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स्वपरागण और परपरागण में अंतर // difference between self pollination and cross pollination

स्वपरागण और परपरागण में अंतर // difference between self pollination and cross pollination


स्वपरागण और परपरागण में अंतर // difference between self pollination and cross pollination




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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट   Bandana classes.com  पर । आज की पोस्ट में हम आपको स्वपरागण और परपरागण में क्या अंतर  होता है ? स्वपरागण (self pollination) किसे कहते हैं? पर परागण (cross pollination) किसे कहते हैं ? इन सभी के बारे में जानकारी देंगे ।

तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है।


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परागण किसे कहते हैं? 


परागकोषों में परागकण बनने के बाद आवश्यक है कि परागकण नर केंद्रक मादा युग्मक अंड तक पहुंचे। पुष्प के परागकोष से परागकणों के उसी पुष्प अथवा दूसरे पौधों के किसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचने की क्रिया को परागण कहते हैं।



परागण के प्रकार (Types of Pollination)


इसके दो प्रकार होते हैं - 



स्वपरागण


परपरागण



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स्वपरागण


1. इस प्रक्रिया में किसी एक पुष्प के पराग कणों का स्थानांतरण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र (स्वयुग्मन)अथवा उसी पौधे पर उत्पन्न अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर (स्वजात युग्मन) होता है।

2. इस प्रक्रिया में भाग लेने वाले पुष्पों के पराग कोष और वर्तिकाग्रों के परिपक्व होने का समय एक ही होता है।

3. बंद पुष्पी अवस्था में स्वपरागण की प्रक्रिया ही संभव है।

4. स्वपरागण के लिए बाहरी साधनों अथवा माध्यम की जरूरत नहीं होती।

5. यह पौधे के लिए मितव्ययी विधि है।

6. इस प्रक्रिया के द्वारा लक्षणों की शुद्धता बनी रहती है।

7. स्वपरागण के द्वारा व्यर्थ अथवा हानिकारक गुणों की संतति पौधों से हटाना संभव नहीं है।



स्वपरागण के लाभ


1. इस प्रक्रिया के द्वारा लक्षणों की शुद्धता को आगामी पीढ़ियों में बनाए रखा जा सकता है क्योंकि इससे प्राप्त पौधे समयुग्मजी होते हैं।

2. पौधे के उपयोगी लक्षणों को असीमित काल के लिए संरक्षित किया जा सकता है।

3. इसमें परागण की सफलता निश्चित होती है।

4. परागकणों की अधिक बर्बादी नहीं होती, अतः यह मितव्ययी विधि है।



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स्वपरागण की हानियां


1. इस प्रक्रिया के द्वारा निर्मित बीज अच्छा नहीं समझा जाता और इससे अंकुरित पौधा भी दुर्बल होता है।

2. पौधों में जीवनी क्षमता का निरंतर हास पाया जाता है।

3. पौधे की उत्पादन क्षमता आगामी पीढ़ियों में क्रमशः घटती जाती है।

4. इसके द्वारा पौधे की नई  किस्मों अथवा प्रजातियों का उद्भव नहीं होता।

5. हानिकारक लक्षणों को संतति पौधों से हटाना संभव नहीं है।



पर परागण


1. यहां परागकणों का स्थानांतरण उसी प्रजाति के अन्य पौधों के वर्तिकाग्र पर होता है।

2. सामान्यता यहां परागकोष और वर्तिकाग्र भिन्न-भिन्न समय पर परिपक्व होते हैं।

3. परपरागण के लिए पुष्प का खुला होना अनिवार्य होना है।

4. परपरागण के लिए जैविक अथवा अजैविक बाहरी माध्यम अथवा साधन की आवश्यकता होती है।

5. इसमें पौधे को असंख्य परागकणों के अतिरिक्त कुछ अन्य साधनों जैसे रंग, गंध और मकरंद आदि का भी उत्पादन करना होता है अतः यह मितव्ययिता के विपरीत है।

6. इस प्रक्रिया के द्वारा संकर अथवा विषम युग्मजी संतति उत्पन्न होती है। अतः लक्षणों की शुद्धता प्राप्त नहीं होती।

7. इसके द्वारा अनुपयोगी लक्षणों को आगामी संतति पीढ़ी से हटाया जा सकता है।






परपरागण के लाभ


1. परपरागण की अंतिम परिणीति पर निषेचन के रूप में होती है। अतः इसके परिणाम स्वरूप नवीन संयोजन और  पुनर्योजन विकसित हो सकते हैं, जिनसे आगामी पीढ़ियों में विभिन्नताएं प्राप्त होती हैं। इनमें से कुछ विभिन्नताएं उपयोगी भी सिद्ध हो सकती हैं। यह उपयोगी विभिन्नताएं पौधे को अस्तित्व के लिए संघर्ष में सहायता प्रदान करती हैं।

