UP board class 12th Hindi half yearly paper solution 2022// यूपी बोर्ड कक्षा 12 वीं हिंदी अर्ध्दवार्षिक पेपर
अर्द्धवार्षिक परीक्षा पेपर 2022–23
कक्षा-12 वी
विषय - सामान्य हिन्दी
कोड.MVP
समय: 3:15घंटे पूर्णांक : 100
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. क) 'अष्टायाम' के रचयिता है
(अ) गोकुलनाथ
(ब) वल्लभाचार्य
(स) नाभादास
(द) तुलसीदास
उत्तर – (स) नाभादास
(ख) सदल मिश्र की रचना है
(अ) प्रेम सागर
(ब)नासिकेतोपाख्यान
(स) सुखसागर
(द) उदयभान चरित
उत्तर –(ब)नासिकेतोपाख्यान
(ग) राहुल सांकृत्यायन का वास्तविक नाम है
(अ) सुदामा प्रसाद पाण्डेय
(ब) वासुदेव सिंह
(स) वैद्यनाथ सिंह
(द) केदारनाथ पाण्डेय,
उत्तर– (द) केदारनाथ पाण्डेय,
(घ) 'तार सप्तक' के सम्पादक है
(अ) दिनकर
(ब) अज्ञेय
(स) निराला
(द) मुक्तिबोध
उत्तर –(ब) अज्ञेय
(ङ) 'वोल्गा से गंगा' के लेखक कौन है?
(अ) मुंशी प्रेमचन्द
(ब) जैनेन्द्र कुमार
(स) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(द) राहुल सांकृत्यायन
उत्तर –(द) राहुल सांकृत्यायन
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2. (क) 'जायसी का पदमावत' किस भाषा में लिखा गया है?
(अ) ब्रजभाषा
(ब) अवधी
(स) खड़ीबोली
(द) फारसी
उत्तर – (ब) अवधी
(ख) 'रीतिकाल' का अन्य नाम है
(अ) स्वर्णकाल
(ब) उदभव काल
(स) श्रृंगार काल
(द) संक्रान्ति काल
उत्तर –(स) श्रृंगार काल
(ग) विनय पत्रिका' किस भाषा की कृति है?
(अ) अवधी
(ब) मैथिली
(स) खड़ीबोली
(द) व्रज
उत्तर – (द) व्रज
घ) आधुनिक युग की मीरा है
(अ) महादेवी वर्मा
(ब) सुभद्रा कुमारी चौहान
(स) सुमित्रा कुमारी चौहान
(द.) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (अ) महादेवी वर्मा
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(ङ) 'कठिन काव्य का प्रेत' कहा जाता है
(अ) घनानन्द को
(ख) भूषण को
(स) केशव को
( द) पदमाकर को
उत्तर –(स) केशव को
3. दिए गए गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
पुष्पित अशोक को देखकर मेरा मन उदास हो जाता है। इसलिए नहीं कि सुन्दर वस्तुओं को हतभाग्य समझने में मुझे कोई विशेष रस मिलता है कुछ लोगों को मिलता है'। वे बहुत दूरदर्शी होते हैं जो भी सामने पड़ गया। उसके जीवनके अन्तिम मुहूर्त तक का हिसाब वे लोग लेते है। मेरी दृष्टि इतनी दूर तक नहीं जाती । फिर भी मेरा मन इस फूल को देखकर उदास हो जाता है। असली कारण तो मेरे अन्तर्यामी ही जानते होंगे। कुछ थोड़ा-सा मैं भी अनुमान कर सकता हूँ। उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
क) प्रस्तुत गद्यांश के नेखक व पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर – पाठ का नाम – अशोक के फूल
लेखक – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ख) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्वयं के विषय में क्या कहा है?
