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चुंबकीय बल रेखाएँ, गुण और प्रयोग || magnetic lines of force

चुंबकीय बल रेखाएँ, गुण और प्रयोग || magnetic lines of force 

चुंबकीय बल रेखाएँ, गुण और प्रयोग // magnetic lines of force 


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चुंबकीय बल रेखाएं (magnetic lines of force)


चुंबकीय क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर क्षेत्र की दिशा, चुंबकीय बल रेखाओं द्वारा प्रदर्शित की जा सकती है, जब एक छोटी कंपास सुई को किसी छड़ चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो सुई एक निश्चित दिशा में ठहरती है। जैसे-जैसे सुई को क्षेत्र में चलाते हैं, सुई के ठहरने की दिशा निरंतर बदलती रहती है। इस प्रकार, कंपास सुई के चलने का मार्ग एक वक्र रेखा है, जो चुंबक के उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश कर जाती है। 


इसी रेखा को 'चुंबकीय बल रेखा' कहते हैं। इस प्रकार, चुंबकीय क्षेत्र में बल रेखाएं वे काल्पनिक रेखाएं हैं जो उस स्थान में चुंबकीय क्षेत्र की दिशा का अविरत प्रदर्शन करती हैं। चुंबकीय बल रेखा के किसी भी बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती हैं।


चुंबकीय बल रेखाएं लोहे के बुरादे अथवा कंपास सुई की सहायता से खींची जा सकती हैं। चित्र में क्रमशः धारावाही परिनालिका तथा दंड चुंबक से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की बल रेखाएं दिखाई गई है।



चुंबकीय बल रेखाओं के गुण (properties of magnetic lines of force)


1. चुंबकीय बल रेखाएं सदैव चुंबक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं तथा वक्र बनाती हुई दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं और चुंबक के भीतर से होती हुई पुनः उत्तरी ध्रुव पर वापस आती हैं।


2. दो बल रेखाएं एक दूसरे को कभी नहीं काटती। यदि काटती, तो कटान बिंदु पर दो स्पर्श रेखाएं खींची जा सकती थी अर्थात उस बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की 2 दिशाएं होती जो कि असंभव है।


3. चुंबक के ध्रुव के समीप जहां चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है, वहां बल रेखाएं पास-पास होती हैं। ध्रुव से दूर जाने पर चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता घटती जाती है तथा बल रेखाएं भी परस्पर दूर-दूर होती जाती हैं।


4. एक समान चुंबकीय क्षेत्र की बल रेखाएं परस्पर समांतर एवं बराबर बराबर दूरियों पर होती हैं।


एक समान चुंबकीय क्षेत्र की बल्ले खाएं परस्पर समांतर तथा सम दूरस्थ होती हैं। चित्र में आपको दिखाया गया है। असमान चुम्मा के क्षेत्र में बल रेखाएं की सघनता कहीं अधिक व कहीं कम होती है। चीज क्षेत्र में बल रेखाएं सघन होती हैं, वहां चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है। तथा जिस क्षेत्र में बल रेखाएं की सघनता की होती है, वहां चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता कम होती है। यदि किसी छड़ चुंबक को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में रखकर बल रेखाएं खींची जाए तो वह निम्न चित्र के समान होंगी।


छड़ चुंबक के समीप बल रेखाएं छड़ चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र के कारण हैं तथा चुंबक से दूर बल रेखाएं पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के कारण हैं। इन बल रेखाओं के बीच 2 बिंदु ऐसे हैं जहां से कोई भी बल रेखा नहीं गुजरती है। इन बिंदुओं को उदासीन बिंदु कहते हैं। उदासीन बिंदु पर का चुंबकीय क्षेत्र तथा पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र मान में बराबर व दिशा में विपरीत होते हैं। अतः उदासीन बिंदु पर परिणामी चुंबकीय क्षेत्र शून्य होता है।


यदि किसी दंड चुंबक के उत्तरी ध्रुव को पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की ओर रखकर चुंबकीय बल रेखाएं खींचते हैं, तो चुंबक की निरक्षीय रेखा पर एक निश्चित दूरी पर चुंबक के दोनों और दो उदासीन बिंदु प्राप्त होते हैं। जो कि आप चित्र में देख पा रहे हैं। यदि दंड चुंबक के उत्तरी ध्रुव को पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव की ओर रखकर चुंबकीय बल रेखाएं खींचते हैं तो चुंबक की अक्षीय रेखा पर एक निश्चित दूरी पर चुंबक के दोनों और दो उदासीन बिंदु प्राप्त होते हैं।


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