मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य || Class 12 Hindi Muktiyagya Khandkavya Saransh Charitra Chitran Kathavastu
मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य का सारांश, चरित्र चित्रण एवं कथावस्तु
मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य का सारांश, चरित्र चित्रण एवं कथावस्तु
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट www.Bandana classes.com पर । आज की पोस्ट में हम आपको "मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य का सारांश, चरित्र चित्रण एवं कथावस्तु / Class 12 Hindi Chapter 1 Muktiyagya Khandkavya Saransh Charitra Chitran Kathavastu" के बारे में बताएंगे तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए।
प्रश्न. 'मुक्तियज्ञ' की कथावस्तु सारांश (संक्षेप) में लिखिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' गांधी युग के स्वर्ण इतिहास का काव्यात्मक आलेख प्रस्तुत कथन के आधार पर मुक्ति यज्ञ की कथावस्तु की व्याख्या कीजिए।
अथवा
" 'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य में गांधी युग का स्वर्णिम इतिहास छिपा है" इसे संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' का क्या आशय है? स्वपठित खंडकाव्य मुक्तियज्ञ के आधार पर उत्तर दीजिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य की पृष्ठभूमि संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य में वर्णित राजनीतिक घटना पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य में ऐतिहासिक तथ्यों की प्रधानता है। उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
अथवा
" 'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य वर्ण्य - विषय महात्मा गांधी का व्यक्तित्व है" स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य में राष्ट्रीय एकता तथा मानव मात्र के कल्याण का भाव निहित है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - 'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य सुमित्रानंदन पंत द्वारा विरचित 'लोकायतन' महाकाव्य का एक अंश है। इस अंश में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की गाथा है। 'मुक्तियज्ञ' की कथावस्तु संक्षेप में निम्न प्रकार है-
गांधीजी साबरमती आश्रम से अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ने के लिए 24 दिनों की यात्रा पूर्ण करके डाण्डी गांव पहुंचे और सागर तट पर नमक बनाकर 'नमक कानून' तोड़ा।
वह प्रसिद्ध डाण्डी यात्रा थी,
जन के राम गए थे फिर वन।
सिंधु तीर पर लक्ष्य विश्व का,
डांडी ग्राम बना बलि प्रांगण।।
गांधी जी का उद्देश्य नमक बनाना नहीं था, वरन् इसके माध्यम से वे अंग्रेजों के इस कानून का विरोध करना और जनता में चेतना उत्पन्न करना चाहते थे। यद्यपि उनके इस विरोध के आधार सत्य और अहिंसा थे, किंतु अंग्रेजों का दमन चक्र पहले की भांति ही चलने लगा। गांधीजी तथा अन्य नेताओं को अंग्रेजों ने कारागार में डाल दिया। जैसे-जैसे दमन चक्र बढ़ता गया, वैसे वैसे ही मुक्तियज्ञ भी तीव्र होता गया। गांधी जी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तु के प्रयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रोत्साहित किया। संपूर्ण देश में यह आंदोलन फैल गया। समस्त देशवासी स्वतंत्रता आंदोलन में एकजुट होकर गांधीजी के पीछे हो गए। इस प्रकार गांधी जी ने भारतीयों में एक अपूर्व उत्साह एवं जागृति उत्पन्न कर दी।