उत्तर –लेखक ने स्वयं को अन्य लोगों से कम दूरदर्शी बताकर अपनी उदारता एवं महानता का परिचय दिया है। लेखक अशोक के फूल के सम्बन्ध में अपनी मनः स्थिति एवं सोच को स्पष्ट कर रहा है।
(ग) रेखांकित अंश कर व्याख्या कीजिए।
उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक बताना चाहता है कि संसार में सुन्दर वस्तुओं को दुर्भाग्यशाली या कम समय के लिए भाग्यवान समझकर ईष्र्यावश उससे आनन्द की प्राप्ति करने वाले लोगों की कमी नहीं है।
(घ) 'वे बहुत दूरदर्शी होते है' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –अत्यधिक जानकर
4. दिए गए पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे, नीले वितान के तले दीप बहु जागे ।. टकटकी लगाए नयन संरों के थे वे, परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे। उत्फुल्ल करौदी- कुंज वायु-रह-रहकर,करती थी सबको पुलक- पूर्ण मह-महकर।
वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी, प्रभु बोले गिरा, गम्भीर नीर निधि जैसी ।
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(क) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक तथा कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर – कैकेयी का अनुताप
लेखक – मैथिली शरण गुप्त
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर –व्याख्या भरत सहित अयोध्यावासियों के पंचवटी पहुँचने के पश्चात् रात्रि में श्रीराम की कुटिया के सामने सभा बैठाई गई, जिसे देख ऐसा आभास हो रहा था कि मानो आकाश रूपी मण्डप के नीचे बहुत से तारे रूपी दीपक जगमगा रहे हों, सभा में लिए जाने वाले महत्त्वपूर्ण निर्णय का परिणाम जानने के लिए उत्सुक देवतागण भी वहाँ । एकटक नजरें गड़ाए हुए थे। सभी इस बात को लेकर भयभीत थे कि कहीं भरत के । आगमन का श्रीराम कुछ और ही अर्थ निकालकर कोई कठोर निर्णय न कर लें।
वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम था। खिले हुए करौदे पुष्पों से भरे हुए । बगीचों से रह-रह कर आने वाली मन्द, शीतल व सुगन्धित पवन वहाँ उपस्थित लोगों को पुलकित कर रही थी वहाँ ऐसी मनोहर चाँदनी छिट रही थी, जिसका अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। वह सभा चन्द्रलोक-सी प्रतीत हो रही थी। अलौकिक दृश्यों से परिपूर्ण उस शान्त सभा में श्रीराम ने सागर सदृश अति गम्भीर स्वर में बोलना प्रारम्भ किया।
(ग) प्रस्तुत गद्यांश किस प्रसंग से सम्बन्धित है ?
उत्तर –प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में पंचवटी की प्राकृतिक छटा का मनोहरी वर्णन किया गया है। प्रकृति के सौन्दर्य का यह वर्णन उस क्षण का है जब यहाँ भरत सहित अयोध्या के वासियों को श्रीराम से भेंट करने हेतु रात्रि-सभा का आयोजन किया जाता है।
(घ) 'उत्फुल्ल्ल करौंदी कुंज वायु रह-रहकर पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
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5. निम्नलिखित में से किसी एक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचाओं का उल्लेख कीजिए।
(क) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ख) मैथिली शरण गुप्त
(ग) जयशंकर प्रसाद
उत्तर
(ख) मैथिली शरण गुप्त का साहित्यिक परिचय
गुप्त जी ने खड़ी बोली के स्वरूप के निर्धारण एवं विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। गुप्त जी की प्रारम्भिक रचनाओं में इतिवृत्त कथन की अधिकता है, किन्तु बाद की रचनाओं में लाक्षणिक वैचित्र्य एवं सूक्ष्म मनोभावों की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। गुप्त जी ने अपनी रचनाओं में प्रबन्ध के अन्दर गीति-काव्य का समावेश कर उन्हें उत्कृष्टता प्रदान की है।
