रामधारी सिंह 'दिनकर' का जीवन परिचय/ Ramdhari Singh Dinkar ka jeevan parichay
रामधारी सिंह 'दिनकर' का जीवन परिचय - साहित्यिक परिचय, रचनाएं एवं भाषा शैली
जन्म- 30 सितम्बर ,1908 ईस्वी
मृत्यु - 24 अप्रैल ,1974 ईस्वी
जन्मस्थान - जिला मुँगेर (बिहार ) के सिमरिया नामक ग्राम में
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रामधारी सिंह दिनकर जी का जीवन परिचय |
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Ramdhari Singh Dinkar Ki Jivani
रामधारी सिंह 'दिनकर' का जीवन परिचय - साहित्यिक परिचय, रचनाएं एवं भाषा शैली
नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandana Classes.com पर . दोस्तों आज की पोस्ट में हम चर्चा करने जा रहे हैं, हिंदी साहित्य जगत में उर्वशी जैसे महाकाव्य की रचना करने वाले प्रमुख साहित्यकार माने जाने वाले रामधारी सिंह दिनकर की। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महान कवि रामधारी सिंह दिनकर का नाम साहित्य जगत में बहुत ही आदर और सम्मान से लिया जाता है। रामधारी सिंह दिनकर हिंदी साहित्य का एक चमकता सितारा, जिन्हें हिंदी के श्रेष्ठतम लेखकों में गिना जाता है। रामधारी सिंह दिनकर एक ऐसा नाम जिसने अपनी कलम से हिंदी साहित्य जगत में क्रांति ला दी। रामधारी सिंह दिनकर एक ऐसा नाम - जिसे हिंदी साहित्य में उर्वशी जैसे महाकाव्य की रचना के लिए जाना जाता है. महान निबंधकार, श्रेष्ठ साहित्यकार , श्रेष्ठतम कवि रामधारी सिंह दिनकर जी को यदि हिंदी साहित्य का महान साहित्यकार भी कहा जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. रामधारी सिंह दिनकर - एक ऐसा नाम जिसने हिंदी साहित्य की दिशा और दशा को बदलने का कार्य किया. यदि रामधारी सिंह दिनकर जी को हिंदी साहित्य का कोहिनूर हीरा भी कहा जाये तो इसमें कोई विवाद नहीं होगा क्योंकि उन्होनें हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नया कीर्तिमान स्थापित किया जिसे युगों - युगों तक हिंदी साहित्य में याद रखा जायेगा. रामधारी सिंह दिनकर जी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कुछ ऐसे नए मानदंड और आयाम स्थापित कर दिए हैं जिन्हें हिंदी साहित्य जगत में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा. दोस्तों यद्यपि रामधारी सिंह दिनकर जी आज हम लोगों के बीच में नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं, निबंध नाटक, कृतियां विश्व भर के साहित्य प्रेमियों के हृदय में हमेशा जीवंत रहेंगी।तो दोस्तों ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व के बारे में हम लोग आज जानेगे तो दोस्तों यदि आपको ये पोस्ट पसंद आये तो इसे अधिक से अधिक अपने दोस्तों में जरूर शेयर करिएगा.
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका एक और नए आरकल में आज के नए आर्टिकल में आज हम लोग बात करने वाले हैं रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय और उनके साहित्यिक परिचय रचना है। आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है आपको अंत में बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए हैं तो आपको उसको पढ़ कर जाना है।
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Ramdhari Singh Dinkar ka jivan Parichay |
जीवन परिचय
रामधारी सिंह 'दिनकर'
जीवन परिचय : एक दृष्टि में
जीवन परिचय- रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। बी.