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नई कविता की विशेषताएं || Nayi Kavita ki Visheshtayein

नई कविता की विशेषताएं || Nayi Kavita ki Visheshtayein


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Nayi kavita ki Visheshtayein



नमस्कार दोस्तों ! आज की पोस्ट में हम आपको नई कविता की विशेषताएं बतायेंगे जो कि MP बोर्ड में कक्षा -10वीं और 12वीं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. तो दोस्तों यदि आप भी MP बोर्ड से सम्बंधित किसी भी जानकारी के लिए Google पर सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही वेबसाइट पर आये हैं तो दोस्तों जुड़े रहिये हमारी वेबसाइट bandanaclasses.com  से.  हम आपके लिए ऐसी ही महत्वपूर्ण पोस्ट उपलब्ध कराते रहेंगे.



आज की इस पोस्ट में आपको नई कविता की विशेषताएं तथा उनके कवियों के नाम के बारे में जानकारी दी जाएगी तो आपको पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ना है।




हिन्दी साहित्य का इतिहास 


नई कविता की विशेषताएं


नई कविता की विशेषताएं



1. लघुमानववाद की प्रतिष्ठा - इस काल की कविताओं में मानव से जुड़ी प्रत्येक वस्तु को प्रतिष्ठा प्रदान की गई है तथा इसे कविता का विषय बनाया है।


2. प्रयोगों में नवीनता - नए-नए भावो को नए-नए शिल्प विधानों में प्रस्तुत किया गया है।



3. क्षणवाद को महत्व - जीवन के प्रत्येक क्षण को महत्वपूर्ण मानकर जीवन एक-एक अनुभूति को कविता में स्थान प्रदान किया है।



4. अनुभूतियों का वास्तविक चित्रण - मानव का समाज दोनों की अनुभूतियों का सच्चाई के साथ चित्रण किया है।



5. बिंब - इस युग के कवियों ने नूतन बिंबो की खोज की।



6. व्यंग प्रधान रचनाएं - इस काल में मानव जीवन की विसंगतियों, विकृतियों एवं अनैतिकतावादी मान्यताओं पर व्यंग्य रचनाएं लिखी हैं।




       कवि एवं उनकी रचनाएं


         


नरेश मेहता


रचनाएं- बोलने दो चिड़ को, वनपाखी सुनो



दुष्यंत कुमार


रचनाएं- सूर्य का स्वागत,साए में धूप



भवानी प्रसाद मिश्र


रचनाएं- सन्नाटा , गीत फरोश



कुंवर नारायण


रचनाएं - चक्रव्यूह, आमने सामने



जगदीश गुप्त


रचनाएं- नाव के पांव, बोधि वृक्ष




    नई कविता की विशेषता प्रवृत्तियां


      Nayi Kavita ki visheshta


 Nayi Kavita ki Pramukh Pravattiyan



नई कविता की विशेषता प्रवृत्तियां Nayi Kavita ki visheshta Nayi Kavita ki Pramukh Pravattiyan



आधुनिक हिंदी कविता प्रयोग चिंता की प्रवृत्ति से आगे बढ़ गई है और वह पहले से अपनी पूर्ण पृथकता घोषित करने के लिए प्रयत्नशील है। आधुनिक काल की इस नवीन काव्यधारा को अभी तक कोई नया नाम नहीं दिया गया है। केवल नई कविता नाम से ही अभी इसका बोध कराया जाता है। सन 1954 ई. में डॉ. जगदीश गुप्त और डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन में नई कविता का संकलन का प्रकाशन हुआ। इसी को आधुनिक काल के नए रूप का आरंभ माना जाता है ।इसके पश्चात इसी नाम के पत्र पत्रिकाओं तथा संकलनौं के माध्यम से है काव्यधारा निरंतर आगे बढ़ती चली आ रही है। नई कविता नहीं प्रयोगवाद की शकुन चिंता से ऊपर उठकर उसे अधिक उदार और व्यापक बनाया। नई कविता के आधारभूत विशेषता यह है कि वह किसी भी दर्शन के साथ बंदी नहीं है और वर्तमान जीवन के सभी स्तरों के यथार्थ को नई भाषा, नवीन अभिव्यंजना विधान और नूतन कलात्मकता के साथ अभिव्यक्त करने में संलग्न है। हिंदी की यह नई कविता के परंपरागत रूप से इतनी बिन हो गई है कि इसे कविता ना कह कर अकविता कहा जाने लगा है।



