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UP Board Class 12th Hindi model paper 2022-23 || यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी मॉडल पेपर

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यूपी बोर्ड वार्षिक परीक्षा मॉडल पेपर 2023


                     कक्षा-12वी 


              विषय–सामान्य हिन्दी 


समय: 3 घण्टे 15 मिनट


(केवल प्रश्न)


निर्देश प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।


(खण्ड- क)


1. (क) 'रानी केतकी की कहानी' के लेखक हैं- 


(i) इंशाअल्ला खाँ 


(ii) सदासुखलाल


(iii) लल्लूलाल


(iv) सदल मिश्र

उत्तर –(i) इंशाअल्ला खाँ 


(ख)'आवारा मसीहा' नामक जीवनी विधा के लेखक हैं-


(i) धर्मवीर भारती 


(ii) विष्णु प्रभाकर


(iii) मोहन राकेश


(iv) यशपाल

उत्तर –(ii) विष्णु प्रभाकर


(ग) 'हिन्दी एकांकी का जनक' माना जाता है-


 (i) उपेन्द्रनाथ 'अश्क'


(ii) मुंशी प्रेमचन्द्र


(iii) मोहन राकेश


(iv) डॉ० रामकुमार वर्मा

उत्तर –(iv) डॉ० रामकुमार वर्मा


 (घ) 'स्कन्दगुप्त' नाटक के लेखक हैं-


(i) मुंशी प्रेमचन्द


(ii) जयशंकर प्रसाद 


 (iii) लक्ष्मीनारायण मिश्र


(iv) धर्मवीर भारती

उत्तर –(ii) जयशंकर प्रसाद 


(ङ) 'आनन्द कादम्बिनी' नामक पत्रिका के सम्पादक थे- 1


(i) महावीरप्रसाद द्विवेदी 


(ii) बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' 


(iii) मुंशी प्रेमचन्द


(iv) बालकृष्ण भट्ट

उत्तर –(ii) बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'


2.(क) 'विनयपत्रिका' किस भाषा पर आधारित कृति है?


(i) अवधी 


(ii) ब्रजभाषा


(iii) खड़ीबोली


(iv) भोजपुरी

उत्तर –(ii) ब्रजभाषा


(ख) निम्नलिखित कवियों में से छायावादी कवि हैं- 1


(i) जयशंकर प्रसाद


(ii) बिहारी


(iii) नागार्जुन


(iv) जगन्नाथदास रत्नाकर'

उत्तर –(i) जयशंकर प्रसाद


(ग) सुमित्रानन्दन पन्त को उनकी किस रचना पर 'ज्ञानपीठ पुरुस्कार' मिला? 1


(i) लोकायतन 


(ii) युगान्त


(iii) कला और बूढ़ा चाँद


(iv) चिदम्बरा

उत्तर –(iv) चिदम्बरा


(घ) 'कामायनी' महाकाव्य में सर्गों की संख्या है- 


(i) नौ


(ii) बारह


(iii) पन्द्रह


(iv) सत्रह

उत्तर –(iii) पन्द्रह


(ङ) 'छायावाद के प्रवर्त्तक' माने जाते हैं-


(i) सुमित्रानन्दन पन्त


(ii) जयशंकर प्रसाद


(iii) सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' 


(iv) रामधारीसिंह 'दिनकर' 

उत्तर –(ii) जयशंकर प्रसाद


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(3.) दिए गए गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-  5x2-10


 मुझे मानव जाति की दुर्दम-निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवनी-शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। न जाने कितने धर्माचारी विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को धोती-बहाती यह जीवन-धारा आगे बढ़ी है। संघर्षो से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है। हमारे सामने समाज का आज जो रूप है, वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है। देश की, जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है। सब कुछ मिलावट है, सब कुछ अविशुद्ध है। शुद्ध केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा (जीने की इच्छा) है। वह गंगा की अबाधित अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र 


(i) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।


 (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(iii) मनुष्य की जीवनी-शक्ति कैसी है?


(iv) आज हमारे सामने समाज का स्वरूप कैसा है? 


(v) लेखक ने मनुष्य की जिजीविषा को किस रूप में प्रस्तुत किया है?


