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UP Board Class 10 Social Science Chapter 5 Geography | वन एवं वन्य जीव संसाधन

UP Board Class 10 Social Science Chapter 5 Geography | वन एवं वन्य जीव संसाधन


UP Board Class 10 Social Science Chapter 5 Geography | वन एवं वन्य जीव संसाधन




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यूपी बोर्ड कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 5 वन एवं वन्य जीव संसाधन


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       वन एवं वन्य जीव संसाधन





याद रखने योग्य बिन्दु


1● वन पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादक हैं जिन पर दूसरे सभी जीव निर्भर करते हैं।


2● भारत, जैव विविधता के संदर्भ में विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है। यहाँ विश्व की सारी जैव उपजातियों की 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पाई जाती है।


3• IUCN का पूर्ण विस्तार है-अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ।


4● पश्चिम बंगाल में बक्सा टाईगर रिजर्व, डोलोमाइट के खनन के कारण गंभीर खतरे में हैं।


5• वन पारिस्थितिकी तंत्र देश के मूल्यवान वन पदार्थों, खनिजों और अन्य संसाधनों के संचय कोष हैं जो तेजी से विकसित होती औद्योगिक शहरी अर्थव्यवस्था की माँग की पूर्ति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।


6● भारत में जैव-विविधता को कम करने वाले कारकों में वन्य जीव के आवास का विनाश, जंगली जानवरों को मारना व आखेटन, पर्यावरणीय प्रदूषण व विषाक्तिकरण और दावानल आदि शामिल हैं।


7● भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम 1972 में लागू किया गया जिसमें वन्य जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे। तत्पश्चात् केंद्रीय सरकार व कई राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव पशुविहार (sanctuary) स्थापित किए।


8.'प्रोजेक्ट टाईगर' विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है और इसकी शुरुआत 1973 में हुई।


9• मध्य प्रदेश में स्थायी वनों के अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्र है जोकि प्रदेश के कुल वन क्षेत्र का भी 75 प्रतिशत है।


10● वन विभाग के अंतर्गत 'संयुक्त वन प्रबंधन' क्षरित वनों के बचाव के लिए कार्य करता है। और इसमें गाँव के स्तर पर संस्थाएँ बनाई जाती हैं जिसमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप में कार्य करते हैं।




               महत्त्वपूर्ण शब्दावली


● संकटग्रस्त जातियाँ – वे जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है। उदाहरणार्थ-काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, गैंडा आदि ।


● स्थानिक जातियाँ – प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियाँ। उदाहरणार्थ-अंडमानी टील, निकोबारी कबूतर, अंडमानी जंगली सुअर आदि।


● लुप्त जातियाँ – वे जातियाँ जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पाई गई हैं। उदाहरणार्थ—–एशियाई चीता और गुलाबी सिर वाली बत्तख आदि।


● हिमालयन यव – हिमाचल प्रदेश तथा अरुणाचल प्रदेश में पाये जाने वाला औषधीय पौधा। इससे स्रावित होने वाले टकसोल नामक रासायनिक पदार्थ का उपयोग कैंसर के उपचार में किया जाता है।




           महत्त्वपूर्ण तिथियाँ


1● 1952 ई. – भारत में चीता लुप्त घोषित किया गया।


2● 1972 ई. - भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम लागू किया गया।


3• 1973 ई. - प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया।


● 1991 ई. - पहली बार पौधों की 6 जातियों को संरक्षित जातियों में शामिल किया गया।


● 1988 ई. - ओडिशा राज्य ने संयुक्त वन प्रबंधन का पहला प्रस्ताव पास किया।





बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1:भारत में कितने प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा है ?


(क) 10%


(ख) 20%


(ग) 30%


(घ) 40%


उत्तर-


(ख) 20%


प्रश्न 2. देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत हिस्सा वनाच्छादित है?


(क) 21.32% 


(ख) 24.40% 


(ग) 18.90% 


(घ) 17.21%


उत्तर-


(ख) 24.40%


प्रश्न 3.संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची निम्न में से कौन-सी संस्था तैयार करती है?


