कारक क्या होते हैं? / कारक किसे कहते हैं? Karak kise kahate Hain
कारक क्या होते हैं? / कारक किसे कहते हैं?
karak, karak ke bhed, karak ke prakar, कारक, कारक के भेद, कारक के प्रकार, कारक किसे कहते हैं ?, कर्म कारक, कर्ता कारक, करण कारक, अधिकरण कारक, अपादान कारक, सम्बन्ध कारक, सम्प्रदान कारक, सम्बोधन कारक, karm karak, karn karak, karan karak, adhikaran karak, apadaan karak, sambandh karak, sampradaan karak, karak ki paribhasha, karak kise kehte hain?, what is karak, hindi grammar
कारक की परिभाषा karak ki paribhasha
संज्ञा या सर्वनाम की क्रिया के साथ भूमिका निश्चित करने वाले शब्द कारक कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में क्रिया के साथ जिसका सीधा सम्बन्ध हो, उसे कारक कहते हैं,
जैसे - पुलिस ने चोर को डंडे से मारा ।
इस वाक्य मे क्रिया है मारा ,कर्ता है ,पुलिस ने है कारक।
कारक के प्रकार- karak ke prakar
कारको के 8 भेद है। कारक तथा उनके विभक्ति चिह्न निम्नलिखित है-
1. कर्ता कारक karta karak - कर्ता शब्द का अर्थ है, क्रिया को करने वाला। बिना कर्ता के क्रिया सभव नहीं है ।
या
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो उसे कर्ता कारक कहते हैं इसका चिन्ह 'ने ' कभी कर्ता के साथ लगता है ।
कर्ता कारक के उदाहरण
•रमेश ने पुस्तक पढ़ी।
•सुशीला खेलती है।
•पक्षी उड़ता है।
•सोहन ने पत्र पढ़ा।
•मोहन किताब पढ़ता है।
•सुरेंद्र पत्र लिखता है।
•अध्यापक ने विद्यार्थियों को पढ़ाया।
•पुजारी जी पूजा कर रहे हैं।
•कृष्ण ने सुदामा की सहायता की।
•सीता गाना गाती है।
•राधा बाजार जाती है।
• बच्चों ने किताबें ली ।
• माताजी ने खाना खाया।
इसे भी पढ़ लें
👉सर्वनाम की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण
👉कारक किसे कहते हैं? कारक के भेद एवं उदाहरण
2. कर्म कारक karm karam- क्रिया का प्रभाव जिस संज्ञा या सर्वनाम पर पड़ता उसे कर्म कारक कहते हैं।
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप पर क्रिया का प्रभाव या फल पड़े, उससे कर्म कारक कहते हैं। कर्म के साथ 'को 'विभक्ति आती है ।इसकी यही सबसे बड़ी पहचान होती है। कभी-कभी वाक्यों में 'को' विभक्ति का लोप भी होता है।
![]() |
कर्म कारक किसे कहते हैं |
कर्म कारक के उदाहरण
•राम ने रावण को मारा ।
•उसने सुनील को पढ़ाया।
•मोहन ने चोर को पकड़ा।
•सोहन ने रोहन को देखा।
•कविता पुस्तक पढ़ रही है।
•गोपाल ने सीता को बुलाया।
•मेरे द्वारा यह काम हुआ।
•कृष्ण ने कंस को मारा।
•राम को बुलाओ।
•बड़ों को सम्मान दो।
•मां बच्चे को सुला रही है।
•उसने पत्र लिखा।
•सोहन को कसौली घूमने था।
•सोहन ने रोहन को पत्र लिखा।
•मां ने बच्चे को खाना दिया।
यहाँ कर्ता राम है और उसके मारने का फल रावण पर पड़ता है। अतः रावण कर्म है। यहाँ रावण के साथ कारक चिह्न का प्रयोग हुआ है।
"कहना" और "पूछना" के साथ "से" प्रयोग होता है इसके साथ "को" का प्रयोग नहीं होता जैसे-
•कबीर ने रहीम से कहा।
•सोहन ने रोहन से पूछा।
•सोहन ने हिमांशु से पूछा।
3. करण कारक Karan karak- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप के सहयोग से क्रिया संपन्न होती है, उसे करण कारक कहते हैं।
जिस साधन से अथवा जिसके द्वारा क्रिया पूरी की जाती है, उस संज्ञा को करण कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान 'से' अथवा 'द्वारा' है ।
इसे भी पढ़े
संज्ञा किसे कहते हैं परिभाषा,भेद,उदाहरणकरण कारक के उदाहरण
•रहीम गेंद से खेलता है।
•पुलिस चोर को लाठी द्वारा मारती है।