ए. की परीक्षा पास करने के पश्चात इन्होंने कुछ दिनों के लिए उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक का कार्य संभाला। उसके बाद ये सरकारी नौकरी में चले आए। इनकी सरकारी सेवा अवर-निबंधक के रूप में प्रारंभ हुई। बाद में ये उपनिदेशक, प्रचार विभाग के पद पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तक कार्य करते रहे। तदंतर इन्होंने कुछ समय तक बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया। सन् 1952 ई० में ये भारतीय संसद के सदस्य मनोनीत हुए। कुछ समय ये भागलपुर विश्वविद्यालय के उप कुलपति भी रहे। उसके पश्चात भारत सरकार के गृह विभाग में हिंदी सलाहकार के रूप में एक लंबे अरसे तक हिंदी के संवर्धन एवं प्रचार प्रसार के लिए कार्यरत रहे। इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। सन् 1959 ईस्वी में भारत सरकार ने इन्हें 'पदम भूषण' से सम्मानित किया। तथा सन 1962 ईस्वी में भागलपुर विश्वविद्यालय ने डी. लिट्. की उपाधि प्रदान की। प्रतिनिधि लेखक व कवि के रूप में इन्होंने अनेक प्रतिनिधि मंडलों में रहकर विदेश यात्राएं की। दिनकर जी की असामयिक मृत्यु सन् 1974 ईस्वी में हुई।
साहित्यिक परिचय- इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार कविता है तथा देश और विदेश में ये मुख्यता कवि रूप में प्रसिद्ध हैं। लेकिन गद्य लेखन में भी ये आगे रहे और अनेक अनमोल ग्रंथ लिखकर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की। इसका ज्वलंत उदाहरण है 'संस्कृति के चार अध्याय' जो साहित्य अकादमी से पुरस्कृत है। इसमें इन्होंने प्रधानतय: शोध और अनुशीलन के आधार पर मानव सभ्यता के इतिहास को चार मंजिलों में बांटकर अध्ययन किया है। इसके अतिरिक्त 'दिनकर' के स्फुट, समीक्षात्मक तथा विविध निबंधों के संग्रह हैं। जो पठनीय हैं, विशेषता: इस कारण कि उनसे 'दिनकर' के कविता को समझने परखने में यथेष्ट सहायता मिलती है। इनके गद्य में विषयों की विविधता और शैली की प्राण्जलता के सर्वत्र दर्शन होते हैं। भाषा की भूलों के बावजूद शैली की प्राण्जलता ही 'दिनकर' के गद्य को आकर्षक बना देती है। इनका गद्य-साहित्य काव्य की भांति ही अत्यंत सजीव एवं स्फूर्तिमय है तथा भाषा ओज से ओत-प्रोत है। इन्होंने काव्य, संस्कृति, समाज, जीवन आदि विषयों पर बहुत ही उत्कृष्ट लेख लिखे हैं।
रचनाएं- रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा (काव्य); अर्धनारीश्वर, वट-पीपल, उजली आग, संस्कृति के चार अध्याय (निबंध), देश-विदेश (यात्रा) आदि इनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं।
भाषा शैली- दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। इन्होंने तद्भव और देशज शब्दों तथा मुहावरों और लोकोक्तियां का भी सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनकी शैलियों में विवेचनात्मक, समीक्षात्मक, भावात्मक सूक्ति परक शैली प्रमुख रूप से है।
शिक्षा- संस्कृत के एक पंडित के पास अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ करते हुए दिनकर जी ने गांव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की एवं निकटवर्ती बोरो नामक ग्राम में राष्ट्रीय मंडल स्कूल जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विरोध में खोला गया था, में प्रवेश प्राप्त किया। यहीं से इनके मनोमस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था। हाई स्कूल की शिक्षा इन्होंने मोकामा घाट हाई स्कूल से प्राप्त की। इसी बीच इनका विवाह भी हो चुका था तथा यह एक पुत्र के पिता भी बन चुके थे। 1928 इसवी में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बैचलर ऑफ ऑनर्स किया।
पद - पटना विश्वविद्यालय से बीए ऑनर्स करने के बाद अगले ही वर्ष एक स्कूल में प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए, पर 1934 में बिहार सरकार के अधीन इन्होंने सब रजिस्ट्रार का पर स्वीकार कर लिया। लगभग 9 वर्षों तक वह इस पद पर रहे और उनका समूचा कार्यकाल बिहार के देहातों में बीता तथा जीवन का जो पीड़ित रूप उन्होंने बचपन से देखा था, उसका और अधिकारी उनके मन को मथ गया।
फिर जो ज्वार उमरा और रेणुका,हुंकार, रसवंती और द्वंद गीत रचे गए। रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाएं यहां वहां प्रकाश में आई। अंग्रेज प्रशासकों को समझने देर न लगी कि वे एक गलत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं और दिनकर की फाइल तैयार होने लगी, बार-बार पर कैफियत तलब होती और चेतावनी मिला करती थी। 4 वर्ष में 22 बार उनका तबादला किया गया।