उतर –(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक 'गद्य-गरिमा' संकलित तथा हिन्दी के सुविख्यात निबन्धकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित 'अशोक के फूल' नामक ललित निबन्ध से अवतरित है।

अथवा


पाठ का नाम - अशोक के फूल ।। लेखक का नाम-आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी । 


(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी कह रहे हैं कि मानव जाति के विकास के हजारों वर्षों के इतिहास के मनन और चिन्तन के परिणामस्वरूप उन्होंने जो अनुभव किया है वह यह है कि मनुष्य में जो जिजीविषा है वह अत्यधिक निर्मम और मोह-माया के बन्धनों से रहित है। सभ्यता और संस्कृति के जो कतिपय व्यर्थ बन्धन या मोह थे, उन सबको रौंदती हुई वह सदैव आगे बढ़ती चली गयी।


 (iii) मनुष्य की जीवन-शक्ति को निर्मम इसलिए बताया गया है क्योंकि वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। देश और जाति की अवशुद्ध संस्कृति को बाद की बात बताया है। वर्तमान समाज का रूप न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है।


(iv)हमारे सामने समाज का आज जो रूप है, वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है। देश की, जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है। सब कुछ मिलावट है, सब कुछ अविशुद्ध है। शुद्ध केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा (जीने की इच्छा) है। वह गंगा की अबाधित अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है।

(v)सब कुछ मिलावट है, सब कुछ अविशुद्ध है। शुद्ध केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा (जीने की इच्छा) है

                   अथवा


मैं यह नहीं मानता कि समृद्धि और अध्यात्म एक-दूसरे के विरोधी हैं या भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना कोई गलत सोच है। उदाहरण के तौर पर, मैं खुद न्यूनतम वस्तुओं का भोग करते हुए जीवन बिता रहा हूँ, लेकिन मैं सर्वत्र समृद्धि की कद्र करता हूँ, क्योंकि समृद्धि अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो अन्ततः हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक है। आप अपने आस-पास देखेंगे तो पाएँगे कि खुद प्रकृति भी कोई काम आधे-अधूरे मन से नहीं करती। किसी बगीचे में जाइए। मौसम में आपको फूलों की बहार देखने को मिलेगी। अथवा ऊपर की तरफ ही देखें, यह ब्रह्माण्ड आपके अनन्त तक फैला दिखाई देगा, आपके यकीन से भी परे।


 (i) लेखक किनको एक-दूसरे का विरोधी नहीं मानता?


(ii) डॉ० कलाम समृद्धि की कद्र क्यों करते हैं? है?


(iii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने छात्रों को क्या सन्देश दिया


 (iv) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(v) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।



 4. दिए गए पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-5 x 2 = 10


सुख भोग खोजने आते सब,आए तुम खोजने सत्य-खोज, जग की मिट्टी के पुतले जन, तुम आत्मा के, मन के मनोज! जड़ता, हिंसा, स्पर्द्धा में भर चेतना, अहिंसा, नव ओज, पशुता का पंकज बना दिया

तुमने मानवता का सरोज!


(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए। 


(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


(iii) अधिकांश मनुष्य संसार में आकर किसकी खोज में लग जाते हैं?


(iv) गांधीजी का भौतिकवादी मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ा? 


(v) 'तुम आत्मा के मन के मनोज!' इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार होगा?


उत्तर –(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित 'बापू के प्रति' शीर्षक कविता से उद्धृत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक काव्यांजलि' में संकलित है।

अथवा


शीर्षक का नाम बापू के प्रति 


कवि का नाम - सुमित्रानन्दन पन्त ।


(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या- वह पशुता की कीचड़ से उत्पन्न कमलवत् था। तुमने उसे मानवीयतारूपी निर्मल जल वाले सरोवर से उत्पन्न कमल बना दिया;अर्थात् तुमने भौतिकवादी मनुष्य को अध्यात्मवादी बना दिया।


(iii) अधिकांश मनुष्य संसार में सुख की खोज में लग जाते हैं।


(iv) गाँधी जी ने भौतिकवादी मनुष्य को अध्यात्मवादी बना दिया अर्थात् लोगों को मानवीय गुणों के आधार पर जीना सिखा दिया ।


(v) रूपक अलंकार।



                   अथवा


शक्ति के विद्युतकण जो व्यस्त, विकल बिखरे हैं, हो निरूपाय; समन्वय उसका करें समस्त, विजयिनी मानवता हो जाय।


(i) इन पंक्तियों ने श्रद्धा ने मनु को कौन-सी बात बताई है?

 (ii) श्रद्धा मनु को किस प्रकार मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है?