गांधी जी ने अछूतों को समाज में सम्मान को स्थान दिलवाने के लिए आमरण अनशन आरंभ किया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीयों ने अंग्रेजों से संघर्ष का निर्णय लिया। सन 1927 ईस्वी में साइमन कमीशन भारत आया। सन 1942 ईस्वी में गांधीजी ने 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' का नारा दिया। उसी रात्रि में गांधी जी व अन्य नेतागण बंदी बना लिए गए और अंग्रेजों ने बालको वृद्धों और स्त्रियों तक पर भीषण अत्याचार आरंभ कर दिए। इन अत्याचारों के कारण भारतीयों में और अधिक आक्रोश उत्पन्न हो उठा। चारों ओर हड़ताल और तालाबंदी हो गई। सब कामकाज ठप हो गया। अंग्रेजी शासन इस आंदोलन से हिल गया। पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रबल आक्रोश एवं हिंसा भड़क उठी थी। सन 1942 ईस्वी में भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की गई। अंग्रेजों के प्रोत्साहन पर मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन की मांग की। अंततः 15 अगस्त 1947 ईस्वी को अंग्रेजों ने भारत को मुक्त कर दिया।
अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान के रूप में देश का विभाजन करवा दिया। एक और दो देश में स्वतंत्रता का उत्सव मनाया जा रहा था, दूसरी ओर नोआखाली में हिंदू और मुसलमानों के बीच संघर्ष हो गया। गांधीजी ने इससे दुखी होकर आमरण उपवास रखने का निश्चय किया।
30 जनवरी 1948 ईस्वी को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। इस दुखद घटना के पश्चात कवि द्वारा भारत की एकता की कामना के साथ इस काव्य का अंत हो गया।
इस प्रकार खंडकाव्य का आधार हलक बहुत ही विराट है और उस पर कवि पंत द्वारा बहुत सुंदर हो प्रभावशाली चित्र खींचे गए हैं। इसमें इस योग का इतिहास अंकित है, जब भारत में एक हलचल मची हुई थी और संपूर्ण देश में क्रांति की आग सुलग रही थी। इसमें व्यक्ति राष्ट्रीयता और देशभक्ति संकुचित नहीं है।
निष्कर्ष रूप में 'मुक्तियज्ञ' गांधी युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक आलेख है।
प्रश्न. 'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य का नायक कौन है? उनका चारित्रिक विश्लेषण कीजिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य के नायक महात्मा गांधी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
"गांधी जी का संपूर्ण जीवन विश्वबंधुत्व व लोकमंगल के लिए था।" इस कथन के आलोक में उन की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य की दृष्टि से महात्मा गांधी का चरित्र चित्रण कीजिए।
अथवा
सिद्ध कीजिए कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 'मुक्तियज्ञ' के पुरोधा हैं।
उत्तर - 'मुक्तियज्ञ' काव्य के आधार पर गांधीजी की चारित्रिक विशेषताएं निम्न प्रकार हैं -
प्रभावशाली व्यक्तित्व- गांधीजी का आंतरिक व्यक्तित्व बहुत अधिक प्रभावशाली है। उनकी वाणी में अद्भुत चुंबकीय प्रभाव था।
सत्य, प्रेम और अहिंसा के प्रबल समर्थक- मुक्ति यज्ञ में गांधीजी के जीवन के सिद्धांतों में, प्रेम और अहिंसा प्रमुख है। अपने इन तीन आध्यात्मिक अस्त्रों के बल पर ही गांधी जी ने अंग्रेज सरकार की नींव हिला दी। इन सिद्धांतों को वे अपने जीवन में भी अक्षरशः उतारते थे। उन्होंने कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग नहीं छोड़ा।
दृढ़ प्रतिज्ञ- 'मुक्तियज्ञ' के नायक गांधी जी ने जो भी कार्य आरंभ किया, उसे पूरा करके ही छोड़ा। वे अपने निश्चय पर अटल रहे हैं। उन्होंने नमक कानून तोड़ने की प्रतिज्ञा की तो उसे पूरा भी कर दिखाया।