कृतियाँ (रचनाएँ)
गुप्त जी के लगभग 40 मौलिक काव्य ग्रन्थों में भारत-भारती (1912), रंग में भंग (1909), जयद्रथ वध, पंचवटी, झंकार, झंकार, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जय भारत, विष्णु प्रिया आदि उल्लेखनीय हैं।
भारत-भारती ने हिन्दी भाषियों में जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावना जगाई। 'रामचरितमानस' के पश्चात् हिन्दी में राम काव्य का दूसरा प्रसिद्ध उदाहरण 'साकेत' है। 'यशोधरा' और 'साकेत' मैथिलीशरण गुप्त ने दो नारी प्रधान काव्यों की रचना की।
भाषा-शैली
हिन्दी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में गुप्त जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। गुप्त जी की भाषा में माधुर्य भावों की तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सौन्दर्य अद्भुत है। वे गम्भीर विषयों को भी सुन्दर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। इनकी भाषा में लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों के प्रयोग से जीवन्तता आ गई है। गुप्त जी मूलतः प्रबन्धकार थे, लेकिन प्रबन्ध के साथ-साथ मुक्तक, गीति, गीति-नाट्य, नाटक आदि क्षेत्रों में भी उन्होंने अनेक सफल रचनाएँ की हैं। इनकीरचना 'पत्रावली' पत्र शैली में रचित नूतन काव्य शैली का नमूना है। इनकी शैली में गेयता, प्रवाहमयता एवं संगीतात्मकता विद्यमान है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
मौथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत रचनाओं के कारण हिन्दी साहित्य में इनका विशेष स्थान है। हिन्दी काव्य राष्ट्रीय भावों की पुनीत गंगा को बहाने का श्रेय गुप्त जी को ही है। अतः ये सच्चे अर्थों में लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं को भरकर उनमें जन-जागृति लाने वाले राष्ट्रकवि हैं। इनके काव्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।
6. 'पंचलाइट' अथवा 'ध्रुवयात्रा' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर –पंचलाइट
फणीश्वरनाथ 'रेणु' जी हिन्दी-जगत् के सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। अनेक जन-आन्दोलनों से वे निकट से जुड़े रहे, इस कारण ग्रामीण अंचलों से उनका निकट का परिचय है। उन्होंने अपने पात्रों की कल्पना किसी कॉफी हाउस में बैठकर नहीं की अपितु वे स्वयं अपने पात्रों के बीच रहे हैं। बिहार के अंचलों के सजीव चित्र इनकी कथाओं के अलंकार हैं। 'पंचलाइट' भी बिहार के आंचलिक परिवेश की कहानी है। शीर्षक कथा का केन्द्रबिन्दु है। शीर्षक को पढ़कर ही पाठक कहानी को पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाता है।
इस कहानी के द्वारा 'रेणु' जी ने ग्रामीण अंचल का वास्तविक चित्र खींचा है। गोधन के द्वारा पेट्रोमैक्स जला देने पर उसकी सभी गलतियाँ माफ कर दी जाती हैं; उस पर लगे सारे प्रतिबन्ध हट जाते हैं तथा उसे मनोनुकूल आचरण की छूट भी मिल जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि आवश्यकता बड़े-से-बड़े रूढ़िगत संस्कार और परम्परा को व्यर्थ साबित कर देती है। कथानक संक्षिप्त रोचक, सरल, मनोवैज्ञानिक और यथार्थवादी है। इसी केन्द्रीय भाव के आधार पर कहानी के एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य को स्पष्ट किया गया है।
