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त्यागपथी खण्डकाव्य | Tyagpathi Khandkavya Class 12 Hindi

त्यागपथी खण्डकाव्य | Tyagpathi Khandkavya Class 12 Hindi

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                          त्यागपथी खण्डकाव्य 

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट www.Bandana classes.com पर । आज की पोस्ट में हम आपको " कक्षा 12वीं हिंदी के त्यागपथी खण्डकाव्य की कथाावस्तु, सारांश एवं चरित्र चित्रण " के बारे में बताएंगे तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए।

              'त्यागपथी' खण्डकाव्य


प्रश्न. 'त्यागपथी' खंडकाव्य के नायक हर्षवर्धन का संपूर्ण जीवन सदाचार, उन्नत मानवीय जीवन के प्रति निष्ठा, सहयोग और सद्भावना के प्रति जीवंत आस्था का एक महान उदाहरण है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।

या 

 'त्यागपथी'खंडकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) का चरित्र - चित्रण कीजिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य के नायक (प्रधान पात्र) की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य प्रस्तुति 'हर्षवर्धन' के चरित्र में मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा है। "स्पष्ट कीजिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य के आधार पर सम्राट हर्षवर्धन के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए कि हर्षवर्धन का चरित्र देश प्रेम का प्रखरतम उदाहरण है।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य के आधार पर हर्षवर्धन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य का नायक कौन है? उसके चरित्र की किन किन विशेषताओं को कवि ने उभारा है सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - हर्षवर्धन 'त्यागपथी' के नायक हैं। इस खंडकाव्य की संपूर्ण कथा का केंद्र वही है। संपूर्ण घटना चक्र उनके जीवन के चारों ओर घूमता है। कथा आरंभ से अंत तक हर्षवर्धन से ही संबंध्द रहती है। हर्षवर्धन के चरित्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है- 


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                        हर्षवर्धन का चरित्र चित्रण 

1.देश प्रेमी- हर्षवर्धन सच्चे देश प्रेमी है। उन्होंने छोटे राज्यों को एक साथ मिलाकर विशाल राज्य की स्थापना की। देश की एकता एवं रक्षा हेतु वह बड़े से बड़ा युद्ध करने से भी नहीं सकते थे। उन्होंने एक बड़े राज्य की स्थापना ही नहीं वर्ण धर्मपूर्वक शासन भी किया। देश सेवा ही उनके जीवन का व्रत है।


2.आदर्श पुत्र एवं भाई- इस खंडकाव्य में हर्षवर्धन एक आदर्श पुत्र एवं आदर्श भाई के रूप में पाठकों के समक्ष आते हैं। अपने पिता के रुग्ण होने का समाचार पाकर वे आखेट से तुरंत लौट आते हैं और यथा सामर्थ उनकी चिकित्सा करवाते हैं। पिता के स्वस्थ ना होने तथा माता द्वारा आत्मदाह करने की बात सुनकर वे भाव विह्वल हो जाते हैं। वे अपनी माता से कहते हैं-


मुझे मंद पुण्य को छोड़ न मां भी जाओ।

छोड़ो विचार यह, मुझे चरणों में लिपटाओ।।


3.अजेय योद्धा- हर्षवर्धन एक अजेय योद्धा हैं । विद्रोही उनके तेजबल के आगे ठहर नहीं पाता है। कोई भी राजा उन्हें पराजित नहीं कर सकता है। भारत के इतिहास में महाराजा हर्षवर्धन की दिग्विजय, उनका युद्ध कौशल और उनकी अनुपम वीरता स्वर्णाक्षरों में लिखी है। उनकी वीरता एवं कुशल शासन का ही परिणाम था-


"उठा पाया न सिर कोई प्रवंचक।"


4.महानत्यागी- हर्षवर्धन महानत्यागी एवं आत्मसंयमी है। आत्म संयम एवं सर्वस्व त्याग करने के कारण ही कवि ने त्यागपत्र के नाम से पुकारा है। प्रयाग में 6 बार अपना सर्वस्व प्रजा के लिए दे देना उनके महान त्याग का प्रमाण है। सर्वस्व त्याग के पश्चात वे अपने पहनने के वस्त्र भी अपनी बहन राजश्री से मांग कर पहनते हैं।