जन- नेता- 'मुक्तियज्ञ' के नायक गांधीजी संपूर्ण भारत में जन - जन के प्रिय हैं। उनके एक संकेत मात्र पर ही लाखों नर नारी अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं। भारत की जनता ने उनके नेतृत्व में भी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों को भगाकर ही दम लिया।
जातिवाद के विरोधी- गांधी जी का मत था कि भारत जात-पात के भेदभाव में पड़कर ही शक्तिहीन हो रहा है। इसी के कारण जातिवाद के कट्टर विरोधी थे।
मानवता की अग्रदूत- 'मुक्तियज्ञ' के नायक गांधी जी अपना संपूर्ण जीवन मानवता के कल्याण में लगा देते हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि मानव मन में उत्पन्न घृणा, घृणा से नहीं अपितु प्रेम से मरती है। वे हिंसा पर टिकी हुई संस्कृति को मानवीय नहीं मानते।
सांप्रदायिक एकता के पक्षधर- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में हिंदुओं और मुसलमानों में भीषण संघर्ष हुआ। इससे गांधी जी का हृदय बहुत दुखी हो गया। सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए गांधीजी ने आमरण अनशन किया।
समदृष्टा- गांधीजी सबको समान दृष्टि से देखते थे। उनकी दृष्टि में ना कोई बड़ा था और ना ही कोई छोटा। छुआछूत को वे समाज का कलंक मानते थे। उनकी दृष्टि में कोई अछूत नहीं था।
इसी प्रकार मुक्ति यज्ञ के नायक गांधीजी महान लोकनायक; सत्य अहिंसा और प्रेम के समर्थक; दृढ़ प्रतिज्ञ, निर्भीक और साहसी पुरुष के रूप में सामने आते हैं। कवि ने गांधी जी में सभी लोक कल्याणकारी गुणों का समावेश करते हुए उनके चरित्र को एक नया स्वरूप प्रदान किया।
प्रश्न. 'मुक्तियज्ञ' की भाषा शैली पर उदाहरण सहित प्रकाश डालिए।
अथवा
'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य की भाषा शैली की विशेषताएं लिखिए।
अथवा
"आकार की लघुता के बावजूद 'मुक्तियज्ञ' की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है।"
अथवा
'मुक्तियज्ञ' की कथावस्तु खंडकाव्य की दृष्टि से कितनी सफल है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
खंडकाव्य के विशेषताओं का ध्यान रखते हुए सिद्ध कीजिए की 'मुक्तियज्ञ' एक सफल खंडकाव्य है।
अथवा
" 'मुक्तियज्ञ' में कवि की दृष्टि कथा पर अधिक व कथन की शैली पर कम टिकी है।"इस बात से आप कहां तक सहमत है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - किसी भी साहित्यिक रचना का काव्य सौंदर्य दो प्रकार का होता है- भाव पक्षीय तथा कला पक्षीय । यहां 'मुक्तियज्ञ' का काव्य सौंदर्य निम्न प्रकार प्रस्तुत किया गया है-
(क) भावगत विशेषताएं-
'मुक्तियज्ञ' काव्य की प्रमुख भावगत विशेषताएं निम्न प्रकार है-
विचार प्रधानता- 'मुक्तियज्ञ' एक विचार प्रधान काव्य है। इस काव्य में गांधी दर्शन की विशद व्याख्या की गई है। कवि ने गांधी जी के विचारों को बड़े ही सरस, सरल और रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया है। कवि ने गांधीजी की विचारधारा को सत्य ,अहिंसा, प्रेम, नारी जागरण, हरिजनोंत्थान, भारतीय कला और संस्कृति की रक्षा, अति भौतिकता का विरोध, मदिरा के विरुद्ध आंदोलन तथा स्वदेशी वस्तुओं पर बल आदि रूपों में प्रस्तुत किया है। संपूर्ण काव्य मैं गरिमा एवं गंभीरता है। गांधी दर्शन एवं भारत के स्वतंत्रता संग्राम के भावों को सरल ढंग से प्रस्तुत करते हुए उसका संबंध विश्व मानवतावाद से जोड़ा गया है-
प्रतिध्वनित होता जगती में, भारत आत्मा का नैतिक पतन,
नया चेतना शिखा जगाता, आत्मशक्ति से लोक उन्नयन।
युग चित्रण- 'मुक्तियज्ञ' काव्य में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास पूरी तरह वर्णित है। गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आंदोलन, अंग्रेजों के अत्याचार और अंत में भारतीयों द्वारा स्वराज्य प्राप्ति इन सभी घटनाओं का उद्योपांत वर्णन 'मुक्तियज्ञ' में हुआ है। डॉक्टर सावित्री सिन्हा के अनुसार-" आकार की लघुता के बावजूद 'मुक्तियज्ञ' की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है।"
