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UP board class 12th General Hindi Half Yearly paper 2022-23// यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं सामान्य हिन्दी अर्द्धवार्षिक पेपर सॉल्यूशन

UP board class 12th General Hindi Half Yearly paper 2022-23// यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं सामान्य हिन्दी अर्द्धवार्षिक पेपर सॉल्यूशन

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UP board class 12th general Hindi half yearly paper

यूपी बोर्ड कक्षा-12 वीं सामान्य हिन्दी अर्ध्दवार्षिक पेपर सॉल्यूशन 2022-23

MP board class 12th general Hindi half yearly paper solution PDF download

             अर्द्ध वार्षिक परीक्षा

                        कक्षा 12


                    विषय  सामान्य हिन्दी



समय -3 घण्टे                         पूर्णांक - 100



नोट:- (1) सभी प्रश्नों को निर्देशानुसार हल कीजिए। (2) सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख निर्दिष्ट हैं।


                          खण्ड (क)


प्रश्न 1. निम्न प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर-पुस्तिका पर लिखिए


(क) गद्य विधा की संख्या है


(अ) तीन


(ब) सात


(स) ग्यारह


(द) पन्द्रह


उत्तर –(ब) सात


(ख) अष्टयाम' के रचयिता है


(अ) गोकुलनाथ 


(ब) बल्लभाचार्य 


(स) नाभादास 


(स) तुलसीदास


उत्तर –(स) नाभादास 


(ग) मोहन राकेश की रचना है


(अ) लहरों के राजहंस


(ब) बकलमखुद 


(स) तट की खोज


 (द) समय सारथी 


उत्तर –(अ) लहरों के राजहंस


(घ) सरदार पूर्ण सिंह किस युग के लेखक है


(अ) भारतेन्दु युग


(ब) द्विवेदी युग 


(स)छायावाद युग 


(द) छायावादोत्तर युग


उत्तर –(ब) द्विवेदी युग


(ड.) 'फोर्ट विलियम' कालेज कहाँ स्थित था


(अ) आगरा


(ब) मद्रास


(स) कलकत्ता


(द) पूना


उत्तर –(स) कलकत्ता


प्रश्न 2. (क) 'तारसप्तक' का प्रकाशन हुआ


(अ) सन् 1940 ई0


 (ब) सन् 1941 ई0 


(स) सन् 1943 ई0 


(द) सन् 1945 ई0


उत्तर –(स) सन् 1943 ई0 


(ख) विनय पत्रिका की भाषा या बोली है


(अ) अवधि


(ब) भोजपुरी


(स) ब्रज


(द) खड़ी बोली


उत्तर –(स) ब्रज


(ग) रीतिकाल का अन्य नाम है


(अ) स्वर्णकाल


(ब) उद्भवकाल


(स) श्रृंगारकाल 


(द) संक्रान्तिकाल


उत्तर –(स) श्रृंगारकाल


(घ) पन्त जी को किस रचना पर ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया है


(अ) लोकायतन


(ब) पल्लव


(स)चिदम्बरा


(द) वीणा


उत्तर –(स)चिदम्बरा


(ड) 'सांसद से सड़क तक कि कवि की रचना है


(अ) मुक्तिबोध


(ब) नागार्जुन


(स) धूमिल


(द) अज्ञेय


उत्तर –(स) धूमिल


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प्रश्न 3. दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 


मैनें बहुतों को रूप से पाते देखा था बहुतों को धन से और गुणों से भी बहुतों को पाते देखा था पर मानवता के आँगन में समर्पण और प्राप्ति का यह अद्भुत सौम्य स्वरूप आज अपनी ही आँखों देखा कि कोई अपनी पीड़ा से किसी को पायें और किसी का उत्सर्ग सदा किसी की पीड़ा के लिये ही सुरक्षित रहे।


(क) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।


उत्तर – प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक 'गद्य-गरिमा' में संकलित एवं प्रसिद्ध रिपोर्ताज और संस्मरण लेखक श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' द्वारा लिखित राबर्ट नर्सिंग होम में पाठ निबन्ध से अवतरित है।