1.नई कविता के प्रमुख कवि Nayi Kavita ke Pramukh Kavi - 



नई कविता के प्रमुख कवियों में प्रमुख हैं - डॉक्टर जगदीश गुप्त, लक्ष्मीकांत वर्मा, विजयदेव नारायण साही, श्रीकांत वर्मा, धर्मवीर भारती, कुंवर नारायण, शमशेर बहादुर सिंह, रामस्वरूप चतुर्वेदी, सर्वेश्व दयाल सक्सेना.



2. सौंदर्य भावना और कला पक्ष - आधुनिक कवि सौंदर्य की परिधि में प्रत्येक वस्तु को समेट लेता है, इसलिए उसमें सुंदर-सुंदर सभी का घोलमेल हो गया है। आज का कवि भाषा, प्रदेशिक भाषाओं-हिंदी अंग्रेजी एवं उर्दू सभी के शब्दों का घोलमेल कर देता है। उनका अपना विचार है कि यही भाषा के यथार्थ को प्रकट करने में सक्षम है। छंदों का तिरस्कार करके छंदहीनता की ओर झुक जाता है। और कला हीनता को कला मान बैठा है। कुंवर नारायण ने कहा है कि--



पार्क में बैठा रहा कुछ देर तक


अच्छा लगा,


पेड़ की छाया का सुख


अच्छा लगा


डाल से पत्ता गिरा पत्ते का मन,


"अबे चलूं" सोचा


तो यह अच्छा लगा…….



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वैयक्तिकता और बौद्धिकता -



आज का कभी अपने अहं में ही सिमटा रहे गया है। और अपने सुख-दुख आशा निराशा की अभिव्यक्ति को ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानता है कविता में वह यही व्यक्त करता है की आत्मा व्यक्ति से उसे कोई संकोच था वह नहीं लगता आज का कवि भावुकता के स्थान पर जीवन को बौद्धिक दृष्टिकोण से देखता है और इसलिए उसे काल्पनिक आदर्शवाद के स्थान पर कटु यथार्थ ही अधिक आकृष्ट करता है। इस यथार्थ में ही उस में वर्तमान व्यवस्था के प्रति विक्षोभ कर दिया है। शमशेर बहादुर सिंह के शब्दों में--



मोटी धुली लॉन की दूब ,


साफ मखमल सी कालीन।


ठंडी धुली सुनहरी धूप।


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कुंठा, सत्रांश ,मृत्युबोध---निराशा और आशा ही इन भावों को भी जन्म देती है व्यक्ति जीवन से उठता है। यह ऊब निराशा का ही चरम रूप है।


कुंवर नारायण ने कहा है कि---



एक दिन


मौत की घंटी बजी…


हड़बड़ा कर उठ बैठा_


मैं हूं... मैं हूं... मैं हूं..



मौत ने कहा--


करवट बदल कर सो जाओ।



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अनास्था



नहीं कभी को उपयुक्त कारणों से हर व्यक्ति वस्तु के प्रति अनास्ता उत्पन्न हो गई है ।बौद्ध धर्म या ईश्वर में किसी का विश्वास नहीं करता है।



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वेदना



आर्थिक एवं सामाजिक विषय ने वेदना से भर दिया है ।उसे जीवन में हर और गतिरोध भी पड़ता है। मुक्तिबोध के शब्दों में..



"सामने मेरे सर्दी में बोरे को ओढ कार,कोई एक अपने ,हाथ पैर समेटे,कांप रहा,हिल रहा,वह मर जाएगा"



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नैराश्य भावना



आज मानवीय मूल्यों के अवमूल्यन एवं व्यक्तित्व के विघटन के कारण सावत्र निराशा प्राप्त है। जीवन की विसंगतियों से टकराकर आदमी भीतर ही भीतर टूटता जा रहा है ।इसी कारण नया कभी निराशा से भर उठा है। विजयदेव नारायण साही ने कहा है कि 



मैं बरसों इस नगर की सड़कों पर आवारा फिरा हूं।


वहां भी जहां,


शीशे की तरह,


सन्नाटा चटकता हैं


और आसमान से भरी हुई बत्तखों को गिनता हूं।



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