ad13

हिंदी वर्णमाला : स्वर और व्यंजन / Hindi Varnmala

हिंदी वर्णमाला : स्वर और व्यंजन / Hindi Varnmala

हिंदी वर्णमाला : स्वर और व्यंजन / Hindi Varnmala



hindi varnmala kya hai,हिंदी वर्णमाला क्या है
hindi varnamala kya hai,hindi varnmala kya hota hai,hindi varnmala kya hoga,
हिंदी वर्णमाला क्या कहते हैं,hindi varnamala,
hindi varnmala image,hindi varnamala
हिंदी वर्णमाला,हिंदी वर्णमाला 52,हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन,हिंदी वर्णमाला नोट्स,हिंदी वर्णमाला के जनक,हिंदी वर्णमाला चार्ट pdf,हिंदी वर्णमाला चार्ट,हिंदी वर्णमाला pdf,हिंदी वर्णमाला 52,हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन

हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala)


हिंदी भाषा को सीखने और समझने के लिए हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) को सीखना और समझना बहुत ज़रूरी है। हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में हिंदी भाषा में प्रयुक्त सभी ध्वनियों को शामिल किया गया है, जिनके बारे में हम इस लेख में जानेंगे।

"हिंदी" फारसी भाषा का शब्द है।

                        

वर्ण या अक्षरों के क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित समूह को वर्णमाला (Varnamala) कहते हैं। अतः हिंदी भाषा में समस्त वर्णों के क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित समूह को हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) कहते हैं। हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में 44 अक्षर होते हैं, जिसमें 11 स्वर एवं 33 व्यंजन हैं। दरअसल, प्रत्येक भाषा अपने आप में एक व्यवस्था है हिंदी में भी सभी वर्गों को एक व्यवस्था में रखा गया जिसे हम उस भाषा की वर्णमाला के नाम से जानते हैं।




हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में कुल अक्षरों संख्या 52 होती है।


 हिदीं वर्णमाला में कामता प्रसाद गुरु के अनुसार  अक्षरों की संख्या 46 होती है।


वर्ण किसे कहते हैं (Varn Kise Kahate Hain)


वर्ण की परिभाषा - 


मूल ध्वनि का वह लिखित रूप जिसके टूकड़े नहीं किए जा सकते (अखण्डित ध्वनि), उसे वर्ण (Varn) कहते है। हिंदी की सबसे छोटी इकाई वर्ण (Varn) होता है। हम जो भी बोलते हैं, वह एक ध्वनि होती है। हमारे मुँह से उच्चारित अ, आ, क, ख, ग आदि ध्वनियाँ हैं। हमारे द्वारा बोली जाने वाली प्रत्येक अर्थपूर्ण ध्वनि को एक आकृति या आकार से दर्शाया जाता है, जिन्हें हम वर्ण के नाम से जानते हैं। मौखिक हिंदी की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। हिंदी की सबसे छोटी लिखित इकाई वर्ण होती है।


यह भी पढ़ें 👇👇👇

वर्ण के भेद - Varn Ke Bhed


वर्ण के दो भेद होते हैं।


1. स्वर (कुल स्वर = 13) (स्वर= 11) अं,अ: अयोगवाह होते हैं


2. व्यंजन (कुल व्यंजन=39) (व्यंजन=33)


स्वर किसे कहते हैं (Savar Kise Kahate Hain)


स्वर की परिभाषा - वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में हवा बिना किसी रुकावट के मुँह या नाक के द्वारा बाहर निकलती है उन्हें स्वर (Swar) कहते हैं। इन वर्गों के उच्चारण में जीभ तथा होंठ परस्पर कहीं स्पर्श नहीं करते हैं। हिंदी में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ स्वर होते हैं. हिंदी वर्णमाला में ग्यारह ( 11 स्वर) स्वर होते हैं। ऋ का दीर्घ रूप “ॠ” हिंदी में प्रयोग नहीं किया जाता है।


इसके अतिरिक्त अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) होते हैं, जिन्हें अयोगवाह कहते हैं।


स्वर के भेद - Swar Ke Bhed Ke


उच्चारण /मात्राक/काल अवधि की दृष्टि से Hindi Bhasha Ke Swar तीन प्रकार के होते हैं।


1. हृस्व स्वर


2. गुरु या दीर्घ स्वर


3. प्लुत स्वर


👉आत्मकथा तथा जीवनी में अंतर


👉मुहावरे तथा लोकोक्ति में अंतर


•हृस्व स्वर-


जिन वर्गों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं | हिंदी में चार ह्रस्व स्वर अ, इ, उ, ऋ होते हैं। हिंदी में चार ह्रस्व स्वर होते हैं। इनको लघु, मूल या एकमात्रिक स्वर भी कहा जाता है।


•गुरु या दीर्घ स्वर-


जिन वर्गों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों के उच्चारण से दूगना (दो मात्रा) समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं | हिंदी में आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ,ऑ आदि दीर्घ स्वर होते हैं। हिंदी में सात दीर्घ स्वर होते हैं। इनको संधि एवं द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं।


•प्लुत स्वर-


जिन वर्णों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से दूगना या ह्रस्व स्वरों से तीन गुना अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। आपने अक्सर यह देखा होगा कि कहीं कहीं राम को राडम लिखा गया है, यहाँ “रा” और “म” के बीच में लगा हुआ निशान प्लुत स्वर को दर्शाता है। जहाँ यह निशान लगा होता है उससे पहले वाले अक्षर को उच्चारित करते समय तीन गुना अधिक समय लगता है। साधारण भाषा में कहें तो उस अक्षर को खींच कर उच्चारित किया जाता है। त्रैमात्रिक स्वर भी कहते हैं ।


इनका उपयोग-


नाटक का संवाद बोलने में


किसी को पुकारने में


जैसे- राsssम ,ओsssम


प्रकृति के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-


1- मूल स्वर- जो एक प्रयास + एक स्थान = अ,इ,उ,ऋ


2- सन्धि स्वर- यह दो प्रकार की होते है-


•मूल दीर्घ स्वर


आ= (अ+अ), 


ई= (इ+इ) ,


ऊं  =(उ+उ)


•संयुक्त स्वर- 


अ+इ = ए, 


अ+ए = ऐ


अ+उ = ओ


अ+ ओ = औ


👉नाटक तथा एकांकी में अंतर


👉खंडकाव्य तथा महाकाव्य में अंतर


नासिका के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-


•अनुनासिक-  जो वर्ण बिना नाक की सहायता से बोले जाते हैं अनुनासिक वर्ण कहलाते हैं।


जैसे- आग, ऊन,ईख


•सानुनासिक- जो वर्ण नाक की सहायता से बोले जाते हैं सानुनासिक वर्ण कहलाते हैं।


जैसे-  आंख, ऊंट,छींक


होठों की स्थिति के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-


1- आवृत्त मुखी- यह दो प्रकार के होते हैं-


•अर्धवर्तुल स्वर- आ,आ


•प्रसृत स्वर-   इ,ई,ए,ऐ


2- वृत्त मुखी (वर्तुल)- उ,ऊ,ओ,औ,ऑ



जीभ के प्रयोग के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-


1- जीभ के भाग के आधार पर - यह तीन प्रकार के होते हैं- 


•अग्र स्वर-  इ,ई,ए,ऐ


•मध्य स्वर- अ


•पश्च स्वर- आ,उ,ऊ,ओ,औ,ऑ



2- जीभ के उठने के आधार पर-यह चार प्रकार के होते हैं-


•संवृत- इ,ई,उ,ऊ


•अर्द्वसंवृत- ए,ओ


•विवृत-


•अर्द्वविवृत- अ,ऐ,औ,ऑ



स्वरों का उच्चारण स्थान-


स्वर               उच्चारण स्थान


अ, आ               कंठ


इ, ई                  तालु


उ, ऊं                 ओष्ठ


ऋ                     मूर्धा


ए, ऐ                 कंठ – तालु


ओ, औ               कंठ- ओष्ठ


👉राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा में अंतर


👉निबंध तथा कहानी में अंतर


व्यंजन (Vyanjan in Hindi Varnmala)


व्यंजन की परिभाषा - जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है उन्हें व्यंजन (Vyanjan) कहते हैं। व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय हवा मुंह में कहीं ना कहीं रुक कर बाहर निकलती है। जब हम किसी वर्ण विशेष का उच्चारण करते हैं तो हमारे मुँह में या स्वरयंत्र में वर्ण विशेष के हिसाब से हवा को रुकावट का सामना करना पड़ता है। जब यह रुकावट हटती है तो इन वर्गों का उच्चारण होता है।


हिंदी वर्णमाला में कितने व्यंजन होते हैं (How Many Vyanjan in Hindi Varnmala)


हिंदी वर्णमाला में 33 व्यंजन (33 Vyanjan in Hindi ) होते हैं। इसके अलावा चार संयुक्त व्यंजन होते हैं। अतः हिंदी में कुल व्यंजनों की संख्या 39 होती है।


हिंदी व्यंजन की मात्रा (Hindi Vyanjan Ki Matra)


हिंदी व्यंजनों की अपनी कोई मात्रा नहीं होती है, जब किसी व्यंजन वर्ण में कोई स्वर वर्ण जुड़ता है तो व्यंजन वर्ण में उस स्वर की मात्रा जुड़ जाती है. जैसे क् + आ = का.