(iii) 'विकल' और 'निरूपाय' शब्दों के अर्थ लिखिए।


(iv) रेखांकित अंश का भावार्थ लिखिए।


(v) कविता के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।


5.(क) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए— (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)2+3


(i) वासुदेवशरण अग्रवाल


(ii) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी 


(ii) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम


उत्तर –आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय


जीवन परिचय – हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई० में बलिया जिले के दूबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता श्री अनमोल द्विवेदी ज्योतिष और संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे; अत: इन्हें ज्योतिष और संस्कृत की शिक्षा उत्तराधिकार में प्राप्त हुई। काशी जाकर इन्होंने संस्कृत-साहित्य और ज्योतिष का उच्च स्तरीय ज्ञान प्राप्त किया। इनकी प्रतिभा का विशेष विकास विश्वविख्यात संस्था शान्ति निकेतन में हुआ। वहाँ ये 11 वर्ष तक हिन्दी भवन के निदेशक के रूप में कार्य करते रहे। वहीं इनके विस्तृत अध्ययन और लेखन का कार्य प्रारम्भ हुआ। सन् 1949 ई० में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी०लिट्० की उपाधि से तथा सन् 1957 ई० में भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित किया। इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया तथा उत्तर प्रदेश सरकार की हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष रहे। तत्पश्चात् ये हिन्दी-साहित्य सम्मेलन प्रयाग के सभापति भी रहे। 19 मई, 1979 ई० को यह वयोवृद्ध साहित्यकार रुग्णता के कारण स्वर्ग सिधार गया।


रचनाएँ— आचार्य द्विवेदी का साहित्य बहुत विस्तृत है। इन्होंने अनेक विधाओं में उत्तम साहित्य की रचना की। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं


निबन्ध संग्रह- 'अशोक के फूल', 'कुटज', 'विचार प्रवाह', 'विचार और वितर्क', 'आलोक पर्व', 'कल्पलता'।


आलोचना - साहित्य–'सूरदास', 'कालिदास की लालित्य योजना', 'कबीर', 'साहित्य- सहचर', 'साहित्य का मर्म'।


इतिहास – 'हिन्दी साहित्य की भूमिका', 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल',  'हिन्दी-साहित्य' ।


उपन्यास–'बाणभट्ट की आत्मकथा', 'चारुचन्द्रलेख', 'पुनर्नवा' और म 'अनामदास का पोथा'।


सम्पादन– 'नाथ सिद्धों की बानियाँ', 'संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो', 'सन्देश रासक' ।


अनूदित रचनाएँ– 'प्रबन्ध चिन्तामणि', 'पुरातन प्रबन्ध संग्रह', 'प्रबन्धकोश' ३) 'विश्वपरिचय', 'लाल कनेर', 'मेरा बचपन' आदि।


(ख) निम्नलिखित में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)(2+3)


(i)मैथिलीशरण गुप्त 


(ii) जयशंकर प्रसाद


(iii) सुमित्रानन्दन पन्त


उत्तर (ii)–जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उनका जन्म 1890 ई. में काशी के  'सुँघनी साहू' नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके यहाँ तम्बाकू का व्यापार होता था। उनके पिता देवीप्रसाद और पितामह शिवरत्न साहू थे। इनके पितामह परम शिवभक्त और दयालु थे। उनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य प्रेमी थे। प्रसाद जी का बचपन सुखमय था। बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थों की यात्राएँ कीं। यात्रा से लौटने के बाद पहले उनके पिता का और फिर चार वर्ष पश्चात् ही उनकी माता का निधन हो गया।


प्रसाद जी की शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण का प्रबन्ध उनके बड़े भाई शम्भूरत्न ने किया और क्वीन्स कॉलेज में उनका नाम लिखवाया, किन्तु उनका मन वहाँ न लगा। उन्होंने अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन स्वाध्याय से घर पर ही प्राप्त किया। उनमें बचपन से ही साहित्यानुराग था। वे साहित्यिक पुस्तकें पढ़ते और काव्य रचना करते रहे। पहले तो उनके भाई उनकी काव्य-रचना में बाधा डालते रहे, परन्तु जब उन्होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्य-रचना में अधिक लगता है, तब उन्होंने इसकी पूरी स्वतन्त्रता उन्हें दे दी। प्रसाद जी स्वतन्त्र रूप से काव्य-रचना के मार्ग पर बढ़ने लगे। इसी बीच उनके बड़े भाई शम्भूरन जी का निधन हो जाने से घर की स्थिति खराब हो गई। व्यापार भी नष्ट हो गया। पैतृक सम्पत्ति बेचने से कर्ज से मुक्ति तो मिली,

