मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय// Maithili Sharan Gupt ka jivan Parichay
मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन- परिचय
नमस्कार दोस्तों ! आज की इस पोस्ट में हम आपको आज एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में बताएँगे जिनकी रचनाएँ भारत देश में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में ख्यातिप्राप्त हैं और जो अपने देश के राष्ट्रकवि भी हैं, जी हाँ आज ऐसे ही महान कवि मैथिलीशरण गुप्त के जीवन के बारे में हम लोग आज जानेंगे.
जीवन परिचय :-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म संवत 1943 वि. (सन 1886 ईस्वी ) में, चिरगाँव (जिला झाँसी ) में हुआ था.इनके पिता का नाम सेठ रामचरण गुप्त था. सेठ रामचरण गुप्त स्वयं एक अच्छे कवि थे. गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ा. आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी से भी इन्हें बहुत प्रेरणा मिली. ये दिवेदी जी को अपना गुरु मानते थे. गुप्त जी को प्रारम्भ में अंग्रेजी पढ़ने के लिए झाँसी भेजा गया, किन्तु वहाँ इनका मन न लगा; अतः घर पर ही इनकी शिक्षा का प्रबंध किया गया, जहाँ इन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और हिंदी का अध्ययन किया. गुप्त जी बड़े विनम्र, हॅसमुख और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे.जीवन के अंतिम क्षणों तक ये निरंतर साहित्य- सृजन का कार्य करते रहे. 12 दिसंबर, 1964 ईस्वी (संवत 2021 वि.) को माँ - भारती का यह महान साधक पञ्चतत्व में विलीन हो गया.
साहित्यिक परिचय- गुप्त जी का झुकाव गीतिकाव्य की ओर था और राष्ट्रप्रेम इनकी कविता का प्रमुख स्वर रहा. इनके काव्य में भारतीय- संस्कृति का प्रेरणाप्रद चित्रण हुआ है. इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा राष्ट्र में जागृति तो उत्पन्न की ही, साथ ही सक्रिय रूप से असहयोग- आंदोलनों में भी भाग लेते रहे, जिसके फलस्वरूप इन्हें जेल भी जाना पड़ा. 'साकेत' महाकाव्य पर इन्हें हिंदी- साहित्य- सम्मलेन , प्रयाग से मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला. भारत सरकार ने गुप्त जी को इनकी साहित्य- सेवा के लिए पदमभूषण से सम्मानित किया और राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया.
रचनाएँ - गुप्त जी की प्रमुख मौलिक काव्य- रचनाएँ निम्नवत हैं-
- साकेत
- भारत- भारती
- यशोधरा
- द्वापर
- जयभारत
- विष्णुप्रिया आदि.
इनकी अन्य प्रमुख काव्य-रचनाएँ इस प्रकार हैं- रंग में भंग, जयद्रथ-वध, किसान, पंचवटी, हिन्दू, सैरंध्री, सिद्धराज, नहुष, हिडिम्बा, त्रिपथगा, काबा और कर्बला, गुरुकुल, वैतालिक, मंगल घट, अजित आदि. 'अनघ ', 'तिलोत्तमा', 'चन्द्रह्रास' नामक तीन छोटे- छोटे पद्यबद्ध रूपक भी इन्होंने लिखे हैं. स्वप्नवासवदत्ता, 'वीरांगना', 'मेघनाथ वध', 'वृत्र- संहार' आदि इनकी अनूदित रचनाएँ हैं.
भावपक्ष की विशेषताएं
भारतीय संस्कृति के गायक- गुप्त जी भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि हैं. इसलिए इन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत का बड़ा दिव्यगान किया है. 'भारत- भारती' में इनकी यह भावना स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आ गयी है -
हम कौन थे क्या हो गए , और क्या होंगे अभी ?
आओ विचारें आज मिलकर, ये समस्याएं सभी.
मानवतावाद और राष्ट्रीय विचारधारा का समन्वय - गुप्त जी मानवतावादी कवि थे, पर वे दृढ़ राष्ट्रवादी भी थे. इन्होंने ऐसे समय में राष्ट्रीय चेतना के स्वरों को मुखरित किया , जब हमारा देश गुलामी की जंज़ीरों में जकड़ा हुआ था. इनका राष्ट्रप्रेम इन पंक्तियों में देखते ही बनता है-
भारतमाता का यह मंदिर, नाता भाई- भाई का
समझे माँ की प्रसव वेदना, वही लाल है माई का.
