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'सत्य की जीत' खण्डकाव्य | Class 12 Hindi Satya Ki Jeet Khand Kavya Saransh

'सत्य की जीत' खण्डकाव्य | Class 12 Hindi Satya Ki Jeet Khand Kavya Saransh

'सत्य की जीत' खण्डकाव्य सारांश, चरित्र चित्रण एवं कथावस्तु

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'सत्य की जीत' खण्डकाव्य सारांश, चरित्र चित्रण एवं कथावस्तु

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट www.Bandana classes.com पर । आज की पोस्ट में हम आपको 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य का सारांश, चरित्र चित्रण एवं कथावस्तु " के बारे में बताएंगे तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए।

'सत्य की जीत' खण्डकाव्य

प्रश्न. 'सत्य की जीत' खंडकाव्य का कथानक  संक्षेप में लिखिए।

अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य की कथा महाभारत के द्रोपदी चीर हरण की संक्षिप्त किंतु मार्मिक घटना पर आधारित है। सिद्ध कीजिए।

अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालिए।

अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य के आधार पर द्रोपदी और दुशासन के वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए।

अथवा


'सत्य की जीत' में आधुनिक युग के नारी जागरण की झलक है। इस कथन की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।

अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य की किसी एक प्रमुख घटना का परिचय दीजिए।

अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य के मार्मिक स्थलों का अपने शब्दों में विवेचन कीजिए।


अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य के कथानक की वर्तमान सामाजिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।


अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य की किसी घटना का उल्लेख कीजिए।


उत्तर - प्रस्तुत खंडकाव्य की कथा महाभारत के सभा पर्व की द्यूतक्रीडा की घटना पर आधारित है। यह एक अत्यंत लघु काव्य है, जिसमें कवि ने पुरातन आख्यान को वर्तमान संदर्भ में प्रस्तुत किया है।


दुर्योधन पांडवों को द्यूतक्रीडा के लिए आमंत्रित करता है। पांडव उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लेते हैं। युधिष्ठिर जुए में निरंतर हारते रहते हैं और अंत में अपना सर्वस्व हारने के पश्चात द्रौपदी को भी हार जाते हैं। इस पर कौरव भरी सभा में द्रौपदी को वस्त्र हीन करके अपमानित करना चाहते हैं। दु:शासन राजमहल से द्रौपदी के केस खींचते हुए सभा में लाता है। द्रौपदी को यह अपमान असह्य हो जाता है। 


इसके पश्चात द्रोपदी और दुशासन में नारी पर पुरुष द्वारा किए गए अत्याचार, नारी और पुरुष की सामाजिक समानता और उनके अधिकार, उनकी शक्ति, धर्म -अधर्म, सत्य -असत्य, शस्त्र -शास्त्र, न्याय- अन्याय आदि विषयों पर वाद विवाद होता है। जब भरी सभा में युधिष्ठिर अपना सर्वस्व हार चुके तो मुझे दांव पर लगाने का उन्हें क्या अधिकार रह गया? द्रौपदी के इस तरफ से सभी सभासद प्रभावित होते हैं। वह कहती है कि सरल हृदय युधिष्ठिर कौरवों की कुटिल चालों में आकर छले गए हैं; अतः सभा में उपस्थित धर्मग्य यह निर्णय दे कि क्या वे अधर्म और कपट की विजय को स्वीकार करते हैं अथवा सत्य और धर्म की हार को अस्वीकार? 


दुशासन कहता है कि शास्त्र बल से बड़ा शस्त्र -बल होता है। कर्ण ,शकुनी और दुर्योधन दुशासन के इस कथन का पूर्ण समर्थन करते हैं। नीतिवान विकर्ण दुशासन की शस्त्र बल की नीति का विरोध करता है। वह कहता है कि यदि शस्त्र बल ऊंचा और महत्वपूर्ण हो जाएगा तो मानवता का विकास अवरुद्ध हो जाएगा। क्योंकि शस्त्र बल मानवता को पशुता में बदल देता है।