पर वे क्षय रोग का शिकार होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में 15 नवम्बर, 1937 को इस संसार से विदा हो गए।


रचनाएँ –  जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के स्वनाम धन्य रत्न हैं। उन्होंने काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है


'कामायनी' जैसे विश्वस्तरीय महाकाव्य की रचना करके प्रसादजी ने हिन्दी साहित्य को अमर कर दिया। कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई अद्वितीय रचनाओं का सृजन किया। नाटक के क्षेत्र में उनके अभिनव योगदान के फलस्वरूप नाटक विधा में 'प्रसाद युग' का सूत्रपात हुआ। विषय वस्तु एवं शिल्प की दृष्टि से उन्होंने नाटकों को नवीन दिशा दी। भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय भावना, भारत के अतीतकालीन गौरव आदि पर आधारित 'चन्द्रगुप्त', 'स्कन्दगुप्त' और 'ध्रुवस्वामिनी' जैसे प्रसाद-रचित नाटक विश्व स्तर के साहित्य में अपना बेजोड़ स्थान रखते हैं। काव्य के क्षेत्र में वे छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक कवि थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं


काव्य –  आँसू, कामायनी, चित्राधार, लहर और झरना।

 

कहानी – आँधी, इन्द्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि।


उपन्यास – तितली, कंकाल और इरावती।


नाटक –  सज्जन, कल्याणी - परिणय, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, प्रायश्चित, जनमेजय का नागयज्ञ, विशाखा, ध्रुवस्वामिनी आदि।


निबन्ध काव्य-कला एवं अन्य निबन्ध।


भाषा-शैली –  प्रसाद जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है। भावमयता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग न के बराबर हुआ है। प्रसाद जी ने विचारात्मक, चित्रात्मक, भावात्मक, अनुसन्धानात्मक तथा इतिवृत्तात्मक शैली का प्रयोग किया है।


हिन्दी साहित्य में स्थान

युग प्रवर्तक साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने गद्य और काव्य दोनों ही विधाओं में रचना करके हिन्दी साहित्य को अत्यन्त समृद्ध किया है। 'कामायनी' महाकाव्य उनकी कालजयी कृति है, जो आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ रचना कही जा सकती है।


अपनी अनुभूति और गहन चिन्तन को उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। हिन्दी साहित्य में जयशंकर प्रसाद का स्थान सर्वोपरि है।




6. 'ध्रुवयात्रा' अथवा 'बहादुर' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)


अथवा

'पंचलाइट' अथवा 'ध्रुवयात्रा' कहानी का सारांश लिखिए।


उत्तर–'पंचलाइट'

फणीश्वरनाथ 'रेणु' जी हिन्दी-जगत् के सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। अनेक जन-आन्दोलनों से वे निकट से जुड़े रहे, इस कारण ग्रामीण अंचलों से उनका निकट का परिचय है। उन्होंने अपने पात्रों की कल्पना किसी कॉफी हाउस में बैठकर नहीं की अपितु वे स्वयं अपने पात्रों के बीच रहे हैं। बिहार के अंचलों के सजीव चित्र इनकी कथाओं के अलंकार हैं। 'पंचलाइट' भी बिहार के आंचलिक परिवेश की कहानी है। शीर्षक कथा का केन्द्रबिन्दु है। शीर्षक को पढ़कर ही पाठक कहानी को पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाता है।


इस कहानी के द्वारा 'रेणु' जी ने ग्रामीण अंचल का वास्तविक चित्र खींचा है। गोधन के द्वारा पेट्रोमैक्स जला देने पर उसकी सभी गलतियाँ माफ कर दी जाती हैं; उस पर लगे सारे प्रतिबन्ध हट जाते हैं तथा उसे मनोनुकूल आचरण की छूट भी मिल जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि आवश्यकता बड़े-से-बड़े रूढ़िगत संस्कार और परम्परा को व्यर्थ साबित कर देती है। कथानक संक्षिप्त रोचक, सरल, मनोवैज्ञानिक और यथार्थवादी है। इसी केन्द्रीय भाव के आधार पर कहानी के एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य को स्पष्ट किया गया है।