पाठ का नाम- राबर्ट नर्सिंग होम में।

लेखक का नाम - श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ।


(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या - लेखक कहता है कि मैंने संसार में ऐसे बहुत-से व्यक्तियों को देखा है, जो अपनी विशिष्ट विशेषताओं से लोगों को अपना बना लेते हैं एवं अपार यश अर्जित करते हैं। कुछ लोग अपने रूप-सौन्दर्य द्वारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तो कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जिनके पास अपार धन होता है और वे उसके बल पर लोगों पर अपना प्रभाव जमाते हैं या दूसरों को आत्मीय बना लेते हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनमें कोई विशिष्ट गुण होता है और वे अपने गुणों द्वारा बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं; परन्तु आज लेखक ने एक ऐसी अद्भुत नारी को देखा, जिसने मानवता के लिए सर्वस्व समर्पित करके दूसरों की श्रद्धा और आदर को प्राप्त किया है।


 (ग) मानवता के आंगन में समर्पण का क्या अर्थ है ?


उत्तर –लेखक ने एक ऐसी अद्भुत नारी को देखा, जिसने मानवता के लिए सर्वस्व समर्पित करके दूसरों की श्रद्धा और आदर को प्राप्त किया है।


(घ) बहुत से लोगों में क्या-क्या देखा जाता है ?


उत्तर –मैंने संसार में ऐसे बहुत-से व्यक्तियों को देखा है, जो अपनी विशिष्ट विशेषताओं से लोगों को अपना बना लेते हैं एवं अपार यश अर्जित करते हैं। कुछ लोग अपने रूप-सौन्दर्य द्वारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तो कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जिनके पास अपार धन होता है और वे उसके बल पर लोगों पर अपना प्रभाव जमाते हैं या दूसरों को आत्मीय बना लेते हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनमें कोई विशिष्ट गुण होता है और वे अपने गुणों द्वारा बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं


4. निम्न लेखकों में से किसी एक का जीवन परिचय लिखिए।


(अ) वासुदेव शरण अग्रवाल 


(ब) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी 


उत्तर –आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय


जीवन परिचय – हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई० में बलिया जिले के दूबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता श्री अनमोल द्विवेदी ज्योतिष और संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे; अत: इन्हें ज्योतिष और संस्कृत की शिक्षा उत्तराधिकार में प्राप्त हुई। काशी जाकर इन्होंने संस्कृत-साहित्य और ज्योतिष का उच्च स्तरीय ज्ञान प्राप्त किया। इनकी प्रतिभा का विशेष विकास विश्वविख्यात संस्था शान्ति निकेतन में हुआ। वहाँ ये 11 वर्ष तक हिन्दी भवन के निदेशक के रूप में कार्य करते रहे। वहीं इनके विस्तृत अध्ययन और लेखन का कार्य प्रारम्भ हुआ। सन् 1949 ई० में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी०लिट्० की उपाधि से तथा सन् 1957 ई० में भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित किया। इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया तथा उत्तर प्रदेश सरकार की हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष रहे। तत्पश्चात् ये हिन्दी-साहित्य सम्मेलन प्रयाग के सभापति भी रहे। 19 मई, 1979 ई० को यह वयोवृद्ध साहित्यकार रुग्णता के कारण स्वर्ग सिधार गया।

रचनाएँ— आचार्य द्विवेदी का साहित्य बहुत विस्तृत है। इन्होंने अनेक विधाओं में उत्तम साहित्य की रचना की। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं


निबन्ध संग्रह- 'अशोक के फूल', 'कुटज', 'विचार प्रवाह', 'विचार और वितर्क', 'आलोक पर्व', 'कल्पलता'।


आलोचना - साहित्य–'सूरदास', 'कालिदास की लालित्य योजना', 'कबीर', 'साहित्य- सहचर', 'साहित्य का मर्म'।


इतिहास— 'हिन्दी साहित्य की भूमिका', 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल', - = 'हिन्दी-साहित्य' ।


उपन्यास–'बाणभट्ट की आत्मकथा', 'चारुचन्द्रलेख', 'पुनर्नवा' और म 'अनामदास का पोथा'।


सम्पादन– 'नाथ सिद्धों की बानियाँ', 'संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो', 'सन्देश रासक' ।


अनूदित रचनाएँ– 'प्रबन्ध चिन्तामणि', 'पुरातन प्रबन्ध संग्रह', 'प्रबन्धकोश' ३) 'विश्वपरिचय', 'लाल कनेर', 'मेरा बचपन' आदि।


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प्रश्न 5.निम्न पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसके नीचे लिखें प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


