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UP board class 11th Education half yearly paper 2022-23// कक्षा 11 वीं शिक्षा शास्त्र अर्द्धवार्षिक पेपर

UP board class 11th Education half yearly paper 2022-23// कक्षा 11 वीं शिक्षा शास्त्र अर्द्धवार्षिक पेपर  

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UP board class 11th Education half yearly paper

                अर्द्धवार्षिक परीक्षा

                     कक्षा-11वी 


                  विषय –शिक्षा शास्त्र



                                            कोड.STSO

समय: 3.00 घंटे।                      पूर्णाक 100



बहुविकल्पीय प्रश्न


1. सही विकल्प छाँटकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए। 


(क) शिक्षा का उद्देश्य सुख प्राप्त करना है।" यह कथन किसका है


(अ) सुकरात को


(ब) प्लेटो का


(स) अरस्तू का


 (द) मिल्टन का


उतर –(स) अरस्तू का


(ख) समाजविहीन व्यक्ति कोरी कल्पना है। "यह कथन किसका है


(अ) टी० रेमण्ट का


(ब) हार्नी का


(स) टी० पी० नन का


(द) हरबर्ट स्पेन्सर का


(ग) शिक्षा का प्रमुख सक्रिय साधन है 


(अ) विद्यालय 


(ब) राज्य


(स) सिनेमा


(द) धर्म


उत्तर –(अ) विद्यालय


(घ) भारतीय मनोवैज्ञानिक है


 (अ) कृप्पूस्वामी


 (ब) राधाकृष्णन 


(स) टरमैन 


(द) सी० वी० रमन


उत्तर –(अ) कृप्पूस्वामी


(ड) औपचारिक शिक्षा का अभिकरण है


(अ) गृह


(ब) विद्यालय


 (स) राज्य 


(द) समाज


उत्तर – (अ) गृह


2. शिक्षा विज्ञान है अथवा कला या दोनो ?


उत्तर–यह सभी शिक्षा को मापन योग्य वस्तुनिष्ठता तथा प्रभावशीलता प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया है । यह कार्य केवल विज्ञान ही कर सकता है। अतः कहा जा सकता है कि शिक्षा विज्ञान भी है । अन्त में हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा कला तथा विज्ञान दोनों ही है। इसे केवल कला अथवा केवल विज्ञान कहना उचित न होगा ।

 3. शिक्षा के तीन प्रमुख अंग क्या हैं?


उत्तर –शिक्षा के अंग या शिक्षा के घटक


1.प्रशिक्षण (Training)


2.निर्देशन (Instruction)


3.प्रेरणा (Inspiration)


4. शिक्षा और सूचना में क्या अंतर है? 


उत्तर –सूचना विभिन्न स्रोतों जैसे अखबार, इंटरनेट, टेलीविजन, चर्चाओं आदि से प्राप्त किसी व्यक्ति या किसी चीज़ के बारे में संगठित डेटा को दर्शाती है। 


ज्ञान किसी व्यक्ति की शिक्षा या अनुभव से प्राप्त विषय पर जागरूकता या समझ को संदर्भित करता है। सूचना और कुछ नहीं बल्कि डेटा का परिष्कृत रूप है, जो अर्थ को समझने में सहायक है।


5. परिवार किस प्रकार का शिक्षा का अभिकरण है?


उत्तर– परिवार बच्चे को अनौपचारिक शिक्षा देता है। गृह बच्चों की प्रथम पाठशाला है। गृह शिक्षा का एक औपचारिक अभिकरण है।


6. शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति क्या है?