व्यंजनों का वर्गीकरण-


व्यंजनों का वर्गीकरण चार आधार पर किया जाता है।


1. प्रयत्न स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


2. प्रयत्न विधि के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


3. स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


 4. प्राण वायु के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण



👉उपन्यास तथा कहानी में अंतर


👉नई कविता की विशेषताएं


प्रयत्न स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


यहाँ प्रयत्न स्थान से तात्पर्य उच्चारण स्थान से है। किसी वर्ण को उच्चारित करते समय जिस स्थान पर हमारे मुंह के अवयव ( कंठ, जीभ, होंठ, तालु) एक दूसरे से मिलते हैं और जहाँ हमारी प्राण वायु रुकती है, वह स्थान उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहलाता है।



•कण्ठ्य व्यंजन (Kanth Vyanjan)-


हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण कंठ से किया जाता है, उन्हें कण्ठ्य व्यंजन (Kanth Vyanjan) कहते हैं । हिंदी में क, ख, ग, घ, ङ, क़, ख़, ग़ इत्यादि को कण्ठ्य व्यंजन कहते हैं. इन सभी वर्गों का उच्चारण स्थान कंठ होता है। इन वर्णों का उच्चारण करते समय जब हवा फेफड़ों से बाहर निकलती है तो, कंठ में रुक कर बाहर निकलती है।


इनमें से क़, ख़, ग़ वाली ध्वनियाँ हिंदी भाषा के शब्दों में प्रयुक्त नहीं होती है। ये ध्वनियाँ अरबी और फ़ारसी भाषा वाले शब्दों में प्रयुक्त होती हैं।


•तालव्य व्यंजन-


हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा तालु को स्पर्श करने से होता है उन्हें तालव्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी में च, छ, ज, झ, ञ, श, य को तालव्य व्यंजन कहते हैं. इन सभी वर्णों का उच्चारण स्थान तालु है ।


तालव्य व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ का अगला भाग तालु को छूता है, अर्थात जीभ और तालु का परस्पर मिलन होता है, जिससे हमारी प्राण वायु रुकती है। जब जीभ और तालु अलग होते हैं तो, प्राण वायु के मुँह से बाहर निकलने के साथ ही इन वर्णों का उच्चारण होता है।


•मूर्धन्य व्यंजन-


हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा मूर्धा (तालु का बीच वाला कठोर भाग) को स्पर्श करने से होता है, उन्हें मूर्धन्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी में ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, र, ष मूर्धन्य व्यंजन कहलाते हैं। इन वर्णों का उच्चारण करते समय जीभ का अगला भाग तालु के बीच वाले कठोर भाग (मूर्धा) को स्पर्श करता है।


•दन्त्य व्यंजन-


हिंदी वर्णमाला में जिन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा दांतों को स्पर्श करने से होता है, उन्हें दन्त्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में त, थ, द, ध, न, ल, स दन्त्य व्यंजन कहलाते हैं। इनका उच्चारण करते समय जीभ का अगला भाग ऊपर वाले दांतों को स्पर्श करता है। यह स्पर्श हमारी प्राण वायु के लिए अवरोध का काम करता है और जैसे ही अवरोध हटता है वर्गों का उच्चारण होता है।



•ओष्ठ्य व्यंजन (Osthya Vyanjan)-


हिंदी वर्णमाला के जिन वर्णों का उच्चारण होंठों के परस्पर मिलने से होता है, उन्हें ओष्ठ्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में प फ, ब, भ, म ओष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। हमारे होंठों को मिलाकर अलग करने से इनका उच्चारण होता है।


•दंतोष्ठ्य व्यंजन (Dantoshthya Vyanjan)-


हिंदी वर्णमाला में व को दंतोष्ठ्य व्यंजन कहते हैं।


•काकल्य व्यंजन-


हिंदी वर्णमाला में ह को काकल्य व्यंजन कहते हैं क्योंकि इसका उच्चारण स्थान कंठ से थोड़ा नीचे होता है।


प्रयत्न विधि के आधार पर वर्गीकरण-


•स्पर्शी या स्पृष्ट-


वे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय हमारी प्राण वायु या सांस जीभ या होंठ से स्पर्श करती हुई बाहर निकलती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। क-वर्ग, च-वर्ग, ट-वर्ग, त-वर्ग, प-वर्ग के वर्ण स्पर्श व्यंजन होते हैं। आसान भाषा में कहें तो "क" से लेकर “म” तक के वर्ण स्पर्श या स्पृष्ट व्यंजन कहलाते हैं। इन्हें वर्गीय व्यंजन (vargiya vyanjan) भी कहा जाता है। स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25 होती है।



•स्पर्श-संघर्षी व्यंजन-


च, छ, ज, झ, ञ (च-वर्ग) को स्पर्श-संघर्षी व्यंजन भी कहते हैं ।क्योंकि इन वर्गों को उच्चारित करते समय हमारी प्राण वायु स्पर्श के साथ-साथ संघर्ष करती हुई बाहर निकलती है। अर्थात हमारी सांस घर्षण करती हुई बाहर निकलती है।


•नासिक्य व्यंजन-


जिन वर्णों को उच्चारित करते समय हमारी प्राण वायु हमारी नाक से होकर गुज़रती है, उन्हें नासिक्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में ङ, ञ, ण, न, म नासिक्य व्यंजन कहलाते हैं।


•उत्क्षिप्त व्यंजन-


ड़ एवं ढ़- उत्क्षिप्त व्यंजन है। इन वर्णों को द्विस्पृष्ठ या ताड़नजात व्यंजन भी कहते हैं। इनका उच्चारण करते समय हमारी जीभ हमारे तालु को छुते हुए एक झटके के साथ नीचे की तरफ़ आती है, जिससे हवा बाहर निकलती है और इन वर्गों का उच्चारण होता है।


•लुंठित व्यंजन-


र को लुंठित व्यंजन कहा जाता है क्योंकि “र” का उच्चारण करते समय हमारी प्राण वायु जीभ से टकरा कर लुढ़कती हुई बाहर निकलती है। आसान भाषा में कहें तो जब हम "र" का उच्चारण करते हैं तो हमारी जीभ में कंपन होता है, इसलिए "र" को प्रकंपित व्यंजन भी कहते हैं।


•अंत:स्थ व्यंजन-


य, एवं व (य,र,ल,व) अंतःस्थ व्यंजन है। इनका उच्चारण स्वर एवं व्यंजन के बीच का उच्चारण है। "य" एवं “व” का उच्चारण करते समय जीभ, तालु और होंठों का बहुत थोड़ा सा स्पर्श होता है। इन्हें अर्द्ध स्वर (Ardh Swar) तथा ईषत् स्पृष्ट व्यंजन भी कहते हैं।


•पार्श्विक व्यंजन-


ल पार्श्विक व्यंजन है। "ल" का उच्चारण करते समय हमारी सांस जीभ के बग़ल (पार्श्व) से गुज़रती है।


•उष्म व्यंजन-


श, ष, स, ह व्यंजनों को उष्म व्यंजन कहते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करते समय प्राण वायु हमारे मुंह से घर्षण (संघर्ष) करती हुई निकलती है। संघर्ष के साथ निकलने की वजह से इन्हें संघर्षी भी कहते हैं।


•संयुक्त व्यंजन-


क्ष, त्र, ज्ञ, श्र व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं, क्योंकि इन वर्णों को दो व्यंजनों के योग से बनाया गया है।


1. क्ष = क् + ष


2. त्र = त् + र


3. ज्ञ = ज् + ञ


4. श्र= श् + र



स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर वर्गीकरण


आपने ध्यान दिया होगा कि कुछ वर्णों का उच्चारण करते समय जब हवा हमारे गले से बाहर निकलती है तो हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन होता है, जबकि कुछ वर्ण ऐसे भी हैं जिनको उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन नहीं होता है। अतः इसी कंपन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण किया गया है। स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर इन वर्गों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।


अघोष व्यंजन


अघोष शब्द “अ” और “घोष” के योग से बना है। अ का अर्थ नहीं और घोष का अर्थ कंपन होता है। अतः जिन वर्गों को उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन नहीं होता है, उन वर्गों को अघोष वर्ण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का पहला एवं दूसरा वर्ण तथा श, ष, स अघोष व्यंजन होता है हिंदी में क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स वर्गों को अघोष व्यंजन कहते हैं


सघोष या घोष व्यंजन


जिन वर्णों को उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन होता है, उन वर्णों को सघोष वर्ण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का तीसरा, चौथा और पांचवां वर्ण तथा य, र, ल, व, ह सघोष व्यंजन होता हैं. हिंदी में ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ड, ढ, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह वर्णों को सघोष व्यंजन कहते हैं। सभी स्वर सघोष व्यंजन होते हैं।



प्राण वायु के आधार पर वर्गीकरण


हमारी प्राण वायु की मात्रा के आधार पर भी इन वर्णों का वर्गीकरण किया जाता है। किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाली प्राण वायु की मात्रा के आधार पर इन वर्णों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।


अल्पप्राण व्यंजन


जिन वर्णों के उच्चारण में हमारी प्राण वायु की कम मात्रा लगती है, उन्हें अल्प प्राण व्यंजन कहते हैं। व्यंजन वर्गों के दूसरे तथा चौथे वर्गों को छोड़कर शेष सभी वर्ण अल्पप्राण व्यंजन होते हैं। हिंदी में क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, ड़, ढ़ अल्पप्राण व्यंजन होते हैं. सभी स्वर भी अल्पप्राण होते हैं.