मैं नीर भरी दुःख की बदली! स्पन्दन में चिरं निस्पन्दन बसा, क्रन्दन में आहत विश्व हँसा, नयनों में दीपक से जलते पलकों में नर्झरिणी मचली।


(क) उपर्युक्त पद्यांश के पाठ और कवियित्री का नाम लिखिए


उत्तर – मैं नीर भरी दुःख की बदली लेखक महादेवी वर्मा।


 (ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।


उत्तर –'मैं नीर भरी दुख की बदली 'काव्य में महादेवी जी ने अपने पूरे जीवन की वेदना, पीड़ा को अभिव्यक्ति देकर एक नयी भावभूमि की स्थापना की है। महादेवी जी का जीवन मेघ से भरी हुई बदली के समान है। जिस प्रकार जल-कण से संघन होकर बादल वेदना से जम गया है ठीक उसी प्रकार महादेवी जी का भी जीवन है।


(ग) महादेवी जी ने अपने जीवन की तुलना किससे की है?


उत्तर –जीवन की तुलना बादल से की है


( घ) नीर भरी दुःख की बदली।" इस पंक्ति में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए


उत्तर – जिस प्रकार बादल मे पानी भरता है और बरस जाता है उसी प्रकार दुःख के बादल आते हैं और चले जाते है।


 (ड) कवयित्री के सदन से घायल संसार को किस प्रकार प्रसन्नता मिलती है?

उत्तर – 


प्रश्न 6. किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय देते हुए रचनाओं का उल्लेख कीजिए 


1. रामधारी सिंह दिनकर 

2. जयशंकर प्रसाद


उत्तर –जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उनका जन्म 1890 ई. में काशी के  'सुँघनी साहू' नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके यहाँ तम्बाकू का व्यापार होता था। उनके पिता देवीप्रसाद और पितामह शिवरत्न साहू थे। इनके पितामह परम शिवभक्त और दयालु थे। उनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य प्रेमी थे। प्रसाद जी का बचपन सुखमय था। बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थों की यात्राएँ कीं। यात्रा से लौटने के बाद पहले उनके पिता का और फिर चार वर्ष पश्चात् ही उनकी माता का निधन हो गया।

प्रसाद जी की शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण का प्रबन्ध उनके बड़े भाई शम्भूरत्न ने किया और क्वीन्स कॉलेज में उनका नाम लिखवाया, किन्तु उनका मन वहाँ न लगा। उन्होंने अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन स्वाध्याय से घर पर ही प्राप्त किया। उनमें बचपन से ही साहित्यानुराग था। वे साहित्यिक पुस्तकें पढ़ते और काव्य रचना करते रहे। पहले तो उनके भाई उनकी काव्य-रचना में बाधा डालते रहे, परन्तु जब उन्होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्य-रचना में अधिक लगता है, तब उन्होंने इसकी पूरी स्वतन्त्रता उन्हें दे दी। प्रसाद जी स्वतन्त्र रूप से काव्य-रचना के मार्ग पर बढ़ने लगे। इसी बीच उनके बड़े भाई शम्भूरन जी का निधन हो जाने से घर की स्थिति खराब हो गई। व्यापार भी नष्ट हो गया। पैतृक सम्पत्ति बेचने से कर्ज से मुक्ति तो मिली,


पर वे क्षय रोग का शिकार होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में 15 नवम्बर, 1937 को इस संसार से विदा हो गए।


रचनाएँ –  जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के स्वनाम धन्य रत्न हैं। उन्होंने काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है

'कामायनी' जैसे विश्वस्तरीय महाकाव्य की रचना करके प्रसादजी ने हिन्दी साहित्य को अमर कर दिया। कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई अद्वितीय रचनाओं का सृजन किया। नाटक के क्षेत्र में उनके अभिनव योगदान के फलस्वरूप नाटक विधा में 'प्रसाद युग' का सूत्रपात हुआ। विषय वस्तु एवं शिल्प की दृष्टि से उन्होंने नाटकों को नवीन दिशा दी। भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय भावना, भारत के अतीतकालीन गौरव आदि पर आधारित 'चन्द्रगुप्त', 'स्कन्दगुप्त' और 'ध्रुवस्वामिनी' जैसे प्रसाद-रचित नाटक विश्व स्तर के साहित्य में अपना बेजोड़ स्थान रखते हैं। काव्य के क्षेत्र में वे छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक कवि थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं


काव्य –  आँसू, कामायनी, चित्राधार, लहर और झरना।


 कहानी – आँधी, इन्द्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि।


उपन्यास – तितली, कंकाल और इरावती।


नाटक –  सज्जन, कल्याणी - परिणय, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, प्रायश्चित, जनमेजय का नागयज्ञ, विशाखा, ध्रुवस्वामिनी आदि।


निबन्ध काव्य-कला एवं अन्य निबन्ध।


भाषा-शैली –  प्रसाद जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है। भावमयता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग न के बराबर हुआ है। प्रसाद जी ने विचारात्मक, चित्रात्मक, भावात्मक, अनुसन्धानात्मक तथा इतिवृत्तात्मक शैली का प्रयोग किया है।


हिन्दी साहित्य में स्थान


युग प्रवर्तक साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने गद्य और काव्य दोनों ही विधाओं में रचना करके हिन्दी साहित्य को अत्यन्त समृद्ध किया है। 'कामायनी' महाकाव्य उनकी कालजयी कृति है, जो आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ रचना कही जा सकती है।


अपनी अनुभूति और गहन चिन्तन को उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। हिन्दी साहित्य में जयशंकर प्रसाद का स्थान सर्वोपरि है।


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प्रश्न 7. (क) पंचलाइट अथवा 'बहादुर' कहानी में से एक का सारांश लिखिए।


उत्तर'पंचलाइट'


फणीश्वरनाथ 'रेणु' जी हिन्दी-जगत् के सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। अनेक जन-आन्दोलनों से वे निकट से जुड़े रहे, इस कारण ग्रामीण अंचलों से उनका निकट का परिचय है। उन्होंने अपने पात्रों की कल्पना किसी कॉफी हाउस में बैठकर नहीं की अपितु वे स्वयं अपने पात्रों के बीच रहे हैं। बिहार के अंचलों के सजीव चित्र इनकी कथाओं के अलंकार हैं। 'पंचलाइट' भी बिहार के आंचलिक परिवेश की कहानी है। शीर्षक कथा का केन्द्रबिन्दु है। शीर्षक को पढ़कर ही पाठक कहानी को पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाता है।


इस कहानी के द्वारा 'रेणु' जी ने ग्रामीण अंचल का वास्तविक चित्र खींचा है। गोधन के द्वारा पेट्रोमैक्स जला देने पर उसकी सभी गलतियाँ माफ कर दी जाती हैं; उस पर लगे सारे प्रतिबन्ध हट जाते हैं तथा उसे मनोनुकूल आचरण की छूट भी मिल जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि आवश्यकता बड़े-से-बड़े रूढ़िगत संस्कार और परम्परा को व्यर्थ साबित कर देती है। कथानक संक्षिप्त रोचक, सरल, मनोवैज्ञानिक और यथार्थवादी है। इसी केन्द्रीय भाव के आधार पर कहानी के एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य को स्पष्ट किया गया है।


इस प्रकार 'पंचलाइट' जलाने की समस्या और उसके समाधान के माध्यम से कहानीकार ने ग्रामीण मनोविज्ञान का सजीव चित्र उपस्थित कर दिया है। ग्रामवासी जाति के आधार पर किस प्रकार टोलियों में विभक्त हो जाते हैं और आपस में ईर्ष्या-द्वेष युक्त भावों से भरे रहते हैं, इसका बड़ा ही सजीव चित्रण इस कहानी में हुआ है। रेणु जी ने यह भी दर्शाया है कि भौतिक विकास के इस आधुनिक युग में भी भारतीय गाँव और कुछ जातियाँ कितने अधिक पिछड़े हुए हैं। कहानी के माध्यम से 'रेणु' जी ने अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम-सुधार की प्रेरणा भी दी है।


(ख) 'मुक्तियज्ञ' खण्ड काव्य के आधार पर गाँधी जी का चरित्र-चित्रण लिखिए। 5 


अथवा अपनी पठित खण्ड काव्य के आधार पर किसी एक महत्वपूर्ण घटना का संक्षेप में वर्णन कीजिए।


प्रश्न 8. निम्न संस्कृत गद्यांश का संदर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए। 