5.श्रेष्ठ शासक- महाराज हर्षवर्धन एक श्रेष्ठ शासक है। उनका संपूर्ण जीवन प्रजा के हितार्थ के लिए ही समर्पित है। मुनक्का शासन धर्म- शासन है। उनके शासन में सभी जनों को सामान  एवं सुख उपलब्ध है।

 

शान्ति शुभता का व्रती था हर्ष का शासन।

था लिया जिसने प्रजा-हित राज सिंहासन।।


6.कर्तव्यनिष्ठ एवं दृढ़ निश्चयी- सम्राट हर्षवर्धन ने आजीवन अपने कर्तव्य का पालन किया। प्रारंभ में इच्छा ना होते हुए भी अपने भाई के कहने पर राज्य संभाला और प्रत्येक संकटा पन्न स्थिति में अपने कर्तव्य को निभाया। बहन राजश्री को वनों में खोज कर वे अपनी कर्तव्य निष्ठा का परिचय देते हैं। भाई की छल‌ से की गई हत्या का समाचार सुनकर उन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी, उससे उनके दृढ़ निश्चय का पता चलता है-


लेकर चरण रज आर्य की करता प्रतिज्ञा आज मैं,

निर्मूल कर दूंगा धरा से अधर्म गौड़ समाज मैं।


इस प्रकार हर्षवर्धन का चरित्र एक महान राजा, आदर्श भाई, आदर्श पुत्र, और महानत्यागी का चरित्र है, जिसके लिए प्रजा की सुख सुविधा ही सर्वोपरि है और वह अपने मानवीय कर्तव्यों के प्रति भी निष्ठावान है।


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राजश्री का चरित्र चित्रण

प्रश्न. 'त्यागपथी' खंडकाव्य के आधार पर राजश्री प्रमुख नारी पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।

या

 'त्यागपथी' में निरूपित राजश्री की चारित्रिक छवि पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।


उत्तर - राजश्री सम्राट हर्षवर्धन की छोटी बहन है। हर्षवर्धन है चरित्र के बाद राजश्री चरित्र ही ऐसा है, जो पाठकों के हृदय एवं मस्तिष्क पर छा जाता है। राजश्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं निम्नवत है-


1.माता-पिता की लाडली- राजश्री अपने माता पिता को प्राणों से भी ज्यादा प्यारी है। कवि कहता है-


मां की ममता की मूर्ति राजश्री सुकुमारी।

थी सदा पिता को, मां को प्राणोपम प्यारी।।


2.आदर्श नारी- राजश्री आदर्श पुत्री, आदर्श बहन और आदर्श पत्नी के रूप में हमारे समझ आती हैं। वह यौवनावस्था में विधवा हो जाती है तथा गौड़पति द्वारा बंदिनी बना ली जाती है। भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद वह कारागार से भाग जाती है और वन में भटकती हुई आत्मदाह के लिए तैयार हो जाती है; किंतु अपने भाई हर्षवर्धन द्वारा बचा लेने पर वह तन- मन- धन से प्रजा की सेवा में ही अपना जीवन समर्पित कर देती है।


3.देशभक्त एवं जन सेविका- राजश्री के मन में देश प्रेम और लोक कल्याण की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। हर्षवर्धन के समझाने पर वह वैधव्य का दुख झेलती हुई भी देश सेवा में लगी रहती है। देश- प्रेम के कारण सन्यासिनी बनने का विचार छोड़ देती है तथा से जीवन को देश -सेवा में ही लगाने का व्रत लेती है-


प्रजा के हित में समर्पित हैं व्रती जीवन तुम्हारा।

सभी का हित सभी का सुख, तुम्हें दिन-रात प्यारा।।


4.करुणामयी नारी- राजश्री ने माता -पिता की मृत्यु तथा पति और बड़े भाई की मृत्यु के अनेक दुख झेले। इन लोगों ने उसे करुणा की मूर्ति बना दिया। अपने अग्रज हर्षवर्धन से मिलते समय उसकी दशा अत्यंत मार्मिक है-


