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डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय / Dr Rajendra Prasad ka jivan Parichay

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय / Dr Rajendra Prasad ka jivan Parichay

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डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय हिंदी में


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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandana classes.com पर। दोस्तों आज हम आपका परिचय एक ऐसी हस्ती से करवाने जा रहे हैं जिन्होंने देश के आजाद होने के बाद भारत देश का सर्वोच्च पद संभाला। जिनका जीवन बचपन में बहुत ही अभाव  में बीता। आखिर यह किसने सोचा था कि बिहार की माटी से निकला एक मामूली बालक भारत देश का प्रथम राष्ट्रपति बनेगा। जी हां ,आज हम बात करने जा रहे हैं भारत देश के प्रथम राष्ट्रपति ,भारत रत्न से सम्मानित, गहन विचारक डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की जिनका जीवन आज भी भारत देश के समस्त युवाओं के लिए प्रेरणादाई है। डॉ राजेंद्र प्रसाद एक ऐसा नाम जिसने भारत की राजनीति में एक नया मानदंड और आयाम स्थापित किया। वैसे तो लोग कहते हैं कि राजनीति सत्ता और रुपए कमाने का एक साधन है किंतु डॉ राजेंद्र प्रसाद ने राजनीति में रहते हुए भी अपने आप को सदैव धन वैभव और विलासिता से दूर रखा। यदि सादा जीवन और उच्च विचार का जीता जागता उदाहरण आपको देखना है तो उसकी साक्षात मिसाल है डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी। डॉ राजेंद्र प्रसाद नाम है- आदर्शों का ,सादगी का, गहन विचारों का ,देश की आजादी के लिए संघर्ष करने का, देश को उन्नति की ओर ले जाने का ,देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने का।


यह तो मात्र बानगी भर है। कहते हैं कि यदि हम डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की विशेषताओं और जीवन परिचय के बारे में गहन से अध्ययन करें तो हिंदी भाषा के शब्द कम पड़ जाएंगे। आज की पोस्ट में हम सादगी की मिसाल और उच्च विचारों से ओतप्रोत ,राजनीति के धुरंधर ,डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारे में जानेंगे। दोस्तों यदि आपको हमारी पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तों में अधिक से अधिक शेयर करिएगा।



डॉ राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad)



डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति थे। राष्ट्र के विकास में उनका बहुत गहरा योगदान रहा है। वह जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, और लाल बहादुर शास्त्री के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे।



वही उत्साह पूर्ण व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए ,एक आकर्षण व्यवसाय दिया। एक बड़ा लक्ष्य हासिल करने के लिए एक आकर्षण व्यवसाय दिया। आजादी के बाद उन्होंने संविधान सभा के आगे बढ़ाने के लिए संविधान को बनाने के लिए नवजात राष्ट्र का नेतृत्व किया। संक्षेप में कह सकते हैं कि भारत गणराज्य को आकार देने में प्रमुख वास्तुकारों में से एक डाक्टर राजेंद्र प्रसाद थे।



जीवन परिचय : एक दृष्टि में



नाम

डॉ राजेंद्र प्रसाद

जन्म

सन 1884 ईस्वी में

जन्म स्थान

बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में।

पिताजी का नाम

श्री महादेव सहाय

शिक्षा

एम. ए. तथा एल.एल.बी.

व्यवसाय

अध्यापन कार्य, वकालत, संपादन कार्य

मृत्यु

28 फरवरी, 1963 ईस्वी में।

लेखन विधा

पत्रिका एवं भाषण

साहित्य में पहचान

गहन विचारक

भाषा

सरल, सुबोध, स्वाभाविक तथा व्यवहारिक

शैली

साहित्यिक, भाषण, भावात्मक, विवेचनात्मक तथा आत्मकथात्मक

साहित्य में स्थान

सन् 1962 में राजेंद्र प्रसाद जी को भारत देश की सर्वोच्च उपाधि 'भारत रत्न' से अलंकृत किया गया



जीवन परिचय:- सफल राजनीतिज्ञ और प्रतिभा संपन्न साहित्यकार देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 1884 ई० में बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था। इनका परिवार गांव के संपन्न और प्रतिष्ठित कृषक परिवारों में से था। ये अत्यंत मेधावी छात्र थे। इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एम. . और कानून की डिग्री एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सदैव प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले राजेंद्र प्रसाद ने मुजफ्फरपुर के एक कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। इन्होंने सन् 1911 मैं वकालत शुरू की और सन् 1920 तक कोलकाता और पटना में वकालत का कार्य किया। उसके पश्चात वकालत छोड़ कर देश सेवा में लग गए। इनका झुकाव प्रारंभ से ही राष्ट्र सेवा की ओर था। सन 1917 में गांधीजी के आदर्शों और सिद्धांतों से प्रभावित होकर इन्होंने चंपारण के आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और वकालत छोड़ कर पूर्ण रूप से राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अनेक बार जेल की यातनाएं भी भोगीं।