रस योजना- रस निष्पत्ति की दृष्टि से 'मुक्तियज्ञ' वीर रस प्रधान काव्य है। इसमें गांधीजी तथा अन्य लोगों के त्याग और बलिदान की साहस पूर्ण कथा लिखी गई है। भारतीयों के अंग्रेजों के विरुद्ध अहिंसात्मक संघर्ष में वीर रस के दर्शन होते हैं-
गूंज रहा रण शंख, गरजती, भेरी, उड़ता सुर धनु केतन।
ऊर्ध्व असंख्य पदों से धरती, चलती, यह मानवता का रण।।
कवि ने वीर रस के साथ-साथ अंग्रेजों के दमन में तथा आकाल- चित्रण आदि के मार्मिक स्थलों पर करुण और शांत रस की भी सुंदर व्यंजना की है।
प्रकृति चित्रण की न्यूनता- कविवर सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। उनकी प्राया प्रत्येक काव्य रचना में प्रकृति का अनेक रूपों में चित्रण हुआ है, किंतु 'मुक्तियज्ञ' में लगता है कि उन्हें प्रकृति चित्रण का कहीं अवकाश ही नहीं मिला; क्योंकि 'मुक्तियज्ञ' एक विचार एवं समस्या प्रधान काव्य रचना है।
(ख) कलागत विशेषताएं-
यद्यपि 'मुक्तियज्ञ' मैं सुमित्रानंदन पंत जीके कलात्मक का प्रतिभा का उपयोग नहीं के बराबर हुआ है, तथापि दृष्टि से भी इनकी कलात्मकता के निम्नवत् कई रूपों में दर्शन होते हैं-
भाषा- 'मुक्तियज्ञ ' की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली और सरल हिंदी है। यह परिपक्व और व्यंजना शक्ति से परिपूर्ण है। भाषा में अभिव्यक्ति की सरलता, बोधगम्यता और चित्रात्मकता के साथ-साथ सरसता और सुकुमारता के दर्शन भी होते हैं। कवि ने अनेक स्थलों पर कठिन शब्दावली का भी प्रयोग किया है, जिस कारण कहीं-कहीं भाषा बोझिल सी बन गई है। भाषा में और ओज, माधुर्य और प्रसाद गुण विद्यमान है। भाषा भावात्मक एवं दार्शनिक विचाराअभिव्यक्ति में समर्थ है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
झोंक आग में तन के कपड़े, गिरते पद पर पागल स्त्री नर।
भेद कभी इतिहास कहेगा, कौन पुरुष चला युग भू पर ।।
कवि की योजनाओं का एक उदाहरण इस प्रकार है-
चरु की स्निग्ध घृताहुतियां ज्यों, हो उठती मुख वन्हि प्रज्वलित।
विनय अहिंसा की नर बलियां, पशु का दर्प हुआ उत्तेजित।।
शैली - कवि ने 'मुक्तियज्ञ' में सीधी - सादी अभिधाप्रधान मूर्त शैली अपनाई है। इसमें गाम्भीर्य है, प्रौढ़ता है और साथ ही सरलता भी है। इसमें कवि ने किसी प्रकार की कलात्मकता अथवा काल्पनिकता का चमत्कारपूर्ण समावेश नहीं किया है। कवि की दृष्टि कथ्य के महत्व पर अधिक और कथन की शैली पर कम टिकी है।इनकी भाषा- शैली में इनकी परिपक्व व्यंजना शैली का परिचय मिलता है; उदाहरण -
मुखर तर्क के शब्द- जाल में, भटक न खो जाए अंतः स्वर,
गुरुता से सौजन्य, बुद्धि से, हृदय बोध था उनको प्रियवर।
अलंकार - मुक्तियज्ञ में कवि ने अलंकारों का प्रयोग विषय की स्पष्टता के लिए ही किया है; क्योंकि उनकी दृष्टि कथन के ढंग पर न होकर तथ्य पर लगी रही है। फिर भी कवि ने उपमा ,रूपक ,उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग किया है;
उदाहरण -
उपमा: उन्नत जन वन देवदारु - से, स्वर्णछत्र सिर पर तारक नभ।
सौम्य आस्य , उन्मुक्त हास्य-व्यंग्य, प्रायः रवि- सा स्निग्ध स्वर्णप्रभ।।
मानवीकरण- जगे खेत खलिहान, बाग फड़, जगे बैल हंसिया हल विस्मित।
हाट बांट गोचर घर- आंगन, वापी पनघट जगे चमत्कृत।।