सतत बिलखती थी बहन माता पिता की याद कर।

ले नाम सखियों का , उमड़ती थी नदी- सी वाली भर ।।

था साश्रु अग्रज धैर्य देता माथ उसका ढांपकर।

रोती रही अविरल बहन बेतस लता- सी कांपकर।।


5.शिक्षित एवं ज्ञान संपन्न- राजश्री सुशिक्षिता एवं शास्त्रों के ज्ञान से संपन्न है। जब आचार्य दिवाकर मित्र सन्यास धर्म का सात्विक विवेचन करते हुए उसे मानव कल्याण के कार्य में लगने का उपदेश देते हैं तब वह इसे स्वीकार कर लेती है और आचार्य की आज्ञा का पूर्णरूपेण पालन करती है।


इस प्रकार राजश्री का चरित्र आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है। उनके पतिव्रत -धर्म, देश- धर्म, करुणा और कर्तव्यनिष्ठा के आदर्श निश्चय ही अनुकरणीय हैं।


प्रश्न. 'त्यागपथी: खंडकाव्य की कथावस्तु (कथानक) को संक्षेप में लिखिए।

या

'त्यागपथी' काव्य ग्रंथ (खंडकाव्य) की प्रमुख घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख कीजिए।

या

'त्यागपथी' के पंचम सर्ग की कथा अपनी भाषा में लिखिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य वर्णित किसी प्रेरणाप्रद घटना का सोउदाहरण उल्लेख कीजिए।

या

"'त्यागपथी खंडकाव्य हर्ष कालीन भारत सजीव हो उठा है।"

या

" 'त्यागपथी' खंडकाव्य हर्ष कालीन इतिहास जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है।" स्पष्ट कीजिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य के पंचम सर्ग की कथा प्रस्तुत कीजिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य की किसी घटना का उल्लेख कीजिए।


उत्तर - श्री रामेश्वर शुक्ला 'अंचल' द्वारा रचित त्यागपथी ऐतिहासिक खंड काव्य की कथा पांच सर्गो में विभाजित है। इसमें छठी शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्धन के त्याग, तप और सात्विकता का वर्णन किया गया है। सम्राट हर्षवर्धन की वीरता का वर्णन करते हुए कवि ने इस खंडकाव्य राजनीतिक एकता और विदेशी आक्रांताओ के भारत से भागने का वर्णन भी किया है। इस खंड का सर्गानुसार कथानक निम्न वत है-


प्रथम सर्ग


थानेश्वर के राजकुमार हर्षवर्धन वन में आखेट हेतु गए थे। वही उन्हें अपने पिता प्रभाकर वर्धन के विषम ज्वर‌ -प्रदाह समाचार मिलता है। कुमार तुरंत लौट आते हैं। वे पिता के रोग का बहुत उपचार करवाते हैं, परंतु उन्हें सफलता नहीं मिलती है। हर्षवर्धन के बड़े भाई राज्यवर्धन उत्तरापथ पर हूणों से युद्ध करने में लगे थे। हर्षवर्धन ने दूत के साथ अपने अग्रज को पिता की अस्वस्थता का समाचार पहुंचाया। इधर हर्षवर्धन की माता अपने पति की दशा बिगड़ती देख आत्मदाह के लिए तैयार हो जाती है। हर्षवर्धन ने उन्हें बहुत समझाया, पर वह नहीं मानी और हर्षवर्धन की पिता की मृत्यु से पूर्व वह आत्मदाह कर लेती हैं। कुछ समय पश्चात राजा प्रभाकर वर्धन की मृत्यु हो जाती है। पिता का अंतिम संस्कार हर्षवर्धन शोकाकुल मनुष्य राज महल में लौट आते हैं। उन्हें बस इस बात की बड़ी चिंता है कि पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर अनुजा (बहन) राजश्री तथा अग्रज (भाई) राज्यवर्धन की क्या दशा होगी।