2. विभिन्नताएं और पुर्नसंयोजनों द्वारा पौधों की नवीन और उन्नत किस्में अथवा प्रजातियां भी विकसित हो सकती हैं।

3. परपरागण के परिणाम स्वरूप निर्मित संतति पीढ़ियों में रोग प्रतिरोधी क्षमता अधिक होती है।

4. पर परागण द्वारा उत्पन्न संतति पीढियों की जीवन क्षमता अधिक होती है। ये पौधे अपेक्षाकृत स्वस्थ, सबल और उत्तम गुणवत्ता और अधिक उत्पादन देने वाले होते हैं।

5. इस विधि की सहायता से व्यर्थ अथवा हानिकारक लक्षणों को आगामी पीढ़ियों में हटाया जा सकता है।

6. इस प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप पौधों में प्राप्त बीजों की संख्या बहुत अधिक होती है।




परपरागण की हानियां


1. यह एक अत्यंत अपव्ययी प्रक्रिया है जिसके लिए पुष्पों को असंख्य परागकणों का निर्माण करना पड़ता है और इनमें से अनेक परागकण दूसरे पुष्पों की वर्तिकाग्र पर नहीं पहुंच पाते, अभिगमन के दौरान मार्ग में ही नष्ट हो जाते हैं अतः पौधे के लिए अनुपयोगी सिद्ध होते हैं।

2. यह परागण के लिए एक सुनिश्चित विधि नहीं हैं, इसमें संभावना कारक अथवा तत्व हमेशा मौजूद होता है।

3. पर परागण में सक्रिय विभिन्न माध्यमों को आकर्षित करने के लिए पुष्पों में आकर्षण रंग, गंध और मकरंद जैसे उपादानों का प्रयोग होता है। स्वपरागण की स्थिति में इनकी कोई जरूरत नहीं होती।

4. परपरागण के द्वारा किसी पादप किस्म के उपयोगी और लाभदायक गुणों को संरक्षित नहीं किया जा सकता। आने वाली पीढ़ियों में इनके विलोपित होने की संभावना बनी रहती है।

5. परपरागण के द्वारा आने वाली पीढ़ियों में अनिच्छित अथवा हानिकारक गुण प्रविष्ट हो सकते हैं और इनके स्थाई तौर पर बने रहने की प्रबल संभावना होती है।


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स्वपरागण और परपरागण में अंतर



      स्वपरागण

        परपरागण

एक ही पुष्प में या एक ही पौधे के दो पुष्पों के बीच होता है।

दो अलग-अलग पौधों पर लगे फूलों के बीच होता है।

किसी बाहृय साधन की आवश्यकता नहीं होती।

परागकणों के दूसरे फूल पर पहुंचने के लिए वायु, जल, कीट या जंतु की आवश्यकता होती है।

इसके लिए एक पुष्प के पुमंग तथा जयंग एक साथ परिपक्व होते हैं।

एक ही पुष्प के पुमंग व जयंग अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं ताकि स्वपरागण न हो सके।

स्वपरागण वाले पुष्प छोटे तथा कम आकर्षक होते हैं और इनमें मकरंद नहीं होता है।

परपरागण वाले पुष्प चटकीले रंग के होते हैं और उनमें मकरंद होता है।



पक्षी परागण (Ornithophily in Hindi) : परागण की यह प्रक्रिया पक्षियों के माध्यम से संपन्न होती है विभिन्न सामान्य प्रकार की चिड़िया और बच्ची प्रजातियां विभिन्न पौधों के परागण में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं परागण में भाग लेने वाली चिड़ियों की चोच सामान्यता लंबी होती है और यह छोटी साइज के पक्षी होते हैं जैसे फूल सूंघनी चिड़िया आदि। सेमल के पुष्प में परागण इसका एक सुंदर उदाहरण है। सेमल के वृक्ष में बड़े और आकर्षक लाल रंग के फूल खिलते हैं जिस समय इस में फूल खिलते हैं उस समय पेड़ में एक भी पत्ती नहीं होती। लाल पुष्पों से लदा हुआ वृक्ष अत्यंत सुंदर प्रतीत होता है इस सुंदर पुष्प के सभी भाग मांसल और श्लेष्मा युक्त होते हैं। पुष्पा के लाल रंग से आकर्षित होकर और उसके मांसल भागों को खाने के लिए अनेक पक्षी इस तक पहुंचते हैं तो साथ ही परागण क्रिया भी संपन्न हो जाती है। पक्षियों द्वारा परागण क्रिया संचालित करने का एक अन्य उपयुक्त उदाहरण बिगनोनिया के रूप में परिलक्षित किया जा सकता है। इस पौधे के पुष्प में दलपुंज, संयुक्त रुप से मिलकर एक नलिका का निर्माण करते हैं। इस नलिका के आधार के भाग में मकरंद पाया जाता है। इसकी दलपुंज नलिका इतनी बड़ी होती है कि लंबी चोच वाली चिड़िया अपनी चोंच नलिका के अंदर डालते हैं तो बाहर निकले हुए पुंकेसरों के परागकण भी इसकी चोंच पर चिपक जाते हैं। यह चली आज जब किसी ऐसे पुष्प का मकरंद चुस्ती है जिसके जायांग परिपक्व होकर बाहर निकल रहे हो तो ऐसी अवस्था में चोंच पर चिपके परागकण वर्तिका पर पहुंच जाते हैं तथा परागण संपन्न हो जाता है।