कौरव 'कर्ण' की बात को स्वीकार नहीं करते। हारे हुए युधिष्ठिर अपने उत्तरीय वस्त्र उतार देते हैं। दुशासन द्रौपदी के वस्त्र खींचने के लिए हाथ बढ़ाता है। उसकी इस कुकर्म पर द्रौपदी अपने संपूर्ण आत्म बल के साथ सत्य का सहारा लेकर उसे ललकारती है और वस्त्र खींचने की चुनौती देती है। यह सुनकर मदांध दुशासन द्रौपदी का चीर खींचने के लिए हाथ बढ़ाता है। द्रौपदी रौद्र रूप धारण कर लेती है। उसके दुर्गा जैसे तेजो दीप्त भयंकर रौद्र रूप को देख दुशासन घबरा जाता है। और उसके वस्त्र खींचने में स्वयं को असमर्थ पाता है। वहां उपस्थित सभी सभासद कौरवों की निंदा करते हैं; क्योंकि वह सभी यह अनुभव करते हैं कि यदि पांडवों के प्रति होते हुए अन्याय को आज रोका नहीं गया तो इसका परिणाम बहुत बुरा होगा।


अंत में धृतराष्ट्र उठते हैं और पांडवों को मुक्त करने तथा उनका राज्य लौटाने के लिए दुर्योधन को आदेश देते हैं। इसके साथ ही वे द्रौपदी का पक्ष लेते हुए उसका समर्थन करते हैं तथा सत्य ,न्याय ,धर्म की प्रतिष्ठा तथा संसार का कल्याण करना ही मानव जीवन का उद्देश्य बताते हैं। वे पांडवों की कल्याण कामना करते हुए कहते हैं- 


तुम्हारे साथ तुम्हारा सत्य, शक्ति, श्रद्धा ,सेवा औ'कर्म।

तुम्हारा गौरवपूर्ण भविष्य, प्राप्त होगी पग पग पर विजय।।


धृतराष्ट्र द्रौपदी के विचारों को उचित ठहराते हैं तथा उसके प्रति किए गए दुर्व्यवहार के लिए उससे क्षमा मांगते हैं।


यह कहा जा सकता है कि इस खंडकाव्य की कथा द्रोपदी चीर हरण की अत्यंत संक्षिप्त किंतु मार्मिक घटना पर आधारित है। द्वारिका प्रसाद महेश्वरी जी ने इस कथा को अत्यधिक प्रभावी और युग के अनुकूल बनाकर नारी के सम्मान की रक्षा करने के संकल्प को दोहराया है।


प्रश्न. सत्य की जीत खंड काव्य की कथावस्तु की विशेषताएं बताइए।


अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।


उत्तर - सत्य की जीत खंडकाव्य की कथा संगठन एवं उसके रचना शिल्प के अनुसार निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है-


१.प्रसिद्ध पौराणिक घटना पर आधारित है- 'सत्य की जीत' खंडकाव्य की कथावस्तु द्रोपदी के चीरहरण की पौराणिक कथा पर आधारित है। महाभारत में वर्णित यह मार्मिक प्रसंग सभी युगों में विद्वानों द्वारा विवाद एवं निंदात्मक समस्या का विषय बना रहा है। तत्कालीन युग में विदुर ने नारी के इस अपमान को भीषण विनाश का पूर्व संकेत माना था और अधिकांश समालोचकों के अनुसार महाभारत के युद्ध का कारण भी प्रमुख रूप से यही था।


२.कथावस्तु का संगठन- 'सत्य की जीत' खंडकाव्य में कवि ने संवादों के माध्यम से कथा का संगठन किया है। प्रसंग लघु होने के कारण संवाद सूत्र में व्यक्त की गई इस कथा का संगठन अत्यंत उत्तम कोटि का है। कवि ने वातावरण, मनोवेग, आक्रोश आदि की अभिव्यक्ति जिन संवादों द्वारा की है, वह अपनी व्यंजना में पूर्णतया सफल रहे है। कथावस्तु में केवल राज्यसभा का एक दृश्य सामने आता है, किन्तु  नाटकीय आरंभ एवं कौतूहलपूर्ण मोड़ो से गुजरती हुई कथावस्तु स्वाभाविक रूप में तथा त्वरित गति से अपनी सीमा की ओर बढ़ी है।