रेणुका - में अतीत के गौरव के प्रति कवि का सहज आदर और आकर्षण परिलक्षित होता है। पर साथ ही वर्तमान परिवेश की नीरसता से त्रस्त मन की वेदना का परिचय भी मिलता है।
हुंकार - में कभी अतीत के गौरव गान की अपेक्षा वर्तमान दैत्य के प्रति आक्रोश प्रदर्शन की और अधिक उन्मुख जान पड़ता है।
रसवंती - में कवि की सौंदर्यन्वेषी वृत्ति काव्यमयी हो जाती है। पर यह अंधेरे में ध्येयसौंदर्य का अन्वेषण नहीं,उजाले में सुंदर का आराधन है
सामधेनी (1947) - में दिनकर की की सामाजिक चेतना स्वदेश और परिचित परिवेश की परिधि से बढ़कर भी संवेदना का अनुभव करते जान पड़ती है। कवि के स्वर का रोज नए वेग से नए शिखर तक पहुंच जाता है।
काव्य रचना - एक मुक्त काव्य संग्रहों के अतिरिक्त दिनकर ने अनेक प्रबंध काव्य की रचना भी की है जिसमें कुरुक्षेत्र (1946), रश्मिरथी (1952), उर्वशी (1961) प्रमुख है कुरुक्षेत्र में महाभारत के शांति पूर्व के मूल कथाकार का ढांचा लेकर दिनकर ने युद्ध और शांति के विशाल गंभीर और महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार भीष्म और युधिष्ठिर के संलाप के रूप में प्रस्तुत किए हैं दिनकर के काव्य में विचार तत्व इस तरह उभर कर सामने पहले कभी नहीं आए थे। कुरुक्षेत्र के बाद उनके नवीनतम कब उर्वशी में फिर हमें विचार तत्व की प्रधानता मिलती है। साहस पूर्वक गांधीजी अहिंसा के आलोचना करने वाले कुरुक्षेत्र का हिंदी जगत में श्रेष्ठ आदर हुआ। उर्वशी जिसे कवि ने स्वयं अध्याय की उपाधि प्रदान की है। दिनकर की कविता को नए शिखर पर पहुंचा दिया है ।
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रामधारी सिंह दिनकर की प्रथम रचना कौन सी थी?
दिनकर जी की प्रथम रचना रेणुका 1935 में थी
रामधारी सिंह दिनकर जी सब रजिस्टार के रूप में कब तक कार्यरत रहे?
बीए ऑनर्स की परीक्षा अध्ययन करने के पश्चात दिनकर ने पहले सब रजिस्टार के पद पर और फिर प्रचार विभाग के उप निर्देशक के रूप में कुछ वर्षों तक सरकारी नौकरी की। वह लगभग 9 वर्षों तक इस पद पर रहे।
कुरुक्षेत्र का प्रकाशन कब हुआ था?
कुरुक्षेत्र का प्रकाशन राज्यपाल प्रकाशन ने किया था।
रामधारी सिंह दिनकर जी की महा विद्यालय शिक्षा कहां हुई थी?
दिनकर के प्रथम तीन काव्य संग्रह प्रमुख हैं- रेगुणा (1935 ), हुंकार (1938), और रसवंती (1939), उनके आरंभिक आत्ममंथन के युग की रचनाएं हैं।
रामधारी सिंह दिनकर की कविता संग्रह के नाम लिखिए?
रामधारी सिंह दिनकर की कविता संग्रह में उर्वशी ,परशुराम की प्रतीक्षा, सपनों का धुआं, आत्ममंथन रश्मिरथी एवं कुरुक्षेत्र हैं।
रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र का सारांश बताइए?
कुरुक्षेत्र छटा सर्ग - कुरुक्षेत्र एक प्रबंध काव्य है। इसका प्रणयन अहिंसा और हिंसा के बीच अंत द्वंद के फल स्वरुप हुआ कुरुक्षेत्र की कथावस्तु का आधार महाभारत के युद्ध की घटना है, जिसमें वर्तमान युग की ज्वलंत युद्ध समस्या का उल्लंघन है , दिनकर के कुरुक्षेत्र प्रबंध काव्य की कथावस्तु 7 वर्गों में विभक्त है।
रामधारी सिंह दिनकर कहां के रहने वाले थे?
दिनकर जी का जन्म 24 दिसंबर 1960 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। वह बिहार में रहने वाले थे।
रामधारी सिंह दिनकर किस युग के कवि थे?
रामधारी सिंह दिनकर छायावादी युग के कवि थे छायावादोत्तर कवियों में पहली पीढ़ी के कवि रामधारी सिंह दिनकर जी थे।
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कब हुआ?
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था।
रामधारी सिंह दिनकर के निबंध कौन-कौन से हैं?
प्रस्तुत संकलन में संकलित रचनाएं उनकी जिन कृतियों से ली गई है वह हैं - रेगुणा (1935 ), हुंकार (1938), और रसवंती (1939),अर्धनारीश्वर, वट-पीपल, उजली आग, संस्कृति के चार अध्याय (निबंध), देश-विदेश (यात्रा) आदि इनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं।
रामधारी सिंह दिनकर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए?
रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रमुख लेखक कामा का विवाह निबंधकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित है, दिनकर स्वतंत्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र कवि के नाम से जाने गए कमावे छायावादोत्तर कवियों की पहली कवि थे।
रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली क्या थी?
दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। इन्होंने तद्भव और देशज शब्दों तथा मुहावरों और लोकोक्तियां का भी सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनकी शैलियों में विवेचनात्मक, समीक्षात्मक, भावात्मक सूक्ति परक शैली प्रमुख रूप से है।
रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी का क्या नाम था ?
रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी का नाम रूप देवी था।
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कब और कहां हुआ था?
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था।
रामधारी सिंह दिनकर का हिंदी साहित्य में योगदान बताइए ?
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य में नासिर पर वीर रस के काम को एक नई ऊंचाई दी बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का सृजन किया। उन्होंने टैगोर की रचनाओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद किया। दिनकर का पहला काव्य संग्रह विजय संदेश वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ।दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। इन्होंने तद्भव और देशज शब्दों तथा मुहावरों और लोकोक्तियां का भी सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनकी शैलियों में विवेचनात्मक, समीक्षात्मक, भावात्मक सूक्ति परक शैली प्रमुख रूप से है।
रामधारी सिंह दिनकर का पहला काव्य संग्रह किस वर्ष में प्रकाशित हुआ?
रामधारी सिंह दिनकर का पहला काव्य संग्रह सन 1928 में प्रकाशित हुआ।
रामधारी सिंह दिनकर का पहला काव्य संग्रह कौन सा था?
रामधारी सिंह दिनकर का पहला काव्य संग्रह विजय संदेश था।
नमस्कार दोस्तों ! आज हम अपनी पोस्ट में एक ऐसे कवि के बारे में चर्चा करेंगे जिन्हें ' राष्ट्रीय - चेतना का वैतालिक' और ' जन- जागरण का अग्रदूत' जैसे विभूषणों से विभूषित किया गया. उस महान कविवर का नाम हैं - रामधारी सिंह 'दिनकर' जिनके बारे में हम लोग आज जानेंगे.
👉सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय
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रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय |
जीवन- परिचय - श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 30 सितम्बर ,1908 ईस्वी (संवत 1965 वि.) को जिला मुँगेर (बिहार ) के सिमरिया नामक ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह और माता का नाम श्रीमती मनरूपदेवी था. इनकी दो वर्ष की अवस्था में ही पिता का देहावसान हो गया; अतः बड़े भाई वसन्त सिंह और माता की छत्रछाया में ही ये बड़े हुए. इनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई. अपने विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें आर्थिक कष्ट झेलने पड़े. विद्यालय के लिए घर से पैदल दस मील रोज आना जाना इनकी विवशता थी. इन्होने मैट्रिक (हाईस्कूल) की परीक्षा मोकामा घाट स्थित रेलवे हाईस्कूल से पास की.और हिन्दी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके 'भूदेव' स्वर्ण पदक जीता. 1932 ईस्वी में पटना से इन्होंने बी. ए. की परीक्षा पास की.
ग्रामीण परम्पराओं के कारण दिनकर जी का विवाह किशोरावस्था में ही हो गया. अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति दिनकर जी जीवन भर सचेत रहे और इसी कारण इन्हें कई प्रकार की नौकरी करनी पड़ी. सन 1932 ईस्वी में बी.ए. करने के बाद ये एक नए स्कूल में अध्यापक बने. सन 1934 ईस्वी में इस पद को छोड़कर सीतामढ़ी में सब- रजिस्ट्रार बने. सन 1950 ईस्वी में बिहार सरकार ने इन्हें मुज़्ज़फरपुर के स्नात्कोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी- विभागाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया. सन 1952 ईस्वी से सन 1963 ईस्वी तक ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किये गए. इन्हें केंद्रीय सरकार की हिन्दी - समिति का परामर्शदाता भी बनाया गया. सन 1964 ईस्वी में ये भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने.
साहित्यिक परिचय- 'दिनकर' जी को कवि रूप में पर्याप्त सम्मान मिला. 'पदम् भूषण' की उपाधि ,'साहित्य अकादमी ' पुरुस्कार, दिवेदी पदक, डी. लिट्. की मानद उपाधि, राज्यसभा की सदस्यता आदि इनके कृतित्व की राष्ट्र द्वारा स्वीकृति के प्रमाण हैं. सन 1972 ईस्वी में इन्हें 'उर्वशी' के लिए 'ज्ञानपीठ पुरुस्कार' से भी सम्मानित किया गया. इनका स्वर्गवास 24 अप्रैल ,1974 ईस्वी (संवत 2031 वि.) को चेन्नई में हुआ.