(क) महापुरुषाः लौकिक प्रलोभनेषु बद्धाः नियत लक्ष्यान्त कदापि भ्रश्यन्ति । देश सेवानुरक्तोडय युवा उच्चन्यायालययस्य परिषी स्थातुं नाशक्नोति । पण्डितमोलीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय प्रभूतिभिः अन्यैः राष्ट्रनायकैः सह सोऽपि देशस्य स्वतन्त्रता सङ् ग्रामेऽतीर्णः । 


(ख) इयमेव भाषा सर्वासामार्थभाषाणां जननीति मन्यते भाषातत्वविदिनः। संस्कृतस्य गौरवबहुविधज्ञानसत्व व्यापकत्वं च न कस्यापि दृष्टेविषयः संस्कृतस्य गौरवमेव दृष्टिपथ मानीयसम्यमुक्तमाचार्य प्रवरेण दण्डिना संस्कृतं नाम देवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः ।


उत्तर – भारतीय संस्कृत की जननी पाठ से लिया गया है।

उत्तर –भाषाविदों का मानना ​​है कि यह भाषा सभी अर्थपूर्ण भाषाओं की जननी है। संस्कृत की महिमा, उसका बहुआयामी ज्ञान और उसकी व्यापकता किसी की दृष्टि का विषय नहीं है।संस्कृत की महिमा ही दर्शन का मार्ग है।


प्रश्न 9 निम्न संस्कृत पद्याश का हिन्दी में सन्दर्भ सहित अर्थ लिखिए। 


(क) जयन्ति ते महाभागा जन-सेवा-परायणः ।

जरामृत्युभयं नास्ति येषां कीर्तितनोः क्वचित् ॥


उत्तर –वे बहुत भाग्यशाली हैं और लोगों की सेवा के लिए समर्पित हैं। जिनके देह की ख्याति कभी बुढ़ापे या मृत्यु से नहीं डरती

अथवा


(ख) उदेति संविता ताम्रस्ताम्र एवास्तमेति च ।

सम्पत्ती च विपत्ती च महतामेकरूपता ।।


प्रश्न 10. निम्न मुहावरों और लोकोक्तियों में से किसी एक का अर्थ लिखकर अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए


(क) थोथा चना बाजे घना


(ख) दाल में काला होना।


(ग) शौकीन बुढ़िया घटाई का लहँगा। 


(घ) अपनी खिचड़ी अलग पकाना। 


प्रश्न11 (क) निम्न शब्दों के सन्धि-विच्छेद के सही विकल्प चुनकर लिखिए। 


 (अ) 'शयनम्' का सन्धि-विच्छेद हैः।


1. श + अयनम्


2. शय + यनम्


3. शे + अनम्


 4. शय+ नम्


(ब) 'ज्ञानोपदेश:' का सन्धि विच्छेद है।


1. ज्ञान + उपदेशः


2. ज्ञानो + देश: 


3. ज्ञानो + पदेशः


 4. ज्ञाने + देशः


उत्तर –1. ज्ञान + उपदेशः


(स) 'परमार्थ' का सन्धि विच्छेद है।


1. पर + मार्थ:


 2. परम्+ अर्थः


 3. परमा + अर्थ


 4. परम + अर्थः


उत्तर –4. परम + अर्थः


 (ख) निम्न शब्दों की दिभक्ति और वचन के सही विकल्प को चुनकर लिखिए।


(अ) 'आत्मसु' शब्द के विभक्ति और वचन है 


1. षष्ठी, एकवचन


 2. सप्तमी बहुवचन 


3. चतुर्थी द्विवचन 


4. इनमें से कोई नही


(ब) 'नाम्ना' में वचन और विभक्ति है


• द्वितीया बहुवचन


1.द्विवचन 2. तृतीया एकवचन 3. षष्ठी द्विवचन 4. चतुर्थी प्रश्न 


12. (क) निम्न शब्द युग्मों का सह अर्थ चुनकर लिखिए


अ) नीर-नीड


ब) अम्बुज-अम्बुद


स) अन्त- अन्त्य


(ख) निम्न दो शब्दों के सही अर्थ लिखिए। उदधि, अनन्त, मृद्रा, वर्ण


(ग) निम्नलिखित में दो वाक्यांशों के लिए एक 'शब्द' का चयन करके लिखिए। 


अ) जिसका कोई शत्रु न हो। 


ब) जिसकी कोई उपमा न हो ।


 स) जंगल की अग्नि


 द) जो कभी जल न ले।


(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए


 अ) मैं भोजन कर लिया हूँ। 


ब) गुलाब का फूल लाल रंग का होता है।


 (स) मुझे चाय का गर्म प्याला दो। 


द) वह कुर्सी पर बैठा है।


प्रश्न 13. (क) करूण' अथवा 'शान्त' रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।