नारी के प्रति श्रद्धा - गुप्त जी के हृदय में नारी के प्रति सदैव श्रद्धाभाव रहा है.इन्होंने नारी- जाति को समाज का महत्त्वपूर्ण अंग माना है. 'साकेत' में उर्मिला तथा 'यशोधरा' में गौतम- पत्नी यशोधरा को भारतीय नारी- जीवन के आदर्श की प्रतिमाएं बताते हुए इन्होंने उनकी त्याग- भावना एवं करुणा को बड़े ही सरल एवं सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किया है.इनकी अग्रांकित दो पंक्तियाँ हिंदी की अमर निधि है -
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल में है दूध और आँखों में पानी.
कलापक्ष की विशेषताएं
भाषा - खड़ी बोली को साहित्यिक रूप प्रदान करने में गुप्त जी का जितना बड़ा योगदान है, उतना अन्य किसी कवि का नहीं. भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था. गंभीर विषय को भी सुन्दर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में ये सिद्धहस्त थे. इनकी भाषा में माधुर्य, भावों में तीव्रता और शब्दों का सौंदर्य देखते ही बनता है. गुप्त जी का साहित्य वास्तव में भाषा, भाव, लोक- कल्याण, लोकोदबोधन (जनता को जगाने ) एवं भारतीय संस्कृति के चित्रण की दृष्टि से उत्कृष्ट कोटि का है.
शैली- गुप्त जी के काव्य में शैली के तीन रूप मिलते हैं - (1) प्रबंध शैली, (2) रूपक शैली तथा (3) गीति शैली. इसके अतिरिक्त कहीं - कहीं उपदेशप्रधान शैली भी अपनायी गयी है. गुप्त जी की शैली में प्रसाद, माधुर्य तथा ओज़ तीनों ही गुण है. तीनों शैलियों पर दिवेदी युग का विशेष प्रभाव परिलक्षित होता है. इनकी शैली में गेयता, सहज प्रवहमानता, सरसता और संगीतात्मकता की अजस्त्र धारा प्रवाहित होती दिखाई पड़ती है.
साहित्य में स्थान - राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति के यशस्वी उद्गाता एवं परम वैष्णव होते हुए भी विश्व- बंधुत्व की भावना से औत प्रोत थे. ये सच्चे अर्थों में इस राष्ट्र के महनीय मूल्यों के प्रतीक और आधुनिक भारत के सच्चे राष्ट्रकवि थे.
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Maithili Sharan Gupt ka jivan Parichay |
मैथिलीशरण गुप्त का विस्तृत जीवन परिचय ,साहित्यिक परिचय, रचनाएं, पुरस्कार एवं महत्वपूर्ण प्रश्न-
हम आपको हिंदी साहित्य जगत में भारत भारती , साकेत एवं यशोधरा की रचना करने वाली प्रमुख साहित्यकार , कवि माने जाने वाले मैथिलीशरण गुप्त की। दोस्तों यह किसने सोचा था कि उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के चिरगांव नामक स्थान से निकला एक साधारण युवक मैथिलीशरण गुप्त के नाम से प्रसिद्ध होगा और अपनी रचनाओं का ऐसा रस आम जनमानस में घोला कि जन-जन उसकी रचनाओं का दीवाना हो जाएगा। जी हां, आज हम अपने पोस्ट में हिंदी साहित्य के ऐसे ही महान कवि द्वापर , पंचवटी एवं जयद्रथ वध के रचयिता तथा हिंदी के महान कवि, साहित्यकार,मैथिलीशरण गुप्त जी के जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय के बारे में आप लोगों को बताने जा रहे हैं।दोस्तों मैथिलीशरण गुप्त एक ऐसा नाम जिसे हिंदी साहित्य का पर्याय माना जाता है। दोस्तों जब जब साकेत , यशोधरा एवं भारत भारती का नाम लिया जाएगा तब तब मैथिलीशरण गुप्त जी का नाम भी सदैव समाज याद करेगा। दोस्तों यह किसने सोचा था कि उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के चिरगांव से निकला एक साधारण युवक साकेत जैसे महत्वपूर्ण महाकाव्य की रचना करेगा ? शायद यह तो किसी ने सोचा ही नहीं होगा कि मैथिलीशरण गुप्त एक दिन हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा बनेगा। विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित महान कवि मैथिलीशरण गुप्त का नाम साहित्य जगत में बहुत ही आदर और सम्मान से लिया जाता है। मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा, जिन्हें हिंदी के श्रेष्ठतम लेखकों में गिना जाता है। मैथिलीशरण गुप्त एक ऐसा नाम जिसने अपनी कलम से हिंदी साहित्य जगत में क्रांति ला