उत्तर –शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology), मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता कैसे है तथा शैक्षणिक क्रियाकलाप अधिक प्रभावी कैसे बनाये जा सकते हैं। 'शिक्षा मनोविज्ञान' दो शब्दों के योग से बना है- 'शिक्षा' और 'मनोविज्ञान' ।


         [अतिलघु उत्तरीय प्रश्न ]


 7. "शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है ? स्पष्ट कीजिए।


उत्तर–जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है अर्थात शिक्षा के तीन अंग है -

(1) शिक्षक, (2) बालक तथा (3) पाठ्यक्रम।


निम्नलिखित पंक्तिओं में हम शिक्षा के उत्क तीनो अंगों पर अलग-अलग प्रकाश डाल रहे हैं -


(1) शिक्षक प्राचीन युग में शिक्षक को मुख्य स्थान प्राप्त था तथा बालक को गौण । वर्तमान युग की शिक्षा में इसका बिल्कुल उल्टा हो गया है। इसमें सन्देह नहीं की आधुनिक शिक्षा में शिक्षक का स्थान यधपि गौण हो गया है तथा बालक का मुख्य, फिर भी शिक्षक का उतरदायित्व पहले से और भी अधिक हो गया है। इसका कारण यह है कि आधुनिक युग में शिक्षक केवल बालक के वातावरण का निर्माता भी है। शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक के दो कार्य है - (1) वातावरण का महत्वपूर्ण अंग होने के नाते वह अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है तथा (2) वातावरण का निर्माता होने के नाते उसे ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना पड़ता है जिनमें रहते हुए बालक उन क्रियाशीलनों तथा अनुभवों का ज्ञान प्राप्त कर सके जिनके द्वारा उसकी समस्त आवश्यकतायें पूरी होती रहें तथा वह एक सुखी एवं सम्पन्न जीवन व्यतीत करके उस समाज के कल्याण हेतु अपना यथाशक्ति योगदान देता रहे, जिसका वह एक महत्वपूर्ण अंग है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के उदेश्यों में से एक मुख्य उद्देश्य बालक के चरित्र का निर्माण करना भी है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षक के व्यक्तित्व का प्रभाव विशेष महत्त्व रखता है। यदि शिक्षक का चरित्र उच्च कोटि का होगा तो उसके व्यक्तित्व के प्रभाव से बालक में भी चारित्रिक गुण अवश्य विकसित हो जायेंगे अन्यथा वह निक्कमा बन जायेगा। इस दृष्टि से शिक्षक को चरित्रवान, प्रसन्नचित तथा धर्यशील होना परम आवश्यक है। यही नहीं, शिक्षक को अपने विषय का पूर्ण तथा अन्य विषयों का सामान्य ज्ञान भी अवश्य होना चाहिये। इसमें उसे अपने कार्य में सफलता मिलेगी और कक्षा में अनुशाशन भी बना रहेगा। वर्तमान 'युग में शिक्षक के लिए सच्चरित्र तथा पांडित्य के साथ-साथ आधुनिक शिक्षण-पद्धतियों का भी ज्ञान होना भी परम आवश्यक है जिससे वह उचित शिक्षण-पद्धतियों के प्रयोग द्वारा बालक का अधिक से अधिक विकास कर सके। संक्षेप में, शिक्षक राष्ट्र का महत्वपूर्ण अंग भी है और निर्माता भी।


(2) बालक - मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों तथा जनतांत्रिक भावनाओं के परिणामस्वरूप वर्तमान शिक्षा का श्रीगणेश बालक से होता है। दुसरे शब्दों में, अब शिक्षा बालकेन्द्रित हो गई है। एडम्स से इस मत का सबसे पहले प्रतिपादन करते हुए इस वाक्य द्वारा बताया था - शिक्षक जॉन को लैटिन पढ़ता है। इस वाक्य में लैटिन पढ़ना इतना आवश्यक नहीं है जितना कि जॉन एडम्स के इस स्पष्टीकरण से इस बात का संकेत मिलता है कि शिक्षा के क्षेत्र में बालक का स्थान मुख्य है। यही कारण है कि वर्तमान युग के सभी शिक्षाशास्त्री बलाक को सच्चे अर्थ में शिक्षित करने के लिए अब इस बात पर बल देते हैं कि शिक्षा का समस्त कार्य बालक की रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं तथा आवश्यकताओं के अनुसार होना चाहिये। वस्तुस्थिति यह कि आधुनिक युग में पाठ्यक्रम, पाठ्य-विषय तथा पाठ्य-पुस्तकें सब बालकेन्द्रित हो गई हैं आब कोई भी शिक्षक अपने कार्य में उस समय तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस बालक के स्वभाव का पूरा-पूरा ज्ञान न हो। दुसरे शब्दों में, आज उसी व्यक्ति को योग्य शिक्षक कहा जा सकता है जिसे अपने विषय के ज्ञान के साथ-साथ मनोविज्ञान का भी ज्ञान हो ।


