आलोचना क्या है ?( What is Aalochana?)
आलोचना किसे कहते हैं ? (Aalochana kise kahate Hain?)
आलोचना का क्या अर्थ है? (What is meaning of Aalochana)
नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandanaclasses.com पर. दोस्तों आज की पोस्ट में हम जानेंगे कि आलोचना क्या है ? तथा आलोचना की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं ? आप सभी लोगों को पोस्ट को आखिरी तक पढ़ना है. मेरे दोस्तों आप लोग भी यह जानना चाहते होंगे कि आलोचना किसे कहते हैं ? तथा इसके कितने प्रकार होते हैं ? आखिर हम में से बहुत से लोग आज भी नहीं जानते हैं कि आलोचना का वास्तविक मतलब क्या होता है ?
यदि आप भी उन लोगों में से हैं जिन्हें नहीं पता कि आलोचना किसे कहते हैं ? तथा आलोचना कितने प्रकार के होते हैं ? आलोचना के कौन - कौन से अंग हैं ? एक अच्छा आलोचना लिखने के लिए किन -किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए बने रहिये इस पोस्ट पर.
मेरे प्रिय विद्द्यार्थियों आलोचना शब्द को तो हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं लेकिन सच्चाई यही हैं कि आलोचना किसे कहते हैं ? यह तथ्य हम में से अधिकांश लोग नहीं जानते हैं. तो दोस्तों बने रहिये हमारी वेबसाइट bandanaclasses.com पर. हिंदी भाषा में आलोचना का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैं. यहां पर हम आज की पोस्ट में आपको आलोचनाऔर उसके प्रमुख लेखकों के बारे में बताएंगे। हिंदी साहित्य में आलोचना से संबंधित लेखकों के बारे में इस पोस्ट में आपको जानकारी देंगे।
आलोचना किसे कहते हैं?
आलोचना या समालोचना (Criticism) किसी वस्तु/विषय की, उसके लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, उसके गुण दोषों एवं उपयुक्तता का विवेचन करने वाली साहित्यिक विधा है। हिंदी आलोचना की शुरुआत 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में भारतेंदु युग से ही मानी जाती है। 'समालोचना' का शाब्दिक अर्थ है- 'अच्छी तरह देखना'।
'आलोचना' शब्द 'लुच' धातु से बना है। 'लुच'का अर्थ है 'देखना'। समीक्षा और समालोचना शब्दों का भी यही अर्थ है। अंग्रेजी के क्रिटिसिज्म शब्द के समानार्थी रूप में आलोचना का व्यवहार होता है।
आलोचना का अर्थ [bandanaclasses.com]
आलोचना का अर्थ है किसी साहित्यिक रचना को पूरी तरह से देखना, परखना। इस प्रकार रचना का प्रत्येक दृष्टि से विश्लेषण और मूल्यांकन कर पाठकों को उस रचना के मूल तक पहुंचाने में सहायता करना आलोचना का मुख्य उद्देश्य है। सैद्धांतिक आलोचना की परंपरा संस्कृत एवं हिंदी में बहुत पुरानी है, पर आधुनिक साहित्य के विवेचन एवं मूल्यांकन के लिए व्यावहारिक आलोचना की आवश्यकता पड़ी। इस नई आलोचना का पहला रूप पुस्तक समीक्षाओं के रूप में भारतेंदु युग में प्रारंभ हो गया था। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने आलोचना के क्षेत्र में पुस्तक समीक्षा का स्तर ऊंचा किया और प्राचीन कविताओं की व्यवस्थित आलोचना की परिपाटी चलाएं।
हिंदी आलोचना के वास्तविक रूप का विकास तीसरे एवं चौथे दसकों में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा हुआ। हिंदी साहित्य का इतिहास तथा 'तुलसी', 'सूर' एवं 'जायसी' की समीक्षात्मक भूमिकाओं द्वारा सैद्धांतिक समीक्षा को शुक्ला जी ने विशेष शास्त्री गरिमा प्रदान की। वस्तुतः शुक्ल जी हजारी प्रसाद द्विवेदी एवं नगेंद्र जैसे समीक्षकों ने आगे बढ़ाया है। समसामयिक युग में अज्ञेय, देवीशंकर अवस्थी, इंद्रनाथ मदान, रामविलास शर्मा, डॉक्टर प्रभाकर क्षेत्रीय आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
कुछ समालोचक लेखकों के नाम इस प्रकार हैं- [bandanaclasses.com]
डॉ श्याम सुंदर दास
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी
डॉ नागेंद्र
डॉ रामविलास शर्मा
बाबू गुलाब राय
आचार्य नंददुलारे वाजपेई
आलोचना के प्रकार
सैद्धांतिक आलोचना
निर्णयात्मक आलोचना
प्रभावाभिव्यंजक आलोचना
व्याख्यात्मक आलोचना
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