इस प्रकार 'पंचलाइट' जलाने की समस्या और उसके समाधान के माध्यम से कहानीकार ने ग्रामीण मनोविज्ञान का सजीव चित्र उपस्थित कर दिया है। ग्रामवासी जाति के आधार पर किस प्रकार टोलियों में विभक्त हो जाते हैं और आपस में ईर्ष्या-द्वेष युक्त भावों से भरे रहते हैं, इसका बड़ा ही सजीव चित्रण इस कहानी में हुआ है। रेणु जी ने यह भी दर्शाया है कि भौतिक विकास के इस आधुनिक युग में भी भारतीय गाँव और कुछ जातियाँ कितने अधिक पिछड़े हुए हैं। कहानी के माध्यम से 'रेणु' जी ने अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम-सुधार की प्रेरणा भी दी है।


7. स्वपठित खण्डकाव्य के आधार पर किसी एक खण्ड के एक प्रश्न का उत्तर दीजिए— (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)


(i) 'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए। अथवा 'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।


(ii) 'सत्य की जीत' कहानी का सारांश अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए।अथवा 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य की नायिका की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।


(iii)'रश्मिरथी' खण्डकाव्य के 'पंचम सर्ग' की कथा संक्षेप में लिखिए। 'अथवा 'रश्मिरथी' खण्डकाव्य के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए।


(iv) 'आलोक-वृत्त' खण्डकाव्य के 'सप्तम सर्ग' का सार संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।

अथवा 'आलोक-वृत्त' खण्डकाव्य के आधार पर गांधीजी के चरित्र की


(v)विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। 'त्यागपथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।

अथवा 'त्यागपथी' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।


(vi) 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के 'अभिशाप सर्ग' की कथावस्तु लिखिए। अथवा 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। 


                           (खण्ड 'ख')

8. (क) दिए गए संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का ससंदर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए- 2+5=7 


संस्कृतसाहित्यस्य आदिकविः वाल्मीकिः, महर्षिव्यासः, कविकुलगुरुः कालिदासः अन्य च भास भारवि भवभूत्यादयो महाकवयः स्वकीयैः ग्रन्थरत्नैः अद्यापि पाठकानां हृदि विराजन्ते इयं भाषा अस्माभिः मातृसमं सम्माननीया वन्दनीया च यतो भारतमातुः स्वातन्त्र्यं गौरवं अखण्डत्वं सांस्कृतिकमेकत्वञ्च संस्कृतेनैव सुरक्षितुं शक्यन्ते । इयं संस्कृतभाषा सर्वासु भाषासु प्रचीनतमा श्रेष्ठा चास्ति। ततः सुष्ठुक्तम् 'भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती' इति।


उत्तर–       

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'संस्कृत दिग्दर्शिका' के 'संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्' नामक पाठ से उद्धृत हैं।


अनुवाद आज भी संस्कृत साहित्य के आदिकवि

वाल्मीकि, महर्षि व्यास, कविकुलगुरु कालिदास तथा भास, भारवि, भवभूति आदि अन्य महावि अपने ग्रन्ध-रत्नों के कारण पाठकों के हृदय में विराज रहे हैं।

हमारे लिए यह भाषा माता के सदृश सम्माननीय तथा वन्दनीय है, क्योंकि संस्कृत के द्वारा ही भारतमाता की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा, अखण्डता तथा सांस्कृतिक एकता सुरक्षित रह सकती है।

यह संस्कृत भाषा समस्त भाषाओं में सबसे प्राचीन एवं श्रेष्ठ है। अतः ठीक ही कहा गया है- "देव भाषा (संस्कृत) सभी भाषाओं में प्रधान, मधुर एवं दिव्य है । "

         

                         अथवा


महापुरुषाः लौकिक प्रलोभनेषु वद्धाः नियतलक्ष्यान्त कदापि भ्रश्यन्ति । देशसेवानुरक्तोऽयं युवा उच्चन्यायालयस्य परिधी स्थातुं नाशक्नोत् । पण्डितमोतीलाल नेहरू- लालालाजपरायप्रभृतिभिः अन्यैः राष्ट्रनायकैः सह सोऽपि देशस्य स्वतन्त्रतासङग्रामेऽवतीर्णः देहल्यां त्रयोविंशतितमे कांग्रेसस्याधिवेशनेऽयम् अध्यक्षपदमलङ्कृतवान्। 'रोलट एक्ट' इत्याख्यस्य विरोधेऽस्य ओजस्विभाषणं श्रुत्वा आङ्ग्लशासकाः भीता: जाताः। बहुवार कारागारे निक्षिप्तोऽपि अयं वीरं देशसेवाब्रतं नात्यजात्।