द्वितीय सर्ग


राज्यवर्धन हुणों को परास्त कर सेना सहित अपने नगर सकुशल लौट आते हैं शोकविहल हर्षवर्धन की दशा देख भी बिलख बिलख कर रोते हैं। माता पिता की मृत्यु से शोकाकुल राज्यवर्धन वैराग्य लेने का निश्चय कर लेते हैं, किंतु तभी उन्हें समाचार मिलता है कि मालवराज ने उनकी छोटी बहन राजश्री के पति गृह वर्मन को मार डाला है। तथा राजश्री को कारागार में डाल दिया है। राजवर्धन वह राम को भूल मालवराज का विनाश करने चल देते हैं। राजवर्धन गौड़ नरेश को पराजित कर देते हैं, परंतु गौड़ नरेश छल पूर्वक उनकी हत्या करवा देता है। हर्षवर्धन को जब यह समाचार मिलता है तो वे विशाल सेना लेकर मालवराज से युद्ध करने के लिए चल पड़ते हैं। मार्ग में हर्षवर्धन को समाचार मिलता है कि उनकी छोटी बहन राजश्री बंधन मुक्त होकर विंध्याचल की ओर वन में चली गई है। यह समाचार पत्र हर्षवर्धन बहन को खोजने वन की ओर चल देते हैं। वन में दिवाकर मित्र के आश्रम में उन्हें एक भिक्षुक से यह समाचार मिलता है कि राज्यश्री आत्मदाह करने वाली है। वे शीघ्र ही पहुंचकर राज्यश्री को हाथ दर्द करने से बचा लेते हैं। वे दिवाकर मित्र और राजश्री को अपने साथ ले कन्नौज लौट आते हैं।


तृतीय सर्ग


हर्षवर्धन अपनी बहन के छीने हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए अपनी विशाल सेना के साथ कन्नौज पर आक्रमण कर देते हैं। वहां अनीतिपूर्वक अधिकार जमाने वाला मालव कुल- पुत्र भाग जाता है। राज्यवर्धन का हत्यारा गौड़पति शशांक भी अपने गौड़ प्रदेश को भाग जाता है। सभी लोग हर्षवर्धन से कन्नौज का राजा बनने की प्रार्थना करते हैं, परंतु हर्ष अपनी बहन का राज्य लेने से मना कर देते हैं। वे अपनी बहन से सिंहासन पर बैठने को कहते हैं, परंतु बहन भी राज- सिंहासन ग्रहण करने से मना कर देती है। हीरो हर्षवर्धन हे कन्नौज के संरक्षक बनकर की बहन के नाम से वहां शासन चलाते हैं।


इसके 6 वर्षों बाद हर्षवर्धन का दिग्विजय अभियान चलता है। उन्होंने कश्मीर, पच्ञनद अब सारस्वत, मिथिला, उत्कल, गौड़,नेपाल, वल्लभी ,सोरठ आदि सभी राज्यों को जीत कर तथा यवन हूण और अन्य विदेशी शत्रु का नाश करके देश को अखंड और शक्तिशाली बनाकर एक सुसंगठित राज्य बनाया। अपनी बहन के स्नेहवश वीरप्पन राजधानी भी कन्नौज को ही बनाते हैं और अनेक वर्षों तक धर्मपुर्वक शासन करते हैं। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी तथा धर्म ,संस्कृति और कला की भी पर्याप्त उन्नति हो रही थी।


चतुर्थ सर्ग


राजश्री के बड़े राज्य के शासिका होकर भी दुखी हैं। वह सब कुछ छोड़ कर गेरुए वस्त्र धारण कर भिक्षुणी बनना चाहती थी। वह हर्षवर्धन से सन्यास ग्रहण करने की आज्ञा मांगने जाती है तो हर्षवर्धन उसे समझाते हैं कि तुम तो मन से सन्यासिनी ही हो। तुम गेरुआ वस्त्र धारण करना चाहती हो तो अपने वचनानुसार मैं भी तुम्हारे साथ ही संन्यास ले लूंगा। तभी दिवाकर मित्र आकर उन्हें समझाते हैं कि वास्तव में आप दोनों भाई बहन का मन सन्यासी है, किंतु आज देश की रक्षा एवं सेवा सन्यास ग्रहण करने से भी अधिक महत्वपूर्ण है। दिवाकर मित्र के समझाने पर दोनों सन्यास का विचार त्याग देश सेवा में लग जाते हैं।


पंचम सर्ग


हर्षवर्धन एक आदर्श सम्राट के रूप में शासन करते हैं। उनके राज्य में प्रजा सब प्रकार से सुखी है, विद्वानों की पूजा की जाती है। सभी प्रजाजन आचरण वान धर्म पालक, स्वतंत्र तथा सुरूचिसंपन्न है। महाराज हर्षवर्धन सदैव जन कल्याण एवं शास्त्र चिंतन में लगे रहते हैं। अपने भाई के ऐसे धर्म अनुशासन को देखकर राजश्री भी प्रसन्न रहती है। संपूर्ण राज्य एकता के सूत्र में बना हुआ है। एक बार हर्षवर्धन तीर्थराज प्रयाग में संपूर्ण राजकोष को दान कर देने की घोषणा करते हैं-


