Class 12th Hindi Chapter 4 आलोक वृत्त खण्डकाव्य | Alok vritt Khandkavya Saransh Charitra Chitran Kathavastu
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट www.Bandana classes.com पर । आज की पोस्ट में हम आपको "Class 12th Hindi Chapter 4 आलोक वृत्त खण्डकाव्य का सारांश, चरित्र चित्रण एवं कथावस्तु | Alok vritt Khandkavya Saransh Charitra Chitran Kathavastu " के बारे में बताएंगे तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए।
आलोकवृत्त खंडकाव्य
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के प्रथम सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए।
उत्तर - प्रथम सर्ग : भारत का स्वर्णिम अतीत
प्रथम सर्ग में कवि ने भारत के अतीत के गौरव तथा तत्कालीन पराधीनता का वर्णन किया है। कवि ने बताया है कि भारत वेदों की भूमि रहा है। भारतवर्ष ने ही संसार को सर्वप्रथम ज्ञान की ज्योति दी थी, किंतु दुर्भाग्यवश एक समय ऐसा आया था भारतवासी यह भूल गए कि हम कितने गौरव मंडित थे? इसका परिणाम यह हुआ कि भारत वर्ष सैकड़ों वर्ष तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। सन 1857 ईस्वी की क्रांति के पश्चात गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर एक दिव्य ज्योतिर्मय विभूति मोहनदास करमचंद गांधी के रूप में प्रकट हुई, जिसने हमें विदेशियों की दासता से मुक्त करवाया।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए।
उत्तर - द्वितीय सर्ग- द्वितीय सर्ग में गांधी जी ने जीवन के क्रमिक विकास पर प्रकाश डाला है। वह बचपन में कुसंगति में फंस गए थे, किंतु से शीघ्र उन्होंने अपने पिता के समक्ष अपनी त्रुटियों पर पश्चाताप किया और दुर्गुणों को सदैव के लिए छोड़ने की प्रतिज्ञा की तथा आजीवन उसका निर्वाह किया। इसके बाद कस्तूरबा के साथ गांधी जी का विवाह हुआ। इसके कुछ समय बाद उनके पिताजी का देहांत हो गया। वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड गए। उनकी मां ने विदेश में रहकर मांस मदिरा का प्रयोग न करने के लिए समझाया-
मध्य- मांस- मंदिराक्षी से बचने की शपथ दिलाकर।
मां ने तो दी विदा पुत्र को मंगल तिलक लगाकर।।
इंग्लैंड में सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए भी वे एक दिन एक कलुषित स्थान पर पहुंच गए, लेकिन उन्होंने अपने चरित्र को कलुषित होने से बचा लिया। वहां से वे बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। भारत आने पर उन्हें उनकी माता के देहांत का दुखद समाचार मिला। यहीं पर द्वितीय सर्ग की कथा समाप्त हो जाती है।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के आधार पर गांधीजी के अफ़्रीका प्रवास (तृतीय सर्ग) के जीवन पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के तृतीय सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए।
उत्तर - तृतीय सर्ग: गांधी जी का अफ्रीका प्रवास
उत्तर - तृतीय सर्ग में गांधी जी के अफ्रीका में निवास का चित्रण है। एक बार रेलगाड़ी में यात्रा करते समय एक गोरे अंग्रेज ने उन्हें काला होने के कारण अपमानित करके रेलगाड़ी से नीचे उतार दिया। रंगभेद की कुटिल नीति से गांधी जी के हृदय को बहुत दुख पहुंचा। वह भारतीयों की दुर्दशा से चिंतित हो उठे। यहां पर कवि ने गांधीजी के मन में उत्पन्न अंतर्द्वंद का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है । गांधी जी ने सत्य और अहिंसा का सहारा लेकर असत्य और हिंसा का सामना करने का दृढ़ निश्चय किया। अपनी जन्मभूमि से दूर विदेश की भूमि पर उन्होंने मानवता के उद्धार का प्रण लिया-