(क) IUCN


(ख) WTO


(ग) UN


(घ) FAO



उत्तर-

(क) IUCN



प्रश्न 4.चिपको आन्दोलन सम्बन्धित है


(क) मृदा संरक्षण


(ख) वन संरक्षण


(ग) जल संरक्षण


(घ) वायु संरक्षण


उत्तर


(ख) वन संरक्षण



प्रश्न 5. भारत में सबसे पहले वन एवं वन्य जीव संरक्षण अधिनियम किस वर्ष लागू किया गया?


(क) 1970


(ख) 1972


(ग) 1983


(घ) 1990


उत्तर-(ख) 1972


प्रश्न 6.'टाइगर प्रोजेक्ट' किस वर्ष आरंभ किया गया?


(क) 1973


(ख) 1975


(ग) 1980


(घ) 1989


उत्तर-


(क) 1973


प्रश्न 7.इनमें से कौन-सी टिप्पणी प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास का सही कारण नहीं है?


(क) कृषि प्रसार


(ख) पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना


(ग) वृहत् स्तरीय विकास परियोजनाएँ


(घ) तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण


उत्तर


(ख) पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना




प्रश्न 8.इनमें से कौन-सा संरक्षण तरीका समुदायों की सीधी भागीदारी नहीं करता?


(क) संयुक्त वन प्रबंधन


(ख) बीज बचाओ आंदोलन


(ग) चिपको आंदोलन


(घ) वन्य जीव पशुविहार का परिसीमन


उत्तर- (घ) वन्य जीव पशुविहार का परिसीमन


प्रश्न 9. सुन्दरवन राष्ट्रीय पार्क किस राज्य में स्थित है?


(क) असम


(ख) उड़ीसा


(ग) पश्चिम बंगाल


(घ) मध्य प्रदेश


उत्तर- (ग) पश्चिम बंगाल



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक



प्रश्न 1.दो संकटापन्न पादपों के नाम लिखिए। 


उत्तर 1. मधुका इनसिगनिस तथा 2. हुबरड़िया हेप्टान्यूरोन ।



 प्रश्न 2. भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत हिस्सा वन आवरण के अंतर्गत आता है?


उत्तर 24.39% (24.4%) 


प्रश्न 3. आईयूसीएन का पूर्ण विस्तार बताइए। 


उत्तर- आईयूसीएन (IUCN)–अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ।


प्रश्न 4. संकटग्रस्त जातियों से क्या अभिप्राय है?


उत्तर- संकटग्रस्त जातियों से अभिप्राय उन जातियों से है जिनके विलुप्त होने का खतरा है। उदाहरणार्थ- काला हिरण, भारतीय जंगली गधा तथा संगाई हिरण (मणिपुर) इत्यादि ।


प्रश्न 5. सुभेद्य जातियों के दो उदाहरण दीजिए।


उत्तर- 1. एशियाई हाथी तथा 2. गंगा डाल्फिन ।


प्रश्न 6. भारत में चीता के लुप्त होने की घोषणा किस वर्ष की गई थी ?


उत्तर- वर्ष 1952 में।


 प्रश्न 7. टकसोल क्या है?


उत्तर- टकसोल (Taxol) हिमालयन यव नामक औषधीय पौधे की छाल,टहनियों तथा जड़ों से स्रावित होने वाला रासायनिक पदार्थ है। यह कैंसर के उपचार में सहायक होता है।


प्रश्न 8. वनों की कटाई के दो परोक्ष प्रभाव बताइए। उत्तर- 1. सूखा तथा 2. बाढ़।


प्रश्न 9. भारतीय वन्य जीव (रक्षण) अधिनियम किस वर्ष लागू किया गया?


उत्तर वर्ष 1972 में


प्रश्न 10. वर्ष 1973 में शुरू किए गए 'प्रोजेक्ट टाइगर' का सम्बन्ध किससे है?


उत्तर- बाघों के संरक्षण से।


प्रश्न 11. भैरोंदेव डाक व सेंक्चुरी कहाँ स्थित हैं?


उत्तर राजस्थान के अलवर जिले में।


प्रश्न 12. भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम की शुरुआत किस वर्ष की  गई?


उत्तर- वर्ष 1988 में।



लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1.राष्ट्रीय उद्यान किसे कहते हैं?