•रोहन गाड़ी चलाता है।
•हम दाल के साथ चावल खाते हैं ।
• मैं सजल के साथ किताबें भेज दूँगा।
•रोहन पेन से लिखता है।
•सोहन बैट से खेलता है।
यहां 'गेंद से' 'लाठी द्वारा' और 'गाड़ी चलाता' करण कारक है।
4. सम्प्रदान कारक sampradan karak - जिसके लिए क्रिया की जाती है या जिसे कुछ दिया जाता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। इसमें कर्म कारक 'को' भी प्रयुक्त होता है किंतु उसका अर्थ 'के लिए' होता है
![]() |
संप्रदान कारक किसे कहते हैं |
सम्प्रदान कारक के उदाहरण
• सुनील रवि के लिए गेंद लाता है।
•हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।
•मां बच्चे को खिलौना देती है।
•अमन ने श्याम को सेब दिया।
•मां बेटे के लिए अंगूर लाई।
•मैं सोहन के लिए चाय बना रहा हूं।
•मैं बाजार को जा रहा हूं।
•भूखे के लिए रोटी लाओ।
•वह मेरे लिए उपहार लाए हैं।
•सोहन रमेश को पुस्तक देता है।
•सीता गीता को पुष्प देती है।
•माँ ने बच्चे को खाना दिया ।
• प्रखर प्रज्ञा के लिए मिठाई लाया ।
उपरोक्त वाक्यों में 'रवि के लिए' 'पढ़ने के लिए' और बच्चे को संप्रदान कारक है।
5. अपादान कारकApadan karak - जब संज्ञा या सर्वनाम के किसी रूप से अलग होने का भाव प्रकट होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं।
या
अपादान का अर्थ है- अलग होना। जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम से किसी वस्तु का अलग होना मालूम चलता हो ,उसे अपादान कारक कहते हैं। करण कारक की तरह अपादान कारक का चिन्ह भी 'से' है ,परंतु करण कारक में इसका अर्थ सहायता होता है और अपादान में अलग होना होता है
अपादान कारक के उदाहरण
•हिमालय से गंगा निकलती है।
•वृक्ष से पत्ता गिरता है।
•सोहन के हाथ से फल गिरता है।
•गंगा हिमालय से निकलती है।
•लड़का छत से गिरा है।
•पेड़ से पत्ते गिरे।
•आसमान से बूंदे गिरी।
•वह सांप से डरता है।
•दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा।
•चूहा बिल से बाहर निकला।
•रोहन घर से बाहर गया।
•पेड़ से पत्ता गिरता है ।
• गंगा हिमालय से निकलती है।
इन वाक्यों में 'हिमालय से' 'वृक्ष से' 'छत से 'अपादान कारक है।
6. सम्बन्ध कारक sambandh karak- किसी संज्ञा या सर्वनाम का अन्य संज्ञा या सर्वनाम से संबंध बताने वाले शब्द सम्बन्धकारक कहलाते हैं।
या
संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का संबंध दूसरी वस्तु से जाना जाए उसे संबंध कारक कहते हैं। की मुख्य पहचान है - 'का' 'की' 'के'
संबंध कारक के उदाहरण-
•राहुल की किताब मैच पर है।
•सुनीता का घर दूर है।
•प्रखर का घर बहुत सुन्दर है ।
• यह प्रशान्त की साइकिल है।
7. अधिकरण कारक adhikaran karak- क्रिया होने के स्थान और काल को बताने वाले कारक को अधिकरण कारक कहते हैं।
या
संज्ञा के जिस रुप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं इसकी मुख्य पहचान है 'में' 'पर' होती है
अधिकरण कारक के उदाहरण
•घर पर मां है।
•घोसले में चिड़िया है।
•सड़क पर गाड़ी खड़ी है।
•मछलियाँ जल में रहती हैं तथा
•पुस्तक मेज पर रखी है।
यहां 'घर पर' 'घोसले में' और 'सड़क पर' अधिकरण कारक है।
8. संबोधन कारक sambodhan karak- संज्ञा के जिस रूप से किसी को बुलाया या पुकारा जाता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं।
संज्ञा या जिस रूप से किसी को पुकारने तथा सावधान करने का बोध हो उसे संबोधन कारक कहते हैं। इसका संबंध न क्रिया से और न किसी दूसरे शब्द से होता है ।यह वाक्य से अलग रहता है इसका कोई कारक चिह्न भी नहीं है
संबोधन कारक के उदाहरण
•खबरदार!