पशु- बल के सम्मुख आत्मा की शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की आग बुझानी होगी।।
सत्य और अहिंसा के इस मार्ग को उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सैकड़ों सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया। दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष समाप्ति के साथ ही तृतीय सर्ग समाप्त हो जाता है।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।
उत्तर - चतुर्थ सर्ग : गांधी जी का भारत आगमन
चतुर्थ सर्ग में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आते हैं। भारत आकर गांधीजी ने लोगों को स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु जागृत किया। उन्होंने साबरमती नदी के तट पर अपना आश्रम बनाया। अनेक लोग गांधी जी के अनुयायी हो गए। इनमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, विनोबा भावे ,राजगोपालाचारी ,सरोजिनी नायडू, दीनबंधु ,मदन मोहन मालवीय ,सुभाष चंद्र बोस आदि अनेक प्रमुख देश प्रेमी भी गांधी जी के अनुयायी बन गए। अंग्रेज देश की जनता पर भारी अत्याचार कर रहे थे। गांधीजी ने चंपारण में नील की खेती को लेकर आंदोलन आरंभ किया; जिसमें वे सफल हुए। एक अंग्रेज द्वारा अपनी पत्नी के हाथों गांधीजी को किस देने तक का प्रयास किया गया, परन्तु वह स्त्री गांधी जी के दर्शन कर ऐसा न कर सकी। इसके विपरीत उन दोनों का ह्रदय- परिवर्तन हो गया। इसी सर्ग में खेड़ा सत्याग्रह का वर्णन भी हुआ है। कवि ने इस सत्याग्रह में सरदार वल्लभभाई पटेल का चरित्र- चित्रण विशेष रूप से किया है।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के पंचम सर्ग का सारांश लिखिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के आधार पर असहयोग आंदोलन की घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर - पंचम सर्ग: असहयोग आंदोलन
इस वर्ग में कवि ने यह चित्रित किया है कि गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता निरंतर बढ़ता गया। अंग्रेजों की दमन नीति भी बढ़ती गई। गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता प्रेमियों का समूह नागपुर पहुंचता है। नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी के ओजस्वी भाषण में भारतवर्ष के लोगों में नई स्फूर्ति भर दी , किंतु अंग्रेजों की 'फूट डालो और शासन करो' की नीति ने हिंदुओं मुसलमानों में सांप्रदायिक दंगे करवा दिए। गांधी जी को बंदी बना लिया गया। उन्होंने सत्याग्रह का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। कारागार से छूटने के बाद उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता, शराब मुक्ति, हरिजनोंत्थान , खादी प्रचार आदि रचनात्मक कार्यों में अपना संपूर्ण समय लगाना आरंभ कर दिया। हिंदू मुस्लिम एकता के लिए गांधीजी ने 21 दिनों का उपवास रखा-
आत्म शुद्धि का यज्ञ कठिन यह पूरा होने को जब आया।
बापू ने 21 दिनों के अनशन का संकल्प सुनाया।।
फिर लाहौर में पूर्ण स्वतंत्रता के प्रस्ताव के साथ ही पांचवा सर्ग को समाप्त हो जाता है।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के आधार पर षष्ठ सर्ग की घटना को लिखिए।
उत्तर - षष्ठ सर्ग: नमक सत्याग्रह
इस सर्ग में गांधी जी द्वारा चलाए गए नमक सत्याग्रह का वर्णन हुआ है। गांधीजी ने समुद्र तट पर बसे 'डांडी 'नामक स्थान की पैदल यात्रा 24 दिनों में पूरी की।
नमक आंदोलन में हजारों लोगों को बंदी बनाया गया। अंग्रेज सरकार ने लंदन में 'गोल मेंज सम्मेलन' बुलाया, जिसमें गांधी जी को आमंत्रित किया गया। इसके परिणाम स्वरुप सन 1937 ईस्वी में 'प्रांतीय स्वराज्य'की स्थापना हुई। इसके साथ ही षष्ठ सर्ग समाप्त हो जाता है।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के सप्तम सर्ग ( सन 1942 की जनक्रांति) का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