उत्तर राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) ऐसे रक्षित क्षेत्रों को कहते हैं जहाँ वन्य प्राणियों सहित प्राकृतिक वनस्पति को एक साथ सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे स्थानों की सुरक्षा और प्रबन्ध की ओर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है। इनमें बहुत कम मानव हस्तक्षेप होता है, केवल इतना कि अधिकारी वर्ग आ जा सकें और अपने कार्य की देखभाल कर सकें। पर्यटकों को भी एक नियमित और नियन्त्रित संख्या में जाने दिया जाता है।


प्रश्न 2. जैव-विविधता क्या है? मानव-जीवन में इसकी महत्ता का वर्णन कीजिए। 


या जैव-विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?


उत्तर- जैव-विविधता का अर्थ-जैव विविधता जीवमण्डलों में पाए जाने वाले जीवों की विभिन्न जातियों में पायी जाने वाली विविधता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जैव-विविधता वनस्पति एवं प्राणियों में पाए जाने वाले जातीय विभेद को प्रकट करती है। भू-पृष्ठ पर वर्तमान जैव-विविधता अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया का परिणाम है। पर्यावरण ह्रास के कारण जैव-विविधता का क्षय हुआ है। जीवों की अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं तथा कई संकटग्रस्त हैं।


मानव जीवन के लिए महत्त्व - मानव अपने उत्पत्तिकाल से ही विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति जीव जगत से ही करता चला आ रहा है। मानव को भोजन, आवास एवं परिवेश सम्बन्धी विभिन्न आवश्यकताओं और अपने अस्तित्व के लिए जैव-विविधता पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जैव-विविधता के उपभोग की दृष्टि से ही मानव ने अधिक उपयोगी प्राणियों और पौधों का पालतूकरण किया। कृषि एवं पशुपालन इसी आवश्यकता का परिणाम है।


प्रश्न 3. भारत के कोई दो पूर्वोत्तर राज्यों के नाम बताइए जिनमें 60 प्रतिशत से अधिक वन का आवरण है। दो कारण दीजिए।


 उत्तर- अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर दो ऐसे पूर्वोत्तर राज्य हैं जहाँ 60 प्रतिशत से अधिक वनों का आवरण है। इसके दो मुख्य कारण निम्नलिखित हैं


1. इन राज्यों में वर्षा खूब होती है जो वनों के विकास में सहायक सिद्ध होती है। 


2. इन राज्यों की भूमि पहाड़ी है और ऊँची-नीची है जिसके कारण वनों का शोषण आसानी से नहीं हो सकता और वन सुरक्षित रहते हैं। 


प्रश्न 4. जीव आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फीयर रिजर्व) किसे कहते हैं?


उत्तर ऐसे क्षेत्र, जहाँ वन्य जीव-जन्तुओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है, जीव आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फीयर रिजर्व) कहलाते हैं। इनके क्षेत्रों के निर्धारण द्वारा जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति की उनकी प्रजातियों को विशेष संरक्षण प्रदान करने का प्रयास किया जाता है, जो दुर्लभ या संकटग्रस्त हैं। हमारे देश में जीव-जन्तुओं और जैव-विविधता के संरक्षण हेतु इस प्रकार के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। उदाहरणार्थ- उत्तराखण्ड में नन्दादेवी आरक्षित क्षेत्र।


प्रश्न 5. पारिस्थितिक तन्त्र किसे कहते हैं? वन एवं वन्य जीवों के लिए इसका क्या महत्त्व है?


 उत्तर- पेड़-पौधे (वनस्पति), जीव-जन्तु, सूक्ष्म जीवाणु तथा भौतिक पर्यावरण मिलकर पारितन्त्र की रचना करते हैं। इसे पारिस्थितिक तन्त्र भी कहते हैं। "पारिस्थितिकी जीवविज्ञान का वह भाग है जिसके द्वारा हमें जीव तथा पर्यावरण की पारस्परिक प्रतिक्रियाओं का बोध होता है।" इस प्रकार विभिन्न जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों द्वारा पुनः उनका भौतिक पर्यावरण से सम्बन्धों का अध्ययन पारिस्थितिक विज्ञान (Ecology) कहलाता है। जीव और उसका पर्यावरण प्रकृति के जटिल तथा गतिशील घटक हैं। पर्यावरण अनेक कारकों द्वारा निर्धारित होता है। ये कारक जीवों को प्रभावित करते रहते हैं। जीव भी अपनी वृद्धि, व्यवहार तथा जीवन-वृत्त के पारस्परिक प्रभाव से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। किसी क्षेत्र में रहने वाले जीव-जन्तु एवं पादप एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, परन्तु उनमें परस्पर तथा भौतिक पर्यावरण के साथ पदार्थों एवं ऊर्जा का विनिमय होता रहता है। निरन्तर पारस्परिक क्रियाओं के कारण पारितन्त्र भी उतना ही गतिशील हो जाता है जितना कि भौतिक पर्यावरण। विभिन्न प्रकार के जीव भौतिक पर्यावरण में होने वाले किसी भी परिवर्तन के अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं अर्थात् वे भौतिक पर्यावरण का अपनी आवश्यकतानुसार अनुकूलन कर लेते हैं।


