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जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय / Jai Shankar Prasad ka jeevan parichay

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय/jaishankar prasad ka jivan parichay

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जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय

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जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, साहित्य में स्थान एवं भाषा शैली


नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandana Classes.com पर . दोस्तों आज की पोस्ट में हम चर्चा करने जा रहे हैं, हिंदी साहित्य जगत का ध्रुव तारा कह जाने वाले जयशंकर प्रसाद की. जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा, जिन्हें छायावाद युग का जनक भी कहा जाता है। जयशंकर प्रसाद एक ऐसा नाम जिसने अपनी कलम से हिंदी साहित्य जगत में क्रांति  ला दी। जयशंकर प्रसाद एक ऐसा नाम - जिसे हिंदी साहित्य का पुरोधा भी कहा जाता है. महान निबंधकार, छायावाद के जनक ,श्रेष्ठम कवि जयशंकर प्रसाद जी को यदि हिंदी साहित्य का पर्याय भी कहा जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. जयशंकर प्रसाद - एक ऐसा नाम जिसने हिंदी साहित्य की दिशा और दशा को बदलने का कार्य किया. यदि जयशंकर प्रसाद जी को छायावाद का जनक कहा जाये तो इसमें कोई विवाद नहीं होगा क्योंकि उन्होनें छायावाद युग के क्षेत्र में एक ऐसा नया कीर्तिमान स्थापित किया जिसे युगों - युगों तक हिंदी साहित्य में याद रखा जायेगा. जयशंकर प्रसाद जी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कुछ ऐसे नए मानदंड और आयाम स्थापित कर दिए हैं  जिन्हें हिंदी साहित्य जगत में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा. दोस्तों यद्यपि जयशंकर प्रसाद जी आज हम लोगों के बीच में नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं, निबंध नाटक, कृतियां विश्व भर के साहित्य प्रेमियों के हृदय में हमेशा जीवंत रहेंगी।तो दोस्तों ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व के बारे में हम लोग आज जानेगे तो दोस्तों यदि आपको ये पोस्ट पसंद आये तो इसे अधिक से अधिक अपने दोस्तों में जरूर शेयर करिएगा.

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आज की पोस्ट में हम हिंदी साहित्य के चर्चित विद्वान, छायावाद के जनक जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) के जीवन परिचय के बारे में जानेंगे। आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है।


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जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

जीवन परिचय


- जयशंकर प्रसाद -


जीवन परिचय: एक दृष्टि में



नाम

जयशंकर प्रसाद

जन्म

सन 1890 ईस्वी में

जन्म स्थान

उत्तर प्रदेश राज्य के काशी में

पिताजी का नाम

श्री देवी प्रसाद

शैक्षणिक योग्यता

अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय

रुचि

साहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन

लेखन विधा

काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध

मृत्यु

15 नवंबर, 1937 ईस्वी में

साहित्य में पहचान

छायावादी काव्य धारा के प्रवर्तक

भाषा

भावपूर्ण एवं विचारात्मक

शैली

विचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक एवं चित्रात्मक।

साहित्य में स्थान

जयशंकर प्रसाद जी को हिंदी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के कारण 'प्रसाद युग' का निर्माणकर्ता तथा छायावाद का प्रवर्तक कहा गया है।

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जीवन परिचय:- जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उनका जन्म 1890 ईसवी में काशी के 'सुंघनी साहू' नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके यहां तंबाकू का व्यापार होता था। उनके पिता देवी प्रसाद और पितामह शिवरत्न साहू थे। इनके पितामह परम शिवभक्त और दयालु थे। उनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य प्रेमी थे। प्रसाद जी का बचपन सुखमय था। बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थों की यात्राएं की। यात्रा से लौटने के बाद पहले उनके पिता का और फिर 4 वर्ष पश्चात उनकी माता का निधन हो गया। 


प्रसाद जी की शिक्षा दीक्षा और पालन-पोषण का प्रबंध उनके बड़े भाई संभू रत्न ने किया और क्वींस कॉलेज में उनका नाम लिखवाया, किंतु उनका मन वहां न लगा। उन्होंने अंग्रेजी और संस्कृत का अध्ययन स्वाध्याय से घर पर ही प्राप्त किया। उनमें बचपन से ही साहित्यानुराग था। वे साहित्यिक पुस्तकें पढ़ते और काव्य रचना करते रहे। पहले तो उनके भाई उनकी काव्य रचना में बाधा डालते रहे, परंतु जब उन्होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्य रचना में अधिक लगता है, तब उन्होंने इसकी पूरी स्वतंत्रता उन्हें दे दी।

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प्रसाद जी स्वतंत्र रूप से काव्य रचना के मार्ग पर बढ़ने लगे। इसी बीच उनके बड़े भाई शंभूरत्न जी का निधन हो जाने से घर की स्थिति खराब हो गई। व्यापार भी नष्ट हो गया। पैतृक संपत्ति बेचने से कर्ज से मुक्ति तो मिली, पर वे क्षय रोग का शिकार होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में 15 नवंबर, 1937 को इस संसार से विदा हो गए।