इन्होंने विदेश जाकर भारत के पक्ष को विश्व के सम्मुख रखा। डॉ राजेंद्र प्रसाद तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभापति और सन् 1962 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। 'सादा जीवन उच्च विचार' इनके जीवन का मूल मंत्र था। सन् 1962 में इन्हें 'भारत रत्न' से अलंकृत किया गया। जीवन पर्यंत हिंदी और हिंदुस्तान की सेवा करने वाले डॉ राजेंद्र प्रसाद जी का देहावसान 28 फरवरी, 1963 में हो गया। 



रचनाएं:- डॉ राजेंद्र प्रसाद की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं

भारतीय शिक्षा, गांधी जी की देन, शिक्षा और संस्कृत साहित्य, मेरी आत्मकथा, बापूजी के कदमों में, मेरी यूरोप यात्रा, संस्कृत का अध्ययन, चंपारण में महात्मा गांधी और खादी का अर्थशास्त्र आदि।



भाषा शैली:- डॉ राजेंद्र प्रसाद की भाषा सरल, सुबोध और व्यवहारिक है। इनके निबंधों में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, बिहारी शब्दों का प्रयोग हुआ है। इसके अतिरिक्त जगह-जगह ग्रामीण कहावतों और शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इन्होंने भावानुरूप छोटे बड़े वाक्यों का प्रयोग किया है। इनकी भाषा में बनावटीपन नहीं है। डॉ राजेंद्र प्रसाद की शैली भी उनकी भाषा की तरह ही आडंबर रहित है। इसमें इन्होंने आवश्यकतानुसार ही छोटे बड़े वाक्यों का प्रयोग किया है। इनकी शैली के मुख्य रूप से दो रूप प्राप्त होते हैं-साहित्यिक शैली और भाषण शैली।



हिंदी साहित्य में स्थान:- डॉ राजेंद्र प्रसाद 'सरल सहज भाषा और गहन विचारक' के रूप में सदैव स्मरण किए जाएंगे। यही सादगी इनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होती है। हिंदी की आत्मकथा साहित्य में संबंधित सुप्रसिद्ध पुस्तक 'मेरी आत्मकथा' का विशेष स्थान है। ये हिंदी के अनन्य सेवक और उत्साही प्रचारक थे, जिन्होंने हिंदी की जीवन पर्यंत सेवा की। इनकी सेवाओं का हिंदी जगत सदैव ऋणी रहेगा।



डॉ राजेंद्र प्रसाद कौन थे



राजेंद्र प्रसाद हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 जीरादेई में हुआ, जो सारण का एक गांव है। राजेंद्र प्रसाद के पूर्वज मूल रूप से कुआं गांव अमोरा उत्तर प्रदेश के निवासी थे।

राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे, जिन्होंने भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई उन्होंने भारत के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था। राजेंद्र प्रसाद के पिता महादेव संस्कृत के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी धर्म परायण महिला थी।



डॉ राजेंद्र प्रसाद की प्रमुख रचनाएं -



मेरी आत्मकथा, बापू के कदमों में, मेरी यूरोप यात्रा, इंडिया डिवाइडेड, सत्याग्रह एंड चंपारण, गांधी जी की देन, भारतीय शिक्षा और भारतीय संस्कृति खादी अर्थशास्त्र इन की प्रमुख रचनाएं हैं।



डॉ राजेद्र के पिता का क्या नाम था?

डॉ राजेंद्र के पिता का नाम महादेव सहाय था।



डॉ राजेंद्र प्रसाद की माता का क्या नाम था?

डॉ राजेंद्र प्रसाद की माता का नाम कमलेश्वरी देवी था।



  • राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा कब और कहां से हुई?