महाप्राण व्यंजन


जिन वर्णों के उच्चारण में हमारी प्राण वायु की मात्रा अधिक लगती है, उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं। स्पर्श व्यंजनों में प्रत्येक वर्ग का दूसरा एवं चौथा वर्ण तथा उष्म व्यंजन महाप्राण व्यंजन होते हैं. हिंदी में ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स,ह महाप्राण व्यंजन होते हैं।



हिन्दी के प्रमुख विराम चिह्न  Hindi ke Pramukh viram chinh


Viram Chinh in Hindi (विराम चिन्ह) - विराम का अर्थ है-रुकना या ठहरना। वक्ता अपने भावों व विचारों को व्यक्त करते समय वाक्य के अन्त में या कभी-कभी बीच में ही साँस लेने के लिए रुकता है, इसे ही विराम कहते हैं। इस प्रकार की रुकावट या विराम साँस लेने के अतिरिक्त अर्थ की स्पष्टता के लिए भी आवश्यक है।


विराम चिन्ह (Punctuation Mark) – Udaharan (Examples), Paribhasha और प्रकार लिखने में रुकावट या विराम के स्थानों को जिन चिह्नों द्वारा प्रकट किया जाता है, उन्हें विराम-चिह्न कहते हैं। इनके प्रयोग से वक्ता के अभिप्राय में अधिक स्पष्टता का बोध होता है। इनके अनुचित प्रयोग से अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है; जैसे


"कल रात एक नवयुवक मेरे पास पैरों में मोजे और जूते, सिर पर टोपी,


हाथ में छड़ी, मुँह में सिगार और कुत्ता पीछे-पीछे लिए आया"।


"कल रात एक नवयुवक मेरे पास, पैरों में मोजे और जूते सिर पर, टोपी


हाथ में, छड़ी मुँह में, सिगार और कुत्ता पीछे-पीछे लिए आया।"


विराम-चिह्नों के बदलने से वाक्य का 'अर्थ' भी बदल जाता है;


जैसे -


•उसे रोको मत, जाने दो।


• उसे रोको, मत जाने दो।


उन्नीसवीं शताब्दी में पूर्वार्द्ध तक हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में विराम-चिह्नों के रूप में एक पाई (1) दो पाई (11) का प्रयोग होता था। कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के बाद अंग्रेज़ों के सम्पर्क में आने के कारण उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक अंग्रेज़ी के ही बहुत से विराम-चिह्न हिन्दी में आ गए। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से हिन्दी में विरामादि चिह्नों का व्यवस्थित प्रयोग होने लगा और आज हिन्दी व्याकरण में उन्हें पूर्ण मान्यता प्राप्त है।



हिन्दी में प्रयुक्त किए जाने वाले विराम चिह्न इस प्रकार है- 


नाम                                                चिह्न


1. पूर्ण विराम (Full Stop)                   (।)


2. अर्द्ध विराम (Semi Colon)              (;)


3. अल्प विराम (Comma)                   ( ,)


4. प्रश्नवाचक (Question Mark)           (?)


5. विस्मयवाचक (Sign of Exclamation) (!)


6. निर्देशक (Dash)                              ( - )


7. उद्धरण (Inverted Commas)           (" ‌")


8. योजक (Hyphen)                            (-)


9. विवरण चिह्न (Colon Dash)              (:-)


 10. कोष्ठक (Brackets)                   ( ),{ },[ ]


11.लाघव (Sign of Abbreviation)         (°)


12 हंसपद                                           (^)


13. समतामूलक                                    (=)


1- पूर्ण विराम (।)


इस चिह्न का प्रयोग प्रश्नवाचक तथा विस्मयवाचक वाक्यों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है। जब हम बोलते समय वाक्य की समाप्ति पर कुछ समय के लिए रुकते हैं, तब अगला वाक्य आरंभ करते हैं। उस वक्त पूर्ण विराम चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे- 


• ज्ञानन्दा बाजार गई।


•सुकृत मेहनत से पढ़ता है।


•गज़ल खेलती है।


2. अर्द्ध विराम (;) 


जब भी पूर्ण विराम की तुलना में थोड़ी कम देर के लिए रुकना होता है, वहाँ अर्द्ध विराम चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे- जुबिन बाजार से घर गया, नहाया और नाश्ता किया; अपनी गाड़ी उठाई और स्कूल चला गया। 



3.अल्प विराम (,)


वाक्य में जब बहुत कम देर के लिए ठहरना होता है, वहीं अल्प विराम का प्रयोग किया जाता है। इस चिह्न का प्रयोग वाक्य में सर्वाधिक होता है।


जैसे- 


•अर्चना शादी में न जा सकी, क्योंकि वह अस्वस्थ थी। 


•हाँ, मैं लखनऊ जाऊँगा।


•प्रखर, तुम बाहर मत जाओ।


• प्रज्ञा बाज़ार से केला, आम, सन्तरा, सेब व अंगूर लाई।


4. प्रश्नवाचक (?)


जब वाक्य मे क्या, कब, क्यों कहाँ, कैसे आदि शब्दों का प्रयोग होता है, वहाँ प्रश्नवाचक चिह्न लगाया जाता है।


 जैसे-


• राकेश इन्दौर कब जा रहा है ?


• आशीष किसके साथ जयपुर गया था ?


•पूर्णिमा कहां जा रही है ?


.• कृति क्या पढ़ रही है ?


● पंक्ति कब लौटकर आएगी ?



5- विस्मयवाचक चिन्ह (!)


विस्मयवाचक चिह्न का प्रयोग आश्चर्य, घृणा, हर्ष, विस्मय आदि भावों को व्यक्त करने वाले शब्दों के साथ किया जाता है।


 जैसे -


•अरे! तुम पढ़ चुके। 


•वाह! कितनी सुन्दर पोशाक है।


•हे प्रभु! अभिषेक को सद्बुद्धि दो।



 6. निर्देशक (-)


जब किसी व्यक्ति द्वारा कहे गए कथन को उद्धृत करना हो, वाक्य में टूटे हुए विचारों को जोड़ना हो, किसी रचना के बाद उसके कवि या लेखक का नाम लिखना हो तो निर्देशक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे


•अमृत- तुम कहाँ जा रहे हो ?


•कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले बच्चे निम्नलिखित है- सजल, प्रज्ञा प्रखर जुबिन, कृति, पंक्ति, गजल व चाहत।


7. उद्धरण (" ") 


जब किसी कथन को जैसा का तैसा उद्धृत करना हो तो उद्धरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है। 


जैसे- 


•मैंने डॉ. वत्स की 'मधुआला' पढ़ी। 


•डॉ. वर्मा ने कहा- "जो सदैव प्रसन्न रहते हैं वह स्वस्थ रहते है।


8. योजक (-)


जब समानार्थक शब्द लिखने हों, तो उनके मध्य योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


 जैसे


सुख-दुख, जीवन-मरण, दूर-दूर, पास-पास आदि।


9. विवरण चिह्न (:-)


जब किसी कथन को विस्तृत रूप से व्यक्त करना होता है तब


विवरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है, जैसे


निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए


10. कोष्टक ( )


कोष्टक का प्रयोग विकल्प दिखाने या क्रमसूचक अंको, अक्षरों के साथ होता है।


 जैसे -


(क),(ख), (10) ,(20)


11. लाघव (°) 


किसी बड़े शब्द को संक्षिप्त रूप से व्यक्त करने के लिए लाघव चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे-  डॉ. ,प्रो. ,कृ. ,प. ,उ., एम.ए., बी.ए. आदि।


12. हंसपद (^)


वाक्य लिखते समय जब कोई शब्द या अंश छूट जाता है तो इस चिह्न को लगाकर उस छूटे हुए शब्द को लिख दिया जाता है। 


जैसे -

                                 संविधान

•26 जनवरी 1950 को हमारा ^ लागू हुआ।


13. समतामूलक (=)


किसी शब्द का अर्थ लिखते समय समतामूलक शब्द का प्रयोग होता है। 


जैसे -


•ललित = सुन्दर


•निशीथ = रात्रि का द्वितीय प्रहर




संज्ञा किसे कहते हैं? परिभाषा ,भेद,उदाहरण sangya kise kahate Hain ?paribhasha bhed ,udaharan



संज्ञा (Noun)


किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, स्थिति, गुण अथवा भाव के नाम का बोध कराने वाले शब्दों को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा शब्दों के बिना भाषा का बनना असंभव है।


या


संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते हैं जिससे किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान ,भाव आदि के नाम का ज्ञान हो।



जैसे(Example)- राम, सीता ,गीता ,मेज ,कुर्सी, किताब, रामायण, कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ


1. अर्चना का घर इन्दौर में है। 


2. गंगा हिन्दुओं की पवित्र नदी है।


3. गाँधी जी ने अहिंसात्मक आंदोलन चलाया।


संज्ञा के भेद- part of noun


अर्थ के आधार पर संज्ञा के तीन भेद होते हैं-


1-व्यक्तिवाचक संज्ञा

2-जातिवाचक संज्ञा

3-भाववाचक संज्ञा


प्रयोग के आधार पर संज्ञा के पांच भेद माने गए हैं-



1. व्यक्तिवाचक संज्ञा proper noun


2. जातिवाचक संज्ञा common noun


3. समूहवाचक संज्ञा collective noun


4. द्रव्यवाचक संज्ञा material noun


5. भाववाचक संज्ञा abstract noun


1. व्यक्तिवाचक संज्ञा proper noun - जो संज्ञा शब्द किसी एक व्यक्ति वस्तु या स्थान का बोध कराते हैं, उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।


 जैसे- महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, सीता, रीता, आदि व्यक्तियों के नाम। दिल्ली, गुजरात, असम आदि स्थानों के नाम । रामायण, साकेत, पद्मावत्, कामायनी आदि ग्रन्थों के नाम , रमेश ,सुरेश ,महाभारत, कानपुर लखनऊ, भारत, चीन


2. जातिवाचक संज्ञा common noun- जो संज्ञा शब्द किसी प्राणी, पदार्थ या समुदाय की पूरी जाति का बोध कराते हैं, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।


जैसे- नर, नारी, ग्रंथ, पर्वत, कुत्ता, हाथी, फल, नदी गाय, बैल ,वर्षा ,मकान, डॉक्टर, मिठाई, अध्यापक ,वाहन ,वकील आदि । पर्वत शब्द जातिवाचक संज्ञा है, क्योंकि यह सभी प्रकार के पर्वतों का बोध कराता है, परन्तु एवरेस्ट पर्वत व्यक्तिवाचक संज्ञा है, क्योंकि यह एक विशेष पर्वत का बोध कराता है।


3. समूहवाचक संज्ञा collective noun - जो संज्ञा शब्द किसी समुदाय या समूह का बोध कराते हैं, समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।


 जैसे- सेना, टीम, संघ, कक्षा, गुच्छा, गिरोह, झुंड मंत्रिमंडल, बाजार आदि ।


4. द्रव्यवाचक संज्ञा material noun - जिन संज्ञा शब्दों से किसी ऐसे पदार्थ या द्रव्य का बोध हो जिसे हम नाप-तौल सकते हैं, लेकिन गिन नहीं सकते, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है।


 जैसे- लोहा, सोना, चाँदी, पीतल, ऊन, कपड़ा डीजल, पेट्रोल, धुआं आदि ।


5. भाववाचक संज्ञा abstract noun- जिन संज्ञा शब्दों से किसी व्यक्ति या वस्तु के - गुण, दशा, स्वभाव, अवस्था आदि का बोध हो वह भाववाचक संज्ञा कहलाती है।


जैसे- आशा, निराशा, क्रोध आदि भाव हैं, बुढ़ापा, भूखा, प्यासा, खट्टा, मीठा, कड़वा, नमकीन, सुंदरता, दूरी अपनापन, परायापन आदि दशा है।





सर्वनाम sarvnam


संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं, जैसे मैं, तुम यह, वह, उसके आदि। 


सर्वनाम भाषा को सुंदर, सहज और सुविधाजनक बनाते हैं, क्योंकि भाषा में एक ही शब्द की बार-बार आवृत्ति से भाषा की सुन्दरता समाप्त हो जाती है, जैसे किसी गद्यांश में श्वेता के विषय में बात हो रही है तो बार बार श्वेता का नाम लेना अटपटा लगेगा इसलिए वहाँ हम सर्वनाम का प्रयोग करते हैं।


हिंदी में कुछ ऐसे शब्द हैं (व्यक्ति, वस्तु) के नाम के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं उन्हें सर्वनाम कहते हैं। 


सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ है- सबका नाम


सर्वनाम 11 होते हैं।



सर्वनाम के भेद sarvnam ke bhed


सर्वनाम के छः भेद होते हैं- sarvnam ke chhah bhed hote Hain


1. पुरुषवाचक सर्वनाम purushvachak sarvnam


2. निश्चयवाचक सर्वनाम nishchayvachak sarvnam


3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम anishchayvachak sarvnam


4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम sambandhvachak sarvnam


5. प्रश्नवाचक सर्वनाम prachnvachak sarvnam


6. निजवाचक सर्वनाम nijvachak sarvnam




1. पुरुषवाचक सर्वनाम purushvachak sarvnam - 


वे सर्वनाम जो स्त्री या पुरुष के नाम के बदले प्रयुक्त किए जाते हैं, पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाते है। 


जिस शब्द से किसी पुरुष का ज्ञान हो उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं इसका प्रयोग वक्ता, श्रोता चर्चा का आधार अन्य व्यक्ति के लिए होता है।


पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं purushvachak sarvnam ke prakar


उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम Pratham purush vachak sarvnam- 


वक्ता या लेखक जब स्वय से संबंध रखने वाले सर्वनामों का प्रयोग करता है, वे प्रथम पुरुष कहलाते हैं, जैसे हम, हमारा, मैं, आप , मुझको, मैंने,मेरा, हमने, मुझे, हमें।


मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम madhyam purush vachak sarvnam -


 वक्ता द्वारा श्रोता के नाम के स्थान पर जिन सर्वनामों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें मध्यम पुरुष कहते हैं: जैसे -तू, तुम, आप, तुम्हें, आपने, तुमने, तुम्हारा, तुझको।


अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम Anya purush vachak sarvnam -


 वक्ता या लेखक सुनने या पढ़ने वालों के अलावा अन्य व्यक्तियों के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग करता है उन्हें अन्य पुरुष सर्वनाम कहते हैं, जैसे-वे, वह, उनका, उसे उन्हें, आदि।



उत्तम पुरुष

मैं ,हम ,मेरा ,हमारा, मैंने ,हमें ,आप ,मुझको

मध्यम पुरुष

तू, तुम, तुम्हारा ,तुझको ,तुम्हें ,आप

अन्य पुरुष

वह, वे, उन्हें, उनका




2. निश्चयवाचक सर्वनाम nishchayvachak sarvnam - 


वे सर्वनाम जो किसी निश्चित घटना, वस्तु, व्यक्ति या कर्म के लिए प्रयुक्त होते है, निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते है, जैसे-यह ,वह, वे, ये निश्चयवाचक सर्वनाम है।


•यह कलम राम का है।


•यह पुस्तक राम की है।


•उन्हें यहां बुलाओ।


•वे लोग कहां जा रहे हैं।


• वह अच्छे लोग है।


•ये सुकृत का घर है।


3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम anishchayvachak sarvnam - 


वे सर्वनाम जो किसी निश्चित वस्तु, व्यक्ति या घटना का बोध नहीं करते, अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं, जैसे- कुछ, कोई किसी आदि शब्दों का प्रयोग अनिश्चयवाचक सर्वनाम में किया जाता है।


•कोई खड़ा है।


•कोई किसी का क्या बिगाड़ लेगा।


•दाल में कुछ काला है।


• बाहर कोई है।


•रास्ते में कुछ खा लेना।


4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम sambandhvachak sarvnam -


जो सर्वनाम शब्द प्रधान वाक्य से आश्रित वाक्यों का सम्बन्ध जोड़ते हैं, उन्हें सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं, संबंधवाचक शब्दों का प्रयोग युग - रूप में होता है।


 जैसे- जो- सो , जैसी- वैसी, जिसकी -उसकी, जिसे -वही,


• यह वही लड़का है जिससे वर्षा की शादी हो रही है।


•जैसा करोगे वैसा भरोगे।


•जिसकी लाठी उसकी भैंस।


•जैसी करनी वैसी भरनी।




5. प्रश्नवाचक सर्वनाम prachnvachak sarvnam -


जिन शब्दों से किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या व्यापार के विषय में प्रश्न का बोध हो, उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं,


 जैसे-क्या, कब, किसे, किसने, कौन आदि। 


• घर की छत पर कौन है ?


•तुम्हें क्या खाना है ?


•सेब किसने खाया है ?


•तुम्हारा क्या नाम है?


•पुस्तक किसने चुराई है?


•तुम कहां रहते हो?


•तुम कैसे हो?