उत्तर –करुण रस


परिभाषा-करुण रस का स्थायी भाव शोक है। शोक नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है। 


उदाहरण मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन सा पटक रही थी शीश। अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश ॥ श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता के विलाप का यह उदाहरण करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।


 (ख) 'यमक' अथवा 'उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।


उत्तर –उत्प्रेक्षा अलंकार


परिभाषा – जब उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपनेय में उपमान सम्भावना व्यक्त की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें प्रायः मनु, मानो, मनो, मनहुँ, जनु, जानो, निश्चय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। 


उदाहरण


(1) सोहत आईपी-पट स्याम सलोने गात। 

मनहुँ नीलमणि सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।।


(ग) दोहा' अथवा 'कुण्डलिया छन्द की परिभाषा एवं उदाहरण लिखिए।


प्रश्न 14 स्टेशनरी की दुकान खोलने के लिये किसी बैंक के शाखा प्रबन्धक को एक आवेदन-पत्र लिखिए जिसमें ऋण की मांग की गई हो।


अथवा 'मनरेगा' में हो रही अनियमिताओं के विषय में जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए। 


प्रश्न 15 निम्न विषयों में से किसी एक विषय पर अपनी भाषा-शैली में निबन्ध लिखिए।


1. कोरोना- एक वैश्विक चुनौती 


2. कृषक जीवन की त्रासदी


3. प्रदूषण समस्या और समाधान 


रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) प्रदूषण का अर्थ, (3) प्रदूषण के प्रकार, (4) प्रदूषण की समस्या तथा इससे हानियाँ, (5) समस्या का समाधान, (6) उपसंहार


प्रस्तावना—आज का मानव औद्योगीकरण के जंजाल में फँसकर स्वयं भी मशीन का एक ऐसा निर्जीव पुर्जा बनकर रह गया है कि वह अपने पर्यावरण की शुद्धता का ध्यान भी न रख सका। अब एक और नयी समस्या उत्पन्न हो गयी है


वह है प्रदूषण की समस्या। इस समस्या की ओर आजकल सभी देशों का ध्यान केन्द्रित है। इस समय हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण को बचाने की है; क्योंकि पानी, हवा, जंगल, मिट्टी आदि सब-कुछ प्रदूषित हो चुका है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण का महत्त्व बताया जाना चाहिए; क्योंकि यही हमारे अस्तित्व का आधार है। यदि हमने इस असन्तुलन को दूर नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियाँ अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य होंगी और पता नहीं, तब मानव जीवन होगा भी या नहीं।


प्रदूषण का अर्थ– संतुलित वातावरण में ही जीवन का विकास सम्भव है।पर्यावरण का निर्माण प्रकृति के द्वारा किया गया है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त पर्यावरण जीवधारियों के अनुकूल होता है। जब वातावरण में कुछ हानिकारक घटक आ जाते हैं तो वे वातावरण का सन्तुलन बिगाड़कर उसको दूषित कर देते हैं। यह गन्दा वातावरण जीवधारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। इस प्रकार वातावरण के दूषित हो जाने को ही प्रदूषण कहते हैं। जनसंख्या की असाधारण वृद्धि और औद्योगिक प्रगति ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है। और आज इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि उससे मानवता के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया है।


प्रदूषण के प्रकार-आज के वातावरण में प्रदूषण इन रूपों में दिखाई देता है—


(1.) वायु प्रदूषण–वायु जीवन का अनिवार्य स्रोत है। प्रत्येक प्राणी को स्वस्थ रूप से जीने के लिए शुद्ध वायु अर्थात् ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जिस कारण वायुमण्डल में इसकी विशेष अनुपात में उपस्थिति आवश्यक है। जीवधारी साँस द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। पेड़-पौधे कार्बन डाइ-ऑक्साइड ग्रहण कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इससे वायुमण्डल में शुद्धता बनी रहती है। आजकल वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस का सन्तुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदूषित हो गयी है।