हुई थी घोषणा सम्राट की साम्राज्य भर से,

करेंगे त्याग सारा कोष ले संकल्प कर में।


सब कुछ दान करके वह अपनी बहन से मांग कर वस्त्र पहनते हैं। इसके पश्चात प्रत्येक 5 वर्ष बाद इसी प्रकार अपना सर्वस्व दान करने लगे। इस दान को वे प्रजा ऋण से मुक्ति का नाम देते हैं। अपने जीवन में वे 6 बार इस प्रकार के सर्वस्व दान का आयोजन करते हैं। हर्षवर्धन संसार भर में भारतीय संस्कृति का प्रसार करते हैं। इस प्रकार कर्तव्य परायण, त्यागी, परोपकारी ,परमवीर, महाराज हर्षवर्धन का शासन सब प्रकार से सुख कर तथा कल्याणकारी सिद्ध होता है।


प्रश्न. 'त्यागपथी' खंडकाव्य के भाव पक्ष एवं कला पक्ष की विशेषताएं बताइए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य की काव्य कला (काव्य शैली) पर प्रकाश डालिए।

या


'त्यागपथी' की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

या


खंडकाव्य की दृष्टि से 'त्यागपथी' की समीक्षा (आलोचना ,मूल्यांकन) कीजिए।

या

'त्यागपथी' एक ऐतिहासिक खंडकाव्य इस कथन की समीक्षा कीजिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य की भाषा शैली की समीक्षा कीजिए।


उत्तर - श्री रामेश्वर शुक्ल अंचल द्वारा रचित खंडकाव्य त्यागपथी एक ऐतिहासिक कथानक पर आधारित खंडकाव्य है। इस रचना में कवि ने अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का प्रयोग अत्यधिक कुशलता से किया है। इस खंडकाव्य की विशेषताओं का विवेचन निम्नवत् किया जा सकता है।


1.कथानक की ऐतिहासिकता- त्यागपथी में सातवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्धन की कथा का वर्णन हुआ है। कवि ने हर्षवर्धन के माता-पिता की मृत्यु, भाई और बहनोई की हत्या, कन्नौज में राज्य संभालना, मालव राज शशांक से युद्ध, दिग्विजय करके धर्म शासन की स्थापना और हर पांचवें वर्ष तीर्थराज प्रयाग में सर्वस्व दान करने की ऐतिहासिक घटनाओं को बड़े ही सरल और सुंदर रूप में प्रस्तुत किया है।


2.पात्र एवं चरित्र- चित्रण- त्यागपथी खंडकाव्य में प्रभाकर वर्धन तथा उनकी पत्नी यशोमती उनके दो पुत्र राजवर्धन और हर्षवर्धन; एक पुत्री राजश्री; कन्नौज मालव, गौड़ प्रदेश के राजाओं के अतिरिक्त आचार्य दिवाकर, सेनापति भण्डि आदि पात्र हैं। खंडकाव्य का नायक हर्षवर्धन तथा इसकी नायिका होने का गौरव उसकी बहन राजश्री को प्राप्त है।


त्यागपथी खंडकाव्य की काव्यगत विशेषताएं निम्नलिखित हैं - 


(क)भावगत विशेषताएं- 


1.मार्मिकता- इस खंडकाव्य में कवि ने हर्षवर्धन की माता यशोमती का चितारोहण राज्यवर्धन और हर्षवर्धन का वैराग्य लेने को तैयार होना, राज्यश्री से विधवा होने की सूचना पाकर हर्षवर्धन की व्याकुलता, राज्यश्री द्वारा आत्मदाह के समय हर्षवर्धन के मिलन का वर्णन अतीव मार्मिक है।


2.रस- निरूपण- त्यागपथी में कवि ने करुण, वीर, रौद्र, शांत आदि रसों का सुंदर निरूपण किया है। करुण रस का निम्नलिखित उदाहरण है-