इस प्रकार 'पंचलाइट' जलाने की समस्या और उसके समाधान के माध्यम से कहानीकार ने ग्रामीण मनोविज्ञान का सजीव चित्र उपस्थित कर दिया है। ग्रामवासी जाति के आधार पर किस प्रकार टोलियों में विभक्त हो जाते हैं और आपस में ईर्ष्या-द्वेष युक्त भावों से भरे रहते हैं, इसका बड़ा ही सजीव चित्रण इस कहानी में हुआ है। रेणु जी ने यह भी दर्शाया है कि भौतिक विकास के इस आधुनिक युग में भी भारतीय गाँव और कुछ जातियाँ कितने अधिक पिछड़े हुए हैं। कहानी के माध्यम से 'रेणु' जी ने अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम-सुधार की प्रेरणा भी दी है।
7. आलोकवृत्त खण्डकाव्य के आधार पर पंचम अथवा षष्ठ सर्ग की कथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर –कविवर गुलाब खण्डेलवाल ने 'आलोक वृत्त ' खण्डकाव्य में महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व को चित्रित किया है। महात्मा गाँधी के चरित्र को हम प्रकाशस्वरूप कह सकते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने सद्गुणों एवं सद्विचारों से भारतीय संस्कृति की चेतना को प्रकाशित किया है। उन्होंने विश्व में सत्य, प्रेम, अहिंसा आदि भावनाओं का प्रकाश फैलाया।
8. (क) निम्नलिखित अवतरण का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
कवि कुल संस्कृत साहित्यस्य आदिकवि वाल्ल्मीकिः, महर्षिव्यासः, गुरू कालिदासः अन्ये च भास भारवि भवभत्यादयो महाकवयः स्वकीयैः ग्रन्थ रत्नैः अद्यापि पाठकानां हृदि विराजन्ते । इयं भाषा अस्माभिः मातृस सम्मानीया वन्दनीया च यतो भारतमातृः स्वातन्त्र्यं गौरवम्, अखण्डत्वं सांस्कृतिक मेत्वञ्च संस्कृतेनैव सुरक्षितुं शक्यते ।
उत्तर –सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘कविकुलगुरुः कालिदासः’ शीर्षक पाठ से उधृत है।
उत्तर – हिन्दी में अनुवाद कवि कुला वाल्मीकि, महर्षि व्यास, गुरु कालिदास जैसे संस्कृत साहित्य के अग्रणी कवि और भाषा भारवी भवभाती जैसे अन्य महान कवि आज भी अपने ग्रंथों के रत्नों से पाठकों के दिलों में चमकते हैं। इस भाषा का हमें एक माँ के रूप में सम्मान और पूजा करना है क्योंकि संस्कृत के माध्यम से ही भारत माता की स्वतंत्रता, गरिमा, अखंडता और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित किया जा सकता है।
(ख) दिए गए पद्यांश का सन्दर्भ सहित हिन्दी अनुवाद कीजिए।
न मे रोचते भदंवः उल्लूकस्याभिषेचनम् । अक्रुद्धस्य मुखं पश्य कथं क्रुद्धो भविष्यति ।।
9. निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से किसी एक का अर्थ लिखते हुए वाक्य प्रयोग कीजिए। 4
(क) अपना हाथ जगन्नाथ
उत्तर –यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति, धनी राम (नज़ीर हुसैन), के बारे में है जो कि एक कुलीन ख़ानदान का है पर पैसे का मारा है और जिसने अपने बेटे मदन (किशोर कुमार) को अच्छी तालीम दिलवाने के लिए अपना घर, बीवी के ज़ेवरात, अपनी इंश्योरेंस पॉलिसी इत्यादि सब गिरवी रखवा दिया है लेकिन वह अपने बेटे को किसी सरकारी नौकरी में देखना चाहता है।
(ख) अंगूठा दिखाना
उत्तर –अंगूठा दिखाने का अर्थ होता है साफ साफ मना कर देना । इसका प्रयोग इसलिए किया जाता है ताकि अगर कोई धोखा दे या फिर अपनी बात पूरी ना करें तो सीधा सीधा ना कहकर यह मुहावरा कह दिया जाता है ताकि सामने वाले व्यक्ति को समझ में आ जाए।
10. निम्नलिखित शब्दों के सन्धि-विच्छेद के सही विकल्प का चयन कीजए