३.कथावस्तु की लघुता में विशालता- 'सत्य की जीत' का कथा प्रसंग अत्यंत लघु है। कवि ने द्रोपदी के चीर हरण के प्रसंग पर अपने खंडकाव्य की कथावस्तु योजना तैयार की है, जिसमें महाभारत काल के साथ-साथ वर्तमान युग के समाज की विसंगतियों के प्रति आक्रोश की उद्घोषणा हुई है- 


पुरुष के पौरुष से ही सिर्फ, बनेगी धरा नहीं यह स्वर्ग।

चाहिए नारी का नारीत्व, तभी होगा पूरा यह सर्ग।।


४.मौलिकता- यद्यपि 'सत्य की जीत' की कथा महाभारत की चीरहरण घटना पर आधारित है, किंतु कवि ने उसके प्रस्तुतीकरण में वर्तमान नारी की दशा को प्रस्तुत किया है और कुछ मौलिक परिवर्तन भी किए हैं। वे द्रोपति के वस्त्र को श्री कृष्ण द्वारा बढ़ाया जाता हुआ नहीं दिखाते, वरन् स्वयं द्रोपति को ही अपने आत्मबल के प्रयोग के द्वारा दुस्साहस को रोकते हुए दिखाकर इस प्रसंग को स्वाभाविक एवं बुद्धिगम्य में बना देते हैं।


५.देश काल एवं वातावरण- इस खंडकाव्य में महाभारत कालीन देशकाल एवं वातावरण का अनुभव अत्यंत कुशलता से कराया गया है। दृश्य तो एक ही है, किंतु पात्रों के संवाद एवं उनकी छवि के अंकन से इस देश काल एवं वातावरण का पूर्ण स्वरूप सामने आ जाता है।


६.नाटकीयता अथवा संवाद योजना- 'सत्य की जीत' खंडकाव्य में कवि ने कथोप कथनों के द्वारा कथा को प्रस्तुत किया है। इसके संवाद सशक्त, पात्रानुकूल तथा कथा सूत्र को आगे बढ़ाने वाले हैं। कवि के इस प्रयास से काव्य में नाटकीयता का समावेश हो गया है, जिस कारण 'सत्य की जीत' काव्य अधिक आकर्षक बन गया है।


७.पात्रों की प्रतीकात्मकता- इस खंडकाव्य में प्रस्तुत किए गए सभी पात्रों का प्रतीकात्मक महत्व है। द्रौपदी सत्य ,न्याय ,धर्म आदि के गुणों की पुंज एवं अपने अधिकारों के लिए सजग और प्रगतिशील नारी का प्रतीक है। दुशासन और दुर्योधन अनैतिकता एवं हिंसावृत्ति के प्रतीक है। पांडवों की प्रतीकात्मकता निम्नलिखित पंक्तियों से स्पष्ट है- 


युधिष्ठिर सत्य, भीम है शक्ति, कर्म के अर्जुन है अवतार।

नकुल श्रद्धा, सेवा सहदेव, विश्व के है ये मूलाधार।।


८.पात्रों का चयन एवं समायोजन- कवि ने इस खंडकाव्य की कथा योजना में महाभारत कालीन उन्ही प्रमुख पात्रों को लिया है, जिनका द्रोपदी के चीर हरण प्रसंग में उपयोग किया जा सकता था। नवीनता यह है कि इन पात्रों में श्रीकृष्ण को किसी भी रुप में सम्मिलित नहीं किया गया है। प्रमुख पात्र द्रोपदी एवं दुशासन है। अन्य पात्रों का उल्लेख केवल वातावरण एवं प्रसंग को उद्दीपन प्रदान करने के लिए हुआ है। पात्रों का चरित्र चित्रण स्वाभाविक है और उनके मनोभावों की अभिव्यक्ति की बड़ी सुंदर अभिव्यंजना हुई है।


निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वस्तु संगठन की दृष्टि से खंडकाव्य की कथा लघु होनी चाहिए, नायक या नायिका में उदात्त गुणों का समावेश होना चाहिए और कथा का विस्तार क्रमिक एवं उद्देश्य आदर्शों की स्थापना होना चाहिए। इन सभी विशेषताओं का समावेश इस खंडकाव्य में सफलतापूर्वक किया गया है; अतः यह एक सफल खंडकाव्य है।


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      'सत्य की जीत' के आधार पर युधिष्ठिर का चरित्र चित्रण 

