स्वदेश प्रेम पर निबंध || Essay on Love for Country in Hindi
स्वदेश प्रेम पर निबंध || Essay on Love for Country in Hindi
स्वदेश-प्रेम / देश-प्रेम पर निबंध
स्वदेश प्रेम निबंध कक्षा 10& 12, Swadesh prem Nibandh in Hindi, Nibandh likhne ki Trick, Swadesh prem, Swadesh Per Nibandh For 2021, Essay On Swadesh Prem in Hindi For Class10th, Essay Swadesh prem in hindi, Desh prem nibandh, देश प्रेम निबन्ध कैसे याद करें, निबंध लिखने की ट्रिक, Up board exam 2021 class 10th Hindi most important question, 2021
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट www.Bandana classes.com पर । आज की पोस्ट में हम आपको स्वदेश-प्रेम / देश-प्रेम
या सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा निबंध के बारे में बताएंगे तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है।
अगर दोस्तों अभी तक आपने हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब और टेलीग्राम ग्रुप को ज्वाइन नहीं किया है तो नीचे आपको लिंक दी गई है ज्वाइन और सब्सक्राइब करने की तो वहां से आप हमारे telegram group को ज्वाइन और YouTube channel (Bandana study classes) को सब्सक्राइब कर ले जहां पर आप को महत्वपूर्ण वीडियो हमारे यूट्यूब चैनल पर मिल जाएंगे।
1. स्वदेश-प्रेम / देश-प्रेम
या सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा
(2011, 12, 13, 14, 15, 17, 18, 19, 20)
रूपरेखा (1) प्रस्तावना (2) देश-प्रेम की स्वाभाविकता (3) देश-प्रेम का अर्थ (4) देश-प्रेम का क्षेत्र (5) देश के प्रति कर्तव्य (6) भारतीयों का देश-प्रेम (7) उपसंहार
प्रस्तावना - ईश्वर द्वारा बनायी गयी सर्वाधिक अद्भुत रचना है 'जननी' जो नि:स्वार्थ प्रेम की प्रतीक है, प्रेम का ही पर्याय है, स्नेह की मधुर बयार है, सुरक्षा का अटूट कवच है, संस्कारों के पौधों को ममता के जल से सींचने वाली चतुर उद्यान रक्षिका है, जिसका नाम प्रत्येक शीश को नमन के लिए झुक जाने को प्रेरित कर देता है। यही बात जन्मभूमि के विषय में भी सत्य है। इन दोनों का दुलार जिसने पा लिया, उसे स्वर्ग का पूरा-पूरा अनुभव घरा पर ही हो गया। इसीलिए जननी और जन्मभूमि की महिमा को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया है।
देश-प्रेम की स्वाभाविकता— प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम: होता है। अपना देश चाहे बर्फ से ढका हुआ हो, चाहे गर्म रेत से भरा हुआ हो, चाहे ऊँची-ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ हो, वह सबके लिए प्रिय होता है। इस सम्बन्ध में रामनरेश त्रिपाठी की निम्नलिखित पंक्तियाँ द्रष्टव्य है-
विषुवत रेखा का वासी जो,
जीता है नित हाँफ-हॉफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृभूमि पर ॥
ध्रुववासी जो हिम में तम में,
जी लेता है कॉप-काँप कर।
वह भी अपनी मातृभूमि पर,
कर देता है प्राण निछावर ॥
प्रातःकाल के समय पक्षी भोजन-पानी के लिए कलरव करते हुए दूर स्थानों पर चले तो जाते हैं, परन्तु सायंकाल होते ही एक विशेष उमंग और उत्साह के साथ अपने-अपने घोसलों की ओर लौटने लगते हैं। जब पशु-पक्षियों को अपने घर से अपनी मातृभूमि से इतना प्यार हो सकता है तो भला मानव को अपनी जन्मभूमि से अपने देश से क्यों प्यार नहीं होगा? कहा भी गया है कि माता और जन्मभूमि की तुलना में स्वर्ग का सुख भी तुच्छ है
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।
देश-प्रेम का अर्थ- देश-प्रेम का तात्पर्य है- देश में रहने वाले जड़-चेतन सभी से प्रेम, देश की सभी झोपड़ियों, महलों तथा संस्थाओं से प्रेम, देश के रहन-सहन, रीति-रिवाज, वेशभूषा से प्रेम, देश के सभी धर्मों, मतों, भूमि, पर्वत, नदी, वन, तृण, लता सभी से प्रेम और अपनत्व रखना, उन सबके प्रति गर्व की निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए अनुभूति करना। सच्चे देश प्रेमी के लिए देश का कण-कण पावन और पूज्य होता है
सच्चा प्रेम वही है,
जिसकी तृप्ति आत्मबलि पर हो निर्भर।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर ॥
देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है,
अमल असीम त्याग से विलसित।
आत्मा के विकास से,
जिसमें मानवता होती है विकसित ॥
सच्चा देश-प्रेमी वही होता है, जो देश के लिए निःस्वार्थ भावना से बड़े से बड़ा त्याग कर सकता है। स्वदेशी वस्तुओं का स्वयं उपयोग करता है और दूसरों को उनके उपयोग के लिए प्रेरित करता है। सच्चा देशभक्त उत्साही, सत्यवादी, महत्त्वाकांक्षी और कर्तव्य की भावना से प्रेरित होता है।