(क) 'महोदय: ' का सन्धि-विच्छेद है
(अ) महो+उदयः
(ब) महा+उदयः
(स) महे-दय:
(द) यह उदयः
उत्तर –(ब) महा+उदयः
(ख) 'प्रत्युत्तरम्' का सन्धि-विच्छेद है
(अ) प्रत+उत्तरम्
(ब) प्रत+युत्तीरम्
(स) प्रत्युत्तरम्
(द) प्रति +उत्तरम्
उत्तर – (द) प्रति +उत्तरम्
11. अ) निम्नलिखित शब्द-युग्मों का सही अर्थ लिखिए।
(क) असित- अशित
(ख) परिताप- प्रताप
(ब) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक के दो अर्थ लिखिए।
(अ) गिरा
(ब) अकम्पा
(स) वाक्यांश के लिए एक शब्द लिखिए।
(क) अपनी इच्छा से दूसरों की सेवा करने वाला
उत्तर – स्वयं सेवक
(ख) समुद्र में लगने वाली आग
उत्तर –बड़वानल'
(द) निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए।
(क) केवल सौ रूपये मात्र की बात थी।
उत्तर –मात्र केवल सौ रुपए की बात थी
(ख) दो-दो चार होता है।
उत्तर – दो और दो का योग चार होता है
12. क) करूण अथवा हास्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए ।
उत्तर – करुण रस
परिभाषा-करुण रस का स्थायी भाव शोक है। शोक नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है।
उदाहरण
मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन सा पटक रही थी शीश। अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश ॥ श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता के विलाप का यह उदाहरण करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।
स्पष्टीकरण- 1. स्थायी भाव-शोक।
2. विभाव
(क) आलम्बन - श्रवण। आश्रय-पाठक।
(ख) उद्दीपन-दशरथ की उपस्थिति।
3. अनुभाव – सिर पटकना, प्रलाप करना आदि।
4. संचारी भाव-स्मृति, विषाद आदि।
ख) अनुप्रास अथवा रूपक अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर –रूपक अलंकार
परिभाषा जब उपमेय और उपमान में भेद होते हुए भी दोनों में अभिन्नता प्रकट की जाए और उपमेय को उपमान के रूप में दिखाया जाए, तो रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण
(i) चरण कमल बन्दौ हरिराई।
इस काव्य-पंक्ति में उपमेय 'चरण पर उपमान 'कमल' का आरोप कर दिया गया है। दोनों में अभिन्नता है, दोनों एक हैं। इस अभेदता के कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
13. किसी विद्यालय के प्रबन्धक के नाम हिन्दी प्रवक्ता पद के लिए अपनी नियुक्ति हेतु आवेदन-पत्र लिखिए।
14.निबन्ध
विज्ञान वरदान या अभिशाप
प्रमुख विचार-बिन्दु – (1) प्रस्तावना, (2) विज्ञान : वरदान के रूप में (i) यातायात के क्षेत्र में; (ii) संचार के क्षेत्र में; (iii) दैनन्दिन जीवन में; (iv) स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में; (v) औद्योगिक क्षेत्र में; (vi) कृषि के | क्षेत्र में; (vii) शिक्षा के क्षेत्र में; (viii) मनोरंजन के क्षेत्र में, (3) विज्ञान : | अभिशाप के रूप में, (4) उपसंहार।
प्रस्तावना- आज का युग वैज्ञानिक चमत्कारों का युग है। मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज विज्ञान ने आश्चर्यजनक क्रान्ति ला दी है। मानव-समाज की सारी गतिविधियाँ आज विज्ञान से परिचालित हैं। दुर्जेय प्रकृति पर विजय प्राप्त कर आज विज्ञान मानव का भाग्यविधाता बन बैठा है। अज्ञात रहस्यों की खोज में उसने आकाश की ऊँचाइयों से लेकर पाताल की गहराइयाँ तक नाप दी हैं। उसने हमारे जीवन को सब ओर से इतना प्रभावित कर दिया है कि विज्ञान-शून्य विश्व की आज कोई कल्पना तक नहीं कर सकता, किन्तु दूसरी ओर हम यह भी देखते हैं कि अनियन्त्रित वैज्ञानिक प्रगति ने मानव के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है। इस स्थिति में हमें सोचना पड़ता है कि विज्ञान को वरदान समझा जाए या अभिशाप । अतः इन दोनों पक्षों पर समन्वित दृष्टि से विचार करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना उचित होगा।