6. निजवाचक सर्वनाम nijavachak sarvnam -


 वक्ता या लेखक जिन सर्वनामो का प्रयोग स्वयं के लिए करता है वे निजवाचक सर्वनाम कहे जाते हैं, 


जैसे - स्वयं ,स्वत:, निज, खुद, मैं, हम ,आप


•मैं स्वयं समझ गया।


•मैं अपने सभी कार्य स्वयं ही करता हूँ।



• हम खुद ही इधर आ गए।


•मैं अपने कपड़े स्वयं बोलता हूं।


•मैं अपना खाना स्वयं ही पकाता हूं।




क्रिया kriya


जिस शब्द से किसी कार्य का करना या होना पाया जाये, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- खेलना, पढ़ना, लिखना इत्यादि।


क्रिया के मूलरूप को धातु कहते हैं। धातु में ना जोड़ने पर क्रिया का सामान्य रूप बनता है। पढ़ना क्रिया में पढ़ धातु है, इस प्रकार पढ़ धातु ना जोड़ने पर किया बनी है। 


क्रिया के उदाहरण- kriya ke udaharan


1- विक्रम पढ़ रहा है।


2- शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री थे।


3- महेश क्रिकेट खेल रहा है।


4- सुरेश खेल रहा है।


5- राजाराम पुस्तक पढ़ रहा है।


6- बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं।


7- सीता गाना गा रही है।


8- लड़कियां गाना गा रही हैं।


9- गीता चाय बना रही है।


10- मोहन पत्र लिखता है।


11- उसी ने बोला था।


12- राम ही सदा लिखता है।


13- अध्यापक छात्रों को पाठ पढ़ा रहा था।


14- राम ने कृष्ण को पत्र लिखा।


15- आज सभी पतंग उड़ा रहे हैं।


16- घनश्याम दूध पी रहा है।


17- मोहन खाना खा रहा है।


18- राधा बाजार जा रही है।


19- मीरा कपड़े धुल रही है।


20- सोहन सो रहा है।


क्रिया के शब्द- kriya ke shabd


•खेलना

• आना 

•जाना 

•कूदना

• नाचना

• पीना

• चलना

• नहाना

• धोना 

•रोना 

•सोना

 •पहनना



 क्रिया के भेद - kriya ke bhed


क्रिया के भेद अलग-अलग आधार पर तय किए जाते हैं, आता क्रिया के भेद जानने के लिए पहले क्रिया का वर्गीकरण जानना आवश्यक है क्रिया का वर्गीकरण तीन आधार पर किया गया है-


कर्म के आधार पर, प्रयोग एवं संरचना के आधार पर, तथा काल के आधार पर


1- कर्म के आधार पर क्रिया का वर्गीकरण


2- प्रयोग एवं संरचना के आधार पर क्रिया का वर्गीकरण


3- काल के आधार पर क्रिया का वर्गीकरण


कर्म के आधार पर क्रिया के भेद- karm ke Aadhar per kriya ke bhed


कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद होते हैं -


1- सकर्मक क्रिया-

2- अकर्मक क्रिया-




सकर्मक क्रिया किसे कहते हैं । sakarmak kriya kise kahate Hain


वे क्रियाएं जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं। धर्म क्रिया का अर्थ कर्म के साथ में होता है, अर्थात सकर्मक क्रिया में कर्म पाया जाता है। सकर्मक क्रिया दो प्रकार की होती है।


सकर्मक शब्द' स 'और 'कर्मक' से मिलकर बना है जहां 'स' उपसर्ग का अर्थ 'साथ में' तथा' कर्म 'का अर्थ 'कर्म के' होता है।


आसान भाषा में कहें तो वह क्रियाएं जिनके साथ कर्म का होना आवश्यक होता है अर्थात बिना कर्म के वाक्य का संपूर्ण भाव प्रकट नहीं होता है सकर्मक क्रिया होती है।


सकर्मक क्रिया के उदाहरण-sakarmak kriya ke udaharan


निम्नलिखित उदाहरण सकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं जिन्हें पढ़कर आप समझ सकते हैं कि सकर्मक क्रिया में कर्म पाया जाता है और सकर्मक क्रिया के वाक्य को कैसे पहचाने।


1- मीरा चाय बना रही है।


2- महेश पत्र लिखता है।


3- हमने एक नया घर बनाया।


4- वह मुझे अपना भाई मानती है।


5- मीरा खाना बनाती है।


6- रमेश सामान लाता है।


7- दिनेश ने आम खरीदे।


8- हम सब ने शरबत पिया।


9- श्याम साइकिल चलाता है।


10- मोहन पान खाता है।


11- राधा गाना गाती है।


12- राहुल टीवी देखता है।


13- कोमल कपड़े खरीद रही है।


14- सोहन कपड़े धो रहा है।


उपरोक्त सभी उदाहरणों में क्रिया का सीधा प्रभाव कर्म पर पड़ रहा है न की करता पर तथा यहां सकर्मक क्रिया है।


सकर्मक क्रिया कैसे पहचाने- sakarmak kriya kaise pahchane


सबसे पहले आपको वाक्य में क्रिया पद से पहले क्या लगा कर वाह को सवाल की तरह पढ़ना है। यदि उस वाक्य में सकर्मक क्रिया होगी तो, आपको वाक्य में प्रयुक्त कर्म के रूप में जवाब मिल जाएगा। यदि आपको जवाब नहीं मिले तो यकीनन वह वाक्य सकर्मक क्रिया का उदाहरण नहीं है।


जैसे- रमेश खाना बना रहा है। इस वक्त में हम क्रिया पद बना रहा है से पहले क्या लगाकर वाक्य को पढ़ते हैं- रमेश क्या बना रहा है? इस सवाल का जवाब होगा कि खाना बना रहा है अतः इस वाक्य में बना रहा है सकर्मक क्रिया है।


सकर्मक क्रिया के भेद- sakarmak kriya ke bhed


 1- पूर्ण सकर्मक क्रिया-purn sakarmak kriya


2- अपूर्ण सकर्मक क्रिया-apurn sakarmak kriya


पूर्ण सकर्मक क्रिया किसे कहते हैं-purn sakarmak kriya kise kahate Hain


सकर्मक क्रिया का वह रूप जिसमें क्रिया के साथ' कर्म 'के अतिरिक्त किसी अन्य पूरक शब्द संज्ञा या विशेषण की आवश्यकता नहीं होती उस क्रिया को पूर्ण सकर्मक क्रिया कहते हैं पूर्ण सकर्मक क्रिया के दो भेद होते हैं.


पूर्ण सकर्मक क्रिया के उदाहरण-purn sakarmak kriya ke udaharan


1- महेश ने घर बनाया।


2- बच्चा पी रहा है।


3- कुछ छात्र पढ़ रहे थे।


4- उसी ने बोला था।


5- राम ही सदा लिखता है।


6- राम एक मकान बनाया।


आप देख सकते हैं कि उपरोक्त सभी उदाहरण में कर्म के साथ किसी भी तरह का पूरक शब्द इस्तेमाल नहीं किया गया है। अतः यहां पूर्ण सकर्मक क्रिया है।


अपूर्ण सकर्मक क्रिया किसे कहते हैं apurn sakarmak kriya kise kahate Hain


अपूर्ण सकर्मक क्रिया- अकर्मक क्रिया का वह रूप जिसमें क्रिया के साथ कर्म के अतिरिक्त भी किसी न किसी पूरक शब्द (संज्ञा या विशेषण ) की आवश्यकता बनी रहती हो तो, उस क्रिया को अपूर्ण सकर्मक क्रिया कहते हैं ।चार क्रियाएं मानना ,समझना ,चुनना एवं बनाना (चयन के अर्थ में ) सदैव अपूर्ण सकर्मक क्रिया होती है।


आसान भाषा में कहें तो अपूर्ण सकर्मक क्रिया में पूरक शब्दों के बिना काम का पूर्ण होना नहीं पाया जाता।


अपूर्ण सकर्मक क्रिया के उदाहरण-apurn sakarmak kriya ke udaharan


1- नवीन सचिन को चतुर समझता है।


2- वह मुझे अपना भाई मानता है।


3- हमने रमेश को समिति का अध्यक्ष बनाया।


4- वह अपने आप को हिटलर समझती है।


5- सोहन मोहन को अपना दुश्मन समझता है।


6- देश ने मोदी को प्रधानमंत्री चुना था।


उपरोक्त सभी उदाहरणों में आप देख रहे हैं कि चतुर भाई अध्यक्ष हिटलर दुश्मन एवं प्रधानमंत्री पूरक शब्द है अतः यहां अपूर्ण सकर्मक क्रिया होगी।




अकर्मक क्रिया किसे कहते हैं-akarmak kriya kise kahate Hain


वे क्रियाएं जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त करता पर पड़ता है उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं। अकर्मक क्रिया का अर्थ कर्म के बिना होता है, अर्थात अकर्मक क्रिया के साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता है। अकर्मक शब्द अ और कर्मक से मिलकर बना है, जहां 'अ' उपसर्ग का अर्थ बिना तथा कर्मक का अर्थ कर्म के होता है।


अकर्मक क्रिया के उदाहरण-akarmak kriya ke udaharan


1- रमेश दौड़ रहा है।


2- मैं एक अध्यापिका थी।


3- वह मेरा मित्र है।


4- मैं रात भर नहीं सोया।


5- रमेश बैठा है।


6- बच्चा रो रहा है।


7- वह जा रहा है।


8- पिताजी आ रहे हैं।


उपरोक्त सभी उदाहरणों में कर्म कारक उपस्थित नहीं है अतः यहां अकर्मक क्रिया है।



सकर्मक और अकर्मक क्रिया की पहचान sakarmak aur akarmak kriya ki pahchan kaise karen


दोनों क्रियाओं में क्या किसे, किसको लगाकर यदि उत्तर प्राप्त होता है सकर्मक क्रिया, यदि उत्तर प्राप्त नहीं होता है तो अकर्मक क्रिया होगी।


जैसे- मोहन फल खाता है। (मोहन क्या खाता है ?) 


उत्तर मिला 'फल' यह सकर्मक क्रिया है। 


जैसे- मोहन खाता है। (मोहन क्या खाता है ?)