देश-प्रेम का क्षेत्र - देश-प्रेम का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति देशभक्ति की भावना प्रदर्शित कर सकता है। सैनिक युद्ध-भूमि में प्राणों की बाजी लगाकर, राज-नेता राष्ट्र के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर, समाज-सुधारक समाज का नवनिर्माण करके, धार्मिक नेता मानव-धर्म का उच्च आदर्श प्रस्तुत करके, साहित्यकार राष्ट्रीय चेतना और जन-जागरण का स्वर फूंककर, कर्मचारी, श्रमिक एवं किसान निष्ठापूर्वक अपने दायित्व का निर्वाह करके, व्यापारी मुनाफाखोरी व तस्करी का त्याग कर अपनी देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित कर सकता है। संक्षेप में, सभी को अपना कार्य करते हुए देशहित को सर्वोपरि समझना चाहिए।
देश के प्रति कर्त्तव्य-जिस देश में हमने जन्म लिया है, जिसका अन्न खाकर और अमृत के समान जल पीकर, सुखद वायु का सेवन कर हम बलवान् हुए। है, जिसकी मिट्टी में खेल-कूदकर हमने पुष्ट शरीर प्राप्त किया है, उस देश के प्रति हमारे अनन्त कर्तव्य है। हमें अपने प्रिय देश के लिए कर्तव्यपालन और त्याग की भावना से श्रद्धा, सेवा एवं प्रेम रखना चाहिए। हमें अपने देश की एक इंच भूमि के लिए तथा उसके सम्मान और गौरव के लिए प्राणों की बाजी लगा देनी चाहिए। यह सब करने पर भी जन्मभूमि या अपने देश के ऋण से हम कभी भी उऋण नहीं हो सकते।
भारतीयों का देश-प्रेम-भारत माँ ने ऐसे असंख्य नर-रत्नों को जन्म दिया है, जिन्होंने असीम त्याग-भावना से प्रेरित होकर हंसते-हँसते मातृभूमि पर अपने प्राण अर्पित कर दिये। कितने ही ऋषि-मुनियों ने अपने तप और त्याग से देश की महिमा को मण्डित किया है तथा अनेकानेक वीरों ने अपने अद्भुत शौर्य से शत्रुओं के दाँत खट्टे किये हैं। वन-वन भटकने वाले महाराणा प्रताप ने घास को रोटियाँ खाना स्वीकार किया, परन्तु मातृभूमि के शत्रुओं के सामने कभी मस्तक नहीं झुकाया। शिवाजी ने देश और मातृभूमि की सुरक्षा के लिए गुफाओं मे छिपकर शत्रु से टक्कर ली और रानी लक्ष्मीबाई ने महलों के सुखों को त्यागकर शत्रुओं से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की। भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, अशफाक उल्ला आदि न जाने कितने देशभक्तों ने विदेशियों की अनेक यातनाएँ सहते हुए मुख से 'वन्देमातरम्' कहते हुए हँसते-हँसते फाँसी के के फन्दे को चूम लिया।
उपसंहार – खेद का विषय है कि आज हमारे नागरिकों में देश-प्रेम की भावना अत्यन्त दुर्लभ होती जा रही है। नयी पीढ़ी का विदेशों से आयातित वस्तुओं और संस्कृतियों के प्रति अन्धाधुन्ध मोह, स्वदेश के बजाय विदेश में जाकर सेवाएँ अर्पित करने के सजीले सपने वास्तव में चिन्ताजनक हैं। हमारी पुस्तकें भले ही राष्ट्र प्रेम की गाथाएँ पाठ्य-सामग्री में सँजोये रहें, परन्तु वास्तव में नागरिकों के हृदय में गहरा व सच्चा राष्ट्र प्रेम ढूँढ़ने पर भी उपलब्ध नहीं होता। हमारे शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों को इस प्रश्न का समाधान ढूँढ़ना ही होगा। अब मात्र उपदेश या अतीत के गुणगान से वह प्रेम उत्पन्न नहीं हो सकता। हमें अपने राष्ट्र की दशा व छवि अनिवार्य रूप से सुधारनी होगी।
प्रत्येक देशवासी को यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके देश भारत की देशरूपी बगिया में राज्यरूपी अनेक क्यारियाँ हैं। किसी एक क्यारी की उन्नति एकांगी उन्नति हैं और सभी क्यारियों की उन्नति देशरूपी उपवन की सर्वांगीण उन्नति है। जिस प्रकार एक माली अपने उपवन की सभी क्यारियों की देखभाल समान भाव से करता है उसी प्रकार हमें भी देश का सर्वांगीण विकास करना चाहिए। स्वदेश-प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। इसे संकुचित रूप में ग्रहण न कर व्यापक रूप में ग्रहण करना चाहिए। संकुचित रूप में ग्रहण करने से
विश्व शान्ति को खतरा हो सकता है। हमें स्वदेश-प्रेम की भावना के साथ-साथ समग्र मानवता के कल्याण को भी ध्यान में रखना चाहिए।
👉छायावादी युग तथा इसकी प्रमुख विशेषताएं
👉मुहावरे तथा लोकोक्ति में अंतर
👉खंडकाव्य तथा महाकाव्य में अंतर
👉राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा में अंतर
👉उपन्यास किसे कहते हैं ? उपन्यास के प्रकार
👉रिपोर्ताज किसे कहते हैं? रिपोतार्ज का अर्थ एवं परिभाषा
👉रेखाचित्र किसे कहते हैं ?एवं रेखाचित्र की प्रमुख विशेषताएं
👉आलोचना किसे कहते हैं? प्रमुख आलोचना लेखक
👉भारतेंदु युग की प्रमुख विशेषताएं
👉विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं अधिकार
👉रस किसे कहते हैं ? इसकी परिभाषा
👉महात्मा गांधी पर अंग्रेजी में 10 लाइनें
👉नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर निबंध
Post a Comment