विज्ञान: वरदान के रूप में आधुनिक मानव का सम्पूर्ण पर्यावरण विज्ञान के वरदानों के आलोक से आलोकित है। प्रातः जागरण से लेकर रात के सोने तक के सभी क्रिया-कलाप विज्ञान द्वारा प्रदत्त साधनों के सहारे ही संचालित होते हैं। प्रकाश, पंखा, पानी, साबुन, गैस स्टोव, फ्रिज, कूलर, हीटर और यहाँ तक कि शीशा, कंघी से लेकर रिक्शा, साइकिल, स्कूटर, बस, कार, रेल, हवाई जहाज, टी०वी०, सिनेमा, रेडियो आदि जितने भी साधनों का हम अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं, वे सब विज्ञान के ही वरदान हैं। इसीलिए तो कहा जाता है कि आज का अभिनव मनुष्य विज्ञान के माध्यम से प्रकृति पर विजय पा चुका है
आज की दुनिया विचित्र नवीन,प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन। हैं बँधे नर के करों में वारि-विद्युत भाष,हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप । है नहीं बाकी कहीं व्यवधान,लाँघ सकता नर सरित-गिरि-सिन्धु एक समान ॥ विज्ञान के इन विविध वरदानों की उपयोगिता कुछ प्रमुख क्षेत्रों में निम्नलिखित
(1) यातायात के क्षेत्र में प्राचीन काल में मनुष्य को लम्बी यात्रा तय करने में वर्षों लग जाते थे, किन्तु आज रेल, मोटर, जलपोत, वायुयान आदि के आविष्कार से दूर-से-दूर स्थानों पर बहुत शीघ्र पहुँचा जा सकता है। यातायात और परिवहन की उन्नति से व्यापार की भी कायापलट हो गयी है। मानव केवल धरती ही नहीं, अपितु चन्द्रमा और मंगल जैसे दूरस्थ ग्रहों तक भी पहुँच गया है। अकाल, बाढ़, सूखा आदि प्राकृतिक विपत्तियों से पीड़ित व्यक्तियों की सहायता के लिए भी ये साधन बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इन्हीं के चलते आज सारा विश्व एक बाजार बन गया है।
(ii) संचार के क्षेत्र में-बेतार के तार ने संचार के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। आकाशवाणी, दूरदर्शन, तार, दूरभाष (टेलीफोन, मोबाइल फोन), दूरमुद्रक (टेलीप्रिण्टर, फैक्स) आदि की सहायता से कोई भी समाचार क्षण भर में विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाया जा सकता है। कृत्रिम उपग्रहों ने इस दिशा में और भी चमत्कार कर दिखाया है।
(iii) दैनन्दिन जीवन में विद्युत् के आविष्कार ने मनुष्य की दैनन्दिन सुख-सुविधाओं को बहुत बढ़ा दिया है। वह हमारे कपड़े धोती है, उन पर प्रेस करती है, खाना पकाती है, सर्दियों में गर्म जल और गर्मियों में शीतल जल उपलब्ध कराती है, गर्मी-सर्दी दोनों से समान रूप से हमारी रक्षा करती है। आज की समस्त औद्योगिक प्रगति इसी पर निर्भर है।
(iv) स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में -मानव को भयानक और संक्रामक रोगों से पर्याप्त सीमा तक बचाने का श्रेय विज्ञान को ही है। कैंसर, क्षय (टी०बी०), हृदय रोग एवं अनेक जटिल रोगों का इलाज विज्ञान द्वारा ही सम्भव हुआ है। एक्स-रे एवं अल्ट्रासाउण्ड टेस्ट, ऐन्जियोग्राफी, कैट या सीटी स्कैन आदि परीक्षणों के माध्यम से शरीर के अन्दर के रोगों का पता सरलतापूर्वक लगाया जा सकता है। भीषण रोगों के लिए आविष्कृत टीकों से इन रोगों की रोकथाम सम्भव हुई है। प्लास्टिक सर्जरी, ऑपरेशन, कृत्रिम अंगों का प्रत्यारोपण आदि उपायों से अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलायी जा रही है। यही नहीं, इससे नेत्रहीनों को नेत्र, कर्णहीनों को कान और अंगहीनों को अंग देना सम्भव हो सका है।