दी। मैथिलीशरण गुप्त एक ऐसा नाम - जिसे साकेत महाकाव्य जैसी श्रेष्ठ रचना के लिए जाना जाता है. महान अंग्रेजी एवं हिंदी भाषा के श्रेष्ठ साहित्यकार , श्रेष्ठतम कवि मैथिलीशरण गुप्त जी को यदि हिंदी साहित्य का महान साहित्यकार भी कहा जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. मैथिलीशरण गुप्त - एक ऐसा नाम जिसने हिंदी साहित्य की दिशा और दशा को बदलने का कार्य किया. यदि मैथिलीशरण गुप्त जी को हिंदी साहित्य का कोहिनूर हीरा भी कहा जाये तो इसमें कोई विवाद नहीं होगा क्योंकि उन्होनें हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नया कीर्तिमान स्थापित किया जिसे युगों - युगों तक हिंदी साहित्य में याद रखा जायेगा. मैथिलीशरण गुप्त जी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कुछ ऐसे नए मानदंड और आयाम स्थापित कर दिए हैं जिन्हें हिंदी साहित्य जगत में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा. दोस्तों यद्यपि मैथिलीशरण गुप्त जी आज हम लोगों के बीच में नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं, काव्य- कृतियां विश्व भर के साहित्य प्रेमियों के हृदय में हमेशा जीवंत रहेंगी।तो दोस्तों ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व के बारे में हम लोग आज जानेगे तो दोस्तों यदि आपको ये पोस्ट पसंद आये तो इसे अधिक से अधिक अपने दोस्तों में जरूर शेयर करिएगा.
दोस्तों यह तो सभी जानते हैं कि जब जब हिंदी साहित्य एवं ब्रजभाषा के रचनाओं की बात होगी उस समय सबसे पहले जो नाम सबसे अगर पंक्ति में होगा वह नाम होगा महा कवि मैथिलीशरण गुप्त जी। मैथिलीशरण गुप्त जी एक ऐसा नाम जिसने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का ऐसा रस आम जनमानस में घोला कि आज नैतिक शिक्षा, नैतिकता की रसमयी काव्य धारा केवल हिंदुस्तान में ही नहीं अपितु समस्त विश्व में बह रही है। दोस्तों यदि यह पोस्ट आप लोगों को पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में अधिक से अधिक शेयर करिएगा।
जीवन परिचय
मैथिलीशरण गुप्त
जीवन परिचय : एक दृष्टि में
जीवन परिचय - राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झांसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर 1886 ई. में हुआ था। इनके पिता जी का नाम सेठ रामचरण गुप्त और माता का नाम काशीबाई था। इनके पिता को हिंदी साहित्य से विशेष प्रेम था, गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ा। इनकी प्राथमिक शिक्षा चिरगांव तथा माध्यमिक शिक्षा मैकडोनल हाईस्कूल (झांसी) से हुई। घर पर ही अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत एवं हिंदी का अध्ययन करने वाली गुप्त जी की प्रारंभिक रचनाएं कोलकाता से प्रकाशित होने वाले वैश्योपकारक नामक पत्र में छपती थी। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के संपर्क में आने पर उनके आदेश, उपदेश एवं स्नेहमय परामर्श से इनके काम में पर्याप्त निखार आया। भारत सरकार ने इन्हें पदमभूषण से सम्मानित किया। 12 दिसंबर 1964 को मां भारती का सच्चा सपूत सदा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गया।
साहित्यिक परिचय - गुप्ता जी ने खड़ी बोली के स्वरूप के निर्धारण एवं विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। गुप्ता जी की प्रारंभिक रचनाओं में इतिवृत्त कथन की अधिकता है। किंतु बाद की रचनाओं में लाक्षणिक वैचित्र्य एवं सुक्ष्म मनोभावों की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। गुप्त जी ने अपनी रचनाओं में प्रबंध के अंदर गीतिकाव्य का समावेश कर उन्हें उत्कृष्टता प्रदान की है। गुप्ता जी की चरित्र कल्पना में कहीं भी अलौकिकता के लिए स्थान नहीं है। इनके सारे चरित्र मानव हैं उनमें देव एवं दानव नहीं है। इनके राम,कृष्ण, गौतम आदि सभी प्राचीन और चिरकाल से हमारी श्रद्धा प्राप्त किए हुए पात्र हैं। इसलिए वे जीवन पर ना और स्फूर्ति प्रदान करते हैं। साकेत के राम ईश्वर होते हुए भी तुलसी की भांति आराध्य नहीं, हमारे ही बीच के एक व्यक्ति हैं।