(ख) दिए गए श्लोकों में से किसी एक का ससंदर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए- 


सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।

सुखार्थी वा त्यजेद विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम्।।


उत्तर –सुखार्थिनः कुतोविद्या श्लोकार्थ-

सुख चाहने वाले यानि मेहनत से जी चुराने वालों को विद्या कहाँ मिल सकती है और विद्यार्थी को सुख यानि आराम नहीं मिल सकता। सुख की चाहत रखने वाले को विद्या का और विद्या पाने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए |


अथवा


काव्य-शास्त्र- विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्।

व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन था।। 


9.निम्नलिखित मुहावरों एवं लोकोक्तियों में से किसी

एक का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए-


(i) आँखों का तारा होना  (ii) नौ-दो ग्यारह होना


(iii) घर फूँक तमाशा देखना (iv) लाल-पीला होना


10. (क) निम्नलिखित शब्दों के सन्धि-विच्छेद के सही विकल्प का चयन कीजिए-


(i) महर्षि का सन्धि-विच्छेद है-


(क) मह + र्षि: 


(ख) म + हर्षिः


(ग) महा + ऋषिः


(घ) महा + रिषिः


 (ii) 'विद्यालयः' का सन्धि-विच्छेद है-


(क) विद्या + लयः


(ख) विद्य + आलय:


(ग) विद्या + आलय:


 (घ) विद्या + यालय:


 (iii) 'मध्वरि' का सन्धि-विच्छेद है-


(क) मधु + अरि     (ग) म + ध्वरिः


(ख) मधु + वरि:    (घ) मध्व + रि:


(ख) निम्नलिखित शब्दों की 'विभक्ति' और 'वचन' के अनुसार चयन कीजिए- आत्मनो:' में विभक्ति और वचन है-


(क) सप्तमी, द्विवचन    (ग) पंचमी, बहुवचन


(ख) षष्ठी, बहुवचन      (घ) प्रथमा, द्विवचन


(ii) 'नामनी' में विभक्ति और वचन है-


(क) चतुर्थी, एकवचन    (ख) प्रथमा, द्विवचन


(ग) पंचमी, एकवचन    (घ) षष्ठी, बहुवचन 


11. (क) निम्नलिखित शब्द-युग्मों का सही अर्थ चयन करके लिखिए-


(i) पुरुष-परुष-


(क) नर और नारी 


(ख) आदमी और फरसा


(ग) पुरुष और पैसा


(घ) आदमी और कठोर


(ii) जलज-जलद-


(क) बादल और कमल


(ख) कमल और बादल


(ग) कमल और तालाब


(घ) तालाब और कमल


(ख) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो अर्थ लिखिए- 1+1=2


(i) कर


(ii) कनक


(iii) अम्बर


(ग) निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द का चयन करके लिखिए-


(i) जिसकी सीमा न हो- 


(क) सीमांत


(ख) असीम


(ग) ससीम


 (घ) सीमारहित


(ii) जिसके शत्रु का जन्म ही न हुआ हो-


(क) अजातशत्रु


 (ख) शत्रुहीन 


(ग) मित्रवान 


(घ) श्रेष्ठ मनुष्य


(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए-1+1=2


(i) मेरे को विद्यालय जाना है। 


(ii) उनके अनेकों नाम हैं।


(ii) वह दंड देने योग्य है।


(iv) यहाँ शुद्ध गाय का दूध मिलता है।


12. (क) 'हास्य' रस अथवा 'शान्त' रस के स्थायी भाव के साथ उनकी परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।1+1=2


(ख) 'रूपक' अलंकार अथवा 'उत्प्रेक्षा' अलंकार का लक्षण उदाहरण सहित लिखिए। 1+1=2


उत्तरउत्प्रेक्षा अलंकार


परिभाषा – जब उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपनेय में उपमान सम्भावना व्यक्त की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें प्रायः मनु, मानो, मनो, मनहुँ, जनु, जानो, निश्चय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। 


उदाहरण

(1) सोहत आईपी-पट स्याम सलोने गात। 

मनहुँ नीलमणि सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।।


(ग) 'सोरठा' अथवा 'दोहा' छन्द का लक्षण एवं उदाहरण लिखिए।1+1=2


13. अपने मुहल्ले में गन्दगी की सफाई कराने हेतु नगरपालिका अध्यक्ष को एक शिकायती पत्र लिखिए।

