रस किसे कहते हैं? इसकी परिभाषा।
Ras kise kehte hain? |
रस क्या है ?( What is Ras?)
रस किसे कहते हैं ? (Ras kise kahate Hain?)
नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandanaclasses.com पर. दोस्तों आज की पोस्ट में हम जानेंगे कि रस क्या है ? तथा रस की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं ? इसी के साथ हम लोग यह भी जानेंगे कि रस के दोष कौन-कौन से हैं ? दोस्तों आप सभी लोगों को पोस्ट को आखिरी तक पढ़ना है. मेरे दोस्तों आप लोग भी यह जानना चाहते होंगे कि रस किसे कहते हैं ? आखिर हम में से बहुत से लोग आज भी नहीं जानते हैं कि रस का वास्तविक मतलब क्या होता है ?
यदि आप भी उन लोगों में से हैं जिन्हें नहीं पता कि रस किसे कहते हैं ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए बने रहिये इस पोस्ट पर.
मेरे प्रिय विद्द्यार्थियों रस शब्द को तो हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं लेकिन सच्चाई यही हैं कि रस किसे कहते हैं ? यह तथ्य हम में से अधिकांश लोग नहीं जानते हैं. तो दोस्तों बने रहिये हमारी वेबसाइट bandanaclasses.com पर. हिंदी में रस का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैं. यहां पर हम आज की पोस्ट में आपको रसऔर उसके प्रमुख अन्वेषक के बारे में बताएंगे। हिंदी में रस से संबंधित लेखकों के बारे में इस पोस्ट में आपको जानकारी देंगे।
1. रौद्र रस- इसका स्थायी भाव क्रोध है. अपना अपमान, बड़ों की निंदा या उनका अपकार, शत्रु की चेष्टाओं तथा शत्रु या किसी दुष्ट अत्याचारी द्वारा किये गए अत्याचारों को देखकर अथवा गुरुजनों की निंदा आदि सुनकर उत्पन्न हुए अमर्ष ( क्रोध ) के पुष्ट होने पर रौद्र रस की सिद्धि होती है.
उदाहरण-
भाखे लखनु कुटिल भई भौहें, रदपट फरकत नयन रिसौहैं.
2. वीभत्स रस - इसका स्थायी भाव जुगुप्सा है. गन्दी , घोर अरुचिकर , घ्रणित वस्तुओं; जैसे - पीव, हड्डी , रक्त ,चर्बी ,मांस ,उसकी दुर्गन्ध आदि के वर्णन से मन में जो जुगुप्सा (घ्रणा) जगती है , वहीँ पुष्ट होकर वीभत्स रस की स्थिति प्राप्त करती है.
उदाहरण -
कोऊ अंतडिन की पहिरि माल , इतरात दिखावत.
कोऊ चरबी ले चोप सहित निज अंगनि लावत .
3. करुण रस - इसका स्थायी भाव शोक है. किसी प्रिय वस्तु या वस्तु के विनाश से या अनिष्ट की प्राप्ति से करुण रस की निष्पत्ति होती है.
उदाहरण -
मणि खोये भुजंग - सी जननी , फन - सा पटक रही थी सीस.
अंधी आज बनाकर मुझको , क्या न्याय किया तुमने जगदीश ?
4. हास्य रस - इसका स्थायी भाव हास है. जब किसी वस्तु या व्यक्ति के विकृत आकार, वेशभूषा ,वाणी , चेष्टा आदि से व्यक्ति को बरबस हंसी आ जाये , तो वहां हास्य रस है.
उदाहरण -
बिन्ध्य के वासी उदासी, तपोव्रत धारी महा बिनु नारी दुखारे.
गोतमातीय तरी 'तुलसी ' सो कथा सुनी भे मुनिबृंद सुखारे.
हुएहैं सिला सब चंद्रमुखी परसे पद - मंजुल - कंज तिहारे
कीन्ह भली रघुनायक ज़ू करुना करि कानन को पगु धारे.
5. श्रंगार रस - इसका स्थायी भाव रति है. जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से 'रति ' नामक स्थायी भाव रस रूप में परिणत होता है, तो उसे श्रंगार रस कहते हैं. श्रंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग और वियोग.
उदाहरण -
कंज नयनि मंजनु किये, बैठी ब्योराति बार.
कच - अंगुरी बिच दीठि दै, चितवति नंदकुमार.
संयोग श्रंगार रस - संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को संयोग श्रंगार रस कहते हैं. संयोग से आशय है - सुख को प्राप्त करना.
उदाहरण -
राम कौ रूप निहारती जानकी , कंगन के नग की परछाही.
यातैं सबें सुधि भूली गयी , कर टेकि रहीं पल टारति नाहीं.
6. वात्सल्य रस- इस रस का स्थायी भाव वत्सलता है. बालकों के प्रति बड़ों का जो स्नेह होता है , वहीँ वत्सल है , जो पुष्ट होकर वात्सल्य रस में परिणत होता है.
उदाहरण-
जसोदा हरि पालने झुलावै.
हलरावै दुलरावै मल्हावै , जोई -सोइ कछु गावै.
7. भयानक रस - भयानक रस का स्थायी भाव भय है. किसी भयानक वस्तु को देखने , घोर अपराध करने पर दण्डित होने के विचार , शक्तिशाली शत्रु या विरोधी के सामना होने की आशंका से उत्पन्न भय के पुष्ट होने पर भयांनक रस की सिद्धि होती है.
उदाहरण -
लंका की सेना तो कपि के गर्जन रव से काँप गयी,
हनुमान के भीषण - दर्शन से विनाश ही भांप गयी.
8. वीर रस - इसका स्थायी भाव उत्साह है. शत्रु की उन्नति , दीनों पर अत्याचार या धर्म की दुर्गति को मिटाने जैसे किसी विकट या दुष्कर कार्य को करने का जो मन में उत्साह उमड़ता है , उसी के पुष्ट होने पर वीर रस की सिद्धि होती है.
उदाहरण -
अमर्त्य वीर - पुत्र हो , दृढ़ - प्रतिज्ञ सोच लो.
प्रशस्त पुण्य - पंथ हैं , बढ़ें चलो , बढ़ें चलो .
9. शांत रस - इसका स्थायी भाव निर्वेद है. संसार की क्षण भंगुरता एवं सांसारिक विषय - भोगों की असारता तथा परमात्मा के ज्ञान से उत्पन्न निर्वेद (वैराग्य ) ही पुष्ट होकर शांत रस में परिणत होता है.
उदाहरण -
चिंता तौ हरि नांव की , और न चिंता दास.
जे कुछ चितवे राम बिन , सोइ काल की पास.
10. अद्भुत रस - इसका स्थायी भाव विस्मय है, किसी असाधारण वस्तु या कार्य को देखकर हमारे मन में जो विस्मय होता है , वहीँ पुष्ट होकर अद्भुत रस में परिणत हो जाता है.
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उदाहरण -
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना ,कर बिनु कर्म करै विधि नाना.
आननरहित सकल रस भोगी, बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी .
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