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चमगादड़ परागण (Chiropterophily in Hindi) : अनेक बच्चों जैसे कदंब, कचनार, झाड़ फानूस अथवा बालम खीरा और कल्पवृक्ष अथवा गोरख इमली आदि के पुष्पों पर परागण क्रिया चमगादड़ के सौजन्य से संपन्न होती है। यह प्राणी निशाचर होते हैं। इन वृक्षों के पुष्प सामान्यता रात को भी खुले रहते हैं। इसके अलावा इन पुष्पों में पुंकेसरों की संख्या सामान्यतः रात को तेज गति से उड़ान भरकर काफी लंबी दूरी तय करने में सक्षम होते हैं, अतः इनके द्वारा काफी दूर तक परागकणों का स्थानांतरण किया जा सकता है। जिन पुष्पों में चमगादड़ के द्वारा परागण होता है उसमें स्त्रावित मकरंद की मात्रा, पक्षियों द्वारा परागित पुष्पों की तुलना में बहुत अधिक होती है। इसी प्रकार कचनार के पुष्पों के दलपुंज पर लटक कर चमगादड़ उनके पुंकेसरों को खा जाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान उनके शरीर पर बहुत सारे परागकण लग जाते हैं बाद में यही परागकण चमगादड़ों के द्वारा दूसरे पुष्प पर जाने से उसके वर्तिकाग्र पर लगकर परागण क्रिया परिपूर्ण करते हैं।



घोंघों द्वारा परागण (Malacophily in Hindi) : अनेक पौधों जैसे चावल्या कंद और एरम लिलि में घोंघों के द्वारा परागण क्रिया संपन्न होती है। अनेक वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार की कुछ प्रजातियों जैसे हेवेनरिया आदि में भी घोंघों द्वारा परागण होता है। हालांकि यह प्राणी बहुत धीरे-धीरे रेंग कर अपने शरीर पर परागकण ले जाते हैं लेकिन फिर भी यह कहना कठिन है कि क्या यह वास्तव में परागण में सहायक होते हैं क्योंकि घोंघे तो छोटे पौधों, विशेषकर कीचड़ में उगने वाले पौधों के लिए अत्यधिक हानिकारक होते हैं। अतः इनके द्वारा परागण क्रिया पौधे के लिए फायदे का सौदा नहीं हो सकता।



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प्राणी परागण (Zoophily in Hindi) : इसके अंतर्गत बड़े अथवा स्तन प्राणियों के माध्यम से परागण क्रिया संपन्न करवाई जाती है। उदाहरण के तौर पर हम सेमन के परागण का उल्लेख कर सकते हैं, जैसे के पुष्पों में परागण हेतु विभिन्न पक्षियों के अतिरिक्त गिलहरियों का सक्रिय योगदान होता है। यहां मनुष्य के द्वारा परागण क्रिया में सहायता का उल्लेख भी आवश्यक है। विभिन्न ने पौधों की नस्ल सुधारने के लिए पादप प्रजनकों के द्वारा कृत्रिम रूप से परागण क्रिया करवाई जाती है। आधुनिक काल में आने कृषि फसलों जैसे गेहूं चावल और मक्का में और अनेक फलों के उत्पादन जैसे आम और चीकू लीची आदि में प्रतिमा और नियंत्रित परागण के द्वारा अनेक उत्तम गुणवत्ता वाली सुधरी हुई क़िस्में प्राप्त की गई हैं। वैसे आजकल प्राणी परागण के अंतर्गत सभी प्राणियों के माध्यम से होने वाली परागण क्रिया जैसे कीट परागण, पक्षी परागण , चमगादड़ द्वारा परागण, घोंघों द्वारा परागण आदि परागण क्रियाओं के समग्र रूप से सम्मिलित किया जाता है परंतु अध्ययन की सुविधा के लिए उपयुक्त सभी प्रक्रियाओं को यहां पर आपको अच्छे से समझाए गई हैं।



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