सत्संगति पर संस्कृत निबंध || Essay on Satsangati in Sanskrit
सत्संगति पर संस्कृत निबंध || Essay on Satsangati in Sanskrit
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सत्संङ्गतिः
सज्जनानां संङ्गतिः एव सत्संङ्गतिः मनुष्य जीवने यत् किचिदपि शिक्षते तस्मिन् संङ्गतः महान् प्रभावः भवति । मनुष्य यादृशे स तिष्ठति प्रायः तादृशः एव भवति । सदाचारपरायणः विद्वद्भिः सह वसन् जन श्रेष्ठः गुणायुक्तः भवति पापैः चौरैश्च सह वसन् जघन्यः एव भवति ।
न केवलं मनुष्येषु अपितु जडवस्तुषु अपि सङ्गतेः स्पष्ट प्रभाव दृश्यते । चन्दनवृक्षाणां मध्ये स्थिताः अन्येऽपि वृक्षाः चन्दनानि एव भवन्ति । धूपेन सह धूमः अपि सुगन्धितः भवति । अतः संङ्गतेः प्रभावः निर्विवादः एव।
अतः अस्माभिः सदा सत्सङ्गः कार्यः, कुसंङ्गः च सर्वथा परित्याज्यः ।
हिंदी अनुवाद
धर्मी की संगति ही सच्ची संगति है, और जो कुछ भी व्यक्ति जीवन में सीखता है उस पर संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है। एक आदमी लगभग वैसा ही होता है जैसा वह खड़ा होता है। जो सदाचारी है और जो विद्वान पुरुषों के साथ रहता है वह श्रेष्ठ है और गुणों से संपन्न है लेकिन जो पापियों और चोरों के साथ रहता है वह निम्न है।
न केवल मनुष्य पर बल्कि जड़ वस्तुओं पर भी संगति का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। चन्दन के वृक्षों में अन्य वृक्ष भी चन्दन के वृक्ष हैं। धूप के साथ-साथ धुंआ भी सुगंधित होता है। तो संघ का प्रभाव निर्विवाद है।
इसलिए हमें सदा धर्मी के साथ संगति करनी चाहिए और गलत के साथ संगति को पूरी तरह से त्याग देना चाहिए।
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