मुझ मंद पुण्य को छोड़ ना मां तुम भी जाओ।

छोड़ो विचार यह , मुझे चरण से लिपटाओ।।

संवरो देवि ! यह रूप नहीं देखा जाता।

हो पिता अदय , पर सतत वत्सला है माता।।


3.प्रकृति- चित्रण- त्यागपथी में कवि नेम प्रकृति के विभिन्न रूपों का सुंदर चित्रण किया है। आखेट के समय जब हर्षवर्धन को राजा के गंभीर रूप से रोग ग्रस्त होने का समाचार मिलता है तो वे तुरंत राजमहल को लौट आते हैं। उस समय के वन का चित्रण द्रष्टव्य है-


वन- पशु  अविरत , खर-शर- वर्णन से अकुलाये।

फिर गिरि- श्रेणी मे खोहों से बाहर आये।।


(ख) कलागत विशेषताएं-


1.भाषा- भारतीय इतिहास में गुप्त काल स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है। उस काल में भारतीय संस्कृति, कला और साहित्य अपनी उन्नति की चरम सीमा पर थे। त्यागपथी खंडकाव्य की भाषा भी वैसी ही गरिमामयी है। इस खंड काव्य की भाषा प्रभावशाली, भावानुकूल और समयानुकूल है। इसकी भाषा संस्कृति निष्ठ खड़ी बोली हिंदी है। भाषा में माधुर्य, ओज, एवं प्रसाद गुण विद्यमान है। प्रारंभ के दो सर्गो में ओज गुण अधिक है, जबकि अंत के सर्गो में चित्त की दीप्ति और विस्तार के कारण माधुर्य और प्रसाद गुण अधिक है।


उदाहरण- 


१.था वस्त्र कर्मान्तिक सजल- दृग आ गया वल्कल लिए।


२.जन- जन वहां था साश्रु, जब वल्कल उन्होंने ले लिया।


2.शैली - त्यागपथी में वर्णन प्रधान चित्रात्मकता लिए हुए संवादात्मक और ध्वनियों के संयोजन से जिस लय की रचना होती है, वह लय पूरे खंडकाव्य में समान रूप से निहित है। अर्थ के साथ- साथ यह लय स्वर के आरोह - अवरोह के कारण और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।

पांचवें स्वर्ग के अंत में शैली में एक प्रकार की तीव्रता और आवेग है। खंडकाव्य की शैली में आकर्षण और कौतूहल उत्पन्न करने की क्षमता है, जो खंडकाव्य के लिए अनिवार्य है।


3.छन्द विधान- रामेश्वर शुक्ल अंचल ने त्यागपथी में 26 मात्राओं के 'गीतिका' छंद का प्रयोग किया है। अंत में आकर कवि ने 34 मात्रा वाले घनाक्षरी छंद भी लिखे हैं। अंत में घनाक्षरी छंद का प्रयोग रचना की समाप्ति का सूचक ही नहीं, वरन् वर्णन की दृष्टि से प्रशस्ति का भी सूचक है। कवि की छंद योजना निसंदेह प्रशंसनीय है।


4.अलंकार योजना- त्यागपथी में कवि ने स्थान स्थान पर विभिन्न अलंकारों का प्रयोग किया है। अलंकार योजना सर्वत्र स्वाभाविक रूप में है। भावोत्कर्ष में अलंकारों का प्रयोग विशेष रुप से महत्वपूर्ण रहा है। कवि ने उपमा ,अनुप्रास, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग किया है।


प्रश्न. 'त्यागपथी 'खंडकाव्य के रचयिता के मुख्य उद्देश्य अथवा संदेश को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।

या

खंडकाव्य 'त्यागपथी' के नामकरण की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।

या

'त्यागपथी' का शीर्षक इसके कथानक की दृष्टि से कहां तक युक्त है।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य हर्ष कालीन जीवन व समाज का उदात्त चित्रण मिलता है" स्पष्ट कीजिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य के आधार पर उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य भारतीय परंपराओं का उद्घोष है स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर - 'त्यागपथी' खंडकाव्य कविवर रामेश्वर शुक्ल अंचल ने अनेक प्रयोजनों को पल्लवित किया है। इसके मुख्य उद्देश्य यह संदेश निम्नलिखित है - 


