


21.सौंदण


22.अंतिमा


23.पतझड़


24.अवगुंठित


25.मेघनाथ वध


26.ज्योत्सना



चुनी गईं रचनाओं के संग्रह



1.युगपथ


2.चिदंबरा


3.पल्लविनी


4.स्वच्छंद



पुरस्कार और सम्मान :- 



चिदंबरा के लिए ज्ञानपीठ लोकायतन के लिए सेवियत नेहरू शांति पुरस्कार और हिंदी साहित्य की इस अनवरत सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया गया। सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौसानी में उनके पुराने घर को जिसमें वह बचपन में रहा करते थे सुमित्रानंदन पंत विधिका के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों कविताओं की मूल पांडुलिपियों छायाचित्र और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। इसमें एक पुस्तकालय भी है जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है।



स्मृति विशेष - उत्तराखंड में कुमायूं की पहाड़ियों पर बने कौसानी गांव में जहां उनका बचपन बीता था वहां का उनका घर आज सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक विधिका नामक संग्रहालय बन चुका है। इस संग्रहालय में उनके कपड़े चश्मा कलम आधी व्यक्तिगत वस्तुएं सुरक्षित रखी गई है जहां पर वही उनका प्रयोग करते थे। संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्ति पत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्ति पत्र भी मौजूद है। साथ ही उनकी रचनाएं लोकायतन आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियों भी स्वच्छ रखी है। काला काम करके कुंवर सुरेश सिंह हरिवंश राय बच्चन से किए गए उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपि भी यहां मौजूद हैं।




सुमित्रानंदन पंत के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर



सुमित्रानंदन पंत का साहित्य में स्थान बताइए।


पंत जी सौंदर्य के उपासक थे। प्रकृति, नारी और कलात्मक सौंदर्य इनकी सौंदर्य अनुभूति के तीन मुख्य केंद्र रहे। इनके काव्य जीवन का आरंभ प्रकृति चित्रण से हुआ। इनके प्रकृति एवं मानवीय भावों के चित्र में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं।


इसी कारण इन्हें प्रकृति का सुकुमार एवं कोमल भावनाओं से युक्त कवि कहा जाता है। पंत जी का संपूर्ण काव्य साहित्य चेतना का प्रतीक है, जिसमें धर्म-दर्शन, नैतिकता ,सामाजिकता, भौतिकता आध्यात्मिकता सभी का समावेश है।



सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।


पंत जी की शैली अत्यंत सरस एवं मधुर है। बांग्ला तथा अंग्रेजी भाषा से प्रभावित होने के कारण इन्होंने गीतात्मक शैली अपनाई। सरलता, मधुरता, चित्रात्मकता, कोमलता और संगीतात्मकता इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं।



सुमित्रानंदन पंत के माता-पिता का क्या नाम था?


सुमित्रानंदन पंत के पिता का नाम गंगादत्त पंत एवं माता का नाम सरस्वती देवी था।



सुमित्रानंदन पंत के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।


इनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था। झरना बर्फ पुष्प लता भ्रमण - गुंजन उषा किरण शीतल पवन तारों की चुनरीउड़े गगन से उतरती संध्या यह सब तो सहज रूप से कब का उपादान बने।निसर्ग के उपादानों का प्रतीक वबिम्ब के रूप प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का मुख्य बिंदु रहा या केंद्र बिंदु रहा।



 सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु कब हुई ?


28 दिसंबर, 1977 को प्रकृति का यह सुकुमार कवि पंचतत्व में विलीन हो गया।



सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब हुआ था?


कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को अल्मोड़ा के निकट कौसानी ग्राम में हुआ था।



सुमित्रानंदन पंत किस युग के कवि थे?


सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के कवि थे।



सुमित्रानंदन पंत का अंतिम काव्य क्या था?


पल्लव 1926, गुंजन 1932, युगांतर 1936 में प्रकाशित हुए। युगांतर के साथ ही पंत के काव्य विकास का एक कालखंड समाप्त हो जाता है। पर इस कालखंड में भी पल्लव के समापन के साथ एक परिवर्तन आता है। 



सुमित्रानंदन पंत को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला?


अन्य पुरस्कारों के अलावा सुमित्रानंदन पंत को ओपन भूषण 1961 और ज्ञानपीठ पुरस्कार 1968 से सम्मानित किया गया। अपनी रचना बूढ़ा चांद के लिए सुमित्रा नंदन को साहित्य अकादमी पुरस्कार, लोकायतन सेवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और चितांबरा पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।



वीणा किसकी रचना है?


वीणा सुमित्रानंदन पंत जी की रचना है।



सुमित्रानंदन पंत की कौन सी रचना अरविंद दर्शन से प्रभावित है?


सुमित्रानंदन पंत जी की रचनाओं का अंतिम चरण अरविंद दर्शन एवं नव मानवतावाद से प्रभावित है। इसके अंतर्गत कवि के निम्न संकलन किए जा सकते हैं स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूली उत्तरा, लोकायतन ,चितांबर आदि।




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