आलोकवृत्त खंडकाव्य की प्रमुख घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर - सप्तम सर्ग : सन 1942 की जनक्रांति
द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया। अंग्रेज सरकार भारतीयों का सहयोग तो चाहती थी, किंतु उन्हें पूर्ण अधिकार देना नहीं चाहती थी। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 1942 ईस्वी में गांधीजी ने 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' का नारा दिया। संपूर्ण देश में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। इसका वर्णन कवि ने बड़े ही सजीव रूप से किया है-
थे महाराष्ट्र- गुजरात उठे, पंजाब- उड़ीसा साथ उठे।
बंगाल इधर, मद्रास उधर, मरुस्थल में थी ज्वाला घर- घर।
कवि ने इस आंदोलन का वर्णन अत्यधिक ओजस्वी भाषा में किया है। मुंबई अधिवेशन के बाद गांधी जी सहित सभी भारतीय नेता जेल में डाल दिए जाते हैं। पूरे देश में इसकी विद्रोही प्रतिक्रिया होती है। कवि के शब्दों में-
जब क्रांति लहर चल पड़ती है, हिमगिरी की चूल उखड़ती है।
साम्राज्य उलटने लगते हैं, इतिहास पलटने लगते हैं।।
इस सर्ग में कवि ने गांधी जी एवं कस्तूरबा के मध्य एक वार्तालाप का भी भावपूर्ण चित्रण किया है। जिसमें गांधी जी के मानवीय स्वभाव कस्तूरबा की सेवा- भावना, मूक त्याग और बलिदान का सम्यक निरीक्षण किया है।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के अष्टम सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए।
उत्तर - अष्टम सर्ग : भारतीय स्वतंत्रता का अरुणोदय
अष्टम सर्ग का आरंभ भारत की स्वतंत्रता से किया गया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देशभर में हिंदू- मुस्लिम सांप्रदायिक दंगे हो जाते हैं। गांधी जी को इससे बहुत दुख हुआ। वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं-
प्रभो! इस देश को सत्पथ दिखाओ, लगी जो आग भारत में बुझाओ।
मुझे दो शक्ति इसको शांत कर दूं, लपट में रोष की निज शीश धर दूं ।।
प्रश्न. खंडकाव्य के लक्षणों के आधार पर 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
अथवा
खंडकाव्य की दृष्टि से 'आलोकवृत्त' का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य की विशेषताएं लिखिए।
अथवा
कथानक की दृष्टि से 'आलोकवृत्त' की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - 'आलोकवृत्त' की कथावस्तु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। कवि ने कल्पना का पुट देकर कथा को सरस तथा हृदयस्पर्शी बना दिया है। आलोकवृत्त खंडकाव्य की कथावस्तु की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार है-
१. प्रभावपूर्ण चित्रण और सो सुगठित घटनाक्रम- आलोकवृत्त की कथावस्तु के माध्यम से कवि ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है। आरंभ के 4 सर्गो में स्वाधीनता आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की गई है। और अंतिम 4 वर्गों में दक्षिण अफ्रीका से गांधी जी के भारत आगमन, स्वतंत्रता आंदोलन, स्वतंत्रता प्राप्ति और स्वतंत्रता के पश्चात भारत में हुए सांप्रदायिक दंगों का इतिहास रोचक शैली में कलात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है।
२. कथा संगठन- आलोकवृत्त का आरंभ भारत के गौरवमय अतीत से होता है। इसके साथ ही गांधी कालीन भारत की दुर्दशा का वर्णन किया गया है, जो बहुत ही प्रेरणा प्रद है। गांधी जी का शिक्षा ग्रहण करने इंग्लैंड जाना; वहां से बैरिस्टर बनकर दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह करना तथा तत्पश्चात तथा का उतार दिखाया गया है। इसके बाद भारत वर्ष तथा विश्व की मंगल कामना के साथ कथावस्तु का अंत हो जाता है।
