विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं अधिकार
विधानसभा अध्यक्ष के कार्य |
Power and duty of speaker of Assembly
नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandanaclasses.com पर. दोस्तों आज हम आपके लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण टॉपिक लेकर आये हैं जिसका नाम है - " विधानसभा अध्यक्ष तथा उसके कार्य". जैसा कि हम सभी इस तथ्य से परिचित हैं कि अपने देश में प्रत्येक राज्य / प्रान्त में विधानसभा होती हैं तथा चुनाव में जिस पार्टी / दल को बहुमत मिलता है , राज्यपाल उसी पार्टी के विधायक दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है. प्रत्येक राज्य में विधानसभा के सदस्यों की संख्या निश्चित होती हैं. जैसे कि उत्तर प्रदेश में विधान सभा के सदस्यों की संख्या चार सौ तीन ( 403) निश्चित है इसका तात्पर्य यह है कि उत्तर प्रदेश राज्य में विधान सभा के सदस्यों की संख्या चार सौ तीन (403) हैं जिन्हें हम विधायक भी कहते हैं . इस बात का सीधा सा मतलब यह है कि उत्तर प्रदेश राज्य में चार सौ तीन (403) विधायक चुनाव में जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं.
राज्य में मुख्यमंत्री (Chief minister) के चयन के पश्चात बात आती है कि विधानसभा का एक अध्यक्ष भी होना चाहिए जो कि सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता कर सके तथा नवनिर्वाचित विधायकों को सदन की शपथ भी दिला सके. सामान्यतयः सत्तारूढ़ पार्टी / दल के ही किसी अनुभवी या वरिष्ठ विधायक को विधानसभा का अध्यक्ष बनाया जाता है. आज की अपनी इस पोस्ट में हम विधानसभा अध्यक्ष तथा उसके कार्यों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे यदि दोस्तों आपको ये पोस्ट पसंद आये तो इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अन्य लोग भी इस महत्वपूर्ण जानकारी से परिचित हो सके तथा दोस्तों हमारी वेबसाइट ( bandanaclasses.com) को सब्सक्राइब करना न भूले. विधानसभा को अंग्रेजी में Assembly (असेंबली) कहते हैं.
विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं अधिकार
(Power and duty of speaker of Assembly)
स्वतंत्रता (freedom) के बाद भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने एवं शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए केंद्रीय स्तर पर जहाँ संसद की व्यवस्था की वहीं राज्यों में विधानसभा के गठन का प्रस्ताव किया। इसके साथ ही लोकसभा के संचालन एवं गरिमा बनाए रखने के लिये लोकसभा अध्यक्ष एवं राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष के पद का प्रावधान किया।
राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही एवं उसकी गतिविधियाँ के संचालन के लिए पूरी तरह जवाबदेह होता है। विधानसभा अध्यक्ष से यह अपेक्षित होता है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समस्त दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा। विधानसभा अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचित होना एवं उसका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होने वाला स्वरूप समाज की उस राजनीतिक जागरूकता का प्रतीक है जो लोकतंत्रीय व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला है।
सीधे-सरल शब्दों में कहीं तो विधायिका का काम कानून बनाना है कार्यपालिका कानूनों को लागू करती है एवं न्यायपालिका कानून की व्याख्या करती है। इन तीनों को लोकतंत्र का आधार-स्तंभ माना जाता है।
विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं अधिकार
राज्यों की विधायिका विधानसभा के लिये निर्वाचित जनप्रतिनिधियाँ से गठित होती है। इन जनप्रतिनिधियाँ को विधायक कहा जाता है।
विधानसभा की कार्यवाही को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष का प्रावधान संविधान में है।
विधानसभा का गठन होने के बाद उसके प्रथम सत्र में ही विधानसभा सदस्यों द्वारा विधानसभा अध्यक्ष चुना जाता है।
अध्यक्ष के अतिरिक्त विधानसभा के सदस्य उपाध्यक्ष का चुनाव भी करते हैं जो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसका कार्यभार संभालता है।
विधानसभा अध्यक्ष के प्रमुख कार्यों में वहीं सब कार्य आते हैं जो लोकसभा अध्यक्ष करता है। जैसे-
सदन में अनुशासन बनाए रखना।
सदन की कार्यवाही का सुचारु रूप से संचालन करना।
सदस्यों को बोलने की अनुमति प्रदान करना।
पक्ष एवं विपक्ष में समान मत आने पर निर्णायक मत प्रदान करना।
पाठासीन अधिकारी अर्थात विधानसभा एवं विधानसभा सचिवालय का प्रमुख होता है, जिसे संविधान प्रक्रिया नियमों एवं स्थापित संसदीय परंपराओं के तहत व्यापक अधिकार प्राप्त होते है। विधानसभा के परिसर में उसका प्राधिकार सर्वोच्च है। सदन की व्यवस्था बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी होती है एवं वह सदन में सदस्यों से नियमों का पालन सुनिश्चित कराता है। विधानसभा अध्यक्ष सदन के वाद-विवाद में भाग नहीं लेते अपितु विधानसभा की कार्यवाही के दौरान अपनी व्यवस्थाएँ या निर्णय देता है जो बाद में नजीर के रूप में संदर्भित की जाती है। विधानसभा में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सदन का संचालन करता है एवं दोनों की अनुपस्थिति में सभापति रोस्टर का कोई एक सदस्य यह जिम्मेदारी निभाता है।
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