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लैंगिक तथा अलैंगिक जनन में अंतर // Difference between sexual and asexual reproduction

लैंगिक तथा अलैंगिक जनन में अंतर // Difference between sexual and asexual reproduction


लैंगिक और अलैंगिक जनन में अंतर // Difference between sexual and  asexual reproduction



नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट Bandana classes.com पर ।  आज की इस पोस्ट में हम आपको जीव विज्ञान के सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक लैंगिक और अलैंगिक जनन में अंतर के बारे में जानकारी देंगे। लैंगिक और अलैंगिक जनन में अंतर के बारे में प्रायः सभी बोर्ड परीक्षाओं में यह प्रश्न अवश्य पूछा जाता है।




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अलैंगिक जनन

लैंगिक जनन

इसमें केवल एक ही जनक भाग लेता है।

इसमें दो जनक भाग लेते हैं।

यह जनन केवल असूत्री समसूत्री विभाजन द्वारा होता है। अगुणित युग्मक नहीं बनते।

इस जनन में अर्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मक बनते हैं।

युग्मनज नहीं बनता।

अगुणित युग्मकों के मिलन से द्विगुणित युग्मनज बनता है ।

पैत्रक कोशिकाओं से नया जीव बनता है ।

युग्मनज से नये जीव का विकास होता है ।

बिना बीज वाले पौधों जैसे गुलाब , अंगूर तथा केले में अलैंगिक जनन द्वारा जनन सम्भव है ।

केवल बीज वाले पौधों में ही लैंगिक जनन हो सकता हैं।

इस विधि द्वारा जनन कम समय में व तेजी से हो सकता है ।

इस विधि द्वारा जनन में अधिक समय लगता है ।

संतति जीवों की जीनी संरचना मातृ जीवों के एकदम समान संतति जीवों में माता व पिता दोनों जीवों के लक्षण होती है ।

संतति जीव माता व पिता दोनों जीवो के लक्षण पाए जाते हैं। आत: संतति जीव माता व पिता दोनों से ही थोड़ा भिन्न होते हैं।

नए किस्में विकसित नहीं हो सकती ।

विभिन्नताओं के एकत्र होने से नये लक्षणों वाले जीवों का विकास हुआ है।




लैंगिक जनन किसे कहते हैं?


प्रजनन की वह क्रिया जिसमें दो युग्मकों ( गैमीट / Gamete ) के मिलने से बनी रचना युग्मज (जाइगोट ) द्वारा नये जीव की उत्पत्ति होती है , लैंगिक जनन ( sexual reproduction ) कहलाती है । यदि युग्मक समान आकृति वाले होते हैं तो उसे समयुग्मक कहते हैं ।इस प्रकार के लैंगिक जनन को ' समयुग्मी ' कहते हैं ।



अलैंगिक जनन किसे कहते हैं?



अलैंगिक जनन ( asexual reproduction ) : प्रत्येक जीव के जीवन का प्रारंभ एक कोशिका से होता है यदि यह एक कोशिका एक ही जनक द्वारा प्रदान की गई तो इसे अलैगिक जनन कहते है । अलैगिक जनन में बनी संतति आपस में तथा जनको से समान रखती है ।



मनुष्य में जनन तन्त्र (Reproductive System in Human) -


मनुष्य एकलिंगी प्राणी है अर्थात् नर और मादा जनन अंग अलग - अलग प्राणियों में होते हैं । जिस मानव में नर जनन अंग होते हैं उन्हें पुरुष तथा जिनमें मादा जनन अंग होते हैं उन्हें स्त्री कहते हैं । पुरुषों एवं स्त्रियों को बाह्य लक्षणों द्वारा पहचाना जा सकता है । इन लक्षणों को गौण लैंगिक लक्षण ( secondary sexual characters ) कहते हैं । इन लक्षणों का विकास लड़कों में 15-18 वर्ष की आयु तक तथा लड़कियों में 11-14 वर्ष की आयु में प्रारम्भ हो जाता है । 


नर के गौण लैंगिक लक्षण यौवनावस्था के साथ लड़कों में निम्नलिखित परिवर्तन शुरू हो जाते हैं : 



1. शुक्रजनन नलिकाएँ शुक्राणुओं का निर्माण शुरू कर देती हैं । 



2. वृषण कोषों तथा शिश्न के आकार में वृद्धि । 



3. कंधे चौड़े हो जाते हैं तथा अस्थियों के आकार एवं पेशीन्यास में वृद्धि होती है । 



4. चेहरे तथा शरीर पर बाल उग आते हैं । 



5. स्वर भारी हो जाता है तथा शरीर की लम्बाई में वृद्धि होती है । 



स्त्री के गौण लैंगिक लक्षण यौवनारम्भ के समय लड़कियों में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं : 



1. बाह्य जनन अंगों तथा स्तनों का विकास । 



2. अण्डोत्सर्ग तथा आर्तव चक्र का प्रारम्भ । 



3. श्रोणि प्रदेश का फैलकर चौड़ा होना । 



4. कक्षीय एवं जघन बालों का उगना ।



मादा जनन तन्त्र (Female Reproductive System) 



मादा जनन तन्त्र के मुख्य अंग दो अण्डाशय (ovaries) , अण्डवाहिनियाँ (oviducts) , गर्भाशय (uterus) , योनि (vagina) एवं भग (vulva) होते हैं । स्त्रियों में यौवनारम्भ 12-13 वर्ष की आयु में शुरू होता है । एक जोड़ी अण्डाशय वृक्क के नीचे उदरगुहा में पृष्ठ तल पर चिपके रहते हैं । अण्डाशय के समीप से अण्डवाहिनी (oviduct) अथवा डिम्बवाहिनी (fallopian tube) एक कीप की तरह शुरू होती है । 



दोनों ओर की डिम्बवाहिनी नलिकाएँ जुड़कर एक बड़ा कोष्ठ बनाती हैं जिसे गर्भाशय (uterus) कहते हैं । गर्भाशय एक छोटे कोष्ठ , योनि (vagina) में खुलता है और योनि (vulva) द्वारा बाहर खुलती है । स्त्रियों में पुरुष के शिश्न के समजात क्लाइटोरिस (clitoris) होता है । अण्डाशय अण्डाणु ( मादा युग्मक ) तथा कुछ हॉर्मोन्स बनाते हैं । योनि लगभग 8-10 सेमी लम्बी मांसल नलिका है जो सम्भोग के समय नर लिंग ( शिश्न ) को ग्रहण करती है । शिशु बालिका में जन्म के समय दोनों अण्डाशयों में 2,50,000 से 4,00,000 पुटिकाएँ ( follicles ) होती हैं । इनमें से केवल 400 पुटिकाएँ ही स्त्री के जीवन काल में परिपक्व हो पाती है । शेष पुटिकाएँ वयस्क अवस्था के बाद निष्क्रिय हो जाती हैं । वयस्क स्त्रियों में 14 साल की आयु से लगभग 45 साल की आयु तक ही डिम्बा पुटिकाएँ परिपक्व होती हैं । उसके बाद स्त्रियों में जनन क्षमता समाप्त हो जाती है । स्त्रियों में प्रतिमाह केवल एक पुटक ही परिपक्व होता है जो दायें या बायें , किसी भी अण्डाशय में हो सकता है ।


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