 कोई उत्तर न मिले तो अकर्मक क्रिया है।




1. संयुक्त क्रिया sanyukt kriya- 


दो या दो से अधिक क्रियाओं के योग से जो क्रिया बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।


जैसे-


1- सीमा खाना खा चुकी है।


2- रजनी ने खाना खा लिया।


3- मैंने पुस्तक पढ़ डाली है।


4- रोहन ने खाना बना लिया है।


2. नाम धातु क्रिया - Naam dhaatu kriya


जो क्रियाएँ संज्ञा या विशेषण से बनती हैं, नाम धातु क्रियाएँ कहलाती हैं।


संज्ञा से-  हाथ हथियाना


विशेषण से- गर्म से गरमाना


3. प्रेरणार्थक क्रिया-prernarthak kriya


 इसमें कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है ।


जैसे-


1- लिखना से लिखवाना।


2- रतन महेश से पत्र लिखवाता जाता है।


3- सविता कविता से कपड़े धुलवाती है।


4- अध्यापक बच्चों से पाठ पढ़ाता है।


5- सोहन मां से खाना बनाता है।


6- शंकर विजय से साइकिल चलवाता है।



4. पूर्वकालिक क्रिया- purnakalik kriya


जब कर्ता एक क्रिया को समाप्त करके दूसरी क्रिया आरम्भ कर दे, उसमें पहली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है।


जैसे-


1- राम पढ़ाई करके सो गया। (पढ़ाई करके पूर्वकालिक किया है) ।


2- विकास पढ़ कर सो गया।


3- वह नहा कर चला गया।


4- रोहन ने खाना खाकर चाय पी।


5- कोमल नहा कर मंदिर जाएगी।


6- सोहन खेलकर नहाने जाएगा।




क्रिया-विशेषण kriya visheshan


जो शब्द क्रिया के अर्थ में विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रिया-विशेषण हैं।


अर्थ के आधार पर क्रिया-विशेषण भेद- Arth ke Aadhar per kriya visheshan ke bhed


1. स्थानवाचक-sthanvachak  जिन शब्दों से क्रिया के स्थान का बोध हो जैसे- यहाँ वहाँ, जहाँ, तहाँ, ऊपर, नीचे, आगे, बाहर इत्यादि ।


2. परिमाणवाचक pariman vachak -जिन शब्दों से क्रिया के परिमाण का बोध जैसे- बारी-बारी, पूर्णतया, क्रमशः, जितना, थोड़ा-थोड़ा, दो-दो इत्यादि । कुल


3. कालवाचक call vachak-जिन शब्दों से क्रिया के काल का बोध हो; जैसे-आज कल, परसों, कभी न कभी, सदैव इत्यादि !


4. दिशावाचक Disha vachak-जिन शब्दों से क्रिया की दिशा का बोध हो जैसे-दायें-बाये, एक ओर, इत्यादि ।






विशेषण (visheshan)


जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं।


जैसे -काला घोड़ा, मीठे फल, दस सेब, दो किलो चीनी, गोरा लड़का आदि। इन शब्दों में काला, मीठे, दस, दो किलो व गोरा शब्द विशेषण हैं।


घोड़ा बहुत काला है।


घोड़ा- विशेष्य

बहुत- प्रविशेषण

काला -विशेषण


विशेषण के भेद- visheshan ke bhed


विशेषण के चार भेद होते हैं-


1. गुणवाचक विशेषण


2. परिमाणवाचक विशेषण


3. संख्यावाचक विशेषण


4. सार्वनामिक विशेषण


1. गुणवाचक विशेषण (gunvachak visheshan )- जिन शब्दों के द्वारा संज्ञा के गुण अथवा दोष, स्थिति ,दिशा ,दशा ,रंग ,रूप का बोध होता है, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं;


 जैसे -


गुण -दोष  ईमानदारी, परिश्रमी, मिलनसार, बुद्धिमान, पवित्र, अयोग्य,पापी, दुष्ट, चतुर, दानी, दयालु, सज्जन दुर्जन ।


दशा- रोगी, निरोगी, मोटा, पतला, धनवान, स्वस्थ, कमज़ोर,बलिष्ठ , बीमार , नया, पुराना, फटा।


दिशा-  पूर्व ,पश्चिम ,उत्तर, दक्षिण        


काल- प्राचीन काल ,भूतकाल ,भविष्य काल ,वर्तमान काल, ताजा ,बासी    


अवस्था- बूढ़ा, जवान, शिशु, बाल्यावस्था


स्वाद-  मीठा खट्टा तीखा


गंध- खुशबूदार, बदबूदार


स्पर्श- खटमल कोमल खुरदरा


 स्थान-  देश - जापानी, चीनी, भारतीय, मैदानी, पहाड़ी नेपाल पर्वतीय शहरी ग्रामीण ।


रूप, रंग- काली, पीली, गुलाबी, चमकीला, गेहुआ, गोरा, काला ,सुंदर ,नीला।


 आकार -प्रकार - छोटा, नाटा, आयताकार, पतला, चौड़ा, छोटा। 


स्वाद / गंध- फीका, तीखा, सुगंधित, गंधहीन, खट्टा


2. परिमाणवाचक विशेषण( parimanavachak visheshan)-जिन शब्दों से किसी संज्ञा या सर्वनाम की मात्रा या परिमाण की जानकारी होती है उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।


जैसे- पाँच लीटर, दो किलो, बहुत-सी, थोड़ा आदि।

पाँच किलो सेब दो


• बहुत सारे लोग हमारे घर आए।


•मैं ज्यादा मीठा नहीं खा सकता।


इसके दो उपभेद होते हैं-


i- निश्चित परिमाणवाचक विशेषण (nishchit pariman vachak visheshan)-


ii- अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण ( anishchit parimanavachak visheshan)-


i-निश्चित परिमाणवाचक विशेषण( nishchit parimanavachak visheshan)- जिस शब्द से निश्चित माप- तौल संबंधी विशेषता का ज्ञान हो निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाता है।


जैसे- 10 मीटर रस्सी, 10 तोला सोना, 5 किलो गेहूं


ii- अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण (anishchit pariman vachak visheshan)- जिस शब्द से अनिश्चित माप- तौल संबंधी विशेषता का ज्ञान हो अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाता है।


जैसे- दसियो तोला सोना, पचासों तोला चांदी, दसियों किलो गेहूं, दसियो लीटर तेल, कुछ दूरी, थोड़ा पानी।


3. संख्यावाचक विशेषण (sankhyavachak visheshan)- जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध होता है, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।


 जैसे-पहला, चौथा, थोड़े, कई, दसवां आदि। 


संख्यावाचक विशेषण के दो भेद होते हैं -


(i) निश्चित संख्यावाचक (nishchit sankhyavachak visheshan)


 (ii) अनिश्चित संख्यावाचक (anishchit sankhyavachak visheshan)


(i) निश्चित संख्यावाचक( nishchit sankhyavachak visheshan)- विशेषण शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की निश्चित संख्या का बोध होता है, उन्हें निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।


 जैसे- एक, तीन, चार, दस हजार आदि ।


अंक बोधक- 1,2,3,  पूर्ण ,अपूर्ण ,आधा ,डेढ़, ढाई , पौने तीन, सवा चार, सवा पांच 


 क्रम बोधक- पहला, दूसरा, तीसरा ,चौथा आदि।


 आवृत्ति बोधक - दोगुनी, तीन गुनी, इकहरा ,दोहरा


समुदाय बोधक- सबके सब ,दो के दोनों ,चार के चारों ,दस के दस 


समुच्चयबोधक- युग्म, दर्जन ,जोड़ा ,शतक ,अर्धशतक, चालीसा आदि।


प्रत्येक बोधक- प्रत्येक, हर एक, प्रतिवर्ष ,दो -दो, चार- चार , एक- एक आदि।


(ii) अनिश्चित संख्यावाचक( anishchit sankhyavachak visheshan)- जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की निश्चित संख्या का बोध न हो, उन्हें अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।


जैसे- कुछ ,थोड़े ,अनेक, कई ,काफी  दसियों बीसियो ,हजारों आदि ।


4. सार्वनामिक विशेषण (sarvnamic visheshan) - जो सर्वनाम विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं, वे सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं।


जैसे-यह, वह, कोई, ऐसा, ऐसी, वैसा, वैसी आदि। यह सज्ञा शब्दों के पहले प्रयुक्त होकर विशेषण का कार्य करते हैं।


 जैसे-


• वह लड़की बहुत होशियार है।


• इस किताब को जरूर पढ़िए ।


•उनके घर आज कार्यक्रम है।





कारक  की परिभाषा karak ki paribhasha


संज्ञा या सर्वनाम की क्रिया के साथ भूमिका निश्चित करने वाले शब्द कारक कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में क्रिया के साथ जिसका सीधा सम्बन्ध हो, उसे कारक कहते हैं, 


जैसे - पुलिस ने चोर को डंडे से मारा ।


इस वाक्य मे क्रिया है मारा ,कर्ता है ,पुलिस ने है कारक।


कारक के प्रकार- 


कारको के 8 भेद है। कारक तथा उनके विभक्ति चिह्न निम्नलिखित है-



  कारक 

  विभक्तियां

1.कर्ता ( क्रिया को करने वाला)

ने

2. कर्म (जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़ता है)

को

3. करण (जिस साधन से क्रिया हो)

से, के द्वारा, के साथ ,के कारण

4. संप्रदान (जिसके लिए क्रिया की गई हो)

के लिए ,को

5. अपादान (जिससे पृथकता हो)

से (प्रथक होने के अर्थ में)

6.संबंध (क्रिया के संचालन का आधार)

का ,की, के ,रा, री ,रे ,ना ,नी, ने

7. अधिकरण (क्रिया करने का स्थान)


8. संबोधन (जिस संज्ञा को संबोधित किया जाए)

में, पर, के ऊपर ,के भीतर


ऐ! हे !अरे !ओ!