(3) पाठ्यक्रम - शिक्षा की प्रक्रिया में पाठ्यक्रम का | महत्वपूर्ण स्थान है। यह बालक तथा शिक्षक के बीच कड़ी का काम करता है तथा दोनों की सीमाओं को निश्चित करके शिक्षा की समस्त योजना को शिक्षा के उदेश्यों के अनुसार संचालित करता है। संकुचित अर्थ में पाठ्यक्रम का तात्पर्य कुछ विषयों व सीमित तथ्यों का अध्ययन करना है। पर व्यापक अर्थ में पाठ्यक्रम समस्त अनुभवों का वह योग है जिसको बालक स्कूल के प्रागण में प्राप्त करता है। अत: इसके अन्तर्गत वे सभी क्रियाओं आ जाती है जिन्हें बालक तथा शिक्षक दोनों मिलकर करते हैं। ध्यान देने की बात है कि पाठ्यक्रम का निर्माण देश काल, तथा समाज की आवश्यकताओं एवं प्रचलित विचारधाराओं के अनुसार होता है। यही कारण है कि एकतंत्रवादी समाज का पाठ्यक्रम का निर्माण व्यक्ति की अपेक्षा समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाता है यह कठोर तथा सबके लिए समान होता है। इसके विपरीत जनतंत्र मिने व्यक्ति की स्वतंत्रता को स्वीकार किया जाता है। अत: जनतंत्रीय समाज के पाठ्यक्रम में कठोरता, व्यवस्था तथा नियंत्रण की अपेक्षा लचीलापन, अनुकूल तथा स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया जाता है।


8. जन संचार माध्यमों की क्या उपयोगिता है ?


उत्तर –महत्त्व वैश्वीकरण और उदारीकरण के युग में जनसंचार माध्यम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाज में संचार माध्यमों की भूमिका मूल रूप से वह प्रकार्य है जो यह बताता है कि समाज संचार माध्यमों का उपयोग किस उद्देश्य के लिए करता है। समाज का संचार माध्यमों से संबंध सर्वसमावेशी आत्मवाचक (स्व आश्रित) और परिवर्ती दोनों प्रकार का है।


9. शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति स्पष्ट कीजिए।


उत्तर –स्किनर के अनुसार : शिक्षा मनोविज्ञान, शैक्षणिक परिस्थितियों में मानवीय व्यवहार का अध्ययन

करता है। शिक्षा मनोविज्ञान अपना अर्थ शिक्षा से, जो सामाजिक प्रक्रिया है और मनोविज्ञान से, जो व्यवहार संबंधी विज्ञान है, ग्रहण करता है।


10. विकास की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।


उत्तर –विकास की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-


1. निरन्तर प्रक्रिया


विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। विकास का यह क्रम मानव के गर्भावस्था से लेकर मृत्यु तक चलता रहता है। विकास की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती हैं कभक रूकती नही।


2. सहज क्रिया अभिगमन


वाटसन का कहना है कि सभी बालक जन्म के समय समान होते है। उनकी निश्चित शारीरिक रचना होती है, उनमे कुछ सहज क्रियायें होती है एवं तीन संवेग होते हैं - प्रेम, भय और क्रोभ । इनके अतिरिक्त कुछ अधिग्रहणात्मक प्रवृत्तियाँ होती हैं। वातावरण के अनुसार बालक इनका प्रयोग करता है और यही उनकी अनुक्रिया होती है। यह सहज क्रिया ही बालक के विकास की ओर संकेत करती है।


3. व्यापक अर्थ वृद्धि की तुलना मे विकास अधिक व्यापक है। क्योंकि यह कुछ समय के लिए नही होता है अपितु जीवन के प्रत्येक मोड़ पर मानव विकास संभव है। इसलिए इसे बहुत व्यापक रूप में स्वीकारा गया हैं।