रचनाएं:- जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के स्वनाम धन्य रत्न हैं। उन्होंने काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है।


'कामायनी' जैसे विश्वस्तरीय महाकाव्य की रचना करके प्रसाद जी ने हिंदी साहित्य को अमर कर दिया। कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई अद्वितीय रचनाओं का सृजन किया। नाटक के क्षेत्र में उनके अभिनव योगदान के फल स्वरुप नाटक विधा में 'प्रसाद युग' का सूत्रपात हुआ। विषय वस्तु एवं शिल्प की दृष्टि से उन्होंने नाटकों को नवीन दिशा दी। भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय भावना, भारत के अतीत कालीन गौरव आदि पर आधारित 'चंद्रगुप्त', 'स्कंद गुप्त', 'ध्रुवस्वामिनी' जैसे प्रसाद रचित नाटक विश्व स्तर के साहित्य में अपना बेजोड़ स्थान रखते हैं। काव्य के क्षेत्र में वे छायावादी काव्य धारा के प्रवर्तक कवि थे। उनकी प्रमुख कृतियां निम्नलिखित हैं-




काव्य- आंसू, कामायनी, चित्राधार, लहर और झरना।


कहानी- आंधी, इंद्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि।


उपन्यास- तितली, कंकाल और इरावती।


नाटक- सज्जन, कल्याणी-परिणय, चंद्रगुप्त, स्कंद गुप्त, अजातशत्रु, प्रायश्चित, जन्मेजय का नाग यज्ञ, विशाखा और ध्रुवस्वामिनी आदि।


निबंध- काव्य कला एवं अन्य निबंध।


भाषा शैली- प्रसाद जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है। भावमयता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग ना के बराबर हुआ है। प्रसाद जी ने विचारात्मक, चित्रात्मक, भावात्मक, अनुसंधानात्मक तथा इतिवृत्तात्मक शैली का प्रयोग किया है।


हिंदी साहित्य में स्थान- युग प्रवर्तक साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने गद्य और काव्य दोनों ही विधाओं में रचना करके हिंदी साहित्य को अत्यंत समृद्ध किया है। 'कामायनी' महाकाव्य उनकी कालजयी कृति है, जो आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ रचना कही जा सकती है।


अपनी अनुभूति और गहन चिंतन को उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद का स्थान सर्वोपरि है।

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इनकी शैली के विविध रूप इस प्रकार हैं -


वर्णनात्मक शैली - प्रसाद जी ने अपने नाटकों उपन्यासों एवं कहानियों में घटनाओं का वर्णन करते समय इस शैली को अपनाया है।


आलंकारिक शैली - प्रसाद जी स्वाभावत: कवि थे, अतः इनके गद्य में भी विविध अलंकारों का प्रयोग मिलता है।


भावात्मक शैली - भावों के चित्रण में प्रसाद जी का गद्य काव्यमयी है। इनकी प्राया सभी रचनाओं में इस शैली के दर्शन होते हैं।


चित्रात्मक शैली - प्रकृति वर्णन और रेखा चित्रों में यह शैली मिलती है।


इसके अतिरिक्त सूक्ति शैली, संवाद शैली, विचारात्मक शैली एवं अनुसन्धात्मक शैली का प्रयोग भी प्रसाद जी ने किया है।


काव्य रचनाएं - जयशंकर प्रसाद की काव्य रचनाएं हैं - कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना (1918), आंसू, लहर, कामायानी (1935), और प्रेम पथिक। प्रसाद की काव्य रचनाएं दो वर्गों में विभक्त है। काव्य पथ अनुसंधान की रचनाएं और रसप्सिद्ध रचनाएं । आंसू, लहर तथा कामायानी दूसरे वर्ग की रचनाएं हैं। इन्होंने काम रचना ब्रज भाषा में आरंभ की और धीरे-धीरे खड़ी बोली को अपनाते हुए इस भांति अग्रसर हुए की खड़ी बोली के मूर्धन्य कवियों में उनकी गणना की जाने लगी और वे युग प्रवर्तक कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए।


काव्य क्षेत्र में प्रसाद जी की कीर्ति का मूलाधार कामायानी है। खड़ी बोली का यह अद्वितीय महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजय बनाने का संदेश देता है। यही रूपक कथा का बेबी है जिसमें मन श्रद्धा और बुद्धि के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रतिज्ञा दर्शन के आधार पर संयोजित किया गया है। इनकी यह कृति छायावाद और खड़ी बोली कि कब गरिमा का ज्वलंत उदाहरण है। सुमित्रानंदन पंत ऐसे हिंदी में ताजमहल के समान मानती है। शिल्प विधि, भाषासौष्ठव एवं भावव्यक्ति की दृष्टि से नहीं की जा सकती है