३. सफल चित्रांकन :गांधी जी की जीवनी- 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य वास्तव में गांधी जी की संक्षिप्त जीवन कथा है। कवि ने गांधी जी के जन्म; शैशवाकालीन घटनाओं; पिता की मृत्यु; कस्तूरबा से विवाह; इंग्लैंड यात्रा; दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटना; चंपारण खेड़ा सत्याग्रह; कोलकाता, कानपुर ,लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन; नमक सत्याग्रह; गोलमेज सम्मेलन; 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन; कस्तूरबा की मृत्यु; सांप्रदायिक संघर्ष ; 21 दिनों का अनशन तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधीजी के मन की चिंता का क्रमबद्ध वर्णन किया गया है। वास्तव में यह गांधीजी की काव्यात्मक संक्षिप्त जीवनी है।
४. संवाद- योजना- कथावस्तु के विस्तार के कारण इस खंडकाव्य में संवाद- योजना को प्रमुखता प्रदान नहीं की गई है। यद्यपि यह खंडकाव्य प्रधान रूप से वर्णनात्मक ही है, तथापि विभिन्न स्थानों पर महात्मा गांधी के संक्षिप्त संवाद भी प्रस्तुत किए गए हैं। कुछ अन्य पात्रों द्वारा भी संवादों का प्रयोग हुआ है, किंतु इसे नगण्य भी कहा जाएगा।
५ . पात्र एवं चरित्र चित्रण- आलोक व्रत में गांधी जी का चरित्र धीरोदात्त नायक के रूप में विकसित हुआ है। यद्यपि उनमें मानवोचित दुर्बलताएं हैं; परंतु अपनी इमानदारी, सरलता, सत्यनिष्ठा और लगन के बल पर वे उन दुर्बलताओं पर सहज विजय प्राप्त कर लेते हैं। गांधीजी दंभ और पाखंड का लेश मात्र अंश भी नहीं है। वे अपने प्रेम से विरोधियों तक के हृदय को जीत लेते हैं। मानवता में उनकी अखंड आस्था है और इसी आस्था के बल पर वे देश, जाति और भेदभाव पर आधारित सीमाओं का अतिक्रमण करके मानव- एकता को प्रतिष्ठित करते हैं। मानव हृदय की एकता और सभी के प्रति पारस्परिक समानता का भाव उनके अहिंसा सिद्धांत की आधारशिला है। इस प्रकार प्रस्तुत खंडकाव्य में गांधी जी का चरित नायक बनाकर उनके प्रेरणाप्रद विचारों को वाणी दी गई है। अन्य पात्रों का समावेश नायक के चरित्र पर प्रकाश डालने हेतु प्रसंग वश ही किया गया है। ये कवि के उद्देश्य को अभिव्यक्त करने देने में सहायक मात्र है।
६. वर्णन में भावनात्मकता- आलोकवृत्त खंडकाव्य की कथावस्तु का आरंभ बड़ा ही रोचक है। मध्य की घटनाएं को कौतूहल बढ़ाने वाली है। कथा का अंत बड़ा ही मार्मिक एवं प्रभावशाली है। खंडकाव्य के शिल्प के अनुसार 'आलोकवृत्त 'की कथा वर्णनात्मक है। वर्णनात्मक स्थलों को भावात्मक स्वरूप प्रदान करने में कवि ने अपना पूरा - पूरा प्रयास किया है। मार्मिक स्थलों के चयन में कवि की प्रतिभा एवं सहृदयता भी पूर्णरूपेण परिलक्षित होती है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि 'आलोकवृत्त' में गांधीजी जैसे महान लोकनायक के गुणों को आधार बनाकर काव्य रचना की गई है। कथा की पृष्ठभूमि विस्तृत है।
गौण पात्रों का चित्रण नायक के चरित्र की विशेषताओं को प्रकाशित करने हेतु किया गया है। अतः इस काव्य ग्रंथ को एक आदर्श सफल खंडकाव्य कहना उपयुक्त होगा।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' के आधार पर गांधीजी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य में आपको किस का चरित्र सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
अथवा