रचनाएं- गुप्तजी ने लगभग 40 मौलिक काव्य ग्रंथों में भारत भारती (1912), रंग में भंग (1909), जयद्रथ वध, पंचवटी, झंकार, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जय भारत, विष्णु प्रिया आदि उल्लेखनीय हैं।
भारत भारती मे हिंदी भाषियों में जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावना जगाई। रामचरितमानस के पश्चात हिंदी में राम काव्य का दूसरा प्रसिद्ध उदाहरण साकेत है। यशोधरा और साकेत मैथिलीशरण गुप्त ने दो नारी प्रधान काव्य की रचना की।
भाषा शैली - हिंदी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में गुप्त जी का महत्वपूर्ण योगदान है। गुप्त जी की भाषा में माधुर्य भाव की तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सुंदर अद्भुत है।वे गंभीर विषयों को भी सुंदर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। इनकी भाषा में लोकोक्तियां एवं मुहावरे को के प्रयोग से जीवंतता आ गई है। गुप्तजी मूलत: प्रबन्धकार थे, लेकिन प्रबंध के साथ-साथ मुक्तक, गीति, गीतिनाट्य, नाटक आदि क्षेत्र में भी उन्होंने अनेक सफलताएं की हैं। इनकी रचना पत्रावली पत्र शैली में रचित नूतन काव्य शैली का नमूना है। इनकी शैली में गेयता, प्रवाहमयता एवं संगीतत्मकता विद्यमान है।
हिंदी साहित्य में स्थान - मैथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत रचनाओं के कारण हिंदी साहित्य में इनका विशेष स्थान है। हिंदी काम राष्ट्रीय भावों की पुनीत गंगा को बहाने का श्रेय गुप्तजी को ही हैं। अतः ये सच्चे अर्थों में लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं को भरकर उनमें जनजागृति लाने वाले राष्ट्रकवि हैं। इनके काव्य हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है।
राष्ट्रप्रेम गुप्त जी की कविता का प्रमुख स्वर है। भारत भारती में प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रेरणाप्रद चित्रण हुआ है। इस रचना में व्यक्त स्वदेश प्रेम ही इनकी पर्वती रचनाओं में राष्ट्रप्रेम और नवीन राष्ट्रीय भावनाओं में परिणत हो गया। उनकी कविता में आज की समस्याओं और विचारों के स्पष्ट दर्शन होते हैं। गांधीवाद तथा कहीं-कहीं आर्य समाज का प्रभाव भी उन पर पड़ा है। अपने काव्य की कथावस्तु गुप्ता जी ने आज के जीवन से ना लेकर प्राचीन इतिहास अथवा पुराणों से ली है। यह अतीत की गौरव गाथाओं को वर्तमान जीवन के लिए मानवतावादी एवं नैतिक प्रेरणा देने के उद्देश्य से ही अपना आते हैं।
नारी के प्रति गुप्ता जी का हृदय सहानुभूति और करुणा से आप्लावित हैं। यशोधरा, उर्मिला, कैकयी, विधृता ।
मृत्यु
मैथिलीशरण गुप्त जी पर गांधी जी का भी गहरा प्रभाव पड़ा था इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और कारावास की यात्रा भी की थी। यह एक सच्चे राष्ट्र कवि भी थे। इनके काम हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि माने जाते हैं। महान ग्रंथ भारत भारती में इन्होंने भारतीय लोगों की जाती और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावना जताई है। अंतिम काल तक राष्ट्र सेवा में अथवा काव्य साधना में लीन रहने वाले और राष्ट्र के प्रति अपनी रचनाओं को समर्पित करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी 12 दिसंबर सन 1964 ईस्वी को अपने राष्ट्र को अलविदा कह गए।
कवि मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएं -
1.यशोधरा
2.रंग में भंग
3.साकेत
4.भारत भारती
5.पंचवटी
6.जय भारत
7.पृथ्वी पुत्र
8.किसान
9.हिंदू
10.चंद्रहास
11.द्वापर
12.कुणालगीत आदि
पुरस्कार
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इन्हें डी. लिट की उपाधि प्राप्त हुई थी।
सन 1952 में गुप्त जी राज्यसभा में सदस्य के लिए मनोनीत भी हुए थे।
1954 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।
प्रश्न -गुप्त जी का निधन कब हुआ था?