डॉ राजेंद्र प्रसाद की पढ़ाई फारसी और उर्दू से शुरू हुई थी और यह अंग्रेजी हिंदी उर्दू फारसी और बंगाली भाषा और साहित्य पूरी तरह जानते थे। इन्होंने 5 वर्ष की उम्र में फारसी और उर्दू की शिक्षा मौलवी साहब से ली इसके बाद वे प्रारंभिक शिक्षा के लिए छपरा जिले के एक स्कूल में गए।

राजेंद्र प्रसाद का विवाह और समय के अनुसार बाल्यावस्था में ही 13 वर्ष की उम्र में राजवंशी देवी से हो गया। विवाह के बाद भी इन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी राजेंद्र बाबू का वैवाहिक जीवन बहुत ही सुख राज जिला स्कूल छपरा से 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा दी और प्रवेश परीक्षा में उन्होंने प्रथम स्थान हासिल किया। उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज 1902 में दाखिला लिया 1915 में उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ विधि पर स्नातक की परीक्षा पास की बाद में लॉ के क्षेत्र में ही उन्होंने डॉक्टर की उपाधि हासिल की। भारतीय स्वतंत्र आंदोलन में उनका पदार्पण वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत करते ही हो गया था। राजेंद्र बाबू महात्मा गांधी की निष्ठा समर्पण एवं साथ से बहुत प्रभावित हुए।



  • डॉ राजेंद्र प्रसाद कब से कब तक राष्ट्रपति बन कर रहे ?



भारत के स्वतंत्र होने के बाद संविधान लागू होने पर उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति का पद संभाला राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखल अंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतंत्र रूप से कार्य करते रहे


भारतीय संविधान के लागू होने से 1 दिन पहले 25 जनवरी को इनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया। लेकिन वह भारतीय गणराज्य की स्थापना के बाद ही वे दाह संस्कार लेने गए उन्होंने 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के बाद 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। अवकाश लेने के बाद ही उन्होंने भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। सन1962 में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें भारत रत्न सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया। यह उस पुत्र के लिए कृतज्ञ का प्रतीक था जिसने अपनी आत्मा की आवाज सुनकर आधी शताब्दी तक अपनी मातृभूमि की सेवा की थी। राजेंद्र बाबू की वेशभूषा बड़ा ही साधारण थी उनके चेहरे की लकीरें देख कर पता नहीं लगता था कि वह इतने प्रतिभा संपन्न और उच्च व्यक्तित्व वाले सज्जन है देखने में भी सामान्य किसान से लगते थे।



डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने जीवन का आखिरी समय कहां बिताया ? मृत्यु कब हुई?



डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने जीवन के आखिरी महीने बिताने के लिए उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना। यहां पर 28 फरवरी 1963 में उनके जीवन की कहानी समाप्त हुई। हमको इन पर गर्व है और यह सदा राष्ट्र को प्रेरणा देते रहेंगे। बहुत-बहुत धन्यवाद अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी तो कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट करें और अपने दोस्तों में जानकारी को शेयर करें।



डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म कब और कहां हुआ था ?



डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 1884 ई० में बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक स्थान पर हुआ था।



डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का पूरा नाम क्या है?

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का पूरा नाम डॉ राजेंद्र प्रसाद है। इनको लोग राजेंद्र बाबू नाम से पुकारते हैं।



डॉ राजेंद्र प्रसाद को नोबेल पुरस्कार कब मिला ?



डॉ राजेंद्र प्रसाद एक भारतीय चिकित्सक एवं वैज्ञानिक है, खासकर छह रोग के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए जाना जाता है। वर्ष 2016 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा डॉक्टर बी सी राय राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।



डॉ राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु कब हुई?



डॉ राजेंद्र प्रसाद जी का देहावसान 28 फरवरी, 1963 में हो गया।



डॉ राजेंद्र प्रसाद की पत्नी का क्या नाम था ?



डॉ राजेंद्र प्रसाद की पत्नी का नाम राजवंशी देवी था।




दोस्तों इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद सच्चे अर्थों में एक महान देशभक्त, राष्ट्र नायक और राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाने वाले महापुरुष थे। ऐसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं। यदि हम भारतवासी उनके जीवन को देखते हैं तो यह पता चलता है कि वह धन और वैभव से हमेशा दूर रहे। आज भी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद करोड़ो युवाओं के लिए रोल मॉडल है। यदि हम युवा वर्ग उनके जीवन के थोड़े से अंश को भी अपनी जिंदगी में आत्मसात कर ले तो भारत देश का भविष्य बहुत ही उन्नतशील हो जाएगा। ऐसे महापुरुष के चरणों में हम समस्त भारतवासियों का शत शत नमन। यद्यपि डॉ राजेंद्र प्रसाद आज हम लोगों के बीच में उपस्थित नहीं है किंतु उनके विचार, उनकी उन्नति शील सोच, एवं अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ संघर्ष, उनकी रचनाएं एवं उनकी शैली आज भी सभी देशवासियों के हृदय में जीवित है


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