'आलोकवृत्त' के नायक का चित्रांकन कीजिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के ऐसे पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए जिसने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया हो।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के मापन की विशेषताएं बताइए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के आधार पर महात्मा गांधी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर - 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के आधार पर गांधीजी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार है-
१. देश प्रेमी- आलोक व्रत में गांधीजी के चरित्र की सर्वप्रथम विशेषता उनका देश प्रेम है। वे देश प्रेम के कारण अनेक बार कारागार जाते हैं, जहां उन्हें अंग्रेजों के अपमान अत्याचार सहने पड़ते हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व देश के लिए न्योछावर कर दिया। भारत के लिए उनका कहना था-
तू चार प्रशान्त ,तू चिर अजेय
सुर - मउनइ- वन्दित,स्थित, अप्रमेय
हे सगुण ब्रह्म,वएदआदइ- गेम
हे चिर अनादि है चिर अशेष
मेरे भारत,मेरे स्वदेश।
२. सामान्य मानवीय दुर्बलताएं - गांधीजी का आरंभिक जीवन एक साधारण मनुष्य की भांति मानवीय दुर्बलताओं वाला रहा; किंतु बाद में उन्होंने अपनी इन दुर्बलताओं पर आत्मिक शक्ति केबल पर पूर्ण विजय पा ली।
३. सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक- गांधी जी देश की स्वतंत्रता केवल सत्य और अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त करना चाहते हैं। असत्य और अहिंसा का मार्ग उन्हें अच्छा नहीं लगता। अहिंसा व्रत का पूर्ण रूप में पालन इनके जैसा कोई बिरला व्यक्ति ही कर सकता है।
४.दृढ़ आस्तिक- गांधीजी पुरुषार्थी है तो भी वे ईश्वर की सत्ता में अटूट विश्वास रखते हैं। वे प्रत्येक कार्य ईश्वर को साक्षी मानकर करते हैं। यही कारण है कि वे मात्र पवित्र साधनों का प्रयोग ही उचित समझते हैं और परिणाम को ईश्वर पर छोड़ देते हैं।
५. स्वतंत्रता प्रेमी- गांधीजी के जीवन का मूल उद्देश्य भारत को स्वतंत्र करवाना है। जय भारत माता की स्वतंत्रता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। वे देशवासियों को परतंत्रता की बेड़ियों काटने के लिए प्रेरित करते हैं।
६. आत्मविश्वासी- गांधीजी आत्मविश्वास से परिपूर्ण थे, उन्होंने जो कुछ भी किया, पूर्ण विश्वास के साथ किया और उसमें वे सफल भी हुए। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एक श्रेष्ठ मानव में जितने भी मानवोचित हो सकते हैं, वे सभी महात्मा गांधी में विद्यमान थे।
७ . मानवतावादी- गांधीजी मानव -मानव में अंतर नहीं मानते। वे सबके लिए समानता के सिद्धांत में विश्वास करते हैं। उन्होंने जीवन भर ऊंच-नीच, जाति- पाता और रंगभेद का डटकर विरोध किया तथा अछूत कहे जाने वाले भारतीयों के उद्धार के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहे।
८. भावात्मक, राष्ट्रीय और हिंदू मुस्लिम एकता के समर्थक- गांधीजी "विश्व बंधुत्व" और 'वसुधैव कुटुंबकम' की भावना से ओतप्रोत थे। वह सभी को सुखी व समृद्ध देखना चाहते थे। इन्होंने भारत की समग्र जनता को एकता के सूत्र में बांधने के लिए जीवन पर्यंत प्रयास किया और हिंदू मुसलमानों को भाई - भाई की तरह रहने की प्रेरणा दी।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य का उद्देश्य महात्मा गांधी के आदर्शों का प्रदर्शन है प्रमाणित कीजिए।
अथवा
" 'आलोकव्रत 'में स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के झांकी के प्रदर्शन होते हैं। इस कथन की पुष्टि कीजिए।"
अथवा
'आलोकवृत्त' पीड़ित मानवता को सत्य और अहिंसा का सास्वत संदेश देता है। इस कथन से आप कहां तक सहमत हैं?