प्रश्न. 'सत्य की जीत' के आधार पर युधिष्ठिर की चारित्रिक विशेषताओं को लिखिए ।


अथवा


सत्य की जीत खंडकाव्य के नायक का चित्रांकन कीजिए।


अथवा


'सत्य की जीत' खंडकाव्य के प्रमुख पात्र के चरित्र की विशेषताएं लिखिए।


उत्तर - सत्य की जीत खंडकाव्य युधिष्ठिर का चरित्र धृतराष्ट्र और द्रोपदी के कथनों के माध्यम से उजागर हुआ है। उनकी चारित्रिक विशेषताएं निम्न प्रकार हैं-


१.सत्य और कर्म के अवतार - युधिष्ठिर की सत्य और कर्म में अडिग निष्ठा है। उनके इसी गुण पर मुग्ध धृतराष्ट्र कहते हैं-


युधिष्ठिर ! धर्मपरायण श्रेष्ठ, करो अब निर्भय होकर राज्य।


२.सरल हृदय शक्ति- युधिष्ठिर बहुत सरल हृदय के व्यक्ति हैं। वे दूसरों को भी सरल हृदय समझते हैं। इसी सरलता के कारण वह शकुनी और दुर्योधन के कपट जाल में फंस जाते हैं और उनका दुष्परिणाम भोगते हैं। द्रोपदी ठीक ही कहती है- 


युधिष्ठिर! धर्मराज थे, सरल हृदय, समझे न कपट की चाल।


३.सिंधु से धीर गंभीर- द्रौपदी का अपमान किए जाने पर भी युधिष्ठिर का मौन व शांत रहने का कारण उनकी दुर्बलता नहीं है, वरन् उनकी धीरता, गंभीरता और सहिष्णुता है- 


खिंची है मर्यादा की रेखा, वंश के हैं वे उच्च कुलीन।


४.अदूरदर्शी- युधिष्ठिर यद्यपि गुणवान है, किंतु द्रौपदी को दांव पर लगाने जैसा अविवेकी कार्य कर बैठते हैं, जिससे जान पड़ता है कि वह सैद्धांतिक अधिक किंतु व्यवहार कुशल कम है। वह इस कृत्य का दूरगामी परिणाम दृष्टि से ओझल कर बैठते हैं-


युधिष्ठिर धर्मराज का ह्रदय, सरल- निर्मल- निश्चल- निर्दोष।

भरा अंतर- सागर में अमित, भाव रत्नों का सुंदर कोष।।


५.विश्व कल्याण के साधक- युधिष्ठिर का लक्ष्य विश्व मंगल है, यह बात धृतराष्ट्र भी स्वीकार करते हैं- 


तुम्हारे साथ विश्व है, क्योंकि, तुम्हारा ध्येय विश्व-कल्याण।


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                         द्रोपदी का चरित्र चित्रण 

प्रश्न. 'सत्य की जीत' खंडकाव्य के आधार पर नायिका द्रोपदी या मुख्य स्त्री पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।


अथवा


'सत्य की जीत' खंड काव्य के आधार पर द्रोपदी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।


अथवा


"नारी अबला नहीं ,शक्ति रूपा है।" सत्य की जीत के आधार पर सिद्ध कीजिए।


अथवा


सत्य की जीत खंडकाव्य में वर्णित द्रोपदी के चरित्र का विश्लेषण कीजिए।


उत्तर - द्रोपदी 'सत्य की जीत' खंडकाव्य की नायिका है। संपूर्ण कथा उसके चारों ओर घूमती है। खंडकाव्य के आधार पर द्रोपदी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार हैं-


१.आत्मविश्वासी- 'सत्य की जीत' खंडकाव्य में अत्यधिक विकट समय होते हुए भी द्रोपदी बड़े आत्मविश्वास से दुशासन को अपना परिचय देती है।


२.स्वाभिमानिनी सबला- द्रौपदी स्वाभिमानिनी है। वह अपने अपमान नारी -जाति का अपमान समझती है और वह इसे सहन नहीं करती। सत्य की जीत की द्रौपदी महाभारत की द्रोपदी की भांति असहाय अबला और संकोची नारी नहीं है। वह अन्यायी अधर्मी में पुरुषों से जमकर संघर्ष करने वाली है।


