आत्मकथा तथा जीवनी में अंतर//jivani aur aatmkatha mein antar
आत्मकथा और जीवनी में अंतर |
नमस्कार दोस्तों अगर आप गूगल पर सर्च कर रहे हैं आत्मकथा तथा जीवनी में अंतर तो आप बिल्कुल सही जगह पर आ चुके हैं आपको हम इस पोस्ट के माध्यम से जीवनी और आत्मकथा में क्या अंतर होता है जीवनी किसे कहते हैं और आत्मकथा किसे कहते हैं पूरा बहुत ही अच्छे से बताएंगे तो आपको इस पोस्ट के माध्यम से बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक के बारे में जानकारी मिलने वाली है यह टॉपिक आपकी सभी परीक्षाओं के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है हर साल आपकी परीक्षाओं में जीवनी और आत्मकथा में अंतर बच्चों पूछा जाता है तो इसको आपको अच्छे से एक बार जरुर पढ़ लेना है की जीवनी किसे कहते हैं और आत्मकथा किसे कहते हैं दोनों में क्या अंतर होता है जीवनी कब लिखी जाती है और आत्मकथा कब लिखी जाती है आपको इस पोस्ट के माध्यम से पूरी जानकारी मिल जाएगी।
आत्मकथा और जीवनी दोनों ही साहित्य की नई विधाएं हैं दोनों ही व्यक्ति विशेष के जीवन की विविध घटनाओं एवं प्रसंगों के वर्णन की विधा है। आत्मकथा व्यक्ति के द्वारा स्वयं के जीवन के संदर्भ में लिखी गई कथा होती है जबकि व्यक्ति विशेष के जीवन पर जब कोई दूसरा व्यक्ति लिखता है तो उसे जीवनी कहते हैं। आत्मकथा और जीवनी में यही मूल अंतर है परंतु अंतर के कारण और अनेक अंतर सामने आ जाते हैं।
जीवनी (jivani)- जीवनी हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है। जीवनी में किसी विशिष्ट व्यक्ति या महापुरुष के जन्म से लेकर मृत्यु तक की महत्वपूर्ण घटनाओं का चित्रण किया जाता है। जीवनी में लेखक पूरी तरह तटस्थ रहता है इसमें प्रमाणिकता की आवश्यकता होती है।
•जीवनी में किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन का वर्णन रहता है।
•जीवनी सत्य घटना पर आधारित होती है।
•जीवनी में लेखक तटस्थ रहता है।
•जीवनी में प्रमाणिकता की आवश्यकता होती है।
प्रमुख कवि-
• रामविलास शर्मा- निराला की साहित्य साधना
• अमृतराय- कलम का सिपाही
आत्मकथा (atmakatha)- आत्मकथा का शाब्दिक अर्थ है अपनी कथा। आत्मकथा किसी विशिष्ट व्यक्ति के द्वारा लिखा गया ऐसा आख्यान है जिसमें लेखक अपने जीवन की कथा स्मृतियों के आधार पर लिखता है इस विधा में लेखक के कई अज्ञात और गोपनीय पहलू प्रकट होते हैं।
•आत्मकथा में लेखक स्वयं अपने जीवन की घटनाओं का वर्णन करता है।
•आत्मकथा काल्पनिक भी हो सकती है।
•आत्मकथा में प्रमाणिकता की कोई आवश्यकता नहीं होती।
प्रमुख कवि-
•गुलाब राय- मेरी असफलताएं
•महात्मा गांधी- सत्य के प्रयोग
•हरिवंश राय बच्चन- क्या भूलूं क्या याद करूं।
•आत्मकथा में लेखक स्वयं अपने जीवन की घटनाओं का वर्णन करता है।
•आत्मकथा काल्पनिक भी हो सकती है।
•आत्मकथा में प्रमाणिकता की कोई आवश्यकता नहीं होती।
जीवनी जहां किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा लिखी जाती है, वहां आत्मकथा में लेखक स्वयं अपनी जीवनी प्रस्तुत करता है। आत्मकथा में लेखक निजी जीवन से जुड़ी गहराइयों से जुड़ा होता है परंतु जीवनी में लेखक चरित्र नायक के जीवन से शायद इतनी गहराई से नहीं जुड़ पाता। आत्मकथा जीवनी की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय होती है। आत्मकथा में लेखक अपना जीवन वृत्त स्वयं प्रस्तुत करता है और लेखक जितना स्वयं अपने बारे में जानता है उतना दूसरा कोई नहीं जानता। इसके विपरीत जब जीवनी लेखक किसी के बारे में कोई बात कहता है तो यह आशंका बनी रहती है कि शायद कुछ बात गोपनीय रह गई है, सत्य का कुछ अंश ढका रह गया है।
आत्मकथा अपनी जीवनी अपने जीवन काल में ही लिखता है जब की जीवनी का लेखन आवश्यक नहीं कि चरित नायक के जीवन काल से ही हो। आत्मकथा कार के पास अपने जीवन संबंधी सारी जानकारी अपने दिमाग में ही रहती है, वही जीवनी का कोई सही सामग्री विभिन्न स्रोतों से खट्टा करनी पड़ती है। तो जीवनी कार को उसके जीवन को लेकर व्यापक शोध करना पड़ता है।
Written by bandana study classes
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