4. आंतरिक प्रक्रिया मानव विकास शरीर की आंतरिक प्रक्रिया है यह दिखता नही है इसका मापन करना भी मुश्किल है। जैसे -- बालक की वृद्धि के कारण उसका जो आंतरिक विकास होता है उसे देखा नही जा सकता।


5. निश्चित क्रम विकास की एक निश्चित दिशा होती होती तथा एक निश्चित क्रम होता है। इसे हम विकास की अवस्थाएँ भी कहते हैं। शौशावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था मानव विकास की क्रमिक अवस्थाएँ होती हैं।


6. मात्रात्मक एवं गुणात्मक बालक के शारिरिक विकास के साथ ही साथ उसका मानसिक विकास भी होता है। उदाहरण के लिए बालक की आयु में वृद्धि के साथ-साथ उसकी मानसिकता और भावुकता के गुण भी जन्म लेते हैं और बढ़ते है। अतः विकास मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों प्रकार का होता है।


7. पूर्व सूचीयन विकास एक निरंतर प्रक्रिया है। विकास की प्रत्येक अवस्था अगली अवस्था को प्रभावित करती है। अतः पूर्व अवस्था के द्वारा आगामी अवस्था का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए मन्दबुध्दि और तीव्र बुद्धि छात्रों का अनुमान बाल्यावस्था से ही लग जाता है।


11. स्पष्ट कीजिए की विकास की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है।


उत्तर –विकास जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है, अर्थात विकास गर्भाधान से प्रारंभ होकर वृद्धावस्था तक सभी आयु समूहों Page 3 में होता है। इसमें प्राप्तियाँ तथा हानियाँ दोनों ही सम्मिलित हैं, जो संपूर्ण जीवन - विस्तार में गत्यात्मक तरीके से (एक पक्ष में परिवर्तन के साथ दूसरे पक्ष में भी परिवर्तन का होना) अंतः क्रिया करती हैं।


 12. स्पष्ट कीजिए कि परिवार ही बालक की शिक्षा की प्राचीनतम संस्था है।


उत्तर –पेस्टालॉजी का स्पष्ट विचार है, “घर ही शिक्षा का सर्वोत्तम साधन और बालक का प्रथम विद्यालय है।” इस भाँति, निष्कर्ष रूप में परिवार का वातावरण ही बालक का भविष्य निर्धारित करता है और कुल मिलाकर यह चित्र उभरता है कि परिवार बालकों की प्रथम पाठशाला है।

                  [ लघु उत्तरीय प्रश्न ]


13. शिक्षा के शारीरिक विकास के उद्देश्य से क्या आशय है? 


उत्तर –बालक अथवा व्यक्ति जब इन कार्यक्रमों, इन प्रक्रियाओं में भाग लेगा, तो निश्चय ही उसके शरीर के विभिन्न अंगों का विकास होगा। शारीरिक विकास शारीरिक शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस प्रकार की चयनित प्रक्रियाएं करवाई जाती है, जो विज्ञान सम्मत हो ।


14. किशोरावास्था में होने वाले सर्वेगात्मक विकास का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। 


उत्तर –किशोरावस्था का विकास होते समय किशोर को अपने ही समान लिंग के बालक से विशेष प्रेम होता है। यह जब अधिक प्रबल होता है, तो समलिंगी कामक्रियाएँ भी होने लगती हैं। बालक की समलिंगी कामक्रियाएँ सामाजिक भावना के प्रतिकूल होती हैं, इसलिए वह आत्मग्लानि का अनुभव करता है। अत: वह समाज के सामने निर्भीक होकर नहीं आता।


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15. समाज और समुदाय में अंतर स्पष्ट कीजिए।


उत्तर –समाजशास्त्रियों के अनुसार, 'जब भी कभी किसी समूह का सदस्य, छोटा हो या बड़ा इस तरह से साथ-साथ रहते हैं कि वे सामान्य जीवन की आधारभूत स्थितियों में सहभागिता करते हैं, तो हम इस समूह को समुदाय कहते हैं।" इस तरह, एक समुदाय एक भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों के समूह को कहते हैं।


16. शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।

 