(v) औद्योगिक क्षेत्र में- भारी मशीनों के निर्माण ने बड़े-बड़े कल कारखानों को जन्म दिया है, जिससे श्रम, समय और धन की बचत के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में उत्पादन सम्भव हुआ है। इससे विशाल जनसमूह को आवश्यक वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर उपलब्ध करायी जा "सकी हैं।
(vi) कृषि के क्षेत्र में लगभग 121 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाला हमारा देश आज यदि कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो सका है, तो यह भी विज्ञान की ही देन है। विज्ञान ने किसान को उत्तम बीज, प्रौढ़ एवं विकसित तकनीक, रासायनिक खादें, कीटनाशक, ट्रैक्टर, ट्यूबवेल और बिजली प्रदान की है। छोटे-बड़े बाँधों का निर्माण कर नहरें निकालना भी विज्ञान से ही सम्भव हुआ है।
(vii) शिक्षा के क्षेत्र में मुद्रण-यन्त्रों के आविष्कार ने बड़ी संख्या में पुस्तकों का प्रकाशन सम्भव बनाया है, जिससे पुस्तकें सस्ते मूल्य पर मिल सकी हैं। इसके अतिरिक्त समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ आदि भी मुद्रण-क्षेत्र में हुई क्रान्ति के फलस्वरूप घर-घर पहुँचकर लोगों का ज्ञानवर्द्धन कर रही हैं। आकाशवाणी-दूरदर्शन आदि की सहायता से शिक्षा के प्रसार में बड़ी सहायता मिली है। कम्प्यूटर के विकास ने तो इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है।
(viii) मनोरंजन के क्षेत्र में चलचित्र, आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि के आविष्कार ने मनोरंजन को सस्ता और सुलभ बना दिया है। टेपरिकॉर्डर, वी०सी०आर०, वी०सी०डी० आदि ने इस दिशा में क्रान्ति ला दी है और मनुष्य को उच्चकोटि का मनोरंजन सुलभ कराया है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि मानव जीवन के लिए विज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई वरदान नहीं है।
विज्ञान अभिशाप के रूप में विज्ञान का एक और पक्ष भी है। विज्ञान एक असीम शक्ति प्रदान करने वाला तटस्थ साधन है। मानव चाहे जैसे इसका इस्तेमाल कर सकता है। सभी जानते हैं कि मनुष्य में दैवी प्रवृत्ति भी है और आसुरी प्रवृत्ति भी। सामान्य रूप से जब मनुष्य की दैवी प्रवृत्ति प्रबल रहती है तो वह मानव-कल्याण से कार्य किया करता है, परन्तु किसी भी समय मनुष्य की राक्षसी प्रवृत्ति प्रबल होते ही कल्याणकारी विज्ञान एकाएक प्रबलतम विध्वंस एवं संहारक शक्ति का रूप ग्रहण कर सकता है। इसका उदाहरण गत विश्वयुद्ध का वह दुर्भाग्यपूर्ण पल है, जब कि हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम-बम गिराया गया था। स्पष्ट है कि विज्ञान मानवमात्र के लिए सबसे बुरा अभिशाप भी सिद्ध हो सकता है। गत विश्वयुद्ध से लेकर अब तक मानव ने विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति की है; अतः कहा जा सकता है कि आज विज्ञान की विध्वंसक शक्ति । पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ गयी है।