३.विवेकशील- द्रोपदी पुरुष के पीछे पीछे आंख बंद कर चलने वाली नारी नहीं, वरन् विवेक से कार्य करने वाली नारी है। वह भरी सभा में यह सिद्ध कर देती है कि जुएं में स्वयं को हारने वाले युधिष्ठिर को मुझे दांव पर लगाने का कोई अधिकार नहीं था।


४.साध्वी- द्रौपदी में शक्ति, ओज, तेज ,स्वाभिमान और बुद्धि के साथ-साथ सत्य, शील और धर्म का पालन करने की शक्ति भी है। द्रौपदी के चरित्र की श्रेष्ठता से प्रभावित धृतराष्ट्र उसकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं-


द्रौपदी धर्मनिष्ठ है सती, साध्वी न्याय सत्य साकार।

इसी से आज सभी से प्राप्त, उसे बल सहानुभूति अपार।।


५.सत्य, न्याय और धर्म की एकनिष्ठ साधिका- द्रौपदी सत्य और न्याय की अजेय शक्ति और असत्य तथा अधर्म की मिथ्या शक्ति का विवेचन बहुत ही संयत शब्दों में करती है।


६.नारी -जाति की पक्षधर- 'सत्य की जीत' की द्रोपदी आदर्श भारतीय नारी है। उसमें अपारशक्ति सामर्थ्य ,बुद्धि ,आत्म सम्मान, सत्य ,धर्म ,व्यवहार कुशलता, वाकपटुता, सदाचार आदि गुण विद्यमान है। अपने सम्मान को ठेस लगने पर वह सभी में गरज उठती है-


मौन हो जा मैं सह सकती न, कभी भी नारी का अपमान।


७.वीरांगना- वह पुरुष को विवश होकर क्षमा कर देने वाली असहाय अबला नहीं वरन् चुनौती देकर दंड देने को कटिबद्ध वीरांगना है-


अरे ओ दुशासन निर्लज्ज,

देख तू नारी का भी क्रोध।

किसे कहते उसका अपमान,

कराऊंगी मैं उसका बौद्ध।।


निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि द्रोपदी पांडव कुलवधू, वीरांगना, स्वाभिमानिनी, आत्म गौरव -संपन्न, सत्य और न्याय की पक्षधर, सती- साध्वी, नारीत्व के स्वाभिमान से मंडित एवं नारी जाति का आदर्श है।


प्रश्न. सत्य की जीत खंडकाव्य में निहित संदेश को स्पष्ट कीजिए।


अथवा


सत्य की जीत खंडकाव्य शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।


उत्तर - प्रस्तुत खंडकाव्य में कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय को दर्शाता है तथा खंडकाव्य का मुख्य आध्यात्मिक भाव भी यही है। इस दृष्टिकोण से इस खंडकाव्य का शीर्षक पूर्ण रूप से उपयुक्त और सार्थक है। इस खंडकाव्य में निम्नलिखित विचारों का प्रतिपादन हुआ है-


१.नैतिक मानव- मूल्यों की स्थापना- 'सत्य की जीत' में कवि ने दुशासन और दुर्योधन के छल -कपट, दम्भ, ईर्ष्या, अनाचार, सशस्त्र बल, परपीड़न आदि की पराजय दिखाकर उन पर सत्य , धर्म, न्याय, प्रेम, मैत्री, करुणा, श्रद्धा आदि शाश्वत मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा की है और कहा है- 


जहां है सत्य, जहां है धर्म, जहां है न्याय, वहां है जीत।


कवि का विचार है कि मानव को भौतिकवाद के गर्व से नैतिक मूल्यों की स्थापना के आधार पर ही निकाला जा सकता है।


२.नारी की प्रतिष्ठा- कवि ने प्रस्तुत खंडकाव्य में द्रोपदी को सिंगार कोमलता की परंपरागत मूर्ति के रूप में नहीं, वरन् दुर्गा के नव रूप में प्रतिष्ठित किया है, जो अपने सतीत्व और मर्यादा की रक्षा के लिए चंडी और दुर्गा भी बन जाती है। यही कारण है कि भारत में नारी की शक्ति को दुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। द्रौपदी दुशासन से स्पष्ट कह देती है कि नारी पुरुष की संपत्ति या भोग्या नहीं है। उसका अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व है। पुरुष और नारी के सहयोग से ही विश्व का मंगल संभव है- 


