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छात्र और अनुशासन || Essay on Students and Discipline

 छात्र और अनुशासन || Essay on Students and Discipline


अनुशासन का महत्त्व


नैतिक शिक्षा का महत्त्व


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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट bandana Classes.com पर। दोस्तों आज की पोस्ट में हम आपके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण निबंध जिसका शीर्षक है- " छात्र और अनुशासन" अथवा " छात्र और अनुशासन का महत्व", निबंध लेकर आए हैं। मित्रों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अक्सर हमारी बोर्ड परीक्षाओं या विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं में ' छात्र और अनुशासन' शीर्षक पर निबंध लिखने के लिए पूछा जाता है। ' छात्र और अनुशासन' या ' छात्र और अनुशासन का महत्व' यह एक ऐसा निबंध है, जिसमें आप बहुत ही अच्छे अंक अपनी परीक्षा में प्राप्त कर सकते हैं। बशर्ते इस विषय पर आपकी मजबूत पकड़ और जानकारी होनी चाहिए। मित्रों, " छात्र और अनुशासन का महत्व" निबंध लिखते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि एक्जाम या परीक्षा हॉल में हमारी भाषा शैली और हमारा कंटेंट उच्च स्तर का एवं वर्तनी शुद्ध होनी चाहिए, जिससे  छात्र और अनुशासन निबंध पर हमें परीक्षा में बहुत अच्छे अंक हासिल हो सके। इसलिए  छात्र और अनुशासन का महत्व बहुत अधिक है।  मित्रों यदि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आए तो इसे सोशल मीडिया एवं अपने दोस्तों में अधिक से अधिक शेयर करिएगा। इसके साथ ही हमारे यूट्यूब चैनल (YouTube Channel) Bandana study classes और ‌ Bandana Education center को भी subscribe कर लीजिए जहां पर आपको अपनी पढ़ाई से संबंधित महत्वपूर्ण वीडियो मिल जाएंगे।



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रूपरेखा   (1) प्रस्तावना, (2) विद्यार्थी और विद्या, (3) अनुशासन का स्वरूप और महत्त्व (4) अनुशासनहीनता के कारण, (5) निवारण के उपाय, (6) उपसंहार।



प्रस्तावना - विद्यार्थी देश का भविष्य हैं। देश के प्रत्येक प्रकार का विकास विद्यार्थियों पर ही निर्भर है। विद्यार्थी जाति, समाज और देश का निर्माता होता है; - अतः विद्यार्थी का चरित्र उत्तम होना बहुत आवश्यक है। उत्तम चरित्र अनुशासन ही बनता है। अनुशासन जीवन का प्रमुख अंग और विद्यार्थी जीवन की आधारशिला है। व्यवस्थित जीवन व्यतीत करने के लिए मात्र विद्यार्थी ही नहीं अपितु प्रत्येक मनुष्य के लिए अनुशासित होना अति आवश्यक है। आज  विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की शिकायत सामान्य सी बात हो गयी है। इससे शिक्षा-जगत् ही नहीं, अपितु सारा समाज प्रभावित हुआ है।


 विद्यार्थी और विद्या- 'विद्यार्थी' का अर्थ है-'विद्या का अर्थी' अर्थात् विद्या प्राप्त करने की कामना करने वाला। विद्या लौकिक या सांसारिक जीवन की सफलता का मूल आधार है, जो गुरु कृपा से प्राप्त होती है। संसार में विद्या सर्वाधिक मूल्यवान् वस्तु है, जिस पर मनुष्य के भावी जीवन का सम्पूर्ण विकास तथा सम्पूर्ण उन्नति निर्भर करती है। इसी कारण महाकवि भर्तृहरि विद्या की प्रशंसा करते हुए कहते हैं—“विद्या ही मनुष्य का श्रेष्ठ स्वरूप है, विद्या भली-भाँति छिपाया हुआ धन है (जिसे दूसरा चुरा नहीं सकता ) । विद्या ही सांसारिक भोगों को तथा यश और सुख को देने वाली है, विद्या गुरुओं की भी गुरु है। विद्या ही श्रेष्ठ देवता है। राजदरबार में विद्या ही आदर दिलाती है, धन नहीं। अतः जिसमें विद्या नहीं, वह निरा पशु है।" इस अमूल्य विद्यारूपी रत्न को पाने के लिए इसका जो मूल्य चुकाना पड़ता है, वह है तपस्या। इस तपस्या का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कवि कहता है


सुखार्थिनः कुतो विद्या, कुतो विद्यार्थिनः सुखम् । सुखार्थी वा त्यजेद् विद्या, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥


अनुशासन का स्वरूप और महत्त्व - 'अनुशासन' का अर्थ है-बड़ों की आज्ञा (शासन) के पीछे (अनु) चलना। 'अनुशासन' का अर्थ वह मर्यादा है जिनका पालन ही विद्या प्राप्त करने और उसका उपयोग करने के लिए अनिवार्य होता है। अनुशासन का भाव सहज रूप से विकसित किया जाना चाहिए। थोपे जाने पर अथवा बलपूर्वक पालन कराये जाने पर यह लगभग अपना उद्देश्य खो देता है। विद्यार्थियों के प्रति प्रायः सभी को यह शिकायत रहती है कि वे अनुशासनहीन होते जा रहे हैं, किन्तु शिक्षक वर्ग को भी इसका कारण ढूँढ़ना चाहिए कि क्यों विद्यार्थियों की उनमें श्रद्धा विलुप्त होती जा रही है। कहीं इसका कारण स्वयं शिक्षक या उनके माता-पिता तो नहीं हैं।


अनुशासनहीनता के कारण-वस्तुतः विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता एक दिन में पैदा नहीं हुई है। इसके अनेक कारण हैं, जिन्हें मुख्यत: निम्नलिखित चार वर्गों में बाँटा जा सकता है


(क) पारिवारिक कारण- बालक की पहली पाठशाला उसका परिवार है। माता-पिता के आचरण का बालक पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज बहुत से ऐसे परिवार हैं जिनमें माता-पिता दोनों नौकरी करते या अलग-अलग व्यस्त रहते हैं। इससे बालक उपेक्षित होकर विद्रोही बन जाता है।


(ख) सामाजिक कारण-विद्यार्थी जब समाज में चतुर्दिक व्याप्त भ्रष्टाचार, घूसखोरी, सिफारिशबाजी, भाई-भतीजावाद, फैशनपरस्ती, विलासिता और भोगवाद अर्थात् हर स्तर पर व्याप्त अनैतिकता को देखता है तो वह विद्रोह कर उठता है और अध्ययन की उपेक्षा करने लगता है।



(ग) राजनीतिक कारण - छात्र - अनुशासनहीनता का एक बहुत बड़ा कारण दूषित राजनीति है। आज राजनीति जीवन के हर क्षेत्र पर छा गयी है। सारे वातावरण को उसने इतना विषाक्त कर दिया है कि स्वस्थ वातावरण में साँस लेना कठिन हो गया है।


(घ) शैक्षिक कारण- छात्र-अनुशासनहीनता का कदाचित् सबसे प्रमुख कारण यही है। अध्ययन के लिए आवश्यक अध्ययन-सामग्री, भवन एवं अन्यान्य सुविधाओं का अभाव, कर्त्तव्यपरायण एवं चरित्रवान् शिक्षकों के स्थान पर अयोग्य, अनैतिक और भ्रष्ट अध्यापकों की नियुक्ति, अध्यापकों द्वारा छात्रों की कठिनाइयों की उपेक्षा करके ट्यूशन आदि के चक्कर में लगे रहना या मनमाने ढंग से कक्षाएँ लेना आदि 'छात्र-अनुशासनहीनता के प्रमुख शैक्षिक कारण हैं।


निवारण के उपाय -यदि शिक्षकों को नियुक्त करते समय सत्यता, योग्यता और ईमानदारी का आकलन अच्छी कर लिया जाए तो प्राय: यह समस्या उत्पन्न ही न हो। प्रभावशाली, गरिमामण्डित, विद्वान् और प्रसन्नचित शिक्षक के सम्मुख विद्यार्थी सदैव अनुशासनबद्ध रहते हैं। पाठ्यक्रम को अत्यन्त सुव्यवस्थित व सुनियोजित, रोचक, ज्ञानवर्धक एवं विद्यार्थियों के मानसिक स्तर के अनुरूप होना चाहिए।


छात्र-अनुशासनहीनता के उपर्युक्त कारणों को दूर करके ही हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। सबसे पहले वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था को इतना व्यावहारिक बनाया जाना चाहिए कि शिक्षा पूरी करके विद्यार्थी अपनी आजीविका के विषय में पूर्णतः निश्चिन्त हो सके। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी के स्थान पर मातृभाषा हो। शिक्षा सस्ती की जाए और निर्धन किन्तु योग्य छात्रों को निःशुल्क उपलब्ध करायी जाए। परीक्षा प्रणाली स्वच्छ हो, जिससे योग्यता का सही और निष्पक्ष मूल्यांकन हो सके।


उपसंहार – छात्रों के समस्त असन्तोषों का जनक अन्याय है। इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से अन्याय को मिटाकर ही देश में सच्ची सुख-शान्ति लायी जा सकती है। छात्र-अनुशासनहीनता का मूल भ्रष्ट राजनीति, समाज, परिवार और दूषित शिक्षा प्रणाली में निहित है। इनमें सुधार लाकर ही हम विद्यार्थियों में व्याप्त अनुशासनहीनता की समस्या का स्थायी समाधान ढूँढ़ सकते हैं।


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