विध्वंसक साधनों के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकार से भी विज्ञान ने मानव का अहित किया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथ्यात्मक होता है। इस दृष्टिकोण के विकसित हो जाने के परिणामस्वरूप मानव हृदय की कोमल भावनाओं एवं अटूट आस्थाओं को ठेस पहुँची है। विज्ञान ने भौतिकवादी प्रवृत्ति को प्रेरणा दी है, जिसके परिणामस्वरूप धर्म एवं अध्यात्म से सम्बन्धित विश्वास थोथे प्रतीत होने लगे हैं। मानव-जीवन के पारस्परिक सम्बन्ध भी कमजोर होने लगे हैं। अब मानव भौतिक लाभ के आधार पर ही सामाजिक सम्बन्धों को विकसित करता है।
जहाँ एक ओर विज्ञान ने मानव-जीवन को अनेक प्रकार की सुख-सुविधाएँ प्रदान की हैं वहीं दूसरी ओर विज्ञान के ही कारण मानव-जीवन अत्यधिक खतरों से परिपूर्ण तथा असुरक्षित भी हो गया है। कम्प्यूटर तथा दूसरी मशीनों ने यदि मानव को सुविधा के साधन उपलब्ध कराये हैं तो साथ-साथ रोजगार के अवसर भी छीन लिये हैं। विद्युत विज्ञान द्वारा प्रदत्त एक महान् देन है, परन्तु विद्युत का एक मामूली झटका ही व्यक्ति की इहलीला समाप्त कर सकता है। विज्ञान ने तरह-तरह के तीव्र गति वाले वाहन मानव को दिये हैं। इन्हीं वाहनों की आपसी टक्कर से प्रतिदिन हजारों व्यक्ति सड़क पर ही जान गँवा देते हैं। विज्ञान के दिन-प्रतिदिन होते जा रहे नवीन आविष्कारों के कारण मानव पर्यावरण असन्तुलन के दुश्चक्र में भी फँस चुका है। के
अधिक सुख-सुविधाओं के कारण मनुष्य आलसी और आरामतलब बनता जा रहा है, जिससे उसकी शारीरिक शक्ति का ह्रास हो रहा है और अनेक नये-नये रोग भी उत्पन्न हो रहे हैं। मानव में सर्दी और गर्मी सहने की क्षमता घट गयी है।
वाहनों की बढ़ती संख्या से सड़कें पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो रही हैं तो उनसे निकलने वाले ध्वनि प्रदूषक मनुष्य को स्नायु रोग वितरित कर रहे हैं। सड़क दुर्घटनाएँ तो मानो दिनचर्या का एक अंग हो चली हैं। विज्ञापनों ने प्राकृतिक सौन्दर्य को कुचल डाला है। चारों ओर का कृत्रिम आडम्बरयुक्त जीवन इस विज्ञान की ही देन है। औद्योगिक प्रगति ने पर्यावरण-प्रदूषण की विकट समस्या खड़ी कर दी है। साथ ही गैसों के रिसाव से अनेक व्यक्तियों के प्राण भी जा चुके हैं।
विज्ञान के इसी विनाशकारी रूप को दृष्टि में रखकर महाकवि दिनकर मानव को चेतावनी देते हुए कहते हैं
सावधान, मनुष्य! यदि विज्ञान है तलवार। तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार ॥ खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार । काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार ।।
उपसंहार–विज्ञान सचमुच तलवार है, जिससे व्यक्ति आत्मरक्षा भी कर सकता है और अनाड़ीपन में अपने अंग भी काट सकता है। इसमें दोष तलवार का नहीं, उसके प्रयोक्ता का है। विज्ञान ने मानव के सम्मुख असीमित विकास का मार्ग खोल दिया है, जिससे मनुष्य संसार से बेरोजगारी, भुखमरी, महामारी आदि को समूल नष्ट कर विश्व को अभूतपूर्व सुख-समृद्धि की ओर ले जा सकता है। अणु-शक्ति का कल्याणकारी कार्यों में उपयोग असीमित सम्भावनाओं का द्वार उन्मुक्त कर सकता है। बड़े-बड़े रेगिस्तानों को लहराते खेतों में बदलना, दुर्लंघ्य पर्वतों पर मार्ग बनाकर दूरस्थ अंचलों में बसे लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना, विशाल बाँधों का निर्माण एवं विद्युत उत्पादन आदि अगणित कार्यों में इसका उपयोग हो सकता है, किन्तु यह तभी सम्भव है, जब मनुष्य में आध्यात्मिक दृष्टि का विकास हो, मानव-कल्याण की सात्विक भावना जगे। अतः स्वयं मानव को ही यह निर्णय करना है कि वह विज्ञान को वरदान रहने दे या अभिशाप बना दे।
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