छन्द- विधान - 'मुक्तियज्ञ' में कवि ने भावात्मक मुक्त छंद का प्रयोग किया है। संपूर्ण काव्य की रचना में 16 मात्राओं की चार चार पंक्तियों वाले छंद का प्रयोग किया गया है। कवि ने कुछ स्थानों पर छंद परिवर्तन भी किया है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 'मुक्तियज्ञ' की कथा की पृष्ठभूमि का विस्तार अधिक है, फिर भी कवि ने उसके मुख्य प्रसंगों को इस प्रकार क्रमबद्ध किया है कि कथा के क्रमिक विकास में बाधा नहीं आई है। इस रचना में एक ही रस और एक ही छंद का प्रयोग किया गया है, इस दृष्टि से भी यह रचना संडे कब के लिए अपेक्षित विशेषताओं से विभूषित है।
प्रश्न. 'मुक्तियज्ञ' की राष्ट्रीयता एवं देश भक्ति संबंधी भावनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - पंत जी द्वारा रचित 'मुक्तियज्ञ' की कथावस्तु की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार हैं -
गांधीवाद की राष्ट्रीय विचारधारा का चिंतन- 'मुक्तियज्ञ' की कथावस्तु इतिहास पर आधारित है। कथा में काव्यात्मकता और भावात्मकता का मिश्रण है, फिर भी इसमें गांधीवादी विचारधारा का समावेश है। वस्तुतः यह भौतिकवादी ,आध्यात्मिक और राष्ट्रीयता के विचारों का संग्रह है। इसमें सत्य ,अहिंसा, हरिजनोंद्धार, नशाबंदी, नारी जागरण, आत्म स्वतंत्र्य आदि गांधीवादी चिंतन और विचारधारा को सुंदर काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है।
प्रमुख घटनाओं का काव्यात्मक आलेख- 'मुक्तियज्ञ' सुनियोजित ढंग से सर्ग बद्ध कथा नहीं है, वरन् इसमें सन 1921 से 1947 ईस्वी के बीच घटित भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का सुंदर चित्रण है। 'मुक्तियज्ञ' से पूर्व हिंदी में जितने भी खंडकाव्य लिखे गए हैं, उन सभी की कथावस्तु इतिहास एवं पुराणों से ली गई थी। यद्यपि इन खंडकाव्यों के रचयिताओं ने इनमें आधुनिक विचारधारा एवं दृष्टिकोण को भी स्थान दिया था, तथापि इनकी कथाओं का आधार प्राचीन इतिहास एवं पुराणों से ही संबंधित रहा। 'मुक्तियज्ञ' प्रथम खंडकाव्य है जिसमें पहली बार किसी कवि ने आधुनिक युग में घटित कुछ ही वर्ष पूर्व की घटनाओं पर दृष्टि डाली। इस प्रकार 'मुक्तियज्ञ' गांधी युग के स्वर्णिम इतिहास का कलात्मक आलेख है।
संक्षेपीकरण- 'मुक्तियज्ञ' की कथावस्तु में यद्यपि विस्तृत घटनाएं हैं; किंतु उन्हें बहुत ही संक्षिप्त रूप दिया गया है। सन 1930 ईस्वी में की डांडी यात्रा से कथा का प्रारंभ होता है। गांधी जी सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज सरकार के विरुद्ध संघर्ष करते हैं। 'गोलमेज सम्मेलन' से भारत को कोई लाभ नहीं होता। द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत मित्र राष्ट्रों की सहायता करता है। सन 1942 ईस्वी में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा लगता है। अंग्रेज और अधिक अत्याचार करते हैं। संपूर्ण देश में विद्रोह भड़क जाता है, अंग्रेजों को यहां से भागना पड़ता है और 1947 ईस्वी में भारत स्वतंत्र हो जाता है। अंत में 1948 ईस्वी में गांधीजी 'नाथूराम गोडसे' की गोली से मारे जाते हैं।
इस प्रकार 'मुक्तियज्ञ' पूर्णतया सत्य आधारित है, सार्थक और राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत खंडकाव्य है। यह वास्तव में व्यक्ति प्रधान काव्य न होकर समष्टि प्रधान काव्य है; क्योंकि इसके नायक महात्मा गांधी का कोई भी कार्य उनके अपने लिए नहीं था, वरन् उन्होंने जो कुछ भी किया, राष्ट्र ,समाज और मानवता की उन्नति के लिए ही किया।
Disclaimer: यह Blog एक सामान्य जानकारी के लिए है। इस Blog का उद्देश्य सामान्य जानकारी उपलब्ध कराना है। इसका किसी भी वेबसाइट या ब्लॉग से कोई संबंध नहीं है। यदि सम्बंध पाया गया तो यह महज एक संयोग समझा जाएगा।
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