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Subhash Chandra Bose Essay / नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध

Subhash Chandra Bose Essay / नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 


Subhash Chandra Bose Essay / नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 



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 के बारे में बताएंगे तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है।


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हमारा प्रिय नेता सुभाषचन्द्र बोस


रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) जन्म तथा परिचय (3) राजनीति में प्रवेश, (4) कांग्रेस की अध्यक्षता, (5) जर्मनी गमन, (6) आजाद हिन्द फौज का गठन, (7) नेताजी का नारा (8) उपसंहार।


प्रस्तावना - नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का नाम कौन सा ऐसा भारतीय है जिसने न सुना हो। वे तो ऐसे नेता थे जिन्होंने भारतमाता को पराधीनता के चंगुल से छुड़ाने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है। वे ही मेरे सर्वप्रिय नेता थे। 


जन्म तथा परिचय- सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 26 जनवरी, 1897 ईसवी को उड़ीसा में कटक नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता उच्चकोटि के वकील थे। उनका नाम श्री जानकी दास था। उन्होंने कटक में ही प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी। उच्च शिक्षा प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्राप्त करने के बाद आप आई०सी०एस०

की परीक्षा भी आपने विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की थी।


आप चाहते तो आई०सी०एस० की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सुख-सुविधा का जीवन गुजार सकते थे, पर आपके मन में तो देशभक्ति की भावना भरी हुई थी। अपने सुख-सुविधा के जीवन को छोड़ देश को स्वतन्त्र कराने के लिए त्याग और बलिदान का रास्ता चुना


राजनीति में प्रवेश-सन् 1921 में गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। सुभाषचन्द्र बोस ने भी इस आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया था। सन् 1930

के नमक आन्दोलन का नेतृत्व आप ने ही किया था। भारत में जब प्रिंस ऑफ वेल्स आए तो उनके विरोध में प्रदर्शन किया। सरकार ने आपको इस प्रदर्शन में भाग लेने पर छः मास का कारावास का दंड दिया। कारावास से मुक्त होने पर उन्होंने बंगाल में बाढ़पीड़ितों की सहायता के लिए दिन-रात एक कर दिया। सरकार ने सुभाषचन्द्र बोस को राजनीतिक गतिविधियों में तेजी से भाग लेने पर गिरफ्तार कर लिया और उन्हें मांडले जेल में भेज दिया।


कांग्रेस की अध्यक्षता- सुभाषचन्द्र बोस जनता में बहुत प्रिय हो गए। उन्हें हरपुरा में अखिल भारतीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया, किन्तु उन्होंने गांधी जी और जवाहरलाल नेहरू इत्यादि नेताओं से सहयोग न मिल पाने के कारण त्याग पत्र दे दिया। कांग्रेस की नीतियों में उन्हें विश्वास नहीं रहा। इसलिए उन्होंने 'फारवर्ड नामक स्थान की स्थापना की।


जर्मनी गमन-  आपके उग्र विचारों से डरकर सरकार ने आपको घर पर ही नजरबंद कर दिया। आपने भेष बदल लिया और जिलाउद्दीन नाम रखकर पेशावर होते हुए काबुल चले गए। काबुल से आप जर्मनी चले गए। हिटलर ने उन्हें सहायता का वचन दिया। इसके बाद वे जापान गए। जापान ने भी उन्हें सहायता का वचन दिया।


आजाद हिन्द फौज का गठन– सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया। यहाँ आपने फौज का गठन करने के लिए चंदा इकट्ठा किया। लोगों ने तन, मन और धन से सुभाषचन्द्र बोस की सहायता की। महिलाओं ने अपने मंगल सूत्र तक उनके चरणों में रख दिए ।


नेताजी का नारा – नेता जी ने देशवासियों को ललकारते हुए कहा था- 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।' देश के दुर्भाग्य से जापान की हार हो गई और आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया।


23 अगस्त सन् 1945 को विमान दुर्घटना में सुभाषचन्द्र बोस का स्वर्गवास हो गया। 


उपसंहार – सुभाषचन्द्र बोस के निधन से भारत को अपार क्षति हुई। सुभाषचन्द्र बोस जैसा वीर, निर्भीक, राष्ट्र नेता मर कर भी अमर हो जाता है। उनका आज भी भारतवासी बड़े आदर और श्रद्धा से नाम लेते हैं।


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