Kisi Yatra Ka Varnan in Hindi Essay || किसी की गई यात्रा का रोचक वर्णन पर निबंध
Kisi Yatra Ka Varnan in Hindi Essay || किसी की गई यात्रा का रोचक वर्णन पर निबंध
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किसी की गई यात्रा का रोचक वर्णन
(2020)
रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) यात्रा की तैयारी और प्रस्थान, (3) मार्ग के दृश्य, (4) वांछित स्थान पर पहुँचना और वहाँ के दर्शनीय स्थलों का वर्णन, (5) वापसी, (6) उपसंहार ।
प्रस्तावना- प्रायः हर व्यक्ति के जीवन में एक निश्चित दिनचर्या बन जाया करती है। वह एक बँधी बँधाई दिनचर्या के अनुसार कार्य करते रहने पर कभी-कभी ऊब जाता है और अपने जीवन-चक्र में बदलाव चाहता है। हर प्रकार के परिवर्तन के लिए यात्रा का अत्यधिक महत्त्व है। यात्रा अथवा नये स्थानों पर भ्रमण से व्यक्ति के जीवन में आयी नीरसता समाप्त हो जाती है और वह अपने अन्दर एक नया उत्साह पाता है। इतना ही नहीं, इन यात्राओं से व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास और साहस उत्पन्न होता है। इससे विभिन्न व्यक्तियों के बीच आत्मीयता भी बढ़ती है और हमारे व्यावहारिक ज्ञान की वृद्धि होती है।
यात्रा की तैयारी और प्रस्थान- मई का महीना था। हमारी परीक्षाएँ अप्रैल में ही समाप्त हो चुकी थीं। मेरे कुछ साथियों ने आगरा घूमने का कार्यक्रम बनाया। मैंने अपने पिताजी और माताजी से इसके लिए स्वीकृति ले ली और विद्यालय के माध्यम से रियायत प्राप्त करके रेलवे के आरक्षित टिकट बनवा लिये थे। सभी साथी अपना-अपना सामान लेकर मेरे यहाँ एकत्रित हो गये। घर से सभी छात्र एक थ्री-व्हीलर द्वारा स्टेशन पहुँचे। प्लेटफॉर्म पर बहुत भीड़ थी। कुछ समय के पश्चात् गाड़ी आयी। हमने अपना सामान गाड़ी में चढ़ाया। प्लेटफॉर्म पर सामान बेचने वालों की आवाजों से बहुत शोर हो रहा था, तभी गाड़ी ने सीटी दे दी। गाड़ी के चलने पर ठण्डी हवा लगी तो सभी को राहत मिली।
मार्ग के दृश्य- हम सभी अपनी-अपनी सीटों पर बैठ चुके थे। डिब्बे में इधर-उधर निगाह घुमायी तो देखा कि कुछ लोग बैठे हुए ताश खेल रहे हैं, तो कोई उपन्यास पढ़कर मन बहला रहा है। कुछ लोग बैठे हुए ऊँघ रहे थे। मैं भी अपने साथियों के साथ गपशप कर रहा था। खिड़की से बाहर झाँकने पर मुझे पेड़-पौधे तथा खेत-खलिहान पीछे की ओर दौड़ते नजर आ रहे थे। सभी दृश्य बड़ी तेजी से पीछे छूटते जा रहे थे। गाड़ी छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती हुई अपने गन्तव्य की ओर निरन्तर बढ़ती ही जा रही थी। हमने कुछ समय ताश खेलकर बिताया। साथ लाये भोजन और फल मिल-बाँटकर खाते-पीते हम सब यात्रा का पूरा आनन्द ले रहे थे।
एक स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही अचानक कानों में आवाज पड़ी कि 'पेठा, आगरे का मशहूर पेठा'। हम सब अपना-अपना सामान सँभालते हुए नीचे उतरे।
वांछित स्थान पर पहुँचना और वहाँ के दर्शनीय स्थलों का वर्णन-हम सभी साथी एक धर्मशाला में जाकर ठहर गये। धर्मशाला में पहुँचकर हमने मुँह-हाथ धोकर अपने को तरोताजा किया। शाम के सात बज चुके थे। इसलिए हम लोग शीघ्र ही भोजन करके धर्मशाला के आस-पास ही घूमने के लिए निकल गये। दिन 11.00 बजे दिन में हम लोग सिटी बस द्वारा ताज देखने के लिए चल दिये। भारत के गौरव और संसार के गिने-चुने आश्चयों में से एक ताजमहल के अनूठे को देखकर हम सभी स्तम्भित रह गये। श्वेत संगमरमर पत्थरों से निर्मित ताज दिन में भी शीतल की वर्षा करता प्रतीत हो रहा था। ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट् ने अपनी बेगम महल की स्मृति में कराया था। यह एक सफेद संगमरमर के ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है।
इस चबूतरे के चारों कोनों पर चार मीनारें बनी हुई हैं। मुख्य इमारत इस चबूतरे के बीचों-बीच बनी हुई है। इमारत के ऊपरी भाग में चारों ओर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। इस इमारत के चारों ओर सुन्दर बगीचे बने हुए हैं, जो इसके सौन्दर्य में चार चाँद लगा रहे हैं। वास्तव में यह भारतीय और यूनानी शैली में बनी अद्वितीय और अनुपम इमारत है, जिसे देखने के लिए दुनिया के विभिन्न भागों से प्रति वर्ष लाखों व्यक्ति आते हैं।
दूसरे दिन हमने आगरे का लाल किला तथा दयाल बाग देखने का कार्यक्रम बनाया। इन भवनों के अपूर्व सौन्दर्य ने हम सबका मन मोह लिया। आगरे का लाल किला सम्राट् अकबर द्वारा बनवाया गया है। इस विशाल किले को देखने के लिए वैसे तो कई दिन भी कम हैं, किन्तु हम लोगों ने जल्दी-जल्दी इसके तमाम महत्त्वपूर्ण स्थलों को देखा। यहीं से हम लोग बस द्वारा दयाल बाग पहुँच गये। यहाँ पर राधास्वामी मत वाले एक इमारत का निर्माण पिछले कई वर्षों से करवा रहे हैं, पर अभी भी यह अधूरी ही है। इस इमारत की भव्यता और सौन्दर्य को देखकर यह कहा जा सकता है कि जिस समय यह पूर्ण होगी, निश्चित ही स्थापत्य कला का एक अनुपम उदाहरण होगी।
वापसी—आगरा की आकर्षक और सजीव स्मृतियों को मन में सँजोये, पेठे और नमकीन की खरीदारी कर तथा काँच के चौकोर बक्से में बन्द ताज की अनुकृति लिये हुए हम लोग वापस लौटे। इस प्रकार हमारी यह रोचक यात्रा सम्पन्न हुई।
उपसंहार—घर लौट आने पर मैं प्रायः सोचता कि कूप-मण्डूकता के विनाश के लिए समय-समय पर प्रत्येक व्यक्ति को विविध स्थलों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए; क्योंकि इससे कल्पना और यथार्थ का भेद समाप्त होता है और जीवन की वास्तविकता से साक्षात्कार भी होता है। आगरा की यात्रा ने मुझे ढेर सारे नवीन अनुभवों तथा प्रत्यक्ष ज्ञान से साक्षात्कार कराया है।
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