1.प्राचीन भारत का गौरवमय चित्र- अंचल जी ने अपने प्रस्तुत काव्य में प्राचीन भारत के गौरवमय चित्र- को प्रस्तुत किया है। उस समय समाज में सभी को समान न्याय और सभी प्रकार के सुख उपलब्ध थे। यह दर्शाया है कि प्राचीन भारत धर्म, संस्कृति, सभ्यता, विद्या, अर्थ और सभी दृष्टियों से वैभवसंपन्न था।


2.सम्राट हर्ष के त्यागमय जीवन का आदर्श- कवि ने हर्ष के त्यागमय उज्जवल चरित्र के माध्यम से यह प्रस्तुत करना चाहा है कि आज के शासक भी उन्हीं की भांति त्यागमय और सरल जीवन अपनाकर प्रजा के सम्मुख एक आदर्श उपस्थित करें।


3.मानवीय गुणों की स्थापना- कवि ने प्रस्तुत काव्य में बड़ों के प्रति आदर, छोटों से स्नेह, उदारता, विनम्रता के साथ-साथ सांसारिक गरिमा आदि मानवीय गुणों को व्यक्त करती है। उसने हर्षवर्धन के माध्यम से सत्य, अहिंसा , त्याग, शांति, परोपकार, और निष्काम कर्म जैसे गांधीवादी जीवन- मूल्यों की स्थापना की है। 


4.धर्मनिरपेक्षता पर बल- अंचल जी ने त्यागपथी के माध्यम से सर्व धर्म समभाव की सशक्त अभिव्यंजना की। कवि ने दिखाया है कि सम्राट हर्षवर्धन के समय सभी धर्मों को अपने प्रचार और प्रसार का समान अवसर प्राप्त था। सभी धर्मावलंबियों के साथ समान व्यवहार होता था, जिस कारण सर्वत्र और समृद्धि व्याप्त थी। 


5.राष्ट्रप्रेम की अभिव्यक्ति- प्रस्तुति काव्य में कवि ने राष्ट्रप्रेम की सशक्त अभिव्यक्त की है। सम्राट हर्षवर्धन सच्चे देश प्रेमी है। उन्होंने छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर विशाल राज्य की स्थापना की। वे देश की एकता और रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहें। उन्होंने अपनी बहन राज्यश्री को भी देश- सेवा करने को प्रेरित किया।


6.शीर्षक की सार्थकता- उपर्युक्त सभी संदेश काव्यकार ने सम्राट हर्षवर्धन के चरित्र के माध्यम से दिए हैं। हर्ष ने सर्वस्व त्याग करके ही इन सभी आदर्शों की स्थापना की है। उनका त्याग क्षणिक नहीं है और ना ही वह भावावेश में लिया हुआ निर्णय है। वरन् उन्होंने इस त्याग- पथ का चयन प्रकार सोच- समझकर किया है। प्रति पांचवें वर्ष अपना सर्वस्व दान कर देने वाले त्याग पर के इस अमर पथिक के लिए त्यागपथी के अतिरिक्त और कौन नाम उपयुक्त हो सकता है? इस प्रकार खंडकाव्य के नायक के संपूर्ण व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करने वाला खंडकाव्य का शीर्षक त्यागपथी सर्वथा उपयुक्त और सार्थक है। 


प्रश्न. 'त्यागपथी' खंडकाव्य की कथावस्तु की विवेचना कीजिए।

या

" 'त्यागपथी' में वर्णित भारत की राजनीतिक उथल-पुथल एवं सांस्कृतिक वैभव का उल्लेख कीजिए। यह भारत के राजनीतिक संघर्ष का एक दस्तावेज है। "सिद्ध कीजिए।

या

'त्यागपथी' खंडकाव्य नाटक की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर - 'त्यागपथी' खंडकाव्य की कथावस्तु की प्रमुख विशेषताएं निम्नवत् है-


1.इतिहास और कल्पना का समन्वय - 'त्यागपथी' खंडकाव्य श्री रामेश्वर शुक्ल अंचल ने इतिहास और कल्पना का सुंदर समन्वय किया है। इस खंडकाव्य में हर्षवर्धन, राज्यश्री, प्रभाकर वर्धन , राज्यवर्धन , शशांक आदि सभी पात्र एतिहासिक है।