प्रश्न 6. "जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक वनस्पतियों में गहन सम्बन्ध है।" इस कथन की विवेचना कीजिए। 


उत्तर- किसी प्रदेश के जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक वनस्पतियों में गहन सम्बन्ध होता है। प्राकृतिक वनस्पति से जीव-जन्तुओं को न केवल भोजन ही प्राप्त होता है, अपितु सुरक्षित प्राकृतिक आवास भी सुलभ होता है। वास्तव में, ये जीव-जन्तु जहाँ पर भी अपना रैन-बसेरा बना लेते हैं, वहाँ के पारितन्त्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यद्यपि जीव-जन्तु एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्वतन्त्र विचरण करते हैं, परन्तु जीव-जन्तुओं की प्रत्येक जाति जलवायु दशाओं में सीमित परिवर्तनों को ही सहन कर सकती है। उनकी शारीरिक संरचना, रंग-रूप, भोजन की आदतें आदि सभी उनके प्राकृतिक पर्यावरण के अनुरूप होते हैं। पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन हो जाने से जीव-जन्तु स्वयं को उनके अनुसार कुछ सीमा तक ढाल लेते हैं अथवा वहाँ से प्रवास कर जाते हैं। पक्षियों का मौसमी प्रवास महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कुछ वन क्षेत्रों में तो जीव-जन्तुओं की नवीन प्रजातियाँ विकसित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, रेण्डियर टुण्ड्रा एवं टैगा वनस्पति का वन्य प्राणी है जो विषुवतीय सदाबहार वनस्पति के क्षेत्रों में अपना प्राकृतिक आवास निर्मित नहीं कर सकता। इसी प्रकार विषुवतीय वन प्रदेशों का स्थूलकाय प्राणी- हाथी, टुण्ड्रा एवं टैगा प्रदेशों में अपना आवास नहीं बना सकता है। अतः जीव-जन्तु और प्राकृतिक वनस्पति परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। 


प्रश्न 7. मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास की कारक हैं?


उत्तर- मानव ने अपनी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति के अनेक पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित कर लिया है। इसी कारण मानव ने वन एवं वन्य जीवों को भारी नुकसान पहुंचाया है। भारत में वनों घ एवं वन्य जीवों की सबसे अधिक हानि उपनिवेश काल में रेललाइन, कृषि उ व्यवसाय, वाणिज्य, वानिकी और खनन क्रियाओं में वृद्धि से हुई है। स्वतन्त्रता स प्राप्ति के बाद जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई, जैव-विविधता का विनाश और म भी अधिक तीव्र गति से हुआ। कृषि के अतिरिक्त मानव ने बड़े बाँध और ब आवास भी बनाए हैं। भूमि के इस उपयोग से भी जैव-विविधता का ह्रास हुआ जै है। अतः मानव अन्य सभी कारकों की अपेक्षा जैव-विविधता के ह्रास एवं कृ विनाश के लिए अपेक्षाकृत अधिक उत्तरदायी है। भा


प्रश्न 8."चिपको आन्दोलन" क्या है?


