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उपन्यास और कहानी में अंतर /upanyas aur kahani mein antar/उपन्यास किसे कहते हैं?/कहानी किसे कहते हैं?

उपन्यास और कहानी में अंतर /upanyas aur kahani mein antar/उपन्यास किसे कहते हैं?/कहानी किसे कहते हैं?

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कहानी और उपन्यास में अंतर

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नमस्कार दोस्तों हम आपको इस पोस्ट बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक के बारे में बताएंगे जो कि आपके एग्जाम्स के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है इस टॉपिक का नाम है कहानी और उपन्यास में अंतर यह टॉपिक बच्चों आपके परीक्षाओं में अर्धवार्षिक परीक्षा हो या फिर वार्षिक परीक्षा हो दोनों ही परीक्षाओं के लिए यह टॉपिक बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है इसलिए बच्चों इस टॉपिक को अच्छे से एक बार जरूर पढ़ लें यह क्वेश्चन आपके परीक्षा में हर साल पहुंचा जाता है की कहानी और उपन्यास में क्या अंतर होता है इस पोस्ट में बच्चों हम आपको कहानी और उपन्यास में अंतर बताएंगे कहानी किसे कहते हैं और उपन्यास किसे कहते हैं दोनों में क्या अंतर होता है बहुत ही अच्छे से आपको आसान शब्दों में बताएंगे।



 उपन्यास और कहानी में अंतर-






उपन्यास और कहानी दोनों कथा साहित्य के भिन्न -भिन्न अंग होते हुए भी अपने आप में वैविध्य रखते हैं दोनों का अलग अलग अस्तित्व है। कहानी को पन्नास का लघु रूप नहीं कहा जा सकता इसमें अनेक अंतर है उपन्यास कहानी की अपेक्षा अधिक विस्तृत होता है।


पहला अंतर तो आकर संबंधी है उपन्यास कहानी की अपेक्षा अधिक विस्तृत होता है।


कहानी केवल इतनी बड़ी हो सकती है की एक बैठक में समाप्त हो जाए, जबकि उपन्यास के साथ कोई ऐसा प्रतिबंध नहीं है। किंतु उपन्यास का वर्णन क्षेत्र विस्तृत होता है और कहानी का संकुचित।


उपन्यास में समग्र जीवन का व्यापक और: चित्र उपस्थित रहता है, और कहानी में जीवन की एक झलक मात्र होती है।


उपन्यास विवरण और विश्लेषण का महत्व दिखाता है


इसलिए उपन्यास व पंया स्कार के विचार उनके जीवन दर्शन परिस्थितियों वातावरण आदि का वर्णन हो सकता है परन्तु कहानी में संक्षिप्त का संज्ञानात्मक का का महत्व रहता है।


उपन्यास की गति धीमी होती है किंतु कहानी अत्यंत तीव्र गति से अपने लक्ष्य पर पहुंचती है।


उपन्यास में पात्रों की अधिकता रहती है और उसके चरित्र चित्रण का अवकाश रहता है इसके अतिरिक्त उपन्यास संपूर्ण जीवन की झलक मिलती है। कहानी में पात्रों की संख्या कम होती है और उनके चरित्र किसी एक पहलू पर ही कहानी का प्रकाश डाल पाता है।

कहानी में मनोवैज्ञानिक अंतर्द्वंद के लिए अवकाश कम रहता है, किंतु उपन्यासकार उसे विस्तार देने में स्वतंत्र होता है।


संवादों की दृष्टि से भी दोनों में अंतर होता है उपन्यास में लंबे और दार्शनिक व्याख्यान भी हो सकते हैं किंतु कहानी में छोटे और पूर्ण संवाद होने चाहिए कहानी का प्रभाव उपन्यास की अपेक्षा अधिक सफल होती है वह हमारी राग आत्मक प्रवृत्तियों का जितना अधिक प्रभावित करने में समर्थ होती है उतना उपन्यास को नहीं।



कहानी और उपन्यास में अंतर- 


•कहानी आकार में छोटी होती है लेकिन उपन्यास का आकार बड़ा होता है।


•कहानी की कथा संक्षिप्त एवं वैविध्य विहीन होती है लेकिन उपन्यास की कथा लंबी एवं वैविध्य पूर्ण होती है।


•कहानी में कथानक हो भी सकता है और नहीं भी लेकिन उपन्यास में कथानक अनिवार्य रूप से रहता है।


•कहानीकार को कहानी रचते समय अपनी दृष्टि किसी एक घटना या वस्तु पर केंद्रित करनी पड़ती है लेकिन उपन्यास में स्थानीय वातावरण का सृजन पात्रों के चरित्र चित्रण और उनका चारित्रक विकास साथ ही उनका संघर्ष सभी कुछ उपस्थित रहता है।



•कहानी की कथा किसी क्षण या‌ एक स्थान से जुड़ी होती है लेकिन उपन्यास की कथा दोनों में फैली हुई होती है और कभी-कभी तो कथा का विस्तार युग युग तक बढ़ जाता है।


•कहानी में एक से अधिक कथाएं नहीं होती, और ना ही कई प्रसंग होते हैं यदि किसी कहानी में एक से अधिक प्रसंग होते भी हैं तो वह मुख प्रसंग के अध्ययन अंग के रूप में ही होते हैं। लेकिन वहीं दूसरी और उपन्यास में देखें तो वहां कथा का विकास होता है। उसमें एक से अधिक कथाएं और अनेक प्रसंग होते हैं।



•कहानी में जीवन की संपूर्णता संभव नहीं है। उस समय जीवन जगत के किसी एक अंश का केवल उद्घाटन मात्र होता है पर उपन्यास में मानव जीवन की संपूर्णता को समेटने की क्षमता विद्यमान होती है।


•कहानी के सीमित पात्र होते हैं। कहानी में चरित्र का उद्घाटन तो किया जाता है लेकिन उपन्यास के समान चरित्र का विकास संभव नहीं होता।



•कहानी में इतिवृत्तात्मकता अतिशय कल्पना के लिए स्थान नहीं होता, पर वही उपन्यास पर नजर डालें तो उपन्यास में इतिवृत्तात्मकता से किया गया विवरण पर्याप्त मात्रा में रह सकता है और साथ ही कल्पना का व्यापक प्रसार भी संभव है।



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