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विद्यार्थी जीवन पर निबंध || Essay on Student Life

विद्यार्थी जीवन पर निबंध || Essay on Student Life


विद्यार्थी जीवन पर निबंध || Essay on Student Life in Hindi


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Essay on student life


 विद्यार्थी जीवन 


अथवा 


आदर्श विद्यार्थी


[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) विद्यार्थी जीवन, (3) आदर्श विद्यार्थी, (4) आधुनिक विद्यार्थी, (5) सुधार अपेक्षित, (6) उपसंहार |]


प्रस्तावना - जीवन में प्रतिपल ही सीखने की प्रक्रिया चलती रहती है। विद्यार्जन के लिए उम्र का बन्धन बाधा नहीं पहुँचाता। परन्तु विद्यार्थी जीवन वह काल है जिसमें विद्यार्थी विद्यालय में रहकर विद्यार्जन करता है। इस विद्यार्जन की प्रक्रिया में एक क्रम होता है। जितनी अवधि तक विद्यार्थी विद्यार्जन करता है, उसका वह

जीवन विद्यार्थी जीवन कहलाता है।



विद्यार्थी जीवन- विद्यार्थी जीवन जिन्दगी का स्वर्णिम काल होता है। इसी जीवन में विद्यार्थी अपने भविष्य के जीवन की आधारशिला रखता है। यहीं से सुन्दर और दृढ़ जीवन की पड़ी आधारशिला (नींव) पर उस विद्यार्थी के भविष्य का भवन खड़ा हो पाता है जो बहुत ही आकर्षक होगा।


विद्यार्थी जीवन में ही एक छात्र अपने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक गुणों को विकास की एक दिशा प्रदान करता है। इन गुणों के विकसित होने पर ही वह विद्यार्थी एक ठोस व्यक्तित्व का धनी होता है।


आदर्श विद्यार्थी-विद्यार्थी का जीवन किसी तपस्वी के जीवन से कम कठोर नहीं होता। माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त करना बहुत ही कठिन हैं। विद्या कभी भी आराम से, सुख से प्राप्त नहीं हो सकती। जीवन में संयम और नियमों के अनुसार चलना पड़ता है। विद्यार्थी के लक्षण


"काक चेष्टा, बको ध्यानम्, श्वान निद्रा तथैव च । गृहत्यागी, अल्पाहारी, विद्यार्थी पंचलक्षणम् ।।"


उपर्युक्त पद्यांश में बताए गए लक्षणों वाला विद्यार्थी अपने जीवन में सदैव सफल होता है। यह जीवन साधना और सदाचार का है। इनका पालन करने वाला ही आदर्श विद्यार्थी होता है।


आधुनिक विद्यार्थी- आज हमारे देश की समाज व्यवस्था लड़खड़ा रही है। विद्यार्थी ने अपने जीवन की गरिमा को भुला दिया है। विद्यार्थी के लिए स्कूल मौज-मस्ती का स्थल रह गया है। वह अब विद्यादेवी की आराधना का मन्दिर नहीं रह गया है। वह तो उसके मनोरंजन तथा समय काटने का स्थल भर रह गया है। विद्यार्थी में उद्दण्डता और असत्यता घर बनाए बैठी है। परिश्रम करने से अब वह पीछे हट रहा है। उसका लक्ष्य केवल अंक प्राप्त करना, धोखा देना और चालपट्टी रह गया है। वह अनुशासनहीन होकर ही अपना करना चाहता है। उसने विनय, सदाचार और संयम को पूर्णतः भुला दिया है। विद्यार्थी ने स्वयं को कलंकित बना लिया है।



सुधार अपेक्षित अनुशासनहीनता को दूर करने के लिए माता-पिता को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए। विद्यालयों के वातावरण को सही बनाना चाहिए। अध्यापकों को विशेष रूप से विद्यार्थियों की प्रत्येक प्रक्रिया पर सख्त नजर रखनी होगी। उनके समक्ष अपने सद् आचरण का प्रभाव प्रस्तुत करना होगा।


उपसंहार- आज के विद्यार्थी कल के राष्ट्र के कर्णधार हैं। अतः इन्हें अपने अन्दर ऊँचे वैज्ञानिक के, ऊँचे विचारक के ऊँचे चिन्तनकर्ता के महान् गुणों को अपने में विकसित करते हुए अपने अभिलषित लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए। ज्ञानपिपासा, श्रम, विनय, संयम, आज्ञाकारिता, सेवा, सहयोग, सह-अस्तित्व के गुणों को अपने अन्दर विकसित कर लेना चाहिए। विद्यार्थी एक आदर्श नागरिक बन कर राष्ट्र की सेवा करते हुए राष्ट्र धर्म का पालन कर सकने में समर्थ होते हैं।



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