पुरुष के पौरुष से ही सिर्फ, बनेगी धरा नहीं यह स्वर्ग।

चाहिए नारी का नारीत्व, तभी होगा पूरा यह सर्ग।।


३.प्रजातांत्रिक भावना का प्रतिपादन- प्रस्तुत खंडकाव्य का संदेश है कि हम प्रजातांत्रिक भावनाओं का आदर करें। किसी एक व्यक्ति की निरंकुश नीति को अनाचार की छूट न दें। राज्यसभा में द्रोपदी के प्रश्न पर जहां दुर्योधन, दुशासन, कर्ण अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं वही धृतराष्ट्र अपना निर्णय देते समय जन भावनाओं की अवहेलना भी करते हैं।


४.स्वार्थ और ईर्ष्या का उन्मूलन- आज का मनुष्य ईर्ष्या व स्वार्थ के जंगल में फंसा हुआ है। ईर्ष्या और स्वार्थ संघर्ष को जन्म देता है। इनके वशीभूत होकर व्यक्ति सब कुछ कर बैठता है- इसे कवि ने कौरवों द्वारा द्रौपदी के चीर हरण की घटना से व्यक्त किया है। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता है, जिसके कारण वह उन्हें द्यूतक्रीडा में हराकर उन्हें नीचा दिखाने तथा द्रोपदी को निर्वस्त्र करके उन्हें अपमानित करना चाहता है। कवि स्वार्थ और ईर्ष्या को पतन का कारण सिद्ध करता है और उनके स्थान पर मैत्री, त्याग और सेवा जैसे लोक मंगलकारी भावों को प्रतिष्ठित करना चाहता है।


५.सहयोग, सह अस्तित्व और विश्व बंधुत्व का संदेश- 


'सत्य की जीत' खंडकाव्य में कवि ने आज के योग के अनुरूप यह संदेश दिया है की सहयोग और सह अस्तित्व के विकास से ही विश्वकल्याण होगा- जियें हम और जियें सब लोग।


६.शांति की कामना- प्रस्तुत खंडकाव्य में कवि गांधीवादी- विचारधारा से प्रभावित है। वह शस्त्र बल पर सत्य, न्याय और शास्त्र की विजय दिखलाता है। धृतराष्ट्र भी शास्त्रों का प्रयोग स्थाई शांति की स्थापना के लिए किए जाने पर बल देते हैं-


किए हैं जितने भी एकत्र,

शस्त्र तुमने, उनका उपयोग।

युद्ध के हित नहीं, शांति हित करो,

यही है उनका स्वत्व प्रयोग।।


७.निरंकुशवाद के दोषों का प्रकाशन- प्रस्तुत खंडकाव्य के द्वारा कभी यह बताना चाहता है कि जब सत्ता निरंकुश हो जाती है तो वह अनैतिक कार्य करने में भी कोई संकोच नहीं करती। ऐसे राज्य में विवेक पूर्णतया कुंठित हो जाता है। भीष्म, द्रोणाचार्य, धृतराष्ट्र आदि  भी दुर्योधन की सत्ता की निरंकुशता के आगे हतप्रभ है।


निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 'सत्य की जीत' खंडकाव्य में भारतीय शाश्वत जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की गई है। इस खंडकाव्य के द्वारा कभी अपने पाठकों को सदाचार पूर्ण जीवन की प्रेरणा देना चाहता है। वह उन्नति मानवीय जीवन का संदेश देता है। धृतराष्ट्र की उदारता पूर्ण इस घोषणा में काव्य का उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है-


नीति समझो मेरी यह स्पष्ट, जियें हम और जियें सब लोग।

बैठकर आपस में सभी, धारा का करें बराबर भोग।।


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                        दुशासन का चरित्र- चित्रण

प्रश्न. सत्य की जीत के आधार पर दुशासन का चरित्र- चित्रण कीजिए।


अथवा


'सत्य की जीत' के एक प्रमुख पात्र (दुशासन (के चरित्र की विशेषताएं बताइए।


उत्तर - प्रस्तुत खंडकाव्य में दुशासन एक प्रमुख पात्र है जो दुर्योधन का छोटा बेटा भाई तथा धृतराष्ट्र का पुत्र है। उसे के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार हैं-