2+4=6


सेवा में



         श्री मान नगरपालिका अध्यक्ष 

              (अपने नगर पालिका का नाम)

          (जिला और प्रदेश का नाम)


महोदय,


        श्री मान मेरा नाम राम सिंह पिता का नाम रघुवीर सिंह है , मैं आपके गांव के वार्ड नं 4 का निवासी हूं, मैं आपका ध्यान हमारे वार्ड नं 4 में फैली हुई गन्दगी की ओर आकर्षित करवाना चाहता हूं। हमारे वार्ड की सड़के टूट गई है जिनमे बरसात का पानी जमा होता है जिसमे मलेरिया, डेंगू के मच्छर पल रहे हैं,हमारे यहां की नालियां पिछले 4 महीनों से साफ नही हुई है। श्री मान यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो मच्छरों की वजह से अपने गांव में डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया जैसे अनेकों महामारी फैलने की आसंका है।

        अत: श्री मान जी से निवेदन है कि हमारी समस्या को गंभीरता से और समस्या को जल्द से जल्द सही करवाने की कृपा करें तो महान दया होगी।


तारीख



                                      भवदीय


                        समस्त वार्डवासी (वार्ड नं 04)


अथवा


अपना कुटीर उद्योग प्रारम्भ करने हेतु किसी बैंक के बैंक प्रबन्धक को - ऋण प्रदान करने हेतु एक पत्र लिखिए।


14. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा-शैली में निबन्ध लिखिए- 2+7=9


(i) मेरा प्रिय कवि


(ii) स्वच्छता-अभियान की सामाजिक सार्थकता


(iii) पर्यावरण-प्रदूषण : समस्या और समाधान


(iv) आतंकवाद : समस्या और समाधान


(v) जनसंख्या वृद्धि की समस्या


उत्तर (iii) पर्यावरण-प्रदूषण : समस्या और समाधान


रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) प्रदूषण का अर्थ, (3) प्रदूषण के प्रकार, (4) प्रदूषण की समस्या तथा इससे हानियाँ, (5) समस्या का समाधान, (6) उपसंहार।


प्रस्तावना—आज का मानव औद्योगीकरण के जंजाल में फँसकर स्वयं भी मशीन का एक ऐसा निर्जीव पुर्जा बनकर रह गया है कि वह अपने पर्यावरण की शुद्धता का ध्यान भी न रख सका। अब एक और नयी समस्या उत्पन्न हो गयी है वह है प्रदूषण की समस्या। इस समस्या की ओर आजकल सभी देशों का ध्यान केन्द्रित है। इस समय हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण को बचाने की है; क्योंकि पानी, हवा, जंगल, मिट्टी आदि सब-कुछ प्रदूषित हो चुका है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण का महत्त्व बताया जाना चाहिए; क्योंकि यही हमारे अस्तित्व का आधार है। यदि हमने इस असन्तुलन को दूर नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियाँ अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य होंगी और पता नहीं, तब मानव जीवन होगा भी या नहीं।


प्रदूषण का अर्थ– संतुलित वातावरण में ही जीवन का विकास सम्भव है।पर्यावरण का निर्माण प्रकृति के द्वारा किया गया है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त पर्यावरण जीवधारियों के अनुकूल होता है। जब वातावरण में कुछ हानिकारक घटक आ जाते हैं तो वे वातावरण का सन्तुलन बिगाड़कर उसको दूषित कर देते हैं। यह गन्दा वातावरण जीवधारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। इस प्रकार वातावरण के दूषित हो जाने को ही प्रदूषण कहते हैं। जनसंख्या की असाधारण वृद्धि और औद्योगिक प्रगति ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है। और आज इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि उससे मानवता के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया है।


प्रदूषण के प्रकार-आज के वातावरण में प्रदूषण इन रूपों में दिखाई देता है


(1.) वायु प्रदूषण–वायु जीवन का अनिवार्य स्रोत है। प्रत्येक प्राणी को स्वस्थ रूप से जीने के लिए शुद्ध वायु अर्थात् ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जिस कारण वायुमण्डल में इसकी विशेष अनुपात में उपस्थिति आवश्यक है। जीवधारी साँस द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। पेड़-पौधे कार्बन डाइ-ऑक्साइड ग्रहण कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इससे वायुमण्डल में शुद्धता बनी रहती है। आजकल वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस का सन्तुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदूषित हो गयी है।