उत्तर –मनोविज्ञान की आवश्यकता


1. बालक के स्वभाव का ज्ञान प्रदान करने हेतु,


2.बालक को अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने के लिए,


3.शिक्षा के स्वरूप, उद्देश्यों और प्रयोजनों से परिचित करना,


4. सीखने और सिखाने के सिद्धांतों और विधियों से अवगत कराना,


5.संवेगों के नियंत्रण और शैक्षिक महत्व का अध्ययन,


17. वृद्धि और विकास में अंतर स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर –वृद्धि एवं विकास में अंतर : वृद्धि करने या होने का अर्थ संख्या या आकार में बढ़ना है, जबकि विकास का अर्थ किसी की क्षमता व ज़रूरतों को पूरा करने की ललक को बढ़ाने के साथ ही उनकी आवश्यकताओं को विधिक बनाना भी है, जो की मात्र उनसे संबंधित ना होकर सभी के लिए हो.


18. आधुनिक शिक्षा में मनोविज्ञान की क्या देन है विवेचना कीजिए!


उत्तर –मापन और मूल्यांकन का ज्ञान - शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की प्रमुख देन मापन और मूल्यांकन विधियों का प्रयोग है। इन विधियों के द्वारा बालकों की योग्यताओं का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाता है। मापन और मूल्यांकन ने अपव्यय तथा अवरोधन को समाप्त करने में विशेष योगदान दिया है।


                 [दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ]


19. 'शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य चरित्र का निर्माण है।' इस कथन की समीक्षा कीजिए।


उत्तर –शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालक को स्वतन्त्र रूप से अपनी प्रगति का अवसर देना है। शिक्षा के माध्यम से बालकों की रुचियों, क्षमताओं, प्रवृत्तियों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ऐसी परिस्थिति पैदा की जानी चाहिए ताकि उनकी वैयक्तिकता का पूर्ण विकास हो और वह भविष्य में सुखमय जीवन बिता सके।


अथवा


परिवार के मुख्य शैक्षणिक कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।


20. विकास को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।


उत्तर –विकास में प्राय: बालकों में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इसके लिये अनेक कारक उत्तरदायी होते हैं। कुछ बालकों में विकास सन्तुलित रूप में होता है तथा कुछ बाल में असन्तुलित रूप में विकास दृष्टिगोचर होता है।


विकास को प्रमुख रूप से प्रभावित वाले कारक निम्नलिखित हैं


1. रोग (Disease) -


2. पोषाहार (Nutrition)


3. शारीरिक भार तथा आकार (Weight and size

of body)


4. आत्म-विश्वास का अभाव (Lack of self confidence)


5. तंग या कसे वस्त्रों का प्रयोग (Use of the

tight clothes)


6. सोच (Thinking)


7. शारीरिक व्यायाम (Physical exercise)


8. मन्द बुद्धि (Mental disable)


9. भय (Fear)


10. माँसपेशीय नियन्त्रण (Muscular control)


11. प्रशिक्षण का अभाव (Lack of training)


12. अभिप्रेरणा का अभाव (Lack of


motivation)


 - अथवा 


"शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्य परस्पर विरोधी न होकर एक दूसरे के पूरक हैं।" इस कथन की व्याख्या कीजिए


21. किण्डरगार्टन शिक्षा विधि (खेल-प्रणाली) के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए। 


अथवा 10 शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ स्पष्ट कीजिए एवं उसकी उपयोगिता का सविस्तार वर्णन कीजिए।


उत्तर –शिक्षा मनोविज्ञान अपना अर्थ शिक्षा से, जो सामाजिक प्रक्रिया है और मनोविज्ञान से, जो व्यवहार संबंधी विज्ञान है, ग्रहण करता है। क्रो एवं क्रो के अनुसार : शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक सीखने सम्बन्धी अनुभवों का वर्णन तथा व्याख्या करता है।


(i) शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को सम्यक् दृष्टिकोण प्रदान करता है।


( ii) शिक्षा मनोविज्ञान कक्षा में उपयुक्त शैक्षिक वातावरण उत्पन्न करने में सहायता प्रदान करता है।


 (iii) शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक छात्रों के प्रति प्रेम, सहानुभूति तथा समदर्शी व्यवहार को अपनाने में सहायता करता है।




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