1. कर्ता कारक - कर्ता शब्द का अर्थ है, क्रिया को करने वाला। बिना कर्ता के क्रिया सभव नहीं है ।


संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो उसे कर्ता कारक कहते हैं इसका चिन्ह 'ने ' कभी कर्ता के साथ लगता है ।


कर्ता कारक के उदाहरण


•रमेश ने पुस्तक पढ़ी।


•सुशीला खेलती है।


•पक्षी उड़ता है।


•सोहन ने पत्र पढ़ा।


•मोहन किताब पढ़ता है।


•सुरेंद्र पत्र लिखता है।


•अध्यापक ने विद्यार्थियों को पढ़ाया।


•पुजारी जी पूजा कर रहे हैं।


•कृष्ण ने सुदामा की सहायता की।


•सीता गाना गाती है।


•राधा बाजार जाती है।


• बच्चों ने किताबें ली ।


• माताजी ने खाना खाया।


2. कर्म कारक-  क्रिया का प्रभाव जिस संज्ञा या सर्वनाम पर पड़ता उसे कर्म कारक कहते हैं।


संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप पर क्रिया का प्रभाव या फल पड़े, उससे कर्म कारक कहते हैं। कर्म के साथ 'को 'विभक्ति आती है ।इसकी यही सबसे बड़ी पहचान होती है। कभी-कभी वाक्यों में 'को' विभक्ति का लोप भी होता है।


 कर्म कारक के उदाहरण


 •राम ने रावण को मारा । 


•उसने सुनील को पढ़ाया।


•मोहन ने चोर को पकड़ा।


•सोहन ने रोहन को देखा।


•कविता पुस्तक पढ़ रही है।


•गोपाल ने सीता को बुलाया।


•मेरे द्वारा यह काम हुआ।


•कृष्ण ने कंस को मारा।


•राम को बुलाओ।


•बड़ों को सम्मान दो।


•मां बच्चे को सुला रही है।


•उसने पत्र लिखा।


•सोहन को कसौली घूमने था।


•सोहन ने रोहन को पत्र लिखा।


•मां ने बच्चे को खाना दिया।



यहाँ कर्ता राम है और उसके मारने का फल रावण पर पड़ता है। अतः रावण कर्म है। यहाँ रावण के साथ कारक चिह्न का प्रयोग हुआ है।


"कहना" और "पूछना" के साथ "से" प्रयोग होता है इसके साथ "को" का प्रयोग नहीं होता जैसे-


•कबीर ने रहीम से कहा।


•सोहन ने रोहन से पूछा।


•सोहन ने हिमांशु से पूछा।


3. करण कारक- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप के सहयोग से क्रिया संपन्न होती है, उसे करण कारक कहते हैं। 


जिस साधन से अथवा जिसके द्वारा क्रिया पूरी की जाती है, उस संज्ञा को करण कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान 'से' अथवा 'द्वारा' है 


करण कारक के उदाहरण


•रहीम गेंद से खेलता है।


•पुलिस चोर को लाठी द्वारा मारती है।


•रोहन गाड़ी चलाता है।


•हम दाल के साथ चावल खाते हैं ।


• मैं सजल के साथ किताबें भेज दूँगा।


•रोहन पेन से लिखता है।


•सोहन बैट से खेलता है।


यहां 'गेंद से' 'लाठी द्वारा' और 'गाड़ी चलाता' करण कारक है।


4. सम्प्रदान कारक - जिसके लिए क्रिया की जाती है या जिसे कुछ दिया जाता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। इसमें कर्म कारक 'को' भी प्रयुक्त होता है किंतु उसका अर्थ 'के लिए' होता है


 सम्प्रदान  कारक के उदाहरण


• सुनील रवि के लिए गेंद लाता है।


•हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।


•मां बच्चे को खिलौना देती है।


•अमन ने श्याम को सेब दिया।


•मां बेटे के लिए अंगूर लाई।


•मैं सोहन के लिए चाय बना रहा हूं।


•मैं बाजार को जा रहा हूं।


•भूखे के लिए रोटी लाओ।


•वह मेरे लिए उपहार लाए हैं।


•सोहन रमेश को पुस्तक देता है।


•सीता गीता को पुष्प देती है।


•माँ ने बच्चे को खाना दिया ।


• प्रखर प्रज्ञा के लिए मिठाई लाया ।


उपरोक्त वाक्यों में 'रवि के लिए' 'पढ़ने के लिए' और बच्चे को संप्रदान कारक है।


5. अपादान कारक - जब संज्ञा या सर्वनाम के किसी रूप से अलग होने का भाव प्रकट होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं।


अपादान का अर्थ है- अलग होना। जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम से किसी वस्तु का अलग होना मालूम चलता हो ,उसे अपादान कारक कहते हैं। करण कारक की तरह अपादान कारक का चिन्ह भी 'से' है ,परंतु करण कारक में इसका अर्थ सहायता होता है और अपादान में अलग होना होता है 


अपादान कारक के उदाहरण


 

•हिमालय से गंगा निकलती है।


•वृक्ष से पत्ता गिरता है।


•सोहन के हाथ से फल गिरता है।


•गंगा हिमालय से निकलती है।


•लड़का छत से गिरा है।


•पेड़ से पत्ते गिरे।


•आसमान से बूंदे गिरी।


•वह सांप से डरता है।


•दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा।


•चूहा बिल से बाहर निकला।


•रोहन घर से बाहर गया।


•पेड़ से पत्ता गिरता है ।


• गंगा हिमालय से निकलती है।


इन वाक्यों में 'हिमालय से' 'वृक्ष से' 'छत से 'अपादान कारक है।


6. सम्बन्ध कारक- किसी संज्ञा या सर्वनाम का अन्य संज्ञा या सर्वनाम से संबंध बताने वाले शब्द सम्बन्धकारक कहलाते हैं। 


संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का संबंध दूसरी वस्तु से जाना जाए उसे संबंध कारक कहते हैं। की मुख्य पहचान है - 'का' 'की' 'के' 


संबंध कारक के उदाहरण-


•राहुल की किताब मैच पर है।


•सुनीता का घर दूर है।


•प्रखर का घर बहुत सुन्दर है ।


• यह प्रशान्त की साइकिल है।


7. अधिकरण कारक- क्रिया होने के स्थान और काल को बताने वाले कारक को अधिकरण कारक कहते हैं।


संज्ञा के जिस रुप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं इसकी मुख्य पहचान है 'में' 'पर' होती है 


अधिकरण कारक के उदाहरण


•घर पर मां है।


•घोसले में चिड़िया है।


•सड़क पर गाड़ी खड़ी है।


•मछलियाँ जल में रहती हैं तथा 


•पुस्तक मेज पर रखी है।


यहां 'घर पर' 'घोसले में' और 'सड़क पर' अधिकरण कारक है।



8. संबोधन कारक- संज्ञा के जिस रूप से किसी को बुलाया या पुकारा जाता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं।


संज्ञा या जिस रूप से किसी को पुकारने तथा सावधान करने का बोध हो उसे संबोधन कारक कहते हैं। इसका संबंध न क्रिया से और न किसी दूसरे शब्द से होता है ।यह वाक्य से अलग रहता है इसका कोई कारक चिह्न भी नहीं है 


संबोधन कारक के उदाहरण


 

•खबरदार!


•रीना को मत मारो।


•रमा! देखो कैसा सुंदर दृश्य है।


•वाह !ताज महल कितना सुंदर है।


•अरे !यह क्या हो गया।


•हे प्रभु! रक्षा करो ।


•बच्चों! खूब मन लगाकर पढ़ो।


कर्म और सम्प्रदान कारक में अंतर


• इन दोनों कारक में 'को' विभक्ति का प्रयोग होता है।


कर्म कारक में क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या उपकार के भाव में को का प्रयोग होता है। जैसे -


(i) विकास ने सोहन को आम खिलाया।


(ii) मोहन ने साँप को मारा।


(iii) राजू ने रोगी को दवाई दी।


(iv) स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।


करण और अपादान कारक में अंतर


• करण और अपादान दोनों ही कारकों में 'से' चिन्ह का प्रयोग होता है।


परन्तु अर्थ के आधार पर दोनों में अंतर होता है।


• करण कारक में जहाँ पर 'से' का प्रयोग साधन के लिए होता है, वहीं पर अपादान कारक में अलग होने के लिए किया जाता है।


• कर्ता कार्य करने के लिए जिस साधन का प्रयोग करता है उसे करण कारक कहते हैं।


• लेकिन अपादान में अलगाव या दूर जाने का भाव निहित होता है।


जैसे


(i) मैं कलम से लिखता हूँ। 


(ii) जेब से सिक्का गिरा।


(iii) बालक गेंद से खेल रहे हैं।


(iv) सुनीता घोड़े से गिर पड़ी।


(v) गंगा हिमालय से निकलती है।


विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं


विभक्तियां आत्मनिर्भर होती हैं और इनका वजूद भी इसलिए आत्मनिर्भर होता है। यह शब्द सहायक होते हैं जो किसी वाक्य के साथ मिलकर उसे एक मतलब देते हैं, जैसे ने, से आदि ।


