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Kalidas ka jivan parichay || कालिदास का जीवन परिचय हिंदी में

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कविकुलगुरु कालिदास का जीवन परिचय-

महाकवि कालिदास संस्कृत के कवियों में श्रेष्ठ कवि है। इनके नाम से पूर्व ' कविकुलगुरु' विशेषण का प्रयोग किया जाता है। ये भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व के श्रेष्ठ कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। इनके जन्म स्थान और स्थिति के विषय में विद्वानों में एकमत नहीं है। इन्होंने अपनी कृतियों में भी अपने जन्म के विषय में कुछ नहीं लिखा है। एक जनश्रुति के अनुसार, महाकवि कालिदास को विक्रमादित्य का सभारत्न माना जाता है, परन्तु विक्रमादित्य का स्थितिकाल भी पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है।


कुछ विद्वान् इन्हें द्वितीय समकालीन मानते हैं। इस महान कवि को सभी अपने-अपने देश में उत्पन्न हुआ सिद्ध करते हैं। कुछ विद्वान इन्हें कश्मीर में उत्पन्न हुआ और कुछ बंगाल प्रदेश में उत्पन्न हुआ मानते हैं तो कुछ आलोचक इन्हें उज्जैन में जन्म प्राप्त किया भी मानते हैं। कवि का उज्जयिनी प्रेम भी इस मत की कुछ पुष्टि करता है। कालिदास द्वारा रचित कृतियों में वर्ण व्यवस्था के वर्णन को देखकर इन्हें ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न हुआ माना जाता है। ये शिवभक्त थे, परन्तु राम के प्रति भी इनकी अपार श्रद्धा थी। 'रघुवंशम्' महाकाव्य की रचना से यह बात पूर्णतः स्पष्ट हो जाती है।


कृतियाँ


इस महान् कवि की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं


 नाटक


कालिदास के प्रमुख नाटक निम्न प्रकार हैं-


1. मालविकाग्निमित्रम् इसमें अग्निमित्र और मालविका की प्रणय (प्रेम) की कथा का वर्णन है। 


2. विक्रमोर्वशीयम् इस नाटक में पुरूरवा तथा उर्वशी की प्रेम कथा का नाट्य रूपान्तरण किया गया है। इस नाटक में पाँच अंक हैं।


3. अभिज्ञानशाकुन्तलम् यह कालिदास का सर्वश्रेष्ठ व अद्वितीय नाटक है। इसमें सात अंकों में मेनका के द्वारा जन्म देकर परित्यक्ता, पक्षियों द्वारा पोषित तथा महर्षि कण्व द्वारा पालित पुत्री शकुन्तला तथा दुष्यन्त की प्रणय कथा तथा दुष्यन्त के साथ प्रेम विवाह और उसके पश्चात् वियोग और पुनर्मिलन की कथा का वर्णन किया गया है।


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महाकाव्य


कालिदास के प्रमुख महाकाव्य निम्न हैं।


1. रघुवंशम् इस महाकाव्य में राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक के सूर्यवंशी (इक्ष्वाकुवंशी) राजाओं की उदारता का उन्नीस सर्गों में वर्णन है।


2. कुमारसम्भवम् इस महाकाव्य में शिवजी तथा पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय के जन्म से लेकर देवताओं के सेनापतित्व के रूप में तारकासुर वध तक की कथा 18 सर्गों में वर्णित है।


गीतिकाव्य


कालिदास के प्रमुख गीतिकाव्य निम्न हैं।


 1. ऋतुसंहार इस गीतिकाव्य में छः ऋतुओं का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया गया है।


2. मेघदूतम् इस खण्ड काव्य में प्रकृति के अन्तः एवं बाह्य दोनों रूपों के वर्णन के साथ- साथ विरही यक्ष द्वारा मेघ को दूत बनाकर उसके द्वारा अपनी विरहिनी यक्षिणी के पास सन्देश भेजने तथा कुबेर नगरी अलका पुरी के सौन्दर्य का मर्म भेदी वर्णन किया गया है।


भारतीय जीवन पद्धति का चित्रण


कालिदास ने अपनी रचनाओं में काव्योचित गुणों का समावेश करते हुए भारतीय जीवन पद्धति का सर्वांगीण चित्रण किया है। इनके काव्य में जड़ प्रकृति भी मानव की सहचरी के रूप में चित्रित की गई है।




प्रकृति मानव-सहचरी के रूप में


'मेघदूतम्' में कवि ने बाह्य तथा अन्तःप्रकृति का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। कवि के विचार में मेघ, धूप, ज्योति, जलवायु का समूह ही नहीं, बल्कि वे मानव के समान ही संवेदनशील प्राणी हैं। 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक में वन के वृक्ष शकुन्तला को आभूषण प्रदान करते हैं और हरिण शावक शकुन्तला का मार्ग रोककर अपना निश्छल प्रेम प्रदर्शित करता है।


मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा


कालिदास ने अपने काव्य के आधार पर समाज में मानव मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने का सफल प्रयास किया है। शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त के मन में काम की इच्छा उत्पन्न होने पर भी वे क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए विवाह करने के योग्य होने पर ही उससे विवाह करते हैं।


आदर्श जन-जीवन का निरूपण


'रघुवंशम्' में रघुवंशी राजाओं में भारतीय जन-जीवन का आदर्श रूप निरूपित किया गया है। रघुवंशी राजा प्रजा की भलाई के लिए ही प्रजा से कर लेते थे। वे सदा सत्य वचन बोलते थे।


काव्यगत विशेषताएँ


कालिदास की प्रमुख काव्यगत विशेषताएँ निम्न हैं


रस कालिदास के काव्यों में मुख्य रस श्रृंगार है। करुण आदि रस उसके सहायक होकर प्रयुक्त किए गए हैं।


गुण कालिदास ने रस के अनुरूप ही प्रसाद और माधुर्य गुण को अपनाया है। रीति कालिदास वैदर्भी रीति के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।


 अलंकार कालिदास ने उपमा अलंकार का प्रयोग किया है।


भारत की यशोगाथा


कालिदास ने हिमालय से सागर तक भारत के यश की गाथा को अपने काव्य में निरूपित किया है। 'रघुवंशम्', 'मेघदूतम्' और 'कुमारसम्भवम्' में भारत के विविध प्रदेशों का सुन्दर और स्वाभाविक वर्णन मिलता है। संस्कृत के कवियों में कोई भी कवि कालिदास की तुलना नहीं कर पाया है।


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