१.अहंकारी एवं बुद्धिहीन- दुशासन को अपने बल पर बहुत अधिक घमंड है। विवेक से उसे कुछ लेना देना नहीं है। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और महत्वपूर्ण मानता है तथा पांडवों का भरी सभा में अपमान करता है। सत्य प्रेम और अहिंसा की अपेक्षा वह पाशविक शक्तियों को ही सब कुछ मानता है-


शस्त्र जो कहे वही है सत्य, शस्त्र जो करे वही है कर्म।

शस्त्र जो लिखे वही है शास्त्र, शस्त्र बल पर आधारित धर्म।।


इसलिए परिवारजनों और सभासदों के बीच द्रोपदी को निर्वस्त्र करने में वह तनिक भी लज्जा नहीं मानता है।


२.नारी का अपमान करने वाला- द्रोपदी के साथ हुए तर्क वितर्क में दुशासन का नारी के प्रति पुरातन और रूढ़िवादी दृष्टिकोण प्रकट हुआ है। दुशासन नारी को पुरुष की दासी और भोग्या तथा पुरुष से दुर्बल मानता है। नारी की दुर्बलता का उपहास उड़ाते हुए वह कहता है-


कहां नारी ने ले तलवार, किया है पुरुषों से संग्राम।

जानती है वह केवल पुरुष, भुज दण्डों में करना विश्राम।।


३.शस्त्र बल विश्वासी- दुशासन शस्त्र बल को सब कुछ समझता है। उसे धर्म शास्त्र और धर्मज्ञो में कोई विश्वास नहीं है। इन्हें तो वह शस्त्र के आगे हारने वाले मानता हैं-


धर्म क्या है और क्या है सत्य, मुझे क्षणभर चिंता इसकी न।

शास्त्र की चर्चा होती वहां, जहां नर होता शस्त्र विहीन।।


४.दुराचारी- दुशासन हमारे समक्ष एक दुराचारी व्यक्ति के रूप में आता है। वह मानवोचित व्यवहार भी नहीं जानता। वह अपने बड़ों का गुरुजनों के सामने भी अभद्र व्यवहार करने में संकोच नहीं करता। वह शास्त्रज्ञों, धर्मज्ञों व नीतिज्ञों पर कटाक्ष करता है और उन्हें दुर्बल बताता है-


लिया दुर्बल मानव ने ढूंढ, आत्मरक्षा का सरल उपाय।

किंतु जब होता सम्मुख शस्त्र, शास्त्र हो जाता निरूपाय।।


५.धर्म और सत्य का विरोधी- धर्म और सत्य का शत्रु दुशासन आध्यात्मिक शक्ति का विरोध एवं भौतिक शक्ति का पुजारी है। वह सत्य, धर्म, न्याय , अहिंसा जैसे उदार आदर्शों की उपेक्षा करता है।


६.सत्य व सतीत्व में पराजित - दुशासन के चीर हरण में असमर्थता इस तथ्य की पुष्टि करती है कि सत्य की ही जीत होती है। वह शक्ति से मदान्ध होकर तथा सत्य, धर्म एवं न्याय की दुहाई देने को दुर्बलता का चिन्ह बताता हुआ जैसे ही द्रोपदी का चीर खींचने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है, वैसे ही द्रौपदी के शरीर से प्रकट होने वाले सतीत्व की ज्वाला से पराजित हो जाता है।


दुशासन के चरित्र की दुर्बलताओ या विशेषताओं का उद्घाटन करते हुए -

ओंकार प्रसाद माहेश्वरी लिखते हैं- "लोकतंत्रीय चेतना के जागरण के इस युग में अब भी कुछ ऐसे साम्राज्यवादी प्रकृति के दुशासन हैं, जो दूसरों के बढ़ते मान सम्मान को नहीं देख सकते तथा दूसरों की भूमि और संपत्ति को हड़पने के लिए प्रतिक्षण घात लगाए हुए बैठे रहते हैं। इस काव्य में दुशासन उन्हीं का प्रतीक है।"


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