 उत्तर- चिपको आन्दोलन वनों की रक्षा के लिए चलाया गया आन्दोलन है। इस आन्दोलन का सूत्रपात सुन्दरलाल बहुगुणा ने हिमालय क्षेत्र में किया। इसके का अन्तर्गत लोग पेड़ों से चिपककर उनकी रक्षा करते हैं और उन्हें काटने नहीं देते।


यह आन्दोलन वनों/वृक्षों की कटाई रोकने में सफल हुआ। साथ ही इस आन्दोलन ने यह भी दिखाया कि स्थानीय पौधों की प्रजातियों का प्रयोग करके सामुदायिक वनीकरण अभियान भी सफल बनाया जा सकता है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1. वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।


उत्तर भारत में प्रकृति एवं उसके तत्त्वों के प्रति आस्था-पूजा सदियों पुरानी परम्परा रही है। शायद इन्हीं विश्वासों के कारण विभिन्न वनों को मूल एवं कौमार्य रूप में आज भी बचाकर रखा है, जिन्हें पवित्र पेड़ों के झुरमुट या देवी-देवताओं के वन कहते हैं।


भारतीय समाज में विभिन्न संस्कृतियाँ हैं और प्रत्येक संस्कृति में प्रकृति और इसकी कृतियों को संरक्षित करने के अपने-अपने पारम्परिक तरीके हैं। आमतौर पर झरनों, पहाड़ी चोटियों, पेड़ों और पशुओं को पवित्र समझकर उनके सम्मान और संरक्षण के लिए एक रिवाज बना दिया गया है। कुछ समाज कुछ विशेष पेड़; जैसे—पीपल, बरगद, महुआ, बेल आदि की पूजा करते हैं। तुलसी और पीपल के वृक्ष देव-निवास समझे जाते हैं। विभिन्न धार्मिक आयोजनों में इनका विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है। छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदम्ब के पेड़ों की पूजा करते हैं। ओडिशा और बिहार की जनजातियाँ शादी के समय इमली और आम के पेड़ की पूजा करती हैं। इसी प्रकार गाय, बन्दर, लंगूर आदि की लोग उपासना करते हैं। राजस्थान में विश्नोई समाज के गाँवों के आस-पास काले हिरण, चिंकारा, नीलगाय और भौरों के झुण्ड हैं जो वहाँ के अभिन्न अंग है, यहाँ इनको कोई नुकसान नहीं पहुँचता तथा इनका संरक्षण किया जाता है। अतः हिन्दू एवं विभिन्न जातीय समुदायों द्वारा ऐसी अनेक धार्मिक परम्पराएँ हैं जिनके द्वारा वन और वन्य जीव संरक्षण में रीति-रिवाज सहयोग प्रदान करते हैं।



प्रश्न 2. भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों और वन्य जीवन संरक्षण और रक्षण में योगदान किया है?



उत्तर- भारत में वन संरक्षण और रक्षण की प्राचीन परम्परा रही है। वन हमारे देश में कुछ समुदायों के आवास भी हैं, इसलिए ये समुदाय इनके संरक्षण के लिए आज भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में तो स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारियों के साथ अपने वन आवास स्थलों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। सरिस्का बाघ रिजर्व में राजस्थान के गाँवों के लोग वन्य जीव रक्षण अधिनियम के तहत वहाँ से खनन कार्य बन्द करवाने के लिए संघर्षरत हैं। राजस्थान के ही अलवर जिले में 5 गाँवों के लोगों ने तो 1,200 हेक्टेयर वन भूमि भैरोंदेव डाक व सेंक्चुरी घोषित कर दी जिसके अपने ही नियम कानून हैं, जो शिकार को वर्जित करते हैं तथा बाहरी लोगों की सपैठ से यहाँ के वन्य जीवों को बचाते हैं।


उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध 'चिपको आन्दोलन' कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने में ही सफल नहीं रहा अपितु इसने स्थानीय पौधों की जातियों की वृद्धि में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उत्तराखण्ड में ही टिहरी जनपद के किसानों का 'बीज बचाओ आन्दोलन' और 'नवदानय' ने रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक खाद का प्रयोग करके यह दिखा दिया है कि आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन सम्भव है।


भारत में संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम ने भी वनों के प्रबन्धन और पुनर्निर्माण में स्थानीय समुदाय की भूमिका को उजागर किया है। औपचारिक रूप से इन कार्यक्रमों का आरम्भ 1988 में ओडिशा से हुआ था। यहाँ ग्रामस्तर पर इस कार्यक्रम को सफल बनाने के उद्देश्य से संस्थाएँ बनाई गईं जिनमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप कार्य करते हैं।


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