(2.) जल प्रदूषण-जल को जीवन कहा जाता है और यह भी माना जाता है कि जल में ही सभी देवता निवास करते हैं। इसके बिना जीव-जन्तु और पेड़-पौधों का भी अस्तित्व नहीं है। फिर भी बड़े-बड़े नगरों के गन्दे नाले और सीवर नदियों में मिला दिये जाते हैं। कारखानों का सारा मैला बहकर नदियों के जल में आकर मिलता है। इससे जल प्रदूषित हो गया है और उससे भयानक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं, जिससे लोगों का जीवन ही खतरे में पड़ गया है।


(3.) ध्वनि प्रदूषण-ध्वनि प्रदूषण भी आज की नयी समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटर, कार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के रसायरन, मशीने तथा लाउडस्पीकर ध्वनि के सन्तुलन को बिगाड़कर ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति, तीव्र क्रोध, अनिद्रा एवं चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएँ तेजी से बढ़ रही हैं। 


(4.) रेडियोधर्मी प्रदूषण-आज के युग में वैज्ञानिक परीक्षणों का जोर है। परमाणु परीक्षण निरन्तर होते ही रहते हैं। इसके विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ सम्पूर्ण वायुमण्डल में फैल जाते हैं और अनेक प्रकार से जीवन को क्षति पहुँचाते हैं।


(5.) रासायनिक प्रदूषण-कारखानों से बहते हुए अपशिष्ट द्रव्यों के अलावा रोगनाशक तथा कीटनाशक दवाइयों से और रासायनिक खादों से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ पानी के साथ बहकर जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुँचाते हैं।


प्रदूषण की समस्या तथा इससे हानियाँ- बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगीकरण ने विश्व के सम्मुख प्रदूषण की समस्या पैदा कर दी है। कारखानों के धुएँ से, विषैले कचरे के बहाव से तथा जहरीली गैसों के रिसाव से आज मानव-जीवन समस्याग्रस्त हो गया है। इस प्रदूषण से मनुष्य जानलेवा बीमारियों  का शिकार हो रहा है। कोई अपंग होता है तो कोई बहरा, किसी की दृष्टि शक्ति नष्ट हो जाती है तो किसी का जीवन। विविध प्रकार की शारीरिक विकृतियाँ,मानसिक कमजोरी, असाध्य कैंसर व ज्वर इन सभी रोगों का मूल कारण विषैला वातावरण ही है।


समस्या का समाधान – वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है। दूसरी ओर, वृक्षों के अधिक कटान पर भी रोक लगायी जानी चाहिए। कारखाने और मशीनें लगाने की अनुमति उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए जो औद्योगिक कचरे और मशीनों के धुएँ को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था कर सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए कि वह परमाणु परीक्षणों को नियन्त्रित करने की दिशा में उचित कदम उठाए। तेज ध्वनि वाले वाहनों पर साइलेंसर आवश्यक रूप से लगाये जाने चाहिए तथा सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरों आदि के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाना चाहिए। जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए औद्योगिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि व्यर्थ पदार्थों एवं जल को उपचारित करके ही बाहर निकाला जाए तथा इनको जल-स्रोतों में मिलने से रोका जाना चाहिए।


उपसंहार–  प्रसन्नता की बात है कि भारत सरकार प्रदूषण की समस्या के प्रति जागरूक है। उसने 1974 ई० में 'जल-प्रदूषण निवारण अधिनियम लागू किया था। इसके अन्तर्गत एक 'केन्द्रीय बोर्ड' तथा प्रदेशों में प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड' गठित किये गये हैं। इसी प्रकार नये उद्योगों को लाइसेंस देने और वनों की कटाई रोकने की दिशा में कठोर नियम बनाये गये हैं। इस बात के भी प्रयास किये जा रहे हैं कि नये वन-क्षेत्र बनाये जाएँ और जन-सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। न्यायालय द्वारा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को महानगरों से बाहर ले जाने के आदेश दिये गये हैं। यदि जनता भी अपने ढंग से इन कार्यक्रमों में सक्रिय सहयोग दे और यह संकल्प ले कि जीवन में आने वाले प्रत्येक शुभ अवसर पर कम-से-कम एक वृक्ष अवश्य लगाएगी तो निश्चित ही हम प्रदूषण के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसको काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे।


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