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कहानी संग्रह -


कथा के क्षेत्र में प्रसाद जी अपने ढंग की कहानियों के आरंभयिता माने जाते हैं। सन 1912 ईस्वी में इंदु में उनकी पहली कहानी ग्राम प्रकाशित हुई। उन्होंने कुल 72 कहानियां लिखि है। उनके कहानी संग्रह हैं, छाया ,प्रतिध्वनि आकाशदीप ,आंधी और इंद्रजाल।


इनकी अधिकतर कहानियों में भावना की प्रधानता है किंतु उन्होंने यथार्थ की दृष्टि से भी कुछ श्रेष्ठ कहानियां लिखि है। उनकी वातावरण प्रदान कहानियां अत्यंत सफल रही है। उन्होंने ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथानको पर मौलिक एवं कलात्मक कहानियां लिखी हैं। भावना प्रधान प्रेम कथाएं समस्या मूलक कहानियां लिखी हैं। उन्होंने उत्तम कहानियां भी लिखी है यह कहानियां भावनाओं की मिष्ठान तथा कविता से पूर्ण है।


उपन्यास -


प्रसाद ने 8 ऐतिहासिक, तीन पौराणिक और दो भावनात्मक कुल 13 नाटकों की सजना की। कामायनी और एक घुट को छोड़कर यह नाटक मूलक: इतिहास पर आधारित हैं। इनमें महाभारत से लेकर हर्ष के समय तक के इतिहास से सामग्री ली गई है। वे हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार है। इनके नाटकों में सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना इतिहास की भित्ति पर स्थापित है। इनके नाटक है -


स्कंद गुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, यज्ञ, राज्यश्री, कामना, एक घूंट एवं जन्मेजय का नाग।


पुरस्कार


जयशंकर प्रसाद को कामायानी पर मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।




जयशंकर प्रसाद के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर


जयशंकर प्रसाद कौन थे ?


जयशंकर प्रसाद एक छायावादी युग के लेखक थे। जिनका जन्म वैश्य परिवार में हुआ था।


जयशंकर प्रसाद का जन्म कब हुआ?


जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1889 ईस्वी में हुआ था।


जयशंकर प्रसाद के दादाजी का क्या नाम था?


जयशंकर प्रसाद जी के दादाजी का नाम शिवरतन साहू था।


जयशंकर प्रसाद की माता का क्या नाम था ?


जयशंकर प्रसाद की माता का नाम श्रीमती मुन्नी देवी था।


जयशंकर प्रसाद की सबसे प्रसिद्ध कृति क्या है?


जयशंकर प्रसाद की सबसे प्रसिद्ध कृति कामायानी हैं।


जयशंकर प्रसाद की कविताएं कौन-कौन सी हैं?


जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कविताएं - हिमाद्रि तुंग श्रृंग से , अरुण यह मधुमय देश हमारा, भारत महिमा


जयशंकर प्रसाद की प्रथम कविता कौन सी है?


जयशंकर प्रसाद की प्रथम रचना चित्रधार थी।


जयशंकर प्रसाद के नाटक कौन-कौन से हैं?


जयशंकर प्रसाद के प्रमुख नाटक - कंकाल, तितली, इरावती है।


जयशंकर प्रसाद की लंबी कविता कौन सी है?


जयशंकर प्रसाद की लंबी कविता टकराता फिरता पवमान, तरुण तपस्वी-सा वह बैठा


जयशंकर प्रसाद की पत्नी का नाम बताइए।


जयशंकर प्रसाद की पत्नी का नाम कमला देवी था।






Que. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिये.

                       जीवन परिचय + साहित्यिक परिचय

जीवन परिचय :- जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी सन 1889 ईस्वी में काशी के समृद्ध सुंघनी साहू नामक वैश्य परिवार में हुआ था .  इनके पिता देवीप्रसाद तम्बाकू के प्रसिद्ध व्यापारी थे. बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण आठवीं कक्षा के बाद इनकी स्कूल शिक्षा बंद हो गयी तत्पश्चात इन्होंने घर पर ही हिंदी , अंग्रेजी , संस्कृत , उर्दू व फ़ारसी की अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली.

इन्होंने वेद, उपनिषद , इतिहास और दर्शन का गंभीर अध्ययन किया इनका जीवन बहुत सरल था .इनकी कामायनी नामक कृति पर इनको हिंदी साहित्य सम्मेलन ने मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किया. इनका जीवन बड़ा ही संघर्षपूर्ण रहा परिवारीजनों की मृत्यु , अर्थसंकट , पत्नी वियोग संघर्षों को झेलते हुए भी यह प्रतिभासम्पन्न कवि सरस्वती के मंदिर में अपनी सुगंधमय रचना सुमन अर्पित करते रहे.

                              अंत में क्षय रोग से पीड़ित होकर सन 1937 ईस्वी में यह महाविभूति पंचतत्व में विलीन हो गए.

साहित्यिक परिचय :- हिंदी में नवीन युग का द्वार प्रसाद जी ने ही खोला है. कविता को सौंदर्य , माधुर्य , रमणीयता से मण्डित कर नवयुग का सूत्रपात करने वाले प्रसाद जी का हिंदी साहित्य में अति सम्मानित स्थान है

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