(2.) जल प्रदूषण-जल को जीवन कहा जाता है और यह भी माना जाता है कि जल में ही सभी देवता निवास करते हैं। इसके बिना जीव-जन्तु और पेड़-पौधों का भी अस्तित्व नहीं है। फिर भी बड़े-बड़े नगरों के गन्दे नाले और सीवर नदियों में मिला दिये जाते हैं। कारखानों का सारा मैला बहकर नदियों के जल में आकर मिलता है। इससे जल प्रदूषित हो गया है और उससे भयानक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं, जिससे लोगों का जीवन ही खतरे में पड़ गया है।


(3.) ध्वनि प्रदूषण-ध्वनि प्रदूषण भी आज की नयी समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटर, कार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के रसायरन, मशीने तथा लाउडस्पीकर ध्वनि के सन्तुलन को बिगाड़कर ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति, तीव्र क्रोध, अनिद्रा एवं चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएँ तेजी से बढ़ रही हैं। 


(4.) रेडियोधर्मी प्रदूषण-आज के युग में वैज्ञानिक परीक्षणों का जोर है। परमाणु परीक्षण निरन्तर होते ही रहते हैं। इसके विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ सम्पूर्ण वायुमण्डल में फैल जाते हैं और अनेक प्रकार से जीवन को क्षति पहुँचाते हैं।


(5.) रासायनिक प्रदूषण-कारखानों से बहते हुए अपशिष्ट द्रव्यों के अलावा रोगनाशक तथा कीटनाशक दवाइयों से और रासायनिक खादों से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ पानी के साथ बहकर जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुँचाते हैं।


प्रदूषण की समस्या तथा इससे हानियाँ- बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगीकरण ने विश्व के सम्मुख प्रदूषण की समस्या पैदा कर दी है। कारखानों के धुएँ से, विषैले कचरे के बहाव से तथा जहरीली गैसों के रिसाव से आज मानव-जीवन समस्याग्रस्त हो गया है। इस प्रदूषण से मनुष्य जानलेवा बीमारियों  का शिकार हो रहा है। कोई अपंग होता है तो कोई बहरा, किसी की दृष्टि शक्ति नष्ट हो जाती है तो किसी का जीवन। विविध प्रकार की शारीरिक विकृतियाँ,मानसिक कमजोरी, असाध्य कैंसर व ज्वर इन सभी रोगों का मूल कारण विषैला वातावरण ही है।


समस्या का समाधान – वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है। दूसरी ओर, वृक्षों के अधिक कटान पर भी रोक लगायी जानी चाहिए। कारखाने और मशीनें लगाने की अनुमति उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए जो औद्योगिक कचरे और मशीनों के धुएँ को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था कर सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए कि वह परमाणु परीक्षणों को नियन्त्रित करने की दिशा में उचित कदम उठाए। तेज ध्वनि वाले वाहनों पर साइलेंसर आवश्यक रूप से लगाये जाने चाहिए तथा सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरों आदि के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाना चाहिए। जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए औद्योगिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि व्यर्थ पदार्थों एवं जल को उपचारित करके ही बाहर निकाला जाए तथा इनको जल-स्रोतों में मिलने से रोका जाना चाहिए।


उपसंहार–  प्रसन्नता की बात है कि भारत सरकार प्रदूषण की समस्या के प्रति जागरूक है। उसने 1974 ई० में 'जल-प्रदूषण निवारण अधिनियम लागू किया था। इसके अन्तर्गत एक 'केन्द्रीय बोर्ड' तथा प्रदेशों में प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड' गठित किये गये हैं। इसी प्रकार नये उद्योगों को लाइसेंस देने और वनों की कटाई रोकने की दिशा में कठोर नियम बनाये गये हैं। इस बात के भी प्रयास किये जा रहे हैं कि नये वन-क्षेत्र बनाये जाएँ और जन-सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। न्यायालय द्वारा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को महानगरों से बाहर ले जाने के आदेश दिये गये हैं। यदि जनता भी अपने ढंग से इन कार्यक्रमों में सक्रिय सहयोग दे और यह संकल्प ले कि जीवन में आने वाले प्रत्येक शुभ अवसर पर कम-से-कम एक वृक्ष अवश्य लगाएगी तो निश्चित ही हम प्रदूषण के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसको काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे।



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