'दिनकर' जी राष्ट्रीय भावनाओं के ओजस्वी गायक रहें हैं. इन्होंने देशानुराग की भावना से ओत-प्रोत, पीड़ितों के प्रति सहानुभूति की भावना से परिपूर्ण तथा क्रान्ति की भावना जगाने वाली रचनाएँ लिखी हैं.ये लोक के प्रति निष्ठावान, सामाजिक दायित्व के प्रति सजग तथा जनसाधारण के प्रति समर्पित कवि रहे हैं.
कृतियाँ- दिनकर जी का साहित्य विपुल है, जिसमें काव्य के अतिरिक्त विविध- विषयक गद्द्य रचनाएँ भी है. इनकी प्रमुख काव्य- रचनाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैं- (1 ) रेणुका, (2) हुंकार , (3) कुरुक्षेत्र, (4) उर्वशी. इनके अतिरिक्त 'दिनकर' जी के अन्य काव्यग्रन्थ निम्नलिखित हैं -
(1) खण्डकाव्य- प्रणभंग और रश्मिरथी (2) कविता- संग्रह - (i) रसवन्ती, (ii) द्वन्दगीत, (iii) सामधेनी, (iv) बापू, (v) इतिहास के आँसू, (vi) धूप और धुँआ, (vii) नीम के पत्ते, (viii) नीलकुसुम (ix) चक्रवाल, (x) कविश्री, (xi) सीपी और शंख, (xii) स्मृति- तिलक, (xiii) हारे को हरिनाम आदि.
(3) बाल - साहित्य - धूप-छाँव, मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह
काव्यगत विशेषताएँ
काव्य- रूप - 'दिनकर' जी के कृतित्व में काव्य रूपों की विविधता दिखाई पड़ती है, जो उनकी काव्य - प्रतिभा की परिचायक है. इन्होंने प्रबंध और मुक्तक दोनों विधाओं में सफल रचनायें की हैं. प्रबंध में महाकाव्य (कुरुक्षेत्र) , खण्डकाव्य (रश्मिरथी ), नाटकीय महाकाव्य (उर्वशी ) तीनों उल्लेखनीय हैं. मुक्तक में गीति - मुक्तक और पाठ्य- मुक्तक दोनों हैं. इन परंपरागत काव्यरूपों के अतिरिक्त कवि ने कुछ मिश्रित रूपों के भी नए प्रयोग किये हैं.
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भाषा - शैली - 'दिनकर' जी की भाषा की सबसे बड़ी विशेषता है - अभिव्यक्ति की सटीकता व सुस्पष्टता. इनकी भाषा में सर्वत्र भवानुकूलता का गुण पाया जाता है. ओज़ और प्रसाद इनकी शैली के प्रधान गुण हैं. दिनकर जी की भाषा प्रायः संस्कृत की तत्सम शब्दावली से युक्त है, पर विषय के अनुरोध से इन्होंने न केवल तदभव, अपितु अरबी - फ़ारसी और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का भी निः संकोच प्रयोग किया है.
अलंकार योजना - 'दिनकर' ने कहीं भी अलंकारों का प्रयोग चमत्कार - प्रदर्शन के लिए नहीं किया वरन कविता की व्यंजना - शक्ति को बढ़ाने या काव्य को शोभा प्रदान करने के लिए ही इनका प्रयोग बड़े सहज रूप में किया है. इनके प्रिय अलंकार हैं - उपमा ,रूपक , व्यतिरेक , उल्लेख और मानवीकरण. उपमा का एक सुन्दर रूप प्रस्तुत है-
लदी हुई कलियों से मादक टहनी एक नरम- सी.
यौवन की वनिता- सी भोली गुमसुम खड़ी शरम- सी..
साहित्य में स्थान - 'दिनकर' जी के सबसे बड़ी विशेषता है , उनका समय के साथ निरन्तर गतिशील रहना. यह उनके क्रान्तिकारी व्यक्तित्व और ज्वलंत प्रतिभा का परिचायक हैं. इन्होंने राष्ट्र की आशाओं- आकांक्षाओं को सदा वाणी दी. फलतः गुप्त जी के बाद ये ही राष्ट्रकवि के सच्चे अधिकारी बने और इन्हें 'युग - चरण', ' राष्ट्रीय- चेतना का वैतालिक' और ' जन-जागरण का अग्रदूत' जैसे विशेषणों से विभूषित किया गया. ये हिंदी के गौरव हैं, जिन्हें पाकर सचमुच हिंदी कविता धन्य हुई.
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