हिंदी में विभक्तियां विशेष रूप से सर्वनामों के साथ प्रयोग होकर डिसऑर्डर बना देती हैं और उनसे मिल जाती हैं। जैसे मेरा, हमारा, उसे, उन्हें आदि।


• विभक्तियों को संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयोग किया जाता है। जैसे- मोहन के घर से यह सामान आया है।




उपसर्ग


वे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व अथवा पहले लगकर उस शब्द का अर्थ बदल देते हैं ,उपसर्ग कहलाते हैं। 


यह दो शब्दों उप + सर्ग के योग से बनता है। 'उप' का अर्थ समीप है और सर्ग का आशय सृष्टि करना है। अर्थात जो पास में बैठकर अन्य नये अर्थों से युक्त शब्द की रचना करें । उपसर्गों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता फिर भी वे अन्य शब्दों के साथ मिलकर उनके एक विशेष आशय का बोध कराते हैं उपसर्ग का प्रयोग शब्दों के पहले होता है।


जैसे-  अप + मान = अपमान


यहां 'अप ' शब्दांश 'मान' शब्द के साथ जुड़कर नए शब्द का निर्माण करता है।


उपसर्ग किसी शब्द के आरंभ में जुड़ते हैं और जिस शब्द के आदि में जोड़ते हैं, उसका मूल अर्थ बदल जाता है। अर्थात एक नए शब्द की रचना अथवा निर्माण हो जाता है। किसी शब्द के साथ सही संगति पर ही उपसर्ग अर्थवान होता है। हिंदी भाषा में संस्कृत हिंदी और उर्दू भाषा के उपसर्ग व्यवहार में लाए जाते हैं।


संस्कृत उपसर्ग- 


अ- अभाव


असत्य = अ + सत्य


अबोध =  अ + बोध


अमिट =  अ  + मिट 


अहिंसा =  अ+ हिंसा



अति- अधिक, ऊपर


अत्यन्त = अति + अंत


अत्याचार = अति + आचार


अतिप्राचीन = अति + प्राचीन


अत्यधिक = अति + अधिक



अधि- ऊपर, श्रेष्ठ


अधिनियम = अधि + नियम


अधिकार = अधि + कार


अधिसूचना = अधि + सूचना


अधिशुल्क = अधि + शुल्क


अनु-पीछे, समान


अनुभव = अनु + भव


अनुसार = अनु  + सार


अनुप्रयोग = अनु + प्रयोग



अप-दूर, हीन, बुरा, परे


अपशब्द = अप + शब्द


अपकार = अप + कार


अपकर्म = अप + कर्म


अपकीर्ति = अप + कीर्ति


अभि-ओर, सामने, पास


अभिशाप = अभि + शाप


अभीष्ट = अभि + इष्ट


अभियान = अभि + मान


अभ्यागत = अभि + आगत



अब-नीचे, हीन बुरा


अवसान = अव + सान


अवतार = अव + तार


अवमूल्यन = अव + मूल्यन


अवतरण = अव + तरण


आ- ओर, सीमा, तक, समेत


आगमन = आ + गमन


आदेश = आ + देश


आकंठ = आ + कंठ


आक्रमण = आ + क्रमण


उत , उद - श्रेष्ठ, ऊपर , ऊंचा


उत्कंठा =  उत् + कण्ठा


उत्पात =  उत् + पात


उत्कर्ष =  उत् + कर्ष


उद्धार  =  उत् + हार


उप - समान ,निकट 


उपहास = उप + ह्रास


उपकूल = उप + कूल


उपकृत = उप + कृत


उपग्रह =  उप + ग्रह


दुर् दुस् - बुरा , कठिन


दुष्कर =  दुस् + कर 


दुर्बल =   दुर् + बल


दुराचार =  दुर् + आचार 


दुर्गति =  दुर् + गति


नि - निपुणता ,बहार 


निरोग =  नि + रोग 


निपात = नि + पात


नियम =  नि + यम


निरोग =  नि + योग


निस्, निर - निषेध , रहित, बिना


निष्कलंक = निस् + कलंक


निष्प्राण = निस् + प्राण


निरपराध = निर् + अपराध


निश्छल = निस् + छल


परा -  उल्टा , विपरीत


 पराक्रम =  परा + क्रम


पराजय = परा + जय


पराभव =  परा + हल


पराक्रम = परा + क्रम


परि - पूर्ण, चारों ओर


परिकल्पना =  परि + कल्पना


परिचालक = परि +‌ चालक


परिक्रमा = परि + क्रमा


परिवर्तन = परि + वर्तन


प्र- आगे , अधिक


प्रवक्ता = प्र + वक्ता


प्रहार =  प्र + हार


प्रकृति =  प्र + कृति


प्रख्यात = प्र + ख्यात


प्रति - विरुद्ध ,सामने, हरेक


प्रतिध्वनि =  प्रति + ध्वनि


प्रत्यक्ष  = प्रति + अक्ष


प्रतिनियुक्ति  = प्रति + नियुक्ति


प्रतिवादी = प्रति + वादी


वी - विशेष ,भिन्न


वियोग = वि + योग


विक्रय = वि + क्रय


विजय = वि + जय


विवाद = वि + वाद


हिंदी के उपसर्ग -


अ- अभाव, निषेध


अलग ,अथाह अजर अभागा, अमर , अंजान, अपढ़,अमोल, अछूत, अभाव


अध- आधा 


अधमरा, अधकचरा, अधखाया, अधपचा, अधबीच,अधसेरा,अधजला अधखिला, अधपका


अन- निषेध, अभाव


अनपढ़, अनमोल, अनबोला, अनदेखी, अनबन, अनमना, अनमेल, अनकहा, अनसुनी, अनजान, अनहोनी


उन- एक कम


उन्नीस, उनतीस, उनतालीस, उन्चास


औ / अव - हीन


औतार, औगुन, औढर, औगुण, अवगुण


क/ कु- बुरा


कपूत, कुढंग, कुचक्र, कुटेव, कुचाल


चौ - चार


चौकन्ना, चौपाई ,चौपाया ,चौमासा, चौराहा


दु - कम 


दुबला, दुसाध्य 


नि- रहित


निकम्मा, निगोड़ा, निहत्था, निठल्ला, निधड़का, निडर


पर - दूसरा


परदादा, परनाना ,परपोता


बिन - रहित 


बिनब्याहा, बिनपढ़ा, बिनमांगा, बिनखाया, बिनबात


भर- भरा हुआ


भरपेट, भरमार, भरसक, भरपूर


स/सु - सहित , अच्छा


सुडोल, सुजान, सुघड़,सुकन्या ,सुफल, सचेत, सकाम ,सहित, सपूत


उर्दू व फारसी के उपसर्ग


ऐन - ठीक ,पूरा


ऐनवक्त, ऐनमौका


कम - थोड़ा , हीन


कमजोर, कमकीमत,कमअक्ल ,कमसिन कमबख्त ,कम उम्र ,कमखर्च


खुश - अच्छा


खुशदिल, खुशबू ,खुशखबरी ,खुशनसीब ,खुशमिजाज ,खुशकिस्मत


गैर - भिन्न


गैरहाजिर ,गैरसरकारी, गैरकानूनी ,गैरजिम्मेदारी


दर- में


दरहकीकत, दरअसल, 


ना- नहीं


नालायक, नापसंद, नासमझ ,नाबालिक, नामाकूल नाउम्मीद ,नाराज  ,नकारा, नादान


ब - साथ

 

बनाम, बदौलत, बगैर, बखूबी, बदस्तूर


बद - बुरा


बदनाम, बदसूरत ,बदकिस्मत, बदबू ,बद्दुआ ,बदनसीब


यह भी पढ़ें 👇👇👇

👉गणतंत्र दिवस पर निबंध


👉छायावादी युग तथा इसकी प्रमुख विशेषताएं


👉आत्मकथा तथा जीवनी में अंतर


👉मुहावरे तथा लोकोक्ति में अंतर


👉नाटक तथा एकांकी में अंतर


👉खंडकाव्य तथा महाकाव्य में अंतर


👉राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा में अंतर


👉निबंध तथा कहानी में अंतर


👉उपन्यास तथा कहानी में अंतर


👉नई कविता की विशेषताएं


👉निबंध क्या है ? निबंध कितने प्रकार के होते हैं ?


👉उपन्यास किसे कहते हैं ? उपन्यास के प्रकार


👉रिपोर्ताज किसे कहते हैं? रिपोतार्ज का अर्थ एवं परिभाषा


👉रेखाचित्र किसे कहते हैं ?एवं रेखाचित्र की प्रमुख विशेषताएं


👉आलोचना किसे कहते हैं? प्रमुख आलोचना लेखक


👉डायरी किसे कहते हैं?


👉संधि और समास में अंतर


👉भारतेंदु युग की प्रमुख विशेषताएं



👉विज्ञान पर निबंध


👉विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं अधिकार


👉कहानी कथन विधि क्या है ?


👉रस किसे कहते हैं ? इसकी परिभाषा


👉महात्मा गांधी पर अंग्रेजी में 10 लाइनें


👉B.Ed करने के फायदे।


👉BTC करने के फायदे।







👉विलोम शब्द किसे कहते हैं? परिभाषा एवं उदाहरण


































Post a Comment

Previous Post Next Post

Top Post Ad

Below Post Ad