गुप्त जी का निधन 12 दिसंबर 1964 ईस्वी को हुआ था।
प्रश्न -साकेत की रचना कब हुई थी?
साकेत हिंदी का प्रसिद्ध महाकाव्य है इसका प्रकाशन 24 दिसंबर 2004 को हुआ था।
प्रश्न -गुप्त जी का जन्म कहां हुआ था?
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झांसी जिले के चिरगांव नामक ग्राम में हुआ था।
प्रश्न -रंग में भंग का प्रकाशन वर्ष क्या है?
रंग में भंग काव्य का प्रकाशन सन 1909 ईसवी को हुआ था
प्रश्न - गुप्त जी का जन्म कब हुआ था?
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 1886 ई. मैं हुआ था।
प्रश्न -मैथिलीशरण गुप्त की भाषा शैली क्या थी?
हिंदी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में गुप्त जी का महत्वपूर्ण योगदान है। गुप्त जी की भाषा में माधुर्य भाव की तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सुंदर अद्भुत है।
वे गंभीर विषयों को भी सुंदर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। इनकी भाषा में लोकोक्तियां एवं मुहावरे को के प्रयोग से जीवंतता आ गई है। गुप्तजी मूलत: प्रबन्धकार थे, लेकिन प्रबंध के साथ-साथ मुक्तक, गीति, गीतिनाट्य, नाटक आदि क्षेत्र में भी उन्होंने अनेक सफलताएं की हैं। इनकी रचना पत्रावली पत्र शैली में रचित नूतन काव्य शैली का नमूना है। इनकी शैली में गेयता, प्रवाहमयता एवं संगीतत्मकता विद्यमान है।
प्रश्न -पत्रावली किस काव्य शैली का नमूना है?
इनकी रचना पत्रावली पत्र शैली में रचित नूतन काव्य शैली का नमूना है।
प्रश्न- मैथिलीशरण गुप्त की भाषा शैली में क्या विद्यमान है?
इनकी शैली में गेयता, प्रवाहमयता एवं संगीतत्मकता विद्यमान है।
प्रश्न- मैथिलीशरण गुप्त के प्रमुख पुरस्कारों का वर्णन करें?
1.इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इन्हें डी. लिट की उपाधि प्राप्त हुई थी।
2.सन 1952 में गुप्त जी राज्यसभा में सदस्य के लिए मनोनीत भी हुए थे।
3.1954 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।
👉सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय
👉छायावादी युग तथा इसकी प्रमुख विशेषताएं
👉मुहावरे तथा लोकोक्ति में अंतर
👉खंडकाव्य तथा महाकाव्य में अंतर
👉राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा में अंतर
👉निबंध क्या है ? निबंध कितने प्रकार के होते हैं ?
👉उपन्यास किसे कहते हैं ? उपन्यास के प्रकार
👉रिपोर्ताज किसे कहते हैं? रिपोतार्ज का अर्थ एवं परिभाषा
👉रेखाचित्र किसे कहते हैं ?एवं रेखाचित्र की प्रमुख विशेषताएं
Written By: Bandana Study Classes
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