अथवा
" 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य में भारत के सांस्कृतिक ऐतिहासिक इतिहास को वाणी दी गई है।"इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य में सत्य और अहिंसा का सुंदर संदेश दिया गया है । स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य की राष्ट्रीय चेतना का वर्णन कीजिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य की रचना के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य में सत्य और अहिंसा का सुंदर समन्वय किया गया है । संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के आधार पर कवि ने किन मानवीय आदर्शों का परिचय दिया है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर - शीर्षक की सार्थकता- कवि गुलाब खंडेलवाल ने 'आलोकवृत्त' में महात्मा गांधी के सदाचार एवं मानवता के गुणों से आलौकिक व्यक्तित्व को चित्रित किया है। इस खंडकाव्य का विषय, उद्देश्य एवं मूल भावना यही है। महात्मा गांधी के जीवन को हम आलोक रूप कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने भारतीय संस्कृति की चेतना को अपने सद्गुणों एवं सद् विचारों से आलोकित किया है। विश्व में सत्य, प्रेम ,अहिंसा आदि मानवीय भावनाओं का आलोक उनके द्वारा ही फैलाया गया; इसलिए उनके जीवन वृत्त को 'आलोक वृत्त' कहना युक्तियुक्त ही है। इस दृष्टिकोण से यह शीर्षक उपयुक्त है। यह शीर्षक महात्मा गांधी के जीवन, उनके चरित्र ,गुणों ,सिद्धांतों एवं दर्शन को पूर्णरूपेण परिभाषित करने में सफल हुआ है। प्रत्येक साहित्य की रचना के पीछे लेखक का कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य होता है। 'आलोकवृत्त 'में भी कवि का उद्देश्य निहित है। का उद्देश्य इस प्रकार है-
१. स्वदेश प्रेम की प्रेरणा- इस खंडकाव्य का सर्वप्रथम उद्देश्य देशवासियों के हृदय में स्वदेश प्रेम की भावना जागृत करना है। कवि ने भारत के गौरवमय अतीत का वर्णन कर लोगों को अपने महान देश का वास्तविक स्वरूप दिखाया है-
जिसने धरती पर मानवता का, पहला जयघोष किया था।
बर्बर जग को सत्य अहिंसा का , पावन संदेश दिया था।।
इस प्रकार कवि भारत के अतीत का वर्णन करके भारत की वर्तमान अधोगति के प्रति भारतीय जनता के हृदय में टीस, आक्रोश एवं चेतना जागृत करता है।
२.सत्य अहिंसा का महत्व- 'आलोकवृत्त' के माध्यम से कवि ने सत्य और अहिंसा को प्रतिष्ठित किया है। कवि ने देश की स्वाधीनता हेतु सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देकर लोगों को श्रेष्ठ आचरणवान बनने की शिक्षा दी है। कवि ने गांधीजी का उदाहरण प्रस्तुत करके यह सिद्ध किया है कि हम सत्य और अहिंसा के द्वारा अपने प्रत्येक संकल्प को पूरा कर सकते हैं-
अहिंसा ने अजब जादू दिखाएं।
विरोधी हैं खड़े कंधा मिलाएं।।
३. सहयोग एवं राष्ट्रीय एकता- कवि यह अनुभव करता है कि अंग्रेज शासकों ने हमारे देश में तरह-तरह की फूट डालकर देश को विघटित करने का प्रयास किया है। उसका मानना है कि हमारे देश की स्वतंत्रता, एकता एवं सहयोग की भावना के आधार पर सुरक्षित रह सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य में यह संदेश दिया गया है कि हमें सांप्रदायिक एवं प्रांतीय भेदभाव को भूलकर राष्ट्र की एकता बनाए रखनी है-
यदि मिलकर इस राष्ट्र- यज्ञ में, सब कर्तव्य निभाएं अपना।
1 वर्ष में हो पूरा, मेरा रामराज्य का सपना।।
४. मानव मात्र का कल्याण- कवि ने मात्र भारत के ही कल्याण की कामना नहीं की है वरन् वह तो संपूर्ण मानवता का कल्याण चाहते है-
जुड़ता जब संबंध हृदय का, भेद भाव मिट जाता है।
देश - जाति रंगों से गहरा, मानवता का नाता है।।
५. मानवीय- मूल्यों की प्रतिष्ठा- 'आलोकवृत्त' के रचनाकार का उद्देश्य यह रहा है कि सर्वत्र सत्य, प्रेम , सदाचार,न्याय , सहिष्णुता आदि मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा हो-