•रीना को मत मारो।
•रमा! देखो कैसा सुंदर दृश्य है।
•वाह !ताज महल कितना सुंदर है।
•अरे !यह क्या हो गया।
•हे प्रभु! रक्षा करो ।
•बच्चों! खूब मन लगाकर पढ़ो।
कर्म और सम्प्रदान कारक में अंतर
• इन दोनों कारक में 'को' विभक्ति का प्रयोग होता है।
कर्म कारक में क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या उपकार के भाव में को का प्रयोग होता है। जैसे -
(i) विकास ने सोहन को आम खिलाया।
(ii) मोहन ने साँप को मारा।
(iii) राजू ने रोगी को दवाई दी।
(iv) स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।
करण और अपादान कारक में अंतर
• करण और अपादान दोनों ही कारकों में 'से' चिन्ह का प्रयोग होता है।
परन्तु अर्थ के आधार पर दोनों में अंतर होता है।
• करण कारक में जहाँ पर 'से' का प्रयोग साधन के लिए होता है, वहीं पर अपादान कारक में अलग होने के लिए किया जाता है।
• कर्ता कार्य करने के लिए जिस साधन का प्रयोग करता है उसे करण कारक कहते हैं।
• लेकिन अपादान में अलगाव या दूर जाने का भाव निहित होता है।
जैसे
(i) मैं कलम से लिखता हूँ।
(ii) जेब से सिक्का गिरा।
(iii) बालक गेंद से खेल रहे हैं।
(iv) सुनीता घोड़े से गिर पड़ी।
(v) गंगा हिमालय से निकलती है।
विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं
विभक्तियां आत्मनिर्भर होती हैं और इनका वजूद भी इसलिए आत्मनिर्भर होता है। यह शब्द सहायक होते हैं जो किसी वाक्य के साथ मिलकर उसे एक मतलब देते हैं, जैसे ने, से आदि ।
हिंदी में विभक्तियां विशेष रूप से सर्वनामों के साथ प्रयोग होकर डिसऑर्डर बना देती हैं और उनसे मिल जाती हैं। जैसे मेरा, हमारा, उसे, उन्हें आदि।
• विभक्तियों को संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयोग किया जाता है। जैसे- मोहन के घर से यह सामान आया है।
👉छायावादी युग तथा इसकी प्रमुख विशेषताएं
👉मुहावरे तथा लोकोक्ति में अंतर
👉खंडकाव्य तथा महाकाव्य में अंतर
👉राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा में अंतर
👉निबंध क्या है ? निबंध कितने प्रकार के होते हैं ?
👉उपन्यास किसे कहते हैं ? उपन्यास के प्रकार
👉रिपोर्ताज किसे कहते हैं? रिपोतार्ज का अर्थ एवं परिभाषा
👉रेखाचित्र किसे कहते हैं ?एवं रेखाचित्र की प्रमुख विशेषताएं
👉आलोचना किसे कहते हैं? प्रमुख आलोचना लेखक
👉भारतेंदु युग की प्रमुख विशेषताएं
👉विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्य एवं अधिकार
👉रस किसे कहते हैं ? इसकी परिभाषा
👉महात्मा गांधी पर अंग्रेजी में 10 लाइनें
If u want to sell ur blog please contact
ReplyDelete+918955714398
Url - https://shikshaportal.in
Post a Comment