हर्षवर्धन के माता-पिता, भाई, बहनोई की मृत्यु, राज्यश्री की खोज, राज्यश्री के नाम पर हर्षवर्धन की दिग्विजय, राजधानी थानेश्वर से कन्नौज ले जाना, प्रयाग में हर पांचवें वर्ष सर्वस्व -दान, हर्षवर्धन का धर्मानुशासन सभी ऐतिहासिक तथ्य है।


इनके अतिरिक्त यशोमती का चिता प्रवेश, शोकाकुल हर्षवर्धन की व्यथा, राज्यश्री को खोजते- खोजते हर्षवर्धन का दिवाकर मित्र के आश्रम में पहुंचना और वहां एक भिक्षुक से राज्यश्री के आत्मदाह करने की सूचना प्राप्त करना बाणभट्ट की प्रमुख रचना 'हर्षचरित' पर आधारित है। 'त्यागपथी' खंडकाव्य में माता- पिता और भाई- बहन के प्रति हर्षवर्धन का प्रेम भावाभिव्यक्ति में तथा बौद्ध श्रमण आचार्य दिवाकर मित्र, राज्यश्री, हर्षवर्धन के चरित्र- चित्रण में कवि ने कल्पना का प्रयोग किया है।


कवि ने इस खंडकाव्य में ऐतिहासिक एवं काल्पनिक घटनाओं का इतना सुंदर और सजीव समन्वय किया है की सभी घटनाएं एवं चरित्र बहुत अधिक प्रभावशाली बन गए हैं।


2.कथा संगठन की श्रेष्ठता- कुमार हर्ष वर्धन किशोरावस्था में ही दुखों के पहाड़ टूटने लगते हैं। यहीं से कथानक का आरंभ होता है। कथा का आरंभ बहुत ही रोचक एवं प्रभावशाली है। कन्नौज के राजा की मृत्यु का बदला लेने के लिए हर्षवर्धन द्वारा ससैन्य प्रयाण तथा उन्हीं पर संपूर्ण राज्यभार आ पड़ना कथा का विकास है।


हर्षवर्धन द्वारा दिग्विजय के बाद तीर्थराज प्रयाग में सर्वस्व त्याग कथानक की चरम सीमा है। यहां आकर त्यागपथी हर्षवर्धन का लोक कल्याण अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। इसके पश्चात हर्षवर्धन के सुशासन का वर्णन कथानक का उतार है। और उनकी मृत्यु तथा उनके महान चरित्र से प्रेरणा लेने की कामना के साथ 'त्यागपथी' के कथानक का अंत हो जाता है।

इस प्रकार इस खंडकाव्य का संपूर्ण कथानक सुगठित और सुविकसित है। प्रसंगों में प्रवाह है और कथा की तारतम्यता कहीं भी सिथिल या बाधित नहीं होती है।


3.कौतूहल वर्धक- 'त्यागपथी' की कथावस्तु कौतूहल वर्धक है। आखेट के समूह हर्षवर्धन को पिता के भयंकर ज्वर दाह की सूचना माता यशोमती का आत्मदाह, कन्नौज की घटनाएं, राज्यवर्धन की हत्या , राजश्री की खोज, तथा कन्नौज का शासन ग्रहण करने की समस्या आदि सभी घटनाएं पाठकों के मन में कौतूहल जगाती हैं।


4.मार्मिकता- प्रस्तुत काव्य में कवि ने मार्मिक घटनाओं का चयन करने में बड़ी सावधानी से काम लिया है। यशोमती का चित्रारोहण, राज्यवर्धन और हर्षवर्धन का वैराग्य लेने को तैयार होना, राज्यश्री के वैधव्य का समाचार पाकर हर्ष की व्याकुलता, आत्मदाह के लिए उद्धत राज्यश्री का हर्ष से मिलना इत्यादि ऐसी मार्मिक घटनाएं हैं, जिनके वर्णन को पढ़कर पाठक का ह्रदय द्रवित हो जाता है।


इस प्रकार 'त्यागपथी' की कथावस्तु वास्तव में अत्यंत मार्मिक, सुसम्बध्द, इतिहास और कल्पना के सुंदर समन्वय से रमणीय और प्रेरणाप्रद है।


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