प्रेम सृष्टि का मूल्य धर्म, चेतना का नियम सनातन।
इसके कारण ही विनाश से, बचा आज तक जीवन।।
× × ×
लोकतंत्र का रथ समता के, पहियों पर चलता है।
६. त्याग तथा बलिदान की भावना का संदेश- कवि का एक संदेश देश के लिए त्याग एवं बलिदान से संबंधित है। गांधी जी ने देश की स्वतंत्रता के लिए बड़े से बड़ा बलिदान किया तथा अनेक कष्ट सहे। कवि ने गांधीजी के उदाहरण को प्रस्तुत करके देश के युवकों को देश के लिए त्याग एवं बलिदान का संदेश दिया है।
७. पवित्र साधन अपनाने का संदेश- गांधी जी का विचार था कि उत्तम साध्यों की प्राप्ति के लिए पवित्र साधनों को ही अपनाना चाहिए। गांधी जी ने देश की स्वतंत्रता के लिए प्रेम, सत्य तथा अहिंसा को ही साधन के रूप में अपनाया था। गांधीजी के जीवन के उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कवि ने प्रत्येक को केवल पवित्र साधनों को ही अपनाने का महान संदेश दिया है।
प्रश्न. 'आलोकवृत्त' खंड काव्य में वर्णित प्रमुख घटनाओं को अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
अथवा
" 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य आधुनिक भारत के संघर्षों की झांकी प्रस्तुत करने में सफल है ।"स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के आधार पर गांधीजी के जीवन की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर - 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य की कथावस्तु आठ वर्गों में विभक्त है। प्रथम सर्ग में भारत के गौरवशाली अतीत का, उसके बाद पराधीनता का और सन् 1857 ईस्वी की क्रांति के बाद नई ज्योति के रूप में गांधीजी के उदय का वर्णन है। द्वितीय सर्ग में गांधीजी के प्रारंभिक जीवन और फिर इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वदेश लौटने तथा उनकी माता की मृत्यु का वर्णन है। तृतीय सर्ग में गांधी जी द्वारा अफ्रीका में रंगभेद से दुखी भारतीयों का वर्णन है, जिन्हें दुर्दशा से मुक्ति दिलाने के लिए गांधी जी ने उनका नेतृत्व किया और सत्याग्रह आंदोलन चलाया। चतुर्थ सर्ग में गांधी जी भारत लौट आए और उन्होंने देशवासियों को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जगाया। इसमें चंपारण और खेड़ा के आंदोलन का वर्णन है। पंचम सर्ग में अंग्रेजों के दमन, सांप्रदायिक दंगे भड़कने, गांधीजी को बंदी बनाने और फिर जेल से छूटने के बाद गांधीजी द्वारा हिंदू मुस्लिम एकता, शराब मुक्ति, हरिजन उत्थान, खादी प्रचार आदि कार्यक्रमों का वर्णन है और लाहौर में संपूर्ण स्वतंत्रता प्रस्ताव के वर्णन के साथ यह सर्ग समाप्त हो जाता है। इसी सर्ग में हिंदू मुस्लिम एकता के लिए गांधीजी के 21 दिनों के उपवास का भी वर्णन है-
आत्म शुद्धि का यज्ञ कठिन यह पूरा होने को जब आया।
बापू ने 21 दिनों के अनशन का संकल्प सुनाया।।
छठे सर्ग में नमक आंदोलन, लंदन के गोलमेज सम्मेलन और 1937 के प्रांतीय स्वराज की स्थापना का वर्णन है। सातवे सर्ग में 1942 के 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन का और आठवें वर्ग में भारतीय स्वतंत्रता के अरुणोदय के साथ-साथ विभाजन के कारण भड़के दंगों से दुखी गांधीजी की कल्याण कामना का वर्णन है, जिसमें उन्होंने कहा है-
प्रभु इस देश को सत्पथ दिखाओ।
लगी जो आग में बुझाओ।।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आलोक व्रत में भारत के स्वाधीनता संग्राम की सही झांकी मिलती है।
इस प्रकार 'आलोकवृत्त ' खंडकाव्य गांधीजी के जीवन चरित्र को माध्यम बनाकर राष्ट्र प्रेम, सत्य ,अहिंसा, परोपकार ,न्याय, समता, सदाचार आदि की प्रेरणा देने के अपने देश में पूर्णता सफल रहा है।
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